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Best tips for practice in mathematics

1.गणित में अभ्यास कार्य की बेहतरीन टिप्स(Best tips for practice in mathematics)-

  • गणित में अभ्यास कार्य(practice in mathematics) देते समय बहुत सी बातों का ध्यान रखना चाहिए।जब विद्यार्थी प्रदर्शन का निरीक्षण करके कार्य करने की विधि को अच्छी प्रकार समझ लें तो उन्हें अभ्यास देना चाहिए।इस समय अध्यापक का कार्य यह होगा कि वह बालकों के कार्य करने के ढंग का निरीक्षण करता रहे।जो कुछ भी त्रुटियां बालक अभ्यास करने में करें,उसका संशोधन करना भी आवश्यक है।अभ्यास करवाते समय उसे इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि बालक ठीक प्रकार से प्रर्दशन में दिखाई गई विधि का प्रयोग कर रहे हैं अथवा नहीं। जैसे यदि बालकों को लिखने का अभ्यास करने के लिए कहा गया है तो वे लेखनी को ढंग से पकड़े हैं और लिखते समय काॅपी पर अधिक झुके हुए तो नहीं है,यह लिखने में उनकी आंखों और काॅपी के बीच की दूरी बहुत अधिक तो नहीं है या वे काॅपी को टेढ़ा या तिरछा करके तो नहीं लिख रहे हैं।यदि ये त्रुटियां हो रही हैं तो अध्यापक को इनको तुरन्त सुधारना चाहिए।

  • अभ्यास देने में एक बात और ध्यान में रखनी चाहिए,वह यह कि अभ्यास दी जाने वाली वस्तु की जटिलता धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए।यह नहीं कि एकाएक सरल अभ्यास से जटिल अभ्यास देना आरम्भ कर दिया जाय। गणित के विद्यार्थियों के लिए इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।यदि एक सरल प्रश्न पहले अभ्यास के लिए बालकों को दिया गया है तो उसके बाद दूसरा प्रश्न कुछ मात्रा में उससे कठिन होना चाहिए। गणित में अभ्यास कार्य (practice in mathematics) की सफलता इस बात पर निर्भर रहती है कि बालक अपनी उन्नति से अवगत रहे। बालक स्वयं यह निर्धारित कर सके कि उसकी प्रगति हो रही है या नहीं।जब बालक जान लेता है कि उसकी प्रगति हो रही है तो उसे अधिक सीखने की प्रेरणा मिलती है। शिक्षक को गणित में अभ्यास कार्य (practice in mathematics) देने में यह चेष्टा करते रहना चाहिए कि बालक सफलता की ओर अग्रसर रहे।

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2.गणित में अभ्यास कार्य के समय शिक्षक के द्वि-विधि कार्य (Teacher’s two-law work while practice in mathematics)-

  • अभ्यास के समय शिक्षक के कार्य दो प्रकार के होते हैं।पहला कार्य तो उसका होता है कि वह बालकों द्वारा की जाने वाली क्रिया का निरीक्षण करे और दूसरे, बालकों को व्यक्तिगत रूप से निर्देशन एवं सहायता दे।

3.त्रुटि-संशोधन (Error correction)-

  • हमने गणित में अभ्यास कार्य (practice in mathematics) के समय अध्यापक द्वारा त्रुटि-संशोधन के सम्बन्ध में कुछ कहा है।यह अभ्यास किस प्रकार किया जाय,इस सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं। कुछ शिक्षक तो त्रुटि-संशोधन करते-करते थक जाते हैं परन्तु बालक के सीखने में प्रगति नहीं होती है।वे समझते हैं कि त्रुटि संशोधन व्यर्थ है।वे बालक की ओर ध्यान देना बन्द कर देते हैं।ऐसा करना ठीक नहीं है। वास्तव में त्रुटि संशोधन भी एक कला है।एक अध्यापक जो उचित समय तथा उचित प्रकार से त्रुटि-संशोधन कर सकता है,वही इस कला में दक्ष माना जाता है।इसके लिए उसे मनोवैज्ञानिक क्षण के सम्बन्ध में समझना आवश्यक है। मनोवैज्ञानिक क्षण वह है जब बालक त्रुटि-संशोधन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त ढंग से तैयार होता है।मैडम माॅन्टेसरी अध्यापक से इस क्षण की प्रतिक्षा करने के लिए कहती है।यदि बालक संशोधन से सीखने में असमर्थ है तो इसका कारण यही है कि अध्यापक ने मनोवैज्ञानिक क्षण का उचित उपयोग नहीं किया है।उसने उस समय त्रुटि सुधार नहीं किया जब बालक त्रुटि सुधार के लिए मानसिक रूप से तैयार था। मनोवैज्ञानिक क्षण से तात्पर्य है कि बालकों की रुचि,मानसिक तैयारी तथा सीखने की शक्ति उस समय कार्य करने की ओर लगी हुई है।

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  • त्रुटि संशोधन द्वारा बालको के कार्य सीखने में सुधार उस समय ही लाया जा सकता है जब शिक्षक त्रुटि पकड़ने के पश्चात् शीघ्र से शीघ्र उसका संशोधन कराने की चेष्टा करे।यदि संशोधन शीघ्र किया जाएगा तो वह सीखने की क्रिया का ही अंग समझा जायेगा। फिर यदि बहुत अधिक समय निकल जायेगा और फिर त्रुटियों में संशोधन किया जायेगा तो वह बालक के मौखिक अनुभव का अंग नहीं बन पायेगा।यही कारण है कि शिक्षक को गणित में अभ्यास कार्य ( practice in mathematics ) के समय त्रुटि संशोधन करते रहना चाहिेए। जहां कहीं भी सम्भव हो बालकों से स्वयं त्रुटि संशोधन कराना चाहिए।

  • वर्तमान समय में त्रुटि-संशोधन की एक अन्य विधि अपनायी जाती है।वह है-परस्पर आलोचक विधि।इस विधि में एक बालक द्वारा किये गए कार्य की आलोचना दूसरे बालक द्वारा करायी जाती है।इसका उपयोग लेख,सस्वर वाचन, संगीत आदि के पाठों में किया जाता है।इस विधि में गुण यह है कि जो आलोचना करते हैं और जिनकी आलोचना की जाती है-दोनों लाभान्वित होते हैं।जो आलोचित होते हैं,वे अपनी त्रुटियों के सम्बन्ध में सीख जाते हैं। आलोचक समझ लेते हैं कि कार्य में क्या-क्या और किस प्रकार की त्रुटियां हो सकती है,वे फिर अपना कार्य करने में इन त्रुटियों को न करने की चेष्टा करते हैं।परन्तु इस विधि में एक बहुत बड़ा दोष है कि कुछ बालक जो बहुत अधिक भावुक होते हैं,अपनी आलोचनाओं को हृदयंगम कर लेते हैं और कक्षा में कार्य करने से डरने लगते हैं। इसके अतिरिक्त दूसरा दुर्गुण इसमें यह है कि आलोचक त्रुटि हो या न हो, सदैव त्रुटि निकालने की चेष्टा करते हैं।वे अध्यापक से कहीं अधिक कठोर आलोचक बन जाते हैं।

4.एक शिक्षक को गणित में अभ्यास कार्य के निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए (A teacher should keep in mind the following points of practice in mathematics)-

  • (1.)किसी गणित में अभ्यास कार्य (practice in mathematics ) को आरम्भ करने से पहले अध्यापक को जान लेना आवश्यक है कि विद्यार्थियों के पाठ के समय काम में आने वाले सब उपकरण,पाठ्य-वस्तुएं इत्यादि इकट्ठे कर लिए गए और वे इस दशा में हैं कि उनका उपयोग उचित ढंग से हो सके।

  • (2.)जो भी उपकरण कार्य में उपयोग होने वाला है,उसे गणित में अभ्यास कार्य (practice in mathematics) के आरम्भ होने से पहले ही बांट देना चाहिए अन्यथा गणित में अभ्यास कार्य (practice in mathematics) में रुकावट पड़ जाएगी।

  • (3.) बालकों को कक्षा में इस प्रकार से बैठाया जाय कि गणित में अभ्यास कार्य ( practice in mathematics )करते समय अपने हाथ-पांव चलाने की स्वतन्त्रता रहे।

  • (4.) गणित में अभ्यास कार्य (practice in mathematics) का शिक्षण देने के लिए कक्षा के कमरे में प्रकाश का प्रबन्ध, बालकों के बैठने का ढंग इत्यादि का ऐसा प्रबन्ध होना चाहिए कि बालकों के ऊपर कोई ऐसा जोर न पड़े जो गणित में अभ्यास कार्य( practice in mathematics ) में उनकी अरुचि को उत्पन्न कर दे।

  • (5.)शिक्षक इस ओर सचेत रहे कि गणित में अभ्यास कार्य ( practice in mathematics) का आरंभ ठीक प्रकार से हो।यदि गणित में अभ्यास कार्य ( practice in mathematics )का आरम्भ अच्छा है तो उसका सीखना सरल होगा।

  • (6.)शिक्षक को गणित में अभ्यास कार्य(practice in mathematics) सीखने में बालकों की रुचि बनाये रखना चाहिए। बिना रुचि के चाहे जितना अभ्यास किया जाय,सीखना ना हो पाएगा। गणित में अभ्यास कार्य ( practice in mathematics) में रुचि और अभ्यास दोनों का महत्त्व है,इस कारण दोनों को उचित स्थान देना चाहिए।

  • (7.)शिक्षक को यथासंभव निषेधात्मक निर्देश नहीं देना चाहिए।उसे यह नहीं कहना चाहिए कि इस कार्य को इस प्रकार करो।बहुधा जब हम किसी त्रुटि को बचाने की बहुत अधिक चेष्टा करते हैं तो वह हमसे हो ही जाती है।जब हम बहुत संभल-संभल कर चल रहे हों,हम ठोकर खा जाते हैं।

  • (8.)बालक को बहुत अधिक निर्देश आरम्भ में नहीं देना चाहिए।आरम्भ से पूर्व वह निर्देश जो अत्यन्त आवश्यक है,संक्षेप में देना चाहिए।यदि निर्देश बहुत अधिक दे दिए जाते हैं तो बालक गणित में अभ्यास कार्य(practice in mathematics) की ओर पूर्ण ध्यान लगाने में असमर्थ रहते हैं।

  • (9.)जब बालक गणित में अभ्यास कार्य( practice in mathematics )को शुद्ध रूप में सीख ले तो उसकी आवृत्ति करनी चाहिए।इस क्रिया का अभ्यास बार-बार करना चाहिए जिससे बालक के मस्तिष्क में गणित में अभ्यास कार्य (practice in mathematics ) दृढ़ हो जाए।

  • (10.) गणित में अभ्यास कार्य (practice in mathematics ) करते समय आरम्भ में बालक बहुत-सी अनावश्यक चेष्टाएं करते हैं।इन चेष्टाओं को ज़हां तक हो सके, अध्यापक को दूर कर देना चाहिए। जैसे लिखना आरम्भ करते समय यदि बालक होंठ काटता है या दूसरे हाथ का अंगूठा मुंह में देता है या नाक-भौं सिकोड़ता है तो इन सब अनावश्यक चेष्टाओं को छुड़ा देना चाहिए।

  • (11.)शिक्षक को बालकों का गणित में अभ्यास कार्य(practice in mathematics) समाप्त हो जाने पर उसके विभिन्न अंगों पर मनन करने को प्रोत्साहित करना चाहिए।वे चिन्तन द्वारा देखें कि किन चेष्टाओं द्वारा गणित में अभ्यास कार्य (practice in mathematics) करने में सफलता प्राप्त होती है।

  • (12.) गणित में अभ्यास कार्य( practice in mathematics) में यदि लय का समावेश कर दिया जाए तो कुशलता शीघ्र आ जाती है।हम देखते हैं कि जब मजदूर किसी भारी वस्तु को उठाते हैं या कोई ऐसा कार्य करते हैं जिसमें बहुत शक्ति व्यय होती है तो वे एक प्रकार की लय में गाने या बोलने लगते हैं, इसमें वे अपनी सम्पूर्ण शक्ति को कार्य की ओर लगाने में सफल होते हैं।

  • (13.)शिक्षक को गणित में अभ्यास कार्य( practice in mathematics) पढ़ाते समय बालकों के व्यक्तिगत भेदों को ध्यान में रखना चाहिए।

  • (14.)यदि बालक गणित में अभ्यास कार्य(practice in mathematics ) में प्रगति नहीं कर रहे हैं तो शिक्षक को अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए। गणित में अभ्यास कार्य (practice in mathematics ) में प्रगति धीरे-धीरे होती है तथा यह अनिश्चित होती है।शिक्षक को प्रगति रुकने के कारण का पता लगाकर उसे दूर करने की चेष्टा करनी चाहिए।

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