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What are duties of parents for children?

1.बच्चों के लिए माता-पिता के कर्तव्य क्या हैं? का परिचय (Introduction to What are duties of parents for children?),बच्चों के लिए माता-पिता के कर्तव्य क्या हैं? (What are the duties of guardian for children?):

  • बच्चों के लिए माता-पिता के कर्तव्य क्या हैं? (What are duties of parents for children?),बच्चों के लिए माता-पिता के कर्तव्य क्या हैं? (What are the duties of guardian for children?),ये हर माता-पिता तथा अभिभावक जानना चाहते हैं।वस्तुतः आज की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में माता-पिता तथा अभिभावकों को बच्चों के लिए समय ही नहीं है।वे धन कमाने इतने व्यस्त रहते हैं कि बच्चों को शिक्षा संस्थानों के भरोसे छोड़कर बेफ्रिक हो जाते हैं।
 

via https://youtu.be/_P0icL8guvU

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2.बच्चों के लिए माता-पिता के कर्तव्य क्या हैं? (What are duties of parents for children?),बच्चों के लिए माता-पिता के कर्तव्य क्या हैं? (What are the duties of guardian for children?):

  • बच्चों के प्रति जिम्मेदारी बहुत कम माता-पिता बखूबी निभाते हैं।अधिकांश माता-पिता धन कमाने,सामाजिक कार्यक्रमों में तथा समाज सेवा में लगे रहते हैं वही दूसरी तरफ उनके बच्चों का ओर ही प्रकार का भला हो जाता है।माता-पिता की देखरेख के अभाव बच्चे कुसंगति में पड़कर गलत मार्ग की ओर अग्रसर हो जाते हैं।कुछ माता-पिता जान बूझकर तथा कुछ माता-पिता अनजाने में बच्चों के कुकृत्यों,कुसंग की ओर ध्यान नहीं देते हैं।ऐसे माता-पिता यह समझते हैं कि आधुनिक समय के अनुसार बालकों के रहन-सहन,चाल-चलन ओर तरह के हो गए हैं।
  • ऐसी स्थिति में बच्चों की शिक्षा का बंटाधार हो जाता है।जिस उम्र में बच्चों को तप,परिश्रम,संयम,इन्द्रिय निग्रह,मन की एकाग्रता जैसे गुणों को धारण करने की आवश्यकता होती है उस उम्र में वे अय्याशी करने,ड्रग्स का सेवन करने,अश्लील फिल्में,गुण्डागर्दी करने,चोरी-लूटपाट करने,अध्यापकों को डरा-धमकाकर नकल करने,येनकेन प्रकारेण डिग्री प्राप्त करने,परीक्षा में अनुचित साधनों का प्रयोग करने में संलग्न हो जाते हैं।ऐसी स्थिति में अन्दाजा लगाया जा सकता है कि देश की तस्वीर क्या होगी क्योंकि देश का भविष्य ये युवक-युवतियाँ ही होंगे।जैसे हमारे युवक-युवती होंगे वैसा ही हमारे देश के भविष्य का निर्माण होगा।
  • बहुत कम माता-पिता तथा अभिभावक ऐसे होते हैं जो अपने बच्चों के भविष्य के प्रति सजग,सक्रिय और सचेत रहते हैं।ऐसे बच्चों का निर्माण तप,परिश्रम तथा अच्छी आदतों को सीखाने पर ध्यान देते हैं।ऐसे बच्चे आगे जाकर होनहार होते हैं और अपने महान् कार्यों से देश का गौरव बढ़ाते हैं।
  • माता-पिता तथा अभिभावकों का प्रथम कर्त्तव्य है कि संतान को योग्य तथा शिक्षित करना।यदि संतान अशिक्षित रह जाती है तो समाज में उसका कोई सम्मान नहीं करता है।ऐसे मनुष्य को संसार में दुर्जन मनुष्य परेशान करते हैं तथा कुटिल मनुष्यों के स्वार्थ का साधन बन जाते हैं।
  • शिक्षित न होने के कारण,बच्चों का अज्ञान दूर नहीं होता है जिससे सांसारिक ज्ञान नहीं हो पाता है।अतः अज्ञान को दूर करने के लिए शिक्षित होना आवश्यक है।
  • बच्चों में इतनी समझ नहीं होती है कि अच्छा-बुरा,शुभ-अशुभ को पहचान सके।पढ़ना उनके स्वभाव में नहीं होता है।अतः प्रारंभिक शिक्षा में अध्यापक व अभिभावकों को काफी सजग,सतर्क व चौकस रहना होता है।लेकिन बच्चे विद्यालय जाने लगते हैं तो कुछ अभिभावक निश्चिंत हो जाते हैं और विद्यालय के भरोसे रहते हैं।विद्यालय में एक अध्यापक के सामने इतने अत्यधिक बच्चे होते हैं कि प्रत्येक बच्चे पर ध्यान नहीं दे पाते हैं।ऐसी स्थिति में अभिभावकों को बच्चों की शिक्षा के प्रति सतर्क रहना आवश्यक है।अभिभावकों को विद्यालय में बच्चों को जो कुछ भी पढ़ाया जा रहा है उसके बारे में पूर्ण जानकारी रखनी चाहिए।अर्थात् पाठ्यक्रम कितना हो गया है,कितना बाकी है।बच्चे कितना ग्रहण कर रहे हैं,पाठ को स्मरण भी करते हैं या नहीं इत्यादि।
  • अभिभावकों को घर पर भी उनके साथ बैठकर स्वयं भी अध्ययन करना चाहिए जिससे बच्चों को पढ़ने की प्रेरणा मिले।जो अभिभावक पढ़े-लिखे नहीं है उनको उनके साथ बैठकर पढ़ने की चेष्टा करनी चाहिए।यदि बच्चे छोटे हैं तो उन बच्चों को अभिभावक भी पढ़ा सकते हैं।यदि बच्चे बड़े हैं और उनके सब्जेक्ट्स (subjects) का आपको ज्ञान हो तो उसमें बच्चों की मदद की जानी चाहिए।
  • अभिभावकों को बच्चों को व्यावहारिक तथा सांसारिक ज्ञान प्रदान करने हेतु समय-समय पर रिश्तेदारों के यहां,बाजार में तथा अन्य उत्सवों,मेलों इत्यादि कार्यक्रमों में भी ले जाना चाहिए।इससे बच्चों को पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त हो जाता है।यदि बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान नहीं दिया जाएगा तो बच्चों के द्वारा अर्जित ज्ञान का न तो स्वयं लाभ उठा पाएगा और न ही दूसरे लाभ उठा पाएंगे।जिसे व्यावहारिक ज्ञान नहीं होगा ऐसा मनुष्य शिक्षित होकर भी अज्ञानी ही रहेगा।
    पुस्तक पढ़कर ही परीक्षा पास कर लेना शिक्षित होना नहीं होता है।अभिभावक का यह कर्त्तव्य है कि उसको स्वाध्याय के लिए प्रेरित करें,अपने विषयों की पुस्तकों के अतिरिक्त भी अन्य पुस्तकों का अध्ययन करें।
  • निष्कर्ष (Conclusion):जो अभिभावक बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक होते हैं,वे बच्चों को जीवन के हर क्षेत्र में पारंगत कर देते हैं।बच्चों को जिज्ञासु प्रवृति का बना देते हैं।ऐसे बच्चे हर बात को समझते हुए चलते हैं तथा ऐसे बच्चों के लिए ज्ञान के साथ-साथ सफलता प्राप्त करना कठिन नहीं होता है।ऐसे बच्चों को जब सफलता मिलती जाती है तो उनके मनोबल में वृद्धि होती है एवं दिनोंदिन विकास के पथ पर अग्रसर होते हैं।ऐसे बच्चे अपने माता-पिता का यश फैलाते हैं।अतः माता-पिता व अभिभावकों का यह दायित्व है कि जब तक बच्चों में बुद्धि का विकास न हो जाए तथा आत्मनिर्भर न हो जाए तब तक उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चले और उनके अनुभव में वृद्धि करते रहे।जो अभिभावक बच्चों को विद्यालय तथा पुस्तकों के भरोसे छोड़ देते हैं उनके बच्चों को जीवन क्षेत्र में काफी संघर्ष करना पड़ता है तथा कई बच्चों की दिशा भी गलत हो जाती है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में बच्चों के लिए माता-पिता के कर्तव्य क्या हैं? (What are duties of parents for children?),बच्चों के लिए माता-पिता के कर्तव्य क्या हैं? (What are the duties of guardian for children?) के बारे में बताया गया है।
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