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Teachers Build Personality of Students

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1.अध्यापक छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व का निर्माण करें (Teachers Build Personality of Students),शिक्षक द्वारा छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्त्व का निर्माण करने की 3 टिप्स (3 Tips to Build Personality of Students by Teacher):

  • अध्यापक छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व का निर्माण करें (Teachers Build Personality of Students) जिससे छात्र-छात्राओं के साथ-साथ देश का भविष्य सुधर सके।गणित शिक्षक तथा शिक्षक के ऊपर देश का भविष्य तथा छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व को गढ़ने का महान उत्तरदायित्व है।परंतु यह उत्तरदायित्व केवल शिक्षा संस्थान में अध्ययन करने से ही नहीं निभाया जा सकता है।इसके लिए उसे अपना व्यक्तिगत जीवन में समय निकालकर आहुति देनी होगी।हमेशा छात्र-छात्राओं के हित व कल्याण की बात सोचने और करने से वह अध्यापक अथवा शिक्षक ही नहीं रहेगा बल्कि गुरु का दर्जा प्राप्त कर सकता है।
    यह ठीक बात है कि आधुनिक शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा का स्वरूप ग्रहण कर चुकी है।ऐसी स्थिति में सरकारी अध्यापकों को वर्तमान में परिवार के निर्वाह के लिए जो वेतन मिलता है वह संतोषजनक कहा जा सकता है इसलिए उन्हें व्यावसायिकता की दौड़ में पड़कर ट्यूशन और कोचिंग कराकर अतिरिक्त आय अर्जित करने के लोभ से बचना चाहिए।क्योंकि धन-संपत्ति अर्जित करने तथा विलासिता का जीवनयापन करने का कोई अंत नहीं है।इसलिए सरकारी वेतन में संतोष करके छात्र-छात्राओं के हित व कल्याण जितना वह कर सके उतना करना चाहिए।
  • निजी शिक्षा संस्थानों में दो तरह के शिक्षक हैं।एक वे शिक्षक जिनको शिक्षा संस्थानों के निदेशक बहुत कम वेतन देते हैं जिससे उनका मुश्किल से ही गुजारा चल सकता है।ऐसे शिक्षक यदि ट्यूशन व कोचिंग से आय अर्जित करते हैं तो बुरा नहीं है।ध्यान यह रखना चाहिए कि जीवन निर्वाह लायक अपनी आवश्यकताएं पूरी कर लें।व्यावसायिकता की अन्धी दौड़ में शामिल न हों।वरना वह अपने शिक्षक व अध्यापक पद की गरिमा ही गिरायेगा।निजी शिक्षा संस्थानों में ऐसे शिक्षक भी हैं जिन्हें पर्याप्त तथा बहुत अच्छा पैकेज वेतन के रूप में मिलता है।ऐसे शिक्षकों को वेतन से संतोष करके बाकी अपना समय छात्र-छात्राओं के कल्याण हेतु निस्वार्थ भाव से समर्पित करना चाहिए तभी वे अध्यापक पद की गरिमा रख सकते हैं।
  • अध्यापक वर्ग अपनी सुख-सुविधाओं और विलासिता (Luxury) की चीजों को जुटाने के बजाय अपने कर्त्तव्य-पालन की ओर ध्यान दें और निभाए तो देश की तथा छात्र-छात्राओं की तस्वीर उज्जवल हो सकती है।
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2.अध्यापक छात्र-छात्राओं का चिन्तन और चरित्र सुधारे (Teachers Should Improve the Thinking and Character of the Students):

  • अध्यापक वर्ग चाहे तो छात्र-छात्राओं के चिन्तन व चरित्र में बदलाव ला सकता है।इसका मूल कारण है कि माता-पिता के बाद छात्र-छात्राओं के शिक्षक ही संपर्क में आते हैं और शिक्षक की बात को मानते भी हैं।शिक्षक अपने विषय को पढ़ाते समय प्रसंगवश छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व और चरित्र के विकास संबंधी चर्चा कर सकता है और उनके चरित्र को गढ़ सकता है।
  • रविवार की छुट्टियां तथा अनेक अन्य छुट्टियों का उपयोग छात्र-छात्राओं के माता-पिता,छात्र-छात्राओं से व्यक्तिगत संपर्क करके उनके चरित्र गठन के लिए प्रेरित कर सकता है।छात्र-छात्राओं के चारित्रिक विकास हेतु निम्नलिखित प्रक्रिया अपना सकते हैंः
  • (1.)प्रसंगवश छात्र-छात्राओं को महान् गणितज्ञों,वैज्ञानिकों तथा महापुरुषों के जीवन चरित्र की प्रेरक घटनाएँ सुनाए।
  • (2.)छात्र-छात्राएं अक्सर पढ़ाई करने में आनेवाली बाधाओं जैसे आलस्य आना,समय का प्रबंधन न कर पाना,योजनाबद्ध अध्ययन न करना,परीक्षा में अच्छे अंक न प्राप्त कर पाना इत्यादि को प्रस्तुत करते हैं।ऐसी स्थिति में अध्यापकों को अपनी सूझबूझ व अनुभव के आधार पर उन्हें ऐसे व्यावहारिक सुझाव देने चाहिए जिससे उनका छात्र जीवन ही नहीं बल्कि पूरा जीवन महक उठे।
  • (3.)हमेशा एक कर्मयोगी की तरह जीवन बिताए जिससे छात्र-छात्राओं को प्रेरणा मिल सके।क्योंकि छात्र-छात्राएं उपदेश के बजाय चरित्र से अधिक सीखते हैं।
  • (4.)अध्यापक तड़क-भड़क से न रहकर सादगी से जीवन जिए जिससे छात्र-छात्राएं प्रेरित हों।
  • (5.)कक्षा में जिन छात्र-छात्राओं को पढ़ाया जाता है उनके नाम तथा परिचय याद रखें।अपनी डायरी में नोट करके रखें।कभी अपने व्यक्तिगत काम से जाते-आते रास्ते में पड़ने वाले छात्र-छात्राओं से व्यक्तिगत संपर्क साधा जा सके।
  • (6.)यदि हो सके तो कमजोर छात्र-छात्राओं की शिक्षा संस्थानों में अतिरिक्त कालांश लें और निःशुल्क पढ़ाए।यदि शिक्षा संस्थान में सम्भव नहीं हो तो अपने घर पर छात्र-छात्राओं को दो-तीन घंटे का समय देकर पढ़ाया जाए।
  • (7.)छात्र-छात्राओं के चरित्र पर पैनी नजर रखे तथा उनकी प्रगति व योग्यता के साथ-साथ अपनी प्रगति व योग्यता भी बढ़ाता रहे।
  • (8.)मेधावी,निपुण तथा होशियार छात्र-छात्राओं की योग्यता बढ़ाने का प्रयास करें।
  • (9.)छात्र-छात्राओं की योग्यता का गठन किस प्रकार किया जा सकता है इस पर विचार व चिन्तन-मनन करता रहे।

3.शिक्षक पर व्यक्तित्त्व निर्माण का उत्तरदायित्व (Responsibility of Personality Building on Teacher):

  • छात्र-छात्राओं के लिए शिक्षक आदर्श है और वे शिक्षक का अनुसरण करते हैं।जो शिक्षक चरित्रवान तथा उच्च आदर्शों का पालन करते हैं उसे उन्हीं अनुसार श्रद्धा और सम्मान मिलता है।अध्यापक व्यक्तित्त्व निर्माण करने में निम्नलिखित बातों का पालन करेंः
  • (1.)शिक्षक अपने महान् उत्तरदायित्व को समझे और परिस्थितियों से तालमेल बिठाते हुए छात्र-छात्राओं के विकास में जितना योगदान दे सकता है उतना दे।
  • (2.)छात्र-छात्राओं को पाठ्यक्रम को पढ़ाने पर ही ध्यान न दें बल्कि उनमें विनम्रता,सरलता,कठिन परिश्रमी,जिम्मेदारी,समझदारी,ईमानदारी,समय पालन,बुद्धिमत्ता इत्यादि गुणों को विकसित करने पर भी ध्यान दें।क्योंकि सद्गुणों के अभाव में कई छात्र-छात्राएं भटक जाते हैं और गलत रास्ता अपना लेते हैं।जैसे कई ऊँचे-ऊँचे पदों पर कार्यरत अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं।उनमें बुद्धि का विकास तो होता है परन्तु ईमानदारी और सचरित्रता का विकास नहीं होता है तभी वे बड़े-बड़े घोटाले व स्कैंडल में लिप्त पाए जाते हैं।
  • (3.)आधुनिक शिक्षा से तालमेल बिठाते हुए छात्र-छात्राओं को भारतीय सभ्यता,संस्कृति की भी जानकारी देते रहना चाहिए।उनके व्यक्तित्व को उत्कृष्ट बनाने हेतु जागरूक रहना चाहिए।
  • (4.)किसी भी क्षेत्र में अद्भुत व प्रचंड बदलाव में प्रतिभाओं का योगदान होता है।प्रतिभाएं सभी क्षेत्रों में होती है जैसे गणित,विज्ञान,खेलकूद,चिकित्सा,राजनीति,शिक्षा,साहित्य इत्यादि।परन्तु शिक्षा के क्षेत्र में अर्थात् शिक्षक के ऊपर अन्य सभी क्षेत्रों की प्रतिभाओं को गढ़ने का उत्तरदायित्व होता है।इसलिए अपने अधिकार से ज्यादा अपने कर्त्तव्य पालन पर ध्यान देना चाहिए।
  • (5.)विद्या दान सबसे बड़ा दान है परंतु उच्च स्तरीय विद्या प्रदान करना एक चरित्रवान,व्यक्तित्व सम्पन्न,ईमानदार,विनम्र,सरल,निष्कपट शिक्षक द्वारा ही संभव है।
  • (6.)अध्यापक को अधिक जागरूक,चिन्तक,सन्तोषवृत्ति,समझदारी,उत्तरदायित्व को समझने वाला,अपने विषय का ज्ञाता होना चाहिए क्योंकि आज भी समाज में सभ्य छात्र-छात्राओं के निर्माण के रूप में देखता है।वह जिस प्रकार के छात्र-छात्राओं का निर्माण करेगा वैसे ही व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में,समाज में,विभिन्न सेवाओं तथा राष्ट्र को देगा और वैसा ही राष्ट्र बनेगा।
  • (7.)माता-पिता से अधिक दायित्व शिक्षक का होता है क्योंकि शिक्षक दूरदर्शी तथा ज्ञान में पारंगत होता है।यदि वह केवल अपने को एक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में देखता है तो राष्ट्र की अवनति निश्चित है।
  • (8.)अध्यापक को अपने स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा अवश्य करनी चाहिए परंतु अहंकारी नहीं होना चाहिए तभी वह सुयोग्य,संस्कारवान,सभ्य,संस्कृत,शिष्ट तथा देशभक्त नागरिक देश को दे सकेगा।
  • (9.)शिक्षक अपनी प्रतिभा और शक्ति को पहचान कर उसका उपयोग करें तो बालकों को पारिवारिक दायित्वों का बोध,सामाजिक,मिलनसार,सहयोग,सहिष्णुता तथा समन्वय की भावना का बोध करा सकता है।
  • (10.)छात्र-छात्राओं में परिवर्तन व बदलाव शिक्षक अपने प्रेम और आत्मीय व्यवहार से कर सकता है।
  • (11.)छात्र-छात्राओं के कोमल हृदय को इच्छानुसार ढालना,पिघलाना और बनाने की कला शिक्षक को आनी चाहिए।
  • (12.)हजारों वर्षो की गुलामी के कारण प्राचीनकाल जैसे गुरु,मार्गदर्शक तथा लोगों का भारत में अभाव हो गया है।इसलिए छात्र-छात्राएं उच्छृंखल,अमर्यादित,असभ्य,अनुदार होते जा रहे हैं।इस तरफ ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।नींव ही कमजोर होगी तो भवन को गिरने में देर नहीं लगेगी।शिक्षक तथा गुरु अंधकार से प्रकाश की ओर,अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाने वाला है,सच्चा मार्गदर्शक है उसे हर हालत में,हर परिस्थिति में,हर समय,हर कहीं अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहिए।यदि अध्यापक वृत्ति को अपनाया है तो बच्चों के निर्माण,समाज निर्माण तथा देश का निर्माण का दायित्व भी पूरा करना चाहिए।उसे प्रलोभन,लोभ,लालच से अपनी प्रतिभा को गिरवी नहीं रखना चाहिए।

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4.व्यक्तित्व के निर्माण का दृष्टान्त (Illustration of the Creation of Personality):

  • शिक्षक को जो भी प्रतिभा मिली है,योग्यता है,कुशलता है उसे छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व निर्माण में लगाना चाहिए।पतन तथा उन्नति की ओर ले जाने की क्षमता अध्यापक में है।यदि अध्यापक स्वयं दुर्व्यसनों से ग्रस्त है तो इसका दुष्प्रभाव छात्र-छात्राओं पर पड़ता है।छात्र-छात्राएं भी पतन की ओर अग्रसर होते हैं।यदि अध्यापक चरित्र से उन्नत है तो छात्र-छात्राएं प्रगति पथ की ओर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं।हालांकि शिक्षा व ज्ञान के मुख्य स्तम्भ,शिक्षक,छात्र-छात्राएं,पाठ्यक्रम,पुस्तकें इत्यादि हैं।परंतु इनमें शिक्षक व छात्र-छात्राओं की मुख्य भूमिका होती है।
  • एक शिक्षक ने अपने पुत्र को शिक्षण कला सिखाई।दोनों कोचिंग संस्थान में पढ़ाते थे।अधिकांश छात्र-छात्राएं शिक्षक (पिता) से ही पढ़ते थे।बहुत कम छात्र-छात्राएं पुत्र से पढ़ना पसंद करते थे।
  • कोचिंग में पढ़ाने के बाद पिता-पुत्र को शिक्षण की बारीकियाँ समझाता था और उसे उसकी कमियां बताता।यह क्रम वर्षों तक चलता रहा।पुत्र अपनी शिक्षण की कला में निखार लाता रहा और त्रुटियों में सुधार करता रहा।पुत्र समझदार था वह पिता की प्रत्येक बात को ध्यान से सुनता और अपने शिक्षण की कला में सुधार करता रहा।सुधार करते-करते वह तरक्की करता गया।वह कोचिंग छोड़कर दूसरी जगह पढ़ाने लगा।उसे वेतन के रूप में पिता से कई गुणा पैकेज मिलने लगा।पिता का सुधार का क्रम जारी रहा।
  • एक बार पुत्र ने आवेश में आकर पिता से कहा कि आप कोचिंग में पढ़ाते हो तो आपको पारिश्रमिक न के बराबर मिलता है परंतु मैं जिन शिक्षा संस्थानों में पढ़ाता हूं वहां मुझे लाखों रुपए के पैकेज मिलते हैं।मेरी हर जगह माँग है।इसके बावजूद आप मेरी शिक्षण कला में कमियां बताते रहते हो।
  • शिक्षक (पिता) ने कहा कि मुझे अपनी कला तथा पढ़ाने के तरीके पर अहंकार हो गया था।मैं यह समझने लगा कि मेरे समान पढ़ाने वाला कोई नहीं है।धीरे-धीरे मैंने अपनी शिक्षण कला में सुधार करना छोड़ दिया और विषय पर पकड़ खत्म होती गई तब मेरी प्रगति रुक गई और कोचिंग में छात्र-छात्राओं ने आना बंद कर दिया।
  • तुम मेरी तरह की गलती मत करो।शिक्षण कला में सुधार का क्रम जारी रखो।जिस दिन से तुम अपने में सुधार करना छोड़ दोगे तुम्हारी शिक्षण कला की मांग कम होती जाएगी।इसलिए श्रेष्ठ शिक्षक बने रहना चाहते हो तो अपने अंदर सुधार का क्रम जारी रखो।पुत्र समझ गया और उसने पिता की बातों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अध्यापक छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व का निर्माण करें (Teachers Build Personality of Students),शिक्षक द्वारा छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्त्व का निर्माण करने की 3 टिप्स (3 Tips to Build Personality of Students by Teacher) के बारे में बताया गया है।

5.गणित की शक्ति (हास्य-व्यंग्य) (The Power of Mathematics) (Humour-Satire):

  • एक छात्र गणित के कालांश में रुचि नहीं ले रहा था।अपनी गर्दन को नीचे की ओर झुकाकर बैठा हुआ था।गणित के शिक्षक क्या पढ़ा रहे हैं इस तरफ ध्यान ही नहीं दे रहा था।
  • तब गणित शिक्षक ने कहाःबेटे तुम्हारी गर्दन नीचे की ओर क्यों झुकी हुई हो है?
  • छात्र ने उत्तर दियाःसर (sir),यह गणित की शक्ति का प्रभाव है।गणित की शक्ति से अच्छे-अच्छे की गर्दन अकड़ी हुई हो नीचे की ओर लटक जाती है।

6.अध्यापक छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व का निर्माण करें (Frequently Asked Questions Related to Teachers Build Personality of Students),शिक्षक द्वारा छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्त्व का निर्माण करने की 3 टिप्स (3 Tips to Build Personality of Students by Teacher) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.अध्यापक छात्रों के व्यक्तित्व का निर्माण करें या पाठ्यक्रम पूर्ण कराएं। (Teachers Should Build the Personality of the Students or Complete the Course):

उत्तर:हर महान शिक्षक,साधारण और निम्न शिक्षक को वर्ष में समान समय ही मिलता है परंतु साधारण व निम्न स्तर के शिक्षक गर्मी की छुट्टियों,शीतकालीन छुट्टियों,त्यौहार व महापुरुषों की जयंती पर मिलने वाली छुट्टियों को आमोद-प्रमोद में,अपने घर परिवार में तथा इधर-उधर गपशप करने में व्यतीत कर देते हैं परंतु महान शिक्षक उसी समय को छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व निर्माण में लगाते हैं।अतः समय का अभाव या समय न मिलने की बात करना और कहना आंशिक रूप से ही सत्य है।इच्छाशक्ति ही न हो तो व्यक्तित्व निर्माण की बात सोचना या करना दूसरी बात है।

प्रश्न:2.छात्र-छात्राएं व्यवहार कुशल कैसे बनें? (How Students Become Behaviorally Skilled?):

उत्तर:छात्र-छात्राएं अपने साथी,सहपाठियों,शिक्षकों,माता-पिता तथा बड़ों के साथ शिष्टता से बात करें।अपने से छोटे-बड़ों के साथ यथायोग्य वर्तना चाहिए।हर व्यक्ति,हर परिस्थिति तथा हर कहीं अपने आपको ढाल लेना सामंजस्य हैं।दूसरों के साथ लेनदेन में खरा रहे।किसी को ऐसी बात न कहे जिससे उसको तकलीफ पहुंचे।न ही ऐसी बात किसी के बारे में कहनी चाहिए जिससे आलोचना और उपहास के पात्र बन जाएं।

प्रश्न:3.अध्यापक से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Teacher?):

उत्तरःमहाकवि कालिदास ने कहा है किः
“लब्धास्पदोअस्मीति विवादभीरोस्तितिक्षमाणस्य परेण निन्दाम्।
यस्यागमः केवलजीविकायां तं ज्ञानपण्यं वणिजं वदन्ति”।।
अर्थात् जो अध्यापक नौकरी पा लेने पर शास्त्रार्थ से भागता है,दूसरों के अंगुली उठाने पर भी चुप रह जाता है और केवल पेट पालने के लिए विद्या पढ़ाता है,ऐसा व्यक्ति पंडित नहीं वरन् ज्ञान बेचने वाला बनिया कहलाता है।
वस्तुतः यदि अध्यापक अपना कर्तव्य पालन पूर्ण निष्ठा के साथ करें तो बड़े से बड़ा व्यक्ति भी उसके सामने झुकता है।धन संपत्ति व अन्य भौतिक सुख-सुविधाएं उसके सामने तुच्छ हैं।प्राचीन काल में शिक्षक और गुरु के सामने राजा-महाराजा तथा बड़े से बड़ा व्यक्ति भी श्रद्धावनत रहते थे।अपने तपोबल के आधार पर वे कर्मठ,योग्य तथा कुशल छात्र-छात्राओं को तैयार करते थे।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अध्यापक छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व का निर्माण करें (Teachers Build Personality of Students),शिक्षक द्वारा छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्त्व का निर्माण करने की 3 टिप्स (3 Tips to Build Personality of Students by Teacher) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Teachers Build Personality of Students

अध्यापक छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व का निर्माण करें
(Teachers Build Personality of Students)

Teachers Build Personality of Students

अध्यापक छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व का निर्माण करें (Teachers Build Personality of Students)
जिससे छात्र-छात्राओं के साथ-साथ देश का भविष्य सुधर सके।गणित शिक्षक तथा
शिक्षक के ऊपर देश का भविष्य तथा छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व को गढ़ने का महान उत्तरदायित्व है।

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