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Indian Education Should be Progressive

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1.भारतीय शिक्षा प्रगतिशील हो (Indian Education Should be Progressive),भारतीय शिक्षा अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप हो (Indian Education Suit its Needs):

  • भारतीय शिक्षा प्रगतिशील हो (Indian Education Should be Progressive) अर्थात् वर्तमान शिक्षा पद्धति में धीरे-धीरे परिवर्तन किया जाए ताकि आधुनिक युग तथा भारतीय परिवेश के अनुसार शिक्षा को ढाला जा सके।भारतीय शिक्षा का कितना बड़ा विरोधाभास है कि अनपढ़ व्यक्ति मेहनत,मजदूरी करके अपना गुजारा कर लें और पढ़े-लिखे युवक-युवतियों को नौकरी व रोजगार के लिए भटकना पड़ता है।कृषक,बढ़ई,लोहार,नाई,धोबी,व्यापारी यहां तक कि ठेला लगानेवाला भी बिना शिक्षा के अपना पैतृक व्यवसाय अपनाकर अपना परिवार का भरण-पोषण कर लेता है।जबकि एमएससी,पीएचडी इत्यादि ऊँची डिग्री हासिल करने वाले नवयुवक-नवयुवतियाँ नौकरी न मिलने के कारण दर-दर भटकना पड़ता है।ऐसे छात्र-छात्राएं अपने जीवन का अधिकांश समय माता-पिता व अभिभावकों पर आश्रित रहकर अर्थात् पराश्रित रहकर जीवन व्यतीत करते हैं।
  • ऐसे छात्र-छात्राएं धनार्जन के लिए अनैतिक तरीके जैसे चोरी,बैंक डकैती,अपहरण जैसे संगीन अपराधों में लिप्त पाए जाते हैं।यदि ऐसे नवयुवक-नवयुवतियों को नौकरी मिल भी जाती है तो वहाँ भी रिश्वतखोरी करते हैं अथवा ऑफिसों में बिना कार्य किए वेतन प्राप्त करते रहते हैं तथा आलसी जीवन व्यतीत करते हैं।
  • साइबर क्राइम में पढ़े-लिखे बुद्धिमान युवक ही तकनीक को समझ सकते हैं तथा अपनी बुद्धि तथा साक्षरता का प्रयोग साइबर क्राइम करने में करते हैं।कानून की पकड़ से बचने के लिए गंभीर अपराधों में जिस बुद्धिमत्ता पूर्ण तकनीक की आवश्यकता होती है वह अधिकतर पढ़े-लिखे बुद्धिमान युवकों में ही पाई जाती है।
  • वस्तुतः इन सबका मुख्य कारण है स्वतंत्रता के बाद भी भारत में लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति अनेक परिवर्तनों के बावजूद विद्यमान है।इस शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य था कार्यालयों के लिए बाबुओं का निर्माण करना।इस शिक्षा पद्धति का सबसे प्रमुख दुष्प्रभाव यह है कि इसमें परिश्रम को बड़प्पन नहीं माना जाता है।
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2.शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य (Basic Objectives of Education):

  • उपर्युक्त समीक्षा से स्पष्ट है कि शिक्षा के मूलभूत उद्देश्य होना चाहिए बालक-बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाना,व्यक्तित्व (नैतिक व संस्कारों) का निर्माण तथा देशभक्ति का निर्माण करना।इनके अलावा अन्य उद्देश्य भी समाविष्ट होनी चाहिए।परंतु मूलरूप से इन तीन उद्देश्यों की प्राप्ति तो होनी चाहिए।परंतु वर्तमान शिक्षा प्रणाली इन तीन तथा अन्य किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती है।केवल साक्षर होने का उद्देश्य पूर्ण करती है।
  • इन उद्देश्यों की पूर्ति का प्रथम तरीका यह है कि औपचारिक शिक्षा के साथ अनौपचारिक तकनीकी शिक्षा तथा नैतिक शिक्षा दी जाए ताकि प्रारंभ से ही छात्र-छात्राओं में किसी भी कौशल का विकास किया जा सके।औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह माता-पिता, अभिभावकों तथा समाज पर बोझ नहीं बनेगा।जापान में तो घर-घर में यह व्यवस्था है कि तकनीकी शिक्षा घर पर ही उपलब्ध हो जाती है।भारत में न तो घर पर ऐसी व्यवस्था है और न ही स्कूल और कॉलेजों में आत्मनिर्भर होने के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था है।स्कूल तथा कॉलेजों में सैद्धांतिक ज्ञान एवं डिग्रियां प्रदान करने वाले विषयों की संख्या तो बहुत है परंतु कौशल का विकास करने,आत्मनिर्भरता के लिए तकनीकी शिक्षा का अभाव है।कौशल के अभाव में तथा नौकरी न मिलने के कारण बेरोजगार होकर ऐसे युवक पराश्रित रहते हैं या कुमार्ग की ओर अग्रसर हो जाते हैं।सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों में पदों की संख्या सीमित होने के कारण बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे युवक प्रतिवर्ष नौकरी से वंचित रह जाते हैं।
  • दूसरा तरीका यह है कि नवोदय विद्यालय की तर्ज पर प्राथमिक तौर पर ऐसे तकनीकी विद्यालय तथा विश्वविद्यालय खोलें जाएं जिनमें तकनीकी शिक्षा,स्किल का विकास करने के साथ-साथ नैतिक व धार्मिक शिक्षा दी जाए।यदि विद्यालय और विश्वविद्यालय सफल हो जाएं तो इसको धीरे-धीरे अन्य विद्यालयों में लागू किया जाए।ध्यान रहे इसमें तकनीकी व कौशल के साथ नैतिक व धार्मिक या नैतिक शिक्षा अवश्य लागू की जाए।
  • तीसरा तरीका यह है कि माता-पिता को छात्र-छात्राओं के रुचि व रुझान को जान-समझकर पार्टटाइम कोई भी स्किल अवश्य सीखना चाहिए जिससे डिग्री प्राप्त करने व नौकरी न मिलने के कारण दर-दर न भटकता फिरे बल्कि अपने स्तर पर सीखे गए कौशल में कोई छोटा-मोटा उद्यम प्रारंभ कर सके।
  • चौथा तरीका यह है कि सक्षम लोगों को तकनीकी शिक्षा,कौशल का विकास तथा नैतिक शिक्षा प्रदान करने हेतु शिक्षा संस्थान निजी व सामाजिक स्तर पर प्रारंभ करना चाहिए जो बेरोजगार व पढ़े-लिखे युवकों को प्रशिक्षण दे सके।
  • हमारे देश में सैद्धांतिक शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षा संस्थान तो मिल जाएंगे परंतु नैतिक नैतिक शिक्षा अथवा नैतिक व धार्मिक शिक्षा बिल्कुल ही प्रदान नहीं की जाती है।सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं में नौकरी प्राप्त ये युवक-युवतियां नैतिक शिक्षा,सदाचार व संस्कारों के अभाव में रिश्वत लेकर धन-संपत्ति तथा अकूत दौलत इकट्ठी कर लेते हैं और ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं।धन के लोभ-लालच में अपना ईमान तथा कर्त्तव्यों से च्युत होते ही कर्मचारियों एवं बड़े-बड़े अफसरों को देखा जा सकता है।स्थिति यहाँ तक है कि कर्त्तव्यनिष्ठ,ईमानदार,सदाचार,सरलता,विनम्रता जैसे गुणों को धारण करने वाले कर्मचारियों एवं अधिकारियों को मूर्ख,बेवकूफ तथा धूर्त समझा जाता है।
  • यह भारत देश का दुर्भाग्य है कि विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है परंतु सदाचार युक्त,विनम्र व चरित्रवान व्यक्ति की पूछ नहीं है।नैतिक शिक्षा,धार्मिक शिक्षा,सदाचार की शिक्षा तथा चरित्र गठन की शिक्षा बाल्यकाल से ही दी जानी चाहिए।प्रौढ़ व्यक्ति पक्के घड़े की तरह होता है जिस पर मिट्टी नहीं चढ़ाई जा सकती है परंतु बच्चे कोरे कागज की तरह होते हैं जिन्हें जैसा चाहे ढाला तथा निर्माण किया जा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त पाठ्यक्रम में देशभक्ति,समाज के हित से संबंधित बातें भी जोड़ी जाए।साथ ही बच्चों का निर्माण करने की व्यवस्था इस प्रकार की हो कि शिक्षा प्राप्त करके व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ देश व समाज के लिए भी योगदान दें।

3.शिक्षा से हमारी आवश्यकताएं पूरी हों (Education will Meet our Needs):

  • यदि प्रतिभा को विकसित करने तथा संस्कार डालने की शिक्षा न दी जाए तो प्रतिस्पर्धा,प्रतियोगिता के युग में पिछड़ कर छात्र-छात्राओं को हंसी-मजाक,उपहास,तिरस्कार तथा अपमान सहन करना पड़ता है।यदि सुसंस्कारित शिक्षा न मिले तो छात्र-छात्राओं को भटकना तथा जीवन में ठोकरें खानी पड़ती है।क्या पढ़ा जाए,कितना पढ़ा जाए,क्यों पढ़ा जाए,कौन पढ़ाए,किस प्रकार पढ़ाए इस प्रकार के प्रश्नों पर विचार-चिंतन ही नहीं किया जाता है।
  • मात्र सैद्धान्तिक शिक्षा के परिणाम छात्र-छात्राओं,परिवार,समाज व देश को भुगतना पड़ रहा है।शिक्षा का उद्देश्य जीवन में आने वाली कठिनाइयों,सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन करने,जाॅब करने की तकनीक सीखने तथा संस्कारों का निर्माण करने वाली होनी चाहिए।केवल जाॅब प्राप्त करने के दायरे में शिक्षा प्रदान करने वाली,नौकरी देने वाली शिक्षा देना ही शिक्षा का संकुचित दृष्टिकोण है।ऐसा संभव भी नहीं है कि सभी को नौकरी दी जा सके।
  • स्कूलों तथा विश्वविद्यालयों का वातावरण और अनुशासन इस प्रकार का होना चाहिए कि विद्यार्थी सदाचारी,नीतिमान और व्यक्तित्व परिष्कृत किया जा सके।घर,परिवार व समाज का वातावरण भी इस प्रकार का होना चाहिए जिससे बालक-बालिकाओं का गुण,कर्म,स्वभाव का निर्माण किया जा सके।पाठ्यपुस्तकों में ऐसे विषय हों जो भावी जीवन में आने वाले विघ्नों,संकटों,विपत्तियों तथा समस्याओं का समाधान करने के काम आ सके।उनको इस प्रकार की शिक्षा दी जाए जिससे बालक-बालिकाएं व्यवहार कुशल हो सके।सामान्य तथा निम्न स्तर के बालकों को ऐसी शिक्षा देने का कोई औचित्य नहीं है जिन विषयों से कभी उनका काम पडने वाला न हो। इससे अच्छा है कि उनको शारीरिक,मानसिक,नैतिक,व्यावहारिक,धार्मिक तथा कुछ आध्यात्मिक शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे उन्हें भावी जीवन के समाधान में कुछ सहायता मिल सके।
  • शिक्षा संस्थानों,अध्यापकों तथा माता-पिता को केवल इतना ही नहीं सोचना चाहिए कि विद्यार्थी अच्छे अंको से उत्तीर्ण हों।अध्यापक को अधिक वेतन पाने,अधिक ट्यूशन कराकर धनार्जन करने में ही संलग्न नहीं रहना चाहिए।उन्हें यह अनुभव होना चाहिए कि वह देश के भावी नागरिकों के निर्माता है जिन्हें समाज व देश में अपना उत्कृष्ट योगदान देना है।इसके लिए उन्हें विद्यार्थियों को पढ़ाने की कला में ही दक्ष नहीं होना चाहिए बल्कि उनमें सुसंस्कार भी डालने चाहिए।बालकों की उम्र में स्वभाव व व्यक्तित्व उत्कृष्ट बनाने का सबसे उत्तम समय है।
  • विदेशों का अन्धानुकरण करके तथा उनके अनुसार विद्यालय,विश्वविद्यालय तथा पाठ्यक्रम इत्यादि रखने की आवश्यकता नहीं है।बल्कि भारत देश की सभ्यता,संस्कृति तथा परिवेश के अनुसार शिक्षा का ढाँचा होना चाहिए।

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4.भारतीय शिक्षा प्रगतिशील हो की समीक्षा (Indian Education Should Be Progressive Review):

  • स्कूलों,महाविद्यालयों,विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं को यदि पूछा जाए कि वे शिक्षा क्यों अर्जित कर रहे हैं तो 90% विद्यार्थियों का उत्तर होगा कि वे शिक्षा द्वारा अच्छा व सम्मानित जाॅब प्राप्त करना चाहते हैं।भारत स्वतंत्र हुआ था उस समय सेकेंडरी व हायरसेकेंडरी उत्तीर्ण छात्र-छात्राओं को अध्यापक,क्लर्क,पटवारी,कॉन्स्टेबल इत्यादि की नौकरी आसानी से मिल जाती थी।परंतु आज चपरासी की नौकरी के लिए स्नातक,स्नातकोत्तर व पीएचडी करने वाले छात्र-छात्राएं कतार में खड़े हैं।
  • इससे यह मालूम पड़ता है कि आज उच्च शिक्षा भी जाॅब,आजीविका उपलब्ध कराने में समर्थ नहीं है क्योंकि नौकरी पाने के लिए आज गलाकाट प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।इसके बावजूद छात्र-छात्राएं उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए लालायित है और 90% छात्र-छात्राओं का उद्देश्य अच्छा रोजगार पाने की लालसा ही है।
  • उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत से लोगों को अपना गहना,जेवर,मकान,जमीन-जायदाद बेचना या गिरवी रखना पड़ जाता है।महँगी पुस्तकें,ऊंची फीस,कॉलेज के उपयुक्त रहन-सहन,बाहर से आने वाले छात्र-छात्राओं के लिए आवास की सुविधा और भोजन इतना खर्चीला है कि सामान्य व्यक्ति की कमर ही टूट जाती है।
  • विद्यार्थी पढ़ने के अतिरिक्त कुछ करता नहीं है अर्थात् पढ़ने तक वह किसी रोजगार की व्यवस्था नहीं कर सकेगा।अपने माता-पिता पर बोझ बनकर रहेगा।माता-पिता अपना पेट काटकर सर्वस्व दांव पर लगाकर बच्चों को शिक्षा दिलाते हैं।ऊँची से ऊँची शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी बेरोजगारी ही हाथ लगे तो माता-पिता व छात्र-छात्राएं ठगे से रह जाते हैं।
  • स्थिति यहाँ तक पहुंच चुकी है कि लाखों डाॅक्टर,इंजीनियर बेरोजगार हैं।इनकी शिक्षा पर अभिभावकों ने कितना पैसा खर्च किया होगा? इनसे तो वे अनपढ़ ठीक हैं जो अपना छोटा-मोटा व्यवसाय पान,दुकान,रिक्शा चलाकर पेट पाल लेते हैं।उपर्युक्त तथ्यों पर गौर करके समय रहते इसका समाधान ढूंढने की आवश्यकता है।

5.डिग्रीधारी छात्र को आत्मनिर्भर बनाने का दृष्टान्त (Illustration of Making a Student with a Degree Self-Reliant):

  • नारायणपुर में भारत नाम के एक छात्र ने डिग्री प्राप्त कर ली।डिग्री प्राप्त करने के बाद उसने बहुत हाथ-पांव मारे परंतु जॉब नहीं मिला।अंत में हार-थककर वह घर आ गया।उसके पिता अनुभवी विद्वान थे।वे कपड़े का व्यवसाय करते थे।भारत अपने पिता से हाथ खर्च ले लेता और दिनभर ऐशोआराम करता।धीरे-धीरे उसने जॉब करने के बारे में विचार-चिंतन करना ही छोड़ दिया।
  • उसके पिता को यह बात अखरी कि यह अच्छी शिक्षा प्राप्त करके न कोई नौकरी ढूंढ सका,न अन्य कोई जॉब करता है तथा न ही पैतृक व्यवसाय में हाथ बँटाता है।उनके पिता ने भारत को सुधारने की एक तरकीब सोची।वे बीमार पड़ गए और भारत को दुकान सम्हालने के लिए कहा।पहले तो उसने ना-नुकुर की।लेकिन पिता ने कहा कि दुकान बंद रहेगी तो खर्चा नहीं मिलेगा क्योंकि मैं तो बीमार हूं। मरता क्या न करता।भारत को दुकान पर बैठना पड़ा।पहले दिन कोई भी ग्राहक नहीं आया।दूसरे दिन ग्राहक तो आए परन्तु कपड़ा बेचने की कला में निपुण न होने के कारण किसी भी ग्राहक से सौदा तय नहीं कर पाया था।तीसरे दिन बहुत ही विनम्रतापूर्वक कपड़ों की विशेषता बताता, ठीक-ठीक भाव बताता तथा प्रसन्नता से उनका स्वागत करता।उस दिन दो ग्राहकों को बड़ी मुश्किल से कपड़ा बेच पाया।
  • सुबह से शाम तक दुकान पर बैठने तथा ग्राहकों को तैयार करने में कितनी मश्कत करने पर उसे मालूम हुआ कि दुकान अर्थात् व्यवसाय कैसे किया जाता है? इतने दिन पिता से हाथ खर्चा लेकर पैसे उड़ाता रहा परंतु उसे यह अहसास ही नहीं हुआ कि धन कैसे कमाया जाता है? धन वही कमा सकता है जो कठिन परिश्रम करता हो तथा व्यवसाय करने की कला जानता हो,विनम्र,मधुरभाषी हो।
  • भारत को तीन दिन में मालूम पड़ गया।तीसरे दिन धन कमाकर लाया तो पिता ने कहा कि अपने दोस्तों के साथ जाकर चाट-पकौड़ी खाकर आ जाओ।यह बात भारत को खटकी तथा छटपटाया।उसने कहा कि इतने से रुपए कमाने में मुझे सुबह से शाम तक दुकान पर बैठा रहना पड़ा है तथा मैंने ग्राहकों से कितनी मिन्नते की है तब दो ग्राहकों को कपड़ा बेच सका हूँ।इन रुपयों को ऐसे ही बर्बाद नहीं कर सकता हूं।यह कहते ही भारत को अपनी गलती का अहसास हुआ।उसके पिता को खुशी हुई कि भारत को इसका ज्ञान हुआ है कि धन कैसे कमाया जाता है,कैसे खर्च किया जाता है और व्यवसाय कैसे चलाया जाता है?
  • उपर्युक्त आर्टिकल में भारतीय शिक्षा प्रगतिशील हो (Indian Education Should be Progressive),भारतीय शिक्षा अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप हो (Indian Education Suit its Needs) के बारे में बताया गया है।

6.वाचनालय में अपनी पुस्तकें न पढ़ें (हास्य-व्यंग्य) (Do not Read Your Books in the Reading room) (Humour-Satire):

  • मिंटू और रिंकू वाचनालय में बैठकर अपनी गणित की पुस्तक के सवाल हल करने लगे।
  • वाचनालय निरीक्षकःएक्सक्यूज मी प्लीज!आप यहां अपनी पुस्तक नहीं पढ़ सकते हैं।
  • दोनों ने एक-दूसरे को देखा और एक दूसरे की पुस्तक बदलकर और पुस्तक के सवाल हल करने लगे।

7.भारतीय शिक्षा प्रगतिशील हो (Frequently Asked Questions Related to Indian Education Should be Progressive),भारतीय शिक्षा अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप हो (Indian Education Suit its Needs) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

प्रश्नः1.क्या शिक्षा का रोजगार से संबंध है? (Is Education Related to Employment?):

उत्तर:हां शिक्षा का रोजगार से संबंध है परंतु हमारे शिक्षा शास्त्रियों के दिमाग में यह बात अभी तक आई नहीं है।

प्रश्नः2.पढ़े-लिखे विद्यार्थी की क्या स्थिति है? (What is the Status of an Educated student?):  

उत्तर:पढ़ा-लिखा युवक जब घर पर आएगा तो उसे कुर्सी की जरूरत होगी।उसे झोपड़ी तथा घरवालों का रहन-सहन पसंद नहीं आएगा।घर के काम और पैतृक व्यवसाय में हाथ नहीं बँटा सकेगा।

प्रश्नः3.आज की शिक्षा कैसी है? (How is Education Today?):

उत्तरःआज की शिक्षा सिद्धांतविहीन और उद्देश्यहीन है।जो माता-पिता,अभिभावकों और पूरे समाज को हैरान कर रही है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा भारतीय शिक्षा प्रगतिशील हो (Indian Education Should be Progressive),भारतीय शिक्षा अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप हो (Indian Education Suit its Needs) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Indian Education Should be Progressive

भारतीय शिक्षा प्रगतिशील हो
(Indian Education Should be Progressive)

Indian Education Should be Progressive

भारतीय शिक्षा प्रगतिशील हो (Indian Education Should be Progressive)
अर्थात् वर्तमान शिक्षा पद्धति में धीरे-धीरे परिवर्तन किया जाए ताकि आधुनिक युग तथा
भारतीय परिवेश के अनुसार शिक्षा को ढाला जा सके।भारतीय शिक्षा का कितना बड़ा
विरोधाभास है कि अनपढ़ व्यक्ति मेहनत,मजदूरी करके अपना गुजारा कर लें और
पढ़े-लिखे युवक-युवतियों को नौकरी व रोजगार के लिए भटकना पड़ता है।

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