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How to Draw Inspiration from Darkness?

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1.अंधकार से प्रेरणा कैसे प्राप्त करें? (How to Draw Inspiration from Darkness?),अन्धकार से प्रेरणा प्राप्त करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Draw Inspiration from Darkness):

  • अंधकार से प्रेरणा कैसे प्राप्त करें? (How to Draw Inspiration from Darkness?) व्यक्ति चाहे तो क्या नहीं कर सकता है।अंधकार क्या,पत्थर,पेड़-पौधों,पशु-पक्षियों,जलचरों आदि से प्रेरणा प्राप्त करके भी आगे बढ़ा जा सकता है।यदि व्यक्ति में ललक,जिज्ञासा है तो उसे आगे बढ़ने से कोई भी नहीं रोक सकता है।
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2.अंधकार का आशय क्या है? (What is the Meaning of Darkness?):

  • अंधकार का अपना स्वतंत्र कोई अस्तित्व नहीं है।यह तो प्रकाश का अभाव मात्र है।फिर भी हमारे जीवन में इसके महत्त्व को कमतर नहीं आँका जा सकता।बाहर और भीतर,दोनों और हमें अंधकार की प्रतीति होती है।अंधकार एक प्रतीति है,यह केवल प्रतीत होता है,अर्थात् अंधकार वास्तविक नहीं है,आभासी है।यह है भी और नहीं भी।यह है इसलिए; क्योंकि आभासी एवं अवास्तविक को सच मान लिया जाता है और यह नहीं है; क्योंकि इसके सघन साम्राज्य को प्रकाश की एक किरण समाप्त कर देती है।अगर यह होता तो फिर इतनी शीघ्रता से यह समाप्त कैसे होता।बाहरी अंधकार की दुनिया तो अपनी जगह है; किंतु हमारे मन के भीतर भी यदि अंधकार की दुनिया है,अंधकार का डर है तो फिर हमारे लिए बाहरी अंधकार और भी ज्यादा डरावने दृश्य प्रस्तुत करता है।
  • बाहरी अंधकार रात्रि होती है तथा दिन में भी रात्रि का एहसास देने वाले,भयानक खंडहर,सुरंग एवं घने वन होते हैं।ये डरानेवाली आहट देते हैं,परंतु जब हमारे मन में डर की कालिमा पसरी होती है तो यह अंधकार ओर भी भीषण एवं डरावना लगता है।जब अंदर में भय व्याप्त रहता है तो रात्रि में पेड़ों पर हवा की टकराहट भी हमें किसी भूत,प्रेत एवं ब्रह्मपिशाच जैसा एहसास दिलाती है।ऐसे में पेड़ों का हिलना,सूखे पत्तों का खड़कना हमारी धड़कनों को तेज कर देता है,सांसों को फुला देता है।यह इसलिए है; क्योंकि हमारा मन स्वयं में डरा हुआ है,भयग्रस्त है।डरा हुआ मन डराता नहीं,डरता है,किसी से भी घबरा उठता है ;अंधकार का सामना होते ही भय उत्पन्न करने वाली सैकड़ो कल्पनाएं करने लगता है।
  • अंधेरा हमारे जीवन में तमस का,असुरता का,अविद्या और भ्रांति का प्रतीक है।अंधेरा अपने साम्राज्य का विस्तार चाहता है।चारों ओर यह फेल जाना चाहता है।इसके अपने साथी,सहचर होते हैं।अंधेरे के साथी मजबूत एवं शक्तिशाली भी माने जाते हैं; क्योंकि ये सारे आपस में एकदूसरे से जुड़े हुए एवं संगठित होते हैं।उनकी संगठन शक्ति ही इनका बल है।अंधकार से भ्रम,भ्रम से अविद्या और अविद्या से डर उत्पन्न होता है।
  • तमस का आक्रमण अपने पूरे वेग से होता है।सभी मिलकर अपनी पूरी शक्ति से प्रहार करते हैं,अतः इनका प्रहार झेलना एक चुनौती होती है।अंधकार का सबसे बड़ा शत्रु प्रकाश एवं सत्य होता है।सत्य और प्रकाश जब चुनौती बन जाते हैं तो अंध सेना पूरी तरह से एकत्र एवं संगठित होकर इनसे संघर्ष करने के लिए खड़ी हो जाती है।सत्य एवं प्रकाश अंधकार के अस्तित्व को विनष्ट कर देते हैं।इन्हें पूर्णतया विभाजित,विखंडित करके धूल-धूसरित कर देते हैं।
  • एक दीपक की लौ भी सतत जलते हुए रात के सघन अंधकार की छाती को चीरते हुए उषाकाल का दिग्दर्शन करा देती है।आवश्यकता है रात के प्रबल झंझावातों में,प्रचंड आंधी-तूफान में अकेले जलने का साहस सँजोने की।यदि दीपक हिम्मत ना हारे,सूझ-बूझ के साथ साहस एवं सहनशीलता का परिचय दे तो अंधकार कितना भी घना,तमस कितना भी गहरा क्यों ना हो,उसे नष्ट करके ही रहता है।जैसे अग्नि की एक चिंगारी विस्तृत सूखे वन को जलाकर खाक कर देती है,ठीक वैसे ही प्रकाश की एक पतली किरण प्रबल अंधकार के सीने को चीर देती है।
  • तमस् का बल कितना भी क्यों ना हो,सत्य और प्रकाश के एक छोटे से अंश के सामने निर्बल,निर्जीव एवं बेजान हो जाते हैं।तमस एवं अंधकार का आधार असत्य एवं अधर्म होता है,जिनका अपना कोई आधार नहीं होता।ये खोखले होते हैं और इनका खोकलापन सत्य और धर्म के सामने टिक नहीं पाता है।जल के बुलबुलों के समान ये फट जाते हैं,विलीन हो जाते हैं।सत्य यही है कि अंधकार आभासी एवं असत्य है और सत्य और प्रकाश यथार्थ एवं वास्तविक है।अतः सदैव सत्य और प्रकाश को साथ रखना चाहिए।

3.प्रेरणा का स्रोत अंधकार के गर्भ में है (The Source of Inspiration is in the Womb of Darkness):

  • प्रभात होने से पूर्व अंधकार होता है।प्रकाश की किरणें अंधकार के गर्भ में रहती है।हमारा उज्जवल भविष्य भी भविष्य के अंधकार में रहता है।हमारा जीवन किस राह से गुजरेगा,यह भविष्य के अंधकार के गर्भ में है।आज का बालक कल क्या बनेगा? यह भविष्य के अंधकार का रहस्य है।हम प्रकाश का भविष्य लेकर रात्रि के अंधकार को झेलते हैं।उज्जवल भविष्य की आशा की डोर पड़कर हम भविष्य की अनिश्चितता रूपी अंधकार को जीवन की अनिवार्यता ही नहीं मानते हैं,बल्कि उसको जीवन का एक अति महत्त्वपूर्ण अवलंबन भी मानते हैं।यदि भविष्य अंधकारमय ना हो,तो पूर्व निर्धारित भविष्य सामने बना रहे और हम निष्क्रिय होकर बैठ जाएं।हमारे समस्त कार्यों की प्रेरणा वस्तुतः भविष्य का अंधकार ही है।’कभी हार मत मानो’ (never say die) आदि कथन के सार्थक होने का कारण ही यह है की संध्या की कालिमा में चंद्रोदय की संभावना निहित है।तात्पर्य यह है कि हमारे हाथ में कर्म करना ही है,फल नहीं इसलिए फल में आसक्ति ना हो और कर्म न करने में भी प्रीति ना होवे।
  • कर्म का फल अनिश्चित है,परंतु फल मिलना निश्चित है।भविष्य अंधकारमय है,परंतु अनुकूलता की संभावना उसके गर्भ में निहित आशा है।आशा की किरण भविष्य के अंधकार को सार्थकता प्रदान करती है।परीक्षार्थी की सफलता भविष्य के अंधकार में रहती है,इसी कारण वह अंतिम क्षण तक उत्तीर्ण होने का प्रयत्न करता रहता है।यदि अनुत्तीर्ण होने वाले परीक्षार्थियों को परीक्षाफल विदित हो,तो अधिकांश परीक्षार्थी पढ़ें ही नहीं अथवा पढ़ने ही न जाएं।कौन जाने,हमारे द्वारा तैयार किए गए प्रश्न यदि प्रश्न-पत्र में आ जाएं? अंधकारमय भविष्य ही उन परीक्षार्थियों की प्रेरणा बनता है,यह सर्वथा उचित है।
  • प्रेमी-प्रेमिकाओं को जीवित रखने में अनिश्चित भविष्य बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।यदि “हां” पक्की हो,तो कोई प्रेमी तड़पे ही क्यों,यदि ‘न’ पक्की हो,तो कोई आशिक वक्त के इंतजार में अपना वक्त क्यों जाया करें? भविष्य का अंधकार ‘शायद’ अथवा संभावना एवं आशंका की सृष्टि करता है।इन्हीं में किसी के सहारे हम अपने जीवन-पथ पर अग्रसर होते हैं।यदि क्षितिज पर मेघमालाओं के प्रकट होने के संदर्भ में अनिश्चितता न हो,तो कृषक,मोर और पपीहे आसमान की ओर टकटकी क्यों लगाने लगें?
  • रोगी का भविष्य यदि अंधकारमय ना हो,तो कोई चिकित्सक के द्वार पर क्यों जाएगा? उसके स्वस्थ हो जाने की आशा प्रतिपल बनी रहती है।यदि ऐसा न होता तो उसका उपचार अंतिम समय तक क्यों कराया जाता? केवल इसी आशा को लेकर कि शायद अपेक्षित उपचार द्वारा लाभ हो ही जाए।रोगी का इलाज करते समय अधिकांशतः धन का महत्त्व बहुत कम मान लिया जाता है।’शायद’ शब्द भविष्य के अंधकार को द्योतित करता है।ऑक्सीजन लगाना,खून चढ़ाया जाना,ग्लूकोज चढ़ाया जाना आदि के रूप में यम यातनाओं को रोगी केवल स्वास्थ्य लाभ अथवा जीवन रक्षा की आशा से सहन करता है।आयुर्वेद का सिद्धांत भी है कि जब तक प्राण कंठ में रहे,उपचार करते रहना चाहिए।कौन जाने कब जीवन-संचार हो जाए? मानव मन में बसा हुआ अंधकार धूप के प्रकाश की ओर जाने के लिए सदैव छटपटाता रहता है।
  • विरहियों को जीवित रखना केवल मिलन-आशा का ही काम है।विरहियों की मिलन-आशा के वर्णन हम विश्व के किसी भी साहित्य में पढ़ सकते हैं।विरही जब विरहावस्था में जड़ता,मूर्च्छा एवं मरण दशाओं तक को प्राप्त हो जाते हैं,परंतु वे मरते नहीं है,क्यों? क्या इसलिए की मरण का वर्णन काव्य को दु:खांत बना देगा? नहीं,बात ऐसी नहीं है।मिलन की संभावना उन्हें मरने ही नहीं देती है।विरही विरहजन्य मरण दशा को प्राप्त होकर भी मरणावस्था को प्राप्त नहीं होता है,क्योंकि मिलन की संभावना की डोर को पकड़कर वह अपनी प्रियतम/प्रियतमा की खोज में धरती और आकाश को एक कर देने का हौसला रखता है।भक्ति के क्षेत्र में भी भविष्य का अंधकार साधक का संबल बनता है।भगवान की कृपा होगी अवश्य,परंतु कब? यह नहीं कहा जा सकता है।उनकी कृपा जब भी हो जाए!

4.अंधकार की महत्ता (The Importance of Darkness):

  • अंधकार प्रकाश की उस किरण की संभावना को व्यक्त करता है जो विषमतम परिस्थितियों में भी व्यक्ति की जीवंतता को संबल प्रदान करती है और साधक को कर्मच्युत नहीं होने देती है।यदि ऐसा ना होता तो अस्त-व्यस्त एवं विसंगतियों से परिपूर्ण जीवन में मधुरिमा के दर्शन कहां रह जाते? प्रौढ़ावस्था में प्रेमीजन युवावस्था की संभावना की परिकल्पना क्योंकर करते।
    भविष्य का अंधकार हमको यह संदेश देता रहता है कि भविष्य सदैव सुरक्षित है,तुम अतीत को मिटा नहीं सकते हो,वर्तमान को बदल नहीं सकते हो,परंतु भविष्य को अपनी इच्छानुसार बना सकते हो।जीवन-संघर्ष की मुख्य प्रेरणा वास्तव में भविष्य का अंधकार ही है।मृत्यु जीवन का अटल नियम है,परंतु उसके आगमन-काल की अनिश्चितता मानव को विवश करती है कि वह जीवन को गहरी नींद देने का प्रयत्न करें।
  • अंधापन हमें भले ही मृत्यु की ओर ले जाए,परंतु अंधेरा सदैव प्रकाश की ओर ले जाता है।
    कृपण अंधा होता है,क्योंकि वह धन के अतिरिक्त ओर किसी संपत्ति को नहीं देखता है।अपव्ययी अंधा होता है,क्योंकि वह आज को ही देखता है,कल की नहीं सोचता है।मोहित करने वाली नारी अंधी होती है,क्योंकि वह अपने बुढ़ापे की झुर्रियां नहीं देखती है।विद्वान अंधा होता है,क्योंकि वह अज्ञान को नहीं देखता,परंतु अंधकार अंधा नहीं होता है।वह सदैव प्रकाश मण्डित बना रहता है।आदि प्रकाश का जन्म अंधकार से ही हुआ था।अतएव अंधकार सर्वथा वरेण्य है।
  • जो छात्र-छात्राएं असफलता रूपी अंधकार से डर जाते हैं वे आगे पढ़ाई करना छोड़ देते हैं क्योंकि वे अंधकार का केवल यही अर्थ समझते हैं कि उन्हें असफलता ही मिलनी है तो फिर पढ़ाई-लिखाई क्यों की जाए।जबकि अंधकार के गर्त में सफलता व असफलता दोनों छिपी हुई हैं।पढ़ाई-लिखाई छोड़कर यदि हम कोई जॉब करेंगे तो भी इस स्थिति का सामना करना पड़ेगा।क्योंकि जाॅब में भी यह आवश्यक नहीं है कि आपको सफलता ही मिलती रहे और असफलता मिलेगी ही नहीं।यदि सफलता व असफलता पूर्व निश्चित हो और हमें पक्का निश्चय हो तो हम प्रयास करना ही छोड़ देंगे।सारी सृष्टि में प्राणी जगत इतनी भाग-दौड़ और प्रतिस्पर्धा,प्रतियोगिता कर रहे हैं वह बिल्कुल खत्म हो जाएगी।सृष्टि की गति रुक जाएगी।कोई भी छात्र-छात्रा और प्राणी कुछ भी नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें पहले से ही पता होगा की अमुक कार्य का परिणाम क्या होगा?
  • इस चिंता में दुबले न होकर हमें यथार्थ को समझना चाहिए और कर्म (अध्ययन कार्य,जॉब करने या कौशल सीखने आदि) करने में संलग्न रहना चाहिए क्योंकि क्या पता किस क्षण विद्यार्थी का भाग्योदय हो जाए और उसे सफलता हासिल हो जाए।असफलता रूपी अंधकार से न घबराकर निरंतर पुरुषार्थ करते रहना ही चाहिए।फल में आसक्ति न रखकर निरंतर अध्ययन करते रहना चाहिए।यदि असफलताएं मिल भी जाती है तो उसे अंतिम सत्य नहीं मान लेना चाहिए।हमें पुनः अपनी कमजोरी को ढूंढकर बाहर निकालना चाहिए और सतत उद्योग करते रहना चाहिए।यही हमारे हाथ में है और जो हमारे हाथ में है उसी पर अपना ध्यान फोकस करना चाहिए।

5.अंधकार से प्रेरणा का दृष्टांत (Parable of Inspiration from Darkness):

  • ज्ञान के बिना अज्ञान दूर नहीं होता।अंधेरे को दीपक के प्रकाश से ही दूर किया जा सकता है।अंधेरे से लड़ने लगें,अज्ञान से लड़ने लगे तो अंधकार और अज्ञान दूर होने वाला नहीं है।ज्ञान प्राप्त किए बिना अज्ञान दूर नहीं हो सकता है।हिंसा,क्रोध,घृणा,भय,तृष्णा,मोह,लोभ आदि से ज्ञान के बिना मुक्त नहीं हो सकते हैं।ज्ञान का दीपक जलते ही ये सभी मनोविकार दूर हो जाते हैं।
  • एक बार एक विद्यार्थी परीक्षा में असफल हो गया।माता-पिता,अभिभावक,मित्र-संबंधी आदि उसको लानत-मनालत करने लगे।तुमने ठीक से मेहनत नहीं की वरना ओर छात्र-छात्राएं भी तो सफल हुए हैं।
  • वह छात्र निराश व उदास होकर हताश हो गया।जब उसे कोई भी सहारा नहीं मिला तो रात को उठकर उसने घर छोड़कर भागने का निश्चय किया।रात्रि के समय घर में चारों ओर अंधेरा था।अंधेरे के कारण उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।ज्योंही दरवाजे से बाहर निकलना चाह रहा था तो उसे ठीक से दिखाई नहीं दिया।दरवाजे से ठोकर खाकर नीचे गिर पड़ा।वह तत्काल खड़ा हो गया और उसे अंत:प्रेरणा हुई कि इस संसार में ज्ञानी,विद्वान का ही सम्मान होता है।उसके ज्ञान चक्षु खुल गए।
  • उसने ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रस्थान किया और प्रतिज्ञा की कि वह घर तभी लौटेगा जब उसे ज्ञान प्राप्ति हो जाएगी।उसने ज्ञान प्राप्ति के लिए कठोर परिश्रम किया,मनन-चिंतन किया।एक दिन वही छात्र विद्या और ज्ञान अर्जित करके घर वापस लौटा।घर वाले तो पहले से ही उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे क्योंकि उन्हें यह पश्चाताप हो रहा था कि बच्चे को असफलता के कारण बुरा-भला कहने से वह घर छोड़कर चला गया।पर जब उन्हें पता लगा कि वह विद्या और ज्ञान अर्जित करके लौटा है तो उन्हें अत्यंत खुशी हुई।
  • जीवन में प्रेरणा का स्रोत कोई भी व्यक्ति,घटना तथा परिस्थिति हो सकती है जिसके कारण उसके जीवन का पूरी तरह रूपांतरण हो जाता है।उक्त घटना में दरवाजे से ठोकर लगने पर उसके अंत:चक्षु खुले और उसे अनुभूति हुई की कमी क्या है,कहां चूक हुई है और उसे कैसे दूर किया जा सकता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अंधकार से प्रेरणा कैसे प्राप्त करें? (How to Draw Inspiration from Darkness?),अन्धकार से प्रेरणा प्राप्त करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Draw Inspiration from Darkness) के बारे में बताया गया है।

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6.स्कूल में बंक कब मारे? (हास्य-व्यंग्य) (When to Bunk at School?) (Humour-Satire):

  • दो मसखरे आपस में बातचीत कर रहे थे।पहला:स्कूल में बंक कब मारना चाहिए?
    दूसरा:जब गणित शिक्षक पढ़ाने आ रहे हो या गणित का टेस्ट व परीक्षा ली जानी हो तब बंक मारना चाहिए।

7.अंधकार से प्रेरणा कैसे प्राप्त करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Draw Inspiration from Darkness?),अन्धकार से प्रेरणा प्राप्त करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Draw Inspiration from Darkness) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या प्रकाश और अंधकार विपरीत हैं? (Are Darkness and Light Opposites?):

उत्तर:प्रकाश और अंधकार विपरीत नहीं है बल्कि प्रकाश का अभाव अंधकार है।

प्रश्न:2.भावात्मक तथा अभावात्मक से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Affective and Non-affective?):

उत्तर:भावात्मक को विधेयात्मक तथा अभावात्मक को निषेधात्मक भी कह सकते हैं।जब किसी बात को स्वीकार किया जाता है अथवा किसी वस्तु की उपस्थिति होती है तो भावात्मक कहते हैं।जब किसी बात को स्वीकार नहीं किया जाता है अथवा किसी वस्तु की उपस्थिति नहीं होती है तो उसे अभावात्मक कहा जाता है।

प्रश्न:3.विपरीत विरोध और व्याघाती विरोध में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Contrary Opposition and Contradictory opposition?):

उत्तर:दो पदों में विपरीत विरोध तब होता है जब एक की सत्यता निश्चित रूप से दूसरे की असत्यता को बतलाती है,परंतु एक की असत्यता निश्चित रूप से दूसरे की सत्यता नहीं बतलाती।उदाहरण के लिए लाल तथा काला पदों में विपरीत विरोध है,चूँकि यदि किसी वस्तु के संबंध में यह सत्य है कि वह लाल है,तो फिर यह निश्चित रूप से असत्य होगा कि वह काली है,परंतु यदि यह असत्य है कि वह लाल है (अर्थात लाल नहीं है),तो यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि वह काली है,वह ‘काली’ के अलावा किसी अन्य रंग की भी हो सकती है।यानी एक की सत्यता दूसरे की असत्यता बतलाती है परंतु एक की असत्यता दूसरे की सत्यता नहीं बतलाती।दोनों एक साथ सत्य तो नहीं हो सकते परंतु दोनों एक साथ असत्य हो सकते हैं।
दो पदों में व्याघाती विरोध तब होता है जब एक की सत्यता निश्चित रूप से दूसरे की असत्यता तथा एक की असत्यता निश्चित रूप से दूसरे की सत्यता बतलाती है।उदाहरण के लिए ‘लाल’ तथा ‘अलाल’ (non-red) पदों में व्याघाती विरोध है,चूँकि यदि कोई वस्तु लाल है तो फिर निश्चित रूप से अलाल नहीं है और उसी प्रकार यदि वह अलाल है तो फिर निश्चित रूप से लाल नहीं है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अंधकार से प्रेरणा कैसे प्राप्त करें? (How to Draw Inspiration from Darkness?),अन्धकार से प्रेरणा प्राप्त करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Draw Inspiration from Darkness) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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