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What Should Maths Teacher Be Like?

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1.गणित शिक्षक कैसा होना चाहिए? (What Should Maths Teacher Be Like?),शिक्षक कैसा होना चाहिए? (What Should Teacher Be Like?):

  • गणित शिक्षक कैसा होना चाहिए? (What Should Maths Teacher Be Like?) केवल विषय का गहरा ज्ञान रखता ही पर्याप्त नहीं है।शिक्षक जीवन-निर्माण की कला है।इसका वास्तविक स्वरूप यही है।यद्यपि इस स्वरूप में गणित,भौतिकी,रसायन,चिकित्सा,वास्तुकला आदि की विविध जानकारियां भी समाविष्ट हैं,पर इनका उद्देश्य जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं का समाधान कर जीवन का निर्माण करना ही है।
  • जीवन निर्माण की यह विद्या सीखने वाला छात्र है और सिखाने वाला अध्यापक।आदर्श अध्यापक और अनुशासित छात्र का युग्म ही इसको सार्थक-समुन्नत बनाता है।
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2.शिक्षक के दृश्य (Teacher’s Views):

  • दृश्य एक:डॉक्टर प्रफुल्लचंद्र राय विश्व प्रसिद्ध रसायनविद् होने के साथ ऐसे ही उत्कृष्ट कोटि के शिक्षक भी थे।उनसे पढ़ने में छात्र अपने सौभाग्य को सराहते थे।वे भी 750 रुपए के वेतन में से अपने लिए मात्र ₹50 रखकर बाकी सभी छात्रों के हित के लिए लगाते थे।उनका स्नेह पाकर छात्रों का हृदय गदगद हो जाता था।जिसने एक बार उनका सानिध्य पाया,बार-बार उनसे मिलने को आतुर रहता था।उद्दण्ड से उद्दंड छात्र उनके प्रेम की मोहिनी से मोहित होकर सारा कलुष त्यागने व अनुशासनबद्ध होने को तैयार हो जाते थे।डॉक्टर शांतिस्वरूप भटनागर जी सी.एस.आई. के प्रथम निदेशक बने,उन्हीं की देन थे।
  • दृश्य दो:श्री अरविंद घोष जो क्रांतिकारी होने के पूर्व बड़ौदा कॉलेज में अंग्रेजी और लैटिन के अध्यापक थे,अपनी शिक्षण-कला,निस्पृहता,उदारता,स्नेह आदि गुणों से प्रतिष्ठित हो गए थे।उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल,भारतीय विद्या भवन के संस्थापक श्री के. एम. मुंशी,जो उस समय उनके छात्र थे,ने अपने एक संस्मरण में लिखा है कि उनके घर जाने पर उनकी सादगी देखकर मैं दंग रह गया।श्री अरविन्द मात्र चटाई पर सोते थे।घर में तड़क-भड़क जैसी कोई चीज नहीं थी।संपत्ति-सजावट के नाम पर मात्र पुस्तकें।ऐसी अभूतपूर्वता देखकर जिज्ञासा करने पर श्री अरविंद ने बताया कि शिक्षक को कठोर संयमी होना चाहिए।जब वह स्वयं अध्ययनशील,त्यागी,निस्पृह,अपरिग्रही बनेगा,तभी अपने छात्र को योग्य और अनुशासनप्रिय होने के साथ देशभक्त बना सकेगा।

3.वर्तमान छात्रों और अध्यापकों का स्तर (Current Students and Faculty Levels):

  • वर्तमान समय में छात्र और अध्यापक,दोनों के स्तर में गिरावट होने से शिक्षा का स्वरूप धूमिल हो गया है।आज अधिकांश छात्र मात्र इस उद्देश्य से विद्यालय में प्रवेश करते हैं कि किसी प्रकार अच्छी-से-अच्छी नौकरी पाकर विलासितापूर्ण जीवनयापन करें।इसी तरह अध्यापक भी अपने आदर्शों से विमुख होकर अपने गुरूत्वपूर्ण दायित्व को विस्मृति कर बैठे हैं।
  • इतना ही होता,तो भी खैर थी।स्तर की गिरावट इतनी अधिक है,हर बुद्धिजीवी का मन चिंताग्रस्त है कि यदि इसी प्रकार चलता रहा तो आगे क्या होगा।अध्यापक आज अपने पवित्र अध्यापन को भुलाकर ट्यूशन आदि नाना प्रकार के संसाधन जुटाकर अधिकाधिक धन कमाने के चक्कर में पड़े हैं।इसी कारण वे कक्षाओं में पढ़ाना,न तो आवश्यक समझते हैं न ही अनिवार्य।उनका उद्देश्य मात्र धन कमाना हो गया है।वह किस तरह मिले,इसी के साधन ढूंढते रहते हैं।यह ट्यूशन जैसा माध्यम हो या प्रयोगात्मक परीक्षा जैसी किसी परीक्षा में अधिक अंक दिलाने का लालच देने जैसा अन्य कोई माध्यम।
  • अध्यापकों के इसी व्यवहार से छात्रों का भी असंतोष फूट पड़ा है।परिणामस्वरूप हम देख ही रहे हैं कि स्कूल,कॉलेज शिक्षा के पावन मंदिर न रहकर असामाजिकता के अखाड़े बन गए हैं।जहां कभी छात्र पैन लेकर प्रवेश करता था,आज वहीं पैन के साथ चाकू,पिस्तौल भी लाने लगा है।जो छात्र कभी शिक्षकों के चरण स्पर्श करने में अपना गौरव समझते थे,आज वही शिक्षकों का गला पकड़ने में बहादुरी मानते हैं।अनुशासन जैसी चीजें तो मात्र पुस्तकों के पन्नों में छिपकर अपनी जान बचाने की सोचने लगी हैं।
  • विद्या मंदिरों की पवित्रता,श्रेष्ठता नष्ट करने में किसकी गलती अधिक है,यह तो स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है,पर यह सुनिश्चित है कि दोनों अपनी-अपनी जगह कसूरवार हैं।आज भी कहीं-कहीं ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं,जो प्राचीन गौरव की झलक दिखा देते हैं,पर ऐसे छात्र और अध्यापक नगण्य ही है।

4.प्राचीन काल में अध्यापक (Teachers in ancient times):

  • प्राचीनकाल की भारतीय परंपरा में तपस्वी,आदर्शनिष्ठ,अपरिग्रही,ऋषि स्तर के अध्यापक होते थे।वैसे ही अनुशासित,सेवाभावी,अध्यवसाय वाले,स्वाध्यायशील छात्र।शिक्षा भी ऐसे युग्म को पाकर अपने को कृतार्थ समझती थी और अपने सारे के सारे रहस्य ऐसे सुपात्रों के समक्ष खोलने में अपने को कृतकृत्य मानती थी।
  • तपस्वी शिक्षकों में शिक्षण-प्रक्रिया का चरम विकास हुआ था,वहीं छात्रों में अध्ययन-प्रक्रिया अपनी चरम सीमा पर थी।विभिन्न विद्याओं,कलाओं में निष्णात छात्र भी अकड़बाजी व गर्व की मदिरा में चूर न होकर विनय के अमृत से सरोबार होते थे।विद्या ददाति विनयम् का सूत्र सर्वत्र परिलक्षित होता था।हड़ताल और मार-धाड़ ने तो संभवतः विद्यालयों के शब्दकोश में भी प्रवेश न पाया होगा।
  • ऐसी परंपरा का निर्वाह ऋषि करते थे।उनका गुरुकुल गांव-शहर से दूर सुरम्य वन में हुआ करता था।जहां हजारों स्वाध्यायशील छात्र विद्या अध्ययन करते थे।उस समय शिक्षा का विकास विद्या स्तर तक हुआ था।ज्ञातव्य है कि शिक्षा का ही सुपरिष्कृत रूप विद्या है।विद्या का लक्ष्य सत्य का अध्ययन करना है,पर आज तो स्थिति दूसरी है।ऋषिकाल में विद्यालय विद्या के आलय अर्थात् आगार होते थे,पर आज के परिवेश में विद्यालय ऐसे हैं,जहां विद्या का लय अर्थात् लोप होता है।यह कथन निश्चित ही आज के वातावरण को देखकर यथार्थ प्रतीत होता है।

5.शिक्षक की भूमिका (The Role of the Teacher):

  • शिक्षक की भूमिका इतनी ही नहीं है की मात्र विषय की जानकारी दे दें,वरन उनका दायित्व यह भी बनता है कि वह विषय को भली प्रकार हृदयंगम भी करा दें।उनके दायित्व में अभिभावक का दायित्व भी सम्मिलित है।यद्यपि अब आवासीय विद्यालय कम है,जबकि पहले इसी स्तर के विद्यालय होते थे।गुरु,ऋषि सभी शिष्यों को प्रोत्साहन देते हुए प्रातः काल जगाते हुए कहते थे,”उत्तिष्ठ नरशार्दूल पूर्वा संध्या प्रवर्तते।” अर्थात् हे पुरुषों में श्रेष्ठ,उठो,पहली संध्या का समय हुआ है।आचारवान और तपस्वी गुरु और विनय अध्यवसायसंपन्न सुपात्रों (शिष्यों) को पाकर ही बला और अतिबला विद्याएँ सार्थक हुई।
  • गुरु छात्रों के साथ पुत्रवत् व्यवहार करते थे।आने वाले छात्र-छात्राओं से पहली मुलाकात वे स्वयं करते थे।इस पहली मुलाकात के बाद छात्र इतने भावाभिभूत हो जाते थे कि किसी समस्या,कोई उलझन को उनके सामने रखने में संकोच नहीं करते थे।प्रत्येक छात्र उनमें अपने अनुशासनप्रिय,आदर्शनिष्ठ,कर्त्तव्यपरायण शिक्षक की जागृत मूर्ति देखने के साथ ही भावनाशील पिता की प्रतिच्छाया भी देखता था।सचमुच ऐसे ही शिक्षक विद्यार्थियों का निर्माण करने में सक्षम हैं।
  • आज शिक्षक और छात्र-छात्राओं के आदर्श कुछ मात्रा में मिल ही जाएंगे हालांकि ऐसे आदर्श लुप्तप्राय हो गए हैं।परंतु अरविंद आश्रम,पतंजलि योगपीठ जैसे अनेक गुरुकुल हैं जहाँ आदर्श शिक्षण की झलक मिल सकती है।
  • प्राचीनस्वरूप को गरिमा और सादगी तभी प्रदान कर सकते हैं जबकि शिक्षक अपने जीवन में अपरिग्रह,आदर्शवादिता के गुणों को अपनाएं और विकसित करें।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित शिक्षक कैसा होना चाहिए? (What Should Maths Teacher Be Like?),शिक्षक कैसा होना चाहिए? (What Should Teacher Be Like) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित शिक्षक की पत्नी (हास्य-व्यंग्य) (Math Teacher’s Wife) (Humour-Satire):

  • एक गणित शिक्षक की शादी पढ़ी-लिखी छात्रा से हो जाती है।गणित शिक्षक के मित्र ने पूछा:भाभीजी कैसी हैं?
  • गणित शिक्षक:यार वो मेरी बात ही नहीं सुनती जब तक स्टूडेंट न कहकर बुलाऊं।

7.गणित शिक्षक कैसा होना चाहिए? (Frequently Asked Questions Related to What Should Maths Teacher Be Like?),शिक्षक कैसा होना चाहिए? (What Should Teacher Be Like) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.छात्रों की गणित विषय में रुचि कैसे बनाएं? (How to make students interested in mathematics?):

उत्तर:अध्यापक को गणित का इतिहास,गणित की कहानियां,गणित के खेल तथा पहेलियां,गणित के प्रयोग,गणित का नया साहित्य आदि के बारे में उचित जानकारी होनी चाहिए तथा समय-समय पर प्रसंगवश इनके बारे में छात्रों को बताना चाहिए जिससे छात्र भी अनेक नयी बातें जानने के लिए उत्सुक बने रहेंगे।

प्रश्न:2.गणित अध्यापक का व्यक्तित्व कैसा होना चाहिए? (What should be the personality of a mathematics teacher?):

उत्तर:गणित अध्यापक का व्यक्तित्व प्रेरणाप्रद होना चाहिए।धैर्यवान,परिश्रमी,उत्साहपूर्ण और विद्यार्थियों के हितों के बारे में सोचने वाले गणित के अध्यापक ही कक्षा में प्रभावी अध्यापन कर पाते हैं।गणित के अध्यापक में प्रत्युत्पन्नमति का होना अत्यंत आवश्यक है जिससे कि वह परिस्थितियों के अनुसार कक्षा में उदाहरण या दृष्टान्त दे सके।गणित की समस्याओं को हल करते समय अनेक बातों का धैर्य के साथ स्पष्टीकरण करना आवश्यक होता है।गणित के अध्यापन में प्रयोगात्मक दृष्टिकोण का होना अपेक्षित है।अध्यापन के बारे में नवीन विधाओं की जानकारी प्रेरणा प्राप्त करते रहने से ही संभव है।

प्रश्न:3.भारत में गणित से संबंधित किनका विकास हुआ है? (Which of the following has been developed in India?):

उत्तर:ब्रह्मगुप्त,महावीराचार्य,पाणिनी,वाराहमिहिर,भास्कर,आर्यभट आदि महान गणितज्ञों द्वारा रचित गणित का परिचय कक्षा में विद्यार्थियों को कराना अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगा।भारतीय गणितज्ञों ने शून्य,अनंत,दशमलव प्रणाली,समाकलन गणित,लघुगणक,संख्या प्रणाली आदि के द्वारा गणित के विकास को महत्त्वपूर्ण आधार प्रदान किया।गणित के इतिहास की जानकारी कक्षा अध्यापन में एक नई चेतना प्रदान कर कक्षा वातावरण को उत्साहपूर्ण बनाने में सहायक सिद्ध होगा।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित शिक्षक कैसा होना चाहिए? (What Should Maths Teacher Be Like?),शिक्षक कैसा होना चाहिए? (What Should Teacher Be Like?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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