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3 Tips to Improve Thinking by Students

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1.छात्र-छात्राओं द्वारा विचारशीलता को सुधारने की 3 टिप्स (3 Tips to Improve Thinking by Students),गणित के छात्र-छात्राएं विचारशीलता को कैसे सुधारें? (How Do Mathematics Students Improve Their Thinking?):

  • छात्र-छात्राओं द्वारा विचारशीलता को सुधारने की 3 टिप्स (3 Tips to Improve Thinking by Students) के आधार पर वे अपने विचारों को अध्ययन की दिशा में लगा सकेंगे।विचार मस्तिष्क की अद्भुत शक्ति है।जो छात्र-छात्राएं इस पर उचित नियंत्रण करके ठीक दिशा में अर्थात् अध्ययन की दिशा में संचालित कर सकता है वह इससे बड़े-बड़े कार्य सिद्ध कर सकता है।इसलिए विद्यार्थी को मन के द्वारा अपने अध्ययन करने के बारे में ही विचार करना चाहिए।हमारे उत्थान-पतन,उन्नति-अवनति का मुख्य कारण हमारे विचार ही है।यदि हम विचारों को स्वतंत्र छोड़ देते हैं तो ये हमारे पतन और अवनति के कारण बन जाते हैं।विचारों पर उचित नियंत्रण करके और सही दिशा में लगाने पर ये हमें ओजस्वी और तेजस्वी बना सकते हैं।
  • छात्र-छात्राएं जैसे विचार करते हैं वैसे ही बनते चले जाते हैं।यदि अध्ययन करने के बारे में विचार करेंगे तो अध्ययनशील बन जाएंगे।सद्विचार ही हमारी वास्तविक संपत्ति है।सद्विचारों से हमारी अनेक शंकाओं और समस्याओं का समाधान हो जाता है।
    मेधावी छात्र-छात्राएं जो अध्ययन कार्य,सफलताएं,जो आश्चर्यचकित करने वाले फल प्राप्त कर सकते हैं वह सामर्थ्य हर छात्र-छात्रा में विद्यमान है।जो प्रतिभा,जो बुद्धि-सामर्थ्य उनके पास है वह साधारण छात्र-छात्रा में भी विद्यमान है।केवल विचारों को एकाग्रचित्त करके उनको अध्ययन कार्य में प्रकट करना सीख लो।तुम्हारे अंदर यह सर्वोत्कृष्ट शक्ति जिसके बल पर मनोवांछित कार्य में लगा देने पर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त कर सकते हो।परंतु केवल थोथे विचार करते रहना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि जो विद्यार्थी विचारों के अनुसार कार्य करता है उसी का फल उसे प्राप्त होता है।
  • अध्ययन करने के दौरान हर समस्या को हल करने हेतु उस पर विचार करना आवश्यक है।प्रत्येक समस्या पर विचार किया जाए कि यह हल क्यों नहीं हो रहा है और इसका हल कैसे हो सकता है? अन्य छात्र-छात्राएं हल कर सकते हैं तो मैं इसे हल क्यों नहीं कर सकता हूं? उसमें और मुझमें क्या अंतर है? मेरे अध्ययन करने के तरीके में क्या त्रुटि है और उसमें सामंजस्य कैसे बिठाया जा सकता है? मुझे अध्ययन कार्य में सफलता क्यों नहीं मिल रही है और अध्ययन कार्य में सफलता कैसे मिल सकती है?
  • अध्ययन करते समय हर समस्या तथा नई बातों को जानने के लिए ‘क्यों,कैसे’ से विचार एवं चिंतन-मनन करोगे तो समस्याओं के हल मिलेंगे और नई-नई बातें जानने को मिलेंगी।
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2.विचारशीलता को सुधारें (Improve Thoughtfulness):

  • हमें हमारे विचारों पर सतत निगरानी रखनी पड़ती है और जागरूक रहना होता है।जो छात्र-छात्राएं अद्भुत सफलता प्राप्त करते हैं उन्हें पुरुषार्थ करना पड़ता है।अपने विचारों को सही दिशा में संयोजित करना पड़ता है।यदि कोई भूल-चूक हो जाती है तो उसमें सुधार करना होता है।साथ ही यह ध्यान रखना होता है कि अध्ययन के अलावा,अपने कार्य के अलावा अन्य विचार खरपतवार के रूप में जड़ें न जमा लें।जब परीक्षा का समय आता है और हम परीक्षा की पूरी तैयारी कर चुके होते हैं तो पढ़े हुए को याद रखना होता है,उन्हें भूल जाने का खतरा मंडरा जाता है।भूल न जाएं इसके लिए पाठ्य सामग्री की पुनरावृत्ति तथा मन ही मन उनको दोहराना होता है।अध्ययन के लिए श्रेष्ठ विचारों को बढ़ाना पड़ता है।उसको याद रखने का ध्यान भी रखना होता है।यदि थोड़ी सी भी असावधानी बरतते हैं तो अध्ययन करने पर वह लाभ नहीं मिलता है जो हमें मिलना चाहिए।
  • हमारे दिमाग में अध्ययन के लिए तथा परीक्षा में उत्तीर्ण होने हेतु कुविचार अनायास ही पनप जाते हैं,बढ़ने और फैलने लगते हैं।
    हमारे अन्दर अनेक कुसंस्कार बीज रूप में छिपे पड़े रहते हैं जो तनिक सा मौका मिलते ही उगने और बढ़ने लगते हैं।कुविचारों का सहारा पाकर ये कुसंस्कार भी विस्तार पाने लगते हैं।इसलिए कई छात्र-छात्राएं स्वेच्छाचार बरतते हैं,मर्यादाओं का पालन नहीं रखते और अनुशासनहीन,उच्छृंखल,उद्दण्ड हो जाते हैं।मन में अध्ययन के प्रति लगाव उत्पन्न करने के लिए पूर्णरूप से प्रयत्न करना पड़ता है और उसके लिए आवश्यक खाद-पानी देने की सुविधाओं को एकत्रित करना पड़ता है।कुविचार चाहे जब उत्पन्न हो जाते हैं परंतु सद्विचारों के लिए पूर्णरूप से सतर्कता से काम लेना होता है।सद्विचारों को बढ़ाना भी एक कला है।इसमें वे विद्यार्थी ही सफल होते हैं जो अपने अध्ययन को समृद्ध,सम्पन्न और सुसंस्कृत करते हैं।
  • किसी भी विषय अथवा गणित में प्रगति के लिए व्यक्तित्त्व को विकसित करने की आवश्यकता है।सद्गुणों को धारण करने से ही विद्यार्थियों को सफलता मिल सकती है।प्रतिभावान और प्रमाणित छात्र-छात्राएं ही गणित में अथवा अन्य विषयों में पारंगत हो सकते हैं।ऐसे छात्र-छात्राएं सम्मान और सहयोग अर्जित करते हैं।अपनी योग्यता,तत्परता और दूसरों के सहयोग के बल पर वे आगे बढ़ते हैं और सफलता अर्जित करते हैं।
  • प्रतिभावान छात्र-छात्राएं अच्छे विचारों से ही बनते हैं।अपनी प्रतिभा को उभारते हैं तथा योजना बनाते हैं और लक्ष्य की रूपरेखा तैयार करते हैं।इसी आधार पर उन्हें मालूम पड़ता है कि उन्हें किन साधनों की आवश्यकता पड़ेगी,किनके परामर्श,मार्गदर्शन,सहयोग से आगे बढ़ा जा सकता है? और अन्ततः सफल रहते हैं।
  • बुरे विचार भी इसी प्रकार फलते,फूलते और विकसित होते हैं।विचार बीज हैं और स्वभाव वृक्ष है।बीज के अनुसार ही परिपक्व होने पर फल आते हैं।कुविचार छात्र-छात्राओं को असभ्य,उद्दण्ड,दुराचारी इत्यादि बनाते हैं।बुरी आदतें खरपतवार की तरह बढ़ती है।बुराइयों को अपनाने वाले छात्र-छात्राओं को भी संगी-साथी मिल जाते हैं।ऐसे विद्यार्थियों की दुर्गति होती है और वे आए दिन कुकर्म करते रहते हैं।दुराचारी छात्र-छात्राओं का भी समूह तैयार हो जाता है।वे स्वयं तो बुरी आदतों का फल भोगते ही हैं परन्तु दूसरों को भी सताते रहते हैं।इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थियों को अपने विचारों को सुधारते रहना चाहिए।
  • विचारों को सुधारने के लिए स्वाध्याय व सत्संग का सहारा लिया जाना चाहिए।पुराने सद्ग्रंथों में उन्हीं बातों का अध्ययन करना चाहिए जो बातें आधुनिक युग के साथ मेल खाती हो।आधुनिक युग के मनीषी तथा चिन्तकों द्वारा लिखी हुई बातों का अध्ययन करना चाहिए।आज के समय के लिए उपयोगी साहित्य को ही पढ़ना चाहिए।आज के युग के अनुसार और व्यावहारिकता को ध्यान में रखकर लिखे गए साहित्य प्रयास करने पर मिल सकते हैं।
  • अध्ययन किए गए विषय पर स्वयं भी मनन-चिंतन करना चाहिए।अपनी तार्किक क्षमता और सामने आने वाली समस्याओं की समीक्षा करके उस पर विचार-चिन्तन करना चाहिए।इस प्रकार अपनी विचारशीलता में सुधार किया जा सकता है।

3.सफलता में सहायक विचारशीलता (Thoughtfulness Helpful in Success):

  • छात्र-छात्राओं को परीक्षा में,जाॅब में तथा जीवन में सफलता-असफलता उनकी विचारशीलता पर भी निर्भर करती है।छात्र-छात्राएं जिस विषय में विचार करता है उसे प्राप्त कर सकता है परंतु इसके लिए आत्मविश्वास की भी आवश्यकता होती है।छात्र-छात्राओं के मन में अनेक विचार चलते रहते हैं परंतु उन विचारों को व्यवस्थित किया जाए और कार्यान्वित करने की कोशिश करें तो वे जीवन में बहुत कुछ आसानी से हासिल कर सकते हैं।
  • विद्यार्थी जो प्राप्त करना चाहते हैं अथवा बनना चाहते हैं उसी विचार को बार-बार स्मरण करना चाहिए,उन्हीं विचारों पर वार्तालाप कीजिए,उन्हीं विचारों से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन कीजिए तात्पर्य यह है कि सोते-जागते,उठते-बैठते हर समय उसी विचार में अपने आपको तल्लीन कर दीजिए तो आप उस लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे।
  • खुशी व आनन्द की विचारधारा अपनाने पर आपमें उत्साह का संचार होगा।आप अध्ययन कार्य को उत्साह से करेंगे तथा अध्ययन करते समय कष्ट व कठिनाइयों में दुःख का अनुभव नहीं करेंगे।साथ ही आपके जीवन में आने वाली अनेक असफलताएं नष्ट हो जाएंगी और सफलताओं की संख्या बढ़ती जाएगी।
  • छात्र-छात्राएं जैसी विचारधारा अपनाते हैं वैसे ही संगी-साथी मिल जाते हैं तथा उसके आसपास वैसा ही वातावरण तैयार हो जाता है।अगर आप यह विचार करते हैं कि मुझे गणित में शीर्ष पर पहुंचना है तो आप कोर्स की पुस्तकों को केवल परीक्षा के दृष्टिकोण से नहीं पढ़ेंगे।आप अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करेंगे।आप गणित में सहयोग करने वाले अध्यापकों,गणितज्ञों तथा मित्रों का सहयोग प्राप्त करने की चेष्टा करेंगे।हमेशा गणित की नई-नई समस्याओं का हल करने का प्रयास करेंगे।एक दिन ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाएगी कि आप गणित में पारंगत हो जाएंगे।परन्तु गणित की विषयवस्तु को विचारशीलता के साथ-साथ कर्म (अभ्यास) भी करना आवश्यक है।कर्म (अभ्यास,अध्ययन) के बिना सफलता प्राप्त नहीं हो सकती है।
  • छात्र-छात्राएं जिस तरह के विचार रखेंगे वैसे ही पदार्थों तथा व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करेंगे।विचारों के द्वारा छात्र-छात्राएं बहुत कुछ कर सकते हैं परंतु विचारों के साथ-साथ कर्म करने की आवश्यकता होती है।किसी विचारक ने कहा है कि जो केवल विचार करते हैं तथा कर्म नहीं करते हैं अथवा जो कर्म करते हैं परंतु विचार नहीं करते हैं ऐसे लोग जीवन में असफल होते हैं।विचार शक्ति छात्र-छात्राओं को सही मार्ग-प्रदर्शन कर उसमें सफलता प्रदान कर सकती है परंतु कर्म तो उनको करना ही पड़ेगा।

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4.विचारशीलता का दृष्टान्त (Illustration of Thoughtfulness):

  • साधन,परिस्थितियां,सुविधाएं तथा दूसरों के सहयोग से ऊंचा उठा जा सकता है परंतु इनका उपलब्ध होना उसी विद्यार्थी के लिए संभव है जिसके पास विचार बल हो।विचार बल न होने पर उपर्युक्त बातें मिल जाए तो भी वह उससे लाभ नहीं उठा सकता है।अनेक धनाढ्य व्यक्तियों के पुत्र-पुत्रियां उनकी धन-संपत्ति को विचार बल और सद्बुद्धि के बिना बर्बाद कर देते हैं।इसके विपरीत ऐसे छात्र-छात्राओं के उदाहरण भी मिल जाएंगे जो विचार बल,प्रतिभा और सद्बुद्धि के बल पर अनुकूल वातावरण तैयार करते हैं और उन्नति के शिखर पर जा विराजते हैं।
  • विचार बल से संपन्न विद्यार्थी अनेक कष्टों को सहते हुए,कठिनाइयों और बाधाओं के होते हुए भी प्रगति करेगा।प्रतिकूलताएँ अनुकूलता में बदल जाएंगी और वह उसी दिशा में आगे बढ़ेगा जो उसने अपने लिए चुन ली है।यदि विद्यार्थी विचार बल का महत्त्व समझ ले और आत्मविश्वास के बल पर उसे प्रारंभ कर दें तो उनकी उन्नति होने से कोई नहीं रोक सकता है।
  • किसी नगर में एक गणित शिक्षक रहते थे।वे बिना फीस के किसी को नहीं पढ़ाते थे।एक दिन एक विद्यार्थी ने उन्हें सबक सिखाने की सोची।वह विद्यार्थी गणित शिक्षक के कोचिंग सेन्टर में पहुँचा और उन्हें बताया कि वह उसका रिश्तेदार है।गणित शिक्षक ने रिश्तेदारी से मना कर दिया।
  • युवक बोला कुछ भी हो इस नगर में ओर कोई कोचिंग सेंटर तो है नहीं इसलिए वह उनके पास ही पढ़ेगा।इस वर्ष तो मुझे आपके पास ही पढ़ना पड़ेगा।गणित शिक्षक ने मन मानकर स्वीकृति दे दी।
  • फिर इस डर से कि कहीं यह मेरे से मुफ्त में न पढ़ ले,बोले कि तुम पढ़ तो लो परंतु मैं बिना फीस के किसी को पढ़ाता नहीं हूं।
    विद्यार्थी बोला मुझे पढ़ना तो है परंतु इस समय मेरे पास फीस नहीं है।मेरे पास ऐसा आईडिया (Idea) है जिसके द्वारा धन कमाया जा सकता है।धन का नाम सुनते ही गणित शिक्षक के एकदम से अमीर बनने की कल्पना जागृत हो गई।
  • गणित शिक्षक बहुत दिनों से प्रयास करने पर भी अमीर नहीं बन पाया था इसलिए उसने हां कर दी।गणित शिक्षक उस विद्यार्थी को गणित पढ़ाने लगा।गणित के विद्यार्थी ने एक घड़ा मंगवाया और मंत्र बोलकर उस घड़े के मुँह को बांध दिया।
  • रोजाना गणित शिक्षक के सामने वह घड़े के सामने मंत्र पाठ करता तथा उसके बाद गणित शिक्षक से गणित पढ़ता।विद्यार्थी ने गणित शिक्षक से कहा कि वह घड़े का मुँह न खोले वरना उसमें रुपए बनने की प्रक्रिया खत्म हो जाएगी।
  • पूरे वर्ष भर में यही क्रम चलता रहा।जब विद्यार्थी ने गणित का कोर्स पूरा कर लिया तब वह गणित शिक्षक से बोला कि आप इस घड़े का मुँह पूर्णिमा के दिन स्नान-ध्यान करके और भगवान का नाम लेकर खोल लेना।विद्यार्थी विचार बल से गणित पढ़कर चलता बना।पूर्णिमा के दिन जब यथाविधि गणित शिक्षक ने उस घड़े का मुंह खोला तथा उसमें कुछ भी न पाकर अपना सिर पकड़ लिया और धन के प्रति लोभवृत्ति न रखने का संकल्प लिया।सार यह है कि विचार बल के द्वारा जटिल समय में भी अपना काम सिद्ध किया जा सकता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं द्वारा विचारशीलता को सुधारने की 3 टिप्स (3 Tips to Improve Thinking by Students),गणित के छात्र-छात्राएं विचारशीलता को कैसे सुधारें? (How Do Mathematics Students Improve Their Thinking?) के बारे में बताया गया है।

5.एक और एक कितने होते हैं (हास्य-व्यंग्य) (How Many are There One and One) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक (छात्र से):एक और एक कितने होते हैं?
  • छात्रःसर,इसके कई उत्तर हो सकते हैं।
  • गणित अध्यापक:वो कैसे?
  • छात्रःएक और एक दो (1+1=2) हो सकते हैं।एक और एक ग्यारह (11) हो सकते हैं।एक और एक शून्य हो सकता है (एक कदम उतर की ओर चलो और एक कदम दक्षिण की ओर चलो)।

6.छात्र-छात्राओं द्वारा विचारशीलता को सुधारने की 3 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 3 Tips to Improve Thinking by Students),गणित के छात्र-छात्राएं विचारशीलता को कैसे सुधारें? (How Do Mathematics Students Improve Their Thinking?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या विचारशीलता के आधार पर उन्नति कर सकते हैं? (Can We Progress on the Basis of Thoughtfulness?):

उत्तर:विचारों को कार्य रूप में परिणत नहीं करते हैं तब तक विचार अव्यवस्थित तथा कोरे काल्पनिक ही होते हैं।जब विचारों को कार्यरूप देने के लिए प्रयत्नशील नहीं होते हैं,उनके अनुसार जीवन को नहीं ढालते हैं।दत्तचित्त,एकाग्र,दृढ़तापूर्वक अमल नहीं करते हैं,उनको आचरण में नहीं उतारते,अभ्यास नहीं करते हैं तब विचार केवल हमारा मनोरंजन कर सकते हैं परंतु उन्नति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं।आलस्य और अकर्मण्यता को त्यागकर विचारों को साकार करने के लिए पुरुषार्थ करें,व्यवहार में उतारें तभी सार्थक प्रगति,उत्थान और उन्नति कर सकते हैं।

प्रश्न:2.क्या विचार और कर्म में समन्वय आवश्यक है? (Is the Coordination of Thought and Action Necessary?):

उत्तर:बुद्धिमान मनुष्य के विचारों और कर्म में समन्वय होता है।जीवन में कर्म को प्रधानता देने वाले व्यक्ति योजनाएं कम बनाते हैं और काम अधिक करते हैं।उन्हें व्यर्थ की विचारधारा पर कार्य करने के लिए समय नहीं होता है।एक विचार को पूर्ण करते ही वे उसे लक्ष्य की तरह स्थापित करके उस पर क्रियाशील हो जाते हैं और जब तक उसको पूरा नहीं कर लेते हैं तब तक दूसरे विचार को स्थान नहीं देते।

प्रश्न:3.विचारों का मनुष्य को बनाने व बिगाड़ने में क्या योगदान है? (What is the Contribution of Ideas to Creating and Spoiling Man?):

उत्तर:मनुष्य जीवन के बनाने और बिगाड़ने में विचारों का बहुत योगदान है।मानव जीवन और उसकी क्रियाओं पर विचारों का कब्जा रहने से उन्हीं के अनुसार जीवन का निर्माण होता है।विचार शक्ति से संपन्न व्यक्ति साधनहीन होने पर भी अपनी उन्नति और प्रगति का मार्ग निकाल सकता है।विचार शक्ति से ही महापुरुष समाज और राष्ट्र का निर्माण करते हैं।विचार शक्ति के बल पर ही आध्यात्मिक कठिन से कठिन बाधाओं को पार कर जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं द्वारा विचारशीलता को सुधारने की 3 टिप्स (3 Tips to Improve Thinking by Students),गणित के छात्र-छात्राएं विचारशीलता को कैसे सुधारें? (How Do Mathematics Students Improve Their Thinking?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

3 Tips to Improve Thinking by Students

छात्र-छात्राओं द्वारा विचारशीलता को सुधारने की 3 टिप्स
(3 Tips to Improve Thinking by Students)

3 Tips to Improve Thinking by Students

छात्र-छात्राओं द्वारा विचारशीलता को सुधारने की 3 टिप्स (3 Tips to Improve Thinking by Students)
के आधार पर वे अपने विचारों को अध्ययन की दिशा में लगा सकेंगे।विचार मस्तिष्क की अद्भुत शक्ति है।

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