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Harmony Knowledge and Practice of Math

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2 6.गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय (Harmony Knowledge and Practice of Mathematics),गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय के लिए 3 टिप्स (3 Tips for Coordination in Knowledge and Practice of Mathematics) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

1.गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय (Harmony Knowledge and Practice of Math),गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय के लिए 3 टिप्स (3 Tips for Coordination in Knowledge and Practice of Mathematics):

  • गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय (Harmony Knowledge and Practice of Mathematics) से क्रिया में एकता उत्पन्न होती है।गणित विषय के किसी भी टॉपिक को पढ़ते हैं,समझते हैं तथा उसके बारे में चिंतन-मनन करते हैं तब ज्ञान अस्थाई रहता है।इस प्रकार प्राप्त किया गया ज्ञान सैद्धांतिक ज्ञान ही रहता है।किसी भी टॉपिक को ठीक तरह से पढ़कर,अध्ययन करके उसको समझना और उस पर चिंतन-मनन करना जितना जरूरी होता है उतना ही जरूरी उसका अभ्यास करना भी जरूरी होता है।बिना अभ्यास किए हुए ज्ञान स्थाई नहीं होता है।
  • बहुत से विद्यार्थी शिक्षा संस्थान में अध्यापक से गणित विषय के सवाल व थ्योरी को समझ लेते हैं। परंतु क्रियात्मक रूप से उसको स्वयं हल नहीं करते हैं।परिणामस्वरूप समझा हुआ सवाल व थ्योरी को कुछ समय बाद भूल जाते हैं।किसी भी कार्य में सफलता और सिफा तभी पैदा होती है जबकि मन और शरीर का एक ही दिशा में,एक ही कार्य के लिए योग होता है।गणित में अक्सर असफल,कम अंक आने का यह भी एक कारण है।इस आर्टिकल में मन व शरीर में तालमेल करने के लिए तीन टिप्स का वर्णन किया गया है।इनका पालन करके आप गणित में पारंगत हो सकते हैं।
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2.सैद्धान्तिक ज्ञान प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं है (Theoretical knowledge is Not Enough):

  • गणित विषय तथा अन्य विषयों में एक मूलभूत अंतर यह है कि अन्य विषयों का सैद्धान्तिक ज्ञान,अध्ययन करके,मानसिक रूप से याद करके सफल हो सकते हैं।परंतु गणित क्रिया प्रधान विषय है।इसलिए सैद्धांतिक ज्ञान अर्थात् गणित की थ्योरी का अध्ययन करना व समझना जितना जरूरी है उतना ही उसका प्रैक्टिकल अभ्यास करना आवश्यक है।
  • प्राचीन काल में किसी भी विषय का ज्ञान प्रदान करने हेतु प्रेक्टिकल करके अर्थात् प्रैक्टिस पर अधिक जोर दिया जाता था।परंतु आधुनिक युग में सैद्धान्तिक ज्ञान प्राप्त करने अर्थात् मानसिक रूप से विषय का अध्ययन करने पर जोर दिया जाता है।
  • विद्यार्थी सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त करके डिग्री प्राप्त कर लेता है।ऐसे युवाओं को सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त करके डिग्रीधारी (Qualified) तो कहा जा सकता है परंतु शिक्षित (Educated)नहीं कहा जा सकता है। युवक-युवतियों के डिग्री का ऐसा चस्का लग जाता है कि बीएससी करने के बाद एमएससी करने के बारे में सोचता है।एमएससी करने के बाद पीएचडी करने का विचार करता है।इस प्रकार पाश्चात्य देशों की इस संस्कृति में युवाओं की डिग्री लेने का चस्का लग जाता है।
  • आजकल के युवा उद्देश्यहीन,पुरुषार्थहीन होकर डिग्री पर डिग्री लेते जाते हैं परंतु वास्तविक रूप में शिक्षित होने का कार्य नहीं करते हैं।प्रारंभ से ही गणित विषय का केवल मानसिक ज्ञान प्राप्त करने का दुष्परिणाम यह होता है कि युवाओं के पास डिग्री तो होती है परंतु उनके पास रोजगार के लिए,काम-धंधा करने के लिए जरूरी कौशल (Skill) का अभाव होता है।ऐसे युवाओं के माता-पिता भी बच्चों पर प्रारंभ से ध्यान नहीं देते हैं।इस उद्देश्यहीन शिक्षा में डिग्री प्राप्त कराने हेतु बच्चों पर बेतहाशा धन खर्च कर देते हैं।इन डिग्रियों के आधार पर माता-पिता बच्चों से झूठी आशा पाले रहते हैं।जब बच्चों का जीवन की वास्तविक सच्चाइयों से सामना पड़ता है तब होश फाख्ता हो जाते हैं।
  • गणित विषय की थ्योरी व सवालों को मानसिक रूप से हल करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उनको प्रैक्टिकली लिखित रूप से अभ्यास करना भी जरूरी होता है।इस प्रकार छोटी-छोटी बातों से ही अभ्यास व प्रैक्टिकल करने का महत्त्व बालक शुरू से ही समझ लेता है तो जीवन की गुत्थी समझ में आ जाती है।

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3.केवल अभ्यास ही पर्याप्त नहीं है (Practical knowledge Alone is Not Enough):

  • गणित का अभ्यास करने से ही छात्र-छात्राओं में दक्षता उत्पन्न करना संभव नहीं है।कुछ बालक कठोर परिश्रम करते हैं।गणित की समस्याओं व सवालों को हल भी करते हैं।लेकिन जब परिणाम सामने आता है तो भौचक्के रह जाते हैं।अर्थात् अपेक्षा से बहुत कम अंक आते हैं।
  • प्राचीन समय में हार्ड वर्क (अभ्यास) पर अधिक बल दिया जाता था परंतु उसका बेहतरीन परिणाम सामने नहीं आता था।किसान का बेटा किसानी करता था परंतु उसी परंपरागत तरीके से।वे परिश्रम तो बहुत करते थे परंतु तुलनात्मक रूप से उस व्यवसाय या विद्या में कोई बहुत फर्क नहीं होता था।अर्थात् नवीन तरीके से करने,उन्नति करने,विकास करने की बहुत क्षीण संभावनाएं थी।
  • जब तक किसी विद्या को सीखने में नई-नई बातें सीखने को नहीं मिलेगी,नई खोज व अनुसंधान नहीं होंगे तब तक उसमें विकास,उन्नति नहीं हो सकती है।
  • गणित के सवालों व समस्याओं का केवल अभ्यास करने से कौशल नहीं सीखा जा सकता है।गणित के सवालों को पहले अध्ययन करना और समझना भी जरूरी है।साथ ही यह चिन्तन करना भी आवश्यक है कि उस सवाल को किसी अन्य तरीके से कैसे हल किया जा सकता है?उस सवाल को ओर बेहतरीन तरीके से कैसे हल किया जा सकता है?तभी शानदार सफलता अर्जित की जाती है।आधुनिक युग में इसी को स्मार्ट तरीके से अध्ययन करना कहा जाता है।
  • गणित जैसे विषय के लिए स्मार्ट और हार्ड वर्क दोनों प्रकार के गुणों की आवश्यकता होती है।यानि सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ-साथ प्रैक्टिकल ज्ञान भी आवश्यक है।गणित एक ऐसा गतिशील प्रयास हैं जिसमें सर्जनात्मकता की आवश्यकता है।सैद्धान्तिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए मानसिक कार्य करना होता है तो प्रैक्टिकल कार्य करने के लिए अभ्यास करना होता है।अर्थात् जब तक मन और शरीर का तालमेल (समन्वय) नहीं होता है तब तक बेहतरीन परिणाम प्राप्त नहीं किया जा सकता है।मानसिक कार्य अर्थात् सैद्धान्तिक ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम मन है तो प्रैक्टिकल कार्य अर्थात् अभ्यास करने का माध्यम शरीर है।

4.सैद्धान्तिक और प्रैक्टिकल ज्ञान दोनों आवश्यक हैं (Both Theoretical knowledge and Practical knowledge are Necessary):

  • आज के छात्र-छात्राओं में अधिकांश की गणित शिक्षा में क्या हालत है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है।यदि गणित विषय में वे कमजोर हैं,उनकी दुर्दशा हो रही है,उन्हें गणित में कठिनाई महसूस होती है इसके जिम्मेदार वे स्वयं हैं।इस दुर्दशा को दूसरों पर लादने या थोपने से काम नहीं चलेगा।गणित विषय में प्रवीण हों,दक्ष हों इसके लिए उनमें अपने लक्ष्य (गणित विषय) के प्रति पूर्ण निष्ठा,सुदृढ़ संकल्प,समर्पण,एकाग्रता, कठिन परिश्रम करना ये सभी होना आवश्यक है।
  • केवल डिग्री प्राप्त करके दर-दर की ठोकरें ही खाते रहते हैं।गणित में पारंगत,मास्टरी हासिल करनी और दक्ष होना है तो मन और शरीर में समन्वय होना ही चाहिए।यदि मन में कुछ ओर विचार चल रहा है तथा शरीर से सवाल को हल करने में लगे हुए हैं तो उसका परिणाम अच्छा आ ही नहीं सकता है।मन और शरीर जब अलग-अलग दिशाओं में कार्य करते हैं तो जबरदस्ती इनमें तालमेल बिठाना वैसे ही है जैसे अमरीका और चीन का एक मंच पर आना.वास्तविकता यह है कि चीन और अमरीका एक ही स्टेज (वर्ल्द ट्रेड आर्गेनाइजेशन) पर नाचने के लिए आ तो गए किंतु न तो उनकी नृत्य कलाएं एक हैं और न ही शैली.इसके अलावा वाद्ययंत्र भी अलग-अलग सुर में राग अलापते हैं.अत: मन और शरीर को सहज (रूचि व लगन हो) रूप में गणित अध्ययन कार्य करना तो ठीक है परंतु जबरदस्ती (अरूचि व लगन न होने  पर) एकरूपता लाना अनेक तनावों को जन्म देता है. गणित में कुशलता प्राप्त करने के लिए ज्ञान और अभ्यास में समन्वय होना चाहिए।तभी गणित के सवालों और समस्याओं को कुशलतापूर्वक हल कर सकते हैं।समन्वय से गणित बहुत आसान तरीके से हल करने में सक्षम हो जाते हैं।
  • ज्ञान प्राप्ति का माध्यम है मन और अभ्यास करने का माध्यम है शरीर।मन और शरीर में समन्वय,सामंजस्य,तालमेल कैसे हो? मन और शरीर में समन्वय,एकरूपता से संघर्ष समाप्त होता है,प्रतिद्वन्द्विता समाप्त होती है।संघर्ष और प्रतिद्वन्द्विता समाप्त होने से देरी,उदासीनता,बोरियत समाप्त होती है।गणित के सवालों,समस्याओं को हल करने में आनंद,खुशी,प्रसन्नता,हर्षोल्लास की अनुभूति होती है।समन्वय से कुशलता उत्पन्न होती है।हमारे अंदर निरंतरता,गतिशीलता,अनुशासन कायम होता है।जो व्यक्ति केवल विचार करता है परंतु कर्म नहीं करता है तथा जो कर्म करता है परंतु विचार नहीं करता है ये दोनों ही देर सबेर नष्ट हो जाते हैं।
  • ज्ञान और कर्म (अभ्यास) का संयोग (समन्वय) ही फल देनेवाला होता है।एक पहिए से गाड़ी नहीं चलती है।कर्म के बिना ज्ञान अन्धा है और ज्ञान के बिना कर्म लंगड़ा है।सैद्धान्तिक ज्ञान किसी काम का नहीं है जब तक उसके अनुसार आचरण नहीं किया जाए।इसी प्रकार ज्ञान के बिना कर्म बेकार होता है क्योंकि अज्ञानी को भले-बुरे कर्मों को करने का विवेक नहीं होता है।इसी प्रकार गणित को रट लेने,अधययन कर लेनेवाले,समझ लेने से नैया पार नहीं हो सकती है जबकि लिखित रूप में उसका अभ्यास न किया जाए।इसी तरह केवल अभ्यास करते रहने से सवाल गलत है या सही है इसका मालूम नहीं होता है क्योंकि ज्ञान के बिना सही और गलत का मालूम नहीं किया जा सकता है।संसार में जीवनरूपी नैया को पार लगनी है तो ज्ञान और कर्म की गुत्थी को समझकर गणित का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और उसका अभ्यास (क्रिया,कर्म) भी करना चाहिए तभी इसकी सार्थकता है।भतृहरि नीति शतक में कहा है कि:
  • “कर्मायतं फलं पुंसां बुद्धि कर्मानुसारिणी।
    तथापि सुधयश्चाआर्या: सुविचार्येव कुर्वते”।।
  • अर्थात् मनुष्यों को उनके कर्म के अनुसार फल मिलता है और बुद्धि भी कर्मफल के अनुसार काम करने लगती है तथापि बुद्धिमानों को खूब सोच विचार कर दूरदर्शिता के साथ ही कोई काम करना चाहिए।पूरी तरह सोच-विचारकर,उचित-अनुचित पर सोचकर काम करने से काम सिद्ध न हो तो दुख नहीं होता।इसी प्रकार का गया है कि:
  • “सहसा विदधीत न क्रियामविवेक:परमापदां पदम्।
    वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलब्धा:स्वयमेव सम्पद:”।।
  • अर्थात् बिना सोचे-विचारे एकाएक किसी कार्य को आरंभ नहीं करना चाहिए।अविवेक=सम्यक् विचार न करना विपत्तियों का कारण है।गुणों पर अपने आपको समर्पण करनेवाली संपत्तियां विचारशील पुरुष का स्वयं वर्णन करती है।इस तथ्य को समझते हुए सुधीजन एवं आर्यपुरुष सोच विचार कर ही किसी कार्य को करते हैं।
  • तात्पर्य यह है कि मन और शरीर में समन्वय जरूरी है।जैसे हमारी सभी अंगुलियां लंबाई में बराबर नहीं होती है किंतु जब वे मुड़ती हैं तो बराबर दिखती हैं। इसी प्रकार हमारे मन तथा शरीर में फर्क होता है परंतु तालमेल बिठा लेते हैं तो हमारे गणित का अध्ययन बहुत आसान व आनंददायक हो जाता है।अब प्रश्न यह है कि मन और शरीर में तालमेल करने के लिए क्या करना चाहिए?इसके लिए अन्य गुणों के साथ मन को एकाग्र करना चाहिए और एकाग्रता के लिए योग-साधना और ध्यान करना चाहिए।
  • सुबह प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर सुखासन में बैठकर भ्रूमध्य (आज्ञाचक्र) में ज्योति स्वरूप प्रकाश,ऊँ अथवा अपने इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए।धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाना चाहिए।दूसरा उपाय यह है कि मन में गलत विचार का चिन्तन नहीं करना चाहिए।यदि गलत विचार आएं तो उनको कंपनी नहीं देनी चाहिए।तीसरा उपाय यह है कि गणित के सवालों तथा समस्याओं को तल्लीन होकर हल करने का प्रयास करना चाहिए।गणित विषय के प्रति सकारात्मक विचार रखना चाहिए ज्यों-ज्यों गणित के सवाल हल होते जाते हैं त्यों-त्यों हमें आनंद की अनुभूति होती है और एकाग्रता सधने लगती है।
  • उपर्युक्त विवरण में गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय (Harmony Knowledge and Practice of Mathematics),गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय के लिए 3 टिप्स (3 Tips for Coordination in Knowledge and Practice of Mathematics) के बारे में बताया गया है।

5.छात्र-छात्राओं के डिग्री प्राप्त करने का रोग (हास्य-व्यंग्य) (A Disease of Students Getting Degree) (Humor-Sattire):

  • हालांकि जगत में अनेक प्रकार के रोग हैं परन्तु डिग्री का सबसे बड़ा रोग है।ओर कोई रोग तो जड़ीबूटियों वगैरह से दूर हो भी जाता है परन्तु इस डिग्री प्राप्त करने का रोग तो मरते दम तक रहता है।अगर मरने के बाद भी पुनर्जन्म लेता है तो यह रोग फिर से लग जाता है।ओर कोई रोग दूर होने पर तन और मन प्रसन्न हो जाते हैं परन्तु यह ऐसा लालीपॉप है कि सांप-छछूंदर की स्थिति हो जाती है।कोई छात्र-छात्रा को डिग्री मिल जाती है तो यह संक्रामक रोग की तरह फैलता है।वह खुद तो ओर डिग्री पाने की लालसा रखता है और अपने मित्रो,साथी-संगियों के यह रोग लगा देता है सो अलग।उनके संगी-साथियों के डिग्री पाने की होड़ लग जाती है।डिग्री न मिले तो छात्र-छात्राओं को चैन (आराम) नहीं मिलता है।न उनको रात में ठीक से नींद आती है और न दिन में चैन मिलता है।
  • यदि कोई विद्या,बल और धन से सम्पन्न हो परन्तु यह डिग्री न हो तो उसकी दुनिया में कोई पूछ नहीं है।डिग्री के बिना न विदेश जा सकते हैं और न कहीं सैर-सपाटा कर सकते हैं।कहीं जाति-बिरादरी और रिश्तेदारी में जाते हैं तो सबसे ज्यादा डिग्री के बारे में पूछते हैं।शादी-ब्याह का रिश्ता करना हो तो सबसे पहले डिग्री पूछते हैं।गोत्र की तरह डिग्री भी एक गोत्र हो गया है।डिग्री (गोत्र) नहीं तो कवांरा ही रहना पड़ेगा।डिग्री के बिना कोई नौकरी पर रखने के लिए तैयार नहीं है।सारे चाल-चलन और चरित्र कितना ही अच्छा हो परन्तु सब डिग्री के सामने फीके ही है।
  • किसी निर्धन के घर में कन्या का जन्म हो गया हो और डिग्री नहीं दिलवा सका तो बेटी को परायी करना मुश्किल है।अब उन छात्र-छात्राओं को कौन समझाएं कि कोई छोटा-मोटा धन्धा कर लो।नौकरी के चक्कर में बूढ़े हो जाओगे।परन्तु डिग्री लेने के बाद वे अब कोई छोटा-मोटा धन्धा करने के लिए तैयार नहीं है।नौकरी भी उनके लायक मिले तभी ही करनी।डिग्री लेने के बाद दिमाग सातवें आसमान पर पहुँच जाता है।नौकरी में चाहे गुलामी करनी पड़े परन्तु वो गुलामी इन युवाओं को नजर ही नहीं आती है।क्योंकि डिग्री ने उनकों बिल्कुल अन्धा कर दिया है।चाणक्य नीति में कहा है कि:.
  • “न पश्यति च जन्मान्ध: कामान्धों नैव पश्यति।
    न पश्यति मदोन्मत्तो ह्यर्थी दोषान् न पश्यति”।।
  • अर्थात् जन्म के अन्धे को दिखाई नहीं देता है, कामान्ध को भी कुछ नहीं दिखता,शराब आदि के कारण उन्मत्त को भी कुछ नहीं सूझता और स्वार्थी अपने काम को सिद्ध करने की धुन में किसी में दोष नहीं देखता।उल्लू को दिन में नहीं दिखाई देता तथा कौए को रात में नहीं दिखता है।परन्तु इनमें कामान्ध ही ऐसा विचित्र प्राणी है जिसे न रात में दिखता है और न दिन में।परन्तु मुझे तो डिग्री पाने के जिसका चस्का लग जाता है वह कामान्ध से भी अधिक अन्धा दिखाई देता है।डिग्री में अन्धे छात्र-छात्राओं का बचपन के बाद बुढ़ापा ही आता है।जवानी आती ही नहीं है।जवानी डिग्री के भेंट चढ़ जाती है।डिग्री पाने की लालसा में धर्म,कर्म,नीति, नियम,सदाचार आदि की जरूरत ही नहीं समझी जाती है।इन गुणों को न तो शादी-ब्याह के लिए देखा और पूछा जाता है,न नौकरी के लिए इन गुणों की पूछ है।डिग्री मिल गई तो मानों भगवान् मिल गए।
  • इस डिग्री का रोग लगाने में अकेले छात्र-छात्राएँ जिम्मेदार नहीं है।बल्कि माता-पिता,शिक्षक, सरकार, समाज तथा तथाकथित प्रबुद्ध लोग भी जिम्मेदार है।केवल डिग्री का उसी तरह उपयोग नहीं है जैसे बकरी के गले में लटके हुए स्तन का कोई उपयोग नहीं है।डिग्री पाना अच्छा है पर वैसे ही जैसे तीर्थाटन के लिए घर के जेवर आदि बेचकर तीर्थयात्रा करना।

6.गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय (Harmony Knowledge and Practice of Mathematics),गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय के लिए 3 टिप्स (3 Tips for Coordination in Knowledge and Practice of Mathematics) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.गणित का ज्ञान क्या है? (What are the knowledge of mathematics?):

उत्तर:गणितीय ज्ञान में गणितीय तथ्यों, अवधारणाओं, प्रक्रियाओं और उनके बीच संबंधों का ज्ञान शामिल है; गणितीय विचारों का प्रतिनिधित्व करने के तरीकों का ज्ञान;और एक विषय के रूप में गणित का ज्ञान – विशेष रूप से, गणितीय ज्ञान कैसे उत्पन्न होता है,इसमें प्रवचन की प्रकृति।

प्रश्न:2.गणित में सबसे महत्वपूर्ण विषय क्या है जो हर बच्चे को सीखना चाहिए? (What is the most important topic in mathematics that every child must learn?):

उत्तर:प्राथमिक विद्यालय के गणित में सबसे मौलिक अवधारणा संख्या की है,विशेष रूप से पूर्ण संख्या की।अवधारणा की कठिनाई और इसमें से कितना मान लिया जाता है,दोनों का बोध प्राप्त करने के लिए,परिभाषित करने का प्रयास करें कि एक पूर्ण संख्या क्या है।

प्रश्न:3.गणितीय ज्ञान कैसे प्राप्त किया जाता है? (How is mathematical knowledge gained?):

उत्तर:दूसरा यह है कि जिस तरह से गणितीय ज्ञान प्राप्त किया जाता है,वह अवधारणाओं के विश्लेषण (analysis) से नहीं,बल्कि उसकी अवधारणाओं के अनुरूप वस्तुओं के संश्लेषण (synthesis) (निर्माण (construction)) के माध्यम से होता है। इसके ज्ञान का आधार सामान्य (औपचारिक(formal)) तर्क (logic) और अनुभवजन्य विज्ञान (empirical sciences) दोनों से अलग है।

प्रश्न:4.पांच प्रमुख गणितीय विकास क्या हैं? (What are the five major mathematical development?):

उत्तर:वे पांच प्रमुख क्षेत्रों पर आधारित थे
(1) प्रतिनिधित्व (Representation), (2) तर्क और सबूत (Reasoning and Proof), (3) संचार (Communication), (4) समस्या समाधान (Problem Solving) और (5) कनेक्शन (Connections)। यदि ये परिचित लगते हैं, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि वे राष्ट्रीय गणित शिक्षक परिषद (एनसीटीएम (NCTM), 2000) से पांच प्रक्रिया मानक हैं।

प्रश्न:5.गणितीय ज्ञान वैज्ञानिक ज्ञान से किस प्रकार भिन्न है? (How does mathematical knowledge differ from scientific knowledge?):

उत्तर:गणितीय ज्ञान तुरंत और स्थायी रूप से जाना जाता है।एक बार प्रमाण दे देने के बाद,यह हमेशा निश्चित होता है।दूसरी ओर,वैज्ञानिक ज्ञान (Scientific knowledge) या वैज्ञानिक सिद्धांत (scientific theories) समय के साथ बदलते हैं।गणित संख्याओं (और संख्या जैसी वस्तुओं) के ब्रह्मांड (universe) की खोज करता है,हमने इसे परिभाषित किया है।

प्रश्न:6.गणितीय ज्ञान के दो प्रकार कौन से हैं? (What are the two types of mathematical knowledge?):

उत्तर:वैचारिक (Conceptual) और प्रक्रियात्मक ज्ञान (Procedural Knowledge):
गणित का मामला।

प्रश्न:7.क्या आप इस बात से सहमत हैं कि गणितीय ज्ञान प्रकृति में पूरी तरह से प्राथमिक है क्यों या क्यों नहीं? (Do you agree that mathematical knowledge is fully priori in nature Why or why not?):

उत्तर:चूँकि संख्याएँ विशुद्ध रूप से काल्पनिक अवधारणाएँ हैं,इसलिए गणित प्राथमिक ज्ञान (priori Knowledge) नहीं हो सकता।गणित एक मानव आविष्कार (invention) है और यह स्वयंसिद्ध (axioms) या मान्यताओं (assumptions) पर आधारित है।

प्रश्न:8.क्या गणित एक वैज्ञानिक ज्ञान है? (Is mathematics A scientific knowledge?):

उत्तर:गणित निश्चित रूप से “व्यवस्थित और सूत्रबद्ध ज्ञान (systematic and formulated knowledge)” के व्यापक अर्थों में एक विज्ञान है, लेकिन अधिकांश लोग “विज्ञान” का उपयोग केवल प्राकृतिक विज्ञान (natural sciences) के संदर्भ में करते हैं।

प्रश्न:9.क्या गणितीय ज्ञान निश्चित है? (Is mathematical knowledge certain?):

उत्तर:गणितीय ज्ञान की निश्चितता अन्य विषयों (disciplines) में ज्ञान की निश्चितता से भिन्न होती है और इसलिए गणित के दर्शन में एक गहन चर्चा का विषय है।दोनों के लिए अच्छे तर्क (arguments) हैं -गणितीय ज्ञान की निश्चितता और अनिश्चितता (certainty and the uncertainty of mathematical knowledge)।

प्रश्न:10.ज्ञान के 7 प्रकार कौन से हैं ? (What are the 7 types of knowledge?),ज्ञान के विभिन्न प्रकार क्या हैं? (What Are The Different Types of Knowledge?):

उत्तर:ज्ञान के प्रकार (Explicit Knowledge)।
स्पष्ट ज्ञान (Tacit knowledge)।
निःशब्द जानकारी (Implicit knowledge)।
निहित ज्ञान (Procedural knowledge)।
प्रक्रियात्मक ज्ञान (Procedural knowledge)।
प्रासंगिक ज्ञान (Contextual knowledge)।
मूर्त ज्ञान (Embodied knowledge)।
विशेषज्ञ ज्ञान (Expert Knowledge)।

प्रश्न:11.ज्ञान के 6 प्रकार क्या हैं? (What are the 6 types of knowledge?):

उत्तर:ज्ञान के प्रकार (ज्ञान के 6 प्रकार)
प्राथमिक ज्ञान (Priori Knowledge)।
पश्च ज्ञान (Posteriori Knowledge)।
प्रस्तावक ज्ञान (Propositional Knowledge)।
गैर-प्रस्तावात्मक ज्ञान (Non-Propositional Knowledge)।
स्पष्ट ज्ञान (Explicit Knowledge)।
निःशब्द जानकारी (Tacit Knowledge)।

प्रश्न:12.क्या गणित ज्ञान का सबसे निश्चित क्षेत्र है? (Is maths the most certain area of knowledge?):

उत्तर:तथ्य यह है कि इसे अक्सर वास्तविक जीवन पर लागू किया जा सकता है,इसका सीधा सा मतलब है कि यह हमारे आसपास की दुनिया के साथ कुछ नियमों को साझा करता है।लेकिन फिर भी,यह निश्चित रूप (definitely) से सबसे निश्चित (certain) नहीं है।हम बुनियादी नियमों को जानते हैं,लेकिन उनके सभी क्रमों (permeations) को नहीं,यही कारण है कि गणितज्ञ गणित के विषय में उत्तर ‘खोज’ कर सकते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय (Harmony Knowledge and Practice of Math),गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय के लिए 3 टिप्स (3 Tips for Coordination in Knowledge and Practice of Mathematics) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Harmony Knowledge and Practice of Math

गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय
(Harmony Knowledge and Practice of Math)

Harmony Knowledge and Practice of Math

गणित के ज्ञान और अभ्यास में समन्वय (Harmony Knowledge and Practice of Mathematics)
से क्रिया में एकता उत्पन्न होती है।गणित विषय के किसी भी टॉपिक को पढ़ते हैं,समझते हैं तथा उसके बारे में चिंतन-मनन करते हैं

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