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Why Do Children Become Criminals?

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1.बच्चे अपराधी क्यों बनते हैं? (Why Do Children Become Criminals?),युवा अपराध क्यों करते हैं? (Why Do Youth Commit Crime?):

  • बच्चे अपराधी क्यों बनते हैं? (Why Do Children Become Criminals?) इसका कोई एक कारण नहीं,वरन उनके जीवन से संबंध रखने वाली अनेक बातें हैं जो बच्चों को अपराध की ओर प्रवृत्त करती है।बालक के अपराधों के लिए समाज का वह संपूर्ण ढाँचा ही उत्तरदायी है,जिसमें बच्चों का व्यक्तित्त्व ढलता है।समाज की जैसी हवा बच्चों को लगती है,उसका वैसा ही प्रभाव उसके जीवन पर अंकित हो जाता है।
  • बालकों के जीवन में बढ़ती जा रही हिंसा,क्रूरता,आवारागर्दी एवं नशेबाजी आज एक विश्वव्यापी समस्या बन गई है।बच्चों द्वारा किए जा रहे अपराध इस तरह बढ़ रहे हैं कि उनका अनुमान लगा सकना किसी के लिए भी कठिन नहीं है।
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2.माता-पिता का व्यवहार (Parental Behavior):

  • बच्चे का प्रथम संपर्क माता-पिता से होता है।उसमें अपराधी प्रवृत्ति का बीज बहुत कुछ उसके गर्भस्थ जीवन में ही जम जाता है,जब माता-पिता अनैतिक जीवन बिताते हैं।शराब अथवा किसी अन्य में संभोग करने पर पैदा होने वाले बच्चों में पैदायशी अवगुण आ जाते हैं।जैसे शरीरगत दोष कोढ़,क्षय और बीमारियां वंश परंपरागत चलती हैं,उसी तरह बच्चों के मानसिक संस्थान की बनावट में भी वंशानुक्रम का बहुत कुछ हाथ होता है।
  • गर्भकाल में मां का जैसा जीवन क्रम,मनोभाव होता है,उसकी सूक्ष्म छाप बच्चे पर अवश्य पड़ती है।यही कारण है कि गर्भकाल में जिन स्त्रियों में उत्तेजना,क्रोध के आवेश अधिक आते हैं,उनके बच्चों का स्वभाव भी उत्तेजक क्रोधी बन जाता है।इसमें कोई संदेह नहीं की बहुत से बच्चों के अपराधी जीवन के पीछे उनके मां-बाप का चरित्र मुख्य होता है।
  • पैदा होने के बाद घरवालों के व्यवहार पर बच्चों का जीवन बहुत कुछ निर्भर करता है।कई बार वे अपने अभिभावक,माता-पिता,अध्यापक आदि के कठोर व्यवहार के कारण अपराधी बन जाते हैं।ऐसी स्थिति में दूसरों को तंग करने में परेशान करने में उन्हें प्रसन्नता होने लगती है।वे अपने से बड़ों की आज्ञा का उल्लंघन करके,उनकी इच्छा के विरुद्ध आचरण करके उन्हें तंग करने में गर्व अनुभव करते हैं,जो आगे चलकर उनकी आदत में आ जाता है।ये ही बच्चे अपने छोटे भाई-बहन या दूसरे बच्चों को मारने पीटने में संतोष अनुभव करते हैं।
  • बच्चों से सख्ती से दबाने पर या उनकी आलोचना करने पर वे बुराई के प्रति अधिक आग्रही बन जाते हैं।अभिभावकों के कटु वचन भी बच्चों में कितना स्थायी प्रभाव पैदा कर देते हैं,इसका उदाहरण प्रस्तुत है।एक 11-12 वर्ष का बहुत ही सच्चरित्र बच्चा था,जो अपने पिता के एक ही वाक्य से बिल्कुल बदल गया।शाम को पिता घर आया।पिता का स्वभाव काफी चिड़चिड़ा हो रहा था।उसने देखा बच्चा पढ़ने के समय आराम कर रहा है।पूछने पर दूसरे लड़के ने बताया, “उसकी तबीयत खराब है,इसलिए आराम कर रहा है।” पिता ने गुस्से में कहा:”झूँठ बोल रहा है।” बस इसी बात की प्रतिक्रिया बच्चे पर ऐसी हुई कि उस दिन से उसका जीवन ही बदल गया।उसने कहा, “मैं बहानेबाज हूं,झूठा हूं,अब ऐसा ही करूंगा।” वह अकर्मण्य,आलसी बन गया।सारे दिन ताश खेलने लगा।पढ़ना-लिखना सब छोड़ दिया।
  • एक अन्य उदाहरण है जिसमें पिता द्वारा पीटकर घर से बाहर निकाल दिए गए एक बच्चे ने आवारा जीवन बिताना शुरू कर दिया।यह विचारणीय है कि उसे दूसरों को पीटने में,अपमानित करने में अधिक आनंद आता था।
  • किसी भी तरह से दुर्बल मां-बाप जो अपने बच्चों पर भली प्रकार नियंत्रण नहीं कर पाते,उनके बच्चे बिगड़ जाते हैं।अक्सर देखा जाता है कि गूंगे,बहरे,अंधे,अपाहिज,निर्धन मां-बाप की संताने प्रायः बिगड़ जाती हैं क्योंकि वे अपने बच्चों पर भली प्रकार नियंत्रण और उनका संरक्षण नहीं कर पाते।जो मां-बाप दिनभर अपने काम-धंधे में ही उलझे रहते हैं,बच्चों के जीवन में कोई दिलचस्पी नहीं रखते,उनके बच्चे बहुधा पथभ्रष्ट हो जाते हैं,क्योंकि बच्चों में उछल कूद की प्रवृत्ति होती है,जब उसे सही दिशा नहीं मिलती तो वह गलत दिशा में प्रवृत्त हो जाते हैं।ऐसे नेता,सार्वजनिक कार्यकर्ता जो अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते,उनके बच्चे भी आवारा बन जाते हैं।आधुनिक युग की औद्योगिक सभ्यता ने जहाँ बच्चों और अभिभावकों के परस्पर संपर्क को कम कर दिया है,वहाँ बाल अपराधों की संख्या ने भी कम वृद्धि नहीं की है।

3.बाल अपराध का कारण पारिवारिक वातावरण (Causes of Juvenile Delinquency:Family Environment):

  • माता-पिता के पारस्परिक झगड़े-दुर्व्यवहार के कारण भी बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।मां-बाप का कलहपूर्ण जीवन,चारित्रिक दोष,बच्चों को अपराधी बनाने के प्रमुख कारण हैं।पारिवारिक उथल-पुथल,कहल,दुर्व्यवहार आदि बच्चों के मानस संस्थान पर बुरा प्रभाव डालते हैं और वे गलत मार्ग अपनाते हैं।जिस परिवार के लोग एक स्थान छोड़कर दूसरा स्थान,एक घर छोड़कर दूसरा घर बदलते रहते हैं,उनके बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है,उनके जीवन में अस्थिरता आ जाती है।दूसरों के प्रति ममता,मित्रता एवं अपनेपन की भावना नष्ट एवं शिथिल हो जाती है।इससे उनमें एकाकीपन,स्वार्थपरता एवं उदासीनता की वृत्तियाँ उभर आती हैं।
  • बहुत से बच्चे निराश होकर तब अपराधी बन जाते हैं,जब उनकी अपनी सीमा से बढ़ी हुई महत्वाकांक्षाएं पूरी नहीं होतीं।प्यार के स्थान पर बच्चों को फटकारना,स्वयं बच्चों के जीवन में दिलचस्पी न लेकर उसे दूसरों पर छोड़ देना,अभिभावकों द्वारा उनके प्रति मनोरंजन,स्नेह का अभाव होना ऐसी कई बातें हैं,जिनसे वे अपराधी प्रवृत्तियों में लग जाते हैं।
  • घर ही बच्चे की प्रथम पाठशाला है और घर के सदस्यों का व्यवहार ही उनका पाठ्यक्रम है।परिवार में जैसी प्रेरणाएँ बच्चे को मिलती हैं,वैसा ही वह बन जाता है।बच्चों को बुराई की ओर प्रवृत्त करने तथा अपराधी जीवन बिताने के लिए बुरे साथी और कई सामाजिक बुराइयां भी कम उत्तरदायी नहीं है।
  • स्मरण रहे,बच्चों को गड्ढे में गिरने वाला,पतित करने वाला,अपराधी बनाने वाला,सर्वप्रथम बुरा साथ ही मुख्य होता है।माता-पिता,रिश्तेदार,भाई-बहन कोई भी हो सकते हैं जो बच्चों को बुराई की ओर प्रवृत्त करते हैं।सबसे पहले बच्चों को बिगड़ने के लिए घर में ही बुरा साथ मिलता है,उसके बाद फिर पड़ोस,स्कूल और घर से बाहर।स्मरण रहे कि कई बुरी आदतों,कामवासना संबंधी बुराइयों का प्रारंभ प्रायः बुरे साथ से ही होता है।
  • अभिभावकों को इतना तक ध्यान नहीं रहता कि उनके बच्चे किनके साथ उठ-बैठ रहे हैं,किनके साथ खेलते हैं।कितना भी होनहार बालक क्यों ना हो,बुरे संग में पड़कर वह भी पतित हो जाता है।बच्चों का ग्रहणशील किंतु विवेकहीन मस्तिष्क शीघ्र ही बुराइयों की ओर आकर्षित हो जाता है।बच्चों में बुराइयों की जड़ अधिकतर बुरे साथियों से ही जमती है।

4.टीवी,उपन्यास और सिनेमा की भूमिका (The Role of TV Novels and Cinema):

  • बच्चों को बिगाड़ने में कई सामाजिक बुराइयों का भी काफी महत्त्व होता है।इनमें गंदे सिनेमा,दूषित अश्लील साहित्य,गलत सामाजिक मान्यताएं,परंपराएं आदि मुख्य हैं।सिनेमा का बच्चों की भावनाओं को दूषित कर उन्हें बुराइयों की ओर प्रवृत्त करने में बड़ा हाथ है।सिनेमा बाल-अपराध का एक बहुत बड़ा कारण है।यहाँ तक कि धार्मिक फिल्मों में भी अश्लीलता,अशिष्टता की बहुतायत होती है।तथाकथित सामाजिक चलचित्र तो और भी गए बीते होते हैं।इनसे बच्चों में अपराध प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है।
  • अतः बाल अपराधों को मिटाने के लिए अन्य उपायों के साथ-साथ चलचित्रों पर काफी कड़ाई बरतनी चाहिए।ऐसी फिल्में जिनमें काम,प्रेम,अश्लील,अर्द्धनग्न,भड़कीली वेशभूषा,हाव-भाव,तड़क-भड़क की प्रधानता होती है,बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालती हैं।बच्चे भी वैसा ही करने लगते हैं और इस अभ्यास में उन्हें अपराधी जीवन का मार्ग अपनाना पड़ता है।इसमें कोई संदेह नहीं की अधिकांश फिल्मों का प्रभाव बच्चों में वासनामय जीवन का सूत्रपात कर देता है।
  • गंदे उपन्यास,कहानियाँ,भद्दी तस्वीरें बच्चों की अपराध प्रवृत्तियों को जगाते हैं,बुद्धि तथा चरित्र को भ्रष्ट करते हैं।वस्तुतः बच्चों को अपराध की नियमित शिक्षा गंदे साहित्य से ही मिलती है।सिनेमा में दिखाई जाने वाली हिंसात्मक,क्रूर,अश्लील घटनाएं बच्चों को अपराधी बनाने के लिए बहुत कुछ उत्तरदायी हैं।
  • इसके अलावा आजकल पोर्न वेबसाइट्स,इंटरनेट,सोशल मीडिया,वीडियो,वीडियो गेम्स आदि पर अश्लीलता और गंदी प्रवृत्तियों को देखकर भी अपराध की ओर प्रवृत्त होते हैं।

5.समाज का विकृत दृष्टिकोण (Distorted View of Society):

  • हमारे समाज का संकीर्ण दृष्टिकोण जिसके अनुसार कोई बच्चा तनिक सी गलती कर बैठे तो फिर उसे बुरा मान लिया जाता है,उसके प्रति बुरी धारणा बना ली जाती है और बात-बात में उसे अपमानित किया जाता है,इससे भी बहुत से बच्चे अपराधी जीवन की ओर प्रेरित हो जाते हैं।भूल करना मनुष्य का जन्मजात स्वभाव है।प्रारंभ में की गई गलतियों को भूलाकर बच्चों के प्रति सौम्य व्यवहार रखने पर वह सुधर सकते हैं।
  • बहुत से बच्चे अपने आपमें अपराधी नहीं होते,वरन एक अपराधी बच्चों के समुदाय की प्रेरणा अथवा दबाव से गलत कार्य करते हैं।प्रत्येक स्थान पर ऐसे बच्चों का एक समूह आवश्यक होता है जो अन्य सीधे-सादे,सरल स्वभाव वाले बच्चों को बहला-फुसलाकर या धमकाकर बुरे कर्मों की ओर प्रेरित करता है।

6.शिक्षा संस्थानों का वातावरण (Environment of Educational Institutions):

  • बहुत सी शिक्षा संस्थानों में अध्यापक के गलत आचरण के कारण भी बच्चों में बुराइयाँ पैदा हो जाती हैं।जो अध्यापक बच्चों के समक्ष धूम्रपान करते हैं,ताश,चौपड़ आदि खेलते हैं,अपने मित्रों के साथ गपशप और अश्लील बातें करते हैं,उनसे बच्चे क्या सीख सकते हैं?इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
  • इसमें कोई संदेह नहीं कि अपने शिक्षकों की नकल करके बच्चे भी वैसा ही करने का प्रयत्न करने लगते हैं।बहुत से अध्यापक बच्चे को किसी शारीरिक या मानसिक कमजोरी को महत्त्व देकर उन्हें तिरस्कृत करते हैं।परिणाम यह होता है कि बालक के मन में एक तीव्र प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है और वह गलत कार्यों,बुराइयों में फूट निकलती है।बच्चा स्कूल में केवल ज्ञान ही प्राप्त नहीं करता,वरन उस चरित्र और आदर्श को भी ग्रहण करता है जो अध्यापकों और अपने सहकर्मियों के जीवन से उसे मिलता है।यही कारण है कि बहुत से बच्चे जो प्रारंभ में बहुत ही भले होते हैं,स्कूल-कॉलेजों में जाने के बाद बिगड़ जाते हैं।

7.बच्चों को अपराधी बनने से बचाने के उपाय (Ways to Protect Children from Becoming Criminals):

  • वस्तुतः अपरिपक्व उम्र में बच्चों में चतुरता,संवेदनशीलता एवं ग्रहणशीलता इतनी अधिक होती है कि वह माता-पिता की प्रत्येक हरकत को बड़े गौर से देखता है कि वे क्या कर रहे हैं और फिर स्वयं भी वैसी ही चेष्टाएं करके दिखाता भी है।कभी-कभी आरंभ में वैसी रुचि भले ही प्रदर्शित ना करें,तो भी उसके अंतर्मन में वैसी ग्रंथियां बन जाती है जो अवस्था के साथ विकसित होकर स्वभाव में परिवर्तित हो जाती है।
  • अतः अपने घर का वातावरण और बालक के प्रति व्यवहार यदि ठीक कर लिया जाए तो बालक को 90% तक अपराधी प्रवृत्ति से बचाया जा सकता है।बच्चे को कुसंग से बचाकर सिनेमा के स्थान पर सत्साहित्य का अध्ययन अथवा ओर कोई रचनात्मक आदत डालकर सुधारा जा सकता है।अपने उत्तरदायित्वों का समुचित पालन न करने से लोग स्वयं ही अपने बालकों को अपराधी बनाते हैं।सुधार का श्री गणेश अपने आप से किया जाना चाहिए।
  • स्मरण रहे वातावरण के विपरीत कोई भी शिक्षा बच्चों के गले नहीं उतारी जा सकती।अभिभावकों को चाहिए कि अच्छे काम करने वाले बच्चों की प्रशंसा करने में कंजूसी ना बरतें।बालक तो बालक ही है यदि कोई गलती करता भी है तो उसे बड़े स्नेह-सद्भाव के साथ समझा-बुझाकर दूर किया जाए।लाड़-प्यार की भी अपनी सीमा है।अच्छा तो यही रहता है की छोटी उम्र के बच्चों को शालीनता,सज्जनता और सुसंस्कारिता का शिक्षण घर-परिवार के परिकर में ही पूरा करा दिया जाए।
    घर परिवार में माता-पिता को निम्नलिखित कार्य करने चाहिए:
    (1.)बच्चों में महानता के बीज बोएँ।
    (2.)चरित्र का विकास करें।
    (3.)धर्म मार्ग की ओर अग्रसर करें।
    (4.)ज्ञान वृद्धि करें।
    (5.)सद्गुण बढ़ाएं।
    (6.)क्रियाशील रखें।
    (7.)व्रतशील बनाएं।
    (8.)जीवन को नियमित बनाएं।
    (9.)आज्ञा पालन की शिक्षा दें।
    (10.)निर्भीक और साहसी बनाएं।
    (11.)अपना आदर्श उपस्थित करें।
    (12.)आत्मनिर्भर बनाएं।
    (13.)समस्याओं को स्वयं सुलझाने दें।
    (14.)घरेलू वातावरण को पवित्र रखें।
    (15.)निंदा नहीं,प्रशंसा करें।
    (16.)प्रबल इच्छाओं की पूर्ति में बाधा ना डालें।
    (17.)काम प्रवृत्ति को रोकें।
    (18.)चरित्र निर्माण के लिए कथाओं का माध्यम अपनाएं।
    (19.)हीनता की भावना न भरें।
    (20.)बच्चों को पीटे नहीं।
    (21.)अनुचित आदतें पनपने ना दें।
    (22.)बुरी संगत से दूर रखें।
  • जन्म देने से कोई भी बच्चा अपराधी प्रवृत्ति का नहीं होता।बच्चों की मूल भावनाओं में पवित्र और अपवित्र होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता।सामाजिक,पारिवारिक परिस्थितियों को देखकर ही उसकी मनःस्थिति विनिर्मित होती चली जाती है।अतः  बच्चों को केवल खिलाने-पिलाने या शिक्षा दिलाने में ही अभिभावकों को अपना कर्त्तव्य पूरा न समझकर उन्हें समस्त कुटेवो से भी बचाए रखना चाहिए।जन्म देने वाले जितने सुसभ्य एवं सुसंस्कृत होंगे,संताने भी उसी साए में ढलती चली जाएँगी।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में बच्चे अपराधी क्यों बनते हैं? (Why Do Children Become Criminals?),युवा अपराध क्यों करते हैं? (Why Do Youth Commit Crime?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:How to Protect Children from Dangers?

8.छात्रा के खुश होने का कारण (हास्य-व्यंग्य) (Reason for Student’s Happiness) (Humour-Satire):

  • दामिनी:पापा आज मैं बहुत खुश हूं क्योंकि पूरी कक्षा आज मेरे ही नाम का जाप कर रही थी।
  • पापा:अच्छा पर इसका कारण क्या है?
  • दामिनी:अपनी कक्षा में सिर्फ मुझे ही गणित में जीरो अंक प्राप्त हुआ है।

9.बच्चे अपराधी क्यों बनते हैं? (Frequently Asked Questions Related to Why Do Children Become Criminals?),युवा अपराध क्यों करते हैं? (Why Do Youth Commit Crime?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.बाल अपराध को सरकारें क्यों नहीं रोक पाती? (Why Can’t Governments Stop Juvenile Crime?):

उत्तर:जब बच्चों के अधिक निकट सम्पर्क में रहनेवाले माता-पिता और अभिभावकगण ही उन्हें नहीं जान पाते कि वे कहां जा रहे हैं,क्या कर रहे हैं? तो फिर सरकारें क्या जानेंगी? वह तो गिनी चुनी घटनाओं को जो प्रकट हो चुकी हैं,उन्हीं तथ्यों का पता लगा पाती हैं।

प्रश्न:2.अधिकांश बच्चों का चरित्र कैसा है? (What is the Character of Most Children?):

उत्तर:आज बच्चों के आचार-विचार रहन-सहन,बोलचाल,व्यवहार में तरह-तरह की बुराइयां घर करती जा रही हैं जो देश की भावी पीढ़ी को पतनोन्मुख दिशा को सूचित करती है।गांव से लेकर शहर के विद्यार्थियों तक में उद्दंडता,उच्छृखलता और अनुशासनहीनता आज बिल्कुल सामान्य सी बात हो गई है।उनके चरित्र की झांकी लें तो छुटपन से ही अश्लिलताओं,वासनाओं,दुर्व्यसनों की दुर्गंध ही उड़ती दिखाई देगी।अपराधी बालको ने आज सारे समाज को ही कलंकित करके रख दिया है।न अभिभावकों के प्रति सम्मान और श्रद्धा है,न समवयस्कों के साथ स्नेह और सहयोग।अध्यापक और बाजार में बैठे हुए दुकानदार उनके लिए समान महत्त्व रखते हैं।

प्रश्न:3.अपराधी बच्चों को सुधारना मुश्किल क्यों है? (Why are Delinquent Children so Hard to Reform?):

उत्तर:परिपक्व व्यक्ति की मानसिक स्थिति का अनुमान करना आसान होता है।अतः उन्हें दंड से या शिक्षा से भी सुधारा जा सकता है,किंतु बाल-अपराधों का सही कारण ज्ञात करना भी कठिन पड़ता है।ऐसी दशा में समस्या अधिक दुरूह और गंभीर होती चली जाती है।
पास-पड़ोस,स्कूल,मित्र,सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियाँ सहयोग तो देती हैं,किंतु अपराधों का मूल कारण उनके परिवार वालों का रहन-सहन और उनकी आदतें ही होती है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा बच्चे अपराधी क्यों बनते हैं? (Why Do Children Become Criminals?),युवा अपराध क्यों करते हैं? (Why Do Youth Commit Crime?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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