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5 Tips to Develop Ethics in Students

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1.छात्र-छात्राओं में नैतिकता का विकास करने की 5 टिप्स (5 Tips to Develop Ethics in Students),छात्र-छात्राओं में नैतिकता का विकास कैसे करें? (How to Develop Morality in Students?):

  • छात्र-छात्राओं में नैतिकता का विकास करने की 5 टिप्स (5 Tips to Develop Ethics in Students) के आधार पर वे समझ सकेंगे की नैतिक नियमों का पालन करना क्यों आवश्यक है? परंतु नैतिक नियमों से संबंधित युवाओं के कुछ यक्ष प्रश्न है।नैतिकता के यक्ष प्रश्न जीवन में सब तरफ हैं।जीवन का केंद्र मनुष्य का व्यक्तित्त्व हो या फिर उसके विस्तार के रूप में समाज,इन कटीले कांटों के घाव हर कहीं हैं।इन सवालों के सही और सटीक हल न खोजे जाने के कारण ही परिवार,समूह,समुदाय आदि समाज के सभी दायरों में विघटन एवं अलगाव हुआ है।
  • भारत सहित दुनिया के प्रायः सभी देशों में एक सी स्थिति है।मानवीय जीवन की प्रायः हर संस्था टूट-दरक गई है।हर देश की सामाजिक संरचना चरमरा गई है।पुरानी नैतिक स्थापनाओं को नई पीढ़ी किसी भी तरह स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है।पुरानी पीढ़ी अपने जमाने की नैतिक मर्यादाओं को स्थापित करना चाहती है,लेकिन नई पीढ़ी इन्हें सिरे से अनुपयोगी बता रही है।
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2.नई पीढ़ी के नैतिकता के प्रश्न (Questions of New Generation Ethics):

  • नई पीढ़ी ने नैतिकता के औचित्य पर नए सवाल उठाए हैं।वह पुरानी पीढ़ी के पुराने पड़ चुके जवाबों से संतुष्ट-सहमत नहीं है।बुजुर्गों की यह बात उन्हें रास नहीं आती है कि हमारे बुजुर्गों ने कहा और हमने मान लिया।अब हम तुम्हें समझा रहे हैं,तुम मान लो।श्रद्धा और आस्था की नैतिक परंपरा युवा पीढ़ी को अर्थहीन लग रही है।उन्हें तर्क और प्रयोगों का अर्थपूर्ण विज्ञान चाहिए,जिसमें उनके द्वारा उठाए गए यक्ष प्रश्नों के वैज्ञानिक हल हों।
  • इस संबंध में सबसे पहला और केंद्रीय सवाल है कि भोग के अर्जन और उसके उपभोग की क्षमता के रहते हुए स्वच्छंद भोग क्यों नहीं? स्वच्छंद भोग में जब इंद्रिय सुख सर्वविदित है,तब फिर उसका त्याग किस महत्त्वपूर्ण सुख के लिए किया जाए?
    नैतिकता के इन व्यक्तिगत सवालों के अलावा कई सामाजिक सवाल भी हैं।हालांकि ये सवाल भी प्रकारांतर से व्यक्तिगत जिंदगी से जुड़े हुए हैं।ऐसे सवालों में सर्वमान्य सवाल है कि जब संयुक्त परिवार व्यक्तिगत सुख में बड़ी ही स्पष्ट नीति से बाधक है,तब फिर उसका बोझ क्यों उठाया जाए? बुजुर्गों की सेवा करने की क्या जरूरत है? इन और ऐसे ही अनेकों यक्ष प्रश्नों का सारभूत तत्त्व इतना ही है कि नैतिक मर्यादाएं,नैतिक वर्जनाएंँ,नैतिक मूल्य प्रायः सुख-भोग में बाधा ही पहुंचाते हैं,तब ऐसे में उन्हें क्यों ढोया जाए?
  • ये सभी सवाल आज के भारत के हैं,जहाँ के युवा आज धन कमाने के लिए किसी भी नैतिक आचरण की परवाह नहीं करने के लिए तैयार हैं।नैतिकता के ये यक्ष प्रश्न उस रूप के हैं,जहां की बालाएँ भोगवाद की बाढ़ में बेतरतीब बह रही हैं।ये सवाल हैं जापान के,जहां स्कूल व कॉलेज जानेवाली छात्राओं का प्रिय शौक सेक्स,देह व्यापार है।इसे वे अपनी हाॅबी मानती हैं।नैतिकता के इन कटीले काँटों की फसल अमेरिका में भी खूब जोर-शोर से लहलहाती हुई झूम रही हैं,जहां पिछले दिनों लाॅस एंजिल्स में एक किशोर ने अपने चचेरे भाई के साथ मिलकर केवल शौक के लिए अपनी चाची की हत्या कर दी।
  • वहां बेतहाशा बढ़ते उन्मुक्त भोग ने बच्चों का बचपन एवं युवाओं का यौवन छीन लिया है,क्योंकि वहाँ बच्चे यौवन के सुख भोगना चाहते हैं।इस प्रवृत्ति से ग्रसित बचपन जब किशोर अवस्था की दहलीज पर कदम रखता है,तब तक उनकी जीवनी शक्ति उनसे विदा ले चुकी होती है।
  • इनमें से किसी को वेद वचन या संतवाणी पढ़कर समझाया नहीं जा सकता,क्योंकि वे इसे सुनने के लिए तैयार नहीं है।सुकरात का,कांट का तत्त्वदर्शन इनके लिए अर्थहीन है,क्योंकि इसमें वे अपने सवालों के सामयिक समाधान नहीं पाते हैं।इनके सवालों के हल के लिए हमें नैतिकता के नए विज्ञान को जन्म देना होगा,जो नैतिकता के अर्थ,स्वरूप व उद्देश्य के साथ उसकी समसामयिक आवश्यकता को बड़े ही तर्कपूर्ण एवं प्रयोग सम्मत रीति से सिद्ध कर सके।

3.युवा पीढ़ी के नैतिकता के प्रश्नों का समाधान (Addressing the Questions of Morality of the Younger Generation):

  • इस नए विज्ञान की आधारभूत परिकल्पना यह है कि नैतिकता अपने वास्तविक अर्थों में जीवन-पथ है, जिसका अंतिम बिंदु जीवन का चरम विकास है।जीवन के इस चरम विकास में सभी तरह की शांति है,परमानंद है और ज्ञान का प्रकाश है।नैतिकता के जीवन-पथ से विचलित होने वाले जीवन के इस विकसित स्वरूप की अनुभूति कभी भी नहीं कर सकते।नैतिकता के सभी यक्ष प्रश्नों के समाधान इसी वैज्ञानिक परिकल्पना पर आधारित प्रयोगों में है।इस परिकल्पना के प्रयोगात्मक निष्कर्ष ही आज की युवा पीढ़ी को सार्थक समाधान दे सकते हैं।कुछ मनोवैज्ञानिकों ने इन प्रयोगों की शुरुआत भी कर दी है।
  • इन्हीं में से एक एरिक फ्राॅर्म हैं।इन्होंने अपने निष्कर्षों को कुछ बिंदुओं में स्पष्ट करने की कोशिश की हैः
    (1.)नैतिकता का औचित्य जीवन के सही स्वरूप बोध से स्वतः सिद्ध हो जाता है।जीवन-बोध यदि विकृत है,तो फिर नैतिकता की अवहेलना,उपेक्षा मनुष्य का स्वाभाविक कर्म बन जाएगी।
  • (2.)सुखभोग के लिए त्यागी जाने वाली नैतिकता का अंत भयानक व विनाशक दुःखों में होता है।
    (3.)नैतिक मर्यादाओं की अवहेलना करने वाले प्रायः मनोरोगी हो जाते हैं।यदि ऐसा अभी तक नहीं हुआ है,तो आगे ऐसा होना सुनिश्चित है।
  • एरिक फ्रॉम के ये तीनों निष्कर्ष उसके एक विशिष्ट प्रयोग पर आधारित हैं।अपने इस प्रयोग के लिए उसने विभिन्न किंतु निश्चित आयु वर्ग के स्त्री व पुरुषों को लिया।इस प्रयोग के लिए पहले सभी को उनके आयु वर्ग के अनुसार अलग-अलग समूहों में बांटा गया।
  • इनमें से पहले समूह को यह समझाया गया,मनुष्य जीवन का सही स्वरूप व सार्थक रीति-नीति क्या है?इन्हें बताया गया कि मनुष्य सिर्फ देह और मन तक सीमित नहीं है।उसका केंद्रीय तत्त्व आत्मा है।यही यथार्थ में ज्ञान,शक्ति व आनन्द का स्रोत है,परंतु इसकी अनुभूति के लिए कुछ नीति-नियमों का पालन अनिवार्य है।जिस समूह को यह बात भलीभाँति समझाई गई,वे बड़े ही उत्साह से नैतिक आदर्शों के पालन के लिए तैयार हो गए।
  • इस प्रयोग समूह के विपरीत नियंत्रण समूह को नैतिक आदर्श तो बताए गए,परंतु उन्हें जीवन का सच्चा स्वरूप नहीं समझाया गया।लगभग एक वर्ष तक चले इस प्रयोग के परिणाम यह रहे कि जीवन का सही स्वरूप समझने वाले प्रयोगात्मक समूह के लोगों ने पूरी नियम-निष्ठा के साथ नैतिक आदर्श का पालन किया।इसके विपरीत कंट्रोल ग्रुप या नियंत्रण समूह के लोगों ने नीति-नियमों के पालन में उपेक्षा बरती।
  • प्रयोग समूह के जिन लोगों ने नैतिक आदर्शों का पालन बड़ी सच्चाई व निष्ठा के साथ किया,उनकी मनोदशा में काफी गुणात्मक सुधार हुआ।उनके व्यक्तित्त्व की विभिन्न क्षमताओं में काफी बढ़ोतरी हुई।साथ ही कुंठा,अवसाद,अपराधबोध आदि विभिन्न मनोव्याधियों में भारी गिरावट हुई।महिलाओं में यह गिरावट 99 व पुरुषों में 90 रहा।एरिक फ्राॅर्म ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा कि संभवतः महिलाएं आंतरिक रूप से अधिक संवेदनशील होने के कारण पुरुषों की तुलना में ज्यादा ग्रहणशील होती है।इन प्रयोगों से यह स्पष्ट हो गया कि नैतिक आदर्श व्यक्तित्त्व की विभिन्न क्षमताओं के विकास व प्रायः सभी तरह के मनोरोगों के निवारण में सहायक होते हैं।
  • कंट्रोल ग्रुप या नियंत्रण समूह के जिन लोगों ने नैतिक मर्यादाओं की उपेक्षा या अवहेलना की थी,उनके व्यक्तित्त्व की विभिन्न क्षमताएं घटी और कुंठा,अवसाद व अपराधबोध आदि मनोरोगों में भारी बढ़ोतरी हुई।कई तो ऐसे उदाहरण सामने आए कि इस नियंत्रण समूह में जो लोग प्रायः स्वस्थ-सामान्य रह रहे थे,उनमें नैतिकता की भरपूर अवहेलना के कारण विभिन्न मनोरोग अंकुरित होने लगे।इससे यह वैज्ञानिक तथ्य प्रकट हुआ कि नैतिक मर्यादाओं की अवहेलना करने वाले लोगों में प्रायः मनोरोगी होने की संभावना रहती है।
  • एरिक फ्रॉम ने अपने इन प्रयोगों में निष्कर्षों को जब ‘मॉरल वैल्यूज एंड मेंटल डिसऑर्डर्स’ (नैतिक मूल्य एवं मानसिक व्यतिक्रम) के नाम से शोध-पत्र के रूप में प्रकाशित किया,तो युवाओं में भारी हलचल मची।भारी संख्या में विश्वभर के युवा नैतिक आदर्शों को अपनाने के लिए उन्मुख हुए।उनमें से कुछ एक ने कहा कि उन्होंने नैतिकता के संबंध में जो प्रश्न उठाए थे,अब उनका समाधान होने लगा है।युवावर्ग के विश्वव्यापी सर्वेक्षण से यह निष्कर्ष सामने आया कि नैतिकता के यक्ष प्रश्नों के समाधान के लिए तत्त्वदर्शन के सिद्धांत नहीं,वैज्ञानिक प्रयोग आवश्यक हैं।इन्हीं के निष्कर्षों से सभी सार्थक समाधान मिलेंगे।

4.वास्तविक संपन्नता और सुख-शांति (Real Happiness and Peace):

  • किसी भी मनुष्य अथवा समाज की उन्नति का लक्षण सुख-शांति और संपन्नता।यदि गंभीर दृष्टि से देखा जाए, तो पता चलेगा कि आरामदेह जीवन की सुविधाएँ सुख-शांति का कारण नहीं है,बल्कि निर्विघ्न तथा निर्द्वन्द्व जीवन प्रवाह की स्निग्ध गति ही सुख-शांति का हेतु है।जिसका जीवन एक स्निग्ध तथा स्वाभाविक गति से बहता जा रहा है,सुख-शांति उसी को प्राप्त होती है।इसके विपरीत जो अस्वाभाविक एवं उद्वेगपूर्ण जीवनयापन करता है,वह दुःखी तथा अशांत रहता है।विविध प्रकार के कष्ट और क्लेश उसे घेरे रहते हैं।ऐसा व्यक्ति एक क्षण को भी सुख-चैन के लिए कलपता रहता है।कभी उसे शारीरिक व्याधियाँ त्रस्त करती हैं,तो कभी मानसिक यातनाओं से पीड़ित होता है।
  • जो बेचैन है,अशांत है,पीड़ित है,वह संपन्नता उपार्जित करने के साधन जुटा ही नहीं सकता।उसे यातनाओं से संघर्ष करने से अवकाश ही नहीं मिलेगा,पर भला संपन्नता का स्वप्न किस प्रकार पूर्ण कर सकता है।जो शांत है,स्थिर है,निर्द्वन्द्व है,वही कुछ कर सकने में समर्थ हो सकता है।यदि परिस्थितियों अथवा संयोगवश किसी को संपन्नता प्राप्त हो जाए तो अशांत एवं व्यग्र व्यक्ति के लिए उसका कोई उपयोग नहीं।जिस वस्तु का जीवन में कोई उपयोग नहीं,जो वस्तु किसी के काम नहीं आती,उसका होना तो उसके लिए न होने के समान है।अस्तु संपन्नता प्राप्त करने के लिए शांतिपूर्ण परिस्थितियों की आवश्यकता है और सुख शांति के लिए संपन्नता की अपेक्षा है।
  • इस संपन्नता का अर्थ बहुत अधिक धन-दौलत से न होने पर भी आवश्यकताओं की सहजपूर्ति से तो है ही।जो नितांत निर्धन है,दरिद्र है,वह सुख-शांति के लिए कितना ही मानसिक उद्योग क्यों ना करें,उसे प्राप्त नहीं कर सकता।जब भूख लगेगी तब वह किसी साधन,समाधि अथवा भजन-पूजन से दूर न होगी।उसके लिए तो भोजन की आवश्यकता होगी।क्षुधित मनुष्य कब तक अपना मानसिक संतुलन बनाए रखेगा,कब तक उसका विवेक उसे विकल होने से बचा सकेगा,एक सीमा के बाद प्रज्ञावान से प्रज्ञावान व्यक्ति भी विचलित हो उठेगा।उपयुक्त आवश्यकताओं की समुचित पूर्ति और मनुष्य का संतोष दोनों मिलकर किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति के लिए संपन्नता ही है।जो निःस्वार्थ,निर्लोभ और अलोलुप है वही वास्तव में संपन्न है,इसके विपरीत जो लालची है,अतिकाम है,लिप्सालु है,वह धनवान होने पर भी दरिद्री है,असंपन्न है।

5.नैतिक नियमों का पालन आवश्यक (Ethical Rules Must Be Followed):

  • उन्नत जीवन के लिए सुख-शांति एवं संपन्नता की आवश्यकता है,उसे प्राप्त करने के लिए मनुष्य को प्राकृतिक अनुशासन में रहकर ही क्रियाशील होना पड़ेगा।मनुष्य जीवन की तुलना में यदि हम प्रकृति के जीवन उसके अस्तित्व को देखें तो पता चलेगा की जड़ होते हुए भी प्रकृति कितनी हरीभरी और फल-फूलों से संपन्न है,किंतु मनुष्य सचेतन प्राणी होते हुए भी कितना दीन और दुःखी है।
  • इसका मूल कारण है,प्रकृति का निश्चित नियमों के अंतर्गत अनुशासित होकर चलना।समस्त नक्षत्र तथा यह उपग्रह एक सुनिश्चित व्यवस्था तथा विधान के अनुसार क्रियाशील रहते हैं।वे अपने निश्चित विधान का व्यक्तिक्रम नहीं करते।कोई लाख प्रयत्न क्यों न करें,कोई भी ग्रह अथवा उपग्रह अपने उदय-अस्त तथा परिभ्रमण की गतिविधि में कोई परिवर्तन नहीं करता।लाख घड़ों से सींचने पर भी कोई पेड़-पौधा बिना ऋतु के फल-फूल उत्पन्न नहीं करेगा।
  • जो विश्व विधान समस्त सृष्टि पर लागू है,उसका एक अंश होने से वही विश्व-विधान मनुष्य पर भी लागू है।जिस प्रकार निश्चित नियम का उल्लंघन करते ही सितारे टूट पड़ते हैं,धरती हिल उठती है,उसी प्रकार अपने नैतिक नियमों का उल्लंघन करने पर मनुष्य का सारा जीवन ही अस्त-व्यस्त हो जाता है।शारीरिक स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है,मानसिक शांति समाप्त हो जाती है और आत्मा का अधःपतन हो जाता है।मनुष्य सुख-शांति का पात्र बनने के स्थान पर दुःख-दर्द और कष्ट क्लेशों का भंडार बन जाता है।
  • मनुष्य को सृष्टि में साधनों के रूप में जो कुछ मिला है,वह समुचित उपयोग के लिए मिला है।वह सब इसलिए है कि इसकी सहायता से मनुष्य जीवन को अधिकाधिक समुन्नत तथा सुंदर बनाए।सुख-शांतिपूर्वक अपनी पूरी आयु का उपयोग करे।मनुष्य जीवन अल्पायु अथवा अपरूपता के लिए नहीं मिला है।वह अपने में सत्यम,शिवम,सुंदरम को उपलब्ध करने के लिए ही प्राप्त हुआ है।नियामक ने मनुष्य को विवेक शक्ति देकर अवश्य ही यह अपेक्षा की होगी कि वह संसार का सबसे स्वस्थ सुंदर और शक्ति संपन्न प्रतीक बने।वह अपने कर्त्तव्य से संसार को सुंदरतम बनाएं और निर्माता का सच्चा प्रतिनिधित्व करे,किंतु मनुष्य का स्वरूप तथा उसका कार्यकलाप इस अपेक्षा के बिल्कुल विपरीत दृष्टिगोचर होता है।वह दिन-दिन अस्वस्थ,असुंदर और अस्त-व्यस्त होता जा रहा है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं में नैतिकता का विकास करने की 5 टिप्स (5 Tips to Develop Ethics in Students),छात्र-छात्राओं में नैतिकता का विकास कैसे करें? (How to Develop Morality in Students?) के बारे में बताया गया है।

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6.बंद कमरे में छात्र को कैसे बुलाएं? (हास्य-व्यंग्य) (How to Call Student in a Closed Room?) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (छात्र से):बंद कमरे को खोले बिना बाहर खड़े छात्र को अंदर कैसे बुला सकते है?
  • छात्र:खिड़की से उसको रोटी दिखाकर,जैसे कुत्ते को रोटी दिखाकर अंदर बुलाया जाता है।

7.छात्र-छात्राओं में नैतिकता का विकास करने की 5 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Tips to Develop Ethics in Students),छात्र-छात्राओं में नैतिकता का विकास कैसे करें? (How to Develop Morality in Students?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मनुष्य के पतन का क्या कारण है? (What is the Cause of Man’s Downfall?):

उत्तर:मनुष्य जब तक नियति नियमों के अनुशासन में होकर नहीं चलेगा,तब तक दिन-दिन उसका पतन ही होता जाएगा।वह दिन-दिन ओर अधिक विपन्नतापूर्ण अशांति से घिरता जाएगा।वह यों ही रोएगा चिल्लाएगा और पग-पग पर नारकीय यातना पाता हुआ कीड़े-मकोड़े की तरह मरता रहेगा।

प्रश्न:2.मनुष्य सुख-शांति से कैसे रह सकता है? (How Can Man Live in Peace and Happiness?):

उत्तर:नियति-नियमों के अनुकूल चलने और नैसर्गिक बन शासन मानने पर ही मनुष्य उन्नति एवं समृद्धि की दिशा में अग्रसर हो सकता है।इसके अतिरिक्त ऐसा कोई अन्य उपाय नहीं है,जो मनुष्य को सुखी और शांत बना सके।

प्रश्न:3.मनुष्य की दो गतियां कौनसी है? (What are the Two Motions of Man?):

उत्तर:मनुष्य की केवल दो ही गतियां हैं,या तो वह ऊपर चढेगा या नीचे गिरेगा।उसके लिए बीच का कोई मार्ग नहीं है।मनुष्य जीवन की यह छूट नहीं है कि यह कुछ अनुशासन में रहकर और कुछ अनुशासनहीन होकर बिना विशेष कष्ट-क्लेशों के चुपचाप मध्य मार्ग से निकल जाए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं में नैतिकता का विकास करने की 5 टिप्स (5 Tips to Develop Ethics in Students),छात्र-छात्राओं में नैतिकता का विकास कैसे करें? (How to Develop Morality in Students?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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