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4 Best Tips to Mastery in Mathematics

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1.गणित में महारत हासिल करने के लिए 4 सबसे अच्छे टिप्स (4 Best Tips to Mastery in Mathematics),गणित का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अहंकार का त्याग कीजिए (Give up Ego to Gain Knowledge of Mathematics):

  • गणित में महारत हासिल करने के लिए 4 सबसे अच्छे टिप्स (4 Best Tips to Mastery in Mathematics) के आधार पर आप शिखर पर पहुंच सकते हैं।गणित में महारत तथा पारंगत होने के लिए हमने कई आर्टिकल्स (लेख) पोस्ट किए हैं। उन आर्टिकल्स को पढ़कर संभव है कि कुछ छात्र-छात्राएं भ्रमित हो जाएं कि किस मार्ग अथवा किन टिप्स का प्रयोग किया जाए? कौन सी टिप्स बेहतरीन है जिसका पालन करके पारंगत हुआ जा सकता है? वस्तुतः गणित में पारंगत होने के लिए किसी एक गुण का होना पर्याप्त नहीं है।इसमें दक्षता और महारत हासिल करने के लिए कई गुणों की आवश्यकता होती है।यह अवश्य है कि सभी गुणों को छात्र-छात्राएं एक साथ धारण नहीं कर सकते हैं बल्कि एक-एक गुण को अपनाना चाहिए। एक-एक गुण को धारण करना आसान भी होता है और एक-एक गुण को पकड़कर अन्य गुणों पर मजबूत पकड़ हो सकती है।सभी गुणों को एक साथ पालन करके उनको धारण करना बहुत मुश्किल है।बल्कि उन सभी को अधबीच में छोड़कर छात्र-छात्राएं सोचते हैं कि गणित में पारंगत होना आसान नहीं है।
  • गणित में मास्टरी (Mystery) हासिल करने के लिए कठिन परिश्रम,अभ्यास,नियमित रूप से अध्ययन,धैर्य,मनन-चिन्तन, समर्पण,विनम्रता,अहंकाररहित होना, लक्ष्य केन्द्रित अध्ययन करना,रुचि,लगन,उत्साह,जुनून,एकाग्रता,इंद्रियों को वश में रखना,मन को नियंत्रित करना,सद्बुद्धि को धारण करना,काम,क्रोधादि विकारों से मुक्त रहना इत्यादि अनेक गुणों की आवश्यकता होती है।अब उपर्युक्त गुणों तथा इसके अतिरिक्त अन्य गुणों जैसे श्रद्धा,निष्ठा,आत्मविश्वास इत्यादि गुणों को जोड़ते चले जाएं तो सामान्य छात्र-छात्रा इस सूची को देखकर चकरा जाएगा।परंतु धीरे-धीरे एक-एक गुण को अपनाते जाएगा तो अन्य गुणों को धारण करना आसान होता जाएगा।यदि आप एकसाथ सभी गुणों पर अमल करना प्रारम्भ करेंगे तो हो सकता है आप उनका पालन कुछ समय तो करें और फिर उनको छोड़ देंगे।इससे आपमें आत्मविश्वास में कमी आएगी।आप समझेंगे कि गणित एक कठिन विषय है जिसमें प्रवीण होना मुश्किल है।
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2.छात्र-छात्राएं अपने को अल्पज्ञ महसूस करें (Students Should Feel Less knowledgeable):

  • गणित ही नहीं कोई भी विषय का ज्ञान प्राप्त करना हो तो छात्र-छात्राएं अपने आपको अल्पज्ञ महसूस करें।यह ज्ञान प्राप्ति तथा शिखर पर पहुंचने की कसौटी है।कोई व्यक्ति तथा छात्र-छात्रा जितना ज्ञान ग्रहण करता जाता है तो उसे यह महसूस होने लगता है कि वह बहुत कम जानता है।वास्तविकता भी यही है कि हम जितना ज्ञान जानते हैं उसके बजाय अज्ञात बहुत अधिक है।
  • जितने भी महापुरुष,वैज्ञानिक,गणितज्ञ अपने क्षेत्र में शिखर पर पहुंचे हैं वे इसीलिए शिखर पर पहुंच चुके हैं क्योंकि वह अपने आपको अज्ञानी,अल्पज्ञ,साधनहीन मानते और जानते थे।यदि गणित का ज्ञान प्राप्त करते हुए छात्र-छात्राएं यह महसूस करने लग जाएं कि उन्होंने बहुत ज्ञान प्राप्त कर लिया है तो उसे समझ लेना चाहिए कि उसकी दिशा सही नहीं है।ज्ञान प्राप्ति की दिशा सही नहीं है।

3.छात्र-छात्राएं विनम्रता की अनुभूति करें (Students should Feel Humble):

  • विनम्रता बाह्य साधनों एवं उपायों से प्राप्त नहीं की जा सकती है।विनम्रता का सृजन आन्तरिक रूप से अर्थात अन्त:करण से महसूस की जाती है।कई कैंडिडेट्स अपनी रिज्यूमें (Resume),आवेदन पत्र, पत्राचार में विनम्रता की भाषा का प्रयोग करते हैं।परंतु इस प्रकार की भाषा का प्रयोग औपचारिक भी हो सकता है।
  • विनम्रता आन्तरिक रूप से महसूस करने तथा व्यवहार में भी विनम्रता प्रकट होनी चाहिए।ऐसी विनम्रता छात्र-छात्राओं में तभी आती है जबकि वे यह अनुभव कर पाते हैं कि जो कुछ प्राप्त किया गया है वह अनुपलब्ध की तुलना में बहुत कम है।जो ऐसा अनुभव नहीं करता है वह ज्ञान प्राप्ति से वंचित रहता है।ऐसे छात्र-छात्राओं में अभिमान का अंश पाया जाता है जो डिग्री प्राप्त करके तथा थोड़ा सा ज्ञान प्राप्त करके ही संतुष्ट हो जाते हैं।
  • जो छात्र-छात्राएं गणित का थोड़ा सा ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और उसका ढिंढोरा पीटते रहते हैं ऐसे छात्र-छात्राएं वास्तव में ओढ़ी हुई विनम्रता धारण करते हैं।चाणक्य नीति में कहा है कि:
  • “परस्तुतगुणो यस्तु निर्गुणोपि गुणी भवेत्।
    इन्द्रोपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणैः।।
  • अर्थात् जिस गुण का दूसरे लोग वर्णन करते हैं उससे निर्गुण भी गुणवान होता है।इंद्र भी अपने गुणों की प्रशंसा करने से लघुता को प्राप्त होता है।
  • व्यावहारिक रूप से भी कोई छात्र-छात्रा अपने मित्रों,शिक्षकों तथा बड़ों से गणित के सवाल,समस्याएं पूछता है तो वे तत्काल उसको बताने के लिए तैयार हो जाते हैं।कक्षा में छात्र-छात्रा विनम्रतापूर्वक शिक्षक से सवाल पूछता है तो शिक्षक उसे संपूर्ण ज्ञान प्रदान करने की कोशिश करते हैं।इसके विपरीत जो छात्र-छात्राएं अहंकारवश सर्वज्ञ बनने का नाटक करते हैं अथवा अहंकार की भाषा में अध्यापकों से बातचीत करते हैं उन्हें अध्यापक झिड़क देते हैं,फटकार देते हैं अथवा बताने से मना कर देते हैं।ऐसे विद्यार्थी बाद में पश्चाताप करते हैं तथा ज्ञान प्राप्ति से वंचित रह जाते हैं।
  • विद्वान पेन ने कहा है कि “विनय के साथ विवेक दूने प्रकाश से चमकता है।योग्य और नम्र मनुष्य किसी राज्य के समान बहुमूल्य रत्न हैं”।
  • नीति में भी कहा है कि “विद्या से विनम्रता आती है और विनय से मनुष्य में कार्य करने की दक्षता आती है।इस योग्यता से धन प्राप्त होता है और धन से धर्म कार्य किए जा सकते हैं जिससे सुख प्राप्त होता है।

4.अहंकाररहित होकर ज्ञान प्राप्त करें (Gain knowledge without Ego):

  • अंत:करण चतुष्टय में मन,बुद्धि,अहंकार तथा चित्त को शामिल किया जाता है।अहंकार भी तीन प्रकार का होता है सात्विक,राजसिक और तामसिक। यहां अहंकार से हमारा तात्पर्य राजसिक और तामसिक से है क्योंकि यह दोनों प्रकार के अहंकार छात्र-छात्राओं के लिए नुकसानदायक है।यह मेरा है,मैं हूं,मेरी भी कोई हैसियत है इस प्रकार की भावना से प्रत्येक कार्य करना,प्रत्येक ज्ञान और गणित का ज्ञान प्राप्त करना,कोई वस्तु के प्रति आसक्ति होने को अहंकार कहा जाता है।
  • अहंकार से काम,क्रोध,लोभ,मोह,राग-द्वेष,अपनी प्रशंसा स्वयं करना,मूढ़ता,कुकर्म, घृणित विचार,अविद्या,कुबुद्धि,अकड़बाजी,अशिष्टता,अशांति,घृणा,विद्रोह,प्रतिशोध,जिद्दी होना,चिड़चिड़ा,सशंकित होना,अस्थिर इत्यादि प्रवृत्तियों का जनक है।
  • जो छात्र-छात्राएं अहंकारवश अकड़ में रहते हैं वे उपेक्षा के पात्र बन जाते हैं।
    छात्र-छात्राओं को अपने गुणों पर ,उपलब्धियों पर,परीक्षा में सफलता प्राप्त करने पर,अपने पूर्वजों,अपने देश की संस्कृति पर,अपने देश पर गर्व होना चाहिए यह स्वाभाविक है और उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।यह सात्विक अहंकार है,यह स्वीकार्य है।परंतु यह सीमा से बाहर हो जाता है तो छात्र-छात्राएं अभिमानी हो जाते हैं।उन्हें पता ही नहीं चलता है कि वे कब सात्विक अहंकार के बजाय राजसिक और तामसिक अहंकार के वश में हो गए हैं।अभिमान,घमंड का विकसित रूप ही अहंकार है।अभिमान,घमण्ड जड़ और शाखाएँ हैं तो अहंकार वृक्ष है।अहंकारी मनुष्य घमंड में फूल जाता है और दूसरों को तुच्छ समझने लगता है।ऐसे छात्र-छात्राएं अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझते हैं और अपनी डींग हाँकते रहते हैं।ऐसे छात्र-छात्राएं सीधे और सरल तरीके से बात नहीं करते हैं।
  • अहंकाररहित,विनम्र छात्र-छात्रा (व्यक्ति) सबको प्रिय होता है इसी कारण छात्र-छात्राओं की उन्नति होती जाती है और उनका यश और ज्ञान बढ़ता जाता है।
  • वस्तुतः अल्पज्ञ होना, विनम्र होना और अहंकाररहित होना यह तीनों अन्तर्संबंधित होते हैं। यानी जो अपने आपको अल्पज्ञ समझता है,विनम्र होता है,वही अहंकाररहित होता है।अल्पज्ञता का भाव अहंकाररहित होने के बिना आ ही नहीं सकता है।विनम्रता और अहंकार प्रकाश और अंधकार की तरह है।जैसे प्रकाश और अंधकार आपस में नहीं मिल सकते हैं उसी प्रकार विनम्रता और अहंकार एक जगह अर्थात् एक ही व्यक्ति व छात्र-छात्राओं में नहीं रह सकते हैं।अहंकार सीमा,मर्यादा तथा औचित्य से अधिक होता है तो विद्यार्थी,विद्यार्थी न होकर दुष्ट,दुराचारी,दुर्जन हो जाता है।उसका वेश विद्यार्थी का रहता है परंतु उसके अंदर अहंकार की ज्वाला भभकती रहती है। अहंकार के वशीभूत होकर वह ऐसे घृणित कृत्य कर बैठता है जो उसे पशु से भी नीचे गिरा देता है।
  • अपने होने की अनुभूति सात्विक होती है तो ऐसे छात्र-छात्राएं उन्नति,तरक्की,विकास तथा आत्मान्नति की तरफ अग्रसर होते हैं।धीरे-धीरे उनमें विनम्रता,अल्पज्ञता की अनुभूति होने पर वे अपने क्षेत्र में शिखर की ओर अग्रसर होते जाते हैं।
  • प्रश्न है कि छात्र-छात्राएं अहंकाररहित कैसे हो सकते हैं? सबसे मुख्य बात यह है कि विद्यार्थी का मुख्य लक्ष्य है अध्ययन करना,ज्ञान प्राप्त करना। अध्ययन कार्य और ज्ञान प्राप्ति की लगन,उत्साह और रुचि होती है तो उसका अहंकार मिटता जाता है।अध्ययन कार्य समर्पित भाव से होकर करे। अध्ययन को कर्त्तव्य समझकर करें।अध्ययन से प्राप्त ज्ञान में अपने आपको कर्त्ता न समझे क्योंकि कर्त्ता समझने पर ही अहंकार आता है।विद्यार्थी अध्ययन करता है,ज्ञान प्राप्त करता है,परीक्षा में सफलता प्राप्त करता है तो उसमें केवल वह स्वयं उसका कारण नहीं होता है।इन सबमें शिक्षक,माता-पिता,पुस्तकों तथा बड़ों का किसी न किसी प्रकार का सहयोग रहता है।जब विद्यार्थी अध्ययन,ज्ञान और परीक्षा में सफलता को अकेला कर्त्ता समझ लेता है तभी उसमें अहंकार पैदा होता है।अहंकाररहित होने का दूसरा तरीका है महान गणितज्ञों,महापुरुषों तथा अपने से श्रेष्ठ व्यक्तियों से सीख लेनी चाहिए कि किस मार्ग का अनुसरण करके वे आगे बढ़े हैं।
  • 16वीं शताब्दी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ आइजक न्यूटन (Isaac Newton) ने कहा था कि मैं तो अभी बालक की भांति समुद्र के किनारे पर पड़े हुए घोंघे और सीपियाँ ही बीन रहा हूँ,ज्ञान का अथाह सागर (समुद्र) में तो अभी मैंने प्रवेश ही नहीं किया है।न मालूम संसार में मुझे किस रूप में समझा जाएगा परंतु मैं तो अपने आपको ज्ञान में अभी बालक ही समझता हूं।
  • अहंकाररहित होने का तीसरा तरीका है कि छात्र-छात्राओं तथा सभी व्यक्तियों पर पित्रऋण,ऋषिऋण और देवऋण रहते हैं।जब तक वह इन तीनों ऋणों से मुक्त न हो जाए तब तक उसे कोई बड़ी बात कहने का अधिकार ही नहीं है।इन तीनों ऋणों से छात्र-छात्राएं किसी भी तरह,कितना भी कठोर संघर्ष,महान कार्य करके उऋण हो ही नहीं सकते है।इन तीनों ऋणों का यदि उसे स्मरण रहता है तो उसमें अहंकार पनप ही नहीं सकता है।

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5.अहंकार के बारे में प्रेरक विचार (Motivational Thoughts about the Ego):

  • (1.)अहंकारी व्यक्ति अपने अहंकार में चूर होकर दूसरों को परछाई के समान तुच्छ समझता है।
  • (2.)अहंकारी व्यक्ति अहम की भाषा में सोचता है कि जो मेरी तरह से सोचे वह बुद्धिमान और जो मेरी तरह न सोचे वह मूर्ख है।
  • (3.)अभिमान से आदमी फूल सकता है पर फैल नहीं सकता।
  • (4.)जब आदमी में अहम की हवा भरती है तो वह फुटबाल की भाँति निरन्तर उछलता रहता है,पृथ्वी पर टिक नहीं सकता है।
  • (5.)अहंकारी व्यक्ति के लिए दूसरों को छोटा मानना जितना आसान है उतना अपने को छोटा समझना कठिन है।
  • (6.)अहंकार क्रोध को चला रहा है या क्रोध अहंकार को?समाधान:अहंकार क्रोध का संचालक है।
  • (7.)अभिमानी अपने अहंभाव के कारण अपने सिवा दूसरों को देख नहीं सकता है, सहन नहीं कर सकता है।
  • (8.)व्यक्ति के लिए कंचन (धन-संपत्ति) और स्त्री का छोड़ना सरल हो सकता है किन्तु अहंकार, बड़प्पन और ईर्ष्या को छोड़ना सरल नहीं है।
  • (9.)अहंकारी और अभिमानी व्यक्ति अपनी योग्यता का स्वयं बखान करता है।
  • (10.)अहंकारी व्यक्ति उस थोथे चने के समान है जिसमें सार कम है और बजता ज्यादा है।
  • (11.)अहंकार एक अग्नि है।उसमें सारा संसार जल रहा है।केवल संत पुरुष बचे हुए हैं क्योंकि उनका आधार शांति है।
  • (12.)जब व्यक्ति में महत्वाकांक्षा होती है,बड़प्पन की भूख सताती है,आकांक्षाओं की तीव्रता जागती है तब व्यक्ति का अहंकार भी आसमान को छूने लग जाता है।
  • (13.)कुछ व्यक्तियों को अपने तप,लाभ और श्रुत का गर्व होता है।मैं तपस्वी हूँ,मैं शास्त्री हूँ,बुद्धिमान हूँ।मैं अपनी बुद्धिमत्ता से दुनिया को जीत सकता हूं।
  • (14.)अहंकार पर विजय का आध्यात्मिक परिणाम-सतत अपने अस्तित्व की अनुभूति और स्मृति।
  • (15.)निरहंकारी व्यक्ति सत्य के प्रति,दूसरों के प्रति और सबसे अधिक अपने प्रति विनम्र होता है।
  • (16.)जब व्यक्ति मानता है कि अमुक वस्तुएं मेरी है तो उसे भी अभिमानी माना जाता है।उससे वह दूसरों को अपने से घटिया समझता है। उससे वह यम-नियम के विरुद्ध आचरण कर परमात्मा से दूर चला जाता है।
    -चंचल मल बोथरा (जैन तेरापंथ)
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित में महारत हासिल करने के लिए 4 सबसे अच्छे टिप्स (4 Best Tips to Mastery in Mathematics),गणित का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अहंकार का त्याग कीजिए (Give up Ego to Gain Knowledge of Mathematics) के बारे में बताया गया है।

6.क्लासिकल गणित (हास्य-व्यंग्य) (Classical Mathematics) (Humour-Satire):

  • गणित मैडम (छात्र-छात्राओं):क्या तुम बता सकते हो कि क्लासिकल गणित किसे कहते हैं?
  • एक छात्रा (बहुत भोलेपन से):जी हां,जो गणित क्लास में बैठकर की जाती है उसे क्लासिकल गणित कहते हैं।

7.गणित में महारत हासिल करने के लिए 4 सबसे अच्छे टिप्स (4 Best Tips to Mastery in Mathematics),गणित का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अहंकार का त्याग कीजिए (Give up Ego to Gain Knowledge of Mathematics) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.जीवात्मा के क्या लक्षण है? (What are the Symptoms of Soul?):

उत्तर:इच्छाश,द्वेष,प्रयत्न,सुख,दुख, ज्ञान इन छह गुणों का अनुभव करना जीवात्मा के लक्षण है।ये छह गुण निर्जीव पदार्थ में नहीं होते हैं।श्वास लेना,छोड़ना,आंखें खोलना-बंद करना,मन के द्वारा संकल्प करना,स्मृति,अहंकार करना,गति करना,इंद्रियों से काम लेना,विकार अनुभव करना,सुख-दुख,इच्छा-द्वेष,सक्रियता इन गुणों का होना आत्मा के लक्ष्मण माने जाते हैं।

प्रश्न:2.परमात्मा के होने के क्या लक्षण है? (What are the Signs of being God?):

उत्तर:स्वामी दयानंद सरस्वती कृत सत्यार्थ प्रकाश के अनुसार परमात्मा सच्चिदानंद स्वरूप,निराकार,सर्वशक्तिमान,न्या कारी,दयालु,सर्वाधार,सर्वेश्वर,सर्वव्यापक,सर्वान्तर्यामी,अजर-अमर,नित्य,पवित्र और सृष्टिकर्ता है।जबकि जीव में छह ही गुण है और वह नित्य होते हुए भी अल्पज्ञ,शरीरधारी और अल्पशक्ति वाला है।अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है और शरीर छोड़ता रहता है।

प्रश्न:3.करने योग्य कर्म का निश्चय कैसे करें? (How to Decide the Action to Do?):

उत्तर:कौन सा कर्म करना चाहिए,कौन सा नहीं करना चाहिए,इसके निर्धारण के लिए तीन बातें जानना चाहिए।कर्म करने का उद्देश्य कैसा है,कर्म करने का ढंग कैसा है और कर्म करने का परिणाम कैसा है?इन बातों से कर्म करने व न करने का निर्णय किया जा सकता है।किसी कर्म को करने का उद्देश्य, ढंग और परिणाम हानिकारक अर्थात् अशुभ हो वह कर्म नहीं करना चाहिए।इन तीनों को उचित या अनुचित को जानने का जरिया है विवेक, सद्बुद्धि।इसलिए ज्ञान प्राप्ति,विद्या प्राप्ति पर अधिक से अधिक बल दिया जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित में महारत हासिल करने के लिए 4 सबसे अच्छे टिप्स (4 Best Tips to Mastery in Mathematics),गणित का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अहंकार का त्याग कीजिए (Give up Ego to Gain Knowledge of Mathematics) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

4 Best Tips to Mastery in Mathematics

गणित में महारत हासिल करने के लिए 4 सबसे अच्छे टिप्स
(4 Best Tips to Mastery in Mathematics)

4 Best Tips to Mastery in Mathematics

गणित में महारत हासिल करने के लिए 4 सबसे अच्छे टिप्स (4 Best Tips to Mastery in Mathematics)
के आधार पर आप शिखर पर पहुंच सकते हैं।गणित में महारत तथा पारंगत होने के लिए हमने
कई आर्टिकल्स (लेख) पोस्ट किए हैं। उन आर्टिकल्स को पढ़कर संभव है कि
कुछ छात्र-छात्राएं भ्रमित हो जाएं कि किस मार्ग अथवा किन टिप्स का प्रयोग किया जाए?

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