Menu

A Life Superior to Divine Thoughts

Contents hide

1.दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन (A Life Superior to Divine Thoughts),दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन कैसे हो? (How Can Life Be Superior to Divine Thoughts?):

  • दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन (A Life Superior to Divine Thoughts) जिया और निकृष्ट विचारों से निकृष्ट जीवन जिया जा सकता है।यह हमारे ऊपर है कि हम मन में कैसे विचारों को प्रश्रय देते हैं।हमारे मन में भले-बुरे,अच्छे-निकृष्ट दोनों प्रकार के विचार आते हैं।जिस प्रकार के विचारों को कर्म में परिणत करते हैं वैसे ही बनते चले जाते हैं।
  • दिव्य विचारों को क्रियाशील करते हैं तो हमें सफलता मिलती है और हम हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने की तरफ बढ़ते जाते हैं।परंतु बुरे विचारों को क्रियाशील करते हैं तो हमें असफलता मिलती है।प्रारंभ में निकृष्ट विचारों को क्रियाशील होने पर व्यक्ति सफल होता दिखाई देता है परंतु निकृष्ट विचारों के अनुसार जीवन पतनोन्मुखी होता है और हमारा अंत बहुत बुरा होता है।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:Introduction to How to progress in life in hindi

2.विचारों का यथार्थ (The Reality of Ideas):

  • संसार में अधिकांश व्यक्ति बिना किसी उद्देश्य का अविचारपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं,किंतु जो अपने जीवन को उत्तम विचारों के अनुरूप ढालते हैं,उन्हें जीवन-ध्येय की सिद्धि होती है।मनुष्य का जीवन उसके भले-बुरे विचारों के अनुरूप बनता है।कर्म का प्रारंभिक स्वरूप विचार है,अतएव चरित्र और आचरण का निर्माण विचार ही करते हैं।यही मानना पड़ता है,जिसके विचार श्रेष्ठ होंगे,उसके आचरण भी पवित्र होंगे।जीवन में यह पवित्रता ही मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है,ऊंचा उठाती है।अविवेकपूर्ण जीवन जीने में कोई विशेषता नहीं होती।सामान्य स्तर का जीवन तो पशु भी जी लेते हैं,किंतु उस जीवन का महत्त्व ही क्या जो अपना लक्ष्य न प्राप्त कर सके।
  • उत्कृष्ट जीवन जीने की जिनकी चाह होती है,जो अंतःकरण से यह अभिलाषा करते हैं कि उनका व्यक्तित्व सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा कुछ ऊंचा,शानदार तथा प्रतिभा युक्त हो,उन्हें इसके लिए आवश्यक प्रयास भी जुटाने पड़ते हैं।
  • संसार के दूसरे प्राणी तो प्राकृतिक प्रेरणा से प्रतिबंधित जीवनयापन करते हैं,किंतु मनुष्य की यह विशेषता है कि वह किसी भी समय स्वेच्छा से अपने जीवन में परिवर्तन कर सकता है।मनुष्य गीली मिट्टी है और विचार उसका सांचा।जैसे विचार होंगे,वैसा ही मनुष्य का व्यक्तित्व ढलता चला जाएगा,इसलिए जब भी कभी ऐसी आकांक्षा उठे,तब अपने विचारों को गंभीरतापूर्वक देखें,बुरे विचारों को दूर करें और दिव्य विचारों को धारण करना प्रारंभ कर दें,तब निश्चय ही अपना जीवन उत्कृष्ट बनने लगेगा।
  • निराशाजनक और अंधकारमय विचारों को एक प्रकार से मानसिक रोग कहा जा सकता है।निराश व्यक्ति अपने भाग्य का विनाश स्वयं ही करते हैं।प्रत्येक कार्य में उन्हें शंका ही बनी रहती है।अधूरे मन से संदिग्ध अवस्था में किए गए कार्य कभी सफल नहीं होते।ये एक प्रकार के कुविचार हैं,जो हमारी अवनति के मूल कारण होते हैं।
  • आशावान व्यक्ति अल्प-शक्ति और विपरीत परिस्थिति में भी अपना मार्ग बना लेते हैं।श्रेष्ठता,उत्कृष्टता और पवित्रता के विचारों से ही आत्मविश्वास जाग्रत किया जा सकता है।इसी से वह शक्ति प्राप्त होती है,जो मनुष्य को बहुत ऊंचा उठा सकती है।
  • भले और बुरे दोनों प्रकार के विचार मनुष्य के अंतःकरण में भरे होते हैं।अपनी इच्छा और रुचि के विकास से शुभ गुणों का परिष्कार होता है।विकारों के साथ संघर्ष करके,उन्हें नियंत्रण में रखकर या दबाकर ही धर्म साधनों में स्थिर रहा जा सकता है।
  • आदर्शों के प्रति रुकावटों का प्रमुख केंद्र मनुष्य का अंत:करण ही होता है।सद्प्रवृत्तियों के विकास से आदर्शों की रक्षा होती है और दुष्कर्मों के संयोग से असफलता,दीनता और हीनता के अमंगल परिणाम प्रस्तुत होते हैं।
  • मनुष्य अपने आदर्शों की प्राप्ति कर ले,इसके लिए उसे अंतःकरण की इस पवित्रता को बनाए रखना परमावश्यक है।जिनका आचरण इस प्रकार का हो कि वे भूल सुधार की इच्छा रखते हों,उनके संबंध में यह कहा जा सकता है कि वे आगे चलकर सफलता प्राप्त कर लेंगे।
  • थोड़े शब्दों में यह कह सकते हैं कि उनका व्यक्तित्व विवेकशील है।इन शब्दों से ही मनुष्य की प्रगति का सरलतापूर्वक अंदाज लगाया जा सकता है।

3.विवेक द्वारा सत और असत विचारों को पहचाने (Identify the Right and the Wrong Thoughts by Conscience):

  • श्रेयार्थी को पुराने अनिष्टकारी संस्कार नष्ट करके शिष्ट संस्कार ग्रहण करने चाहिए।यह प्रयत्न शुष्क व नीरस न हो।इसमें अरुचि का भाव न आए,इसके लिए धैर्य,दृढ़ता और विकार के अंतर को समझना,सांसारिक कामनाओं और आत्मा की स्वाभाविक आकांक्षा के बीच जो एक पर्दा पड़ा होता है,उसे सदैव ध्यान में रखना चाहिए।
  • क्रोध और तेजस्विता,दीनता और नम्रता,दुर्बलता और क्षमता,साहस और भीरुता,दंभ और आत्मविश्वास के बीच जो अंतर है,उसे प्रत्येक क्षण विचारते रहने से ही सहज वृत्तियों की समुन्नति होती है।मानवीय विकास का क्रम यही है कि मनुष्य निरंतर सत् और असत् के बीच मौलिक भेदभाव बनाए रहे।
  • भावनात्मक परिष्कार के लिए केवल अपने विचार-जगत में निरीक्षण की प्रवृत्ति रखना ही यथेष्ट नहीं है,अपने खान-पान,वस्त्र,आवास,पास-पड़ौस के जीवन पर भी गंभीरतापूर्वक विचार करते रहना होगा।
  • व्यक्ति की भलाई का क्षेत्र उसके मन,वाणी और शरीर तक ही सीमित नहीं है,उसका पहलू भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है,अतः इधर से भी पूर्ण विवेक का पालन करना पड़ेगा।आरोग्य,मितव्ययिता,निरासक्तता के साथ ही सामाजिक संबंध,विनयशीलता,भद्रता और सौमनस्यता भी अतीव आवश्यक है।
  • मानसिक,भावनात्मक तथा सांसारिक जीवन की न्यायपूर्ण समीक्षा ही विवेक की स्थिति है।यदि हम इस दिशा में निष्क्रिय,निश्चेष्ट और निष्प्राण बने रहें,तो हमारे जीवन का परम लक्ष्य एक गोपनीय विषय ही बना रह जाएगा।लोग कभी सांसारिक कामनाओं से हटकर आध्यात्मिक जीवन की ओर झांककर देखना भी न चाहेंगे।
  • इसलिए अन्य भूमिकाओं के साथ विवेक की साधना भी सतत चलती रहनी चाहिए,ताकि हमारे जीवन का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक पहलू आंखों से ओझल न होने पाए।यह भाग अप्रकाशित ही न बना रहे,इसके लिए विवेक की ज्योति हमेशा प्रत्येक मनुष्य के जीवन में जगमगाती ही रहनी चाहिए।हमारा आशय इतना शुद्ध और पवित्र होना चाहिए कि प्रत्येक भावना का सूक्ष्मतर प्रत्युत्तर वह दे सके।
  • मनुष्य जीवन के दो पहलू हैं।सत् अर्थात निर्माण का क्षेत्र,असत् अर्थात निषेधात्मक पहलू।किसी निश्चित पथ पर सरलतापूर्वक आगे बढ़ने का यही उपाय है कि अपने मार्ग की बाधाओं को दूर करते हुए आगे बढ़ें।आध्यात्मिक विकास के पथ पर भी ठीक ऐसी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है।
  • अपने दोष-दुर्गुणों को खोजना,उनका निवारण करना,अपने जीवन में सत्प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन एवं प्रश्रय देना,इसी का नाम विवेक है।जो इस स्थिति को पा लेते हैं,उन्हीं का मानव जीवन सफल कहा जा सकता है।वही अंत में महानता की महान विभूति से गौरवान्वित होते और श्रेय का अनंत सुख प्राप्त करते हैं।
  • विवेक के द्वारा हम पता लगा सकते हैं कि कौनसे विचार अच्छे हैं और कौनसे बुरे हैं।बुद्धि और विवेक में फर्क है।बुद्धि से सारी चालाकियां निकलती है और विवेक से समझदारी।जितनी बुद्धिमानी बढ़ती है उतनी ही चालाकियां बढ़ती जाती है।होना तो यह चाहिए कि लोग जितने शिक्षित होते,जितने बुद्धिमान होते उतने ही सरल,विनम्र और विद्यावान होते पर उल्टा ही हुआ है और हो रहा है।
  • आज का शिक्षित और बुद्धिमान व्यक्ति कम पढ़े-लिखे लोगों से अधिक चालाक,पाखंडी और बेईमान हो गया है।दूसरों को मूर्ख बनाने और चूसने की कला में कुशल हो गया है जिससे यह तथ्य प्रकट होता है की बुद्धि सांसारिक कुशलता व सफलता देती है और विवेक (सद्बुद्धि) समझदारी,ईमानदारी,तत्त्वज्ञान,भगवान के प्रति प्रेरणा,आध्यात्मिक शक्ति और अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।
  • तात्पर्य यह है कि विवेक के आधार पर ही हम सही विचार कर सकते हैं,सही काम कर सकते हैं और सही परिणाम को उपलब्ध हो सकते हैं।क्या हितकर है क्या अहितकर है,क्या सही है क्या गलत है,क्या करने योग्य है क्या न करने योग्य है,क्या प्राप्त करने योग्य है क्या त्यागने योग्य है,क्या पढ़ने योग्य क्या न पढ़ने योग्य है,क्या विचार करना चाहिए क्या विचार नहीं करना चाहिए यह जानना विवेक और न जानना अविवेक (अज्ञान) है।जीवन में सफलता,उन्नति और विकास को उपलब्ध होने के लिए विवेक का होना अनिवार्य है और उसी के अनुसार आचरण करना सोने पर सोहागे के समान है।इसलिए हमें प्रतिफल विवेकवान होने के लिए प्रयत्नशील और इसको आचरण में लेने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए क्योंकि आचरण के बिना विवेक का होना न होना बराबर होता है।

4.दिव्य विचारों को आचरण में उतारें (Put Divine Thoughts into Practice):

  • प्रत्येक मनुष्य में प्रगति की ओर बढ़ सकने की बड़ी विलक्षण शक्ति भगवान ने दी है,किंतु यह तब तक अविकसित ही बनी रहती है,जब तक वह श्रेष्ठ आदर्श सम्मुख रखकर वैसा ही उदात्त बनने की चेष्टा नहीं की जाती।मनुष्य को यह भाव अपने मस्तिष्क से निकाल देना चाहिए कि उसके पास पर्याप्त बौद्धिक क्षमता या शैक्षणिक योग्यता नहीं।
  • कई बार हम भाग्य और परिस्थितियों को भी बाधक मानते हैं,किंतु यह मान्यताएं प्रायः अस्तित्व-विहीन ही होती हैं।निर्बलता,न्यूनता और अनुत्साह की दुर्बल मान्यताओं से भरे हुए मनुष्य,जीवन में कोई महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त नहीं कर पाते।
  • अनुभव किया कीजिए कि आपमें बड़ी विलक्षण शक्ति भरी पड़ी है।आपको केवल उस शक्ति को प्रयोग में लाना है।आप देखेंगे कि आपके स्वप्न अवश्य साकार होते हैं।जो विचार आपको तुच्छ और विनाशपूर्ण दिखाई दें,उन्हें एक क्षण के लिए मस्तिष्क में टिकने न दें।उन योजनाओं के विचार-विमर्श में ही लगे रहे,जिनसे आपको लक्ष्य प्राप्ति में मदद मिलती है।
  • सफलता मनुष्य को तभी मिलती है,जब मनुष्य अपने विचारों को साहसपूर्वक कर्म में बदल देता है।आप विद्याध्ययन करना चाहते हैं,स्वस्थ बनना चाहते हैं,तेजस्वी,बलवान बनना चाहते हैं,किसी भी स्थिति में आपको विचारों को दृढ़तापूर्वक मूर्त रूप देना ही पड़ेगा।
  • मनुष्य किसी भी स्थिति में क्यों न हो,सत्य की खोज और प्राप्ति कर सकता है।रीति यह है कि वह अपनी वर्तमान परिस्थितियों का सदुपयोग कर उन्हें बुद्धि और शक्ति प्राप्त करने में लगाए।अपने मस्तिष्क में पवित्र विचारों को निरंतर स्थान देने से शुभ कर्मों में लगा रहता है और मनुष्य की बुद्धिमत्ता निरंतर बढ़ती जाती है।
  • क्रियाओं में सदाचार से प्राप्त शक्ति का विकास होता है और अध्ययन रुक जाने से शक्ति का ह्रास नहीं होता।स्थित शक्ति और सात्विक बुद्धि के सम्मिश्रण से ही दिव्य जीवन की अनुभूति होती है।
  • आध्यात्मिक जीवन का राजमार्ग भी यही है।हम छात्र हो या छात्रा हों,युवक हो या युवती हो जब भी हम निष्क्रिय,बिना कामकाज के या फालतू होते हैं तभी हमारा मन भी फालतू विचार और कामों की ओर आकर्षित होता है।ये फालतू विचार और काम हमारी आयु,परिस्थिति और वातावरण के अनुसार होते हैं।युवक और युवतियाँ चूँकि कच्ची बुद्धि के और अनुभवहीन होते हैं अतः वे इसी उम्र में गन्दें विचार,गन्दी बातें और गन्दी आदतें सीखते हैं,बुरे व्यसन सीखते हैं बशर्ते वे हमेशा अच्छे और करने योग्य कामों में व्यस्त न रहते हों।
  • हम जब कार्य व्यस्त रहते हैं तो बेहूदा और वाहियात बातों,ख्यालों और हरकतों की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता।हम यदि अच्छे और जरूरी कामों में व्यस्त रहेंगे तो हमें बुरे और वाहियात बातों को करने के लिए वक्त ही नहीं मिलेगा।बुरे विचारों से,बुरे कामों से बचने का यही तरीका है कि हम अपने आपको किसी न किसी अच्छे काम में व्यस्त बनाए रखें।

5.दिव्य विचारों का दृष्टांत (The Parable of Divine Thoughts):

  • एक विद्यार्थी था।उसने गणित से डिग्री प्राप्त करने के साथ ही आध्यात्मिक ज्ञान भी प्राप्त किया था।उसने जाॅब प्राप्त करने का निश्चय किया।वह एक कोचिंग सेंटर में चल गया और निदेशक को डेमो क्लास देकर दिखाया।उसका प्रजेंटेशन शानदार था।निदेशक ने विचार किया कि उसने ये दिव्य विचार और शिक्षा कहां से प्राप्त की? उस विद्यार्थी ने कहा कि उसे अपने पिता और शिक्षकों से यह शिक्षा मिली है।
  • निदेशक ने कहा कि मैं सोच रहा था कि ये विचार आपके नहीं है,इन विचारों को कोई आज सुनना भी पसंद नहीं करता।विद्यार्थी ने कहा कि क्यों? निदेशक ने कहा कि ये विचार नकली है।तब विद्यार्थी ने कहा कि आप मुझे कितना वेतन देंगे।तब निदेशक ने कहा कि ₹10000।विद्यार्थी बोला बस ₹10000 ही।निदेशक बोला अच्छा 15000 रुपये ले लेना।निदेशक ऐसे विद्यार्थी को शिक्षक रखना चाहता था परंतु उसको कम वेतन ही देना चाहता था।
  • उस विद्यार्थी को कुछ सोचता हुआ देखकर निदेशक बोला अच्छा 18000 रुपये ले लेना।विद्यार्थी ने सोचा कि उसके विचार अच्छे नहीं है तो 18000 रुपए पर कैसे पहुंच गया? वह विद्यार्थी वहां से जाने लगा तो निदेशक बोला कि अच्छा 20000 रुपए ले लेना।
  • लेकिन तुम्हें तुम्हारी योग्यता के अनुसार 25000 रुपए मिल सकते हैं,इससे कम पर मत रहना।विद्यार्थी अन्य कोचिंग में जाता और बोलता कि 25000 रुपए दोगे क्या? अन्य कोचिंग निदेशक सोचते जरूर इसमें कोई खोट है।तभी उसका एक पुराना मित्र मिल गया।बातों-बातों में अपने जॉब सर्च करने की बात बताई,मित्र ने कहा कि तुम्हारे पास दिव्य विचार और शिक्षा है परंतु विवेक के अभाव में व्यक्ति धोखा खा जाता है।यह बात तुम सदा के लिए याद रखना।
  • उसका मित्र उसे एक प्रसिद्ध कोचिंग संस्थान में लेकर गया।वहां डेमो क्लास देने के बाद,निदेशक ने उसे ठीक से जाँचा-परखा और बोला मैं इसे ₹40000 वेतन दे सकता हूं।विद्यार्थी ने मित्र से कहा कि तुमने ठीक ही कहा था कि विवेक खोकर बहकावे में आने से सदैव हानि ही होती है।वह विद्यार्थी उस कोचिंग में पढ़ाने लग गया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन (A Life Superior to Divine Thoughts),दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन कैसे हो? (How Can Life Be Superior to Divine Thoughts?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:How is Life Center of Learning?

6.गणित शिक्षक की परीक्षा (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics Teacher’s Exam) (Humour-Satire):

  • एक मूर्ख छात्र (दूसरे से):ये गणित शिक्षक की परीक्षा का प्रश्न पत्र इतना कठिन क्यों आता है?
  • दूसरा मूर्ख छात्र:बेवकूफ ताकि गणित शिक्षक हम जैसा न बन जाए।

7.दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन (Frequently Asked Questions Related to A Life Superior to Divine Thoughts),दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन कैसे हो? (How Can Life Be Superior to Divine Thoughts?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.ज्ञान किसे कहते हैं? (What is Knowledge?):

उत्तर:जो जैसा है उसे वैसा ही और ठीक-ठीक जानना ज्ञान कहलाता है और वैसा न जानना अज्ञान कहलाता है।

प्रश्न:2.विवेक किसे कहते हैं? (Who is Called Wisdom?):

उत्तर:जो ज्ञान हमें सद्बुद्धि दे,सन्मार्ग दिखाएं,शुभ प्रेरणा और सदाचरण करने का आधार बने सदज्ञान कहलाता है।सद्ज्ञान,सद्बुद्धि को ही विवेक कहते हैं जो उचित-अनुचित,नैतिक-अनैतिक,शुभ-अशुभ और करने योग्य कार्य के विषय में समझ देता है,सद्बुद्धि देता है।विवेक का उपयोग करके हम उचित आचार-विचार और सद्ग्रंथों का अध्ययन कर सकते हैं ताकि मानसिकता शुद्ध और सात्विक रहे।यदि विवेकहीन होते हुए भी तथा थोड़ा सा अध्ययन करके भी हम सफल हो रहे हैं,परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो रहे हैं तो हमें हमारे पूर्व कर्मों (सत्कर्मों) की पूंजी को धन्यवाद देना चाहिए जिसकी वजह से हम सफल हो रहे हैं।

प्रश्न:3.ज्ञान और विवेक में क्या अंतर है? (What is the difference between Knowledge and Wisdom?):

उत्तर:विवेक और ज्ञान एक जैसे अर्थ रखने वाले पर्यायवाची शब्द मालूम पड़ते हैं पर दोनों में जरा बारीक सा फर्क है।विवेक का अर्थ सिर्फ ज्ञान नहीं बल्कि विवेचना पूर्ण समझ,भले-बुरे की समझ वाला ज्ञान होता है।ज्ञान का मतलब सिर्फ जानना होता है अंग्रेजी का शब्द नॉलेज (knowledge) नो (know) शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है जानना और जो जान लिया जाए उसे नॉलेज (ज्ञान) कहते हैं।विवेक के लिए अंग्रेजी में विस्डम (wisdom) शब्द है जो वॉइज (wise) शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है चतुर,विवेकशील।जो गुण विवेकशील और चतुर बनाता है उसे ही विवेक (wisdom) कहा गया है।ज्ञान अच्छा और बुरा दोनों प्रकार का हो सकता है जबकि विवेक अच्छे और बुरे की पहचान रखता है उसका विश्लेषण कर सकता है इसलिए विवेक से काम लेने वाला गलत और बुरे काम नहीं करता।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन (A Life Superior to Divine Thoughts),दिव्य विचारों से उत्कृष्ट जीवन कैसे हो? (How Can Life Be Superior to Divine Thoughts?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *