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Nature of mathematics

1.गणित की प्रकृति का परिचय (Introduction to Nature of mathematics):

  • गणित की प्रकृति (Nature of mathematics) से तात्पर्य यह है कि गणित वस्तुतः संकल्पनाओं तथा गूढ़ विचारों की विषय सामग्री है।इस विषय की प्रकृति अन्य विषयों से से हटकर है।अन्य विषयों थ्योरीटिकल सामग्री की भरमार है जबकि गणित में प्रैक्टिकल विषय की भरमार है।अन्य विषयों में याद करने,समझने तथा मानसिक रूप से अध्ययन की आवश्यकता होती है जबकि गणित विषय को मानसिक रूप से हल करने के साथ-साथ अभ्यास करने की ज्यादा आवश्यकता होती है तभी उसे ठीक से समझा जा सकता है।गणित में एक टाॅपिक दूसरे टाॅपिक से सम्बन्धित होता है इसलिए किसी टाॅपिक को छोड़कर आगे नहीं बढ़ा जा सकता है। इसी गणित की एक शाखा का सम्बन्ध गणित की दूसरी शाखा से होता है।इसलिए अन्य शाखाओं का भी ज्ञान होना आवश्यक है।
  • यदि आपको जोड़,गुणा,भाग,बाकी,भिन्नों के जोड़,गुणा,बाकी,भाग का ज्ञान नहीं है तो आप लम्बाई,क्षेत्रफल,आयतन आदि से सम्बन्धित समस्याओं को हल नहीं कर सकते हैं।जबकि अन्य विषयों में ऐसी स्थिति नहीं है।जैसे हिन्दी में आप कबीरदास जी के पाठ को छोड़कर सूरदास जी के टाॅपिक को आसानी से पढ़ सकते हैं।
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2.गणित की प्रकृति (Nature of mathematics):

  • (1.) गणित की विषयवस्तु विज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र, भूगोल, हिन्दी, अँग्रेजी, राजनीतिशास्त्र इत्यादि विषयों से भिन्न है ।अन्य विषयों की विषयवस्तु जीवन के अनुभवों से सीधी सम्बन्धित रहती है जबकि गणित की विषयवस्तु अन्य विषयों की तरह जीवन के अनुभवों से सीधी सम्बन्धित नहीं रहती है।
  • (2.)जीवन के अनुभवों से सीधी सम्बन्धित होने के कारण अन्य विषयों की विषयवस्तु आपस में सम्बन्धित नहीं रहती है जबकि गणित की विषयवस्तु आपस में सम्बन्धित रहती है ।जैसे यदि आपको जोड़, बाकी, गुणा, भाग का ज्ञान नहीं है तो हम लम्बाई, क्षेत्रफल, आयतन आदि से सम्बंधित समस्याओं को हल नहीं कर सकते हैं ।परन्तु जैसे हिन्दी में कबीर से सम्बंधित विषयवस्तु समझ नहीं आई तो हम रसखान की विषयवस्तु को समझ सकते हैं।
  • (3.)गणित की भाषा अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है अर्थात् इसमें प्रयोग किए जाने वाले सूत्र, संकेत एवं सिद्धान्तों को विश्व के सभी विद्यालय, महाविद्यालय में लगभग समान है ।गणित के विकास में विश्व के सभी देशों के गणितज्ञों का योगदान है जबकि भूगोल की विषयवस्तु प्रत्येक देश की अलग-अलग है।
  • (4.)गणित में निरीक्षण तथा ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से नए-नए सिद्धान्तों, प्रमेयों तथा संकल्पनाओं की खोज की जाती है ।
  • (5.)गणित में आगमन – निगमन, संश्लेषण-विश्लेषण, अनुसंधान विधि, प्रयोगशाला विधि तथा समस्या निवारण विधि का प्रयोग करके विभिन्न सिद्धान्तों, प्रमेयों तथा समस्याओं का हल ज्ञात किया जाता है।
  • (6.)गणित अन्य विषयों की तुलना में जटिल विषय है अतः शिक्षक तथा मार्गदर्शक की सहायता के बिना सीखना तथा प्रश्नों को हल करना कठिन है ।जो विद्यार्थी गणित के कालांश में अनुपस्थित रहते हैं उनके छूटे हुए टाॅपिक विद्यार्थी के लिए स्वयं हल करना कठिन है ।
  • (7.)गणित में अभ्यास कार्य देकर विद्यार्थियों के समक्ष समस्याएं प्रस्तुत की जाती हैं जिनको विद्यार्थी समस्या समाधान विधि द्वारा हल करने का प्रयास करते हैं तथा जिन प्रश्नों व समस्याओं को हल नहीं कर पाते हैं उनको शिक्षक की सहायता से हल करते हैं ।
  • (8.)गणित में निश्चित नियम व सिद्धान्त होते हैं ।ये नियम तथा सिद्धान्त तर्कसंगत होते हैं जिनका बुद्धि व तर्क द्वारा हल किया जा सकता है ।
  • (9.)यदि विद्यार्थी सतत, नियमित तथा कठिन परिश्रम करे तो गणित की समस्याएं सरल व रूचिकर लगने लगती है ।लेकिन जो विद्यार्थी केवल परीक्षा के समय तैयारी करके उत्तीर्ण होना चाहते हैं उनके लिए यह विषय कठिन होता जाता है ।
  • (10.)गणित की जटिल समस्याओं को तत्काल साथी विद्यार्थी या शिक्षक की सहायता से हल कर लेना चाहिए अन्यथा आगे गणित की विषयवस्तु बहुत कठिन हो जाती है जिनको सरल करना अत्यन्त कठिन हो जाता है।
  • (11.)अच्छे व सफल अध्यापक अपने विद्यार्थियों को सक्रिय रखते हैं तथा विद्यार्थियों को आगे बढ़ने के टिप्स देते रहते हैं ।उनके विद्यार्थी मेधावी तथा प्रवीण हो जाते हैं ।ऐसे विद्यार्थी अपने शिक्षक, परिवार, विद्यालय तथा देश का यश बढ़ाते हैं ।
  • (12.)भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान की तरह गणित की प्रयोगशाला नहीं होती है इसलिए यह नीरस विषय लगता है ।परन्तु यदि इसे रुचिकर बनाना हो तो चित्र, माॅडल, चार्टस आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • (13.)वर्तमान युग विज्ञान का युग है तथा विज्ञान में नये-नये आविष्कारों एवं खोजों में प्रगति में गणित का विशेष योगदान है ।
  • (14.)नवीन गणित के आविष्कार ने गणित क विभिन्न शाखाओं के एकीकरण में बहुत योगदान दिया है ।गणित के विभिन्न विषय जैसे समुच्चय, असमिकायें, फलन आदि ने गणित की नई संकल्पनाओं को जन्म दिया है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित की प्रकृति (Nature of mathematics) के बारे में बताया गया है।
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