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Mathematician Sir Isaac Newton

1.गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन का परिचय (Introduction to Mathematician Sir Isaac Newton)-

  • गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन (Mathematician Sir Isaac Newton) के बारे में इस आर्टिकल में बताया गया है।गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन ( Mathematician Sir Isaac Newton) का जन्म 25 दिसम्बर,सन् 1642 ई. में बूल्सथोर्य नामक ग्राम में हुआ था। बूल्सथोर्य ग्राम इंग्लैंड में स्थित है। न्यूटन जब अपनी मां के पेट में थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। न्यूटन की मां के पास भरण-पोषण का कोई साधन या सहारा नहीं था। इसलिए न्यूटन की मां ने न्यूटन को दादी के पास छोड़ दिया तथा न्यूटन की मां ने पुनर्विवाह कर लिया ।न्यूटन को शुरू से ही बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।न्यूटन का जीवन असफलताओं के गर्भ में समाकर सफलता के शिखर पर चढ़ा।
  • अल्पकाल में ही समाकलन तथा अवकलन गणित (Integral and Differential Calculus)की रचना की।समाकलन तथा अवकलन की रचना ने उनको अमर बना दिया। महामारी के कारण सन् 1665 ई.में कॉलेज बंद हो गया और न्यूटन की शिक्षा अधूरी ही रह गई।परंतु न्यूटन इससे हताश व निराश नहीं हुआ बल्कि घर आकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लग गया।
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2.गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन के आविष्कार (Invention of mathematician Sir Isaac Newton)-

  • गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन(Mathematician Sir Isaac Newton) ने विज्ञान में ऐसा आविष्कार किया है कि यदि यह आविष्कार नहीं हुआ होता तो मानव जाति इतनी उन्नत अवस्था में नहीं पहुंच पाती।
  • एक दिन बगीचे में गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन (Mathematician Sir Isaac Newton) बैठे हुए थे। उस समय उन्होंने सेव के फल को नीचे जमीन पर गिरते हुए देखा और विचार किया कि यह फल पृथ्वी पर ही क्यों पड़ा अर्थात यह फल आकाश की ओर क्यों नहीं उड़ा। गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन ( Mathematician Sir Isaac Newton) ने अपनी विलक्षण बौद्धिक क्षमता के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी के अंदर आकर्षण शक्ति है जो भौतिक वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह सिद्धान्त ” गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत ” कहलाता है। इसके अलावा द्विपद प्रमेय (Binomial Theorem) न्यूटन की ही देन है जिसने गणित की जटिल से जटिल गणनाओं को सरल बना दिया है ।गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन (Mathematician Sir Isaac Newton) ने गतिविज्ञान (Dynamics) के समीकरण तथा पदार्थ ,विश्राम (Rest) तथा गतिशील (Motion) के नियम प्रतिपादित किए। गतिशील वस्तु के लिए उन्होंने तीन नियम प्रतिपादित किए।
  • गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन ( Mathematician Sir Isaac Newton) ने रेखीय गति से सम्बन्धित तीन नियम प्रतिपादित किए जिन्हें न्यूटन के गति के नियम कहते हैं।

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(1.)न्यूटन की गति का प्रथम नियम (Newton’s First Law of Motion)-
  • न्यूटन की गति के प्रथम नियम को गैलीलियो अथवा जड़त्व का नियम भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार यदि कोई वस्तु स्थिर (विराम) अवस्था में है तो वह वस्तु स्थिर (विराम) अवस्था में ही बनी रहेगी और यदि वह समान वेग (शून्य त्वरण ) से सरल रेखा के अनुदिश गतिशील है तो उसी पथ पर लगातार गतिशील रहेगी जब तक की वस्तु पर उसकी स्थिति परिवर्तन के लिए बाह्य बल न लगाया जाए।
  • वस्तु की स्थिर अथवा समान वेग से गतिशील, दोनों ही शून्य त्वरण की अवस्थाएं हैं ,इन अवस्थाओं में परिवर्तन के लिए बाह्य बल की आवश्यकता है।
(2.)स्थिर अवस्था में जड़त्व (Static Inertia)-
  • इस नियम के अनुसार यदि बाह्य बल की अनुपस्थिति में कोई वस्तु स्थिर है तो वह उसी अवस्था में ही बनी रहेगी।इसे स्थिर अवस्था में जड़त्व का नियम कहते हैं।
  • दैनिक जीवन में इस नियम पर आधारित अनेक उदाहरण हम सभी अनुभव करते हैं। हमारे द्वारा किसी स्थान पर रखी कुर्सी ,टेबल, किताब व दैनिक जीवन से जुड़ी प्रत्येक निर्जीव वस्तु अपनी स्थिति में परिवर्तन नहीं कर सकती।
    किसी फल-फूल वाले पेड़-पौधे की शाखा को हिलाने पर शाखा से जुड़े फल-फूल धरातल पर गिरना ,स्थिर अवस्था में जड़त्व नियम के आधार पर समझा जा सकता है। पेड़-पौधे की शाखा को हिलाने पर शाखा गतिशील हो जाती है परंतु शाखा से जुड़ा फल या फूल जड़त्व के कारण अपनी यथा अवस्था में ही रहना चाहता है।परिणामस्वरूप वह शाखा से पृथक होकर नीचे गिर जाता है।
  • इसी नियम के आधार पर किसी वाहन के एकाएक गतिशील हो जाने पर उसमें बैठे यात्री का पीछे की ओर धक्का अनुभव करना, ग्लास पर रखे कार्ड-बोर्ड को एकाएक खींचने पर उस पर रखे सिक्के का गिलास में गिर पड़ना ,कंबल या गलीचे को पीटे जाने पर उसमें जमी धूल कणों का पृथक हो जाना इत्यादि उदाहरण समझे जा सकते हैं।
(3.)गतिशील अवस्था में जड़त्व (Dynamic Inertia)-
  • इस नियम के अनुसार समान वेग से गतिशील वस्तु स्वत: ही (बिना बल लगाए) त्वरित या मंदित नहीं हो सकती अर्थात् गतिशील वस्तु निरंतर गतिशील ही रहने का प्रयास करती है।
  • दैनिक जीवन में हम गतिक जड़त्व को सामान्यतः अनुभव नहीं कर पाते। हम अनुभव करते हैं कि विद्युत बंद होने पर पंखा ,कूलर ,मिक्सी इत्यादि वस्तुएं गतिशील नहीं रह पाती। समतल पर गेंद को लुढ़का कर छोड़ देने पर वह भी निरंतर गतिशील नहीं रह पाती ।साइकिल सवार पैडल लगाना बंद कर दे तो कुछ समय बाद साइकिल की गति कम होकर रुक जाती है।इन सभी गतियों के रुकने का कारण वायु का प्रतिरोध व घर्षण बल की उपस्थिति है।यदि ये प्रयोग निर्वात अथवा इन प्रतिरोधी बलों की अनुपस्थिति में दोहराये जाएं तो गतिशील अवस्था में जड़त्व के नियम की अनुभूति की कल्पना की जा सकती है।अवरोधी बलों के प्रभाव को कम/नगण्य करने के लिए ही क्रिकेट में तेज गेंदबाज, गेंद फेंकने से पहले लम्बे रन अप पर तेजी से दौड़ता है ताकि उसके दौड़ने से प्राप्त अतिरिक्त वेग गेंदबाज द्वारा फेंके जाने वाली गेंद के प्रभावी वेग को बढ़ा सके।
  • इसी प्रकार लंबी कूद में भाग लेने वाले खिलाड़ी का कूदने से पहले बहुत तेजी से दौड़ कर लंबी दूरी तक कूदना समझा जा सकता है।
(4.)दिशात्मक जड़त्व (Inertia of direction)-
  • इस नियम के अनुसार गतिशील वस्तु स्वत: ही अपनी गति की दिशा में परिवर्तन नहीं कर सकती। अर्थात् बाह्य बलों की अनुपस्थिति में वस्तु सरल रेखा के अनुदिश गति करती रहेगी। उदाहरणार्थ किसी पतली डोरी से एक पत्थर बांधकर क्षैतिज तल में वृत्ताकार पथ में घुमाया जाए और गति की स्थिति में यकायक डोरी टूट जाए तो डोरी से बंधा पत्थर वृत्ताकार पथ में गतिशील नहीं रह पाता वरन वृत्त की परिधि के अनुदिश स्पर्श रेखीय दिशा की ओर सरल रेखीय पथ में गति करता हुआ दूर चला जाता है।
(5.)न्यूटन की गति का द्वितीय नियम (Newton’s Second Law of Motion)-
  • न्यूटन के गति के द्वितीय नियम के अनुसार किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर, वस्तु पर आरोपित बाह्य बल के समानुपाती होती है। वस्तु के रेखीय संवेग में यह परिवर्तन बाह्य बल की दिशा में होता है।नियत समय तक वस्तु पर अधिक परिमाण का बल लगाने पर रेखीय संवेग में परिवर्तन अधिक तथा कम बल लगाने पर यह परिवर्तन कम होता है।नियत बल के प्रभाव में वस्तु के रेखीय संवेग में होने वाले परिवर्तन का परिमाण बल-क्रिया के समयान्तराल के समानुपाती होता है।
(6.)न्यूटन की गति का तृतीय नियम (Newton’s Third Law of Motion)-
  • न्यूटन के गति के तृतीय नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया की ,परिमाण में समान परंतु विपरीत दिशा में विपरीत प्रतिक्रिया होती है। इसे क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम भी कहते हैं।प्रथम वस्तु द्वारा द्वितीय वस्तु पर लगाया गया बल क्रिया कहलाता है ।इसके परिणामस्वरूप द्वितीय वस्तु द्वारा प्रथम वस्तु पर लगाया बल, प्रतिक्रिया कहलाता है।
  • (i)न्यूटन के गति का तृतीय नियम से ज्ञात होता है कि प्रकृति में बल सदैव युग्म या जोड़े के रूप में लगते हैं। निरपेक्ष या अकेले बल का कोई अर्थ नहीं है।किसी भी साधन द्वारा लगाया गया बल क्रिया तथा उसके कारण अनुभव किया गया बल प्रतिक्रिया बल कहलाता है।
  • (ii)यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि कौनसा बल क्रिया बल है तथा कौनसा उसकी प्रतिक्रिया है।केवल यह कहा जा सकता है इन दोनों बलों में से एक क्रिया बल है एवम् दूसरा इसका प्रतिक्रिया बल।
  • (iii)क्रिया एवं प्रतिक्रिया बल सदैव अलग-अलग पिण्डों पर लगती है,एक ही पिण्ड पर नहीं। इसी कारण ये एक दूसरे के प्रभाव को समाप्त नहीं करते और प्रत्येक बल अपना अलग प्रभाव उत्पन्न करता है।
  • (iv)क्रिया एवं प्रतिक्रिया बलों की उत्पत्ति दोनों वस्तुओं के संपर्कित होने पर अथवा उनके दूर रहने पर ही संभव है।
  • (v)क्रिया एवं प्रतिक्रिया का नियम वस्तु के स्थिर अथवा गतिशील ,दोनों स्थितियों में लागू होता है।
  • (vi)क्रिया एवं प्रतिक्रिया का नियम सभी प्रकार के बलों जैसे ग्रुरुत्वीय,वैद्युत, चुम्बकीय बल आदि में लागू होता है।
  • उदाहरणार्थ-(1.)कोई व्यक्ति जब पृथ्वी तल पर पैदल चलता है तो वह अपने घुटने से मुड़े हुए पैर द्वारा पृथ्वी को पीछे की ओर धकेल कर पृथ्वी पर क्रिया उत्पन्न करता है। जिसके फलस्वरूप पृथ्वी उतने ही परिमाण का एक प्रतिक्रिया बल व्यक्ति पर लगाती है।इस प्रतिक्रिया बल का ही एक घटक व्यक्ति को गति प्रदान करता है।यदि फर्श पर कोई तेल या स्नेहक परत लगी हुई हो तो फर्श पर फिसलन होने के कारण व्यक्ति द्वारा उत्पन्न क्रिया कम हो जाती है। इसलिए प्रतिक्रिया बल का मान भी अपेक्षाकृत कम हो जाने के कारण चिकने फर्श पर व्यक्ति का चलना कठिन हो जाता है।
  • (2.)एक तैराक जब अपने हाथों से पानी को पीछे धकेल कर क्रिया करता है तो धकेला हुआ पानी तैराक को उतनी ही प्रतिक्रिया से आगे की ओर धकेल देता है।
  • (3.)नाव खेने वाला व्यक्ति जितनी क्रिया से पानी को पीछे धकेलता है उतनी ही प्रतिक्रिया से पानी,नाव को आगे बढ़ने के लिए आवश्यक प्रतिक्रिया बल प्रदान करता है।

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3.गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन का सम्मान (Honor mathematician Sir Isaac Newton)-

  • गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन के इन शोध कार्यों ने न्यूटन का नाम महान गणितज्ञों की श्रेणी में ला दिया।उनकी इसी अद्वितीय योग्यता के कारण ही रॉयल सोसाइटी का सभापति चुना गया।इस महत्वपूर्ण पद पर उन्होंने परिश्रम और लगन के साथ 24 वर्षों तक कार्य किया।इसी समयान्तर में गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन ने “प्रिंसिपिया ” नामक पुस्तक प्रकाशित की,जिसने उनको वैज्ञानिक क्षेत्र में अमर बना दिया।

4.गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन का व्यावहारिक जीवन (Practical Life of Mathematician Sir Isaac Newton)-

  • महापुरुषों में दयालुता की मात्रा अधिक नहीं होती है परन्तु न्यूटन की दयालुता गौरवमयी थी,जिसका आभास इस घटना से मिलता है।
  • एक बार वह अपने महत्त्वपूर्ण कागजों को ,जो उसके वर्षों के कठोर परिश्रम के प्रतीक थे, रखकर बाहर चले गए। रात्रि का समय था , मोमबत्ती जल रही थी,पास में ही न्यूटन का प्याला कुत्ता ‘डायमंड ‘ बैठा था।उसने अज्ञानता के वशीभूत होकर मेज पर एक छलांग भरी।कागज जलकर राख हो गए। जैसे ही गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन ने कमरे में प्रवेश किया तो उसने अप्रत्याशित घटना को देखकर यह शब्द कहे “डायमंड, तू नहीं जानता कि तूने मेरा कितना नुकसान किया है।”
  • गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन कितने परिश्रमी थे उसका अनुमान इस घटना से कर सकते हैं।एक बार उसका मित्र स्टू-ले उससे मिलने आया।उसने न्यूटन को व्यस्त देखा तो उसका ध्यान बंटाना चाहा और उसका खाना जो मेज पर रखा था, खा लिया। अतः न्यूटन को कटोरदान खाली मिला तो उसने कहा “अरे !मैं तो समझे बैठा था कि मैंने खाना नहीं खाया ,मैंने तो खाना खा लिया है।
    न्यूटन में अभिमान की भावना लेश मात्र भी न थी इसकी परिचायक उसकी निम्न पंक्तियां हैं-
  • “मैं नहीं जानता संसार मुझे क्या समझेगा। मैं तो अपने आपको समुद्र के किनारे बालक के समान पाता हूं जो अपने विनोद के लिए समुद्र के किनारे की सीपियां और घोंघे बीनता फिर रहा हूं। जबकि सत्य का अगाध तथा असीम समुद्र बिना खोजा हुआ पड़ा है।”
  • गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन ( Mathematician Sir Isaac Newton) न केवल वैज्ञानिक या गणितज्ञ ही थे बल्कि वह एक समाजोद्वारक भी थे।यदि हम यह विचार करें कि इस धरा पर न्यूटन का प्रादुर्भाव न हुआ होता, तो क्या होता ? सम्भवतः आज की सभ्य मानव जाति आधुनिक दशा में न पहुंच पाती,क्योंकि सम्पूर्ण वैज्ञानिक क्षेत्र अछूता रह जाता।अतएव गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन ( Mathematician Sir Isaac Newton) समाजोद्वारक भी थे , इसमें सन्देह नहीं।जब तक मानव जाति इस जगत में विचरण करती रहेगी ,गणितज्ञ सर आइज़क न्यूटन ( Mathematician Sir Isaac Newton) का नाम आदर पूर्वक लिया जाता रहेगा।

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