Menu

How do teachers currently play their role?

1.शिक्षक वर्तमान में अपनी भूमिका कैसे निभाएं? (How do teachers currently play their role?),शिक्षकों के कर्तव्य क्या हैं? (What are the duties of teachers?):

  • शिक्षक वर्तमान में अपनी भूमिका कैसे निभाएं? (How do teachers currently play their role?),शिक्षकों के कर्तव्य क्या हैं? (What are the duties of teachers?):प्राचीनकाल में गुरुकुल में जिस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था थी तथा वर्तमान में जिस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था है,इन दोनों व्यवस्थाओं में काफी समय का अन्तराल आ गया है।प्राचीनकाल में मनुष्य की जो आवश्यकताएं थी उनमें वर्तमान समय के अनुसार काफी अन्तर आ गया है।मनुष्य की मनन-चिंतन प्रणाली,रहन-सहन,चाल-चलन,खान-पीन इत्यादि में आमूलचूल परिवर्तन हो गया है।स्वाभाविक है कि शिक्षा प्रणाली में भी काफी कुछ परिवर्तन देखने को मिल रहा है।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस Video को शेयर करें। यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि वीडियो पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं। इस वीडियो को पूरा देखें।


via https://youtu.be/yxTXenWzTQw

2.शिक्षक वर्तमान में अपनी भूमिका कैसे निभाएं? (How do teachers currently play their role?),शिक्षकों के कर्तव्य क्या हैं? (What are the duties of teachers?):

  • प्राचीन समय और वर्तमान समय में हमारे देश,समाज तथा पारिवारिक ढाँचें में परिवर्तन के साथ-साथ लोगों के रहन-सहन,आचार-विचार,नीति-नियम तथा सिद्धान्तों में काफी परिवर्तन आ गया है।इस समयान्तराल के कारण शिक्षा का स्वरूप बिल्कुल बदल गया है,ऐसी स्थिति में प्राचीनकाल की व्यवस्था को ज्यों का त्यों लागू करना बहुत मुश्किल है।
  • दूसरा कारण यह भी है कि प्राचीनकाल में परिस्थितियां तथा समस्याएँ अलग प्रकार की थी तथा वर्तमान समय की अलग प्रकार की हैं।
  • तीसरा कारण कि प्राचीनकाल में शिक्षा पद्धति को लागू करने में इतनी कठिनाइयाँ और जटिलता नहीं थी परन्तु शिक्षा की विषयवस्तु अर्थात् पाठ्यक्रम बहुत कठिन था।कठोर तप और साधना के कारण वैसी शिक्षा अर्जित करना सम्भव था।
  • वर्तमान समय में शिक्षा पद्धति को परिवर्तित करने में परिस्थितियां बहुत कठिन और कठिनाइयाँ बहुत अधिक है।परन्तु वर्तमान पाठ्यक्रम प्राचीनकाल की तुलना में पाठ्यक्रम सरल है।वर्तमान समय में विद्यार्थी गाइड,नोट्स को कुछ सरल में रटकर आसानी से उत्तीर्ण हो जाता है।जबकि प्राचीनकाल में शिक्षा को आचरण में उतारना आवश्यक था जो कि बहुत कठिन कार्य है।प्राचीनकाल में सैद्धान्तिक के बजाय व्यावहारिक पक्ष पर अधिक बल दिया जाता था जबकि वर्तमान समय में केवल सैद्धान्तिक पक्ष पर अधिक बल दिया जाता है।
  • अब शिक्षकों के सामने पहली समस्या तो यह है कि जिस चारित्रिक मूल्यों एवं संस्कारों का समावेश विद्यार्थियों में किया जाना है उसके लिए पाठ्यक्रम में कोई स्थान नहीं है।ऐसी स्थिति में शासन की तरफ से उनको कोई स्वीकृति व सहयोग प्राप्त नहीं हो सकता है।
  • दूसरी कठिनाई यह है कि विभिन्न बालकों का स्तर अलग-अलग प्रकार का होता है तथा उनमें अलग-अलग प्रकार के दुर्गुण और पूर्वाग्रह होते हैं उनको छोड़ने के लिए वे तैयार नहीं होते हैं।
  • तीसरी समस्या यह है कि बहुत से शिक्षक स्वयं दुर्गुणों और पूर्वाग्रहों से ग्रसित होते हैं तथा वे अपनी स्थिति और कार्य पद्धति को सही मानते हैं।यदि अध्यापकों को कोई समझाने तथा सुधार करने के लिए कहे भी तो उसे वे मानने और स्वीकर करने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
  • उपर्युक्त समस्याओं का हमारे विचार से समाधान यह हो सकता है कि छात्र-अध्यापकों को प्रशिक्षण में अच्छी आदतों,आचार-विचार,सद्विचारों की सार्थकता शिक्षाशास्त्री समझाएं और उनके गले उतारे।जिन शिक्षकों का चरित्र उज्जवल है यदि वे सद्गुणों की सार्थकता समझते हैं तो जितना उनसे बन पड़ता है उतना बालकों के साथ घनिष्ठता रखते हुए आत्मीयता के साथ उनको सद्मार्ग पर लाने की कोशिश करें।
  • दूसरा तरीका है कि अभिभावकों को भी बालकों को सद्गुण, संस्कारों का बीजारोपण करने के लिए प्रेरित करें।
    तीसरा उपाय है कि जब समाज में या अन्य संगठनों में शिक्षकों को आमन्त्रित किया जाए तो शिक्षकों को अपना दृष्टिकोण वहाँ भी रखना चाहिए तथा उनको इसके लिए वातावरण बनाने हेतु तैयार करे।
  • इस प्रकार शिक्षक तथा शिक्षा संस्थान सुसंस्कारों,सत्प्रवृत्तियों को किसी न किसी सीमा तक अमल कराने में सफल हो सकता है।इसके लिए विवेक,धैर्य की आवश्यकता होती है।जो शिक्षक धैर्य नहीं रखेगा तो उसके सामने आनेवाली परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए वह उन कार्यों को छोड़ देगा और विद्यार्थियों में संस्कारों का निर्माण करना एक प्रतीक पूजा बनकर रह जाएगी।
  • निष्कर्षःवर्तमान युग भौतिक तथा बुद्धिवाद का युग है ऐसे वातावरण में नई पीढ़ी में नई संस्कृति ने जड़े जमा ली है।आज के अनास्था,अनैतिकता वाले वातावरण में चरित्र,अनुशासन,विवेक,ईमान,कर्मठता को अपनाने में रुचि नहीं रह गई है।इसलिए व्यक्ति,समाज व देश के सामने अनेक संकट व समस्याएं हैं इसका समाधान करने के लिए शिक्षकों को व जनसाधारण को अपना दृष्टिकोण एवं क्रियाकलाप को बदलना ही होगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में शिक्षक वर्तमान में अपनी भूमिका कैसे निभाएं? (How do teachers currently play their role?),शिक्षकों के कर्तव्य क्या हैं? (What are the duties of teachers?) के बारे में बताया गया है।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *