How to teach modern mathematics?
1.आधुनिक गणित कैसे पढ़ाएं? (How to teach modern mathematics?):
- आधुनिक गणित को पढ़ाने (How to teach modern mathematics)के लिए गणित शिक्षण में क्रांति की आवश्यकता है।गणित को विज्ञान की भांति पढ़ाया जाना चाहिए चाहिए जिससे तथ्यों का पारस्परिक संबंध उजागर हो।केवल सूत्रों को पढ़ाना गणित नहीं है।
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आधुनिक गणित कैसे पढ़ाएं? (How to teach modern mathematics?):
- 2.गणित संरचनाओं प्रतिरूपों का अध्ययन है। विद्यार्थी इन संरचनाओं तथा प्रतिरूपों को पहचाने।यह प्रतिरूप अंकगणित तथा ज्यामिति में हो सकते हैं।उदाहरणार्थ-पूर्ण संख्याओं में योग की संरचना,सवृत्त होने के गुण,क्रमविनिमेयता तथा साहचर्यता द्वारा प्रदर्शित होते हैं।
- प्राकृतिक संरचनाओं में संरचना प्यानों के स्वयं तथ्यों द्वारा सिखाई जा सकती है।समांतर श्रेढ़ी, गुणोत्तर श्रेढ़ी तथा फिबोनाशी की संख्याओं में एक प्रतिरूप होता है।बहुभुजों तथा बहुफलकों के भी प्रतिरूप होते हैं।जहां प्रतिरूप या संरचना नहीं है वहां गणित भी नहीं हो सकती है।
- 3.विद्यार्थियों को इन संरचनाओं को खोजने के लिए उत्साहित किया जाए।सामूहिक प्रयत्नों द्वारा प्रतिरूपों की खोज अपेक्षित है। गणित में क्रिया श्रेष्ठता को प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए।
- 4.विद्यार्थियों में अंतर्ज्ञान का विकास होना आवश्यक है। संख्या सम्बन्धी तथा स्थान सम्बन्धी संरचनाओं का व्यापकीकरण द्वारा अन्तर्ज्ञान का विकास सम्भव है।सही अनुमान तथा सही व्यापकीकरण इस दिशा में मार्ग प्रदर्शक होते हैं।
- 5.गणित अध्यापन द्वारा विद्यार्थियों में निगमन तर्क शक्ति का विकास किया जाना चाहिए।अंकगणित तथा ज्यामिति में विशेष परिस्थितियों
- द्वारा सामंजस्य तथा समीकरणों का अनुप्रयोग इस दिशा में सहायक हो सकते हैं। अतःअंकगणित, ज्यामिति,बीजगणित का समन्वित पाठन आवश्यक है।
- संख्या रेखा में संरचनाएं-प्राकृत संख्याओं में योग के लिए संवृत्त होना,साहचर्य तथा क्रमविनिमेय होना।
गुणन के लिए संवृत्त,साहचर्य तथा क्रमविनिमेय होना।संख्या रेखा के साथ परिचय-शून्य तथा पूर्णांकों की पूरी प्रणाली जिसमें योगज सर्वसमिका,योगज प्रतिलोम,संवृत्तता,साहचर्यता,क्रमविनिमेयता,बंटन गुणधर्म आदि हों।
भिन्न का ज्ञान जिसमें परिमेय संख्या प्रणाली,अपरिमेय संख्याओं का ज्ञान तथा अपरिमेयता का अध्ययन है। - 6.समुच्चयों की संकल्पना गणित को एक रूप में लानेवाली एक प्रबल संकल्पना है।रिक्त समुच्चय, समुच्चयों का संघ,सर्वनिष्ठ समुच्चय आदि की संकल्पनाओं ने अंकगणित तथा ज्यामिति को समन्वय की भाषा प्रदान की है।ज्यामिति में बिन्दुओं के समुच्चय, रेखाओं, समतलों, त्रिभुजों,बहुभुजों,बहुफलकीय क्षेत्रों,किरणों, कोणों आदि के सभी गुण संघों तथा प्रतिच्छेदों द्वारा प्रकट किए जा सकते हैं।योग असम्बद्ध समुच्चयों के संघ रूप तथा गुणन समुच्चयों के कार्तीय गुणनफल के रूप में निरूपित किए जा सकते हैं।
- 7.संख्या रेखा,निर्देशांक,शून्य का स्थान,संख्या रेखा पर योग,व्यवकलन,गुणा तथा भाग आदि की संकल्पनाओं ने अंकगणित तथा ज्यामिति को समन्वित रूप प्रदान किया है। क्रम की संकल्पना,धन पूर्णांकों,ऋण पूर्णांकों,परिमेय संख्याओं को संख्या रेखा पर निरूपित करना आदि आधुनिक गणित की आधारभूत संकल्पनाएं हैं।
- 8.द्विविमितीय निर्देशांकों का परिचय,विवृत्त वाक्यों के सत्य समुच्चयों को रेखाओं पर,वक्रों पर अथवा जालक बिंदुओं द्वारा दिखाया जा सकता है।वर्गांकित कागज पर सममित आकृतियों के क्षेत्रफलों के सूत्र सरलता से ज्ञात किए जा सकते हैं।
- 9.क्रम संरचनाएं-असमताएं तथा सन्निकटन चिन्हों पर बल दिया जाना चाहिए।
- 10.सत्य समुच्चय की संकल्पना को समीकरणों तथा असमीकरणों में उपयोग करने के अवसर प्रदान करने चाहिए।
- 11.आधार 10,2,3,5,7,12 आदि में संख्या लेखन तथा इन प्रणालियों में योग तथा गुणन सारणियों की रचना का अभ्यास आवश्यक है।
- 12.मापीय तथा अमापीय ज्यामिति,बहुफलक स्थान सम्बन्धी अंतर्ज्ञान का विकास किया जाना चाहिए। बहुफलकों तथा समबहुफलकों का अध्ययन तथा बहुफलकों के लिए आयलर सूत्र के अध्ययन को प्रोत्साहित किया जाए।
- 13.सत्य समुच्चयों की संकल्पना का प्रयोग होने के कारण रहस्यमय अज्ञात राशियों की आवश्यकता नहीं रहती है।
- 14.मेघावी विद्यार्थियों के लिए चुनौतीपूर्ण एवं रुचिकर प्रश्नों का समावेश किया जाना चाहिए।पेचीदा प्रश्नों के स्थान पर बुद्धिबल प्रयोग एवं मनोरंजन आधारित प्रश्नों का निर्माण हितकर होगा।
- 15.विद्यार्थियों को लगातार सोचने के अवसर दें। बिन्दुओं को मिलाकर रेखाओं का ज्ञान,फिबोनाशी श्रेणी, विभिन्न आधारों की संख्या प्रणाली आदि के गुणों के बारे में चिंतन करने से गणितीय अंतर्ज्ञान का विकास होगा।गणित की आत्मा,प्रकृति,विविक्तियों तथा व्यापकीकरणों का ज्ञान गणित विषय को गतिशील बनाता है तथा सीखने के लिए पर्याप्त लचक पैदा करता है।
- गणित अमूर्त विषय है,किंतु इसकी शिक्षा मूर्त वस्तुओं के उदाहरणों,तथ्यों,संबंधों द्वारा दी जानी चाहिए।गणित तर्कसंगत है। इसके शिक्षण में सहज ज्ञान तथा सामान्य अनुमान का अनुप्रयोग स्वच्छंदता के साथ किया जाना चाहिए।आधुनिक गणित को पढ़ाने (How to teach modern mathematics) के लिए आधुनिक गणितज्ञों ने गणितीय निदर्शन को अध्यापन की आधुनिक विधि माना है। गणित में हीन शिक्षण तथा गणित के प्रति ऋण प्रतिक्रिया के कुचक्र को नवीन विचारों से तोड़ा जा सकता है।नई संकल्पनाओं के प्रति विश्वास जागृत करने से गणित शिक्षण के स्तर को सुधारा जा सकता है।हमें क्रांतिकारी समय में रहने का विशेषाधिकार मिला है। अतःइसका मूल्य भी चुकाना पड़ेगा। यह सब आधुनिक गणित की आधारभूत संकल्पनाओं को आधार बनाकर समन्वित गणित अध्यापन के माध्यम से संभव है।अंको के भेद की संकल्पना़ओं पर पर्याप्त बल दिया जाए तथा समुच्चय संकल्पनाओं का उपयोग कर शिक्षण को प्रतिरूपों,संरचनाओं एवं नियमों का मूल आधार बनाया जाए।सत्य समुच्चयों की संकल्पना को गणित अध्ययन का महत्वपूर्ण भाग बनाया जाए।
- उपर्युक्त आर्टिकल में आधुनिक गणित कैसे पढ़ाएं? (How to teach modern mathematics?) के बारे में बताया गया है।
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2 Comments
असाधारण प्रतिभा के धनी लगते हैं आप। मास्टर्स डिग्री का अध्यापन करने की क्षमता , केवल बी एससी की योग्यता के साथ। गणित विषय को किस प्रकार पढ़ाया जाए , इस पर मैंने बारंबार गहन मंथन किया। क्या कारण हैं कि गणित में मास्टर्स डिग्री धारक व्यक्ति एक साधारण सी प्रतियोगिता परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन नहीं कर पाते और विद्यार्थियों से भी नहीं करवा पाते।
सत्यम के शिक्षण प्रयास के लिए साधुवाद। आशा करता हूं गणित की शिक्षा में क्रांति कारी परिवर्तन की दिशा में अच्छा कदम है।
प्रेषक शिक्षण एवं केंद्र सरकार में स्टेटिस्टिकल सर्विस से सेवा निवृत्त व्यक्ति।
असाधारण प्रतिभा का मूल्यांकन विजिटर्स ही कर सकते है.आपकी टिप्पणी हमारा मनोबल बढ़ाने वाली है.गणित में मास्टर्स डिग्री धारक व्यक्ति एक साधारण सी प्रतियोगिता परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन नहीं कर पाते और विद्यार्थियों से भी नहीं करवा पाते,इसके कई कारण है.जैसे शिक्षा को केवल धन कमाने का साधन मान लेना,शिक्षा में नैतिक शिक्षा,आध्य्यात्मिक शिक्षा को सम्मिलित न करना.हालांकि प्राचीन सिस्ट्म केअनुसार तो शिक्षा नहीं दी जा सकती है.क्योंकि प्राचीन काल की आवश्यकताएं ओर थी और आधुनिक काल की आवश्यकताएं ओर हैं.परन्तु फिर भी नैतिक शिक्षा,आध्य्यात्मिक शिक्षा की आवश्यकताएं हमेशा रहेगी.इसलिए थोड़ी मात्रा में तो शामिल करना चाहिए.शिक्षा में परिवर्तनशीलता,प्रगतिशीलता और नवीनता जैसे तत्त्वों को शामिल करना चाहिए.वरना प्रतियोगिता परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करने और अच्छा पद धारण करके भी व्यक्ति स्वयं,समाज और राष्ट्र के लिए अच्छा नहीं बन सकता हैं.