3 Tips for Self-Study With Mathematics
1.गणित के साथ स्वाध्याय करने की 3 टिप्स (3 Tips for Self-Study With Mathematics),छात्र-छात्राएँ गणित के साथ स्वाध्याय भी करें (Students Should Also Do Self-Study with Mathematics):
- गणित के साथ स्वाध्याय करने की 3 टिप्स (3 Tips for Self-Study With Mathematics) का तात्पर्य है कि गणित के साथ-साथ शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए भी कुछ समय देना चाहिए। हालांकि यह बात बहुत से आर्टिकल में कही जा चुकी है और अन्य कहीं भी पढ़ने-सुनने को मिल सकती है कि सत्संग,स्वाध्याय,एकाग्रता,इंद्रिय संयम,विवेक,धैर्य,साहस,समय का सदुपयोग,श्रद्धा,संकल्प शक्ति,सद्बुद्धि,बौद्धिक विकास,विनम्रता,अहंकार का त्याग इत्यादि गुणों को छात्र-छात्राओं को धारण करने के साथ-साथ आचरण में उतारना चाहिए।इन सब गुणों को पढ़कर शायद आपको यह लगा होगा कि इसे पुनः कहने-सुनाने व लिखने की क्या जरूरत है? लेकिन जरूरत है।कारण यह है कि इन गुणों को धारण करने का लाभ हर युग में रहा है हर युग में रहेगा।इन गुणों का जीवन में महत्त्व तब तक रहेगा जब तक इस पृथ्वी पर मानव जीवन,मानव सभ्यता और मानव संस्कृति जीवित रहेंगे।
- दरअसल इन गुणों का महत्त्व भारतीय मनीषा,ऋषियों,सन्तों,सज्जनों,आप्त पुरुषों ने अपने अनुभव सिद्ध ज्ञान के आधार पर हमें उपलब्ध कराया है।
- आधुनिक विचारों वाले तथाकथित प्रगतिशील छात्र-छात्राएं पुराने सिद्धांतों को आउटडेटेड कहकर मजाक उड़ाते हैं।इन नियम-सिद्धान्तों को मानने वालों को पुराणपंथी,पुरातनपंथी,दकियानूसी विचारों वाले,मूर्ख,पोंगापंथी,लकीर पीटने वाले समझते हैं ताकि वे मनमाना आचरण कर सके।परंतु यह कहते हुए वे यह भूल जाते हैं कि शास्त्रों में दिए गए ये प्रवचन,सुभाषित,गुणधर्म जीवन के ठोस अनुभवों के आधार पर दिए गए हैं।इनसे न केवल जीवन सुख शांति से गुजरता है बल्कि जीवन की अनेक गुत्थियां,समस्याएं सुलझाने में भी मदद मिलती है।
- इन नियम-सिद्धांतों और गुणधर्मों का न केवल जीवन में महत्त्व है बल्कि गणित के अध्ययन तथा अन्य विषयों के अध्ययन में भी सहायता मिलती हैं।
- इन नियम-सिद्धान्तों व गुणधर्मों की अवहेलना करने पर जैसे बिजली के करंट को छूने पर झटके लगते हैं वैसे ही हमें जीवन में झटके लगते रहते हैं।यदि आप अपने में बिजली के करंट की तरह झटके खाना पसंद करते हैं तो आपकी मर्जी परंतु उसका परिणाम आपको भोगना होगा।
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2.स्वाध्याय क्यों करें? (Why Self-Study?):
- स्वाध्याय करने से छात्र-छात्राओं के ज्ञान में वृद्धि होती है,मन में एकाग्रता,आचरण शुद्ध,पवित्र,उज्जवल तथा आत्मा को खुराक प्राप्त होती है।जैसे शरीर की भूख भोजन से मिटती है इसी तरह आत्मा की भूख ज्ञान से तृप्त होती है। स्वाध्याय से अच्छा कार्य करने,गणित का अध्ययन करने की प्रेरणा मिलती है।स्वाध्याय न केवल चरित्र निर्माण में सहायक है बल्कि जीवन में स्वाध्याय से कई जटिल समस्याओं का समाधान भी हम कर पाते हैं।
- स्वाध्याय से चिन्तन-मनन करने में मदद मिलती है। स्वाध्याय हमारे दुःख,कष्टों और चिन्ताओं को दूर करता है।स्वाध्याय से हमारी शंका-कुशंकाओं का समाधान मिलता है।साथ ही मन में सद्भाव और शुभ संकल्पों का उदय होता है।स्वाध्याय से संयम,साहस,विवेक,उदारता इत्यादि गुणों का विकास करने में सहायता मिलती है।
- जीवन में सही मार्गदर्शन,उचित परामर्श,कई जटिल समस्याओं का समाधान करने हेतु श्रेष्ठ पुरुषों,महापुरुषों की आवश्यकता होती है परंतु उनका सत्संग,सानिध्य,परामर्श हर समय,हर कहीं उपलब्ध नहीं हो सकता है परंतु सद्ग्रंथों,सत्साहित्य तथा सोशल मीडिया के माध्यम से हर समय,हर कहीं,बिना किसी कठिनाई के आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
- आजकल हर माता-पिता अपने बालकों को ज्यादा नहीं तो थोड़ा-बहुत अवश्य पढ़ा-लिखा देते हैं अतः हर छात्र-छात्राएं स्वाध्याय का लाभ आसानी से उठा सकते हैं।अन्य साधनाएं जैसे योगसाधना,तप, ब्रह्मचर्य का पालन,सत्य इत्यादि जटिल है परंतु स्वाध्याय एक सरल सुलभ साधन है।हर एक छात्र-छात्राएं अपने अध्ययन में से थोड़ा-सा समय निकाल कर स्वाध्याय के लिए आसानी से दे सकता है।
3.स्वाध्याय के स्रोत (Sources of Self-Study):
- स्वाध्याय का अर्थ सत्साहित्य,सद्ग्रंथों जैसे रामायण,महाभारत,श्रीमद्भगवत गीता,चाणक्य नीति,मनुस्मृति,वेद,उपनिषद,धर्म-दर्शन आदि का अध्ययन करने से है।संसार में जितने भी गणितज्ञ,वैज्ञानिक,महापुरुष,चिंतक,मनीषी,ऋषि,संत-साधु,महात्मा इत्यादि स्वाध्यायशील थे और हैं।
- महापुरुषों,गणितज्ञों,वैज्ञानिकों के जीवन चरित्र पढ़ने चाहिए जिससे हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
स्वाध्याय का अर्थ मनोरंजक पुस्तकें,उपन्यास,अश्लील साहित्य,नाटक,हंसी मजाक व चुटकुले पढ़ने से नहीं है। - श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है किः
“स्वाध्यायभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते।
अर्थात् स्वाध्याय करना ही प्राणी का तप है। - लेकिन केवल सद्ग्रंथों का पाठ करने,पढ़ने से ही जीवन का रूपांतरण नहीं होता जाता है।जब तक सद्ग्रंथों को पढ़कर उस पर मनन-चिंतन न किया जाए और उसका व्यावहारिक उपयोग नहीं किया जाए तो वह किसी काम का नहीं है।नीति में कहा है कि मूर्खों से सद्ग्रंथों को पढ़ने वाले श्रेष्ठ हैं,सद्ग्रंथों को पढ़ने वाले से सद्ग्रंथों को धारण करने वाले (स्मरण करने वाले) श्रेष्ठ हैं,धारण करने वालों से ज्ञानी (सद्ग्रंथों को समझने वाले) श्रेष्ठ हैं और ज्ञानियों की अपेक्षा सदग्रंथों के उपदेशों पर आचरण करने वाले श्रेष्ठ हैं।
- वस्तुतः सद्ग्रंथों का पढ़ना तो दूर है आजकल के विद्यार्थी अपनी पाठ्यपुस्तकें ही ठीक तरह से नहीं पढ़ते हैं।इसके विपरीत वे अपराध,अश्लीलता की ऐसी पुस्तकें पढ़ते हैं जिससे मस्तिष्क विकृत होता है।सोशल मीडिया पर घंटों चैटिंग करने में व्यतीत करते हैं।
4.स्वाध्याय का दृष्टांत (Parable of Self-Study):
- शास्त्रों,सद्ग्रंथों का अध्ययन करना व्यसन और मूर्खता ही है जब तक उनके उपदेशों पर अमल न किया जाए।बहुत से लोग शास्त्रों का पाठ करने मात्र से यह समझ लेते हैं कि इससे उनका उद्धार हो जाएगा।पापकर्म,कुकर्म,बेईमानी,व्यभिचार करते रहो हो और दान-पुण्य करके उनसे छुटकारा हो जाएगा,इससे ज्यादा मूर्खता क्या हो सकती है?
- गणित शिक्षक चतुर्भुज छात्र-छात्राओं को न केवल गणित पढ़ाते थे बल्कि प्रसंगवश वे नीति-सदाचार की बातें भी बताते रहते थे।वे स्वाध्यायशील थे।एक बार अकस्मात वे बीमार पड़ गए।डॉक्टर ने उन्हें आराम करने का परामर्श दिया तथा परिश्रम करने से मना कर दिया। एक दिन कुछ छात्र-छात्राएं उनसे मिलने घर पर पहुंचे।उन्होंने देखा कि गणित शिक्षक की चारपाई पर ढेरों पुस्तकें रखी हुई थी।वे स्वयं उस समय चारपाई पर बैठे हुए अध्ययन कर रहे थे। छात्र-छात्राओं ने उनके अगल-बगल,सिरहाने तथा बिस्तर पर पड़ी हुई पुस्तकें देखकर कहा कि गुरुजी आपको बीमारी में पूर्ण विश्राम करना चाहिए।तब गणित शिक्षक चतुर्भुज जी ने कहा कि आत्मा की खुराक स्वाध्याय,सत्संग और ज्ञान है।मैं आत्मा को भूखा कैसे रख सकता हूं।आत्मा की खुराक मैं पुस्तकों से प्राप्त करता हूं।
- सद्ग्रंथों में जीवन का सार छिपा रहता है।मिल्टन ने कहा है कि “सद्ग्रन्थ महान आत्मा का मूल्यवान जीवन रक्त है जो ध्येयस्वरूप आनेवाली पीढ़ियों के लिए स्वरक्षित और संचित रखा गया है”।इसी प्रकार महात्मा गांधी ने कहा है कि “अच्छी पुस्तकों के पास होने से हमें अपने भले मित्रों के साथ रहने की कमी नहीं खटकती।जितना ही मैं पुस्तकों का अध्ययन करता गया उतना ही अधिक मुझे उनकी विशेषताएं (उपयोगिताएं) मालूम होती गई”।
- तब छात्र-छात्राएं चतुर्भुज गुरुजी से बहुत प्रभावित हुए।उन्होंने उनसे पूछा कि छात्र-छात्राओं को स्वाध्याय करने के लिए कौनसे नियमों का पालन करना चाहिए।गणित के अध्यापक ने बताया किः
- (1.) छात्र छात्राओं को सूर्योदय से कम से कम एक घंटा पूर्व उठना चाहिए।नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्वाध्याय करना चाहिए।स्वाध्याय के लिए प्रातः काल का समय उत्तम होता है।
- (2.)स्वस्थ हों तो स्नान-ध्यान करके स्वाध्याय करना चाहिए।
- (3.)छात्र-छात्राओं का आहार सात्विक और पौष्टिक होना चाहिए।
- (4.)ब्रह्मचर्य का दृढ़ता के साथ पालन करना चाहिए।
- (5.)रात्रि को 10:00 से 11:00 बजे अर्थात् जल्दी सो जाना चाहिए ताकि प्रातःकाल जल्दी उठ सकें।
- (6.) नियत समय और नियत स्थान पर ही स्वाध्याय करना चाहिए।
- (7.)शरीर पर कम से कम वस्त्र धारण करना चाहिए।
- उपर्युक्त आर्टिकल में गणित के साथ स्वाध्याय करने की 3 टिप्स (3 Tips for Self-Study With Mathematics),छात्र-छात्राएँ गणित के साथ स्वाध्याय भी करें (Students Should Also Do Self-Study with Mathematics) के बारे में बताया गया है।
5.गणित और सवाल का जवाब (हास्य-व्यंग्य) (Math and Answer to Question) (Humour-Satire):
- पुत्र:पिता जी,आज पूरी कक्षा में मैंने ही गणित अध्यापक के सवाल का उत्तर दिया।
- पिता:शाबाश बेटे,परंतु गणित का सवाल क्या था?
- पुत्र:उन्होंने पूछा की गणित की पुस्तक को फाड़कर किसने फेंका है?
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6.गणित के साथ स्वाध्याय करने की 3 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 3 Tips for Self-Study With Mathematics),छात्र-छात्राएँ गणित के साथ स्वाध्याय भी करें (Students Should Also Do Self-Study with Mathematics) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.छात्र-छात्राओं को समय कैसे बिताना चाहिए? (How Should Students Spend Time?):
उत्तर:छात्र-छात्राओं को अपना समय पाठ्यपुस्तकें पढ़ने,समझने तथा उनकी चर्चा करने में व्यतीत करना चाहिए।कुछ समय सत्साहित्य और सद्ग्रंथों का अध्ययन भी करना चाहिए।परंतु आजकल के बहुत से छात्र-छात्राएं फिल्में देखने,फिल्मी गाने सुनने,सोशल मीडिया पर घंटों चैटिंग करने,अश्लील व गन्दे साहित्य पढ़ने,अश्लील फिल्में देखने में व्यतीत करते हैं।उनके कमरे महान गणितज्ञों,वैज्ञानिकों,महापुरुषों के बजाय फिल्मी सितारों से सजे रहते हैं।
प्रश्न:2.क्या केवल पुस्तकों को पढ़ना पर्याप्त है? (Is It Enough to Just Read the Books?):
उत्तर:पुस्तकें पढ़ना,पढ़ाना,शास्त्रों,सद्ग्रंथों का पढ़ना,पाठ करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उसको आचरण में भी उतारना चाहिए।गणित जैसे विषयों को जिनमें नीति,सदाचार की बातें न हों तो ऐसी पुस्तकों का पर्याप्त अभ्यास करना चाहिए।तात्पर्य यह है कि अध्ययन को क्रियात्मक रूप भी देना चाहिए।परन्तु आधुनिक शिक्षा प्रणाली ऐसी है जिसमें अकर्मण्य छात्र-छात्राएं तैयार होते हैं।वे डिग्रीधारी (Qualified) तो हो जाते हैं परंतु शिक्षित (Educated) नहीं होते हैं।इस शिक्षा पद्धति से तैयार छात्र-छात्राएं परिश्रम से जी चुराते हैं तथा नौकरी हासिल करने के अलावा कुछ नहीं करना चाहते हैं।इस शिक्षा में क्रियावान छात्र-छात्राएं तैयार नहीं होते हैं।कोई उद्योग,परिश्रम के कार्य को करना पसन्द नहीं करते हैं।
प्रश्न:3.विनीत छात्र-छात्राओं के क्या लक्षण हैं? (What are the Symptoms of Humble Students?):
उत्तर:विनीत छात्र-छात्रा नम्र होता है,चपल नहीं होता है।धोखेबाज नहीं होता है,व्यर्थ के खेल-तमाशे,झगड़े-टंटों से दूर रहता है।किसी का तिरस्कार नहीं करता है।क्रोध को पाले नहीं रखता है।मित्र से छल-कपट नहीं करता है।धर्मग्रंथों का ज्ञान होने पर भी अहंकार नहीं करता है।पापी का तिरस्कार नहीं करता है बल्कि समझाता है।मित्र पर क्रोध नहीं करता है।अप्रिय मित्र की भी बड़ाई करता है।कलह एवं मारपीट से दूर रहता है।कुलीन और लज्जाशील होता है।इंद्रियों को वश में रखता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के साथ स्वाध्याय करने की 3 टिप्स (3 Tips for Self-Study With Mathematics),छात्र-छात्राएँ गणित के साथ स्वाध्याय भी करें (Students Should Also Do Self-Study with Mathematics) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
3 Tips for Self-Study With Mathematics
गणित के साथ स्वाध्याय करने की 3 टिप्स
(3 Tips for Self-Study With Mathematics)
3 Tips for Self-Study With Mathematics
गणित के साथ स्वाध्याय करने की 3 टिप्स (3 Tips for Self-Study With Mathematics)
का तात्पर्य है कि गणित के साथ-साथ शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए भी
कुछ समय देना चाहिए। हालांकि यह बात बहुत से आर्टिकल में कही जा चुकी है
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Satyam
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