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How to Educate Children with Qualified?

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1.बच्चों को योग्यताधारी के साथ शिक्षित कैसे करें? (How to Educate Children with Qualified?),बच्चों को डिग्रीधारी के साथ-साथ शिक्षित कैसे बनाएं? (How to Make Children Degree Holder as Well as Educated?):

  • बच्चों को योग्यताधारी के साथ शिक्षित कैसे करें? (How to Educate Children with Qualified?) यह आधुनिक युग में माता-पिता,अभिभावक,समाज तथा छात्र-छात्राओं की सबसे बड़ी समस्या है।ये सभी बच्चों को योग्यताधारी के साथ शिक्षित बनाना चाहते हैं।परंतु केवल चाहने से कुछ नहीं होता है।माता-पिता,अभिभावक,शिक्षकों,समाज व छात्र-छात्राओं को स्वयं को योग्यताधारी होने के साथ-साथ शिक्षित बनाने के लिए प्रयास करना होगा।अक्सर पढ़े-लिखे माता-पिता व अभिभावक सामाजिक कार्यों,विभिन्न संगठनों से जुड़कर अपने शौक पूरे करने में व्यस्त रहते हैं और समाज व देश का तथाकथित कल्याण करने में व्यस्त रहते हैं तथा उनके बच्चों का दूसरे ढंग का कल्याण हो जाता है अर्थात् गलत राह की ओर अग्रसर हो जाते हैं।माता-पिता,अभिभावक अधिक धनार्जन करने के कारण जाॅब करते हैं इसलिए भी बच्चों को शिक्षित करना संभव नहीं होता है।बच्चों को शिक्षित करने के लिए माता-पिता को न केवल समय देना होगा बल्कि उन्हें मनोविज्ञान की जानकारी भी होनी चाहिए कि बच्चों में संस्कार कैसे डाले जाए?
  • वस्तुतः शिक्षा संस्थानों में शिक्षक बालक-बालिकाओं को पाठ्यक्रम (syllabus) पूरा कराने में व्यस्त रहते हैं।इसलिए वे उन्हें व्यावहारिक शिक्षा,व्यावहारिक ज्ञान,चरित्र निर्माण सम्बन्धी बातों के संस्कार नहीं डालते हैं।शिक्षा पद्धति जिस प्रकार की है उसके आधार पर शिक्षकों,शिक्षा संस्थानों पर न तो दबाव डाला जा सकता है और न ही पाठ्यक्रम (syllabus) में बच्चों के निर्माण,बच्चों के चारित्रिक विकास इत्यादि की शिक्षा को शामिल किया गया है जिससे उन्हें बाध्य किया जा सके।
  • शिक्षा संस्थानों में जो शिक्षा प्रदान की जाती है उससे किताबी ज्ञान प्राप्त होता है और यह किताबी ज्ञान जाॅब प्राप्त करने,नौकरी प्राप्त करने के काम तो आ सकता है परन्तु दुनिया के लिए आवश्यक व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने में किसी भी प्रकार भी सहायक नहीं है।फलतः बच्चे योग्यताधारी (Qualified) तो हो जाते हैं।एक से एक डिग्री प्राप्त करते जाते हैं परंतु शिक्षित (Educated) नहीं हो पाते हैं।
  • छात्र-छात्राएं जब कॉलेज और विश्वविद्यालय की शिक्षा पूरी करके सांसारिक जीवन में प्रवेश करता है तो उनके पास डिग्री तो होती है परंतु व्यावहारिक ज्ञान नहीं होता है।व्यावहारिक ज्ञान के अभाव में बालक-बालिकाएं निरुउद्देश्य इधर-उधर भटकते रहते हैं।कई बच्चों के बुरी लत लग जाती है जिससे उनका जीवन नारकीय बन जाता है।
  • ऐसी स्थिति में विचारणीय बिन्दु यह है कि बालक-बालिकाओं को शिक्षित करे तो कौन करे?शिक्षक तथा शिक्षा संस्थान बाध्य नहीं है।माता-पिता तथा अभिभावक कई कारणों की वजह से बच्चों को शिक्षित नहीं कर पाते हैं।समाज में कर्मठ तथा समाजसेवी लोगों का अभाव है।ऐसी स्थिति में बच्चों को शिक्षित करने का कार्य भगवान भरोसे ही है।भटके हुए युवक-युवतियां बेईमानी,चोरी,लूटना,अपहरण करना,बैंक डकैती,आतंकवादी बनना,शराबी,ड्रग्स का सेवन करना,गुण्डागर्दी करना इत्यादि कार्य में लिप्त होते हैं तो उसका दंड शिक्षक,शिक्षा संस्थानों,समाज,देश,माता-पिता,अभिभावक तथा सभी को भुगतना पड़ता है।लेकिन इन सब करतूतों को देखकर आंख मूंदकर बैठे रहेंगे तथा अपने आपको निर्दोष समझेंगे तो देश की लुटिया डूबने में देर नहीं लगेगी।हजारों वर्षो की गुलामी झेलने के बाद भी हमारी आंखें न खुले तो यह हमारे लिए शर्म की बात है बल्कि डूब मरने की बात है।इसलिए नियम,कानून,शिक्षा पद्धति इत्यादि के कारण हम बालक-बालिकाओं को शिक्षित न करते हो तो भी नैतिक रूप से अपनी जिम्मेदारी समझते हुए हम सभी को अपनी-अपनी जिम्मेदारी और कर्त्तव्य का पालन करते हुए बालक बालिकाओं को शिक्षित करना चाहिए।
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2.बच्चों को शिक्षित करने का तरीका (How to Educate Children?):

  • बच्चों को पढ़ाना-लिखाना तो शिक्षक व शिक्षा संस्थान तथा माता-पिता करते ही हैं परन्तु साथ में उन्हें शिक्षित भी करें।हर बालक-बालिका का मानसिक स्तर,सोचने-समझने का ढंग,रुचि-अरुचि एक जैसी नहीं होती है।उनके चरित्र का निर्माण,संस्कारों का निर्माण,अच्छी आदतों का निर्माण का एक ही तरीका और ढंग नहीं अपनाया जा सकता है।
  • बालक-बालिकाओं के मन जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं।उनके मन में तरह-तरह के प्रश्न उठते हैं।वे ऊर्जावान होते हैं इसलिए सब कुछ जानने की जिज्ञासा होती है।बच्चों के जिज्ञासा भाव की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।वे जो कुछ प्रश्न पूछते हैं उनका समाधान अवश्य करना चाहिए।यदि आप तत्काल उसका समाधान नहीं कर सकते हैं तो उनको बाद में बताने के लिए कह दें।सही उत्तर की तलाश करके उनकी जिज्ञासा को शांत करना चाहिए।परंतु गलत उत्तर नहीं देना चाहिए।
  • बालक-बालिकाएं उछल-कूद करता है,शोर-शराबा करता है,तोड़-फोड़ करता है,शैतानी करता है तो इसका कारण है कि वे ऊर्जा से लबालब भरे होते हैं।अतः उनकी ऊर्जा को सही दिशा देने का प्रयास करना चाहिए।जहाँ तक हो सके उनके पास बैठकर उन्हें पढ़ाना चाहिए।डांट-डपट से काम न लेकर प्यार से समझाना चाहिए।नकारात्मक शब्दों का प्रयोग न करें जैसे बेवकूफ,गधा,उल्लू,मूर्ख,फिसड्डी,शैतान इत्यादि इससे उनके कोमल मन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।यदि वह गणित में कमजोर भी नहीं है तो इन नकारात्मक शब्दों से वह गणित को पढ़ने-सवाल करने और हल करने से कतराएगा।उसके मन में ग्रंथि पड़ जाएगी कि वह गणित में कमजोर है तथा गणित पढ़ना उसके वश की बात नहीं है।
  • कुछ बालक बालिकाएं जन्म से ही प्रतिभावान होते हैं तथा वे सहज ही में गणित तथा अन्य विषयों को स्वयं ही पढ़ लेते हैं।गृहकार्य भी स्वयं ही कर लेते हैं।परंतु ऐसे बालक-बालिकाएं बहुत कम होते हैं।अधिकांश बालकों को दिशा-निर्देश देने तथा स्वयं (माता-पिता) बैठकर पढ़ाना चाहिए।बालकों की तुलना अन्य बालकों से न करें।उन्हें ऐसे न कहें कि अन्य बालक तो स्वयं पढ़ लेते,तू तो बिल्कुल नालायक हैं,पढ़ने में बुद्धू है।तुम्हें तो छोड़कर कहीं जा नहीं सकते हैं।कोई काम नहीं कर सकते हैं।इस तरह के आक्षेपों से बालक-बालिकाओं की थोड़ी बहुत रूचि होती है तो वह भी खत्म हो जाती है।
  • युवावस्था मकान की नींव की तरह होती है।यदि इस अवस्था में बालक-बालिकाएँ भटक जाते हैं तो फिर उन्हें पटरी पर लाना बहुत मुश्किल है।
  • बालक-बालिकाओं का मन पढ़ाई में लगाने हेतु उन्हें कोर्स की किताबों के अलावा कहानियों,धार्मिक पुस्तकें,महापुरुषों की जीवनियाँ,नैतिक शिक्षा की पुस्तकें भी पढ़ने के लिए देनी चाहिए जिससे उन्हें प्रेरणा मिलेगी।यदि बालक-बालिकाओं को पुस्तकें खरीद कर पढ़ाने में असमर्थ हैं तो पुस्तकालय में उन्हें पढ़ने के लिए भेजना चाहिए।वैसे कई ट्रस्ट बहुत सस्ती कीमत पर प्रेरणादायक पुस्तकें छापते हैं।अतः पुस्तकें खरीद कर एक छोटा-सा पुस्तकालय बना लिया जाए तो अति उत्तम होगा।
  • माता-पिता तथा अभिभावक केवल माता-पिता,अभिभावक ही नहीं है बल्कि बालक-बालिकाओं के प्रथम शिक्षक आप ही हैं।इसलिए बच्चों में संस्कार डालना,अच्छी आदतें सीखने,नैतिक व धार्मिक बातें सीखाने में आपका बहुत बड़ा योगदान हो सकता है।
  • जो माता-पिता,अभिभावक पढ़े-लिखे नहीं है तो उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि वे पढ़े-लिखे नहीं है तो उनको शिक्षित कैसे कर सकते हैं? वस्तुतः बालक-बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए साक्षर होना जरूरी नहीं है।प्राचीन काल में माता-पिता,अभिभावक किस्से-कहानियों,धार्मिक बातों,नैतिक बातों तथा महापुरुषों की जीवनियाँ,भगवान के चरित्र का वर्णन मौखिक रूप से करके ही वे बच्चों को शिक्षित करते थे।
  • बालकों पर पढ़ने और अध्ययन करने का दबाव ही नहीं बनाना चाहिए बल्कि उन्हें खेलने भी देना चाहिए।बालक का सर्वांगीण विकास में शारीरिक,मानसिक,चारित्रिक और आत्मिक विकास शामिल है।इसलिए केवल मानसिक विकास ही पर्याप्त नहीं है बल्कि शारीरिक विकास भी जरूरी है।क्योंकि अस्वस्थ शरीर और मन से एकाग्रतापूर्वक अध्ययन नहीं किया जा सकता है।
  • कुछ बालक-बालिकाओं का मन पढ़ाई में नहीं लगता है।हमेशा खेलकूद,मनोरंजन में लगे रहते हैं।इसका कारण यह हो सकता है कि उन्हें पुस्तकों की विषयवस्तु समझ में नहीं आ रही हो।यदि ट्यूटर की व्यवस्था कर सकते हैं तो ट्यूटर की व्यवस्था करें। अन्यथा स्वयं उनकी समस्याओं का समाधान करने की कोशिश करें और पढ़ाई में रुचि जाग्रत करने की कोशिश करें।माता-पिता को अपने बच्चों के साथ समय अवश्य बिताना चाहिए।

3.बच्चों को शिक्षित करने की युक्तियां (Tips for Educating Children):

  • (1.)माता-पिता,अभिभावक को भी अध्ययन करने की प्रवृत्ति अपनानी चाहिए ताकि बच्चों को प्रेरणा मिलेगी।आपके ज्ञान में भी वृद्धि होगी और बच्चों को शिक्षित करने में भी मदद मिलेगी।
  • (2.)बालक-बालिकाओं को सामान्य ज्ञान की पुस्तक यथा प्रतियोगिता दर्पण,स्वास्थ्य और सदाचार की शिक्षा की पुस्तकें पढ़ने के लिए देनी चाहिए तथा छात्र-छात्राओं को भी दैनिक जीवन में थोड़ा समय निकाल कर अवश्य पढ़ना चाहिए।कोर्स के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें पढ़ने से बुद्धि तीव्र होगी तथा व्यावहारिक व आध्यात्मिक ज्ञान में वृद्धि होगी।
  • (3.)अक्सर बालक-बालिकाओं को यह कहते हुए सुना जाता है कि कोर्स की पुस्तकें पढ़ने से ही फुर्सत नहीं मिलती है।परंतु यदि बालक-बालिकाएं अपना ध्यान गलत और व्यर्थ की बातों में न लगाएं,समय व्यर्थ नष्ट न करें,बुरे लोगों की संगति न करें,समय का महत्त्व समझें,हमेशा खेलकूद में ही व्यस्त न रहें तो उन्हें कोर्स के अतिरिक्त पुस्तकें पढ़ने का समय मिल जाएगा।
  • (4.)छात्र-छात्राओं को अच्छी विद्या ग्रहण करने,अच्छी बातें सीखने,अपने जीवन को श्रेष्ठ और उन्नत बनाने की ओर ध्यान देने में समय व्यतीत करना चाहिए।मौज-मस्ती,मनोरंजन और शौक पूरे करने के लिए सारी जिंदगी का समय पड़ा है।परंतु विद्यार्थी काल को फालतू बर्बाद कर दिया तो फिर सारी जिंदगी भर पश्चाताप करना पड़ेगा।
  • (5.)विद्यार्थी जीवन में आलस्य,लापरवाही,प्रमाद,आज का काम कल पर टालना,फालतू कार्यों में समय नष्ट करना,गपशप करना,अत्यधिक सिनेमा देखना,टीवी देखना इन कार्यों को नहीं करना चाहिए।फालतू के कार्यों में समय नष्ट करने पर आप यदि किसी जॉब करने लायक तथा सांसारिक व पारिवारिक कर्त्तव्यों का पालन करने लायक नहीं बन सके तो जीवनभर ये मौज-मस्ती व फालतू में समय नष्ट करने का पश्चाताप होगा लेकिन तब कुछ नहीं किया जा सकेगा।
  • (6.)वाकई में शिक्षित होने के लिए छात्र-छात्राओं को माता-पिता,अभिभावक,शिक्षक और गुरु से मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए।उनके आदेशों का पालन करें,बुरे कार्यों से बचकर रहना तथा विद्याध्ययन में जुटे रहना चाहिए।

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4.बच्चों को शिक्षित करने का दृष्टांत (Parable of Educating Children):

  • एक निजी स्कूल में पुस्तकें स्कूल से ही दी जाती थी।पुस्तकों का संचालक गणित अध्यापक को बनाया गया था।एक दिन गणित अध्यापक गणित कक्ष में बैठे थे।पुस्तकें भी उसी कक्ष में रखी हुई थी। एक उद्दंड छात्र भी था जो गणित अध्यापक को नीचा दिखाना चाहता था।उस दिन वह उद्दण्ड छात्र उनके गणित कक्ष में गया और एक नजर पुस्तकों पर डाली।हर विषय की पुस्तकों का ढेर अलग-अलग लगा हुआ था।चूँकि उसके संचालक गणित अध्यापक थे।वह उद्दंड छात्र गणित से बहुत नफरत करता था।पुस्तकों को देखते-देखते उसकी नजर गणित की पुस्तकों के ढेर पर ठहर गई।
  • उस उद्दण्ड छात्र ने गणित की पुस्तक उठाई और उसकी कीमत पूछी।गणित शिक्षक ने कहा कि ₹128।उसने उस पुस्तक के दो टुकड़े करके पूछा कि अब इसका क्या मूल्य है? गणित अध्यापक ने कहा कि ₹64।आधी पुस्तक के भी दो टुकड़े करके उसका मूल्य पूछा,₹32 गणित अध्यापक ने कहा। वह उद्दण्ड छात्र इसी प्रकार ओर टुकड़े करता गया और मूल्य पूछता गया।गणित अध्यापक भी धैर्यपूर्वक मूल्य आधा करके बताते रहे।
  • तब उस उद्दण्ड छात्र ने ठहाका लगाते हुए गणित की पुस्तक के वे सभी टुकड़े गणित अध्यापक के सामने फेंक दिए और उस पुस्तक का मूल्य ₹128 रुपये देने लगा।गणित अध्यापक ने कहा कि मैं इस पुस्तक की कीमत नहीं ले सकता हूं क्योंकि तुमने पुस्तक तो खरीदी ही नहीं।
  • वह उद्दण्ड छात्र गणित अध्यापक के सामने नतमस्तक हो गया।उसने शर्मिन्दा होकर कहा कि मेरे कारण इस पुस्तक की कीमत आपको अपनी जेब से भरनी पड़ेगी।
  • गणित अध्यापक ने कहा कि यह केवल कागज के टुकड़ों की पुस्तक ही नहीं थी बल्कि इस पुस्तक को तैयार करने में कई विद्वानों ने अपना समय और परिश्रम भी लगाया था।उनकी तप और साधना का फल है यह पुस्तक।उन्होंने रात को रात नहीं समझा,दिन को दिन नहीं समझा।अनवरत रात-रात जागकर तथा पुरुषार्थ करके इस पुस्तक को तैयार किया है।उद्दण्ड छात्र ने कहा कि मुझसे बड़ी भूल हो गई है,मुझे क्षमा कर दो।आपको पुस्तक को फाड़ने से पहले ही रोक देना चाहिए था।इसके जवाब में गणित अध्यापक ने कहा कि हो सकता है कि तब तुम उद्दण्ता और दुष्टता न करने की शिक्षा को ठीक प्रकार से ग्रहण नहीं कर पाते।सारांश यह है कि बालक-बालिकाओं को शिक्षित करना तप और साधना है,बहुत धैर्य तथा संयम रखना पड़ता है।स्वयं को चरित्रवान बनाना पड़ता है तभी वे शिक्षित हो सकते हैं।उपर्युक्त आर्टिकल में बच्चों को योग्यताधारी के साथ शिक्षित कैसे करें? (How to Educate Children with Qualified?),बच्चों को डिग्रीधारी के साथ-साथ शिक्षित कैसे बनाएं? (How to Make Children Degree Holder as Well as Educated?) के बारे में बताया गया है।

5.सवाल के अलग-अलग हल से परेशानी (हास्य-व्यंग्य) (Trouble with Different Solutions to Questions):

  • परेशान शुभ्रा (शिक्षिका से):क्या आप मुझे इस द्विघात समीकरण का हल बताएंगी?
  • शिक्षिकाःयह सवाल गुणनखंड विधि से हल कर लो।
  • शुभ्राः(अपना सिर पकड़कर) क्या परेशानी है? मैं सुबह से इस सवाल का हल पूछ रही हूं,सब अलग-अलग ही बताते हैं।कोई कहता है इसे पूर्ण वर्ग विधि से हल करो।कोई कहता है इसे श्रीधराचार्य के सूत्र से हल करो।ओर आप कह रही हैं कि गुणनखण्ड विधि से हल करो।

6.बच्चों को योग्यताधारी के साथ शिक्षित कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Educate Children with Qualified?),बच्चों को डिग्रीधारी के साथ-साथ शिक्षित कैसे बनाएं? (How to Make Children Degree Holder as Well as Educated?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.बच्चे शिक्षित क्यों नहीं हो पाते हैं? (Why Aren’t Children Educated?):

उत्तर:आधुनिक शिक्षा प्रणाली में बच्चों को शिक्षित करने की पाठ्य सामग्री शामिल नहीं की गई है।ऊपर से सिनेमा,टीवी और बाजार में मिलने वाले कामुक साहित्य,इंटरनेट पर उपलब्ध पोर्न सामग्री,तड़क-भड़क वाले रहन-सहन,वातावरण आग में घी का काम कर रहे हैं।बच्चों को शिक्षित करना टेढ़ी खीर हो गई है।उपर्युक्त कारण से छात्र-छात्राएं उम्र से पहले ही परिपक्व हो रहे हैं तथा अय्याशी करना,मौज-मस्ती करना,सेक्सी फिल्में देखना और युवाकाल में सेक्स का भरपूर आनंद लेने के कारण गलत दिशा में या कह लीजिए कि गहरी खाई में गिर रहे हैं।इन सब के कारण युवावर्ग ही क्या परिपक्व व्यक्ति के विचार भी दूषित हो रहे हैं यानि सारे कुए में मांग मिली हुई है।जब शिक्षित करने वाले लोग ही भटक रहे हैं तो बालक-बालिकाओं की क्या बात की जाए।

प्रश्न:2.छात्र-छात्राओं को पढ़ाई बोझ क्यों लगती है? (Why Do Students Feel Burdened with Studies?):

उत्तर:बच्चे सबसे अधिक माता-पिता और अभिभावक के संपर्क में रहते हैं।बच्चे सबसे अधिक इन्हीं से तथा इनके आचरण से ही सीखते हैं।आज के समय में बच्चों को पढ़ाई के प्रति एक तरह से घृणा का भाव जाग्रत हो रहा है क्योंकि यह उनके जीवन में मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि एक तरह का बोझ जैसा लगता है जिसे ढोने के लिए उन्हें विवश होना पड़ता है।इसका कारण भी है कि माता-पिता उन्हें पढ़ने,स्कूल जाने,होमवर्क करने,अच्छे अंक प्राप्त करने,प्रतियोगिताओं में प्रथम आने के लिए दबाव डालते हैं न कि उन्हें प्रेरित करते हैं।इसी प्रकार अध्यापक भी उन पर होमवर्क पूरा करने के लिए मानसिक दबाव डालते हैं और न करने पर उन्हें सजा दी जाती है।बच्चों को इतना होमवर्क दिया जाता है कि उनका मनोरंजन का समय होमवर्क पूरा करने में ही चला जाता है और यदि वे पूरा नहीं करते हैं तो उन्हें डांट खानी पड़ती है।तात्पर्य यह कि बच्चों को प्रेरित करने,समझाने की बजाय दाब-दबाव,डांट-फटकार से काम लिया जाता है।

प्रश्न:3.बच्चों पर इंटरनेट का क्या प्रभाव पड़ता है? (What is the Impact of the Internet on Children?):

उत्तर:वर्तमान समय में टेक्नोलॉजी भी इतनी विकसित हो गई है कि बच्चे घर बैठे ही इंटरनेट,टीवी के माध्यम से बहुत कुछ देखते हैं,बहुत कुछ सीखते हैं और वीडियो गेम आदि खेलने में अपना बहुत सारा समय बिता देते हैं।ये सभी बच्चों के कोमल मनःस्थिति पर ऐसा प्रभाव डालते हैं कि उन्हें यह सब करने की एक प्रकार से लत लग जाती है और टीवी देखने,इंटरनेट का प्रयोग करने और वीडियो गेम खेलने आदि से वे स्वयं को रोक नहीं पाते हैं और इनके दुष्प्रभावों से भी बच नहीं पाते क्योंकि जैसी चीजें वे देखते हैं,वैसा ही करते हैं।उनके बालहठ के आगे किसी की नहीं चलती और इसका परिणाम होता है,बच्चों द्वारा अमर्यादित व्यवहार करना,आक्रोशित होना आदि।इन सबको रोकना भी आसान नहीं होता क्योंकि बच्चों के अंदर उर्जा का ऐसा अंबार होता है जो किसी न किसी रूप में बाहर निकलती ही है।यदि इसे समय पर सही ढंग से,सही दिशा न दी जाए तो उसका गलत मार्ग में जाना स्वाभाविक है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा बच्चों को योग्यताधारी के साथ शिक्षित कैसे करें? (How to Educate Children with Qualified?),बच्चों को डिग्रीधारी के साथ-साथ शिक्षित कैसे बनाएं? (How to Make Children Degree Holder as Well as Educated?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

How to Educate Children with Qualified?

बच्चों को योग्यताधारी के साथ शिक्षित कैसे करें?
(How to Educate Children with Qualified?)

How to Educate Children with Qualified?

बच्चों को योग्यताधारी के साथ शिक्षित कैसे करें? (How to Educate Children with Qualified?)
यह आधुनिक युग में माता-पिता,अभिभावक,समाज तथा छात्र-छात्राओं की
सबसे बड़ी समस्या है।ये सभी बच्चों को योग्यताधारी के साथ शिक्षित बनाना चाहते हैं।

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