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Ways to Avoid Being Frightened by Fear

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1.भय से भयभीत होने से बचने के उपाय (Ways to Avoid Being Frightened by Fear),हम भय से भयभीत क्यों होते हैं? (Why Are We Afraid of Fear?):

  • भय से भयभीत होने से बचने के उपाय (Ways to Avoid Being Frightened by Fear) इसलिए आवश्यक है क्योंकि भय के कारण छात्र-छात्राओं और व्यक्तियों का अध्ययन कार्य प्रभावित होता है।यदि सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित होता है तो ऐसा थोड़ा भय अच्छा ही है परंतु अध्ययन अथवा अन्य कार्य नकारात्मक दृष्टि से प्रभावित होता है तो ऐसा भय हमारे लिए नुकसानदायक है और इससे बचना ही चाहिए।
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2.भय के दुष्प्रभाव (Side Effects of Fear):

  • भय मानव जीवन का एक आधारभूत भाव है।शरीर एवं अस्तित्व की रक्षा के रूप में इसकी अनिवार्यता एवं उपयोगिता स्पष्ट है,किन्तु अपने बढ़े हुए एवं अतिरंजित रूप में यह गंभीर त्रास का कारण बनता है।सामान्य-सा भय पलते-बढ़ते दुर्भीति (फोबिया) का रूप ले लेता है और व्यक्ति के सामान्य जीवन को दूभर बना देता है।
  • इससे ग्रसित व्यक्ति भय उत्पादक परिस्थिति की उपस्थिति की संभावना मात्र से ही अत्यंत सशंकित एवं आतंकित हो उठता है और उस परिस्थिति से बचने की चेष्टा करता है तथा परिस्थिति के उपस्थित हो जाने पर असंगत रूप से भय व्यक्त करता है।ऐसी स्थिति में प्राय: वह दूसरों पर आश्रित रहने तथा असहायपन की भावना रखता है।इस तरह भय का दानव मनुष्य को सशंकित,आतंकित,दीन-हीन और पराश्रित जीवन जीने के लिए बाध्य करता है।
  • यह भय न केवल जीवन की सामान्य क्रियाओं एवं कार्य करने की क्षमता में बाधा डालता है,बल्कि अपने उग्र रूप में व्यक्ति की सोचने-विचारने की क्षमता को कुंद कर देता है और व्यक्ति के व्यवहार को असामान्य रूप से प्रभावित कर जीवन-व्यापार को विफल बना देता है।यह व्यक्ति को हताशा,निराशा एवं कुंठा में जीने के लिए विवश करता है।
  • इसके अतिरिक्त भय तरह-तरह के शारीरिक रोगों का भी कारण बनता है।सिरदर्द,सिर चकराना,पेट की खराबी,पीठ का दर्द आदि कष्ट सामान्यतः इससे पैदा होते हैं।भय जहां असंख्य लोगों को जीवन के आनंद व सुख से वंचित कर देता है,वहीं शरीर के प्रत्येक अंग की क्रिया पर अपना दुष्प्रभाव डालता है।यह रक्त को दूषित कर देता है।श्वास क्रिया में विकृति पैदा कर देता है।
  • यह हमारे समस्त शरीर को विषपूर्ण बना देता है,हमारी शक्ति को घटाता है और हमारी सामर्थ्य को क्षीण कर देता है।वस्तुतः भय शरीर की क्रिया के लिए विष का काम करता है।यह कुछ अंगों की गति को मंद कर देता है।इस तरह भय की उपस्थिति में शरीर के अंग अपनी क्रियाओं को भलीभाँति नहीं कर पाते और यदि भय तीव्र हो व दीर्घकाल तक बना रहे तो यह शरीर के अंगों को गंभीर रूप से क्षति पहुंचाकर उन्हें बेकार कर सकता है।भीषण  भय के अवांछित प्रभाव से सभी परिचित हैं कि किस तरह यह हमारी तबीयत को खराब करता है और तुरंत अस्वस्थ हो जाते हैं।
  • भय का अवांछनीय प्रभार शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और यह शारीरिक नीरोगता का एक भारी शत्रु भी है।यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि भय से जितने लोग मरते हैं,उतने रोग या युद्धों से भी नहीं मरते।भय रोगों का सहायक एवं सक्रिय मित्र सिद्ध होता है।बहुत से रोगियों को इस कारण मृत्यु का शिकार होना पड़ा,क्योंकि उन्होंने निरोग होने की आशा छोड़ दी थी।भय और कार्य का पछतावा,ये दोनों बातें शरीर का घाव भरने की प्रक्रिया में बाधक होती हैं।सर्जन जानते हैं कि घावों को भरने में कितना समय लगता है,किंतु जब रोगी भयग्रस्त होता है,तब वे यह बताने में असमर्थ हो जाते हैं कि घाव कितने दिनों में भरेगा।
  • इस तरह भय का दानव जीवन की समस्त सुख-शांति,स्वास्थ्य-नीरोगिता एवं प्रगति-उन्नति को मनुष्य से छीन लेता है और मनुष्य को अनेक तरह से दु:ख त्रास देता है।

3.भय के कारण (Causes of Fear):

  • भय के कारण,हमें बाहर परिस्थितियों व्यक्ति या वस्तु में दीखते हैं,किंतु यथार्थ में कारण भीतर मन में होता है।मनोविशेषज्ञों के अनुसार भय कमजोर मन की उपज होता है।भय कायर मन की प्रतिकृति होता है।भीरु मनुष्य की आंतरिक दुर्बलता इस समाज-संसार के दर्पण में विपत्ति बनकर प्रतिबिम्बित होती है।संकट का सामना करने की,उससे उलझने-निपटने की क्षमता हममें नहीं है,ऐसा मान लेने के बाद ही भय आरंभ होता है।भय,व्यक्ति की अपनी आध्यात्मिक,चारित्रिक अथवा शारीरिक दुर्बलता की स्वीकृति है।दूसरे शब्दों में यह आत्मा,मन या शरीर की हार है।भय का अर्थ है इच्छा के अनुसार कार्य करने की अशक्ति या असमर्थता।जब हम भय से ग्रस्त होते हैं,तब हम भय को अपने ऊपर अधिकार करने देते हैं।
    वास्तव में भय की अपने में कुछ भी शक्ति नहीं होती,इसे हम अपनी शक्ति देकर बल देते हैं।
  • यदि हम इसे अपने से प्रबल न मानते तो इसके पास अपनी तनिक भी शक्ति नहीं थी कि यह हमारे ऊपर भूत की तरह सवार हो जाता।हम जिन वस्तुओं,
    घटनाओं,बातों या व्यक्तियों से डरते हैं,उन्हें हम शक्ति देते हैं।हम जिस बात की चिन्ता करते हैं,उससे हमारी चिंता ही सबल होती है।हम किसी दुर्घटना की आशंका करके उसे प्रबल बनाते हैं।कुछ अनहोनी या दुर्भाग्यपूर्ण घटना का विश्वास हमारे लिए दुर्भाग्य लेकर आता है।यही कारण है कि जो लोग असफलता से भयभीत होते हैं,वे असफल ही हो जाते हैं।
  • यह प्रकृति का नियम है कि जिस वस्तु से हम डरते हैं,उसे हम अपनी ओर आकर्षित करते हैं।वस्तुतः भय का अतिरंजित रूप सामान्यतः हमारे दीर्घकालीन प्रश्रय का परिणाम होता है,जिसके अंतर्गत हम भयजन्य परिस्थितियों से पलायन में अपनी सुरक्षा व शांति की खोज कर रहे होते हैं।
  • जितनी बार हम भय से बचने का प्रयास करते हैं,उतनी ही बार यह और पुष्ट होता है और हमारे आत्म-विश्वास की जड़ों को दुर्बल बनाता है।जीवन की विषम एवं चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से बचाव का यह रुख क्रमशः पलायन का ऐसा मनोवैज्ञानिक कुचक्र तैयार करता है,जो कैंसर की तरह जीवन के हर क्षेत्र में प्रसारित होकर व्यक्ति को शारीरिक एवं मानसिक रूप से कुंठित एवं पंगु बना देता है।

4.भय से बचाव के तरीके (Ways to Prevent Fear):

  • भयकारक स्थिति से बचाव के विविध तरीकों में से एक तो हम सामान्य रूप में प्रत्यक्षतः उस स्थिति से बचते हैं और हमें यह बोध रहता है कि हम भय से भाग रहे हैं।दूसरा अप्रत्यक्ष तरीका है,जिसमें हमें अपने पलायन का बोध नहीं रहता।भय के उपचार हेतु इन सूक्ष्म तरीकों का बोध होना जरूरी है।ये तरीके हैं:(1.)काम को टालते जाने की दीर्घसूत्रता,(2.)चुनौतीपूर्ण कार्य को स्वीकार न करना,(3.)विश्वसनीय व्यक्ति के समक्ष भी अपने भय को व्यक्त न करना,(4.)अन्य कार्यों में व्यस्त रहना,ताकि भयजनक समस्या पर विचार का मौका ही ना मिले,(5.)दूसरों की आड़ में,सुरक्षा में या आश्रय में रहना आदि।इस तरह की विविध युक्तियां भय से बचाए रखती हैं और तात्कालिक राहत देती हैं,किंतु भय का भूत और बलशाली होता चला जाता है।
  • भय से मुक्ति का एकमात्र तरीका उसका साहसपूर्ण सामना है।वास्तविक शांति और भयमुक्ति तभी संभव है,जब इसके निमित्तकारण अपने मन को बलवान बनाया जाए।यह कार्य सुविचारित रणनीति एवं योजना के तहत क्रियान्वित किया जाए तो भय के अनिष्टकारी प्रभाव से हम सदैव के लिए निजात पा सकते हैं।
  • इसकी शुरुआत हम भय की थोड़ी-सी उद्विग्न करने वाली स्थिति से कर सकते हैं।तब तक इसमें रहने का अभ्यास करें,जब तक की बेहतर अनुभव न करें।तदुपरांत भय उत्पन्न करने वाली और कठिन परिस्थिति में अपना अभ्यास दोहराएं।इस तरह क्रमशः सफलता की नई सीढ़ियां चढ़ते हुए भय के भूत को काबू में किया जा सकता है।इसके लिए नियमित रूप से हर दिन का अभ्यास अनिवार्य है।नियमित अभ्यास के परिणामस्वरूप ही सफलता सुनिश्चित होगी।यदि किसी कारणवश ऐसी परिस्थिति उपलब्ध न हो सके तो एकांत में भी भय उत्पादक स्थिति की कल्पना द्वारा अनुभूति करते हुए कल्पना में ही इसका अभ्यास कर सकते हैं।’विजुअलाइजेशन’ की यह तकनीक स्वयं में एक प्रबल साधना है।वास्तव में भय से मुक्ति के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य इससे पलायन की दूरभिसंधि से उत्पन्न कुचक्र को तोड़ना है।इसके लिए बचाव के सामान्य एवं सूक्ष्म तौर-तरीकों की समीक्षा करते रहना आवश्यक है।
  • इस दौरान नकारात्मक भावों से सावधान रहना बहुत महत्त्वपूर्ण है,क्योंकि अवचेतन मन इनको सीधा ग्रहण करता है और भय को और बल देता है।’मैं कर सकता हूं’ का भाव यदि पुष्ट रूप से संप्रेषित हो सके तो मन में भय से मुक्ति का मार्ग बहुत सरल हो जाएगा।इस तरह के पुष्ट संकेतों के साथ छोटे-छोटे सफल प्रयास आत्म-विश्वास को सबल बनाएंगे।’मैं नहीं कर सकता हूं’ के पलायनवादी भाव की जगह ‘मैं इसे कैसे कर सकता हूं’ का विचार भय को जड़ से उखाड़ फेंकने में कारगर सिद्ध होता है।इसी के साथ भय से मुक्ति पाने की बेहतर रणनीति एवं योजना अनुसरित होती है।
  • इस तरह भय का भूत जो हमारे स्वभाव में बैठा है,हमारे आत्म-विश्वास की शक्ति को पंगु बनाए हुए हैं,हमारी तमाम शक्तियों,क्षमताओं एवं संभावनाओं को नकारा बनाए हुए हैं।इसका जड़मूलोच्छेदन जीवन की सार्थकता,सफलता एवं पूर्ण विकास के लिए तत्काल अपेक्षित है।यदि हम भय के भूत को पोषण करने वाली बचाव एवं पलायन की आंतरिक दुरभिसंधियों को समझने के लिए व भय का सामना करने के लिए कृतसंकल्प हो जाएँ तो समझ सकते हैं कि भय से मुक्ति की आधी लड़ाई हमने जीत ली।शेष कार्य अध्यवसायपूर्वक किए जाने वाले सतत प्रयास-पुरुषार्थ द्वारा सुनिश्चित होगा।

5.थोड़ा भय हमारे लिए आवश्यक (A Little Fear is Necessary for Us):

  • इस संसार में व्यक्ति लोभ और भय से ही सबसे ज्यादा प्रभावित होता है।ये दोनों ही व्यक्ति के जीवन को निरंतर किसी न किसी रूप में ढकेलते और आगे बढ़ाते रहे हैं।लोभयुक्त कारकों की वजह से व्यक्ति का मन बाह्य संसार की ओर आकर्षित होता है,वह उन्हें प्राप्त करना चाहता है,उनके लिए संघर्ष करता है एवं भयभीत करने वाले कारकों की वजह से वह अपनी सुरक्षा करता है,अपना बचाव करता है और अपने भय को दूर करने का प्रयास करता है।
  • व्यक्ति अपने जीवन को यदि बहुत बारीकी से देखे तो यह बात स्पष्ट होती है कि इस संसार में अधिकांश व्यक्ति पूर्णतया निर्भय नहीं होते हैं।प्रायः व्यक्ति किस न किसी तरह के भय में,डर के साये में जीवन जी रहा प्रतीत होता है।जीवन की वर्तमान समस्याएं,भविष्य की चिंता,अतीत में हो चुकी भूलें उसे परेशान करती रहती हैं,भयभीत व असुरक्षित रखती हैं।अपने इस डर को दूर करने के लिए व्यक्ति निरंतर प्रयास करता है,मेहनत करता है और जीवन में सफल होना चाहता है,किंतु फिर भी इस भय से छुटकारा नहीं प्राप्त कर पाता है।कुछ नहीं तो मृत्यु का भय ही व्यक्ति को भयभीत करता रहता है कि न जाने कब,कैसे उसकी मृत्यु हो जाए,किसी तरह की बीमारी होने पर भी वह अपनी मृत्यु से भयभीत रहता है।
  • लेकिन इस भय के निरंतर बने रहने से व्यक्ति की मानसिक शांति,एकाग्रता व सृजनात्मकता में कमी आती है और किसी भी कार्य को बेहतर ढंग से करने में वह सक्षम नहीं रह जाता।एक ओर देखा जाए तो यह स्पष्ट होता है की डर या भय की वजह से व्यक्ति अपने कार्यों को पूरा करने के लिए बाध्य होता है।भयभीत करने वाले कारणों के कारण व्यक्ति स्वयं को निरंतर कार्य करने में व्यस्त रखता है और उसे समय पर पूरा करता है,लेकिन किसी भी परिस्थिति से अत्यधिक भय उसे कार्य करने में अक्षम बनाता है,जैसे फोबिया अर्थात् किसी भी व्यक्ति,वस्तु या परिस्थिति से अत्यधिक भय होने पर वह व्यक्ति उस स्थिति का सामना करने की स्थिति में नहीं रहता।अत्यधिक भय उसे घेर लेता है और वह अपने इस भय का भी सामना करने में असमर्थ होता है।
  • इस तरह देखा जाए तो थोड़ा भय या डर तो हमारे जीवन के लिए ठीक है,लेकिन ज्यादा भय की मात्रा हानिकारक है; क्योंकि इसके कारण हम न तो भयभीत करने वाली परिस्थितियों का सामना कर सकते और ना ही कुछ करने में सक्षम होते हैं।भयभीत रहने वाले व्यक्तियों का जीवन भी संपूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाता,ये एक अजब सी सुरक्षा के साए में जीवन जीते हैं और उन्हें इन परिस्थितियों से निकालना भी सहज नहीं होता।यदि जीवन को सुविकसित करना है तो सर्वप्रथम इस भयभीत जीवन से मुक्त होना होगा।
  • भय का सर्वथा अभाव होने पर ही जीवन संपूर्ण रूप से सुविकसित हो सकता है,अन्यथा डरे हुए व्यक्ति का जीवन भी उसी की तरह डरा हुआ व संकुचित होगा।किसी भी व्यक्ति,वस्तु या परिस्थिति से डरना व्यक्ति की आंतरिक कमजोरी होती है,जिसका वह सामना नहीं कर पाता और सामना न कर पाने के कारण वह जीवन के उन पहलुओं से अनभिज्ञ ही बना रहता है जो उसके लिए जरूरी तो थे,लेकिन उस रास्ते पर आगे न बढ़ने के कारण वह उन्हें हासिल नहीं कर पाया।अपने जीवन में घर जमाने वाले इन विभिन्न तरह के डर व भय से अपने को मुक्त करने के लिए व्यक्ति को अपनी कमजोर मानसिकता को पुनः सुदृढ़ व सशक्त बनाना होगा और धीरे-धीरे इन परिस्थितियों का सामना करना होगा।
  • जितना हम भयभीत रहेंगे,उतने ही कमजोर व आत्महीनता से घिरे होंगे और जितना हम साहसी बनेंगे,अपनी कमजोरियों को दूर करेंगे,उतना ही हम आत्म-विश्वास से भरपूर होते जाएंगे और साहस के साथ तेजी से आगे बढ़ेंगे।इसीलिए हम सभी को अपने जीवन के भयभीत करने और डरने वाले कारकों को ढूंढ निकालना चाहिए और उन्हें दूर करने के लिए प्रयास करना चाहिए।

6.भय का दृष्टांत (Example of Fear):

  • एक बार एक गणित का विद्यार्थी कोचिंग में गणित का अध्ययन करके घर लौट रहा था।घर के रास्ते में थोड़ा-सा रास्ता बिल्कुल सुनसान था।ज्योंही वह सुनसान जगह से गुजरा।एक बदमाश व्यक्ति ने उसको पकड़ लिया।विद्यार्थी के पास जो भी रुपया-पैसा था उसको देने के लिए कहा।पहले तो विद्यार्थी उस बदमाश से छूटने के लिए संघर्ष करता रहा परंतु बदमाश छात्र से बलशाली था।तब उसने भगवान को स्मरण किया तथा बातों ही बातों में उस बदमाश को उलझाए रखा।
  • थोड़ी देर में उसके दो मित्र पीछे से आ गए और शीघ्र ही उस छात्र के पास दौड़ कर आ गए।तीनों ने मिलकर उस बदमाश की जोरदार पिटाई की और उसे पुलिस थाने के सुपुर्द कर दिया।हालांकि उस बदमाश ने खूब हाथा-जोड़ी की और उसे माफ करने के लिए कहा।परंतु उन्होंने उसे पुलिस के हवाले करना ही ठीक समझा क्योंकि अत्याचारी के अत्याचार को सहन करना कायरता होती है और फिर उस बदमाश की क्या गारंटी है कि वह भविष्य में फिर कभी लूट-खसोट,गुंडागर्दी और झगड़ा प्रसाद नहीं करेगा।इस प्रकार उस विद्यार्थी के निर्भीक होने के कारण वह उस बदमाश के चंगुल से छूट गया,वरना वह रूपए-पैसे गँवाकर और उस बदमाश से पिटकर घर आता।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में भय से भयभीत होने से बचने के उपाय (Ways to Avoid Being Frightened by Fear),हम भय से भयभीत क्यों होते हैं? (Why Are We Afraid of Fear?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:What is Fear of Mathematics and how to Remove it?

7.स्कूल बैग में क्या है? (हास्य-व्यंग्य) (What is in School Bag?) (Humour-Satire):

  • एक विद्यार्थी स्कूल में अलमारी के ऊपर अपना बैग रखने लगा तो नीचे बैठने वाला विद्यार्थी बोल पड़ा ‘जरा ध्यान से रखिएगा,कहीं यह मेरे सिर पर ना आ गिरे।
  • बैग रखने वाला छात्र:चिंता मत कीजिए बैग में टूटने वाली कोई चीज नहीं है।

8.भय से भयभीत होने से बचने के उपाय (Frequently Asked Questions Related to Ways to Avoid Being Frightened by Fear),हम भय से भयभीत क्यों होते हैं? (Why Are We Afraid of Fear?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.निर्भय और भयभीत कौन होते हैं? (Who Are Fearless And Afraid?):

उत्तर:भोगी है तो रोग से भयभीत है,ऊँचे कुल का है तो पतन का भय है,धनवान है तो लुटेरों का भय है,दरिद्र है तो भविष्य से भयभीत है,बलवान को विरोधी से, रूपवान को वृद्धावस्था से और सज्जनों को दुर्जनों से भय होता है।मौन रहने में दीनता का,शास्त्र में वाद-विवाद का,मन में चंचलता और शरीर में मृत्यु का भय है इस प्रकार सभी और किसी न किसी प्रकार का भय मनुष्य के सामने रहता है निर्भय केवल वही है जो प्रभु के भक्त हैं।

प्रश्न:2.भय से क्यों नहीं घबराना चाहिए? (Why Not Be Afraid of Fear?):

उत्तर:क्योंकि संकटों,खतरों का सामना किया बिना मनुष्य सुख प्राप्त नहीं कर सकता।खतरों का मुकाबला करके ही जीवित रहने वाला मनुष्य ही सुख भोगता है।अतः मनुष्य को भय रहित होकर विवेक,धैर्य और साहस से काम लेकर सद्कर्म करते रहना चाहिए।

प्रश्न:3.भय से कब तक डरना चाहिए? (How Long Should One Be Afraid of Fear?):

उत्तर:आपत्तियों और संकटों से तभी तक डरना चाहिए जब तक वे दूर है परंतु जब वे सामने आ ही जाएं तब निःशंक और निडर होकर उन पर प्रहार कर उन्हें दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा भय से भयभीत होने से बचने के उपाय (Ways to Avoid Being Frightened by Fear),हम भय से भयभीत क्यों होते हैं? (Why Are We Afraid of Fear?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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