Menu

How to Students Arouse Curiosity?

Contents hide

1.छात्र-छात्राएं जिज्ञासा को कैसे जगाएं? (How to Students Arouse Curiosity?),गणित का अध्ययन करने के लिए छात्र-छात्राएँ जिज्ञासा को कैसे जगाएँ? (How Do Students Arouse Curiosity to Study Mathematics?):

  • छात्र-छात्राएं जिज्ञासा को कैसे जगाएं? (How to Students Arouse Curiosity?) क्योंकि अध्ययन तथा गणित का ज्ञान प्राप्त करने के लिए जिज्ञासु प्रवृत्ति होनी चाहिए।जैसे बंजर भूमि में वर्षा का होना व्यर्थ है,धनिक को दान देना व्यर्थ है,अन्धे को प्रकाश दिखाना व्यर्थ है,बहरे के आगे भजन-कीर्तन करना व्यर्थ है उसी प्रकार शिक्षा अथवा ज्ञान प्राप्त करना न चाहता हो उसे शिक्षा देना व्यर्थ है।आध्यात्मिक,सांसारिक और भौतिक विज्ञान (गणित शास्त्र तथा भौतिक विज्ञान वगैरह का ज्ञान) प्राप्त करने के लिए जिज्ञासु प्रवृत्ति होना आवश्यक है।छात्र-छात्राओं को केवल जिज्ञासा प्रवृत्ति रखना ही पर्याप्त नहीं है।ज्ञान प्राप्त करने के लिए जिज्ञासा प्रवृत्ति होना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इसके आगे की सीढ़ियों पर चढ़ता जाएगा तो ही उन्नत स्थिति को प्राप्त हो सकता है और अपने लक्ष्य को सिद्ध कर सकता है।जिज्ञासा से छात्र-छात्राएं केवल विद्यार्थी ही बने रहते हैं परंतु लक्ष्य की सिद्धि के लिए साक्षी भाव की स्थिति प्राप्त करनी होती है।लक्ष्य की सिद्धि चाहे भौतिक क्षेत्र में करनी हो अथवा आध्यात्मिक क्षेत्र में करनी हो दोनों क्षेत्रों में ही साक्षी भाव दशा उपलब्ध करनी होगी।
  • सात्त्विक बुद्धि वाला विद्यार्थी ही साक्षी भाव को उपलब्ध हो सकता है।तामसिक और राजसिक बुद्धि वाला विद्यार्थी जिज्ञासा करके भी काम,क्रोध,लोभ,मोह में फंसा रहता है।परंतु सात्त्विक बुद्धि थोड़ी सी भी जागी हुई हो तो जिज्ञासु (विद्यार्थी) को परमश्रेष्ठ स्थिति साक्षी भाव तक पहुंचा देती है।सात्त्विक बुद्धि तब आती है जब ज्ञान अनुभव से गुजरता है।जैसे गणित में फील्डबुक के सवाल त्रिभुज,समांतर चतुर्भुज,समलम्ब चतुर्भुज के क्षेत्रफल के सूत्र याद रहने से ज्ञात तो किए जा सकते हैं।परंतु वाकई में फील्ड बुक का क्षेत्रफल जब तक आप खेत में नाप-जोख करके ज्ञात नहीं कर लेते हैं तब तक फील्डबुक और फील्डबुक का क्षेत्रफल ज्ञात करना नहीं समझा जा सकता है।जागरूक और होशपूर्वक जब हमारा ज्ञान अनुभव से गुजरता है तभी सात्त्विक बुद्धि उपलब्ध हो सकती है।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके । यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए । आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:3 Tips to Use Ability to Study Maths

2.जिज्ञासा से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Curiosity?):

  • यदि विद्यार्थी के मन में जिज्ञासा न हो तो उसके मन में किसी प्रकार के प्रश्न नहीं उठेंगे।जब प्रश्न नहीं उठेंगे तो अध्ययन में न तो नई-नई बातें सीखी जा सकती है और न ज्ञान की उच्च अवस्था को उपलब्ध हो सकता है।जैसे ज्यामिति का अध्ययन करना और ज्ञान प्राप्त करना है तो वह इसका ज्ञान प्राप्त करने के लिए निम्न प्रश्नों को अपने आपसे या शिक्षकों व मित्रों से पूछता है और उसका उत्तर पुस्तकों से,शिक्षकों से,मित्रों से अथवा गणितज्ञों से प्राप्त करता है।ज्यामिति की खोज कब और कैसे हुई? ज्यामिति के साध्य (Propositions) अर्थात् प्रमेय (Theorem) क्या हैं? ज्यामिति की अभिधारणाएं (Postulates) क्या हैं? अभिगृहीत (Axioms) क्या हैं? त्रिभुज क्या है? कोण किसे कहते हैं? आसन्न कोण,संगत कोण,एकान्तर कोण,शीर्षाभिमुख कोण किसे कहते हैं? संगत कोण, एकांतर कोण और शीर्षाभिमुख कोण बराबर कब होते हैं? ज्यामिति की शुरुआत कहां से हुई? ज्यामिति को सर्वप्रथम तार्किक रूप किसने प्रदान किया? क्या विश्व त्रिविमीय है? इस प्रकार छात्र-छात्राओं के मन में अनेक प्रश्न उठते हैं।
  • छात्र-छात्राओं के मन में बहुत सी जिज्ञासाएं उत्पन्न होती हैं।यदि वे गणित का अध्ययन करते हैं तो गणित के बारे में सब कुछ जान लेने की भावना उत्पन्न होती है।गणित के बारे में हर सवाल को हल करने की कोशिश करते हैं।यदि सवाल हल नहीं होता है तो तत्काल अपने मित्र से,शिक्षकों से या बड़ों से सवाल पूछने लगते हैं।
  • प्रारंभिक अवस्था में छात्र-छात्राओं में उनके विचार और ज्ञानपूर्ण नहीं होते हैं।इसलिए वे गणित की कोई गुत्थी या सवाल सुलझाते हैं तभी दूसरी गुत्थी और सवाल को हल करने लगते हैं।उनके गणित के सवालों और समस्याओं को हल करने में कोई तालमेल और तारतम्यता नहीं होती है।परंतु ज्यों-ज्यों वे उच्च कक्षाओं में प्रवेश लेते हैं विचारों में परिपक्वता और तारतम्यता आ जाती है।
  • प्रारंभिक कक्षाओं में छात्र-छात्राएं गणित के सवाल अथवा अध्ययन अपनी जिज्ञासा शांत करने तथा कक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए करते हैं।परंतु उच्च कक्षाओं में उनकी जिज्ञासा गणित में खोजपूर्ण कार्य करने के लिए उत्पन्न होती है।छात्र-छात्राओं की जिज्ञासा की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।उनकी जिज्ञासा का समाधान करना चाहिए।यदि तत्काल किसी सवाल अथवा समस्या का समाधान नहीं कर सकते हैं तो सही उत्तर तलाश करके उन्हें संतुष्ट करना चाहिए।
  • यदि छात्र-छात्राओं की जिज्ञासा का उचित समाधान उचित व्यक्ति (शिक्षक,गणितज्ञ,मेधावी छात्र इत्यादि) द्वारा नहीं किया जाएगा तो वह दूसरों से गणित के सवाल और समस्याओं को पूछेगा।दूसरे यदि गलत उत्तर देकर समझाएंगे तो छात्र-छात्राओं की उन्नति करने की दिशा गलत हो जाएगी।

3.अपने अंदर जिज्ञासा जगाएँ (Arouse Curiosity within Yourself):

  • यदि विद्यार्थी को आगे बढ़ना है तथा ज्ञान प्राप्त करना है तो अपने अंदर जिज्ञासा को जगाइए।यदि आपमें जिज्ञासा वृत्ति समाप्त हो जाए तो यदि गणित के क्षेत्र में है तो गणित में आगे का विकास अवरुद्ध हो जाएगा।यदि विज्ञान के क्षेत्र में है तो वैज्ञानिक प्रगति ठप्प पड़ जाएगी।जिज्ञासा से ही छात्र-छात्राएं ज्ञान की उच्च भूमियां मुमुक्षा,साधना,संन्यास,साक्षी इत्यादि को प्राप्त करता है।
  • जिज्ञासा के आधार पर ही एक छात्र-छात्रा दूसरे छात्र-छात्रा से,छात्र-छात्राएं शिक्षक से,छात्र-छात्राएं पुस्तकों से तथा अन्य माध्यमों से,एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से ज्ञान ग्रहण करके आगे बढ़ता है।यदि किसी छात्र-छात्रा अथवा व्यक्ति में कुछ जानने,सीखने अथवा ग्रहण करने की ललक,उत्कण्ठा ही नहीं होगी तो क्यों वह व्यर्थ में विचार-चिन्तन-मनन करेगा अथवा जिज्ञासा प्रकट करेगा?
  • जिज्ञासु की दृष्टि पैनी और खोजपूर्ण हो तो छात्र-छात्राओं को साधक,संन्यास और साक्षी भाव तक पहुंचा देती है।एक ही कक्षा में शिक्षक समान रूप से पढ़ाता है परंतु बहुत कम संख्या में ऐसे छात्र-छात्राएं होते हैं जो शीर्ष पर रहते हैं।कारण स्पष्ट है कि शिक्षक जो भी पढ़ाता है अथवा गणित के सवाल और समस्याएं समझाता हैं उसमें अधिकांश छात्र-छात्राओं की सीखने की दृष्टि सामान्य ही रहती है जबकि मेधावी छात्र छात्राएं उन्हीं सवालों और समस्याओं में असाधारण बात खोज लेते हैं और सीख लेते हैं।
  • जैसे जब कार्ल फ्रेडरिक गाउस जब 10 वर्ष के थे तब स्कूल के प्रधानाचार्य बटलर ने एक दिन सारी कक्षा को जोड़ का एक प्रश्न दिया जो इस प्रकार थाः81297+81495+81693+…..+100 पदों तक योग निकाले।उन लड़कों में से सभी साधारण तरीके से जोड़ कर रहे थे।परन्तु गाउस ने तत्काल समांतर श्रेणी का सूत्र लगाकर तत्काल जोड़ बता दिया।अन्य छात्र-छात्राओं में से कोई भी उनका जोड़ करके नहीं बता सका।इसी प्रकार पेड़ से फल गिरना सभी के लिए साधारण बात थी परंतु गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक आइज़क न्यूटन ने उसके आधार पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सिद्धांत को खोज निकाला जो की असाधारण बात थी।
  • जिज्ञासा के बल पर अनंत ज्ञान का स्रोत फूट पड़ता है शर्त यही है कि सात्त्विक बुद्धि धारण की जाए।जिज्ञासा के बल पर अनेक ज्ञान के सूत्र खोज निकाले गए हैं और निकाले जा सकते हैं।जिज्ञासा के बल पर ही बीजगणित,संख्याशास्त्र,ज्यामिति,गति विज्ञान,अवकलन गणित,समाकलन गणित,संख्यात्मक विश्लेषण इत्यादि गणित की विभिन्न शाखाओं के रहस्यों का पता लगाया जा सका है।जिज्ञासा व्यक्ति की अन्तर्निहित ऐसी क्षमता है जिसके बल पर अनेक गूढ़ रहस्यों का पता लगाया जा सकता है।जिज्ञासा बुद्धि का सहज गुण है जिसके आधार पर अज्ञात रहस्यों को खोजा जा सकता है।जिज्ञासा के बल पर गणितज्ञ और वैज्ञानिक तथा मनस्वी व्यक्ति रात-दिन नए-नए रहस्यों को खोजने में लगे रहते हैं।
    कक्षा में बहुत से छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं परंतु कुछ मेधावी हो जाते हैं जबकि शेष साधारण स्तर ही प्राप्त कर पाते हैं।उसके मूल में भी जिज्ञासा ही होती है।

4.जिज्ञासु से साक्षी भाव तक आगे बढ़े (Move Progressively up the Stairs of the Witness with curiosity):

  • साक्षी भाव का अर्थ है छात्र-छात्राएं अपने आपको कर्ता समझकर अध्ययन कार्य अथवा जाॅब को न करें।किसी भी कार्य को करने में शरीर,इंद्रियां,चेष्टा,चेतन शक्ति,इंद्रियों से संबंधित देवता जैसे देखने में सूर्य देवता भी कारण है (अतः चक्षु इन्द्रिय होते हुए भी सूर्य अथवा प्रकाश के बिना नहीं देख सकते हैं) इत्यादि का योगदान होता है।इन पांचों में से केवल अपने को कर्ता मान लेना अहंकार है।अहंकार से ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है।
  • दूसरा साक्षी का लक्षण है छात्र-छात्राओं को जो भी अध्ययन के लिए साधन-सुविधाएं हैं अर्थात् जो कुछ प्राप्त हैं उनसे शिकवा-शिकायत न करके उनको भगवान की कृपा (प्रसाद) समझकर उपयोग करना,अहोभाव और अनुगृहीत होना।
  • साक्षी भाव का तीसरा लक्षण है अध्ययन कार्य में आसक्ति न रखकर कर्त्तव्य पालन की दृष्टि से अध्ययन करना।आसक्ति रखकर अध्ययन करेंगे तो उससे मिलने वाली सफलता या असफलता से खुश होंगे या दुखी होंगे।
  • साक्षी भाव का चौथा लक्षण है कामनाओं से मुक्त होकर अध्ययन करना क्योंकि कामनाएं अनंत है एक या अधिक कामनाएं पूरी होती है तो ओर कामनाएं उत्पन्न होती हैं।कामनाएं अनंत है,जैसे आपकी कामना है कि परीक्षा में 90% अंक प्राप्त हो जाएं।90% अंक प्राप्त होने पर शीर्ष करने (टॉप करने) करने की कामना उत्पन्न हो जाती है।टाॅप पर आ गए तो अच्छा जाॅब प्राप्त करने की कामना उत्पन्न हो जाती है।अच्छा जॉब मिल जाए तो अधिक वेतन प्राप्त करने की कामना उत्पन्न हो जाती है।अतः निष्काम भाव से अध्ययन करना।
  • साक्षी भाव का पांचवा लक्षण है कि अध्ययन कार्य को कर्त्तव्य समझकर करने के साथ-साथ निष्ठापूर्वक करना अर्थात् अध्ययन को बोझ न समझकर आनंद की अनुभूति करते हुए करना।
  • छठवा लक्षण है कि अध्ययन कार्य निमित्त होकर करना,कर्ता भगवान को समझना क्योंकि किसी भी कार्य का फल भगवान् के विधि विधान के अनुसार ही मिलता है।
  • हालांकि साक्षी भाव को उपलब्ध होना है तो कठिन परन्तु धीरे-धीरे ध्यान-योग,अभ्यास व वैराग्य से इस स्थिति को उपलब्ध हुआ जा सकता है।जिज्ञासु से मुमुक्षा,साधना (साधक),संन्यास तथा साक्षी भाव को एक-एक सीढ़ी प्राप्त करते हुए आगे बढ़ता है तो साक्षी भाव प्राप्त करना सरल हो जाता है।साक्षी की स्थिति उपलब्ध होने पर हमें ओर कुछ प्राप्त करना शेष नहीं रहता है।फिर साक्षी की स्थिति प्राप्त करने वाला ज्ञान का वितरण करने लगता है।यदि हम अपने को कर्ता मानेंगे तो सांसारिक व आध्यात्मिक सुख व-दुख हमें प्रभावित भी करेंगे।सांसारिक माया जाल में फँसेगे।

Also Read This Article:Mathematics Students Should Work Hard

5.जिज्ञासा को जगाने का दृष्टान्त (A Parable to Arouse Curiosity):

  • जिज्ञासु छात्र-छात्राएं तथा व्यक्तियों की बुद्धि जागरूकता तथा होश की तरफ बढ़ने लगती है तथा शुभ कार्यों को ग्रहण करती जाती है।सद्बुद्धि एक बार जाग जाती है तो वह छात्र-छात्रा शिक्षक से एक बार सुनकर ही विषय को ठीक से समझ जाता है और उसे याद हो जाता है।यदि बुद्धि तामसिक वृत्ति की हो तो उस जिज्ञासु को कुण्ठा,तृष्णा से ग्रस्त कर देती है।धीरे-धीरे उसकी जिज्ञासा खत्म होने लगती है।वह डरपोक,दब्बू और मंदबुद्धि का हो जाता है।परन्तु सद्बुद्धि वाले छात्र-छात्रा की जिज्ञासा विषय का अध्ययन करने के लिए गहराई में उतरकर उसकी उपयोगिता को ढूंढ लेती है।जिज्ञासा से शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक उन्नति होती है।माता-पिता को तथा छात्र-छात्रा को अपनी जिज्ञासा वृत्ति को नष्ट नहीं होने देना चाहिए बल्कि उसे विकसित करके आगे से आगे बढ़ते जाना चाहिए।यदि जिज्ञासा वृत्ति नहीं है तो ऐसे छात्र-छात्रा को मन की एकाग्रता,अभ्यास,अध्ययन,स्वाध्याय और सत्संग से जगाना चाहिए।
  • एक गणित शिक्षक का बहुत ही चहेता शिष्य था।गणित शिक्षक अक्सर उसकी प्रशंसा करते रहते थे।कुछ ईर्ष्यालु छात्र-छात्राओं को यह सहन नहीं हुआ।एक दिन उन्होंने गणित शिक्षक से शिकायत की।वे बोले गणित में अच्छे अंक तो हम में से कई छात्रों के आते हैं फिर भी आप इसी छात्र की इतनी प्रशंसा क्यों करते हो? गणित शिक्षक ने कहा कि एक दिन मौके पर वे इसका कारण बताएंगे।
  • एक दिन कुछ लोगों का काफिला कोचिंग सेंटर के पास से गुजर रहा था।गणित शिक्षक ने शिकायत करने वाले छात्रों में से गणित में जिसके अच्छे अंक आए थे उसको कहा कि जाकर मालूम करो यह काफिला कहां जा रहा है? छात्र वहां गया और बताया कि वे किसी समारोह में शिरकत करने जा रहे हैं।
  • इसके बाद गणित शिक्षक ने अपने प्रिय शिष्य को तलाश करने के लिए भेजा।प्रिय शिष्य वहाँ गया और पूछताछ करके आया।उसने कहा कि वे लोग गणितज्ञ तथा गणित से किसी न किसी प्रकार जुड़े हुए हैं।इस नगर में गणित प्रतिभा सम्मान समारोह आयोजित किया जा रहा है।समारोह में शामिल होने के लिए किसी प्रकार का शुल्क नहीं रखा गया है।आम आदमी भी शिरकत कर सकता है।गणित प्रतिभाओं के लिए आवेदन भरवाए जा चुके हैं परंतु यदि कोई आवेदन करने से वंचित रह गया है तो तत्काल समारोह के दौरान भी आवेदन भरने की व्यवस्था की गई है।मैंने तत्काल ही दो फार्म उनसे ले लिए है क्योंकि किसी भी छात्र-छात्रा अथवा व्यक्ति को दो से अधिक फाॅर्म देने की व्यवस्था नहीं है।
  • समारोह में उसी समय चयन करके गणित प्रतिभाओं को तत्काल सम्मानित किया जाएगा।सभी को पदक दिए जाएंगे परंतु प्रथम 15 प्रतिभाओं की शिक्षा का खर्चा संगठन उठाएगा जब तक वह अध्ययन करेगा।शिक्षा पर किया गया खर्च कभी भी वापस नहीं लिया जाएगा।समारोह 2 दिन तक चलेगा।पदक वितरण दूसरे दिन किया जाएगा।मैंने दोनों फाॅर्म भरकर तत्काल वहाँ जमा करा दिए हैं।
  • गणित शिक्षक ने कहा कि देखा तुमने मैं इस शिष्य को इतना क्यों चाहता हूं? केवल गणित में अधिक अंक आने से ही कोई प्रिय और चहेता नहीं बन जाता है।वह जिज्ञासु है।यह सांसारिक तथा भौतिक विषयों का ज्ञान ही नहीं रखता है बल्कि इसमें बौद्धिक व आध्यात्मिक बातों को जानने की जिज्ञासा भी है।इसीलिए इसमें जिज्ञासा वृत्ति,सरलता,विनम्रता,सादगी,बुद्धि चातुर्य तथा गणित में मेधावी तो है ही।सभी छात्र-छात्राओं ने इस रहस्य को समझा और उन्होंने जिज्ञासा का महत्त्व समझकर अपने अन्दर जिज्ञासा को जगाने का निश्चय किया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं जिज्ञासा को कैसे जगाएं? (How to Students Arouse Curiosity?),गणित का अध्ययन करने के लिए छात्र-छात्राएँ जिज्ञासा को कैसे जगाएँ? (How Do Students Arouse Curiosity to Study Mathematics?) के बारे में बताया गया है।

6.गणित को पकड़ने का कांटा (हास्य-व्यंग्य) (Fork to Catch Mathematics) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक:बताओ सोहन,गणित पर मजबूत पकड़ करने के लिए कौनसा जाल बिछाया जाए और कौनसे कांटे से उसे पकड़कर खींचा जाए?
  • मोहन:सर (sir),उसे बुद्धि का जाल बिछाकर और विवेक के कांटे से पकड़कर खींचना होगा।

7.छात्र-छात्राएं जिज्ञासा को कैसे जगाएं? (Frequently Asked Questions Related to How to Students Arouse Curiosity?),गणित का अध्ययन करने के लिए छात्र-छात्राएँ जिज्ञासा को कैसे जगाएँ? (How Do Students Arouse Curiosity to Study Mathematics?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या जिज्ञासा के बिना ज्ञान  सम्भव नहीं है? (Is Knowledge not Possible Without Curiosity?):

उत्तर:केवल जिज्ञासा के बल पर ज्ञान संभव नहीं है।जिज्ञासा के साथ सत्त्वबुद्धि का होना भी आवश्यक है।सत्त्वबुद्धि थोड़ी सी भी जागी हुई है तो भी ज्ञान प्राप्त कर सकता है।परंतु तामसिक बुद्धि वाला जीवन भर जिज्ञासा करके भी मोह, तृष्णा इत्यादि को ही प्राप्त करता है।जागरूक व होशपूर्वक जीवन के अनुभव प्राप्त करने से सद्बुद्धि को उपलब्ध हो सकते हैं।

प्रश्न 2.क्या लक्ष्य की प्राप्ति जिज्ञासा से हो सकती है? (Can the Goal be Achieved Through Curiosity?):

उत्तर:लक्ष्य की प्राप्ति साधना से होती है।साधना कुतूहल व जिज्ञासा से प्रारंभ होती है और इसकी अंतिम सीढ़ी साक्षी भाव को उपलब्ध होना है।साक्षी की स्थिति प्राप्त होने पर ही लक्ष्य की सिद्धि हो सकती है।लक्ष्य सांसारिक अथवा अध्यात्मिक दोनों में लक्ष्य की सिद्धि साधना से ही प्राप्त हो सकती है।धीरे-धीरे एक-एक सीढ़ी पर चढ़ते हुए आगे बढ़ना चाहिए।एक-एक सीढ़ी पर चढ़ते हुए अन्य सीढ़ियों पर चढ़ना आसान हो जाता है।जिज्ञासा तथा साक्षी का विद्यार्थी काल में ही उपयोग नहीं है बल्कि जॉब को कुशलतापूर्वक करने,सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन करने में भी महत्ता और उपयोगिता है।

प्रश्न:3.अपने आपको कर्ता होने से कैसे मुक्त हुआ जा सकता है? (How Can One be Freed From Being the Doer?):

उत्तर:उपयुक्त आर्टिकल में कर्तापन से छुटकारा का उपाय बताया गया है।मन की एकाग्रता तथा ध्यान की अवस्था प्राप्त होने पर कर्ताभाव से छुटकारा हो जाता है।ध्यान का अर्थ अमनीभाव दशा (state of no mind) क्योंकि मन के कारण ही हम अपने को कर्ता समझते हैं।अपने आपको निमित्त मानकर तथा भगवान को कर्ता समझ कर भी कर्तापन से छुटकारा मिल सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं जिज्ञासा को कैसे जगाएं? (How to Students Arouse Curiosity?),गणित का अध्ययन करने के लिए छात्र-छात्राएँ जिज्ञासा को कैसे जगाएँ? (How Do Students Arouse Curiosity to Study Mathematics?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

8.प्रेरक विचार (Motivational Thought):

  • Mathematics,rightly viewed, possesses not only truth, but supreme beauty-a beauty cold austere, like that of sculpture, without appeal to any part of our weaker nature, without the gorgeous trappings of painting or music, yet sublimely pure, and capable of a stern perfection such as only the greatest and can show.
  • (सत्य ही कहा गया है कि गणित न केवल सत्य का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि एक अलौकिक सौन्दर्य का भी।एक ऐसा सौन्दर्य और निष्ठुरता, जैसे कि शिल्पकार प्रकृति के विरलतम रंगों,संगीत की सुरलहरियों, भव्यतापूर्वक पवित्रता के लिए एक महान दृश्य ही नहीं दिखाता बल्कि अपने आप में सर्वगुण सम्पन्न है।)
    Bertrand Russell (1872-1970)
    British Philosopher and Mathematician

How to Students Arouse Curiosity?

छात्र-छात्राएं जिज्ञासा को कैसे जगाएं?
(How to Students Arouse Curiosity?)

How to Students Arouse Curiosity?

छात्र-छात्राएं जिज्ञासा को कैसे जगाएं? (How to Students Arouse Curiosity?)
क्योंकि अध्ययन तथा गणित का ज्ञान प्राप्त करने के लिए जिज्ञासु प्रवृत्ति होनी चाहिए।
जैसे बंजर भूमि में वर्षा का होना व्यर्थ है,धनिक को दान देना व्यर्थ है,
अन्धे को प्रकाश दिखाना व्यर्थ है,बहरे के आगे भजन-कीर्तन करना व्यर्थ है
उसी प्रकार शिक्षा अथवा ज्ञान प्राप्त करना न चाहता हो उसे शिक्षा देना व्यर्थ है।

No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *