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8 Best Personality Development Tips

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1.व्यक्तित्व विकास की 8 बेहतरीन टिप्स (8 Best Personality Development Tips),व्यक्तित्त्व विकास की व्यावहारिक 8 टिप्स (Practical 8 Tips for Personality Development):

  • व्यक्तित्व विकास की 8 बेहतरीन टिप्स (8 Best Personality Development Tips) के आधार पर आप अपने आपको आकर्षक बना सकते हैं।व्यक्तित्त्व से हमारे विशिष्ट गुणों का पता चलता है।समृद्ध एवं श्रेष्ठ व्यक्तित्त्व ही किसी छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति की असली संपदा है और यह संपदा हमारे द्वारा जीवन में छोटी-छोटी बातों तथा अनुशासन का पालन करने से प्राप्त होती है।जिसके पास यह संपदा जितनी अधिक होगी,वह उतना ही व्यवहार कुशल व सफल व्यक्तित्त्व का धनी होगा।
  • छोटी-छोटी बातों का पालन न करने,व्यवहार कुशल न होने,सफल व्यक्तित्त्व ना होने पर ऐसे व्यक्ति को कंगाल ही समझा जाएगा भले ही उसके पास कितनी ही धन-दौलत व संपत्ति का अंबार हो।व्यक्ति के उत्कृष्ट व्यक्तित्त्व के कारण ही वह लोकप्रिय होता है यह बात छात्र-छात्राओं,युवाओं तथा हर व्यक्ति पर लागू होती है क्योंकि सभी का बाह्य जीवन व्यावहारिक पृष्ठभूमि में पलता-बढ़ता,विकसित होता है।इसी में आंतरिक जीवन के बंद कपाट खुलते हैं।इस आर्टिकल में कुछ ऐसे ही व्यावहारिक सूत्रों का उल्लेख है जिसके आधार पर जीवन सफलता की ओर,समृद्धि की ओर अग्रसर होने लगता है।
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2.वचनबद्ध होना (To Promise):

  • हमारा जीवन का व्यवहार आपसी विश्वास पर टिका हुआ है और इस विश्वास को प्राप्त करने के लिए हमें खरा रहना अनिवार्य है।जैसे छात्र-छात्राएं शिक्षक से वायदा करते हैं कि वह गृहकार्य करके लाएगा,अमुक पाठ याद करके आएगा,समय पर कक्षा में उपस्थित रहेगा आदि और अपने द्वारा किए गए इन वचनों का पालन करता है तो उसके प्रति शिक्षक का विश्वास बढ़ता जाता है।
  • हम स्वयं से भी कई बड़े-बड़े वायदे करते हैं परंतु जब उनका पालन करने का समय आता है तो हम मुकर जाते हैं।जैसे आपने वायदा किया कि मैं गणित की पांच प्रश्नावलियों के सवाल आज हल कर लूंगा परंतु ज्योंही कोई कठिनाई आती है अथवा कोई प्रलोभन आ जाता है (टीवी,सिनेमा आदि देखने) तो किए हुए वायदे को भूल जाते हैं।इस प्रकार किए गए वायदों से न तो आपका अपने आप पर विश्वास होता है और जब दूसरों के साथ भी ऐसा ही करते हैं तो न दूसरे हमारे पर विश्वास करते हैं।
  • जैसे आप अपने मित्र को गणित की कोई प्रश्नावली समझाने के लिए समय दे देते हैं और आप उस तय समय पर नहीं मिलते हैं तो आपकी विश्वसनीयता खत्म हो जाती है।यदि किसी बहुत ही आवश्यक कार्य से आप तय समय पर नहीं मिलते हैं तो जब भी मिले तो बड़ी विनम्रतापूर्वक क्षमायाचना मांग लेनी चाहिए।
    तात्पर्य यह है कि अपने दैनिक जीवन में छोटी-छोटी बातों का पालन करें,उस पर खरे उतरें।इसी से विश्वास पैदा होता है और विश्वसनीयता का आधार तय होता है।

3.हमेशा श्रेष्ठ कार्य करें (Always Do the Best Work):

  • विश्वसनीयता से हमारा जीवन गतिशील होता है, प्रगतिशील होता है।गतिशील जीवन के कुछ क्षण,व्यक्ति एवं बातें स्थान,वस्तु ऐसी होती हैं जो हमें अनायास अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं।
  • छात्र-छात्राएं प्रतिदिन कुछ काम ऐसा कर सकते हैं।जैसे निश्चल मुस्कराना,अपने सहपाठी किसी विषय में कठिनाई महसूस करते हैं तो उनको हल करने में सहयोग करना,कोई विद्यार्थी तनावग्रस्त है तो उसे आत्मीयतापूर्वक बात करना आदि इस प्रकार ढेरों ऐसी बातें हैं जिनसे अपनापन महसूस होता है और आपको आंतरिक संतोष तथा तृप्ति का अनुभव होता है।इससे आपका व्यक्तित्त्व निखरता है।
  • अतः प्रतिदिन ऐसा श्रेष्ठ कार्य,सहायता-सहयोग,परोपकार का कार्य अवश्य करना चाहिए।इससे न केवल आपको आत्मिक संतोष व तृप्ति का एहसास होता है बल्कि अन्य छात्र-छात्राओं तथा व्यक्ति की नजरों में भी आपका कद बढ़ जाता है,आपके प्रति आदर का भाव विकसित होता है।

4.विश्वासपात्र बनना (Becoming a Confidant):

  • अपने सहपाठियों की मदद करना,अन्य व्यक्तियों की सहायता-सहयोग करने पर परायों को भी अपना बनाया जा सकता है।दूसरे विद्यार्थियों के कष्ट,कठिनाइयों व दुःख-तकलीफों को दूर करने का प्रयास करना तथा उनके सफल होने,अच्छे अंक प्राप्त करने,आगे बढ़ने पर प्रसन्न व सुखी होने पर ऐसा विद्यार्थी सबका चहेता बन जाता है।
  • ऐसे विद्यार्थी काल्पनिक उड़ानों,बड़ी-बड़ी बातों में,हवाई किले बनाने,दूसरों को मूर्ख बनाने में नहीं,कुछ करने में विश्वास रखते हैं।सदा दूसरों का भला चाहने वाले विद्यार्थियों के पास यों ही व्यर्थ समय गँवाने के लिए नहीं होता।
  • अच्छे विद्यार्थी दूसरे विद्यार्थियों की कमी जानने,दोषों को जानने,अपना उल्लू सीधा करने तथा अपना ही स्वार्थ सिद्ध करने में दिलचस्पी नहीं लेते हैं।यदि दूसरों की कमियां,दोष आदि पता भी हैं तो उन रहस्यों को ना तो किसी के सामने उजागर करते हैं और न ही अपने लिए इस्तेमाल करते हैं बल्कि उनका समुचित सम्मान के साथ रक्षा करते हैं।
  • अतः जीवन में इन विशेषताओं का समावेश करने पर विश्वासपात्र बनते हैं,भरोसेमंद बनते हैं।यह पात्रता हमारे जीवन के विकास एवं प्रगति में अत्यंत सहायक होती है।

5.वाचाल ना होना (Lack of Speech):

  • जो छात्र-छात्राए अथवा व्यक्ति अपना ही बखान करता रहता है तथा दूसरों को बोलने का मौका नहीं देता है और उनकी बातों को नहीं सुनता है,वह वाचाल होता है।ऐसे व्यक्ति से लोग धीरे-धीरे कन्नी काटने लगते हैं।यदि आपमें वास्तव में गुण हैं भी तो भी अपना बखान करने से बचना चाहिए तथा दूसरों की बातों को भी रुचिपूर्वक सुनना चाहिए।
  • दूसरों के दुःख-दर्द को सुनना चाहिए तथा यदि आप समर्थ हैं तो आवश्यक सहयोग करना चाहिए।
  • उसे सुनना चाहिए जो अपनी गहन पीड़ा से पीड़ित है तथा अपनी व्यथा को सुनाना चाहता है,ताकि कहकर हल्का हो सके।
  • हमें सीमित तथा सारगर्भित संवेदना के दो शब्द देने में विश्वास रखना चाहिए,जिससे हमारे जीवन के विकल व्यथा तथा असह्य दर्द के क्षणों में भी परमात्मा की कृपा प्राप्त हो सके।यह तय है कि सदा दूसरों की सुनने वाले की भगवान अवश्य सुनता है।

6.अपनी गलती स्वीकार करना (Admitting Your Mistake):

  • हमारे कर्मों से,व्यवहार-आचरण से यदि औरों को कष्ट होता है तो उसके लिए विनम्रतापूर्वक क्षमायाचना कर लेनी चाहिए साथ ही दूसरों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार,दुराचरण,अभद्रता को सहजतापूर्वक क्षमा कर देनी चाहिए।अपनी भूलों,कमियों में आगे के लिए सुधार कर लेना चाहिए तभी यह समझा जाएगा कि आपने वाकई क्षमायाचना मांगी है।
  • यदि दूसरों की गलतियों,त्रुटियों,दोषों,भूलों को हम क्षमा नहीं कर सकते हैं तो हम यह कैसे आशा कर सकते हैं कि हमारी भूलों,त्रुटियों के लिए दूसरे हमें क्षमा कर दें,भगवान हमें माफ कर दें।वस्तुतः इंसान गलतियों का पुतला है।जाने-अनजाने भूल हो जाया करती हैं,यहां तक कि अत्यधिक सावधान रहने पर भी हमसे कोई-ना-कोई भूल या त्रुटि हो जाती है।अतः दूसरों की त्रुटियां क्षम्य है परंतु अपनी त्रुटियों में सुधार कर लेना चाहिए तथा वैसी त्रुटि पुनः नहीं करनी चाहिए।
  • सदैव अच्छे,शुभ व नेक कार्यों को भगवान को समर्पित कर देना चाहिए तथा गलती ना हो इसके लिए सजग,जागरूक व सचेत रहना चाहिए।इस भाव में अंतर की हठीली आग्रह-दुराग्रहपूर्ण वृत्तियाँ कटती-मिटती हैं तथा मनुष्य सरल व विनम्र बनता चला जाता है।

7.विवेकपूर्वक कार्य करें (Act Judiciously):

  • किसी भी कार्य में दुविधा हो तो उस पर विवेकपूर्वक विचार करके निर्णय लेना चाहिए।परंतु विवेक का सही उपयोग वही कर सकता है जो विनम्र,सुपात्र और विश्वसनीय होता है।ऐसे व्यक्ति का विवेक जागृत रहता है।वह सही-गलत,उचित-अनुचित,शुभ-अशुभ,न्याय-अन्याय,भला-बुरा आदि को ठीक-ठीक जान-समझ लेता है और उचित व सही तथा शुभ कार्य ही करता है।
  • ऐसे छात्र-छात्राएं तथा व्यक्ति जीवन में अच्छाई व उत्कृष्ट की इच्छा करता है,उच्चस्तरीय अभीप्सा रखता है।जीवन में सत्कर्म,सद्व्यवहार और सद्आदर्श को सर्वोपरि मानता है।वहीं इसका इष्ट और लक्ष्य होता है और हो भी क्यों न,क्योंकि आदर्शों का समुच्चय ही तो भगवान है।
  • अतः वह सतत दूसरों का भला करते हुए,सहायता-सहयोग करते हुए भी उनसे कोई भी,किसी भी प्रकार की अपेक्षा नहीं रखता।वह अपने ही बनाए दिव्य आदर्शों पर खरा उतरने की प्रबल आकांक्षा रखता है।

8.आत्मविश्वास व्यक्तित्त्व विकास का आधार (Self-confidence is the Basis of Personality Development):

  • आत्म-विश्वास हमारे व्यक्तित्त्व की एक ऐसी विभूति है,जो आश्चर्यजनक ढंग से हमसे बड़े से बड़े और महान् कार्य करा लेती है।जीवन में विश्वास के तीन रूप हैं:विश्वास,आत्मविश्वास और भगवद विश्वास।यों ये अलग-अलग दिखाई देते हैं परंतु आपस में एक-दूसरे में गुँथे हुए हैं।विश्वास दूसरों पर,आत्मविश्वास स्वयं पर तथा भगवद विश्वास संपूर्ण सृष्टि व चराचर जगत पर किया जाता है।
  • आत्म-विश्वास यों ही पैदा नहीं हो सकता है।विचार और भाव की ऊर्जा जहां केंद्रित और सघन हो जाती है तो वहां आत्म-विश्वास पैदा होता है।ऐसा विश्वास अत्यंत दृढ़,अविचल एवं अडिग होता है।यह डिगता नहीं,क्योंकि विचारों की ऊर्जा कम्पित नहीं होती है और न ही भाव उद्वेलित होते हैं।दोनों की स्थिरता एवं सघनता एक ऐसे विश्वास को जन्म देती है,जो किन्हीं भी परिस्थितियों में,किसी भी अवस्था में और कैसी भी चुनौती में विचलित नहीं होता।ऐसा विश्वास यदि परमपिता परमात्मा के पावन चरणों में निछावर हो जाए तो व्यक्ति स्वयं को बलिदान कर देता है,अपने विश्वास को नहीं।
  • आत्म-विश्वास वो नहीं,जो किसी भी आघात से टूटने-बिखरने लगे।आत्म-विश्वास उस टिमटिमाते दीपक की लौ नहीं है,जो फूंक मारने से भी कम्पित हो जाए; बल्कि वह तो ऐसा दावानल है,जो आंधी और तूफान से बुझने के बजाय ओर भी प्रज्वलित हो उठता है।आत्म-विश्वास की प्रबलता एवं दृढ़ता की विपरीतताओं और चुनौतियों में ही परीक्षा होती है।
  • सुदृढ़ आत्म-विश्वासी किसी भी चुनौती से घबराता नहीं,बल्कि उससे पार पाने के लिए अपनी राह निकालकर आगे अग्रसर हो जाता है।आत्मविश्वास यदि प्रबल एवं प्रखर हो तो भय-भ्रम;शंका-कुशंका,संदेह-संशय आदि नहीं होते हैं।ये सारी बातें तो आत्म-विश्वास की कमी के कारण पैदा होती हैं और मन एवं हृदय को खोखला कर देती है।खोखले मन एवं हृदय के अंदर प्रखर आत्म-विश्वास का निवास संभव नहीं है,यह दृढ़ मन एवं स्थिर संवेदनशील हृदय में निवास करता है।जब मन एवं हृदय स्थिर,शांत एवं संतुलित होते हैं,तब ही प्रबल आत्म-विश्वास का दिग्दर्शन होता है,जो कभी भी डिगता नहीं हैं,हिलता नहीं है।
  • आत्म-विश्वास का धनी किसी भी भीषण एवं भयावह परिस्थितियों से भयभीत नहीं होता।भगवान पर विश्वास करके संसार के किसी भी भय एवं प्रलोभन से विचलित नहीं होता है।संसार में विश्वास को डिगाने के लिए दो चीजें होती हैं;मनुष्य या तो भय से विश्वास खोता है या लोभ से विचलित होता है।ऐसा विश्वास अत्यंत दुर्बल एवं अशक्त होता है।संसार भय बनाकर विश्वास तोड़ता है और यदि कोई भयभीत नहीं होता है तो यह प्रलोभन के दृश्य दिखाकर उसे डिगाने का प्रयास करता है।वह विश्वास ही कैसा,जो भय से भयभीत हो जाए और लोभ से विचलित हो उठे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में व्यक्तित्व विकास की 8 बेहतरीन टिप्स (8 Best Personality Development Tips),व्यक्तित्त्व विकास की व्यावहारिक 8 टिप्स (Practical 8 Tips for Personality Development) के बारे में बताया गया है।

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9.दो मूर्ख की बातचीत (हास्य-व्यंग्य) (The Conversation of Two Fools) (Humour-Satire):

  • दो मूर्ख बैठे थे।
  • पहला बोला:अगर कोई मोटा छात्र वृक्ष पर चढ़ जाए और नीचे उतरना चाहे तो उसे क्या करना चाहिए?
  • दूसरा बोला:उसे वृक्ष के किसी पत्ते पर बैठकर पतझड़ का इंतजार करना चाहिए।

10.व्यक्तित्व विकास की 8 बेहतरीन टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 8 Best Personality Development Tips),व्यक्तित्त्व विकास की व्यावहारिक 8 टिप्स (Practical 8 Tips for Personality Development) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.व्यक्तित्व विकास की समीक्षात्मक टिप्पणी लिखें। (Write a Critical Note on Personality Development):

उत्तर:व्यक्तित्व विकास की टिप्स से न केवल जीवन का व्यवहार पक्ष परिष्कृत होता है,समृद्ध होता है,बल्कि आंतरिक जीवन की अनंत संपदा के द्वार भी खुलने लगते हैं।हमें इन दिव्य सूत्रों को अपने चिंतन,चरित्र और आचरण में उतारना चाहिए,क्योंकि सूत्रों में ही शास्त्रों का मर्म छिपा हुआ रहता है।इन सूत्रों को हृदयंगम कर हमारा जीवन भी शास्त्र बने,जिससे हम स्वयं प्रकाशित हों,औरों को भी आलोकित कर सकें।इसे अपनाकर प्रसन्न-प्रफुल्लित हों तथा दूसरों को भी खुशी बांट सकें।

प्रश्न:2.क्या आत्म-विश्वास से मंजिल की दूरी कम होती है? (Does Self-confidence Reduce the Distance to the Destination?):

उत्तर:आत्म-विश्वास यात्रा को आगे बढ़ने में सहायता करता है और हमारी मंजिल की दूरी को कम कर देता है।भगवान पर विश्वास करने वाले कभी भी और किन्हीं भी चीजों से विचलित नहीं होते।
भगवान के प्रति विश्वास रखने वाले संसार से एवं इसके किसी भी आकर्षण एवं भय से परेशान नहीं होते।किसी भी स्थिति-परिस्थिति में आत्म-विश्वासी का विश्वास डोलता-डगमगाता नहीं है।अतः हमें भी अपने विश्वास को दृढ़ एवं मजबूत बनाए रखना चाहिए ताकि हम सदाचरण एवं सत्कर्म करते रह सकें;क्योंकि भगवद् विश्वास ही जीवन के विकास का आधार है।

प्रश्न:3.व्यक्तित्व विकास एक-दो सूत्रों से हो सकता है या नहीं। (Personality Development Can Happen From One or Two Points or Not):

उत्तर:व्यक्तित्व विकास का अर्थ है व्यक्ति या छात्र-छात्राओं के बाह्य और आंतरिक गुणों का विकास (संपूर्ण विकास)।एक-दो गुणों,टिप्स या सूत्रों को व्यक्तित्त्व विकास की शुरुआत करने में तो सहूलियत होती है परंतु व्यक्तित्त्व का संपूर्ण विकास अनेक गुणों का विकास करने पर ही संभव होता है।व्यक्तित्त्व हमारी विशिष्ट पहचान बनाता है और हमें लोगों से हटकर एक विशिष्ट ढांचा प्रदान करता है।इसलिए हमें व्यक्तित्त्व विकास पर सदैव सचेष्ट,सजग और जागरूक रहना चाहिए।अपने बाह्य और आंतरिक गुणों की पहचान करके उन्हें विकसित करने,उभारने,निखारने का प्रयत्न करते रहना चाहिए।व्यक्तित्त्व का विकास आजीवन चलता रहता है इसलिए किसी भी स्थिति में इसमें ठहराव नहीं आना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा व्यक्तित्व विकास की 8 बेहतरीन टिप्स (8 Best Personality Development Tips),व्यक्तित्त्व विकास की व्यावहारिक 8 टिप्स (Practical 8 Tips for Personality Development) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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