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Lecture Method in Mathematics

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1.गणित में व्याख्यान विधि (Lecture Method in Mathematics),गणित शिक्षण की व्याख्यान विधि (Lecture Method of Teaching Mathematics):

  • गणित में व्याख्यान विधि (Lecture Method in Mathematics) विद्यार्थियों के अनुकूल नहीं है परंतु फिर भी वर्तमान में यह गणित में ही नहीं बल्कि सभी विषयों में सर्वाधिक उपयोग की जाती है।इस विधि को अधिक प्रयोग करने का कारण यह है कि पाठ्यक्रम को शीघ्रतापूर्वक,कम समय में तथा कम खर्च में प्रयोग की जा सकती है।
  • इस विधि में शिक्षक गणित संबंधी प्रतीक (Symbols),सूत्र (Formulae),समीकरण (Equations),संबंध (Relations),फलन (Functions),परिभाषाएँ (Definitions),संकल्पनाएँ (Concepts),प्रमेय (Theorems),नियम (Rules) इत्यादि को विद्यार्थियों के सम्मुख प्रस्तुत करता है।इसमें शिक्षक की समझ (Understanding),कौशल (Skills),सोच (Thinking),रुचि (Interests), गणित में योग्यता (Aptitude in Mathematics),गणित का ज्ञान (Knowledge of Mathematics) आदि की प्रमुख भूमिका होती है।
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(1.)गणित में व्याख्यान विधि के लाभ (Advantages of Lecture Method in Mathematics):

  • (i)यह विधि उच्च कक्षाओं में उपयुक्त है।
  • (ii)इस विधि को कम समय में पाठ्यक्रम को पूर्ण कराया जा सकता है।
  • (iii)इस विधि में विचारों का क्रम टूटता नहीं हैं।
  • (iv)व्याख्यान विधि सरल है इसे कोई भी अध्यापक आसानी से प्रयोग कर सकता है।
  • (v)व्याख्यान विधि में ज्यादा साधनों की जरूरत नहीं है।
  • (vi)व्याख्यान विधि खर्चीली नहीं है।
  • (vii)इस विधि में शिक्षक के लिए एक चाॅक,डस्टर व श्यामपट्ट का उपयोग ही पर्याप्त है।

(2.)गणित शिक्षण की व्याख्यान विधि के दोष (Disadvantages of Lecture Method in Teaching Mathematics),गणित में व्याख्यान विधि के दोष (Disadvantages of Lecture Method in Mathematics):

  • (i)यह विधि अवैज्ञानिक विधि है।
  • (ii)इस विधि में विद्यार्थी सक्रिय नहीं रहता है जबकि आधुनिक युग में विद्यार्थी तथा शिक्षक दोनों का सक्रिय रहना आवश्यक है।
  • (iii)इस विधि में छात्र-छात्राओं के चिंतन-मनन शक्ति,तर्कशक्ति,विद्यार्थियों के कौशल का विकास,विद्यार्थियों की शंकाओं का समाधान नहीं होता है।
  • (iv)इस विधि में प्रैक्टिकल,अभ्यास कार्य की तरह के विषय अर्थात् गणित जैसे विषय को पढ़ाना लाभदायक नहीं है।
  • (v)इस विधि में छात्र-छात्राएं गणित को पढ़ने में ध्यान नहीं देते हैं।
  • (vi)इस विधि में शिक्षक तथा छात्र-छात्राओं के मध्य सक्रिय संबंध नहीं बनता है।
  • (vii)इस विधि में मौखिक वार्ता होती है जिससे छात्र-छात्राओं को गणित विषय को तैयार करने में घर पर अधिक परिश्रम करना पड़ता है।
  • (viii)इस विधि में अध्यापक और छात्र-छात्राओं के मध्य क्रिया-प्रतिक्रिया का अभाव देखा जाता है।
  • (ix)इस विधि में छात्र-छात्राओं को शंकाएँ,विचार तथा अपनी बात रखने का अवसर नहीं मिलता है।

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(3.)गणित में व्याख्यान विधि को व्यावहारिक बनाने हेतु सुझाव (Suggestions to Make Practical Lecture Method in Mathematics):

  • (i)इस विधि में प्रश्नोत्तर विधि का प्रयोग करके छात्र-छात्राओं को सक्रिय रखा जा सकता है।
  • (ii)शिक्षार्थी द्वारा शिक्षक को पूछे जाने वाले प्रश्नों,सवालों,शंकाओं का समाधान करना चाहिए।
  • (iii)इस विधि में सहायक सामग्री जैसे कंप्यूटर,गणित प्रयोगशाला,मॉडल्स,प्रत्यक्ष वस्तुओं,गणित मशीन,नोट्स का प्रयोग करके उपयोगी बनाया जा सकता है।
  • (iv)गणित की विषयवस्तु को मनोवैज्ञानिक एवं तार्किक क्रम में प्रस्तुत करना चाहिए।जैसे किसी त्रिभुज व चतुर्भुज में अज्ञात कोणों को ज्ञात करने का टाॅपिक पढ़ाने से पूर्व समकोण त्रिभुज (Right Angled Triangle),सरल कोण (ऋजु कोण) (Straight Angle),वृहत कोण (प्रतिवर्ती कोण), संगतकोण (Corresponding Angle),एकांतर कोण (Alternate Angle),शीर्षाभिमुख कोण (सम्मुख कोण) (Vertically Opposite Angle),न्यून कोण (Acute Angle),अधिक कोण (Abtuse Angle),न्यून कोण (Acute Angle),पूर्ण कोण (Complete Angle),आसन्न कोण (Adjacent Angle) इत्यादि को समझाना चाहिए।
  • (v)विद्यार्थी को जहां आवश्यक हो वहां प्रश्न पूछकर सक्रिय रखा जाए।
  • (vi)व्याख्यान को उदाहरणों,सवालों की सहायता से अधिक रोचक बनाया जाए।
  • (vii)छात्र-छात्राओं को शंकाएँ (Doubts),विचारों (Thoughts) तथा अपनी बात को रखने के अवसर दिए जाएं।
  • (viii)व्याख्यान देते समय व्याख्यान (पाठ सारांश) (Lesson Summary) भी उद्घृत करते रहना चाहिए।
  • (ix)यदि आवश्यक हो तो श्यामपट्ट पर चित्र (Diagram) के द्वारा थ्योरी (सिद्धांत) व सवालों को समझाया जाए।
  • (x)व्याख्यान की भाषा सरल,रुचिकर तथा बोधगम्य होनी चाहिए।
  • (xi)गणित एक प्रैक्टिकल विषय है इसलिए थ्योरी (Theory),सूत्रों (Formulae),सिद्धांतों (principales),संक्रियाओं (Operations) तथा प्रमेयों (Theorems) को समझाने के बाद उससे संबंधित कुछ सवाल छात्र-छात्राओं से भी हल कराना चाहिए।
  • (xii)व्याख्यान की समाप्ति पर संपूर्ण व्याख्यान का संक्षिप्त सार (Brief Summary) विद्यार्थियों को उपलब्ध कराया जा सके तो अधिक उपयुक्त है।
  • (xiii)व्याख्यान देने से पूर्व शिक्षक को संबंधित गणित के टॉपिक को पाठ्य (Text),संदर्भ ग्रंथों (References) का यथोचित अध्ययन करना चाहिए।
  • (xiv)छात्र-छात्राओं को उचित संदर्भ ग्रंथ के लेखक व प्रकाशक के बारे में बताया जाना चाहिए जिससे जो जिज्ञासु छात्र-छात्राएं हों वे अधिक  ज्ञानार्जन कर सकें।
  • (xv)अंत में छात्र-छात्राओं को गणित के टॉपिक से संबंधित गृह कार्य (Home Work) भी दिया जाए।

(4.)गणित में व्याख्यान विधि का निष्कर्ष (Conclusion of Lecture Method in Mathematics):

  • छात्र-छात्राओं को गणित कोई भी शिक्षण विधि से पढ़ाया जाए परंतु वह शिक्षण विधि न तो पूर्णतः अच्छी होती है और न पूर्णतः खराब होती है।यदि शिक्षक में योग्यता,कुशलता तथा अनुभव है तो वह किसी भी शिक्षण विधि को उपयोगी तथा लाभदायक बना सकता है।शिक्षण विधि अपने आपमें न तो निरर्थक और न सार्थक होती है।यह तो उसका प्रयोग करने वाले पर निर्भर करती है।
  • इसी प्रकार छात्र-छात्राएं यदि गणित विषय के प्रति जिज्ञासु हों तो वे किसी भी विधि से फायदा उठा सकते हैं।इस प्रकार व्याख्यान विधि में भी शिक्षण सहायक सामग्रियों तथा अन्य विधियों का समावेश करके इसको उपयोगी बनाया जा सकता है।
    इस विधि पर यह आक्षेप लगाया जाता है कि शिक्षक सक्रिय (Active) तथा छात्र निष्क्रिय (Passive) होता है।यह विधि शिक्षक केंद्रित है। परंतु जैसा कि ऊपर वर्णित किया जा चुका है कि इस विधि में प्रश्नोत्तर विधि का प्रयोग करके छात्र-छात्राओं की शंकाओं का निवारण करके तथा छात्र-छात्राओं के विचारों को प्रकट करने का अवसर देकर इस आक्षेप का निवारण किया जा सकता है।
  • सारांश यह है कि उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखते हुए दोषों तथा सीमाओं का निवारण करके छात्र-छात्राओं को गणित में इस योग्य तैयार किया जा सकता है जिससे उनका मस्तिष्क एकाग्र (Concentrate) हो जाएगा।फलस्वरूप यह विधि छात्र-छात्राओं के लिए रोचक हो जाएगी साथ ही विद्यार्थी प्रत्येक टॉपिक पर सोचने-समझने में सक्षम हो सकेगा।
  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित में व्याख्यान विधि (Lecture Method in Mathematics),गणित शिक्षण की व्याख्यान विधि (Lecture Method of Teaching Mathematics) को समझ सकते हैं।

2.गणित में व्याख्यान विधि (Lecture Method in Mathematics),गणित शिक्षण की व्याख्यान विधि (Lecture Method of Teaching Mathematics) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.गणित में व्याख्यान विधि क्या है? (What is Lecture Method in Mathematics?):

उत्तर:व्याख्यान विधि नए विषयों को शुरू करने में उपयोगी है।गणित तथ्यों के पिछले ज्ञान पर आधारित है (Mathematics is based on previous knowledge of facts)।इस विधि का उपयोग तथ्यों के कुछ पिछले ज्ञान की आवश्यकता वाले विषय को सिखाने के लिए किया जा सकता है।इसके अलावा कम समय में बड़ी संख्या में विषय-वस्तु प्रस्तुत किए जा सकते हैं।

प्रश्न:2.व्याख्यान विधि क्या है और समझाओ? (What is lecture method and explain?):

उत्तर:व्याख्यान विधि शिक्षण की सबसे पुरानी विधि है।यह आदर्शवाद के दर्शन (philosophy of idealism) पर आधारित है।यह विधि छात्रों को विषय के स्पष्टीकरण को संदर्भित करती है।
शिक्षक इशारों,सरल उपकरणों का उपयोग करके,आवाज में परिवर्तन,स्थिति और चेहरे के भाव में परिवर्तन द्वारा छात्रों को सामग्री मामले को स्पष्ट करता है।

प्रश्न:3.गणित पढ़ाने के तरीके क्या हैं? (What are methods of teaching mathematics?):

उत्तर:गणित के शिक्षण तरीकों में व्याख्यान(Lecture),आगमन (Inductive),निगमन (Deductive),ह्यूरिस्टिक (अनुसंधान) या खोज (Discovery Method), विश्लेषणात्मक (Analytic),संश्लेषण (सिंथेटिक) (Synthetic),समस्या समाधान (Problem Solving),प्रयोगशाला (Laboratory) और परियोजना (Project) विधि शामिल हैं।शिक्षक पाठ्यक्रम की विशिष्ट इकाई,उपलब्ध संसाधनों और एक कक्षा में छात्रों की संख्या के अनुसार कोई भी तरीका अपना सकते हैं।

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित में व्याख्यान विधि (Lecture Method in Mathematics),गणित शिक्षण की व्याख्यान विधि (Lecture Method of Teaching Mathematics) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Lecture Method in Mathematics

गणित में व्याख्यान विधि
(Lecture Method in Mathematics)

Lecture Method in Mathematics

गणित में व्याख्यान विधि (Lecture Method in Mathematics) विद्यार्थियों के अनुकूल नहीं है
परंतु फिर भी वर्तमान में यह गणित में ही नहीं बल्कि सभी विषयों में सर्वाधिक उपयोग की जाती है।
इस विधि को अधिक प्रयोग करने का कारण यह है कि पाठ्यक्रम को शीघ्रतापूर्वक,कम समय में

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