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To Avoid Frustrated in Failure

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1.असफलता में हताश होने से बचें (To Avoid Frustrated in Failure),छात्र-छात्राएँ असफलता में निराश होने से कैसे बचें? (How Do Students Avoid Being Disappointed in Failure?):

  • असफलता में हताश होने से बचें (To Avoid Frustrated in Failure) क्योंकि हताश,निराश होने तथा शोक व चिन्ता करने से सिवाय दुःख के मिलता भी क्या है? असफलता हमें तभी मिलती है जब हम किसी भी कार्य को आधे-अधूरे मन से,संशयग्रस्त मनोवृत्ति और उच्चाटन के साथ करते हैं।यदि अध्ययन कार्य,परीक्षा की तैयारी अथवा अन्य कार्य को आत्म-विश्वास,एकाग्रचित्त होकर और पुरुषार्थ करने में कोई कसर बाकी न छोड़ें तो सफल हो ही जाते हैं।
  • भरपूर प्रयास करने पर भी सफलता न मिले तो निराश व हताश होने के बजाय यह चिंतन व विचार करने की आवश्यकता है कि भूल-चूक कहाँ हो रही है जिसके कारण सफलता नहीं मिल पा रही है।भूल-चूक की पहचान करके उसमें सुधार कर लेना चाहिए और पुरुषार्थ करना जारी रखना चाहिए।तिलों में से ही तैल निकलता है परंतु तिलों में से तैल भी उचित उपाय और प्रयत्न किए बिना नहीं निकलता है।
  • दरअसल पूर्व काल में शुभ का प्रभाव (फल) अनुकूल होने से थोड़े से प्रयास से ही सफलता मिल जाती है जबकि भूतकाल (पूर्वकाल) में किए गए अशुभ कर्मों के विपरीत फल (प्रभाव) होने से वर्तमान काल में भरपूर प्रयत्न करने पर भी सफलता नहीं मिलती है।
  • विवेक,धैर्य और साहस के साथ प्रयत्न करना जारी रखना चाहिए क्योंकि भगवान भी पुरुषार्थी व्यक्ति की सहायता करता है।भगवान् की शक्ति तो हमेशा आत्मा (चेतनशक्ति) के रूप में हमेशा मौजूद रहती है परंतु चेतनशक्ति की मदद व सहयोग पुरुषार्थ करने पर ही मिलती है।आलसी,अकर्मण्य और निकम्मे व्यक्ति की चेतन शक्ति सुप्त पड़ी हुई रहती है।अतः छात्र-छात्राओं को किसी भी दशा में,किसी भी स्थिति में और कितनी प्रतिकूल स्थिति में हताश व निराश नहीं होना चाहिए।
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2.निराशा व हताशा का कारण है (Cause of Disappointment and Frustration):

  • निराशा व हताशा का सबसे मूल कारण है कि युवावर्ग डिग्री (बीएससी,एमएससी,बीए,एमए इत्यादि) में अधिक अंक प्राप्त करने के बावजूद बेरोजगारों की कतार में खड़ा हो जाता है।यह कतार प्रतिवर्ष लंबी होती जाती है।यह बेरोजगारी युवावर्ग को निराशा व हताशा के गड्ढे में पटक देती है।कोई भी छात्र-छात्रा डिग्री हासिल करने के बाद यही सोचता है कि उसने अपने कर्त्तव्य को पूरा कर दिया है अब समाज व सरकार का दायित्त्व है कि वे उसे रोजगार के साधन उपलब्ध कराएं।
  • जब उसे रोजगार प्राप्त नहीं होता है तो उसे हताश व निराश होना पड़ता है कुछ तो राष्ट्र तथा समाज विरोधी तेवर अपना लेते हैं और कुछ छात्र-छात्राएं अपराध जगत की ओर अपने कदम बढ़ा देते हैं।
  • बेरोजगार छात्र-छात्रा इस बात पर विचार-चिन्तन नहीं करता है कि उसने रोजगार प्राप्त करने योग्य,कोई छोटा-मोटा धंधा करने योग्य शिक्षा अर्जित नहीं की है।यदि कुछ छात्र-छात्राओं को उसको उसकी शिक्षा और डिग्री के बेकार होने का एहसास है अथवा उन्हें एहसास कराया जाता है कि उसने रोजगार पाने योग्य डिग्री हासिल नहीं की है तो वे यही सवाल उठाते हैं कि उन्हें ऐसी शिक्षा दिलाई ही क्यों गई?
  • वस्तुतः जो सामान्य शिक्षा छात्र-छात्राओं को (बीए,एमए,बीएससी,एमएससी इत्यादि) दी जाती है उसका सीधा सम्बन्ध हुनर तथा कौशल से नहीं है।सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोजगार प्राप्त करने के सीमित अवसर (नौकरियां) हैं और एक तरफ सामान्य शिक्षा प्राप्त युवाओं की पूरी फौज खड़ी है।
  • हुनर व तकनीकी सिखाने अर्थात् व्यावसायिक शिक्षा के अच्छे संस्थान हैं भी तो वे सीमित मात्रा में है और उपलब्ध हैं तो (अच्छे संस्थान) केवल महानगरों तथा बड़े शहरों में हैं जिनका लाभ केवल गिने-चुने छात्र-छात्राएं ही उठा सकते हैं।
  • निराशा व हताशा का दूसरा कारण है युवावर्ग में नैतिक व चारित्रिक शिक्षा का अभाव।आधुनिक शिक्षा में नैतिक व चारित्रिक शिक्षा बिल्कुल नहीं दी जाती है इसलिए उनके व्यक्तित्त्व का समुचित विकास नहीं हो पाता है।वर्तमान शिक्षा न उनके ओढ़ने के काम आती है और न बिछाने के।
  • भौतिक शिक्षा में कई छात्र-छात्राएं अवांछनीय हरकतें सीखते हैं जैसे चोरी,डकैती,झूठ,फरेब,अपराध,हत्या,कालाबाजारी,गुंडागर्दी,लूटपाट इत्यादि।ये सभी हरकतें इस बात का प्रमाण हैं कि आज का युवावर्ग दिग्भ्रमित है और हताश,निराश व कुण्ठाग्रस्त है।
  • हताशा व निराशा का तीसरा कारण है कि पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव,आधुनिक जीवन शैली और सुविधा भोगी मनोवृत्ति।आज के युवा अध्ययन के लिए अधिक से अधिक भौतिक सुख-सुविधाओं की चाहत रखते हैं और उपभोग करते हैं।इन सुख-सुविधाओं की जहाँ जरूरत नहीं है वहां भी सुख-सुविधाओं का प्रयोग करते हैं।जैसे किसी मित्र का घर 500 मीटर दूरी पर है परन्तु उससे मिलने भी जाएंगे तो मोटरसाइकिल पर सवार होकर।होना तो यह चाहिए कि जहाँ सुख-सुविधाओं की जरूरत है वहाँ भी सुख-सुविधाओं का भोग त्याग की भावना के साथ करें,उसमें लिप्त होकर नहीं ताकि सुख-सुविधाओं का भोग करने में अति न की जा सके।
  • चौथा कारण है आज के छात्र-छात्राओं में तप (पुरुषार्थ) और साधना का अभाव।तप (पुरुषार्थ) और साधना से छात्र-छात्राओं का व्यक्तित्त्व निखरता व उभरता है जिससे न केवल वे जीवन में आनेवाली कठिनाइयों,विघ्न,बाधाओं का सामना करने के योग्य बनते हैं बल्कि जीवन की वास्तविकताओं,कठोर सच्चाइयों,व्यावहारिकता का मुकाबला करने की कला सीखते हैं।

3.हताशा व निराशा से कैसे बचें? (How to Avoid Frustration and Disappointment?):

  • यदि छात्र-छात्राओं को असफलता मिलती है तो उससे हताश व निराश होने के बजाय पुनः प्रयत्न करने में जुट जाना चाहिए।जो छात्र-छात्राएं प्रयत्न और पुरुषार्थ का महत्त्व समझ लेते हैं वे कभी निराश व हताश नहीं होते हैं।लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न के बाद अगला प्रयत्न जारी रहना चाहिए।भले ही उसे लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती हो परन्तु उसके मन में आशा का संचार रहता है।जब मन में आशा और उमंग रहती है तब तक कोई भी हताश और निराश नहीं होता है।
  • वस्तुतः लगातार असफलता मिल रही हो तब भी आशान्वित होकर लगातार प्रयत्न करते रहना चाहिए क्योंकि पता नहीं कौनसे प्रयास में हमारे भाग्योदय होना छिपा हुआ है।
  • अब्राहम लिंकन को जीवन में अनेक असफलताओं का सामना करना पड़ा।जो भी कार्य किया उसमें ही असफलता हाथ लगी परंतु फिर भी वे हताश व निराश नहीं हुए,लगातार पुरुषार्थ करते रहे।जीवनयापन के लिए एक दुकान में नौकरी की तो दुकान में घाटा हो गया।एक मित्र से साझे में दुकान खोली तो दुकान ही डूब गई।वकालत की डिग्री ली और जब वकालत प्रारंभ की तो वकालत नहीं चली।चार बार चुनाव लड़े और हर बार चुनाव में हार गए।जिस स्त्री से शादी की उससे विचार नहीं मिले और हमेशा गृह क्लेश रहता था क्योंकि उनकी पत्नी कर्कशा और कठोर स्वभाव की थी।लेकिन अब्राहम लिंकन ने सहनशीलता से उसे काफी हद तक निभाया।जीवन में एक बार उन्हें सफलता मिली जब वे अमेरिका के राष्ट्रपति बने।इस एक सफलता ने उन्हें महामानव बनने का अवसर प्रदान किया।यदि असफलताओं सेे वे निराश और हताश होकर बैठ जाते तो इस अवसर को गंवा बैठते।राष्ट्रपति बनकर उन्होंने काले-गोरों का भेद मिटाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और अमेरिका को अग्रिम पंक्ति में खड़ा करने के लिए अतुलनीय योगदान दिया।
  • अपना दृष्टिकोण को विस्तृत करो उसे संकुचित मत रखो।अपने दृष्टिकोण को विस्तृत होने के लिए अपने अंदर के व्यक्तित्त्व को मजबूत और विशाल बनाना होता है।विशाल और मजबूत व्यक्तित्त्व से जीवन में जटिल से जटिल समस्याओं और असफलताओं का डटकर सामना किया जा सकता है।
  • हमारी मानसिकता जब ऐसी होती है कि यह लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे तो जीवन सफल हो जाएगा।फला वस्तु प्राप्त कर लेंगे तो आनंद आ जाएगा।इस प्रकार की दृष्टि हमारे नजरिए को संकुचित बनाती है।संसार में अनेक लक्ष्य भरे पड़े हैं।एक या दो लक्ष्य में असफलता मिलने का अर्थ यह नहीं है कि हमारे सारे रास्ते बंद हो गए हैं।
  • अपने जीवन को आशावादी बनाएं परन्तु आशावादी होना भी एक साधना है।यदि आशावादी होना इतना सरल होता तो किसी के जीवन में निराशा का प्रवेश नहीं होता।श्रीकृष्ण भगवान सभी को इकट्ठा करके कहते कि सभी आशावादी और ज्ञानी बन जाओ और पलक झपकते ही ऐसा हो जाता परंतु आशावादी होने के लिए एक खास नजरिया विकसित करना पड़ता है।
  • वस्तुतः लक्ष्य प्राप्ति का ही अपने आपमें महत्त्व नहीं होता है।यह ठीक है कि लक्ष्य प्राप्ति हमारे जीवन को रोचक और खुशनुमा बना देती है परंतु आत्मिक आनन्द तो पूर्ण निष्ठा के साथ किए गए प्रयासों में निहित है।हमें छोटा सा लक्ष्य भी अथक प्रयासों से मिलता है तो उसमें स्थायी सुख-शांति मिलती है जबकि थोड़े से प्रयास से बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल हो जाती है उसमें सुख-शान्ति नहीं मिल पाती है।
  • उदाहरणार्थ महान् वैज्ञानिक और गणितज्ञ आर्किमिडीज ने सोने की शुद्धता की खोज करने के लिए सुख-चैन भूल गए और एक दिन तालाब में नहाने के लिए कूदते समय उस रहस्य का पता लगा लिया और वे इसी खुशी में नंगे ही साइराक्यूज की सड़कों पर यह कहते हुए दौड़ पड़े कि यूरेका!यूरेका! अर्थात् मैंने पा लिया।हमारे अंदर हौसला और किसी कार्य को करने की उत्कण्ठा रहती है तब तक हताशा और निराशा प्रवेश नहीं कर सकती है।

4.हताशा और निराशा के मुख्य बिंदु (Key Points of Frustration and Disappointment):

  • (1.)आशाभरी बातें सुख-सफलता मिलने पर ही दिखाई दे यह आवश्यक नहीं है बल्कि आशान्वित होना उस समय ही सबसे ज्यादा जरूरी होता है जब चारों ओर रास्ते बंद दिखाई देते हैं और निराशा के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता क्योंकि घोर अंधेरे के बाद ही प्रकाश का उदय होता है।
  • (2.)मन में यदि निराशा,हताशा और उदासी से भरी बातों का चिंतन करेंगे तो उसका प्रभाव हमारी कार्य प्रणाली व जीवन शैली पर भी दिखाई देता है।हमारी कार्य क्षमता घट जाती है और फिर परिणाम भी अच्छे नहीं मिलने वाले हैं।
  • (3.)आप केवल मन और शरीर ही नहीं है बल्कि मन से ऊपर आत्म स्वरूप हैं।इसलिए मन को विवेक और आत्मिक शक्ति से नियंत्रण में रखें।अपने मन के गुलाम नहीं बल्कि मालिक बनें।सफल और सुखी जीवन के लिए आशावादी विचार रखना जरूरी है।सदा निराश,हताश रहने की आदत से छुटकारा पाने के लिए शरीर,मन और आत्मा में तालमेल रखें और उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास करें।
  • (4.)किसी विचारक ने कहा है कि निराशा का गहरा धक्का मस्तिष्क को वैसे ही शून्य बना देता है जैसे लकवा शरीर को।निराशा और हताशा से अनेक मानसिक व शारीरिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
  • (5.)मन को उत्साहित और खुशी से भरने के लिए जो कुछ करना पड़े वह कीजिए।जैसे प्रार्थना,भगवान पर विश्वास,अपनी अटूट आत्मशक्ति पर विश्वास,स्वसंकेत (autosuggestion),ध्यान,योग इत्यादि।
  • (6.)मन में निराशा,हताशा जैसे नकारात्मक विचारों के स्थान पर खुशी,उत्साह,उमंग,जोश जैसे सकारात्मक विचारों को धारण करने की कोशिश करें।

5.निराशा व हताशा से मुक्ति का दृष्टान्त (A Vision of Freedom from Despair and Frustration):

  • एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक थे।उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल चुकी थी।एक दिन एक युवती उनके पास आयी और बोली उसे सिरदर्द और चक्कर आने के कारण जीना मुश्किल हो गया है।मैंने गांव के कई डाॅक्टरों को दिखाया पर मेरी बीमारी कोई ठीक नहीं कर पाया।कृपया मेरा इलाज कीजिए।मनोचिकित्सक ने युवती के शरीर का परीक्षण किया तो पाया कि उसके सिर की अनेक नशे तनाव से ग्रस्त हैं।
  • वे युवती से बोले कि तुम्हें अध्ययन,परिवार,जाॅब,परीक्षा की ऐसी कौनसी बात परेशान कर रही है जिसके बारे में अक्सर तुम सोचती रहती हो? युवती बोला आपको कैसे पता कि मैं किसी बात के बारे में निराश,हताश हूँ और चिंता करती हूं? दरअसल पिछले महीने मेरे एक खास मित्र जाॅब हेतु दी गई परीक्षा में असफल हो गयी।तब से मैं हर वक्त यही सोचती रहती हूं कि मुझे जॉब मिलेगा या नहीं।कहीं मैं भी मित्र की तरह असफल न हो जाऊं।
  • उसकी बात सुनकर मनोचिकित्सक बोले जिस बात का दूर-दूर तक फिलहाल तुमसे कोई वास्ता नहीं है।तुम उसे सोचकर हताश,निराश रहोगे तो जरूर तुम असफल हो जाओगी।
  • जीवन में अधिकतर युवक-युवतियां ऐसी चिंताओं,निराशा भरी बातों से ग्रस्त रहते हैं।निराशा,हताशा व चिन्ताओं से कई मानसिक व शारीरिक रोग हो जाते हैं।जीवन में सफलता-असफलता,सुख-दुःख आदि आते रहते हैं उनका सामना करना चाहिए।जैसे तुम्हें कोई अच्छा जाॅब प्राप्त करना है या कोई ओर मकसद है।युवती को बात समझ में आ गई और उसी क्षण से बेवजह निराश व हताश होना छोड़ दिया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में असफलता में हताश होने से बचें (To Avoid Frustrated in Failure),छात्र-छात्राएँ असफलता में निराश होने से कैसे बचें? (How Do Students Avoid Being Disappointed in Failure?) के बारे में बताया गया है।

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6.रिपोर्ट कार्ड में पिता द्वारा अंगूठा (हास्य-व्यंग्य) (Thumb by Father in Report Card) (Humour-Satire):

  • रघु अपने पिता सेःपिताजी आपने मेरे रिपोर्ट कार्ड में हस्ताक्षर की जगह अंगूठा क्यों लगाया?
  • पिता:तुम्हारे गणित और विज्ञान के अंकों को देखकर तो अंगूठा लगाने का मन भी नहीं है।रिपोर्ट कार्ड में अंगूठा या हस्ताक्षर देखकर शिक्षक यह समझेंगे कि पिता शिक्षित हो सकते हैं।

7.असफलता में हताश होने से बचें (Frequently Asked Questions Related to To Avoid Frustrated in Failure),छात्र-छात्राएँ असफलता में निराश होने से कैसे बचें? (How Do Students Avoid Being Disappointed in Failure?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या आशावादी होने से हताशा से बचा जा सकता है? (Can Frustration Be Avoided by Being Optimistic?):

उत्तर:आशा जीवन में शक्ति का संचार करती है।हमें जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करती है।परन्तु बिना प्रयास,प्रयत्न किए केवल आशा से काम नहीं चल सकता है।

प्रश्न:2.नकारात्मक विचारों से कैसे मुक्त हों? (How to Get Rid of Negative Thoughts?):

उत्तर:नकारात्मक विचारों की जगह सकारात्मक विचारों को मन में लाएं।उदाहरण के लिए घृणा के स्थान पर प्रेम का विचार,उदासी के स्थान पर उत्साह का विचार,निराशा की जगह आशा का विचार करना प्रारंभ कीजिए।धीरे-धीरे नकारात्मक विचारों से मुक्ति मिल जाएगी और हानिकारक विचारों की जगह रचनात्मक विचार मन में आते जाएंगे।

प्रश्न:3.क्या भगवान पर विश्वास से संकट से बचा जा सकता है? (Can Faith in God Save a Crisis?):

उत्तर:परमात्मा को अपने साथ समझकर प्रयत्न,पुरुषार्थ और ज्ञान प्राप्त करते रहिए।भगवान पर विश्वास करते हुए अपना श्रेष्ठ कर्म करना जारी रखें क्योंकि भगवान भी पुरुषार्थी व्यक्ति की सहायता करता है।इस विचार को दृढ़ विश्वास में बदलिए और आप देखेंगे कि बड़ा से बड़ा संकट भी कोई न कोई लाभ और ज्ञान देकर आराम से निकल जाएगा।आप अधिक मजबूत होंगे।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा असफलता में हताश होने से बचें (To Avoid Frustrated in Failure),छात्र-छात्राएँ असफलता में निराश होने से कैसे बचें? (How Do Students Avoid Being Disappointed in Failure?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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