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How to Follow Student Code of Ethics?

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1.विद्यार्थी नैतिक नियमों का पालन कैसे करें? (How to Follow Student Code of Ethics?),गणित के छात्र-छात्राएं नैतिक नियमों का पालन कैसे करें? (How to Follow Mathematics Students Moral Values?):

  • विद्यार्थी नैतिक नियमों का पालन कैसे करें? (How to Follow Student Code of Ethics?) छात्र-छात्राओं के सामने दो ही रास्ते हैं या तो वे नैतिक नियमों का पालन करें या नैतिक नियमों का पालन न करें।इनके बीच का मार्ग नहीं है।छात्र-छात्राओं को यह छूट नहीं है कि कुछ नैतिक नियमों का पालन करें और कुछ नैतिक नियमों का पालन न करें तथा बिना विशेष कष्ट-क्लेशों के चुपचाप मध्य मार्ग से निकल जाएं।
  • छात्र-छात्राओं तथा व्यक्ति के सामने दो ही विकल्प हैं निकृष्टता अथवा उत्कृष्टता में किसी को भी अपनाना।इसमें से उत्कृष्टता को अपनाना बुद्धिमता कहा जाएगा।ऐसा कौन अभागा होगा जो सहज-सुलभ उत्कृष्ट अथवा निकृष्ट जीवनों में से उत्कृष्ट जीवन को न चुने।
  • उत्कृष्ट जीवन प्राप्त करने के लिए छात्र-छात्राओं तथा व्यक्ति को नियति चक्र का अनुसरण और नैतिक नियमों का पालन करना ही होगा।इसके अतिरिक्त उनके सामने कोई उपाय नहीं है।मनुष्य को चाहिए कि वह शुभ,उचित,अच्छा संकल्प अपनाने वाला बने और शुभाचार वाला बने।अतिचार तथा अत्याचार को त्यागकर परोपकारी,परिश्रमी तथा पुरुषार्थी बने।
  • जो आचरण शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक हानि करे उन्हें छोड़कर ऐसे आचार-विचार अपनाने चाहिए जिससे इन चारों तथ्यों का विकास हो।
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2.छात्र-छात्राओं में नैतिकता का पतन (Decline of Morality in Students):

  • नैतिकता के ह्रास से युवावर्ग विनाश और पतन की ओर अग्रसर हो रहा है।मर्यादाओं एवं वर्जनाओं को न अपनाने से किशोर मुरझा रहे हैं और युवा विनष्ट हो रहे हैं।जिस सुख की चाहत में वे नैतिकता के नियमों को तोड़ रहे हैं वह उन्हें मनोग्रन्थियों एवं शारीरिक अक्षमता के अलावा ओर कुछ नहीं दे पा रहा है।यह सब हो रहा है स्वच्छंद सुख की तलाश में।आज के युवा जिस डगर पर बढ़ चले हैं,वहां स्वछंदता का उन्माद तो है लेकिन सुख का सुकून जरा भी नहीं है।बस अपनी भ्रांति एवं भ्रम में जिंदगी को तहस-नहस करने पर तुले हैं।युवाओं में यह प्रवृत्ति संक्रामक महामारी की तरह पूरे देश में फैलती जा रही है।बड़े शहरों की तरह छोटे शहर एवं कस्बे भी इसकी लपेट-चपेट में आने लगे हैं।
  • अब स्कूल तथा कॉलेज के विद्यार्थी विदाई समारोह अथवा कोई भी पार्टी पब में आयोजित की जाती है।वहां पॉप गायक या पश्चिमी धुनों पर युवा इस कदर झूमते नजर आएंगे कि सिगरेट का घना धुआं भी उनके चेहरे पर गहरी होती जा रही वासना की आकुलता को नहीं छिपा पाता है।
  • इन डिस्को पब में ये युवा भड़कीले परिधान,लहराते बालों एवं चमकदार मेकअप में नजर आ जाएंगे।संगीत के तेज होने के साथ इन जोड़ों की हरकतों की बाढ़ में नैतिक वर्जनाएं कब और कहां विलीन हुई,पता ही नहीं चलता।स्कूल,कॉलेज के पदाधिकारी तथा माता-पिता व अभिभावक भी इन नवयुवाओं की इस तरह की पार्टियों और आयोजनों से अनजान रहते हैं।ये छात्र-छात्राएं अपने साथियों से रुपए-पैसों का इंतजाम कर लेते हैं और पब को आरक्षित करके उसमें स्वच्छंद आचरण करते हैं।बस,इसके बाद की कथा नैतिकता के मिटने-मिटाने को बयान करती है।
  • सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है? तो इन छात्र-छात्राओं का कहना है कि हमारे अभिभावक हमें पढ़ाई में अच्छा स्कोर करते हुए देखना चाहते हैं और वह हम कर रहे हैं।हम अपनी पढ़ाई में अच्छे अंक लाते हैं।किसी प्रतियोगिता में चयनित हो जाने की क्षमता हममें है।हमारा स्कूल या हमारे काॅलेज भी हमसे ऐसी ही उम्मीद रखते हैं और हम इसे पूरा कर रहे हैं।अब यदि इसके बाद थोड़ा इंटरटेनमेंट कर लेते हैं तो क्या बुरा है,जो हम करते हैं,आखिर इसमें बुरा है ही क्या? युवाओं के इस कथन में झलकती है भ्रामक मान्यताएं और अभिभावकों व शिक्षकों की भ्रांतिपूर्ण अपेक्षाएं।
  • दरअसल समस्या आस्थाओं,मान्यताओं एवं मूल्यों की विकृति की है।जीवन की श्रेष्ठता के गलत मानदंडों की स्थापना है।चिन्तन विकृत हो तो चरित्र की विकृति व व्यवहार का पतन नहीं रोका जा सकता है।स्कूली छात्र-छात्राओं की भांति नौकरीपेशा भी इस विकृति के शिकार हो रहे हैं।इनमें लिव-इन रिलेशन अर्थात् बिन फेरे साथ-साथ रहने का रोग पनप रहा है।इसके लिए स्वीकृति भी मिल रही है और अब इन्हें मकान मालिक से ममेरे या चचेरे भाई-बहन होने का दिखावा नहीं करना पड़ता है।युवाओं के बीच कालसेंटरों की लोकप्रियता ‘इजी-मनी सेक्स’ एवं ‘वन नाइट स्टैंड’ जैसे सूत्रों का चलन जोर पकड़ता जा रहा है।
  • इस समस्या का सच जीवन की श्रेष्ठता के गलत मानदंडों में निहित है।अच्छा विद्यार्थी कौन? वही जो अच्छे नम्बर लाए।अब तो आलम यह है कि ये विद्यार्थी अपने आपको यह कहने में भी नहीं चूकते कि मेरे मार्क्स तो 80% हैं अब थोड़ी सी शराब पी ली या सिगरेट को होठों से लगा लिया तो क्या हो गया? इसी तरह समाज एवं माँ-बाप की नजर में श्रेष्ठ युवा वह है,जो ज्यादा पैसा कमा रहा है।अब ज्यादा पैसे कमाने के बाद,ऐशोआराम के साधन जुटाने के बाद वह क्या कर रहा है? इससे किसी का क्या बनता बिगड़ता है? श्रेष्ठता की इस प्रचलित कसौटी में गुण-कर्म-स्वभाव या फिर चिन्तन-चरित्र एवं व्यवहार का कोई स्थान नहीं है।ऐसे में नैतिकता का पतन हो तो अचरज क्या?

3.नैतिकता के पतन को रोकने के उपाय (Measures to Prevent the Collapse of Morality):

  • नैतिकता के पतन को बचाने के लिए परिपाटी एवं प्रचलन में परिवर्तन की जरूरत है।पहला उपाय तो यह है कि नवोदय विद्यालय की तर्ज पर ऐसे विद्यालय खोलने की आवश्यकता है जिसमें विद्यार्थी की श्रेष्ठता का मानदंड केवल बौद्धिक क्षमता नहीं हो बल्कि यह उसकी श्रेष्ठता का एक आयाम है।इन विद्यालयों में श्रेष्ठता का मापदंड हो जीवन की व्यावहारिक कुशलता,बौद्धिक श्रेष्ठता,सामाजिकता और विद्यार्थी की आध्यात्मिक जीवन दृष्टि।इन सभी मानकों पर खरा उतरने के लिए उसे अध्ययन विषय की कक्षाओं के अतिरिक्त जीवन जीने की कला या जीवन प्रबंधन की विशेष कला में प्रशिक्षित किया जाए।
  • जीवन की व्यावहारिक कुशलता में विद्यार्थी को व्यावहारिक लचीलापन,पारस्परिक आत्मीयता,आपस के सुख-दुःख में भागीदारी जैसी बातों का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाए।
  • बौद्धिक श्रेष्ठता में अध्ययन के अन्तर्गत जो विषय चयन किया जाता है उसमें लेख,शोध,सेमिनार,सिंपोजियम भागीदारी जैसी गतिविधियां शामिल हों।
  • सामाजिकता के अंतर्गत छात्र-छात्राओं को समाज से जोड़ने का व्यावहारिक शिक्षण दिया जाए।आध्यात्मिकता के अंतर्गत आत्मिक प्रगति के सूत्र,आत्म-निरीक्षण,अपने आपको जानने का अध्ययन,जीवन की संपूर्णता,धर्म,नीति,सदाचार इत्यादि की बातें बताई-सिखाई जा सकती हैं।समय-समय पर इसका मूल्यांकन भी करते रहा जाए।
  • माता-पिता,अभिभावकों को विद्यार्थी की श्रेष्ठता का मापदंड बदलना होगा।उन्हें रुपए-पैसा कमाने में विद्यार्थी के श्रेष्ठ होने के बजाय नीति,सदाचार,धर्म,ईमानदारी,सचरित्रता,सद्गुणों को वरीयता देनी होगी।इसके लिए उन्हें अपने चिन्तन-चरित्र और व्यवहार में बदलाव करना होगा।माता-पिता,अभिभावकों के आचरण का प्रभाव सन्तान पर पड़ता है।माता-पिता व अभिभावकों को केवल धन कमाने में ही मशगूल (व्यस्त) नहीं रहना चाहिए बल्कि संतान को समय देना चाहिए।नैतिक अनुशासन के पालन का अर्थ छात्र-छात्राओं के सुखों को छीना जाना नहीं है बल्कि विवेक,धैर्य,साहस,सदाचार,सद्गुण प्राप्ति का उपाय है।नैतिकता शारीरिक,मानसिक एवं आत्मिक ऊर्जा प्राप्त करने का प्रभावी साधन है न कि दुःख भोगने की जीवनशैली।युवाओं को इस सच का ज्ञान कराने की जरूरत है।
  • स्कूल,महाविद्यालय,विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले और कामकाजी युवक-युवतियों को स्वयं भी नैतिकता का सच समझना ही चाहिए।नैतिकता है जिंदगी की उर्जा का संरक्षण एवं उसके सदुपयोग की नीति।यह प्रकृति के साथ सामंजस्य की ऐसी अनूठी शैली है,जिसमें व्यक्ति प्रकृति से अधिकाधिक अनुदान प्राप्त करता है।इससे कुछ छिनते नहीं बल्कि सुखों को अनुभव करने की सामर्थ्य बढ़ती है।
  • आज के दौर में विद्यार्थी एवं उनके अभिभावक दोनों को ही यह समझना जरूरी है कि जिंदगी परीक्षा के नंबरों की गणित तक सिमटी नहीं है बल्कि इसका दायरा व्यक्तित्त्व की संपूर्ण विशालता एवं व्यापकता में फैला है।परीक्षा में नंबर अच्छे लाने के बाद कुछ भी करने की छूट पाने के लिए हक जताना अर्थहीन है।इसी तरह कामकाजी युवाओं के लिए धन कमाने की योग्यता ही सब कुछ नहीं है।उन्हें अपनी जिंदगी को नए सिरे से समझने की कोशिश करनी चाहिए।अच्छा हो कि अनुभवी जन इसमें सहायक बनें।इस विकृति के जो भी कारण हों,उन्हें दूर किया जाना चाहिए।<

4.नैतिकता की परिभाषा (Definition of Ethics):

  • यदि आप मनुष्य के व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन से संबंधित कुछ निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर गंभीरतापूर्वक विचार करें और उनका उत्तर खोजने का प्रयास करें तो आपके लिए नैतिकता का स्वरूप तथा क्षेत्र समझना सम्भवतः अधिक सरल हो जाएगा।
  • (1.)जब आप कहते हैं कि अमुक व्यक्ति अथवा उसका चरित्र अच्छा या बुरा है,अमुक कार्य उचित या अनुचित है,कुछ विशेष परिस्थितियों में कोई कर्म करना अथवा न हमारा कर्त्तव्य है तो आपके इन वाक्यों का वास्तविक अभिप्राय क्या होता है? दूसरे शब्दों में,जब आप अपने दैनिक जीवन में अच्छा,बुरा,शुभ,अशुभ,उचित,अनुचित,कर्त्तव्य आदि शब्दों का वाक्यों में प्रयोग करते हैं तो इन वाक्यों द्वारा आप क्या कहना चाहते हैं?
  • (2.)क्या आप अपने इस प्रकार के निर्णयों को सत्य प्रमाणित करने के लिए तर्कसंगत कारण प्रस्तुत कर सकते हैं? यदि हां तो वे कौनसे कारण हैं और उन कारणों को उचित अथवा तर्कसंगत क्यों माना जाना चाहिए?
  • (3.)क्या मनुष्य को कुछ कर्म करने अथवा न करने की स्वतंत्रता है? क्या उसे अपने कुछ विशेष कर्मों के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है? यदि हां तो उसे क्यों,कहां तक और अपने किन कर्मों के लिए उत्तरदायी मानना आवश्यक है?
  • (4.)मनुष्य होने के नाते हमारे कर्त्तव्य क्या हैं और उनका निर्धारण किस आधार पर तथा किसके द्वारा किया जा सकता है?
  • (5.)क्या हमारे समस्त कर्मों का उद्देश्य केवल अपना सुख तथा हित होना चाहिए अथवा हमें दूसरों के सुख तथा हित के लिए ही सब कुछ करना चाहिए? यदि अपने और दूसरों के सुख तथा हित में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है तो इस संतुलन का आधार एवं उपाय क्या है?
  • (6.)जब व्यक्ति और समाज के हितों में संघर्ष होता है तो उसे किस उपाय या विधि द्वारा कम या समाप्त किया जाना चाहिए?
  • (7.)क्या मानव जीवन का कोई परम लक्ष्य अथवा अंतिम साध्य है? यदि हां तो यह परम लक्ष्य क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया जाना चाहिए? क्या दूसरों की चिंता किए बिना मनुष्य को जीवन के इस परम लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए?
  • मानव जीवन के इन आधारभूत प्रश्नों तथा ऐसे ही अन्य अनेक प्रश्नों पर नैतिकता अथवा नैतिक दर्शन व्यवस्थित रूप से विचार करता है और उनका समुचित एवं सन्तोषप्रद उत्तर खोजने का प्रयत्न करता है।

5.अनीति का दृष्टान्त (Example of Immorality):

  • अपने प्रति उपकार करने वाला भी यदि अनीति के लिए विवश करे तो नहीं मानना चाहिए।एक बार एक नगर में गणित शिक्षक सड़क पर पैदल-पैदल चलकर जा रहे थे।तभी पीछे से एक तेज रफ्तार से चलती हुई कार आयी।उनके पीछे ही एक विद्यार्थी आ रहा था।उसने देख लिया कि कार का संतुलन बिगड़ गया है,अतः उन्होंने गणित शिक्षक को एकदम से एक ओर खींच लिया और बचा लिया।गणित शिक्षक की प्रार्थना पर भी उस विद्यार्थी ने कोई पुरस्कार लेना स्वीकार नहीं किया।
  • इस पर गणित शिक्षक ने कहा कि आवश्यकता पड़ने पर तुम मेरे पास आ जाना,मैं तुम्हारी अवश्य सहायता करूंगा और उन्होंने विद्यार्थी को अपना पता दे दिया।
  • कुछ समय बाद विद्यार्थी गणित शिक्षक से मिला और गणित विषय की फीस देते हुए बोला मैं आपके पास गणित विषय पढ़ना चाहता हूं।परंतु आपके पास यह लड़की ट्यूशन के लिए आती है,मैं उससे प्रेम करना चाहता हूं।अतः आप मुझे कुछ भी नहीं कहेंगे इसकी इजाजत दें।
  • गणित अध्यापक विद्यार्थी की अनुचित मांग देखते हुए बहुत दुःखी हुए और बोले एक बात कहूं।सहमे हुए विद्यार्थी ने कहा कि कहिए।गणित अध्यापक ने कहा कि मैं तुम्हें नहीं पढ़ा सकता हूं।तुम चाहो तो अपने उपकार के बदले मुझे फिर से कार के आगे धकेल दो।
  • यह है नीति निष्ठा,आदर्शवादिता,सिद्धांतों के प्रति निष्ठा।ऐसे अध्यापक अपने जॉब में भले ही असफल रहे,उनका अंतःकरण हमेशा उनको आशीष ही देता है तथा उन्हें जन-सम्मान भी मिलता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विद्यार्थी नैतिक नियमों का पालन कैसे करें? (How to Follow Student Code of Ethics?),गणित के छात्र-छात्राएं नैतिक नियमों का पालन कैसे करें? (How to Follow Mathematics Students Moral Values?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित के विद्यार्थी के शरीर पर पट्टियां (हास्य-व्यंग्य) (Bandages on Body of a Mathematics Student) (Humour-Satire):

  • डाॅक्टर (बीमार छात्र से):आपके शरीर पर इतनी पट्टियां क्यों बंधी है?
  • बीमार छात्र:आपने जो शक्तिवर्धक दवाई दी थी,यह उसी का असर है।
  • डॉक्टर:कमाल है,यह कैसे हुआ? उससे तो तुम्हें राहत मिलनी चाहिए।
  • बीमार छात्र:गलती से शक्तिवर्धक दवाई मेरी गर्लफ्रेंड ने ले ली थी।

7.विद्यार्थी नैतिक नियमों का पालन कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Follow Student Code of Ethics?),गणित के छात्र-छात्राएं नैतिक नियमों का पालन कैसे करें? (How to Follow Mathematics Students Moral Values?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या भारतीय नैतिक सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक हैं? (Is Indian Moral Theory Still Relevant Today?):

उत्तर:भारतीय नैतिक सिद्धान्त मनुष्य को व्यावहारिक एवं सन्तुलित जीवन-दर्शन प्रदान करते हैं।इनकी सहायता से मनुष्य अपने समाज तथा प्राणी मात्र के प्रति अपने मूल नैतिक कर्त्तव्यों का निर्धारण कर सकता है।जिन सद्गुणों को विशेष महत्त्व दिया गया है वे मनुष्य के लिए आज भी आवश्यक हैं जितने प्राचीन युग में थे।आज जब संसार में वैयक्तिक,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंसा,असहनशीलता,अन्याय,शोषण,स्वार्थपरायणता आदि बुराइयां बढ़ती जा रही हैं,भारतीय नीति नियम द्वारा बताए गए आत्मत्याग,संयम,सत्य,दानशीलता,दया,अहिंसा आदि सद्गुणों का विशेष महत्त्व है।इन सद्गुणों के अनुरूप आचरण करके ही मनुष्य नैतिक दृष्टि से उत्कृष्ट जीवन व्यतीत कर सकता है।

प्रश्न:2.गीता में मोक्ष प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या बताया है? (What is the Best Way to Attain Salvation in the Gita?):

उत्तर:गीता में श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्मयोग को ही मोक्ष प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय माना है और उनका मुख्य उद्देश्य अर्जुन को निष्काम कर्मयोग की शिक्षा देना ही था।गीता मनुष्य को कर्म-त्याग करके संसार से भागने के लिए नहीं अपितु संसार में रहते हुए फलासक्ति का त्याग करके कर्म करने के लिए प्रेरित करती है,अतः उसे कर्म प्रधान मानना अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होता है।

प्रश्न:3.भारतीय नैतिक सिद्धांतों का सार क्या है? (What is the Essence of Indian Moral Principles?):

उत्तर:भारतीय मनीषियों ने नैतिक दर्शन का प्रतिपादन सैद्धांतिक वाद-विवाद के लिए नहीं बल्कि व्यावहारिक जीवन में मनुष्य का मार्गदर्शन करने के लिए ही किया है।प्राचीन काल में वैदिक ऋषियों से लेकर वर्तमान युग में महात्मा गांधी तक सभी महान विचारकों ने अपने नैतिक सिद्धांतों द्वारा मनुष्य के चरित्र और आचरण को अधिक उत्कृष्ट बनाने का प्रयत्न किया है।ऋषियों द्वारा प्रतिपादित नैतिक सिद्धांत संपूर्ण मानव जीवन के लिए एक स्पष्ट,निश्चित और संतुलित योजना प्रस्तुत करता है।यह सिद्धांत मनुष्य की शारीरिक,मानसिक तथा बौद्धिक आवश्यकताओं की तृप्ति के लिए उनका समुचित मार्गदर्शन करने के साथ-साथ उसे अपने पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व का भी स्पष्ट बोध कराता है।उपनिषदों में मनुष्य को आत्म-संयम अथवा इंद्रिय निग्रह की जो अमूल्य शिक्षा दी गई है वह आज भी प्रत्येक व्यक्ति के लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी उस प्राचीन युग में थी।इसी प्रकार गीता के निष्काम कर्मयोग और स्थितप्रज्ञ के सिद्धांत का यथासम्भव अनुसरण करते हुए मनुष्य अधिक सार्थक,संतुलित एवं आनंदमय जीवन व्यतीत कर सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विद्यार्थी नैतिक नियमों का पालन कैसे करें? (How to Follow Student Code of Ethics?),गणित के छात्र-छात्राएं नैतिक नियमों का पालन कैसे करें? (How to Follow Mathematics Students Moral Values?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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