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How Did Candidates Reach Top in Work?

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1.अभ्यर्थी अपने कार्य में टॉप पर कैसे पहुंचे?(How Did Candidates Reach Top in Work?),छात्र-छात्राएँ अपने कार्य में टाॅप पर कैसे पहुँचे? (How Did Students Reach Top of Their Work?):

  • अभ्यर्थी अपने कार्य में टॉप पर कैसे पहुंचे?(How Did Candidates Reach Top in Work?) अथवा छात्र-छात्राएं अध्ययन कार्य में शीर्ष पर कैसे पहुंचे? एक कहावत है कि शिखर पर सदैव रिक्त स्थान उपलब्ध रहता है जबकि नीचे की ओर भीड़ रहती है और वहां रिक्त स्थान नहीं रहता है।छात्र-छात्राएं अध्ययन करें,कोई परीक्षा दें,किसी प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल हों,कोई पारितोषिक परीक्षा दें अथवा जाॅब प्राप्त करें इन सभी स्थितियों में उनकी महत्त्वाकांक्षा होती है कि वे शिखर पर पहुंचे।
  • शिखर की ओर चढ़ने में वही अभ्यर्थी सक्षम हो सकता है जो अपने कार्य के लिए संकल्पशक्ति,अपने आप पर विश्वास और कठिन परिश्रम का दामन नहीं छोड़ता है।जीवन की विघ्न,बाधाएं,समस्याएं,कठिनाइयां उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती हैं।कार्यक्षेत्र कोई सा भी क्यों न हो परंतु अपने जीवट,अध्यवसाय और पूर्ण आत्म-विश्वास के बल पर वह पुराने कीर्तिमान को ध्वस्त कर नया कीर्तिमान स्थापित कर देता है।
  • अंग्रेजी में कहावत है कि Survival of the fittest अर्थात् जो सर्वाधिक चुस्त-दुरुस्त है,वही आगे बढ़ता है।अल्प सामर्थ्यवान के लिए कोई स्थान नहीं है।जीवन में कोई भी क्षेत्र चुन लें,सर्वत्र एक ही नियम लागू होता है कि सर्वश्रेष्ठ को ही चुना जाता है अथवा पसंद किया जाता है।
  • शिखर पर पहुंचने के सार्वभौमिक और सर्वकालिक गुणों को धारण करना पड़ता है हम उन्हें किस प्रकार,किस रास्ते पर चलकर खोजते हैं,इससे उनकी विद्यमानता और उनकी क्षमता पर कोई अंतर नहीं पड़ता है।
  • कोई छात्र-छात्रा उनको इंजीनियर बनने की प्रक्रिया में प्राप्त करता है,कोई जीवन और सत्यों का साक्षात्कार शिक्षक बनकर प्राप्त करता है,कोई गणितज्ञ बनकर प्राप्त करता है आदि।जीवन के सत्य सफलता के हेतु बनते हैं अथवा बनाए जाते हैं परंतु सफलता प्राप्ति के लिए प्रत्येक क्षेत्र में कुछ सूत्र समान रूप से उपयोगी होते हैं।
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2.पुस्तकों का अध्ययन करें (Study the Books):

  • शिखर पर पहुंचने के लिए जिस क्षेत्र का भी चुनाव किया जाए उसका अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।हमें उस क्षेत्र का पूर्ण ज्ञान हो और विभिन्न विषयों का थोड़ा-बहुत ज्ञान होना चाहिए।अतः यह आवश्यक है कि अभ्यर्थी को ज्ञान प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से अध्ययन करना चाहिए।वे जिस जाॅब को अपनाना चाहते हैं अथवा अपना चुके हैं,उसके विषय में यथासंभव अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न करें।उस क्षेत्र से संबंधित पुस्तक,पत्र-पत्रिका उपलब्ध हो उसको एकाग्रचित्त होकर अध्ययन करें और उसकी मुख्य-मुख्य बातों को लिखते रहें।
  • पुस्तकें पढ़ने से न केवल सामान्य ज्ञान में वृद्धि होती है बल्कि आप अपने क्षेत्र से संबंधित नई-नई बातों को जानते हैं।पुस्तकें हमारी सबसे अच्छी मित्र और मार्गदर्शक है।अपने क्षेत्र की बारीक से बारीक बातों का ज्ञान प्राप्त करना हो तो पुस्तकें सदैव उपलब्ध रहती हैं।किसी अच्छी पुस्तक को पढ़ने का लाभ यह है कि हम जितनी बार उनको पढ़ते हैं उतनी बार हमें कोई न कोई अच्छी व लाभदायक बात मिल जाती है।
  • पुस्तकें हमें नई दृष्टि देती है तथा हमारी अनेक मान्यताओं में सुधार एवं परिवर्तन करने में सक्षम हैं।जैसे आप ज्यामिति को पढ़ने से चौंकते हैं और घबराते हैं परंतु यदि यूक्लिड के जीवन चरित्र को पढ़ोगे तो आपको मालूम होगा कि उन्होंने कितना कठिन संघर्ष करके ज्यामिति को एक तार्किक स्वरूप प्रदान किया।इससे आपको ज्यामिति पढ़ने के लिए प्रेरणा मिलेगी।
  • पुस्तकों को पढ़ने से नया ज्ञान तो प्राप्त होता ही है,पुराना ज्ञान भी ताजा बना रहता है।जो छात्र-छात्राएं पढ़ते रहते हैं उनके जीवन में भटकाव की स्थितियाँ बहुत कम होती है क्योंकि अध्ययन करते रहने के फलस्वरूप उन्हें अपने कर्त्तव्याकर्त्तव्य का ज्ञान हो जाता है।हमारे क्षेत्र में अनेक विचार जो अस्पष्ट और अनिश्चित होते हैं पुस्तकों के अध्ययन से वे स्पष्ट और सुनिश्चित हो जाते हैं।पुस्तकों को पढ़ने से जो अंश प्रभावित और रुचिकर लगते हैं उनको नोटबुक में लिख लेना चाहिए और उन्हें बार-बार पढ़ना चाहिए तथा उन्हें अपने जीवन में अपनाने का प्रयत्न करना चाहिए।
  • स्वाध्याय का भी यही लक्ष्य रहता है जो छात्र-छात्राएं स्वाध्याय नहीं करते हैं वे पुस्तकों के संपर्क में नहीं रहते हैं।ऐसे लोग जो ज्ञान अर्जित करते हैं उसे भी भुला बैठते हैं तथा अपने क्षेत्र में सही दिशा में आगे बढ़ने से भटक जाते हैं।जो छात्र-छात्राएं तथा व्यक्ति स्वाध्याय नहीं करता है वह शिखर पर पहुँचना तो बहुत दूर है अपने क्षेत्र का साधारण ज्ञान भी प्राप्त नहीं कर पाता है।

3.अपने कार्य के प्रति निष्ठा रखें (Be Loyal to Your Work):

  • जो छात्र-छात्राएं अध्ययन कार्य के प्रति,अभ्यर्थी जॉब के प्रति अटूट निष्ठा रखता है वे आगे से आगे तरक्की करते जाते हैं क्योंकि उनमें शिखर पर पहुंचने की सच्ची लगन एवं दृढ़ इच्छाशक्ति है।ऐसे छात्र-छात्राओं की सोच होती है कि जो कार्य अन्य छात्र-छात्राएं कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकता हूं? जन्म के साथ बड़े या महान बहुत कम व्यक्ति होते हैं,बड़प्पन या महानता अर्जित की जाती है।उसकी प्राप्ति के लिए व्यक्ति को दृढ़-निश्चय एवं लगन के साथ कठिन परिश्रम करना पड़ता है।
  • तात्पर्य यह है कि किसी भी छात्र-छात्रा की उन्नति,प्रगति अथवा विकास उसकी अंतर्निहित क्षमताओं की बाह्य अभिव्यक्ति है।उसे जो भी उपलब्धि होती है वह उसके द्वारा किए गए संघर्ष का परिणाम है।शिखर पर पहुंचे हुए छात्र-छात्राओं से ईर्ष्या न करते हुए स्वस्थ प्रतियोगिता करते हैं वे ही आगे बढ़ते हैं।
  • जब पांचो पाण्डव हिमालय पर्वत की ओर जाने लगे,जीता हुआ राज्य छोड़कर जाने लगे तो अर्जुन के मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न हुई।उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा कुटिल,अहंकारी दुर्योधन अपने पापों और अत्याचारों के बावजूद आजीवन अपने राज्य का भोग करता रहा और अपने प्राण भी राजा की स्थिति में ही छोड़े।जबकि हमने राज्य प्राप्ति के लिए अनेकानेक कष्ट सहे,इतना युद्ध लड़ा,अनेक बलिदान देकर बड़ी कठिनाई से राज्य प्राप्त किया।
  • अब राज भोगने का समय आया तो पुनः जंगल और पर्वतों की ओर संन्यासी बनकर जा रहे हैं।यह बात मेरी समझ में नहीं आई।दुर्योधन क्यों आमरण राजा रहा और हमारे भाग्य में राज्य क्यों नहीं?
  • कृष्ण बोले यह एकमात्र निष्ठा का प्रश्न है।दुर्योधन में राजा बने रहने की अपूर्व निष्ठा थी।उसी निष्ठा पर उसने राजा बने रहने के लिए अपनी नीतियों का जाल फैलाया।उसे पाप-पुण्य का ध्यान नहीं था,केवल राज्य का ध्यान था इसलिए उसे राज्य प्राप्त हुआ।आप पाण्डव लोग राज्य के प्रति इतने निष्ठावान नहीं थे।आप पाप-पुण्य तथा मानवीय मूल्यों के अनेक प्रश्नों में उलझे हुए थे।आप लोगों की निष्ठा तप में थी।इसलिए आपको तप प्राप्त हुआ और तपी बनकर ही आप लोग अपना शरीर त्याग करेंगे।हर व्यक्ति अपनी निष्ठा के अनुसार भोग पाता है।
  • ऐसे छात्र-छात्राएं बहुत कम होते हैं जिन्हें इच्छित कार्य या जॉब मिल जाता है।अधिकांश छात्र-छात्रा को जो भी जाॅब प्राप्त होता है वह प्रायः संयोगस्वरूप प्राप्त होता है और उसके ऊपर उनका कोई वश नहीं होता है परंतु अपनी स्थिति को स्वीकार करके वे पूरी निष्ठा के साथ अपने जाॅब को प्राप्त करते हैं तो वे उसी जॉब में प्रगति,उन्नति और विकास करते जाते हैं।

4.शिखर पर चढ़ने के लिए महत्वपूर्ण बातें (Important Things to Climb the Summit):

  • (1.)किसी भी कार्य को छोटा न समझे क्योंकि मशीन के छोटे से छोटे पुर्जे का भी मशीन चलाने में सहयोग होता है।
  • (2.)अपने अंदर हीनता की भावना न पनपने दें।क्योंकि हीनता का भाव जीवन का बहुत बड़ा अभिशाप है।यह भाव हमारी योग्यताओं और क्षमताओं को निष्क्रिय कर देता है।जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए हीनत्व को अपने पास फटकने नहीं देना चाहिए।हम जो कुछ है,जहां भी हैं,उसी स्थिति में रहते हुए विकास करने का भरपूर प्रयत्न करते रहना चाहिए।
  • (3.)जीवन में सफलता की ऊँचाईयों की ओर निरन्तर अग्रसर होने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी उपलब्धियों पर कभी घमंड न करें और न कभी उससे संतुष्ट हो।उसको सदैव यह याद रखना चाहिए कि मैं अपने निर्धारित लक्ष्य से अभी बहुत पीछे हूं।
  • (4.)अपने भीतर की योग्यताओं व क्षमताओं को प्रकट करने के लिए संघर्ष करते रहना चाहिए।क्योंकि व्यक्ति की सफलताओं का आदर्श रूप उस क्षितिज के समान होता है जिसकी प्राप्ति संभव नहीं होती है,हम ज्यों-ज्यों उसकी ओर बढ़ते जाते हैं,त्यों-त्यों वह हमसे दूर हटता जाता है।
  • (5.)प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि हम प्रारंभ कहां से करते हैं बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि हम अंत कहां करते हैं? प्रारंभ और अंत के मध्य बाधाओं और कठिनाइयों का आना सर्वथा स्वाभाविक है क्योंकि प्रकृति के कार्य किसी व्यक्ति विशेष की इच्छानुसार नहीं होते हैं।
  • (6.)हमको जिस काम को करने के लिए वेतन या पारिश्रमिक मिलता है,हम उस कार्य को पूरी लगन के साथ करें और उसे अच्छे से अच्छे रूप में करने का प्रयास करें,उसके सर्वोत्तम परिणाम प्रस्तुत करने का प्रयत्न करें।
  • (7.)अपने अध्ययन,जाॅब अथवा जिस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं उसे कठिन परिश्रम,लगन,ईमानदारी एवं पूर्ण निष्ठा के साथ करें।आशातीत उन्नति करने वाले लोग अपने कार्य को पूर्ण निष्ठा एवं कठिन परिश्रम के साथ अपने उत्तरदायित्व का पालन करने के पश्चात ही उन्नत एवं श्रेष्ठ स्थिति को प्राप्त कर पाते हैं।
  • (8.)अपने जॉब को कर्त्तव्य पालन के फलस्वरूप धन की प्राप्ति होनी चाहिए न कि जाॅब को किसी प्रकार का नुकसान करके।जब धन लक्ष्य हो जाता है और कर्त्तव्य पालन बहाना तब व्यक्ति का पतन हो जाता है और जीवन में पतन का रास्ता खुल जाता है।अनैतिक आचरण द्वारा प्राप्त धन न तो व्यक्ति को संतोष प्रदान करता है और न ही उसको गर्व करने योग्य ही रहने देता है।
  • जब कर्त्तव्य पालन लक्ष्य होता है और धन उसके अनुसार पुरस्कार स्वरूप प्राप्त होता है,तब ही हम उसको वास्तविक आय अथवा सच्ची कमाई कह सकते हैं।जब आपको उचित अंश के रूप में धन प्राप्त होता है तब आपको एक ऐसे व्यक्ति का सगर्व संतोष प्राप्त होता है जिसने जीवन के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन किया है और अपने अधिकारपूर्ण आय की प्राप्ति की है।
  • (9.)अपने कार्य के प्रति पूर्णतः समर्पित व्यक्ति सोते-जागते,उठते-बैठते,खेलते-खाते,हर जगह,हर पल अपने अध्ययन अथवा जॉब के बारे में सामग्री एकत्र करता रहता है।
  • (10.)अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित छात्र-छात्रा को कोई बाधा नहीं सताती,उसका चिंतन,उसका अध्ययन,उसके समस्त कार्यकलाप मात्र अपने द्वारा चयनित कार्य पर केंद्रित रहते हैं।

5.अपने कार्य के टॉप पर पहुंचने का दृष्टांत (An Illustration of Getting to the Top of Your Work):

  • एक छात्र ने एक आईआईटी के छात्र को देखकर इंजीनियर बनने का निश्चय किया।उसने आईआईटी भी कर ली और एक कंपनी में इंजीनियर बन गया।बहुत समय तक कार्य करने के बाद उसने कुछ धन कमा लिया।इसी दौरान उसकी भेंट एक व्यवसायी से हुई।उसके ठाठ-बाट देखकर उसने व्यापार करने का निश्चय किया और कुछ दिन बाद उसने इंजीनियर का पद छोड़कर व्यवसाय करने लगा।अभी उसने व्यवसाय करना चालू किया ही था कि उसके सामने बहुत सी बाधाएं खड़ी हो गई।उन बाधाओं को देखकर उसे व्यवसाय के प्रति आकर्षण खत्म हो गया।
  • तभी उसकी भेंट एक गणितज्ञ से हुई और उसे गणित में खोज कार्य करके गणितज्ञ बनने की धुन सवार हो गई परंतु गणित में खोज कार्य करने के लिए चिन्तन-मनन और कठिन परिश्रम करने की आवश्यकता होती है,ऐसा करना उससे नहीं बन पड़ा।
    तब उसकी भेंट एक कोचिंग सेंटर के निदेशक से हुई तो उसने कोचिंग सेंटर खोल लिया।काफी उम्र इसी तरह व्यतीत कर दी।न वह व्यापारी बन सका,न इंजीनियर,न गणितज्ञ और न वह कोचिंग सेन्टर चला सका।उसे बड़ा दुख हुआ।
How Did Candidates Reach Top in Work?

How Did Candidates Reach Top in Work?

  • एक दिन उसकी भेंट एक सन्त से हुई और उसे अपनी व्यथा बताई।सन्त ने कहा कि दुनिया में हर जाॅब,हर कार्य में आकर्षण है।कोई भी एक लक्ष्य निश्चित कर लो और उसमें कठिन परिश्रम व एकाग्रता रखो तब तुम अवश्य सफल हो सकते हो।बार-बार रुचि बदलने से तरक्की और विकास नहीं कर सकते हो।छात्र समझ गया और पुनः एक कंपनी में इंजीनियर का पद प्राप्त करके,पूर्ण एकाग्रता और समर्पण के साथ उसको करने लगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अभ्यर्थी अपने कार्य में टॉप पर कैसे पहुंचे?(How Did Candidates Reach Top in Work?),छात्र-छात्राएँ अपने कार्य में टाॅप पर कैसे पहुँचे? (How Did Students Reach Top of Their Work?) के बारे में बताया गया है।

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6.गुरु अध्ययन कक्ष में है (हास्य-व्यंग्य) (Guru is in Study Room) (Humour-Satire):

  • नर्सरी क्लास में बच्चों से पूछा गया कि गुरु कहां है?
  • एक बच्चा:हमारे अध्ययन कक्ष में।
  • टीचरःतुम्हें कैसे पता है?
  • बच्चा:मेरे पिताजी रोज सुबह अध्ययन कक्ष का दरवाजा पीटते हुए कहते हैं कि गुरु अभी सोए हुए ही हो क्या?

7.अभ्यर्थी अपने कार्य में टॉप पर कैसे पहुंचे?(Frequently Asked Questions Related to How Did Candidates Reach Top in Work?),छात्र-छात्राएँ अपने कार्य में टाॅप पर कैसे पहुँचे? (How Did Students Reach Top of Their Work?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या दूसरों को देखकर कार्य करना सही है? (Is It Right to Act by Looking at Others?):

उत्तर:प्रत्येक छात्र-छात्रा को अपनी आवश्यकतानुसार सफलता के लिए कार्य करना पड़ता है।दूसरों के द्वारा तय किए गए मार्ग पर चलना लकीर पीटना है।स्वयं के कार्य के लिए खुद का अपना पुरुषार्थ करना पड़ता है और रास्ता बनाना पड़ता है।जो छात्र-छात्राएं ऐसा करते हैं वे अपने कार्य में आगे से आगे बढ़ते जाते हैं।स्वयं के कार्य में कौन-सी अड़चनें हैं,कौन-सी बाधाएं हैं और उनको कैसे दूर किया जा सकता है,यह स्वयं को सोचना और करना पड़ता है।

प्रश्न:2.निष्ठापूर्वक कार्य करने में कौन सी बाधा है? (What is the Obstacle in Acting Faithfully?):

उत्तर:निष्ठापूर्वक कार्य करने में सबसे बड़ी बाधा हमारा चंचल मन है।चंचल मन किसी एक काम पर स्थिर रहने नहीं देता है।इधर-उधर ताक-झाँक करता रहता है और हमारी निष्ठा को डिगाने का प्रयास करता है।लक्ष्य को ही अपना जीवन कार्य समझो,उसी पर चिंतन-मनन करो,उसी का स्वप्न देखो और उसी के सहारे जीवित रहो।इस प्रकार चंचल मन को एकाग्र और स्थिर किया जा सकता है।प्रत्येक छात्र-छात्रा को अपने गुण,कर्म और स्वभाव के अनुसार कार्य का चयन करना चाहिए।

प्रश्न:3.अभ्यर्थी को अध्ययन के लिए क्या ध्यान रखना चाहिए? (What Should the Candidate Take Care of for the Study?):

उत्तर:अभ्यर्थी को अपना ध्यान अध्ययन पर केन्द्रित रखना चाहिए।फालतू के कार्यों,मटरगश्ती करने,खेल-तमाशे देखने,मौज मस्ती करने,शादी,पार्टियों को अटेंड करने के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है।अतः अध्ययन कार्य का नियोजन करके और उस योजना पर दत्तचित्त होकर अमल करना चाहिए।विद्यार्थी काल पूरे जीवन की नींव है अतः विद्यार्थी काल में अध्ययन कार्य को पूर्ण समर्पण और निष्ठा के साथ करना चाहिए।मन को एकाग्र रखना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अभ्यर्थी अपने कार्य में टॉप पर कैसे पहुंचे?(How Did Candidates Reach Top in Work?),छात्र-छात्राएँ अपने कार्य में टाॅप पर कैसे पहुँचे? (How Did Students Reach Top of Their Work?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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