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Sexuality Preventing The Study

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1.अध्ययन में बाधक कामुकता (Sexuality Preventing The Study),विद्यार्थी जीवन में कामुकता के दुष्प्रभाव (Side Effects of Sexuality in Student Life):

  • अध्ययन में बाधक कामुकता (Sexuality Preventing The Study) का विद्यार्थी के दिल और दिमाग पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि उसे कामुक चिंतन के अतिरिक्त कुछ नजर ही नहीं आता है।
  • यों काम को भारतीय ऋषियों ने चार पुरुषार्थों धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष में स्थान दिया है।काम (Work) और कामुकता (Sexuality) दोनों काम (Work) ही होते हैं परंतु इन दोनों में फर्क इनके करने के उद्देश्य और ढंग में है।विद्यार्थी काल में काम (Sex),क्रोध, लोभ इत्यादि को वर्जित किया गया है।चाणक्य नीति के इस लोक में स्पष्ट निर्देश है:
  • “कामं क्रोधं तथा लोभं स्वादं श्रृंगार कौतुके।
    अतिनिद्रातिसेवे च विद्यार्थी ह्यष्ट वर्जयेत।।
  • भावार्थ:विद्यार्थी को काम,क्रोध,लोभ,स्वाद,श्रृंगार, खेल-तमाशे,बहुत अधिक सोना और सेवा करना इन आठ कर्मों को त्याग देना चाहिए अर्थात् नहीं करना चाहिए।
  • श्रीमद्भगवद्गीता में भी कहा है कि:
    “त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मात्मन:।
    काम:क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादे तस्त्रयं त्यजेत्।। अध्याय-16
  • भावार्थ:काम,क्रोध एवं लोभ यह तीनों ही तीन प्रकार के नरक के द्वार हैं एवं आत्मज्ञान के नाश करने वाले हैं इसलिए श्रेय के अभिलाषी पुरुष को काम,क्रोध तथा लोभ इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए।
  • कर्म से तात्पर्य है अपने सांसारिक कर्तव्यों,धार्मिक कृत्यों तथा आध्यात्मिक कृत्यों को करना।
  • विद्यार्थी को काम (sex) या कामुकता (Sexuality) के लिए मना किया गया है।क्योंकि कामुकता के अधीन होकर विद्यार्थी विद्याध्ययन नहीं कर सकता है।हमारे शरीर की जो ऊर्जा है जब वह कामवासना में लग जाती है तो उसके चंगुल में फंसने के बाद निकलना बहुत मुश्किल है।जब यही ऊर्जा उर्ध्वमुखी होकर विद्याध्ययन,बौद्धिक कार्य तथा आध्यात्मिक में लग ज़ाती है तो काम ऊर्जा, दिव्य ऊर्जा,भव्य ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।विद्यार्थी के चेहरे पर ओज तथा तेज दमकने लगता है।उसे हर कार्य करने में आनंद की प्राप्ति होती है।
  • जबकि यही ऊर्जा कामवासना में लग जाती है तो वीर्यपात के द्वारा ह्रास होता है।कामुक (Sexy) चिन्तन बने रहने से यह ऊर्जा क्षीण होती जाती है जिसकी पूर्ति करना मुश्किल बल्कि असम्भव है। कामुकता का अर्थ यौन क्रीड़ा (Sexual Activity),यौन कृत्य का चिंतन करते रहना।ऐसा व्यक्ति वर्तमान में नहीं जीता बल्कि भूतकाल में जीता है।भूतकाल में किए गए यौन कार्य का चिंतन करता रहता है।इसके अलावा वह भविष्य में यौन कार्य करने की जुगत लगाता है,योजना बनाता है। इस प्रकार वह कामवासना में झुलसता रहता है। धीरे-धीरे काम क्रीड़ा किए बिना ही उसका वीर्यपात हो जाता है।उसका शरीर निर्बल,निस्तेज और असहाय हो जाता है।उसकी शक्ति का क्षय होता रहता है।धीरे-धीरे उसकी यौनशक्ति का ह्रास हो जाता है तो उसकी पूर्ति के लिए शराब,चरस,अफीम, ब्राउन शुगर तथा ड्रग्स का सेवन करने लगता है।
  • जिस प्रकार कागज के दीमक लग जाती है,लकड़ी के कीड़ा लग जाता है,गेहूँ (अनाज) के घुन लग जाता है,अमरबेल पेड़ को खा जाती है,क्रोध से विवेक नष्ट हो जाता है उसी प्रकार कामुकता,कामक्रीड़ा विद्यार्थी के पुरुषत्व को नष्ट कर देती है।
    ऐसे विद्यार्थी की मानसिक शक्ति नष्ट हो जाती है। उसमें कुण्ठा,निराशा,हीनता,तनाव तथा अन्य मानसिक तथा शारीरिक बीमारियां लग जाती है।
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2.पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव (Side Effects of Western Culture):

  • पाश्चात्य देशों में काम केवल भोग के रूप में,काम क्रीड़ा  के रूप में जाना जाता है।स्त्री को केवल भोग के रूप में देखते हैं।वहाँ उन्मुक्त सेक्स,ब्लू फिल्में ग्रुप सेक्स,नग्न क्लब,सेक्स सम्बन्धी पुस्तकें पढ़कर,सेक्स सम्बन्धी फिल्मों को देखकर,फिल्मी गानों को सुनकर,पोर्नोग्राफी के एल्बम,एडल्ट फिल्मों इत्यादि के द्वारा कामवासना को भड़काया जाता है और उनसे तृप्त करने की कोशिश की जाती है।वहाँ सेक्स को गुप्त न मानकर सार्वजनिक माना जाता है।उदाहरणार्थ:
  • मियामी अमेरिका (Miami, America) दुनिया में सैक्स के एक बड़े व्यापारिक केंद्र के रूप में बदल चुका है।कामुक व्यक्तियों,शराब खोरों और सैर सपाटा करने वाले व्यक्तियों के लिए मियामी ऐशगाह बन चुका है।अमेरिकी छात्र-छात्राएं ऐशगाह के लिए मियामी को सर्वाधिक पसंद करते हैं।
  • आखिर मियामी में ऐसा क्या ‘सुरखाब का पर’ लगा हुआ है जिसके चलते छात्र और मौज मस्ती करने वाले व्यक्ति परिंदे की तरह उड़ते हुए यहां चले आते हैं।दरअसल वहां की होटलों में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है जिसका नाम है ‘बेस्ट बॉडी कंपटीशन’ यानी सर्वाधिक सुंदर शरीर प्रतियोगिता। इसमें पूरा माहौल मौजमस्ती से लबरेज है।शराब के नशे में मस्त सैकड़ों छात्र-छात्राएं अंग प्रदर्शन करने वाले परिधान पहने हुए इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए चहलकदमी कर रहे हैं।तेज संगीत लहरिया हवा में गूंज रही है।यहाँ हर कोई छात्र-छात्रा अपने हाथों में बीयर की बोतल का जाम लिए नृत्य कर रहा है।ये बिकनी तथा कम कपड़े पहने हुए रहते हैं। सभी अपने बदन की नुमाइश करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते हैं।वे संगीत लहरियों पर थिरकते हुए अपने जिस्म व पिछले भाग का खुलकर प्रदर्शन करते हैं।
  • इसी प्रकार स्प्रिंग ब्रैक (बसंतोत्सव) के उत्सव का हाल है।अमरीकी विश्वविद्यालय की छात्र-छात्राएं ‘स्प्रिंग ब्रैक’ मनाने के लिए प्रतिवर्ष फ्लोरिडा आते हैं।अमेरिका में स्प्रिंग ब्रैक को उल्लास के साथ एक पर्व के तौर पर मनाया जाता है।जिस महीने में ईस्टर संडे (प्रतिवर्ष 26 मार्च के बाद पड़ता है।उसी दिन यानी पूर्णिमा भी होती है,उसी दिन रविवार के दिन ‘ईस्टर संडे’ का पर्व मनाया जाता है) का पर्व पड़ता है।उसी माह में स्प्रिंग यानी वसंत ऋतु के इस सुहाने मौसम में समूचे अमेरिका के कॉलेजों में छुट्टियां घोषित हो जाती हैं।
  • अमेरिकी छात्र-छात्राएं इस स्प्रिंग ब्रेक को साथ बैठकर शराब पीने-पिलाने और कामुक-व्यवहार के प्रदर्शन का पर्याय बना लिया है।सामान्यत 20 वर्ष से कम उम्र के लड़के-लड़कियां ही इस उत्सव के दौरान जोर-शोर से शामिल होते हैं।ये छात्र-छात्राएं आवासों के परिसर में पेशाब कर देते हैं और जमकर हुड़दंग मचाते हैं।जबकि फ्लोरिडा राज्य में 21 वर्ष से कम उम्र में शराब पीना कानूनी तौर पर प्रतिबंधित है।मियामी के साउथ बीच पर हर मौसम में शराब और सेक्स के मशगूल होने के आइटम मौजूद रहते हैं।
  • तीसरा एक उदाहरण लीजिए पाम स्प्रिंग्स (केलिफोर्निया अमेरिका) एक ऐसी जगह है जहां पर वर्ष में कम से कम एक बार स्त्री समलैंगिकों (लेस्बियंस) का सबसे बड़ा जमावड़ा होता है। दुनिया में पाम स्प्रिंग्स एक मात्र ऐसी जगह है जो स्त्री समलैंगिकों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं है।संयुक्त राज्य अमेरिका का एक रूढ़िवादी छोटा टाउन है।इस टाउन की विशेषता यह है कि यहां पर साल में एक बार एक सप्ताह तक गोल्फ खेल की एक प्रतियोगिता के आयोजन के नाम पर तकरीबन 2000 महिला समलैंगिकों का जमावड़ा होता है। आखिर गोल्फ के खेल और समलेंगिकों के जमावड़े का क्या तुक है?पर सच्चाई यही है कि गोल्फ के खेल की प्रतियोगिता के नाम पर ही यहां स्त्री समलैंगिकों का समागम होता है।कई दशकों से समलैंगिक (लेस्बियंस,Lesbians) पाम स्प्रिंग्स के मिशन हिल्स काउंटी क्लब आते रहे हैं।इस प्रतियोगिता का नाम ‘दीनाह शोर लेडीज प्रोफेशनल गोल्फ एसोसिएशन टूर्नामेंट’ रखा गया है।दीनाह शोर एक टीवी चैनल की एंकर और गोल्फ खेल की एक विशेषज्ञा थी जिसकी मृत्यु 1994 में हुई थी।
  • वस्तुतः लास एंजिल्स से 100 मील पश्चिम में स्थित पाम स्प्रिंग्स में आयोजित होने वाली इस प्रतियोगिता के शुरुआती दौर में स्त्रियां गोल्फ खेल खेलने और उसे देखने के मकसद से ही आया करती थी।किंतु कालांतर में इस प्रतियोगिता में शामिल होने वाली महिलाओं के लिए गोल्फ खेल तो गौण हो गया और एक दूसरा ही गोल्फ खेल चालू हो गया है।अब यहां 15,000 से अधिक महिलाएं विभिन्न एयरलाइनों के जरिए पाम स्प्रिंग्स पहुंचती है जिनमें शायद ही किसी महिला का गोल्फ के खेल से जुड़ाव हो।जाहिर है ये सब महिलाएं किसी अन्य गोल्फ खेल की चाहत के कारण ही यहां आती है।जो स्त्री समलैंगिक (Lesbians) यहां करते हैं।
  • इसे विडंबना ही कहेंगे कि वर्जना को न मानने वाली ये स्त्री समलैंगिक (Lesbians) आपस में निजी गोपनीयता को अत्यंत महत्व देती हैं।वे नहीं चाहती कि दो समलैंगिकों (Lesbians) के संबंध बाहरी दुनिया में प्रचारित हो।यहां पर एक अन्य प्रतियोगिता लीना शोर गोल्फ क्लासिक भी आयोजित होती है।उसका भी मकसद उपर्युक्त दीनाह शोर प्रतियोगिता के समानांतर ही है।आखिर इन समलैंगिकों (Lesbians) के बारे में एक सवाल यह उठता ही है कि ऐसी महिलाओं को ‘मातृत्व’ का सुख पाने की चाह नहीं होती है क्या।मनोविज्ञान के अनुसार प्रत्येक महिला में मातृत्व की चाह होती है।
  • भारतीय युवक-युवतियां पाश्चात्य देशों के इन छात्र-छात्राओं के संपर्क में आते हैं तो उसका प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता है।पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण भारत में वैलेंटाइन डे,अप्रैल फूल, स्प्रिंग ब्रेक जैसे उत्सव मनाए जाते हैं जिसमें भारतीय छात्र-छात्राएं अपने सैक्स (काम क्रीड़ा) का खुलेआम (बड़े शहरों में) इजहार करते हैं। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव ही है कि दबे पैर भारत में लिव इन रिलेशशन (Live in Relationship) ने पांव पसार लिए है।भारतीय छात्र-छात्राएं भी सैक्स का लुत्फ उठाने से नहीं चूकते है।जवानी में भटकने के अवसर ज्यादा होते हैं।जबकि इसमें तप और समर्पण से उन्हें विद्या अर्जन करना चाहिए।

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3.भारतीय संस्कृति का गलत अर्थ लगाना (Misinterpretation of Indian culture):

  • भारतीय संस्कृति के उदाहरण देकर कई विदेशी विद्वान सप्रमाण यह उद्घोषित करते हैं कि भारत में खुलेआम सेक्स के प्रदर्शन के नमूने मिल जाएंगे।भारतीय छात्र-छात्राएं अगर गलत दिशा में जा रहे हैं तो यह सब उनके खुद की पुरातन संस्कृति का प्रभाव है।उदाहरणार्थ भारतीय मंदिरों में मिथुन मूर्तियों की मौजूदगी।दरअसल अधकचरी मानसिकता वाले लोग इसे भारतीय संस्कृति पर कलंक करार देते हैं।खजुराहो के मंदिरों की मूर्ति-कला विशेष रूप से मिथुन मूर्तियां संपूर्ण संसार में जिज्ञासा का विषय रही है।भारतीय संस्कृति पर कठमुल्ला दृष्टि वाले समर्थकों को भारत के देव मंदिरों में मिथुन मूर्तियां होने का औचित्य सामान्यतः सहज स्वीकार नहीं हो पाता है। परंतु जिन्हें भारतीय कला और अध्यात्म परंपरा का समुचित और गहरा ज्ञान है वे इन मूर्तियों की पृष्ठभूमि में निहित भाव और उद्देश्य तथा सौंदर्यशास्त्र को आत्मसात कर सकते हैं।
  • किसी टीवी सीरियल,पुस्तक अथवा फिल्मों में दर्शकों,पाठकों को यह बताने की चेष्टा नहीं की गई कि मंदिर क्या है? हमारी धर्म में अनेक देवी-देवताएं क्यों हैं? देवी-देवताओं के अनेक सिर और हाथ क्यों है? भारतीय मनीषा ने भौतिकता को अस्वीकार न करके उसे जीवन के साथ जोड़कर ही देखा है।यहाँ भौतिकता और आध्यात्मिकता समन्वित रूप में जानी-समझी जाती है।भारतीय दर्शन में काम पुरुषार्थ चतुष्टय में से एक है और उसे सांसारिक एवं आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से भरपूर स्वीकृति और सम्मान मिलता रहा है जिसके साक्ष्य भारत के प्राचीन शास्त्रों में प्रचुरता से उपलब्ध है। काम के बिना जीवन की और दर्शन या अध्यात्म के उच्चतम शिखर की कल्पना ही नहीं की जा सकती। काम की सिद्धि ही अध्यात्म की सिद्धि का आधार है।इसे विद्वानों और मनीषियों ने स्वीकार किया है। जरूरत है संतुलन और समन्वय की।प्रयोग की और सिद्धि की।इसका ही संकेत खजुराहो की बाह्य मूर्तियों के भीतर प्रतिष्ठित देव-विग्रहों के माध्यम से समझा जा सकता है।
    खजुराहो की मिथुन-मूर्तियां इस दृष्टि से अद्भुत और विशिष्ट हैं।
  • खजुराहो के कलाकार का जीवन के सभी अंगों पर प्रकाश डालना था।उसकी दृष्टि जीवन की संपूर्णता की ओर थी।यही कारण है कि खजुराहो के कलाकारों ने जीवन के किसी पक्ष को न तो छोड़ा है और न विस्मृत होने दिया है।यह मध्ययुगीन भारत का जीता जागता चित्र तथा मंदिर शिल्प का चरमोत्कर्ष है।जहाँ आंखों को सुख ही नहीं,आत्मा को शांति एवं आनंद की प्राप्ति होती है।
  • हजारों वर्षों की लंबी उम्र पूरा करने वाले खजुराहो के इन मंदिरों की अधिक ख्याति मिथुन-मूर्तियों के कारण ही रही है।ऐसा लगता है कि पाषाण पर काम का इतना सजीव तथा रंगीन चित्रण परम अनुभूति के बिना संभव नहीं है।
    खजुराहो के मंदिरों में उकेरी गई सभी मिथुन प्रतिमाएं भारतीय तंत्र दर्शन पर आधारित है।इनमें कुछ भी अधार्मिक,अश्लील और अभद्र नहीं है।कामपरक प्रतिमाओं के पक्ष में विभिन्न धर्मों के उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं।आदिकाल से ही भारतीय विचारधारा में धर्म और काम को समुचित स्थान प्राप्त था।वेदो में भी स्त्री पुरुष में पाए जाने वाले अंतर्निहित सौंदर्य की पहचान तथा परमानंद के तात्त्विक रूप को उदात्त काव्यात्मक भावना के रूप में प्रस्तुत किया गया है तथा बतलाया गया कि तंत्रशास्त्र में मनुष्य का पूर्ण स्वरूप साधना का विषय है न कि उसके किसी अंग का।इस तरह काम और धर्म के अटूट संबंध को स्वीकार किया गया।
  • जब हम आध्यात्मिक जीवन एवं संस्कृति में जीवन,जीवन की रचना-धर्मिता और उसका वैभव परम आवश्यक है तब उस प्रश्न का सहज समाधान हो जाता है जिसने दीर्घकाल से बहुत से लोगों को परेशान कर डाला है कि मिथुन-मूर्तियां देवताओं का एक अंग क्यों है?
  • भारतीय मंदिरों में मिथुन-मूर्तियों की मौजूदगी केवल उन अपरिपक्व लोगों के लिए परेशानी का कारण हो सकती है जो जीवन से भयभीत होकर जीवन को ही अस्वीकार करते हैं और जीवन की वास्तविकताओं के बीच रहकर भी निस्सारता की अनुभूति में उसकी अतिशय समृद्धि से दूर भागना ही जीवन का मकसद बना लेते हैं।
  • दरअसल ईसाई मत में भी काम प्रतीकों को स्वीकृति तो मिली है मगर वहां उसकी प्रतीकात्मकता उतनी स्पष्ट नहीं हो पाई है क्योंकि ईसाईयत में सेक्स को पाप और दुर्बलता माना गया है।इसी कारण वह वर्जना का शिकार है।जबकि हमारे यहां प्रजनन वंशवृद्धि एवं सृष्टि विकास का प्रतीक तथा सम्मान्य है।हमारे साहित्य,दर्शन एवं कला माध्यमों में इसे गहराई से देखा जा सकता है। मां यशोदा के बालकृष्ण को स्तनपान कराते हुए बहुत तेरे चित्रण मिलते हैं जबकि माता मेरी शिशु यीशु को जीवन के लिए आवश्यक एवं स्वाभाविकतम-स्तनपान प्रदर्शित नहीं कर सकती, हमारे यहां नारी की संपूर्णता मां बनने में सहज स्वीकार्य है।
  • दरअसल हरेक स्त्री और पुरुष उभयलिंगी होता है। तात्पर्य यह है कि हर पुरुष शरीर में स्त्री तत्त्व तथा स्त्री शरीर में पुरुष तत्त्व भी विशिष्ट अनुपात में मौजूद रहता है।इसके बिगड़ने पर असंतुलन पैदा होता है।यौन परिवर्तन का यही कारण है।तंत्र के अनुसार अर्धनारीश्वर मानव की संपूर्णता का परिचायक है।अर्ध्दांगनी शब्द भी इसी वास्तविकता को प्रकट करता है।स्त्री और पुरुष मिलकर एक तीसरे ही गुण वाले व्यक्ति का सृजन करते हैं।जैसे हाइड्रोजन तथा आक्सीजन से मिलकर जल बन जाता है।इस सिलसिले में वृहदारण्यकोपनिषद का श्लोक स्मरण कराया गया है:
  • “तद् वा अस्यैतदतिच्छन्दा अपहतपापमाशय रूपम् तद् यथा प्रियया स्त्रिया सम्परिष्वक्तो न बाह्यं किन्चन् वेद नान्तरमेवामेवायं पुरुष: प्राझेनात्मना सम्परिष्वक्तो न बाह्यं किन्चन् वेद नान्तरं तद् वा अस्यैतदाप्तकमात्मकाममकामं रूपं शोकान्तरम्।।
  • भावार्थ:प्रिया से आलिंगित पुरुष काम्य प्राप्ति के उपरांत निष्काम-भाव को प्राप्त होकर आभ्यंतर और बाह्य जगत को भूल जाता है, उसी तरह आध्यात्मिक पुरुष प्रज्ञात मन से आलिंगित होने के बाद अभेद की स्थिति को प्राप्त कर आप्त-काम अकाम, पापरहित, शोकरहित और भय रहित हो जाता है।
  • विज्ञान ने हमें सावयिक जीवन की गतिशीलता से बहुत पहले ही परिचित करा दिया है।प्रत्येक जीवित जीवाणु को विपरीत ऊर्जाओं का क्रियाशील मेल है, जो स्वतः ही पुनः उत्पादन लगातार असंतुलित होता रहता है।गतिशीलता की कमी वाले जीवाणु पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व ग्रहण करने एवं स्वयं को क्रियाशील बनाने के लिए बार-बार प्रयत्नशील होते हैं जिससे यह अनुमान लगा लेना निश्चित है कि पुरुष प्रधानता तथा स्त्री प्रधानता के दबावों वाला व्यक्ति पूरक किस्म के व्यक्ति से ही संभोग चाहता है और दूसरे शब्दों में प्रत्येक द्विलिंगी व्यक्ति पूर्णतः संतुलित है और अपने भीतर के संतुलन को बाह्य संतुलन के साथ पूर्व स्थिति में लाने के लिए बाध्य है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अध्ययन में बाधक कामुकता (Sexuality Preventing The Study),विद्यार्थी जीवन में कामुकता के दुष्प्रभाव (Side Effects of Sexuality in Student Life) के बारे में बताया गया है।

4.स्टूडेन्ट की गलतफहमी (हास्य-व्यंग्य) (Student’s Misunderstanding)(Humour-Satire):

  • रोहन:(अपने मित्र से) यार मैं गणित में बहुत कमजोर हूं।मुझे किससे मार्गदर्शन लेना चाहिए।
  • मित्र:(रोहन से) तुम यूनिक हॉस्पिटल के कमरा नंबर 25 में चले जाओ।वहां एक गणितज्ञ बैठते हैं।वे सटीक मार्गदर्शन करते हैं।
  • रोहन:भूल से कमरा नंबर 25 के बजाय कमरा नंबर 52 में चला जाता है।
    रोहन ने कमरे में जाते ही अभिवादन किया।गुड मॉर्निंग गणितज्ञ महोदय।मेरी एक समस्या है।
    उस कमरे में मनोवैज्ञानिक बैठे हूए थे उन्होंने छूटते ही कहा मुझे आपकी समस्या मालूम है।
  • मनोवैज्ञानिक:आपकी गणित में याददाश्त बहुत कमजोर है।
  • रोहन:आपको इतनी जल्दी कैसे मालूम हुआ?
  • मनोवैज्ञानिक:यह कमरा नंबर 52 है।मैं एक मनोवैज्ञानिक हूं।आपने बाहर नेमप्लेट पढ़ी नहीं है।

5.अध्ययन में बाधक कामुकता (Sexuality Preventing The Study),विद्यार्थी जीवन में कामुकता के दुष्प्रभाव (Side Effects of Sexuality in Student Life) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.कामुकता पर नियंत्रण के लिए इंद्रिय निग्रह कैसे करें? (How to Restraint of Sensual Desire for control Sexuality?):

उत्तर:इंद्रिय निग्रह करने के लिए मन पर नियंत्रण करना आवश्यक है क्योंकि इंद्रियां मन के निर्देश पर ही कार्य करती हैं।मन को नियंत्रण करने के लिए मन में शुभ तथा अच्छे विचारों का चिंतन करना चाहिए।मन में कामवासना अथवा बुरे विचार आए तो उनको कंपनी नहीं देनी चाहिए।दूसरा तरीका यह कि हमेशा गणित विषय अथवा अपनी विषय की पुस्तकें अथवा धार्मिक व सदाचरण की पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए।तीसरा तरीका है कि ध्यान व योग का अभ्यास करना चाहिए।मन को एकाग्र करने का अभ्यास करना चाहिए।ध्यान किसी ज्योति स्वरूप प्रकाश,इष्ट देव या ॐ का करना चाहिए।चौथा उपाय है कि किसी मंत्र का जप करना चाहिए।जैसे महामृत्युंजय मंत्र अथवा गायत्री मंत्र का जप किया जा सकता है।पाँचवा उपाय गीता में बताया गया है कि मन को अभ्यास और वैराग्य से वश में किया जा सकता है।अभ्यास अर्थात् मन को एकाग्र करना तथा वैराग्य अर्थातः मन को विकारों से मुक्त करना चाहिए।

प्रश्न:2.कामवासना पर नियन्त्रण के लिए इन्द्रिय निग्रह के साथ ओर कोई उपाय क्या है? (What is the Other Way With Sensory Control to Control Sexuality?):

उत्तर:ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करना।ब्रह्मचर्य का खास कर्तव्य यह है कि सभी इंद्रियों का संयम करके एक विद्याभ्यास में अपना पूरा ध्यान लगा दें। विशेषकर वीर्य की रक्षा करते हुए सब विद्याओं का अध्ययन करें। बालक और बालिकाएं अलग-अलग अपने विद्यालयों में विद्याभ्यास करें।अर्थात जब तक वे ब्रह्मचारी और ब्रह्मचारिणी रहें,तब तक परस्पर स्त्री-पुरुष का दर्शन,स्पर्शन,एकांत सेवन, संभाषण,विषय कथा,परस्पर क्रीडा, विषय का ध्यान और परस्पर संग इन आठ प्रकार के मैथुनों का त्याग करें।स्वप्न में भी वीर्य को न गिरने दे। जब विषय का (कामवासनाओं तथा काम, क्रोध, लोभ इत्यादि विकारों) ध्यान ही नहीं करेंगे तो स्वपन में भी वीर्य कैसे गिरेगा? आजकल पाठशालाओं में बालकगण हस्तक्रिया इत्यादि से वीर्य को नष्ट करके किस प्रकार अपने जीवन को बर्बाद करते हैं सो बतलाने की आवश्यकता नहीं।वीर्य की रक्षा न करने से ही हमारी संतान की ऐसी अधोगति हो रही है। हमारे देश से शूरता-वीरता नष्ट हो गई है और संतान बिल्कुल निर्बल तथा निकम्मी पैदा होती है। अध्यापकों और गुरुओं को चाहिए कि वे स्वयं सदाचारी रहकर अपने शिष्यों को विद्वान,शूरवीर और निर्भय बनावें।उनको वीर्य रक्षा का महत्त्व बराबर समझाते रहें।
ब्रह्मचारियों को चाहिए कि वे ऐसा कोई कार्य न करें जिससे किसी को कष्ट हो।सत्य का धारण करें। किसी की प्रिय वस्तु को लेने की इच्छा न करें।किसी से कुछ न लेवे।वीर्य रक्षा की ओर विशेष ध्यान दें। मन और शरीर को शुद्ध रखें।सन्तोषवृत्ति धारण करें।सत्कार्यों में कष्ट सहने की आदत डालें।बराबर पढ़ते रहें और अपने सहपाठियों को पढ़ाते रहे। परमात्मा की भक्ति अपने हृदय से कभी न टलने दें। गुरु पर पूर्ण श्रद्धा रखें।वृद्धों की सेवा अवश्य करते रहें।परस्पर मधुर भाषण करें।एक दूसरे का हित चाहते रहे।विद्यार्थियों को सब प्रकार के सुख त्याग देने चाहिए।विदुर नीति में कहा है:
“सुखार्थिन: कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम्।
सुखार्थी वा त्येजद्विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत्सुखम्।।
अर्थात् सुख चाहनेवाले को विद्या कहां और विद्या चाहनेवाले को सुख कहां? (दोनों में बड़ा भेद है) इसलिए जो सुख की परवाह करे तो विद्या पढ़ना छोड़ दे और यदि विद्या पढ़ने की चाह हो तो सुख को छोड़ दें।
आजकल के हमारे कॉलेज और स्कूलों के विद्यार्थी जो ऐश-आराम में रहकर विद्या पढ़ते हैं,उनकी विद्या सफल नहीं होती और न देश के लिए लाभकारी होती है।उसका कारण यही है कि उनमें कष्टसहिष्णुता का भाव नहीं होता।सिर्फ पुस्तकी विद्या पढ़कर रोटियों की फिक्र में पड़ जाते हैं। ऐसी विद्या के स्थान पर भारतीय संस्कृति पर आधारित विद्या ग्रहण करनी चाहिए।उसी के अनुसार अभ्यास करना चाहिए।मनु जी ने ब्रह्मचारी के लिए निम्नलिखित नियमों के पालन करने का उपदेश दिया है:
“वर्जयेन्मधुमांसञ्च गन्धं माल्यं रसान् स्त्रिय:।शुक्तानि यानि सर्वाणि प्राणिनां चैव हंसनम्।।
अभ्यंगमंजनं चाक्ष्णो रुपानच्छत्रधारणम्।
कामं क्रोधं च लोभं च नर्तनं गीतवादनम्।।
द्यूतम च जनवादं च परिवादं तथानृतम्।
स्त्रीणां च प्रेक्षणालम्भमुपघातं परस्य च।।
एकः शयीत सर्वत्र न रेतः स्कन्दयेत्क्वचित्।
कामाद्धि स्कन्दयत्रेतो हिनस्ति व्रतमात्मनः।।
भावार्थ:मद्य,मांस,इत्र-फुलेल,माला,रस-स्वाद,स्त्री-संग,सब प्रकार की खटाई,प्राणियों को कष्ट देना,अंगों का मर्दन,बिना निमित्त उपस्थेन्द्रिय का स्पर्श,आंखों में अंजन,जूते और छाते का धारण करना,काम,क्रोध,लोभ,नाच,गाना,बजाना,जुआ,दूसरे की बात कहना,किसी की निंदा,मिथ्या भाषण,स्त्रियों की ओर देखना,किसी का आश्रय चाहना,दूसरे की हानि इत्यादि कुकर्मों को ब्रह्मचारी और ब्रह्मचारिणी सदैव त्यागें रहें।सदा अकेले सोवें।कभी वीर्य को स्खलित न करें। यदि वे जानबूझकर वीर्य को स्खलित कर देंगे तो ब्रह्मचर्य को सत्यानाश करेंगे।
यह विद्यार्थियों के लिए अमूल्य शिक्षा है।इस प्रकार के नियमों का पालन करके जो स्त्री और पुरुष विद्या अध्ययन करते हैं वे विद्वान,शूरवीर,देशभक्त और परोपकारी बनकर अपना मनुष्य जीवन सार्थक करते हैं।तैत्तिरीय उपनिषद् में गुरु के लिए भी लिखा हुआ है कि वह अपने शिष्यों को किस प्रकार का उपदेश करें।उसका सारांश नीचे दिया जाता है:
गुरु अपने शिष्यों और शिष्याओं को इस प्रकार का आदेश करें:
तुम सदा सत्य बोलो।धर्म पर चलो।पढ़ने-पढ़ाने में कभी आलस्य न करो।पूर्ण ब्रह्मचर्य से समस्त विद्याओं का अध्ययन करके अपने गुरु का सत्कार करो और फिर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करके संतानोत्पादन अवश्य करो।सत्य में भूल न करो।धर्म में कभी आलस्य न करो।आरोग्यता की ओर ध्यान रखो।सावधानी कभी न छोड़ो।धन-धान्य इत्यादि ऐश्वर्य की वृद्धि में कभी न चूको।पढ़ने-पढ़ाने का काम कभी मत छोड़ो।साधुओं,विद्वानों और गुरुजनों की सेवा में न चूको।माता-पिता,आचार्य और अतिथि की देवता के समान पूजा करो।उनको संतुष्ट रखो।जो अच्छे कार्य हैं,उन्हीं को सदा करो।बुरे कामों को छोड़ दो।और (गुरु कहता है) हमारे भी जो सुचरित्र,धर्माचरण हैं,उन्हीं का तुम ग्रहण करो,औरों का नहीं।हम लोगों में जो श्रेष्ठ,विद्वान पुरुष हैं उन्हीं के पास बैठो-उठो और उन्हीं का विश्वास करो।दान देने में कभी न चूको।श्रद्धा से,अश्रद्धा से,नाम के लिए,लज्जा के कारण,भय के कारण अथवा प्रतिज्ञा कर ली इसी कारण,मतलब जिस तरह से हो,दो-देने में कभी न चूको।यदि कभी तुमको किसी कार्य में अथवा किसी आचरण में कोई शंका हो तो विचारशील,पक्षपात रहित,साधु,महात्मा,विद्वान,दयालु,धर्मात्मा पुरुषों के आचरण को देखो और जिस प्रकार उनका बर्ताव हो वैसा ही बर्ताव तुम भी करो।यही आदेश है।यही उपदेश है।यही वेद-उपनिषद की आज्ञा है।यही शिक्षा है।इसी को धारण करके अपना जीवन सुधारना चाहिए।
विद्यार्थियों और ब्रहचारियों के लिए इससे अधिक अमृत तुल्य शिक्षा और क्या हो सकती है।हमारे देश के बालक और युवा इस प्रकार की शिक्षा पर चलकर 25 वर्ष की अवस्था तक विद्याध्ययन करके तब संसार में प्रवेश किया करें तो देश में फिर पहले की भांति स्वतंत्रता आ सकती है।क्योंकि ब्रह्मचार्य आश्रम ही अन्य आश्रमों की जड़ है।इसकी और ध्यान न देने से ही अन्य तीनों आश्रमों की भी दुर्दशा हो रही है।

प्रश्न:3.क्या अच्छे कार्यक्रमों से छात्र-छात्राएं गुमराह नहीं हो सकते हैं? (Are Students not Misled by Good Programme?):

उत्तर:हो सकते हैं जैसे हुबली में 10 वर्षीय वर्षा कुलकर्णी और उसकी सहेली अस्मा लत्तापन्निवार ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग इस उम्मीद से लगा ली की टीवी सीरियल का चरित्र शक्तिमान उन्हें बचाने आ जाएगा।इसी प्रकार कोटा जिले के सांगोद कस्बे में रहने वाली 6 साल की किरण बाला और उसके 5 साल के भाई पंकज के मन में यह बात बैठ गई कि शक्तिमान उन्हें किसी भी खतरे से बचा लेगा।एक दिन दोनों भाई-बहन धारावाहिक देखने के बाद अपनी छत पर गए शक्तिमान की तरह गोलाई में घूमे और नीचे कूद पड़े इस उम्मीद के साथ की बीच में ही शक्तिमान उन्हें अपनी गोद में ले लेगा।फलस्वरूप चोट खाकर उन्हें हास्पिटल में भर्ती कराना पड़ा।टीवी सीरियल,फिल्मी गाने और डायलाग लोगों को प्रभावित करते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अध्ययन में बाधक कामुकता (Sexuality Preventing The Study),विद्यार्थी जीवन में कामुकता के दुष्प्रभाव (Side Effects of Sexuality in Student Life) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Sexuality Preventing The Study

अध्ययन में बाधक कामुकता
(Sexuality Preventing The Study)

Sexuality Preventing The Study

अध्ययन में बाधक कामुकता (Sexuality Preventing The Study)
का विद्यार्थी के दिल और दिमाग पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि उसे
कामुक चिंतन के अतिरिक्त कुछ नजर ही नहीं आता है।
यों काम को भारतीय ऋषियों ने

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