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Ethical and Cultural Values

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1.नैतिक व सांस्कृतिक मूल्य (Ethical and Cultural Values),नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का महत्त्व (Importance of Moral and Cultural Values):

  • नैतिक व सांस्कृतिक मूल्य (Ethical and Cultural Values) अर्थात् नैतिकता व संस्कृति-ये दोनों शब्द आज हमारे समक्ष प्रश्न चिन्ह सहित अपने विश्लेषण ढूंढने में तत्पर हैं।नैतिक मूल्यों का अर्थ खंड-खंड होकर विभिन्न रूपों में भाँति-भाँति के मंडलों के हाथों में पड़ गया है,जिसके कारण ये मंडल अपनी गाथा का बखान करते रहते हैं।
  • ‘नैतिक’ शब्द का मूल ‘धर्म’ में छिपा हुआ है।धर्म में निहित आदर्श ही नैतिक मूल्य हैं,मौलिक संस्कार हैं।मानवता का नाम ही धर्म है,अर्थात् कोई,भी ऐसा कार्य न करना जिससे प्रायश्चित करना पड़े,धर्म कहा जाएगा।
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2.नैतिक मूल्यों का संस्कृति से संबंध (Relationship of moral values to culture):

  • नैतिक मूल्यों का संस्कृति से निकटतम संबंध है।संस्कृति नैतिक मूल्यों का दर्पण है।विभिन्न संस्कृतियाँ एक ही समय में अलग-अलग जगहों पर,अलग-अलग रूपों में विकसित होती हैं।इनका प्रादुर्भाव मानव के आचार-व्यवहार पर प्रभाव डालता है।संस्कृति यह निर्धारित करती है कि पारम्परिक नैतिक मूल्यों का पालन,अमुक समाज में कितने बड़े पैमाने पर हो रहा है।
  • अब,प्रश्न यह है कि मनुष्य पहले हुआ या संस्कृति?निश्चय ही,मानव समाज से ही संस्कृति की स्थापना हुई।अतः निष्कर्ष यह निकला कि बिना नैतिकता के संस्कृति शून्य है;संस्कृति-शून्य वातावरण को तो जंगल ही कहा जा सकता है।अर्थात् नैतिकता व संस्कृति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
  • अगला प्रश्न यह है कि नैतिक मूल्यों का उद्भव कहां से हुआ? यह निर्णय कैसे हो कि अमुक कार्य नैतिकता के दायरे में है या नहीं? इसका एक उत्तर यह है कि जिन मौलिक तत्वों के आधार पर सामाजिक ढांचा बिना किसी लड़ाई-झगड़े के,सुचारू रूप से चलता रहे,वे ही अनुशासन और शिष्टाचार का रूप ले लेते हैं,जिनमें मानव की सुविधा पर,जनसेवा पर विशेष ध्यान दिया गया है।समाज से हटकर यदि हम व्यक्ति विशेष की उन्नति की बात करें,तो आत्मा और बुद्धि के विकास की बात आती है,जिसे सम्पन्न करने के लिए जो मंत्र कारगर है,उन्हें आत्मिक,आध्यात्मिक व बौद्धिक मूल्यों का नाम दिया गया है।अनुशासन,शिष्टाचार व उपर्युक्त मूल्यों को मिला दें,तो नैतिक मूल्य सामने आते हैं,जो कालांतर में संस्कृति का रूप ले लेते हैं।
  • प्रत्येक मानव जब जन्म लेता है,तो निरीह प्राणी के रूप में एक नया जीव होता है,लेकिन इंसान के रूप में उसकी पहचान तभी बनती है,जब नैतिक मूल्य उसे अलंकृत करते हैं।वहीं आकर भेद होता है एक मनुष्य का पशु से।हमारे ग्रंथो में एक श्लोक यह भाव प्रस्तुत करता है:
  • “येषाम न विद्या,न तपो,न दानम्
    ज्ञानम् न शीलम्,न गुणों,न धर्मम्।
    ते मर्त्यलोके भुविभारभूताः,
    मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।”
  • अर्थात्,जिनके पास न विद्यारूपी धन है,न तप रूपी शक्ति है,न उदारता है,ना ज्ञान है,न चरित्र की पवित्रता है,न गुणों भरा आचरण है और न धार्मिक प्रवृत्ति है,वे इस पृथ्वी पर भार-स्वरूप हैं ऐसे लोग मनुष्य के वेष में मृग (पशु) हैं।नैतिक मूल्य ही मानव का सर्वोच्च मार्गदर्शन करते हैं।इस संसार में भोगों के अतिरिक्त उसे भोग की शक्ति प्रदान करते हैं ;उसकी एक व्यक्तिगत पहचान बनाते हैं।

3.क्या नैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाना सरल है? (Is it easy to adopt moral and cultural values?):

  • नैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को आत्मसात करने की बात जितनी सरलता से कही जा सकती है,वह व्यावहारिक रूप से उतनी ही कठिन है,परंतु दुर्लभ नहीं।इसके लिए हमें प्रतिबद्ध होना पड़ता है कि हम सत्य,अहिंसा,अचौर्य,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का आजीवन पालन करेंगे।ये पांच महाव्रत सभी बारीकियों को सरलता से छूते हैं।
  • ‘सत्य’-अर्थात् तन-मन-जन-जीवन में सत्य का स्रोत होना।वाणी में,विचार में और आचार में निष्कपट व सरल होना ही सत्य है।’अहिंसा परमोधर्म:’-ऐसा इसलिए कहा गया है,क्योंकि अहिंसा का पालन पूर्णतः हमारे अपने वश में है जिसे हम बिना किसी अपवाद के पूरा कर सकते हैं।इसका अभिप्राय प्राणियों की हिंसा न करना ही नहीं है,अपितु,उस हिंसा को रोकने से भी है जो अद्रष्टव्य है,जिसका संबंध शिष्टाचार से है।अतः,विनय और शील ही अहिंसा का सीधा अर्थ है।’अचौर्य’ का अर्थ है किसी भी पराई वस्तु को उसके स्वामी की आज्ञा के बिना ना उठाना।रिश्वतखोरी भी चोरी ही है।’ब्रह्मचर्य’ में आता है इंद्रियों का संयम।इसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक है विषय-विकारों से,कषाय से,काम-वासना से मुक्ति पाना; अतः कोई भी ऐसा कार्य न करना जिससे उपर्युक्त दुर्भावों के उत्पन्न होने की संभावना हो।
  • जैसा कि गांधी जी ने कहा है-“बुरा मत सुनो,बुरा मत देखो,बुरा मत कहो।” ‘अपरिग्रह’ का अर्थ है व्यर्थ ही किसी वस्तु का संचय न करना;जितना अनिवार्य है,उतने का उपयोग कर बाकी दान कर देना।परिग्रह से अतृप्ति ही होती है जिसका प्याला भर सकना किसी के भी हाथ में नहीं है।
  • पंचमहाव्रतों का पालन करने मात्र से मनुष्य में अनगिनत गुणों का संचार होता है,जैसे-आत्मबल,आत्मसंयम,आत्मविश्वास,आत्मसंतुष्टि,त्याग,आत्मसंतुलन,उदारता,सहिष्णुता,विनम्रता,सद्भाव,परितृप्ति,परिश्रमी प्रवृत्ति इत्यादि।सारांश यह है कि नैतिक मूल्यों से आत्मा का उत्थान होता है व्यक्तिगत उन्नति होती है,जिससे उच्चकोटि के समाज की संरचना होती है और संस्कृति का निर्बाध्य गति से विकास होता है।इन्हीं नैतिक मूल्यों को,जो एक संस्कृति के आदर्श हों,सांस्कृतिक मूल्यों का नाम दिया जाता है।

4.नैतिक मूल्यों का ह्रास (Erosion of moral values):

  • नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों की समीक्षा करके हम यह प्रत्यक्ष देखते हैं कि आज के वातावरण में इनका निर्ममता से ह्रास हो रहा है।क्या इसका कारण यह है कि हमारी नींव कमजोर थी,या फिर जिन हाथों में सामाजिक व्यवस्था आई,वे हाथ ही व्यावहारिक मूल्यों का संचार करने में असमर्थ थे,या हमारे वातावरण में दुष्प्रवृत्तियों ने धीरे-धीरे अपने आकर्षण से सभी को मोहित और अचेत कर दिया है,जिससे संस्कृति का विकास दुर्लभ हो गया है?
  • कारण जो भी हो,परंतु आज हमें परिस्थितियों को अपने अनुकूल करने के लिए युद्धस्तर पर क्रांति लानी होगी,जिससे आज की पीढ़ी में इतनी क्षमता आ जाए कि वह परिपक्वता से सही मार्ग का चुनाव कर सके और जीर्ण-शीर्ण सामाजिक व आत्मिक ढाँचे को परिमार्जित कर सके।यह शक्ति है नैतिक मूल्यों में जिनका जन्म सर्वप्रथम एक व्यक्ति में ही होता है।

5.नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को धारण कैसे करें? (How to imbibe moral and cultural values?):

  • यह भी तय कर लें कि नैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को आत्मसात कैसे करें? इसे संपन्न करने के लिए ‘दृढ़-निश्चय’ और ‘अभ्यास’ की आवश्यकता है।श्रद्धा और लगन से यदि हम अपने व्यवहार को परिमार्जित करने में जुट जाए तो,दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ने की ‘कोशिश’ ही हमें संपन्नता के निकट लेती जाएगी।इसके लिए हमें निरंतर ज्ञानार्जन तथा सदाचरण की दिशा में नियमित अभ्यास करना होगा,जिससे हमारी विवेक बुद्धि का विकास हो तथा उचित-अनुचित का निर्णय करने की क्षमता प्राप्त हो।
  • ‘ज्ञान,दर्शन,चरित्र’-इनका उत्थान ही नैतिक मूल्यों का और सांस्कृतिक मूल्यों की मंजूषा एवं चारित्रिक उत्थान का मार्ग है।हमारे जीवन में चरित्र का क्या महत्त्व है,इसको बताने के लिए यह महत्त्वपूर्ण कथन स्मरणीय है-शिक्षित चरित्रहीन व्यक्ति की अपेक्षा अशिक्षित चरित्रवान व्यक्ति समाज के लिए अधिक उपयोगी होता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में नैतिक व सांस्कृतिक मूल्य (Ethical and Cultural Values),नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का महत्त्व (Importance of Moral and Cultural Values) के बारे में बताया गया है।

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6.एजुकेशन लोन से पढ़ाई (हास्य-व्यंग्य) (Education Loan Studies) (Humour-Satire):

  • दिनेश ने लोन लेकर जाॅब प्रारंभ कर दिया,लेकिन लोन वापस न कर सका तो बैंकवाले जाॅब प्लेस का सामान उठाकर चले गए।
  • दिनेश बैंककर्मी से बोला पहले पता होता तो एजुकेशन लोन से पढ़ाई करता तो इन पुस्तकों को भी उठाकर ले जाते।

7.नैतिक व सांस्कृतिक मूल्य (Frequently Asked Questions Related to Ethical and Cultural Values),नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का महत्त्व (Importance of Moral and Cultural Values) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.भारतीय विचारकों के अनुसार मुख्य मूल्य कौनसे हैं? (What are the main values according to Indian thinkers?):

उत्तर:भारतीय विचारकों के अनुसार ‘सत्यम्,शिवम,सुंदरम’ मुख्य मूल्य हैं।जिन व्यक्तियों के मन का ज्ञानात्मक पक्ष प्रबल होता है,उन्हें चरम सत्ता सत्यम् के रूप में दिखाई पड़ती है,जिनके मन का क्रियात्मक पक्ष प्रबल होता है उन्हें वह निरपेक्ष सत्ता ‘शिवम्’ के रूप में दिखाई पड़ती है तथा मन के प्रबल भावनात्मक पक्ष वालों को वह ‘सुंदरम’ के रूप में दिखाई पड़ती है।मानव-मन अपनी शक्ति अनुसार उस चरम् सत्ता को तीन रूपों में देखता है।

प्रश्न:2.छात्र-छात्राओं का चरित्र निर्माण कैसे हो सकता है? (How can the character of students be formed?):

उत्तर:विद्यार्थियों का चरित्र निर्माण नैतिक शिक्षा से ही संभव है।भारतीय संस्कृति का मूल स्वर है-भोग करो,किंतु त्याग के साथ।भौतिक सुख-सुविधाओं का उपभोग अनासक्ति पूर्वक करो,उसमें लिप्त होकर नहीं।हमारा सामाजिक चरित्र ऐसा हो कि हम सारे सुख का भोग करते हुए भी अपनी नैतिकता कायम रखें।त्यागी वही व्यक्ति कहा जाएगा जो परहित को बिना आघात पहुंचाएँ अपने हित की रक्षा करेगा।

प्रश्न:3.आज सभी क्षेत्रों में गिरावट क्यों है? (Why are all sectors declining today?):

उत्तर:आज सभी क्षेत्रों में जो गिरावट हम पा रहे हैं,उसका मुख्य कारण चरित्रवान व्यक्तियों का अभाव ही है।निष्कृष्ट स्वार्थ हम पर इतना हावी हो गया है कि चरित्रवान व्यक्ति को हम आज सनकी या मूर्ख की संज्ञा देने में नहीं हिचकते।अपने चरित्र की कमजोरी पर हम यह कहकर पर्दा डालते हैं कि “सब चलता है।” हम बुराई और भ्रष्टाचार के साथ जीने के आदी हो गए हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा नैतिक व सांस्कृतिक मूल्य (Ethical and Cultural Values),नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का महत्त्व (Importance of Moral and Cultural Values) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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