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How Do Mathematics Student Grasp Truth?

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1.गणित के छात्र-छात्राएं सत्य को कैसे धारण करें? (How Do Mathematics Student Grasp Truth?),छात्र-छात्राएँ सत्य को कैसे धारण करें? (How Do Students Bear Truth?):

  • गणित के छात्र-छात्राएं सत्य को कैसे धारण करें? (How Do Mathematics Student Grasp Truth?) मन,वचन,कर्म से सत्य का पालन करना,सत्य बोलना,जो बात जैसी देखी,सुनी अथवा की हो उसको उसी प्रकार कहना ही सत्य समझा जाता है।परंतु महाभारत के शांति पर्व में पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को बताया कि सत्य बोलना,सौम्य स्वभाव,आत्म संयम,ईर्ष्या न करना,क्षमा,लज्जा,सहनशीलता,द्वेष न करना,त्याग,ध्यान,श्रेष्ठ जीवन,सुख-दुःख आदि में चित्त की स्थिरता,दया और अहिंसा इत्यादि बातों का पालन सत्य को धारण करना अथवा सत्य का पालन करना होता है।
    मनुस्मृति में भी कहा है कि:
  • “सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात मा ब्रूयात सत्यमप्रियम्।
    प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातन।।”
  • अर्थात् सत्य बोलना चाहिए परंतु प्रिय सत्य बोले किंतु जो अप्रिय लगे ऐसी बात सच्ची हो तो भी न बोलनी चाहिए।प्रिय असत्य भी नहीं बोलना चाहिए यही प्राचीन काल से चला आ रहा धर्म है।
  • हमारे वेदों,उपनिषदों तथा सभी शास्त्रों में सत्य बोलने की शिक्षा दी गई है।समाज तथा लोग भी यही समझते हैं कि उन्हें सत्य का पालन करना चाहिए ताकि अन्य लोगों की धारणा यह न बने कि वह झूठा है।
  • सत्य का पालन करने के लिए राजा हरिश्चंद्र ने अपार कष्ट सहन किए परन्तु अन्ततः सत्य की ही विजय हुई।इसके अलावा भी अनेक महापुरुषों ने सत्य का पालन किया।महात्मा गांधी ने सत्याग्रह व अहिंसा का पालन करके देश को स्वतंत्रता दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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2.गणित के छात्र-छात्राएं का पालन क्यों करें? (Why Should Mathematics Students Follow the Truth?):

  • गणित ही नहीं बल्कि प्रत्येक विषय का अंतिम (परम) लक्ष्य है सत्य की खोज करना।यदि हम आचरण में सत्य को धारण नहीं करेंगे,सत्य का पालन नहीं करेंगे तो गणित विषय में सत्य की खोज नहीं कर सकेंगे।तब हम केवल गणित का अध्ययन आजीविका के लिए करते हैं परंतु ऐसा व्यक्ति और छात्र-छात्राएं अंततः असफल रहते हैं।
  • यह ठीक बात है कि सत्य के पालन करने में अपार कष्टों,कठिनाइयों,बाधाओं और विपत्तियों का सामना करना पड़ता है।कई छात्र-छात्राएं व अन्य व्यक्ति सत्य का पालन करने पर हँसी व खिल्ली उड़ाते हैं और राजा हरिश्चंद्र की उपाधि जैसे व्यंग्य बाण छोड़ते हैं।परंतु सत्य का पालन करने के लिए तमाम बातें सुननी पड़ती हैं और अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है तभी ऐसे छात्र-छात्राएं निखरते,उभरते हैं और अपने क्षेत्र में ऐसी ऊँचाईयाँ हासिल कर लेते हैं जिन्हें देखकर दूसरे लोग दंग रह जाते हैं।
  • सत्य का पालन करने से जिस अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।किसी कवि ने कहा है कि सांच बराबर तप नहीं,झूठ बराबर पाप।जाके हिरदय सांच है,ताके हिरदय आप।अर्थात् सत्य के समान ओर कोई तप नहीं और झूठ के बराबर कोई पाप नहीं है।जिसके हृदय में सत्य का वास है,उसके हृदय में परमात्मा का वास है।इसलिए सत्य का आचरण करने में सभी मनुष्यों को पीछे नहीं हटना चाहिए।
  • सत्य से श्रेष्ठ कोई अन्य धर्म नहीं है और झूठ के बराबर अन्य कोई पातक नहीं है।इसी प्रकार सत्य से श्रेष्ठ ओर कोई ज्ञान नहीं है।इसलिए सत्य का ही आचरण करना चाहिए।
  • आत्मा और बुद्धि की प्रसन्नता का उपाय क्या है? क्या मिथ्या आचरण से कभी आत्मा और बुद्धि प्रसन्न हो सकती है।सब जानते हैं कि पापी आदमी की बुद्धि ठिकाने नहीं रहती है।और जब बुद्धि ठिकाने नहीं रहती तो ऐसा छात्र-छात्रा अध्ययन नहीं कर सकता है और न उसकी प्रगति,उत्थान और विकास हो सकता है।
  • मन और बुद्धि का विकास सत्याचरण से ही हो सकता है,मिथ्याचरण से नहीं।सत्य से ही संसार का व्यवहार चल रहा है।यदि एक क्षण के लिए भी सत्य अपना कार्य बंद कर दे तो प्रलय हो जाए।यदि एक मनुष्य कुछ मिथ्या आचरण करता है तो दूसरा तुरन्त ही सत्य आचरण करके इस सृष्टि की रक्षा करता है।मनुष्य की ही बात नहीं है बल्कि संसार की अन्य सब भौतिक शक्तियाँ भी सत्य से चल रही हैं।

3.सत्य को धारण कैसे करें? (How to Hold on to the Truth?):

  • (1.)हमारा राष्ट्रीय चिन्ह सत्यमेव जयते हैं और भारतीय मुद्रा पर भी अंकित है।यह प्रतीक वाराणसी के समीप स्थित सारनाथ में बने हुए अशोक स्तंभ से लिया गया है।अशोक स्तंभ में धर्म चक्र के नीचे देवनागरी में ‘सत्यमेव जयते’ लिखा हुआ है।शेरोंवाली इस मुद्रा को भारत सरकार ने 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में स्वीकार किया।यह महावाक्य मुण्डकोपनिषद में उल्लेखित है।अतः इससे प्रेरणा लेकर प्रत्येक छात्र-छात्रा को अपने जीवन में सत्य को धारण करना चाहिए।
  • (2.)ऋषि-मुनि सत्य की साधना ही करते थे जिससे उनमें ऐसी शक्ति उत्पन्न हो जाती थी और सिद्धि मिल जाती थी जिसके बल पर वे दुराचारी,पाखण्डियों को श्राप दे देते थे और सज्जन व साधु पुरुषों को वरदान दे देते थे।यह सत्य साधना का ही फल था।वे अन्यथा वाणी का उपयोग नहीं करते थे,न मन में फालतू के कुविचार लाते थे और न अन्यथा कार्य करते थे।वास्तव में मनुष्य का धर्माधर्म सत्य पर ही निर्भर है।एक सत्य के पालन से ही अनेक गुणों को धारण करना सम्भव हो जाता है।
  • (3.)धूर्त और पाखण्डी लोगों से सदैव बचना चाहिए।ये लोग ऊपर से सत्य का आवरण रखकर भीतर से मिथ्या व्यवहार करते हैं।जो सीधे-सादे मनुष्य होते हैं,जिनको नीति का ज्ञान नहीं है वे इनकी पॉलिसी में आ जाते हैं।जिसमें मिथ्या की पालिस की जाती है उसी को पॉलिसी कहते हैं।अतः इनकी संगत करने अथवा उनको खुश रखकर सत्य का आचरण नहीं किया जा सकता है।अतः ऐसे लोगों से दूर रहो।
  • (4.)सांसारिक व्यवहार और जॉब में सत्य का पालन करना कठिन होता है।इसमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सत्य बोलो परंतु प्रिय सत्य बोलो।जैसे किसी की लंबी उम्र हो तो उसको यह कहने के बजाय कि आपसे पहले आपसे छोटे मृत्यु को प्राप्त होंगे या हो रहे हैं यह न कहकर उन्हें यह कहा जाए कि आप दीर्घजीवी होंगे तो यह कहना प्रिय सत्य है।अन्धे को अन्धा न कहकर सूरदास कहना प्रिय सत्य हैं।
  • (5.)कई बार परिस्थितिवश दूसरे के भले के लिए झूठ बोलना पड़ जाता है।परोपकार,सेवा,लोकहित के कार्य करने में सत्य का पालन करने से दुष्प्रभाव पड़ता हो तो वहां असत्य बोलना भी सत्य से बेहतर है।
  • (6.)अपना स्वार्थ सिद्ध करने,अपने को लाभ और सुख पहुंचाने के उद्देश्य तथा दूसरे को हानि पहुँचाना हो ऐसा झूठ भी नहीं बोलना चाहिए।
  • (7.)किसी का दिल दुःखी होता हो,किसी के दिल को चोट पहुंचती हो,किसी को पीड़ा पहुँचती हो ऐसा सत्य नहीं बोलना चाहिए।जैसे कोई अत्यधिक संवेदनशील व्यक्ति के खास रिश्तेदार की मौत हो गई हो तो उसे यह कहना चाहिए कि आपका रिश्तेदार बीमार है और उनसे मिलने के लिए चलना है।
  • (8.)किसी को धोखा देने और स्वार्थ सिद्ध करने के लिए झूठ नहीं बोलना चाहिए।सत्य बोलने से वैरभाव,दुश्मनी और शत्रुता बढ़ती हो तो ऐसा सत्य नहीं बोलना चाहिए।
  • (9.)धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में सत्य का पालन करने से ही सफलता मिलती है।परंतु सांसारिक कर्त्तव्यों,जॉब में तथा व्यावहारिकता का पालन करने में कठोर और नग्न सत्य के आधार पर आज के युग में आचरण करना बहुत कठिन है और सफलता बहुत कम मिलती है।

4.सत्य को धारण करने से संबंधित मुख्य बातें (Key Things Related to Possessing the Truth):

  • (1.)अनावश्यक रूप से छोटी-छोटी बातों में असत्य न बोले।जो कदम कदम पर,हरेक बात में झूठ बोलता है ऐसे व्यक्ति पर न तो कोई विश्वास करता है और न वह सफलता अर्जित कर सकता है।
  • (2.)जो भूत,भविष्य और वर्तमान में एक जैसा विद्यमान रहे वह सत्य हैं।जो जैसा है वैसा ही कहना सत्य है और वैसा न कहना असत्य है।
  • (3.)सत्य की ही विजय होगी असत्य की नहीं।सत्य के ही मार्ग से परमात्मा मिलेगा।सब प्रकार के कल्याण का ज्ञान सत्य से ही होगा।
  • (4.)जो व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं से सम्पन्न है,जिनकी सांसारिक छोटी-बड़ी समस्याएँ सुलझी हुई है ऐसे व्यक्तियों को सत्य की खोज करनी चाहिए।
  • (5.)वह सत्य नहीं है जिसमें छल-कपट हो।सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है।सत्य तो एक अनुभूति है।
  • (6.)सत्य का भाव रखने वाले के शत्रुता व मित्रता,पक्ष व विपक्ष इत्यादि की भावना का लोप हो जाता है।वह तो प्राणी मात्र को कल्याण की दृष्टि से देखता है।जय-पराजय,हानि-लाभ के भेदभाव समाप्त हो जाते हैं।
  • (7.)सत्य के मार्ग पर चलनेवाला साधक भगवान से ऐश्वर्य,पद,प्रतिष्ठा,धन-संपत्ति इत्यादि की मांग नहीं करता है बल्कि वह तो सत्य (भगवान) में निष्ठा रखने की प्रार्थना करता है।

5.सत्याचरण का दृष्टांत (The Example of True Conduct):

  • एक विद्यार्थी शातिर चोर था।उसके पिता उसकी आदतों से बहुत परेशान थे।बुरी संगत से उसे शराब पीने व जुआ खेलने की आदत पड़ गई थी।एक दिन उसके पिताजी अपने पुत्र के सामने रोने लगे।पिता ने कहा कि मैं एक शराबी,जुआरी और चोर के पुत्र होने का दुःख लेकर ही मर जाऊंगा।
  • पुत्र ने कहा कि मैं शराब इसलिए पीता हूं कि दोस्तों की पार्टियों में शरीक हो सकूं और परीक्षा में असफल होने के दुःख को भुला सकूँ।जुआ इसलिए खेलता कि फालतू बैठे-बैठे बोर हो जाता हूं।मैंने जीवन में इनके अलावा कोई बात नहीं सीखी।
    पिता ने कहा कि कोई बात नहीं परंतु तुम केवल सत्य का आचरण करना चालू कर दो तो तुम्हारी सब बुराइयां दूर हो जाएंगी और मैं भी संतोष के साथ मर जाऊंगा।पुत्र ने सत्य का आचरण करने का वचन दिया।पिताजी का देहांत हो गया और पुत्र ने दाह संस्कार सम्पन्न करा दिया।
  • कुछ दिनों बाद ही परीक्षा आ गई।अब उसे उत्तीर्ण होने की चिंता सताने लगी।उसने अलमारी से प्रश्न-पत्र चुराने की योजना बनाई।वह रात को प्रश्न-पत्र की चोरी करने के लिए चल दिया।रात को उसे रास्ते में एक व्यक्ति मिला,उसने पूछा कि कहां जा रहे हो? विद्यार्थी को अपने पिता का वचन याद आ गया।विद्यार्थी ने कहा कि प्रश्न-पत्र की चोरी करने जा रहा हूं।उस व्यक्ति ने कहा कि क्यों मजाक करते हो? भला कोई चोर भी अपनी सच्चाई बताएगा।विद्यार्थी ने अपने पिता को दिया हुआ वचन बताया।
  • उस व्यक्ति ने कहा कि मैं भिखारी हूँ और आजकल भीख बड़ी मुश्किल से मिलती है।चोरी करने में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं।मुझे भीख मांगते-मांगते पुलिस थाने के गुप्त रास्ते पता चल चुके हैं।तुम चाहो तो मैं वह रास्ता बता सकता हूं और तुम आसानी से प्रश्न-पत्र चुरा लेना।
  • मैंने सुना है कि थानेदार लाॅक की चाबी अपनी मेज की दराज में रखता है।तुम पिछले दरवाजे से घुसकर चाबी को हासिल कर सकते हो।पुलिस वाले आगे के रास्ते पर ही तैनात रहते हैं।वैसे भी ज्यादातर पुलिस वाले रात को ड्यूटी के दौरान सोए पड़े रहते हैं।लेकिन मेरी इस मदद के बदले एक प्रश्न-पत्र मुझे भी देना होगा।
  • विद्यार्थी अपने काम (चोरी) में माहिर था,पलक झपकते ही पिछले दरवाजे से घुसकर उसने चाबी निकाल ली और दो प्रश्न-पत्र चुरा लिए।दो प्रश्न-पत्र में से एक प्रश्न-पत्र भिखारी को दे दिया।भिखारी ने कहा कि मैं इसको अन्य छात्र-छात्राओं को फोटोकॉपी बेचकर मालामाल हो जाऊँगा।
  • परन्तु तुम तो बहुत सा धन कमा लोगे क्योंकि तुमने तो अनेक प्रश्न-पत्र चुराए होंगे।विद्यार्थी ने कहा कि तुम गलत सोच रहे हो दोस्त।मैंने केवल दो प्रश्न-पत्र चुराए हैं।एक तुम्हारे लिए और दूसरा मेरे लिए।
  • दूसरे दिन थानेदार को पता चला कि लाॅक से प्रश्न-पत्र चोरी हो गए हैं।थानेदार ने हेड कांस्टेबल को आलमारी का निरीक्षण करने के लिए भेजा।हेड कांस्टेबल ने दो ओर प्रश्न-पत्र चुरा लिए।उसने सोचा क्या मालूम पड़ेगा? थानेदार जो रात को भिखारी के वेश में (सिविल ड्रेस) में था उसने तत्काल चोर को पकड़वाया।उसने चोर के समक्ष ही अन्य पुलिस वालों को हेड कांस्टेबल की तलाशी लेने के लिए कहा।हेड कांस्टेबल के पास से दो प्रश्न-पत्र बरामद हो गए।थानेदार ने कहा कि मुझे बहुत दिनों से हैड कांस्टेबल के भ्रष्ट कारनामों की खबर मिल रही थी परंतु अब सबूत के साथ इसको पकड़ लिया।
  • हेड कांस्टेबल को निलंबित कर दिया गया तथा विद्यार्थियों को थानेदार ने अपने घर का काम करने के लिए नियुक्त कर दिया ताकि वह चोरी करना छोड़ दें।धीरे-धीरे विद्यार्थी के सभी दुर्गुण नष्ट हो गए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित के छात्र-छात्राएं सत्य को कैसे धारण करें? (How Do Mathematics Student Grasp Truth?),छात्र-छात्राएँ सत्य को कैसे धारण करें? (How Do Students Bear Truth?) के बारे में बताया गया है।

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6.शिक्षक द्वारा गणित और विज्ञान को छोड़कर सभी विषयों की हल (हास्य-व्यंग्य) (Solve All Subjects Except Mathematics and Science by Teacher) (Humour-Satire):

  • कोचिंग करने की बातचीत करने के बाद छात्र (शिक्षक से):क्या आप सभी विषयों को पढ़ा सकते हो?
  • शिक्षक (खीझकर):हां-हां केवल गणित और विज्ञान विषयों को छोड़कर सभी विषय पढ़ा सकता हूं।
    छात्र:अभी तो लंबी चौड़ी बात कर रहे थे और गणित व विज्ञान विषय नहीं पढ़ा सकते तो कौन आएगा इस कोचिंग में पढ़ने?

7.गणित के छात्र-छात्राएं सत्य को कैसे धारण करें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Mathematics Student Grasp Truth?),छात्र-छात्राएँ सत्य को कैसे धारण करें? (How Do Students Bear Truth?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सत्य का क्या महत्त्व है? (What is the Importance of Truth?):

उत्तर:वाल्मीकि रामायण में कहा है कि जिसमें वृद्ध न हो वह सभा नहीं,जो धर्म की बात न कहते हों वे वृद्ध नहीं,जिस धर्म में सत्य न हो वह सत्य नहीं,वह सत्य नहीं जिसमें छल-कपट हो।

प्रश्न:2.क्या सामान्य विद्यार्थी सत्य का पालन कर सकता हैं? (Can the Average Student Follow the Truth?):

उत्तर:सत्पुरुष तथा सन्तजन विकार रहित होते हैं।उन्हें किसी चीज की इच्छा नहीं होती है अतः वे सत्य का पालन कर लेते हैं।परंतु साधारण छात्र-छात्रा यदि सत्य का थोड़ा-बहुत भी अनुसरण कर लेते हैं तो अनेक कष्टों,बाधाओं व विपत्तियों से बच सकते हैं।व्यवहार में कठोर व कटु सत्य का पालन करना आज के युग में बहुत कठिन है।परन्तु अध्यात्म तथा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए सत्य का पालन निःशंक किया जा सकता हैं और करना चाहिए।

प्रश्न:3.क्या सत्य भगवान् का स्वरूप है? (Is Truth the Nature of God?):

उत्तर:सत्य वास्तव में भगवान का स्वरूप है।इसलिए जिसके हृदय में सत्य का वास है,उसके हृदय में भगवान का वास है।इसीलिए कहा जाता है कि तीनों लोकों और तीन काल में सत्य स्वरूप,हे सत्य में रहने वाले।हे सत्य के भी सत्य,हे कल्याणकारी सत्य के मार्ग में ले चलने वाले,सत्य की आत्मा हम आपकी शरण आए हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के छात्र-छात्राएं सत्य को कैसे धारण करें? (How Do Mathematics Student Grasp Truth?),छात्र-छात्राएँ सत्य को कैसे धारण करें? (How Do Students Bear Truth?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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