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Make Life Better Through Values

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1.मूल्यों द्वारा जीवन को श्रेष्ठ बनाएं (Make Life Better Through Values),जीवन में मूल्यों को अपनाएं (Embrace Values in Life):

  • मूल्यों द्वारा जीवन को श्रेष्ठ बनाएं (Make Life Better Through Values) क्योंकि मूल्यविहीन जीवन निकृष्ट जीवन है,पशुवत जीवन जीने के समान है।
  • अक्सर यह कहते सुना जा सकता है कि बहुत बुरा समय आ गया है,किसी को किसी का न ख्याल है,न लिहाज है,यहां तक कि किसी की बात का भरोसा ही नहीं किया जा सकता है…… आदि।
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2.मूल्यों का क्षरण (Erosion of values):

  • प्रश्न यह है कि जीवन के मूल्यों के प्रति,उसकी श्रेष्ठताओं के प्रति जब प्रत्येक व्यक्ति चिंतित है,उनका पालन न होता हुआ देखकर सब व्याकुल हैं,तब जीवन के मूल्यों का विलय कहां,किस प्रकार तथा किनके द्वारा किया जा रहा है? आधुनिक भाषा में जीवन के मूल्यों का,हमारी मान्यताओं का गबन क्योंकर हो गया है?
  • सत्य एक बहुत ही मूल्यवान वस्तु है।अतः हम चाहते हैं कि वह हमारे पास सुरक्षित बना रहे तथा अन्य व्यक्ति उसका उपयोग करते रहें।हम सब चाहते हैं कि समाज का उद्धार करने के लिए महाराणा प्रताप,छत्रपति शिवाजी,धर्म के पुतले हकीकत राय आदि सदृश्य बालकों का जन्म हो,परंतु हमारे घर में नहीं बल्कि दूसरे के घर में जन्म हो आदि।वास्तविकता यह है कि अच्छाई,ईमानदारी,दया,सहिष्णुता,परोपकार आदि शब्दों से हमें भय लगने लगा है।हमें इन परंपरागत शब्दों में विश्वास नहीं है रहा है और तदनुसार हमको ना तो परंपराओं में और न परंपरागत मूल्यों के प्रति आस्था रह गई है।प्राचीन मूल्यों के प्रति विश्वास नहीं है,नवीन मूल्यों का सृजन हम कर नहीं पाए हैं।यही कारण है कि आज मानव समाज इतना दुःखी एवं रुग्ण दिखाई देता है।कहने की आवश्यकता नहीं है कि मूल्य हमारे वे सिद्धांत एवं जीवन-निर्वाह के नियम हैं जो हमारे जीवन के उद्देश्य की पूर्ति-हेतु दिशा-निर्देश करते हैं।व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करने वाली संश्लेषणात्मक शक्तियों को मूल्य कहा जाता है।
  • वर्तमानकाल में युवावर्ग में व्याप्त दिशाहीनता को लक्ष्य करके 20वीं शताब्दी के अवतार वैज्ञानिक डॉक्टर अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बार कहा था-यह सर्वथा अनिवार्य है कि हमारे विद्यार्थी जीवन मूल्यों के प्रति स्पष्ट समझदारी और भावात्मक लगाव प्राप्त करें।हमारे युवावर्ग के मन में सत्य और शिव के प्रति सर्वथा स्पष्ट ग्रहणशीलता होनी चाहिए,अन्यथा अपने विशिष्ट ज्ञान की गठरी को लेकर वह एक संश्लिष्ट व्यक्तित्व प्राप्त मानव न समझा जाकर वह भली प्रकार प्रशिक्षित कुत्ते के समान ही समझा जाएगा?
  • हम समझते हैं कि अब मूल्यों एवं मान्यताओं को बदलना अनिवार्य हो गया है,क्योंकि सामान्यतः दो परिस्थितियों में ऐसा करना आवश्यक हो जाता है-जब समाज में शाश्वत मूल्यों का ह्रास होने लगे तथा जब मानव समाज का कोई भी अंग अपने अभ्युदय को प्राप्त करने में असमर्थता का अनुभव करने लगे।हमारे विचार से इस समय यह दोनों ही परिस्थितियों बलवती हो गई हैं।

3.वर्तमान युग में धन की प्रधानता (The Primacy of Money in the Present Age):

  • आज धन की मान्यता इतनी अधिक बढ़ गई है कि वह जीवन के समस्त मूल्यों का अतिक्रमण करने लगा है,वह साधन न रहकर साध्य बन गया है,यहां तक कि सत्ता भी उसी के आश्रित हो गई है।ऐसी स्थिति में धन के संदर्भ में नई सीमाएं निर्धारित करना एक ऐसी अनिवार्यता है,जिसे यदि अनदेखा किया गया तो हमारे समाज के विनाश को रोक पाना असंभव हो जाएगा।
  • अतः यह आवश्यक हो गया है कि गलत (पुरानी) मान्यताओं के परिप्रेक्ष्य में नवीन मूल्यों की स्थापना की जाए।यह कार्य मात्र व्याख्यानों और संधियों,प्रतिबंधों,गोष्ठियों आदि द्वारा संभव नहीं होगा।प्रत्येक व्यक्ति एवं प्रत्येक राष्ट्रनायक अपने सद्विवेक द्वारा जीवन के मूल्यों पर विचार करें और तदनुसार नए सिरे से उनके निर्धारण पर विचार करे।
  • हमारे समाज में बालश्रम,आर्थिक शोषण,अस्पृश्यता,मांसलता के प्रेम आदि ने प्रायः जीवन मूल्यों का रूप धारण कर लिया है और वे वर्ग विशेष के अभ्युत्थान में बाधक बन गई है।अतएव आवश्यक है कि इन मान्यताओं को बदला जाए और तदनुसार मूल्य के स्वरूप में परिवर्तन किया जाए?महत्त्वपूर्ण यह है कि मूल्यों का निर्धारण करते समय हम यह ध्यान रखें कि-दूसरों के दुःख को कम करना तथा दूसरों को सुख पहुंचाना हमारे जीवन के स्थायी मूल्य हैं। इनके निर्वाह द्वारा ही जीवन की एकता को,आत्मा की असीमता को,विश्वचेतना को,सर्वव्यापी जीवन-शक्ति को हम प्राप्त कर सकेंगे?
  • महत्त्वपूर्ण विचारणीय बात यह है कि सही और गलत का निर्णय किस प्रकार अथवा किस आधार पर किया जाए? सीधा सा उत्तर है-जो कार्य विभाजन करे,वह गलत है,जो कार्य मेल-मिलाप,समन्वय कराए,वह सही है।अतएव त्रुटिरहित निर्णय वह है जो सत्य,न्याय तथा मानवीयता के मापदंडों पर खरा उतरे और अहंकार की आवाज को अनसुना कर दे? इसके लिए यह आवश्यक है कि देश,काल और स्थिति के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तावित आचरण का सर्वथा निष्पक्ष परीक्षण किया जाए।इसके लिए हमको सदैव तीन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने होंगे-(i) जो प्रस्तावित आचरण करने वाले हैं,यदि अन्य व्यक्ति भी उसी का अनुगमन करने लगें,तो क्या हमें अच्छा लगेगा? (ii)मेरा प्रस्तावित आचरण किस प्रकार के भय अथवा प्रलोभन द्वारा तो प्रेरित नहीं है तथा (iii)प्रस्तावित आचरण किसी प्रकार के आलस्य द्वारा तो प्रेरित नहीं है?
  • उक्त प्रश्नों के उत्तर यदि हमारे सद्विवेक के अनुकूल हैं तो हमारा प्रस्तावित आचरण जीवन-मूल्यों के अनुरूप है और वह सर्वथा करणीय है।
  • जीवन की विसंगतियों,जीवन में व्याप्त संत्रास,अन्यायप्रियता आदि से मुक्ति प्राप्त करने की दिशा में प्रथम कदम यह होना चाहिए कि हम अपने समस्त मूल्यों को,मान्यताओं को,आस्थाओं को,अपने विवेक की कसौटी पर कसें और इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर संग्रह-त्याग की नीति अपनाएं।प्रत्येक कार्य के पूर्व हम यह प्रश्न करें-इस आचरण द्वारा मैं समाज को क्या दे सकूंगा तो हमारा जीवन अपेक्षाकृत कहीं अधिक सरल और सुखद बन जाएगा।
  • जीवन के कुछ मूल्य शाश्वत हैं।उनके प्रति आस्था भी स्थायी होनी चाहिए।परिवर्तन का प्रश्न उठता है गौण मूल्यों के संदर्भ में।इनका निर्धारण सद्विवेक द्वारा ही संभव है।स्वविवेकी व्यक्ति ही अपने को स्वाधीन कह सकता है।यह तभी संभव है जब हम स्वविवेक द्वारा निर्धारित मूल्यों के प्रति संपूर्ण निष्ठा के साथ समर्पित बने रहें।यह लोकोक्ति हमारी आस्थाओं की कसौटी होनी चाहिए-धन दौलत हमारे जीवन यापन की शोभा है,जबकि मूल्य हमारे व्यक्तित्व के सर्वस्व हैं।

4.दूसरों के जीवन में ताका-झांकी (Peeping into the lives of others):

  • औचित्यपूर्ण विचार एवं उद्देश्यनिष्ठ कर्म में ही जीवन परिभाषित होता है।जीवन की डगर इस आधार पर तय करें तो मंजिल तय की जा सकती है।जो जीवन हमने पाया है,उसकी सार्थकता एवं समग्र विकास इन्हीं मानदंडों में है कि जो उचित है,उसका विचार किया जाए और जहां हमें पहुंचना है,वैसे कर्म किए जाएं।यही सच्चा मानदंड है।
  • सामान्य रूप से हम औरों के बारे में,दूसरों के विषय में बहुत कुछ जानते हैं और जानने के लिए अनगिनत प्रयास भी करते हैं।ये प्रयास बड़े ही रुचिकर लगते हैं और इनमें हम औरों के जीवन का निर्धारण करते हैं कि उन्हें कैसे जीना चाहिए,कैसे बोलना चाहिए।मूल बात यह है हम चाहते हैं कि वह व्यक्ति हमारी चाहतों को कितना पूरा करता है,हमारी कितनी प्रशंसा करता है,हमारी बुरी बातों में कैसे हामी भरता है।अगर इन मानदंडों को वह पूरा करता है तो उसे हम अपना बेहद अपना मानते हैं।
  • औरों के जीवन में झांकना,उसमें रस लेना,मनोनुकूल न हों तो निंदा करना,हमसे ज्यादा अच्छा हो और बात न मानता हो तो ईर्ष्या करना आदि बातें हमारे औचित्यहीन एवं खोखले जीवन को दर्शाती हैं।ये हमें जताती हैं कि दूसरों को झूठी सलाह देकर बड़प्पन सिद्ध करना कितनी बड़ी आत्मप्रवंचना है।यह आत्मप्रवंचना हमें जीवन की डगर से ऐसा भटकाती है कि हम जीवन का सही स्वरूप तो दूर,इसे जानने तक में असमर्थ,अक्षम होते हैं।
  • जीवन के नाम पर हमारे पास सब कुछ होता है,सिवाय अपने जीवन के।ऐसे में भला कैसे अपना दृष्टिकोण ठीक हो,कैसे अपने विचारों को देख सकें और कैसे अपने कर्मों को उत्कृष्ट कर सकें,जो की जीवन के आवश्यक तत्त्व हैं।अंदर से खोखला एवं बेचैन व्यक्ति न दूसरों को कुछ दे सकता है और न स्वयं को ठीक कर सकता है।

5.हमारे जीवन में भटकाव (Distractions in our lives):

  • हमारे पास सब कुछ है,साधनों का अंबार है,सुविधाओं का ढेर लगा है,परंतु अपने निजी जीवन के विकास के लिए कोई वैचारिक प्रकाश नहीं,संवेदनशील भाव नहीं है।इस अंतर की खामियों को पूरा करने के लिए,हम अपने अंदर के खोखलेपन को भरने के लिए मान-सम्मान के पीछे भागते हैं,यश,प्रतिष्ठा के लिए अंधी दौड़ लगाते हैं।इस दौड़ में बाहरी तौर पर हाथ तो बहुत कुछ लगता है,परंतु जीवन एवं जीवन उद्देश्य बहुत पीछे छूट जाता है।इस आपा-धापी में उचित-अनुचित का भेद नहीं कर पाते हैं।समाज में प्रचलित एवं प्रतिष्ठित चीजों को देखकर हम अनुकरण करते हैं।लोग क्या कहेंगे,क्या नहीं कहेंगे,इसी पर टिक जाते हैं।हमारी सारी ऊर्जा इसी पर केंद्रित हो जाती है और हम उद्देश्य से भटक जाते हैं।
  • समाज में प्रचलित मानदंड अच्छे और बुरे,दोनों हो सकते हैं,परंतु हमारे जीवन में सर्वोपरि प्राथमिकता किसकी है,किसे हम वरीयता प्रदान करें और सही मायने में उचित क्या है,जिसे हमें करना चाहिए आदि गंभीर बातों का स्थान होना चाहिए।जीवनद्रष्टा ऋषि कहते हैं-समाज हो या कोई व्यक्ति हो,जो भी औचित्यहीन बात करता है,वह अपना नहीं हो सकता और उससे कितना भी क्यों ना लाभ मिले,वह हमारे लिए पराया है।
  • इसके ठीक विपरीत हमारी निंदा करनेवाला कट्टर दुश्मन भी यदि औचित्यपूर्ण बात करता है तो वह हमारा अपना हो सकता है।जीवन में अपने-पराए का भेद इन्हीं औचित्यपूर्ण बातों को आधार मानकर करना चाहिए,परंतु वर्तमान समाज में गिरते मूल्यों के कारण इन उच्चादर्शों एवं विचारों का घोर अवमूल्यन हुआ है।इसके अभाव में हम अपने जीवन में न उद्देश्यनिष्ठ हो पाए हैं और ना इसके औचित्य को ही समझ पाए हैं।

6.उच्चादर्श मूल्यों के प्रति दृढ़ता (Affirmation to high values):

  • हमारा कोई अपना जब अनौचित्यपूर्ण तरीके से अपनी बात मनवाना चाहता है तो हमें इसका विरोध करना चाहिए।प्रहलाद ने अपने पिता हिरण्यकशिपु की बातों को विनम्रता,लेकिन दृढ़ता से अस्वीकार कर समाज में इसका उदाहरण रखा कि जीवन केवल श्रेष्ठ मूल्यों के लिए ही जीना चाहिए।प्रहलाद को खूब यातनाएं दी गई,कष्ट एवं अपमान दिया गया,परंतु उन्होंने अपने जीवन को केवल अपने भगवान के लिए समर्पित एवं सुरक्षित रखा।विभीषण ने भी अपने बड़े भ्राता रावण की औचित्यहीन बातों को मानने के बजाय उनके विरोधी भगवान राम के शरण में आना पसंद किया।उन्होंने उचित-अनुचित में केवल जीवन के श्रेष्ठतम मूल्यों को स्वीकारने में अपना सब कुछ छोड़ दिया।क्योंकि ऐसे व्यक्तियों के जीवन का विशिष्ट उद्देश्य होता है,वे अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए स्वेच्छा से हर चुनौतियों का वरण करते हैं।
  • समाज और व्यक्ति,दोनों की नजर में समझे जाने वाले छोटे कार्य में भी यदि औचित्य है और वह श्रेष्ठ है तो उसे सबके विरोध के बावजूद अपनाने में कोई बुराई नहीं है।क्योंकि इनके पीछे दैवी शक्तियों का बल होता है,अतः श्रेष्ठ कार्य सदा हमें ऊर्जावान एवं बलवान बनाते हैं।इस कार्य को करने से मन प्रसन्न होता है।अंतर की तमाम दोषपूर्ण ग्रंथियां खुलती है और हम निर्झर और हलका महसूस करते हैं;जबकि नकारात्मक और अनुचित कार्य हमें निर्बल बनाते हैं और उनको करने से मन अपराधबोध से ग्रस्त हो जाता है।इस कार्य से विचार एवं भाव,दोनों कलुषित होते हैं।इसलिए जीवन में अच्छे विचार,संवेदनशील भाव एवं श्रेष्ठ कर्म को अवश्य स्थान देना चाहिए।
  • अपने जीवन की जिम्मेदारी किसी और की नहीं,हमारी अपनी है।हमारे जीवन को हमें ही जीना पड़ेगा।संसार में कोई ऐसी तकनीकी नहीं कि हमारे जीवन को कोई और जी ले।जीना तो स्वयं को पड़ेगा।अतः जीवन के प्रति पूर्ण सजग,सतर्क एवं सावधान रहना चाहिए।यों ही जीवन की अमूल्य एवं कीमती चीजों को व्यर्थ में नहीं गंवा देना चाहिए।जीवन संसार की सबसे अनमोल चीज है।इसके लिए कुछ बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।किसी का अहित न करें और बन सके तो सतत भलाई करें।क्योंकि कर्म का बीज कभी मरता नहीं है,जीवन के खेत में डालते ही वह अपनी तीव्रता के अनुरूप अच्छे-बुरे प्रारब्ध के रूप में आएगा ही।बुरा करने से बुरा होगा और अच्छा करने से अच्छा।इसके लिए निष्काम भाव से दूसरों की सेवा करनी चाहिए।
  • जीवन में सकारात्मक एवं श्रेष्ठ विचारों को सदैव स्थान देना चाहिए।किसी से निंदा,चुगली या चुभने-गिराने वाली बातें नहीं करनी चाहिए।विचार हमारे जीवन की दिशा और दशा तय करते हैं।सतत श्रेष्ठ विचारों को बनाए रखने के लिए गीता,पुराण,महापुरुषों की जीवनी,प्रेरक प्रसंग आदि का नित्यप्रति स्वाध्याय करना चाहिए।इन विचारों के अभाव में ही मनोविकार पैदा होते हैं।
  • दूसरों से सद्व्यवहार करना चाहिए।सद्व्यवहार करने के लिए अंतर में संवेदनशील भावनाओं का जखीरा आवश्यक है,जो अंदर से भावनाओं से भरा होगा,उसके जीवन में ही आत्मीयता एवं अपनत्वपूर्ण झलकेगा।अंदर से कंगाल व्यक्ति सद्व्यवहार कैसे कर सकता है! इसके लिए कुछ पल अपने इष्ट की उपासना करनी चाहिए।प्रातः कालीन स्वर्णिम सूर्य का ध्यान करते हुए सरस्वती मंत्र का जप भावनाओं से ओत-प्रोत कर देता है।इस प्रकार समृद्ध आंतरिकता से जो व्यवहार किया जाता है,उसे सद्व्यवहार कहते हैं।
  • आइए,अपने जीवन को इन मूल्यों और मानदंडों से पुनर्परिभाषित करें।जीवन में केवल अपने श्रेष्ठतम उद्देश्य को पूर्ण करने वाले वांछनीय तत्वों का ही समावेश करें।प्रत्येक कर्म युक्तिसंगत और औचित्यपूर्ण हो,सदैव इसका ध्यान रखें।इस प्रकार के जीवन में हर पल चमत्कार घटित होते हैं,असंभव संभव बनते हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में मूल्यों द्वारा जीवन को श्रेष्ठ बनाएं (Make Life Better Through Values),जीवन में मूल्यों को अपनाएं (Embrace Values in Life) के बारे में बताया गया है।

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7.मरियल छात्रों की गर्लफ्रेंड (हास्य-व्यंग्य) (Lean Students Girlfriend) (Humour-Satire):

  • बॉयफ्रेंड (गर्लफ्रेंड से):विद्वानों ने कहा कि मरियल छात्रों की गर्लफ्रेंड बहुत सुंदर होती है।
  • गर्लफ्रेंड (बॉयफ्रेंड से):आपके पास तो हमारी तारीफ करने की सिवा कोई काम नहीं है।

8.मूल्यों द्वारा जीवन को श्रेष्ठ बनाएं (Frequently Asked Questions Related to Make Life Better Through Values),जीवन में मूल्यों को अपनाएं (Embrace Values in Life) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मूल्य का क्या अर्थ है? (What does value mean?):

उत्तर:सभी आदतों के सुसंगठित होने से चरित्र का निर्माण होता है।चरित्र आदतों का समूह है।छोटे-छोटे अभ्यासों से ही आदत बनती हैं।चरित्र नैतिक या नीतिशास्त्रीय मूल्यों से निश्चित रूप से साहचर्य रखता है। अतएव चरित्र निर्माण में मूल्यों और आदर्श का बड़ा हाथ होता है।मूल्य एक प्रकार का मानक है।मनुष्य किसी वस्तु,क्रिया,विचार को अपनाने के पूर्व यह निर्णय करता है कि वह उसे अपनाए या त्याग दे।जब ऐसा विचारभाव व्यक्ति के मन में निर्णयात्मक ढंग से आता है तो वह मूल्य कहलाता है।यह एक आदर्श या इच्छा है जिसे पूरा करने के लिए व्यक्ति जीता है तथा आजीवन प्रयास करता है।

प्रश्न:2.मूल्यों का निर्धारण कैसे करते हैं? (How do you determine the values?):

उत्तर:मूल्य के चयन से पूर्व व्यक्ति को प्रत्येक विकल्प के परिणामों को स्पष्ट रूप से समझने की कोशिश करनी चाहिए।मूल्य उन चयनों से उत्पन्न होते हैं जिन्हें करने में हमें कोई परिस्थितिजन्य विवशता महसूस नहीं होती है तथा हमें खुशी होती है।हम मूल्यों की कद्र करते हैं तथा मूल्य आधारित व्यवहार करने में हमें खुशी होती है।

प्रश्न:3.मूल्यों के मुख्य लक्षण क्या हैं? (What are the main characteristics of values?):

उत्तर:(1.)बिना तर्क के मूल्य अंधे होते हैं,बिना भावनाओं के वे अशक्त होते हैं तथा बिना कार्यों के वे खाली होते हैं।
(2.)यद्यपि मूल्य भावनाएं या संवेग नहीं है तथापि उनमें इच्छाएं व भाव निहित हैं।वे अपने आपमें विश्वास या निर्णय नहीं है परंतु वे चिंतन में तथा उसके माध्यम से प्रकट होते हैं।
(3.)मूल्य निरंतर अनुभवों से संबंधित होते रहते हैं तथा अनुभव ही उन्हें रूप देते हैं व उनकी जांच करते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा मूल्यों द्वारा जीवन को श्रेष्ठ बनाएं (Make Life Better Through Values),जीवन में मूल्यों को अपनाएं (Embrace Values in Life) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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