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Who Students Prefer in Luck and Action?

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1.विद्यार्थी भाग्य और कर्म में किसको वरीयता दें? (Who Students Prefer in Luck and Action?),गणित के विद्यार्थी भाग्य और पुरुषार्थ में किसको वरीयता दें? (Who Should Students of Mathematics Give Preference in Fate and Manliness):

  • विद्यार्थी भाग्य और कर्म में किसको वरीयता दें? (Who Students Prefer in Luck and Action?) यह प्रश्न विद्यार्थी तथा गणित के विद्यार्थी के मन में उठता है।इस प्रश्न का उठने का कारण कुछ विद्यार्थियों में पर्याप्त योग्यता और कठिन परिश्रम करने के बावजूद सफलता प्राप्त नहीं होती है अथवा अपेक्षित सफलता नहीं मिलती है।उन्हें प्रतियोगिता परीक्षाओं में अपेक्षित पद नहीं मिलता है जितनी उनमें योग्यता है।इसके विपरीत ऐसे अभ्यर्थी भी पाए जाते हैं जिन्हें आसानी से परीक्षाओं में सफलता मिल जाती है,साथ ही उन्हें ऐसे पद मिल जाते हैं जिनके लिए उनसे अधिक कठिन परिश्रम करने वाले ताकते रह जाते हैं।
  • छात्र-छात्राओं तथा प्रतियोगिता परीक्षाओं में सम्मिलित होने वाले अभ्यर्थियों के सामने बार-बार ऐसी स्थिति आती है कि वे सफल नहीं हो रहे हैं तो भाग्य को बलवान समझने लगते हैं।यदि निराशा,हताशा,अकर्मण्य होने के लिए ऐसा विचार किया जाए तो यह गलत है।परंतु इनसे बचने के लिए तथा मन को धैर्य प्रदान करने के लिए भाग्य का सहारा लिया जाए तो यह सही है।
  • किसी परीक्षा में अथक परिश्रम करने पर छात्र-छात्राएं तथा अभ्यर्थी असफल हो जाते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उनका कर्म निष्फल रहा है।परीक्षा अथवा प्रतियोगिता परीक्षा के लिए किया गया परिश्रम उनके लिए अनुभव बनता है और आगे सफलता के लिए आधार तैयार करता है।कई महान् गणितज्ञों,वैज्ञानिकों को अध्ययन काल में कई असफलताओं का सामना करना पड़ा है परंतु बाद में अनवरत प्रयास करने,कठिन परिश्रम करने पर उन्हें सफलता हासिल हुई है।
  • भाग्य और पुरुषार्थ की गुत्थी को विद्यार्थी को समझना चाहिए तथा उनकी सफलता में भाग्य और पुरुषार्थ किस प्रकार सहायक हो सकता है इस पर विचार करना चाहिए।भाग्य के भरोसे हताश होकर अपनी उन्नति,विकास और सफलता का मार्ग बन्द नहीं कर लेना चाहिए।भाग्य से निराश होने पर छात्र-छात्राएं अपना आत्मविश्वास खो देते हैं।जबकि सफलता,उन्नति तथा विकास के लिए आत्मविश्वास का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
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2.भाग्य तथा पुरुषार्थ क्या है? (What are Luck and Effort?):

  • भाग्य तथा पुरुषार्थ अलग-अलग नहीं है बल्कि ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।भाग्य तथा पुरुषार्थ दोनों ही कर्म द्वारा निर्मित होते हैं।दोनों का अपनी-अपनी जगह महत्त्व है।मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र (स्वच्छन्द नहीं) है परंतु फल भोगने में स्वतंत्र नहीं है।फल भगवान् के विधि-विधान,प्रकृति के विधि-विधान के अनुसार ही मिलता है।भाग्य पूर्व जन्म में,पूर्व काल में किए गए कर्म हैं जबकि पुरुषार्थ वर्तमान काल में किए गए कर्म हैं।
  • यदि दुर्बल पुरुषार्थ है तथा भाग्य प्रबल है तो कर्मफल पर भाग्य हावी हो जाता है।यदि छात्र-छात्राओं का पूर्व जन्म,पूर्व काल में किया गया अध्ययन (भाग्य) रूपी कर्म कमजोर है अर्थात् अध्ययन की पृष्ठभूमि कमजोर है तथा वर्तमान काल में भी अध्ययन (पुरुषार्थ) के लिए कठिन परिश्रम नहीं करते हैं तो उन्हें हर जगह,हर परीक्षा में असफलता मिलती है।
  • परंतु भाग्य प्रबल (अध्ययन की पृष्ठभूमि कमजोर है) तो भी उन्हें असफलता मिलती है।प्रबल भाग्य (अध्ययन रूपी पृष्ठभूमि की कमजोरी) को वर्तमान में प्रबल पुरुषार्थ अर्थात् प्रचंड अध्ययन पद्धति,कठिन परिश्रम तथा अध्ययन की रणनीति पर अमल करके भाग्य को अनुकूल किया जा सकता है।
  • छात्र-छात्राएं तथा लोग शास्त्रों में दोनों (भाग्य और पुरुषार्थ) की युक्तियाँ पढ़कर असमंजस में पड़ जाते हैं।भाग्य के बारे में कुछ सूक्तियां निम्न है जो भाग्य को अधिक वरीयता देने वाली हैंः
    “भाग्यं फलति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम।
    समुद्रमंथनाल्लेभे हरिर्लक्ष्मी हरो विषम्।।
  • अर्थात् भाग्य ही सर्वत्र फलता है विद्या और पुरुषार्थ नहीं।तभी तो समुद्र का मंथन होने पर विष्णु ने लक्ष्मी को प्राप्त किया और शंकर ने विष को।
  • भतृहरी नीति शतक ने कहा हैः
    “नैवाकृतिः फलति नैव कुलं न शीलं विद्याअपि नैव च यत्नकृताअपि सेवा।
    भाग्यानि पूर्वतपसा खलु सञ्चितानि काले फलन्ति पुरुषस्य यथैव वृक्षाः।।
  • अर्थात् मनुष्य का न तो सुंदर रूप फल देता है,न कुलीनता,न सत्स्वभाव,न विद्या तथा न यत्नपूर्वक परिश्रम के साथ की गई राजसेवा,प्रत्युत पूर्वजन्म में किए गए तप के द्वारा अर्जित प्रारब्ध (भाग्य) ही वृक्ष के समान समय पर फल देता है।वस्तुतः मनुष्य का भाग्य ही समय पाकर फल देता है और इसके पूर्वकृत ही काम में आते हैं।
  • ओर भी कहा गया है कि “पुरुषकार्येण बिना दैवं न सिध्यति अर्थात् मनुष्य के कार्य भाग्य के बिना सिद्ध नहीं होते हैं।
    अब पुरुषार्थ (कर्म) को अधिक वरीयता देने वाली सूक्तियाँ पढ़िए:’दैवं विहाय कुरु पौरुषमात्मशाक्या’, अर्थात् भाग्य का विचार छोड़कर यथाशक्ति प्रयास करो।

3.भाग्य और पुरुषार्थ की समीक्षा (Luck and Effort Review):

  • हितोपदेश में कहा गया है किः
    “न दैवमपि संचित्य त्यजेदुद्योगमात्मनः।
    अनुद्योगेन कस्तैले तिलेभ्यः प्राप्तुमर्हति”।।
  • अर्थात् भाग्य के भरोसे मनुष्य को अपना उद्योग नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि उद्योग के बिना तिलों में से तेल नहीं निकल सकता है।आगे इसी में कहा गया है किः
    “पूर्वजन्मकृतं कर्म तद्दैवमिति कथ्यते।
    तस्मात्पुरुषकारेण यत्नं कुर्यादतन्द्रितः”।।
  • अर्थात् पूर्वजन्म में किए गए कर्म को ही भाग्य कहा जाता है।अतः मनुष्य को आलस्य त्यागकर पुरुषार्थ करना चाहिए।
    उपर्युक्त सूक्ति के अनुसार छात्र-छात्राओं को पुरुषार्थ अर्थात् अध्ययन कार्य को करते रहना चाहिए,कोशिश करते रहना चाहिए।यदि असफलता मिल रही है तो उसके कारणों को जानकर उसे दूर करना चाहिए।परन्तु अध्ययन कार्य को स्थगित नहीं करना चाहिए।भाग्य रूपी कर्म छात्र-छात्राओं के हाथ में नहीं है परन्तु वर्तमान में पुरुषार्थ करना (अध्ययन करना) उनके हाथ में है।भाग्य के भरोसे हताश व निराश होकर अध्ययन न करने से तो कर्मठ अर्थात् अध्ययन करते रहना अच्छा है।
  • वैसे भी जिन छात्र-छात्राओं को अकस्मात सफलता मिल जाती है तो वे यह कहकर सफलता को ठुकरा नहीं देते हैं कि उन्होंने इसके लिए प्रयास ही नहीं किया था।बल्कि उनको यह कहते हुए सुना जाता है कि सफलता के लिए उन्होंने भरसक प्रयास किया था। अध्ययन के लिए कठिन परिश्रम न करने तथा असफलता मिलने पर भी वे यही कहते हैं कि परीक्षा के लिए उसने कठिन परिश्रम किया था,कोई कसर बाकी नहीं रखी थी।इस प्रकार अध्ययन करने के लिए पुरुषार्थ (कर्म) के महत्त्व को वे भी स्वीकार करते हैं।
  • भाग्य से तात्पर्य है कि उचित अवसर की प्राप्ति। कुछ छात्र-छात्राओं को अवसर आसानी से मिल जाते हैं और कुछ छात्र-छात्राओं को अवसर ढूंढना पड़ता है।परंतु ऐसा नहीं होता है कि किसी विद्यार्थी को अवसर ही नहीं मिला हो।यदि छात्र-छात्रा उचित तैयारी,उचित योग्यता और क्षमता प्राप्त कर लेता है तो अवसर का उपयोग कर लेता है।परंतु अवसर के अनुकूल उसने तैयारी नहीं की हो तो अवसर उसके हाथ से निकल जाता है।जो छात्र-छात्रा आत्म-विश्वास,लगन तथा कठिन परिश्रम करता रहता है उसके लिए वही अवसर भाग्योदय का कारण बन जाता है।परंतु जो छात्र-छात्राएं परीक्षा की तिथि घोषित होने का इंतजार करते रहते हैं अथवा परीक्षा के नजदीक परीक्षा की तैयारी प्रारंभ करते हैं अथवा अकर्मण्य रहकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं उनके हाथ से अवसर निकल जाता है।

4.भाग्य और कर्म का दृष्टान्त (Parable of Luck and Effort):

  • “नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटि शतैरपि।
    अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम”।।
  • अर्थात् करोड़ों वर्ष बीत जाने पर भी किया हुआ कर्म कमजोर नहीं होता है।किए गए शुभ या अशुभ कर्मों का फल हमें भोगना ही पड़ता है।
  • इसी प्रकार महाभारत में कहा गया है किः
    “सुशीघ्रमपि धावन्तं तिष्ठन्तं गच्छन्तमनुगच्छति।
    करोतिकुर्वतः कर्मच्छयिवानुविधीयते”।।
  • अर्थात् जिस मनुष्य ने जैसा कर्म किया है, वह उसके पीछे लगा रहता है।यदि कर्त्ता पुरुष शीघ्रतापूर्वक दौड़ता है तो वह भी उतनी तेजी के साथ उसके पीछे जाता है।जब सोता है तो उसका कर्मफल भी उसके साथ ही सो जाता है।जब वह खड़ा होता है तो वह भी पास ही खड़ा रहता है और जब मनुष्य चलता है तो उसके पीछे-पीछे वह भी चलने लगता है।इतना ही नहीं,कोई कार्य करते समय भी कर्म-संस्कार उसका साथ नहीं छोड़ता।सदा छाया के समान पीछे लगा रहता है।
  • श्रीकांत बचपन से ही पढ़ने में कुशाग्र बुद्धि का था।वह कक्षा में सबसे अव्वल आता था।नवीं कक्षा में गणित ऐच्छिक विषय लिया।वह अध्ययन में बहुत कठिन परिश्रमी था।उसने बीएससी और एमएससी लगभग 75-80% अंकों से उत्तीर्ण की थी।अध्यापकों का चहेता था श्रीकांत।उसने प्रतियोगिता परीक्षा आईएएस और आरएएस के लिए कड़ी मेहनत की।
  • ऐसी बात नहीं थी कि वह पढ़ने में ही होशियार था बल्कि वह मिलनसार,विनम्र और मधुरभाषी भी था। सभी उसका बहुत सम्मान करते थे।जी-तोड़ कड़ी मेहनत करने के बाद भी उसका आईएएस और आरएएस में चयन नहीं हुआ।बार-बार प्रयत्न करने तथा कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभाशाली होने के बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं मिला।अन्ततः उसे अध्यापक की नौकरी से संतोष करना पड़ा।अब अध्यापक वृत्ति से ही वह जीवनव्यापन कर रहा है। परंतु उससे फिसड्डी छात्रों का चयन आरएएस में हो गया और सभी गुणों से संपन्न होने पर भी श्रीकांत का चयन नहीं हुआ।उसको शैक्षिक कक्षाओं में अपार सफलता मिली परंतु जाॅब के क्षेत्र में उसे छोटी सी नौकरी से संतोष करना पड़ा।
  • अब इसके विपरीत दूसरा उदाहरण लीजिए।मनोज नाम का विद्यार्थी था।पढ़ने में बिल्कुल फिसड्डी था। जैसे-तैसे उसने बीए कर लिया।प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए वह कोचिंग में आया।मनोज को साधारण पांचवी-छठी कक्षा के जोड़,बाकी,गुणा,भाग भी नहीं आते थे।कोचिंग के शिक्षक ने मन ही मन सोचा कि इसका चयन किसी भी परीक्षा में कैसे होगा? यह जॉब कैसे पा सकेगा? उसने पटवारी प्रतियोगिता परीक्षा दी।उसका चयन पटवारी परीक्षा में हो गया।कोचिंग के शिक्षक ने सोचा कि गणित का प्रश्न-पत्र कैसे हल किया होगा?भाग्य को कोई स्वीकार करें या न करें।परंतु उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि इन दोनों घटनाओं को भाग्य और पुरुषार्थ (कर्म) को समझे बिना इनके कारणों को नहीं समझा जा सकता है।प्रथम उदाहरण में पुरुषार्थ का उचित फल मिला क्या? दूसरे उदाहरण में कौनसे पुरुषार्थ का फल है जिसके कारण उसको अच्छा जॉब मिल गया।इन्हें संयोग कहकर टाला नहीं जा सकता है।उपर्युक्त दोनों उदाहरण सत्य घटना पर आधारित है,कपोल कल्पित उदाहरण नहीं हैं।केवल पात्रों के नाम परिवर्तित किए गए हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विद्यार्थी भाग्य और कर्म में किसको वरीयता दें? (Who Students Prefer in Luck and Action?),गणित के विद्यार्थी भाग्य और पुरुषार्थ में किसको वरीयता दें? (Who Should Students of Mathematics Give Preference in Fate and Manliness) के बारे में बताया गया है।

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5.गणित और तजुर्बा (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics and Experience) (Humour-Satire):

  • कमलःपिताजी गणित में ज्यादा काबिल कौन है,आप या मैं?
  • पिताःमैं स्वयं।एक तो मैं तुम्हारा बाप हूँ।दूसरे मैं उम्र में तुमसे बड़ा हूं।तीसरा तुमसे ज्यादा तजुर्बा है।
  • कमलःफिर तो आप जानते होंगे कि पाइथागोरस प्रमेय की खोज किसने की थी?
  • पिताःपाइथागोरस ने की थी।
  • कमलःउसके बाप ने क्यों नहीं की? उसके बाप का तजुर्बा तो पाइथागोरस से ज्यादा था।

6.विद्यार्थी भाग्य और कर्म में किसको वरीयता दें? (Frequently Asked Questions Related to Who Students Prefer in Luck and Action?),गणित के विद्यार्थी भाग्य और पुरुषार्थ में किसको वरीयता दें? (Who Should Students of Mathematics Give Preference in Fate and Manliness) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

प्रश्नः1.भाग्य से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Luck?):

उत्तरःपिछले जन्मों में,पूर्व काल में किए गए कर्म का फल भाग्य है।पूर्व में किए गए कर्मों के फलित होने पर उसे भाग्य कहा जाता है।वर्तमान काल में काफी कोशिश करने पर भी सफलता न मिलने का कारण होता है पूर्व काल में किए गए कर्मों का विपरीत फल का बाधक होना।पूर्व काल में किए गए कर्म अनुकूल हो तो थोड़ी से प्रयास ही कार्य सफल हो जाता है।

प्रश्नः2.पुरुषार्थ क्या है? (What is Effort?):

उत्तरःवर्तमान काल में किए जा रहे कर्मों को पुरुषार्थ कहा जाता है।विपरीत भाग्य होने पर पुरुषार्थ करते रहना चाहिए क्योंकि महान गणितज्ञ,वैज्ञानिक और महापुरुषों ने इसी मार्ग का वरण किया है।हमें भी वे इसी मार्ग पर चलने के लिए बताते हैं।वैसे भी चिंता,शोक,दुखी,निराश,हताश होने से मिलता भी क्या है? सिवाय अपनी कार्यक्षमता को घटाने।भाग्य पर भरोसा रखते हुए भी पुरुषार्थ (अध्ययन करना) करना नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि तिलों में तेल होते हुए भी पुरुषार्थ के बिना तेल नहीं निकाला जा सकता है।

प्रश्नः3.भाग्य और कर्म में कौन महत्त्वपूर्ण है? (Who is Important in Luck and Action?):

उत्तरःभाग्य और कर्म (पुरुषार्थ) में पुरुषार्थ महत्त्वपूर्ण है।क्योंकि भाग्य भी तभी फलित होता है जब कर्म किया जाता है।छात्र-छात्राओं को समझ लेना चाहिए कि पहले रचनात्मक और अपनी सामर्थ्य के अनुकूल लक्ष्य तय करें फिर व्यवस्थित योजना के साथ कठिन परिश्रम आत्मविश्वास रखते हुए करें।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विद्यार्थी भाग्य और कर्म में किसको वरीयता दें? (Who Students Prefer in Luck and Action?),गणित के विद्यार्थी भाग्य और पुरुषार्थ में किसको वरीयता दें? (Who Should Students of Mathematics Give Preference in Fate and Manliness) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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विद्यार्थी भाग्य और कर्म में किसको वरीयता दें?
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विद्यार्थी भाग्य और कर्म में किसको वरीयता दें? (Who Students Prefer in Luck and Action?)
यह प्रश्न विद्यार्थी तथा गणित के विद्यार्थी के मन में उठता है।
इस प्रश्न का उठने का कारण कुछ विद्यार्थियों में पर्याप्त योग्यता और
कठिन परिश्रम करने के बावजूद सफलता प्राप्त नहीं होती है अथवा अपेक्षित सफलता नहीं मिलती है।

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