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Fake Degree Business by Universities

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1.विश्वविद्यालयों द्वारा फर्जी डिग्री का धंधा (Fake Degree Business by Universities),फर्जी डिग्री का गोरखधंधा जारी (Fake Degree Racket Continue):

  • विश्वविद्यालयों द्वारा फर्जी डिग्री का धंधा (Fake Degree Business by Universities) बदस्तूर जारी है।यह फर्जीवाड़ा कई स्तर का होता है परंतु आधुनिक तकनीकी और विज्ञान के बावजूद रोक नहीं लगी है।दरअसल,इस फर्जीवाड़ी में प्रभावशाली,राजनीतिज्ञ तथा ऊंची पहुंच वाले लोग हैं जो किसी न किसी प्रकार बच निकलते हैं।
  • कानून के रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो फिर उन्हें रोकने वाला कौन है।बहुत से विश्वविद्यालय तो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से स्वीकृत है लेकिन फर्जीवाड़े की तकनीक इस प्रकार से जारी है की पकड़ में नहीं आते हैं।
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2.फर्जीवाड़े के गोरखधंधे के उदाहरण (Examples of fraudulent rackets):

  • यह कहानी लगभग 52 साल पुरानी है।17 दिसंबर 1971 को खुफिया अधिकारियों की मदद से पुलिस ने धनबाद स्थित ‘पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज’ से संबंधित एक भारी घपले के मामले में दो व्यक्तियों की गिरफ्तारी की थी।इन दो व्यक्तियों में एक सतीशप्रसाद सिंह थे,जो 28 जनवरी 1968 से पहली फरवरी 1968 तक अत्यल्प अवधि के लिए बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके थे।पटना सदर की तत्कालीन एसडीओ राधासिंह ने 22 दिसंबर 1971 को सतीशप्रसाद सिंह की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी।बिहार की यह पहली घटना थी,जब किसी घपले के सिलसिले में एक पूर्व मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी हुई थी।इस घटना के एक अरसे बाद लालू यादव और डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र ही ऐसे पूर्व मुख्यमंत्री हुए,जिन्हें पशुपालन महाघोटाले में जेल यात्रा करनी पड़ी।
  • दरअसल,सातवें दशक में डोनेशन पर चलने वाले मेडिकल कॉलेजों के खुलने की होड़ मची हुई थी।यह कमाई का एक जबरदस्त जरिया बना हुआ था।सतीशप्रसाद सिंह भी धनबाद स्थित ‘पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज’ में डोनेशन के गौरखधंधे में जुटे थे।आखिरकार उन्हें अपनी गिरफ्तारी देनी पड़ी।कहना ना होगा की तालीम की तिजारत (व्यवसाय) का चस्का राजनीतिज्ञों को बहुत पहले से लग चुका था।
  • बहरहाल,राजनीतिक व्यक्ति भले ही शैक्षणिक गोरखधंधे को लेकर गाहे-ब-गाहे विवाद में उलझते रहे,लेकिन कभी किसी कुलपति को इस गोरखधंधे के आरोप में गिरफ्तार किए जाने की नौबत बेशक नहीं आयी थी।पर 13 मई 1999 को यह बांध भी आखिरकार टूट ही गया,जब दरभंगा स्थित ‘ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय’ के कुलपति डॉक्टर एएमएस अब्दुल मोगनी को बीएड की फर्जी डिग्री के प्रकरण में करोड़ों (रुपयों) के वारे-न्यारे करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।बिहार के इतिहास में यह पहली घटना थी,जब किसी कुलपति को जेल यात्रा करनी पड़ी।ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति का पद विसंगतियों और विवादों से जुड़ा हुआ रहा है।
  • 1988 के दिनों में इस विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर शकीलुर्रहमान नामक एक सज्जन आसीन थे।उस समय की तत्कालीन कांग्रेस की बिहार सरकार में शिक्षा मंत्री के पद पर मिथिला के कांग्रेसी दिग्गज नागेंद्र झा काबिज थे।कुलपति रहमान की शिक्षा मंत्री झा से ऐसी ठनी कि उस समय चारों तरफ संदेश यही फैला कि कुलपति ने शिक्षा मंत्री के गलत आदेशों को मानने से चूँकि साफ इनकार कर दिया,इसलिए शिक्षा मंत्री उनके पीछे हाथ धोकर पड़े हैं।इसका अंतिम और निर्णायक परिणाम यह हुआ की 1989 के लोकसभा चुनाव में कुलपति शकीलुर्रहमान दरभंगा से जनता दल टिकट पर उम्मीदवार हो गए और कांग्रेस टिकट पर खड़े तत्कालीन शिक्षा मंत्री नागेंद्र झा को लोकसभा चुनाव में परास्त कर दिया।
  • कालांतर में शकीलुर्रहमान फिर चंद्रशेखर की अल्पकालिक सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री भी हुए।पर राजनीति में कुलपति पद का करिश्माई उपयोग कर जिस झोंके से वे आए थे,उसी झोंके से वे राजनीति की दुनिया से रुखसत भी हो गए।बहरहाल,जो भी हो जिस मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति ने एक तरफ लोकप्रियता व ईमानदारी को लेकर कभी ऐसा जलवा दिखाया था,अर्से बाद जब इस विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर एएमएस अब्दुल मोगनी की गिरफ्तारी शैक्षणिक घोटाले के आरोप में की गई तो जाहिर है,इतिहास भी सिहर कर रह गया।

3.घोटालों का सिलसिला (Chain of scams):

  • ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से संबंध 7 शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय में B.Ed की फर्जी डिग्री का कारोबार होता है,इसे लेकर विगत कुछ वर्षों से भीतरी-ही भीतर तरह-तरह की कुचर्चाएं भी थीं।यहीं नहीं,इसी विश्वविद्यालय से संबंध तीन डेंटल कॉलेजों की कुछ ऐसी ही चर्चा थी।देश के विभिन्न हिस्सों के छात्रों से मोटी-मोटी राशि की वसूली कर हाथों-हाथ डिग्री देने का कारोबार ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में चलता था।यहीं नहीं कई सरकारी मुलाजिमों व शिक्षकों ने वेतन वृद्धि का लाभ उठाने के लिए मिथिला विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में नाम लिखाया और बीए,एमए,बीएससी,एमएससी की डिग्रियां खरीदी।
  • उपर्युक्त उदाहरण तो एक बानगी है,यह धंधा सिर्फ बिहार में ही नहीं पनपा है बल्कि पश्चिम बंगाल,राजस्थान,पंजाब,हिमाचल प्रदेश,उत्तर प्रदेश और दिल्ली आदि विभिन्न प्रांतो में पनपा हुआ है।
  • विभिन्न प्रांतो के छात्र व प्रोन्नति के लिए लालायित शिक्षक व अन्य सरकारी कर्मचारियों ने भारी संख्या में डिग्री खरीदी।धीरे-धीरे यह धंधा जोर पकड़ता गया तो धंधे की तकनीक परिवर्तित कर दी गई।इस तकनीक का खुलासा आगे किया जाएगा।
  • वर्षों से जारी यह शैक्षणिक व्यापार तब सहम कर रह गया,जब बिहार सरकार के निगरानी अन्वेषण ब्यूरो को बिहार के कार्यकारी राज्यपाल बीएम लाल के नए निर्देश दिया कि त्वरित गति से उस घपले की छानबीन कर वह कार्यवाही करे।राज्य निगरानी अन्वेषण ब्यूरो के चर्चित अपर महानिदेशक डीपी ओझा ने भी पूरी तत्परता दिखाई और मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर मोगनी,तत्कालीन राजद विधायक व तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री जीतन राम मांझी,मानव संसाधन विभाग के तत्कालीन सचिव एस के नेगी समेत 28 संबंधित अधिकारियों पर 11 मई 1999 को निगरानी अन्वेषण ब्यूरो की तरफ से निगरानी थाने में भारतीय दंड विधान की धारा 420,465,468,471,477-ए,201,901,120 बी तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत धारा 13(1) डी तथा 13(2) को प्रभावी करते मामला दायर किया।लगभग 75-80 करोड़ के इस शैक्षणिक घोटाले में दिग्गजों पर दायर मुकदमे ने पूरे राज्य में सनसनी पैदा कर दी।
  • कहना ना होगा कि कार्यकारी राज्यपाल बीएम लाल की चौकसी के तहत अगर कार्यवाही का यह कड़ा अभियान शुरू न हुआ होता,तो राबड़ी सरकार इसे आराम से पचा जाती।
  • भाजपा नेताओं ने राबड़ी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि बीएड की फर्जी डिग्री के गोरखधंधे के असली सूत्रधार शिक्षा मंत्री जयप्रकाश यादव को बचाने के लिए राबड़ी सरकार हर संभव कोशिश कर रही है।यही वजह है कि तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री जीतनराम मांझी तो जांच के दायरे में आ गए पर जयप्रकाश यादव पर कोई आंच नहीं आयी।उन्हें सिर्फ इस मामले में मुख्य गवाह बनाया गया।बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता सुशील मोदी ने इस मामले में उलझे तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री के एक वक्तव्य का हवाला देते हुए कहा कि मांझी ने साफ कहा है कि ‘नेशनल शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय,अरेर (मधुबनी)’ की संबंद्ध संबंधी संचिका उन्होंने सिर्फ काबीना मंत्री जयप्रकाश यादव के पास अग्रसारित की थी।इसलिए इसकी अंतिम और पूरी जिम्मेदारी काबीना मंत्री की है।
  • अभी हाल ही में 10 अप्रैल 2024 में राजस्थान में स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने विभिन्न यूनिवर्सिटी की कूटरचित डिग्री सहित अन्य प्रमाण पत्र व दस्तावेज देने वाले गिरोह का पर्दाफाश कर एक सरकारी स्कूल के पीटीआई को उसके पिता व दलाल सहित गिरफ्तार किया है।आरोपी ₹50000 में फर्जी डिग्री बनाकर बेच रहे थे।चूरू निवासी सुभाष पूनिया,उसके बेटे परमजीत और सरदारशहर निवासी दलाल प्रदीप कुमार को गिरफ्तार किया गया है।आरोपी परमजीत धौलपुर पंचायत समिति बसेड़ी स्थित राउमा विद्यालय गुर्जा में पीटीआई है।आरोपी सुभाष अपने साथियों के साथ मिलकर यूनिवर्सिटी की फर्जी डिग्री,फर्जी खेल प्रमाण पत्र,फर्जी मेडल और फर्जीवाड़ा कर बैकडेट में एडमिशन करवाने का भी काम करता है।
  • आरोपी सुभाष अपने बेटे के जरिए फर्जी डिग्री व प्रमाण पत्र का सत्यापन शिक्षा विभाग में कार्यरत कुछ स्टाफ व यूनिवर्सिटी प्रबंधन से करके करवा लेता है।उसके बाद अलग-अलग यूनिवर्सिटी डिग्रियां छपवाते और फर्जी हस्ताक्षर एवं मोहर लगाकर लेने वाले को बेच देते थे।

4.फर्जी डिग्रियों के स्तर (Levels of fake degrees):

  • फर्जी डिग्रियों का यह फर्जीवाड़ा कई स्तर का होता है।पहला स्तर निजी तथा सरकारी विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय करते हैं।इसमें बाकायदा विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्वीकृति मिली हुई है।इसमें छात्र-छात्राओं की विधिवत प्रवेश प्रक्रिया का पालन किया जाता है तथा परीक्षा भी विधिवत होती है।परंतु छात्र-छात्राएं विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय में भौतिक रूप से उपस्थित नहीं होते हैं कभी-कभार शौकिया तौर पर विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय का चक्कर काट कर आ जाते हैं।अंतिम परीक्षा देने जाते हैं और उत्तीर्ण होने पर डिग्री मिल जाती है।
  • दूसरे स्तर पर ऐसे बहुत से विश्वविद्यालय हैं,जिनको बाकायदा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से स्वीकृति मिली हुई है।विश्वविद्यालय व महाविद्यालय का भौतिक वजूद भी है।परंतु इसमें वे छात्र-छात्राओं के प्रवेश व उपस्थिति की सारी खानापूर्ति करते हैं और रुपए लेकर डिग्री जारी कर देते हैं।यदि आप निर्धारित फीस देते हैं तब तो आपको निर्धारित समय पर डिग्री देंगे तथा यदि उन्हें मुंह मांगी मोटी रकम दे देते हैं तो तत्काल फर्जी डिग्री जारी कर देते हैं (बैकडेट)।सारी खानापूर्ति नियमित छात्र की तरह की जाती है जिससे तकनीकी रूप से उनका यह फर्जीवाड़ा पकड़ में नहीं आता है।
  • तीसरे स्तर पर ऐसा फर्जीवाड़ा है जिसमें फर्जी डिग्री देने वाले गिरोह शामिल हैं जो फर्जी दस्तावेज व अंकतालिका तैयार करके फर्जी हस्ताक्षर करते हैं और लाखों-करोड़ों रुपए के वारे-न्यारे करते हैं।

5.फर्जी डिग्रियों का गोरखधंधे के सिलसिले का कारण (Fake degrees due to racket):

  • कुछ विश्वविद्यालय राजनीतिक नेताओं द्वारा अथवा उनके परिवार के सदस्यों के नाम पर संचालित की जाती हैं।वे फर्जी डिग्रियां इसलिए बेचते हैं क्योंकि चुनावों के प्रचार-प्रसार के लिए तथा अपने पारिवारिक दायित्वों को निभाने के लिए मोटी रकम की आवश्यकता होती है।यह मोटी रकम साफ-सुथरे और नैतिक तरीके से हासिल नहीं की जा सकती है।राजनीतिक पहुंच तथा प्रभावशाली नेता होने के कारण इनका धंधा बराबर चलता रहता है।तकनीकी रूप से यह अपने धंधे को जारी रखने के लिए कोई खामी नहीं छोड़ते हैं।
  • दूसरा कारण यह है कि इस धंधे में कमाई का कोई ओर-छोर नहीं है।अतः प्रभावशाली व्यक्ति राजनीतिक पार्टियों को बड़ी रकम चंदा देकर फर्जी डिग्री जारी करने के धंधे के लिए संरक्षण प्राप्त कर लेते हैं।जिन राजनीतिक पार्टियों को ये चंदा देते हैं उन पार्टियों की सरकार होने के कारण उनमें इतना नैतिक साहस नहीं होता है कि वे कार्यवाही कर सकें।
  • तीसरा कारण यह है कि सरकार को इन निजी विश्वविद्यालयों को स्वीकृति देने के एवज में निर्धारित राशि वसूल करनी होती है।सरकार की आय का यह जरिया है।सरकार अपनी आमदनी के इस बड़े जरिए को खोना नहीं चाहती है अतः इन विश्वविद्यालयों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती है।
  • चौथा कारण कि समाज में कुछ युवा अनुशासनहीन,अकर्मण्य,आलसी हैं वे इसी तरह ले-देकर फर्जी डिग्री प्राप्त करना चाहते हैं।उनकी कर्मठता को लकवा मार गया है।अतः ऐसे छात्र-छात्राओं में फर्जी डिग्री का धंधा लोकप्रिय होने के कारण सरकारें विश्वविद्यालयों के खिलाफ कार्यवाही करने से हिचकिचाती है।
  • उदाहरणार्थ निवर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह कार्यकाल भले ही लुंचपुंज,रेवड़ियाँ बांटने,पेपर लीक माफिया तथा भ्रष्टाचार से युक्त रहा हो परंतु एक समय था जब उन्होंने जनहित के कार्य किए थे।उदाहरणार्थ राज्य में मुख्यतः व्यापारी वर्ग से बरामदों को खाली करवाने,बिजली विभाग का निजीकरण करने,राज्य कर्मचारियों पर नकेल कसने का कार्य किया था।इस कारण उस समय के कार्यकाल में ईमानदारी,चुस्त-दुरुस्त करने के कारण उनको मिस्टर क्लीन की उपाधि दी गई थी।परंतु उसके तत्काल बाद में इतने लोकप्रिय काम करने के बावजूद जनता ने उन्हें सत्ता से च्युत कर दिया।इसका अर्थ यह नहीं है कि सत्ता च्युत होने के डर से अच्छे,लोकप्रिय,जनहित के कार्य नहीं करने चाहिए।वस्तुतः एक सरकारी ईमानदार,भ्रष्टाचार से मुक्त,विकास करने में संलग्न होने पर दूसरी सरकार रेवड़ियां बांटने लगती है तो उसके नेक और अच्छे कार्य धरे के धरे रह जाते हैं।
  • लब्बोलुआब यह है कि भारतीय जनमानस की मानसिकता,चाल-चरित्र सुधारना है तो शिक्षा ही पहले पायदान का काम करती हैं।अतः शिक्षा तंत्र को,शिक्षा के ढांचे को चुस्त-दुरुस्त करना आवश्यक ही नहीं परमावश्यक है।यह अवश्य है कि कि शिक्षा में बदलाव के परिणाम लंबे समय बाद जाकर मालूम पड़ते हैं।सरकारों को शिक्षा को व्यवसाय मानने अथवा उससे आमदनी होने के मोह को छोड़ना पड़ेगा।अन्यथा शिक्षा में लगा यह घुन शिक्षा के क्षेत्र को ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज को रुग्ण,भ्रष्ट,अनुशासनहीन और अनुत्तरदायी बनाकर छोड़ देगा।इसके लिए भारतीय समाज सरकारों,नेताओं को कभी माफ नहीं करेगा।इसका खामियाजा हम सभी को भुगतना पड़ेगा।खामियाजे का नाम सुनकर ही हमारी रूह काँप उठेगी।आज भले ही यह छोटी सी बात लगती होगी परंतु यही बढ़चढ़कर विषवृक्ष तैयार हो जाएगा जो पूरे समाज,शासन और हम सबको लील जाएगा।
  • अतः समय से पहले सचेत होकर,इतिहास से सबक लेकर हमें शिक्षा के क्षेत्र को चुस्त-दुरुस्त कर देना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी हमें हमारे दुष्कर्मों,कुकर्मों के कारण नहीं बल्कि नेक,अच्छे व श्रेष्ठ कार्यों के कारण याद रख पाए।फैसला हमें करना है कि कौन सा रास्ता चुनना है।जो भी रास्ता चुनेंगे उसके परिणाम भी हमें ही भुगतने पड़ेंगे कोई और इसके परिणाम भुगतने नहीं आएगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विश्वविद्यालयों द्वारा फर्जी डिग्री का धंधा (Fake Degree Business by Universities),फर्जी डिग्री का गोरखधंधा जारी (Fake Degree Racket Continue) के बारे में बताया गया है।

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6.छात्र शोर क्यों कर रहे हैं?(हास्य-व्यंग्य) (Why Are Students Making Noise?) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक:बच्चों इतना शोर क्यों मचा रहे हो?
  • मॉनिटर:सर,ये शोर नहीं कर रहे हैं बल्कि गणित विषय को हल करने के फायदे के बारे में आपस में विचार विमर्श कर रहे हैं।

7.विश्वविद्यालयों द्वारा फर्जी डिग्री का धंधा (Frequently Asked Questions Related to Fake Degree Business by Universities),फर्जी डिग्री का गोरखधंधा जारी (Fake Degree Racket Continue) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.प्राचीन काल में भारत की प्रसिद्ध किस रूप में थी? (In what form was the fame of India in ancient times?):

उत्तर:प्राचीन काल में तक्षशिला,नालंदा जैसे उत्कृष्ट विश्वविद्यालयों में श्रेष्ठ शिक्षा,संस्कृति,सदाचरण,चारित्रिक शिक्षा के रूप में थी।जहां देश के ही नहीं विदेश के भी छात्र-छात्राएं आकर्षित होकर शिक्षा अर्जित करने आते थे।

प्रश्न:2.मिथिला की प्रसिद्ध कभी किस रूप में थी? (In what form did Mithila’s fame ever exist?):

उत्तर:किसी जमाने में मिथिला की प्रसिद्ध विद्यापति और मंडन मिश्र जैसी विद्वानों को तैयार करने के लिए चर्चा हुआ करती थी परंतु वर्तमान समय में अब फर्जी डिग्री के गोरखधंधे और गिरफ्तार कुलपति अब्दुल मोगनी को लेकर होती है।

प्रश्न:3.शिक्षा क्षेत्र का कायाकल्प कैसे संभव है? (How is it possible to transform the education sector?):

उत्तर:मजबूत इच्छाशक्ति हो तो शिक्षा ही क्या किसी भी क्षेत्र का कायाकल्प किया जा सकता है।इस देश में एक तरफ सरदार पटेल (गृहमंत्री),लाल बहादुर शास्त्री,गुलजारीलाल नंदा,मोरारजी देसाई,अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सशक्त,निर्भीक,राष्ट्रभक्त प्रधानमंत्री भी हुए हैं तो दूसरी तरफ पीवी नरसिंहाराव,एचडी देवगौड़ा,इंद्रकुमार गुजराल,मनमोहन सिंह जैसे लुंजपुंज प्रधानमंत्री भी हुए हैं।सशक्त,निर्भीक,राष्ट्रभक्त नेताओं के कारण जहाँ राष्ट्र का विकास होता है,राष्ट्र आगे बढ़ता है वहीं कमजोर,शक्तिहीन,दुर्बल,लुंज-पुंज नेताओं के कारण राष्ट्र का पतन होता है,राष्ट्र की अवनति होती है,राष्ट्र निर्बल व कमजोर साबित होता है।यह तय हमें करना है कि राष्ट्र का नेतृत्व किसके हाथों में सौंपना हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विश्वविद्यालयों द्वारा फर्जी डिग्री का धंधा (Fake Degree Business by Universities),फर्जी डिग्री का गोरखधंधा जारी (Fake Degree Racket Continue) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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