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Why Should Students Follow Discipline?

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1.विद्यार्थी अनुशासन का पालन क्यों करें? (Why Should Students Follow Discipline?),विद्यार्थी अनुशासन का पालन कैसे करें? (How to Follow Students Discipline?):

  • विद्यार्थी अनुशासन का पालन क्यों करें? (Why Should Students Follow Discipline?) क्योंकि अनुशासन के बिना छात्र-छात्राएं छूटे साँड की तरह हो जाते हैं जिसका अपने आप पर कोई नियंत्रण नहीं होता है।
  • आजकल प्रचलित अनुशासन अब अंग्रेजी Discipline शब्द का पर्याय बन गया है।परंतु भारतीय शास्त्रों में अनुशासन का अर्थ आप्तजनों के आदेशों,उपदेशों,वचनों आदि का पालन है।
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2.अनुशासन की नजीर (Precedent of discipline):

  • दृश्य एक:अनुशासन परंपरा का जितने व्यापक क्षेत्र में विस्तार होगा,उसका उतना ही बड़ा प्रतिफल भी मिलेगा। जापान आज चोटी के देशों में से एक है।उसकी सफलता का रहस्य इसी एक उदाहरण से उद्घाटित होता है।एक बार कुछ जापानी छात्र बस छोड़कर तीन मील ऊपर पर्वत पर चढ़ रहे थे।एक अमेरिकी बस पीछे से आई।उसके एक यात्री ने छात्रों से पूछा, “आप लोगों का सामान खुला पड़ा है,कोई चौकीदार भी नहीं।”
  • छात्रों ने कहा-“जापान में कोई चोरी नहीं करता है,इसीलिए तो हमारा देश इतना प्रगतिशील है।”
    दृश्य दो:आत्मानुशासन का अर्थ है-अपने आप की पैनी समीक्षा और यदि कोई कमी दिखाई दे,तो उसे हटाने के लिए अपने साथ ही बरती गई कठोरता।
  • एक शिष्य बहुत दिन से गुरु की सेवा कर रहा था।एक दिन उसने कहा-” कोई सिद्धि सिखाइए।”
    शिष्य अनपढ़ था।उसे सिद्धि कैसे सिखाई जाय।गुरु ने झोली में से निकलकर एक डंडा दे दिया और कहा इसमें यह सिद्धि है कि किसी का अंतर्मन तुम देख सकोगे।
  • शिष्य ने डंडा ले लिया और सबसे पहले गुरु का ही अंतर्मन देखा।उसमें मक्खी-मच्छर जैसे कीड़े-मकोड़े भिन-भिना रहे थे।
    शिष्य की श्रद्धा चली गई।गुरु के भीतर तो इतनी गंदगी है।
  • अब गुरु ने कहा-“डंडे को अपनी ओर करके देख।” देखा तो सांप-बिच्छू जैसे भयंकर जीव दौड़ रहे थे।शिष्य समझ गया कि मुझसे गुरु सौ गुना अच्छे हैं।तुलना करने पर उसकी श्रद्धा वापस लौट आई।उसने सोचा मुझे पहले अपनी गंदगी मिटानी चाहिए,बाद में कहीं और देखना चाहिए।

3.अनुशासन व्यक्ति तथा समाज सभी के लिए आवश्यक (Discipline is necessary for all individuals and society):

  • अनुशासन किसी भी वर्ग,समाज,देश या संस्कृति का मेरुदंड है।समाज समग्र रूप से एक अनुशासनबद्ध तंत्र है और मनुष्य उसकी एक इकाई है।किसी भी भवन का एक भाग कमजोर हो तो वह गिर जाता है।लकड़ी में लगी घुन शहतीर को खोखला कर टूटने पर विवश करती है।सेना के सिपाही अनुशासित होकर लड़ते हैं तो शत्रुओं के छक्के छुड़ा देते हैं किंतु यदि वे अलग-अलग दाँव पेच दिखाने लगें तो मुट्ठी भर व्यक्ति उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।झाड़ू की सींके एकत्रित होकर उपयोगी होती हैं किंतु अलग-अलग होने पर उन्हें फेंक दिया जाता है।इसी प्रकार व्यक्ति कितना ही सुसंपन्न,विद्वान तथा शक्तिशाली क्यों ना हो,पर अनुशासन के अभाव में वह जंगल में घूमने वाले उच्छृंखल शेर के समान है।अतः यह कहना अनुचित न होगा कि प्रत्येक जाति,समाज तथा राष्ट्र की उन्नति की आधारशिला अनुशासन ही है।
  • अनुशासन मर्यादा पालन को कहते हैं।इसका पालन सभी के लिए अनिवार्य है।केवल मनुष्य ही नहीं अपितु समस्त सृष्टि व्यवस्था अनुशासन पर ही टिकी है।केवल मनुष्य ही नहीं अपितु समस्त सृष्टि निर्जीव विराट प्रकृति का अणु अणु अनुशासन में बंध कर ही अपना अस्तित्व बनाए हुए है।उनमें से जो भी स्वेच्छाचार बरतते हैं वे स्वयं तो नष्ट होते ही हैं दूसरों के लिए भी कष्टदायक बनते हैं।विश्व ब्रह्मांड के समस्त ग्रह नक्षत्र अपनी सूत्र संचालक आकाशगंगा से जुड़े हैं तथा आकाश गंगाएं महातत्व हिरण्यगर्भ की कठपुतलियां हैं।
  • प्रकृति के तत्व जल,अग्नि,वायु,पृथ्वी आदि जब अनुशासनहीन होते हैं तो बाढ़,अग्नि,विस्फोट,तूफान,बवंडर तथा भूकंप आदि के रूप में भयंकर प्रलयंकारी दृश्य प्रस्तुत कर देते हैं और भगवदीय व्यवस्था नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है।समाज तंत्र पर भी यही बात लागू होती है।अहंकार के वशीभूत होकर मर्यादाओं की अवहेलना कर जब मानव उसे उच्छृंखलता पूर्ण व्यवहार करता है तो अपने साथ-साथ समूह तथा समाज के विनाश का कारण बनता है।मनुष्य समर्थ है,सर्वगुण संपन्न हैं,किंतु कुसंस्कारवश उत्पन्न अनगढ़ता एवं अहमन्यता उसकी सामर्थ्य को नष्ट कर उसे निरंकुश बना देती है और वह घृणा का पात्र बन जाता है।
  • अनुशासन सामाजिक गुण है,इसे सभ्यता कह सकते हैं,किंतु आत्मानुशासन आंतरिक गुण के रूप में उभरता है,जिसे सुसंस्कारिता या संस्कृति के नाम से जाना जाता है।सभ्यता एक प्रकार का बाह्य अनुबंध है तथा संस्कृति एक प्रकार का आत्मानुशासन।इन दोनों का मूल स्रोत एक ही है।व्यक्तित्व को निखारने के लिए,मनुष्यता को पूर्ण रूप से विकसित करने के लिए दोनों गुण आवश्यक है।
  • भगवान ने मनुष्य को स्वतंत्रता दी है,किंतु धर्म धारणा ने उसे सन्मार्ग पर लाने के लिए अनुशासन के अंकुश लगाए हैं।हाथी बलिष्ठ होता है,किंतु यदि महावत का अकुंश ना हो तो वह स्वेच्छाचारी बनकर बड़े-बड़े उपद्रव उत्पन्न कर देता है,इसी प्रकार मानव पर भी उच्छृंखलता को नियंत्रित कर,आत्मिक प्रगति पथ पर बढ़ाने के लिए ऋषियों ने अनुशासन का बंधन लगाया है।देव संस्कृति की यह विशेषता अनुपम है।
  • मनुष्य को देवत्व धारण करने के लिए अनुशासन एवं आत्मानुशासन दोनों की आवश्यकता है।सभ्यता का व्यवहार आंतरिक सुसंस्कारों के बलबूते पर ही परिलक्षित होता है।सीखा हुआ शिष्टाचार थोड़ी सी प्रतिकूल परिस्थितियाँ होते ही तिरोहित हो जाता है किंतु जहां यथार्थता तथा गंभीरता होती है वहां आंधी तूफान आने पर भी सद्व्यवहार रूपी वृक्ष की जड़ें नहीं हिलतीं।बाह्य आडंबर प्रदर्शन मात्र से कोई व्यक्ति महान नहीं बन सकता,बाह्य जगत का लोकाचार आत्मानुशासन पर ही निर्भर है।बाहर से कोई कितना भी सभ्यता का प्रदर्शन करें,कितनी भी साज सज्जा से अपना श्रृंगार कर ले,किन्तु यदि उसके व्यवहार में कर्त्तव्य परायणता,सुसंस्कारिता नहीं है तो एक न एक दिन उसकी कलई खुल जाएगी।

4.आत्मानुशासन बनाम अनुशासन (Self-discipline vs discipline):

  • अनुशासन तथा आत्मानुशासन में सूक्ष्म अंतर है।अनुशासन सबको दिखाई देता है तथा अनुशासित व्यक्ति प्रशंसा के पात्र बनते हैं।यह ठीक है किंतु यह अनुशासन यदि स्वेच्छा से अपनाया जाए तो इसे आत्मानुशासन कहा जाता है।अनुशासन का पालन करने के लिए प्रशासन की ओर से नियम कानून बनाए जाते हैं।इसका उल्लंघन कर चोरी डकैती जैसे हिंसात्मक कार्य करने पर दंडित भी किया जाता है।स्कूल में अनुशासन भंग करने वाले छात्रों को स्कूल से निकाल दिया जाता है,सेना में अनुशासन का पालन न करना सबसे बड़ा अपराध माना जाता है।अतः व्यक्ति को दंड के भय से विवश होकर अनुशासन अपनाना पड़ता है,किंतु आत्मानुशासन में विवशता नहीं होती।उसे मनुष्य स्वयं ही अपनाता है।यह आंतरिक गुण है।इसके द्वारा आत्मावलोकन कर मनुष्य अपने ऊपर नियंत्रण रखता है।इसकी जानकारी केवल अपने को होती है,उसके पालन से आत्म संतोष,व्यक्तित्व का विकास तथा आत्मिक
  • उन्नति होती है।श्रेष्ठ कार्य करने का व्रत धारण करना,कोई शुभ संकल्प लेना आत्मानुशासन कहलाता है।
    आवेश में न आना,संतुलन बनाए रखना,अच्छे बुरे कार्यों पर शांतिपूर्ण विचार करना,बुरे विचारों को मन:क्षेत्र में प्रवेश न करने देना,श्रेष्ठ विचारों को अपनाना आत्मानुशासन है जो व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाता है।आत्मानुशासन को अपनाने वाले व्यक्तियों का जीवन धन्य हो जाता है।परिस्थितियों के प्रतिकूल रहने पर भी सुदृढ़ संकल्पों का पालन करने वाले विश्व विख्यात हो जाते हैं।
  • आत्मानुशासन का क्षेत्र बहुत विस्तृत है।यह एक समय साध्य प्रक्रिया है।कभी-कभी मनुष्य दुर्बुद्धिवश अथवा भ्रमवश अवांछनीय कृत्य कर बैठता है,किंतु आत्म संयम द्वारा दुर्व्यसनों से अपने को बचाकर श्रेष्ठ मार्ग पर चलना महान पुरुषार्थ है जिसके द्वारा मनुष्य ऊंचा उठ सकता है।जिस प्रकार एक माली खेत से खरपतवारों को निकाल कर बीज को खाद पानी से सींचता है,उसी प्रकार मनुष्य को भी दुष्प्रवृत्तियों का निराकरण तथा सत्प्रवृत्तियों का संवर्धन करना चाहिए तभी वह जीवन रूपी बगिया को हराभरा रख सकता है।

5.अनुशासन का अर्थ (Conclusion of the discipline):

  • जाग्रतात्माएं अपना मार्ग स्वयं बनाती हैं।विज्ञजन आत्मानुशासन द्वारा अपनी प्रतिभा,क्षमता तथा वरिष्ठता का निरंतर विकास करते हैं।ऐसे दृढ़ निश्चयी व्यक्ति दूसरों को प्रभावित कर अपनी सज्जनता से दुर्जनों को भी बदलने में सफल होते हैं।ऐसे मनुष्य भव्य मंगल स्वरूप होते हैं।वे आत्मजयी होकर विश्व विजयी बनते हैं।
  • मानव जीवन सुर दुर्लभ है।भगवान ने महानता के संस्कार प्रत्येक व्यक्ति को दिए हैं।अंतर केवल इतना है कि कौन इस धरोहर का उपयोग किस प्रकार कर सकता है? जब जंगल में उत्पन्न होने वाले छोटे-छोटे पौधे भी विशाल वृक्ष बन जाते हैं तो कोई कारण नहीं है कि मनुष्य जैसे मननशील प्राणी अपनी उन्नति न कर सकें।पुरुषार्थी अपनी सफलता का पथ स्वयं प्रशस्त करते हैं।आज के इस अनास्था के संकट के युग में यह आवश्यक है कि मनुष्य व्यक्तिगत जीवन में अनुशासन प्रिय हो और सामाजिक क्षेत्र में मर्यादाओं का पालन निष्ठापूर्वक करे।जिस पर चलकर मनुष्य देवता बन सकता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विद्यार्थी अनुशासन का पालन क्यों करें? (Why Should Students Follow Discipline?),विद्यार्थी अनुशासन का पालन कैसे करें? (How to Follow Students Discipline?) के बारे में बताया गया है।

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6.शुद्ध और अशुद्ध गणित में अंतर (हास्य-व्यंग्य) (Difference Between Pure and Applied Mathematics) (Humour-Satire):

  • अध्यापक (छात्र से):शुद्ध और अशुद्ध गणित में अंतर बताओ।
  • छात्र:सफल होने वाले छात्रों की शुद्ध गणित होती है और असफल होने वाले छात्रों की गणित अशुद्ध गणित होती है।

7.विद्यार्थी अनुशासन का पालन क्यों करें?(Frequently Asked Questions Related to Why Should Students Follow Discipline?),विद्यार्थी अनुशासन का पालन कैसे करें? (How to Follow Students Discipline?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.आधुनिक मत के अनुसार अनुशासन का क्या अर्थ है? (What does discipline mean according to modern opinion?):

उत्तर:अनुशासन वह साधन है,जिसके द्वारा बच्चों को व्यवस्था,उत्तम आचरण और उनमें निहित सर्वोत्तम गुणों की आदत को प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

प्रश्न:2.स्वतंत्रता और अनुशासन में क्या संबंध होना चाहिए? (What should be the relationship between freedom and discipline?):

उत्तर:अनुशासन स्वेच्छापूर्वक और स्वतंत्र रूप से हो और स्वतंत्रता,अनुशासन रखने में अधिक सहायक हो।दोनों सिद्धांत-स्वतंत्रता और अनुशासन,एक दूसरे के विरोधी नहीं है,वरन इन दोनों का बालक के जीवन में ऐसा अनुकूलन होना चाहिए कि ये बालक के व्यक्तित्व के विकास में इधर-उधर होने वाले स्वाभाविक प्रवृत्तियों के अनुसार हों।

प्रश्न:3.अनुशासन का संकुचित अर्थ क्या है? (What is the narrow meaning of discipline?):

उत्तर:अनुशासन का सीमित अर्थ है-दण्ड एवं दमन द्वारा बालक की इच्छा को शिक्षक की इच्छा के अनुकूल बनाना।आधुनिक युग में अनुशासन का यह अर्थ एकदम त्याज ठहराया गया है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विद्यार्थी अनुशासन का पालन क्यों करें? (Why Should Students Follow Discipline?),विद्यार्थी अनुशासन का पालन कैसे करें? (How to Follow Students Discipline?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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