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7Tips to Develop Effective Personality

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1 1.प्रभावी व्यक्तित्व विकसित करने की 7 युक्तियाँ (7Tips to Develop Effective Personality),प्रभावी व्यक्तित्त्व को विकसित करने की 7 टाॅप रणनीतियाँ (7 Top Strategies to Develop Effective Personality):

1.प्रभावी व्यक्तित्व विकसित करने की 7 युक्तियाँ (7Tips to Develop Effective Personality),प्रभावी व्यक्तित्त्व को विकसित करने की 7 टाॅप रणनीतियाँ (7 Top Strategies to Develop Effective Personality):

  • प्रभावी व्यक्तित्व विकसित करने की 7 युक्तियाँ (7Tips to Develop Effective Personality) जॉब के लिए साक्षात्कार,जॉब में सफलता,परीक्षा में सफलता अर्जित करने के लिए बेहतरीन साबित हो सकती है।व्यक्ति का वास्तविक अस्तित्व उसके ‘व्यक्तित्व’ (Personality) में सन्निहित है।व्यक्तित्व-भेद के कारण ही व्यक्ति-व्यक्ति में अंतर परिलक्षित होता है।जुड़वाँ बच्चों में भी बहुत कुछ शारीरिक एवं मानसिक साम्यता दृष्टिगोचर होती है,परंतु व्यक्तित्व में पूर्ण एकरूपता दिखाई नहीं देती है।विभिन्न दशाओं में व्यक्ति जिस रूप में अपने को प्रस्तुत करता है तथा जिस अपूर्व अथवा विशिष्ट शैली में अन्य व्यक्तियों से व्यवहार (Interaction) करता है,उसे ही उसका व्यक्तित्व कहते हैं।
  • वस्तुतः व्यक्ति अपनी ‘वैयक्तिकता’ (Individuality) के कारण ही अन्य व्यक्तियों से पृथक एवं विशिष्ट होता है।यह वैयक्तिकता ही व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित करती है।
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2.व्यक्तित्व की छाप अमिट होती है (The Imprint of Personality is Indelible):

  • व्यक्ति नश्वर है।उसका पांच तत्वों में विलीन होना अपरिहार्य है,परंतु ‘व्यक्तित्व’ अजर तथा अमर है जिसकी छाप अमिट होती है।अपने आकर्षक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण महापुरुषों ने गौरवमयी इतिहास में अपना नाम सर्वदा के लिए अंकित करा लिया है।संतुलित एवं प्रभावपूर्ण व्यक्तित्व के कारण ही गांधीजी महान आत्माओं (महात्मा) की श्रेणी में सम्मिलित होकर अनंत काल के लिए अमर हो गए।पटेल का दृढ़,समन्वित एवं प्रभावी व्यक्तित्व ही रहा,जिसने उन्हें ‘लौह पुरुष’ की संज्ञा से सुशोभित कर दिया।अद्वितीय संगठन-शक्ति,साहस तथा शूरता के प्रतीक सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व की छाप भारतवासियों के मानस-पटल पर अब भी अविच्छिन्न रूप में अंकित है।
  • महान गणितज्ञ महावीराचार्य एवं ब्रह्मगुप्त की कर्मठता,दृढ़ संकल्प की कथा आज भी कही जाती है।सत्य तथा अहिंसा के अग्रदूत गौतम बुद्ध,महावीर स्वामी इत्यादि का ‘व्यक्तित्व’ ही तो था जिसने विश्व के असंख्य लोगों पर ऐसी छाप छोड़ी कि उससे अनुप्राणित होकर करोड़ों जन आज भी उनके सिद्धांतों को साकार कर रहे हैं।विश्व विख्यात साहित्यकार कालिदास,शेक्सपियर,टैगोर आदि के व्यक्तित्व ने ही उन्हें अमरता प्रदान की है।भारत के स्वतंत्रता सेनानी भगतसिंह अपने अद्वितीय एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण ही शहीदे आजम की उपाधि से अलंकृत हुए।

3.प्रभावशाली व्यक्तित्व-विकास संभव है? (Influential Personality Development is Possible):

  • कुछ लोगों की धारणा है कि प्रभावी व्यक्तित्व (Effective Personality) स्वाभाविक अथवा भगवद् शक्ति की देन है तथा कुछ व्यक्ति प्रभावशाली व्यक्तित्व को पारिवारिक पृष्ठभूमि,आर्थिक स्थिति इत्यादि का प्रतिफल मानते हैं।इन लोगों की अवधारणा है कि व्यक्तित्व की प्रभावशीलता में स्वयं व्यक्ति का विशेष योगदान नहीं होता है,जबकि विद्वानों ने अपने गहन अध्ययनों तथा सूक्ष्म पर्यवेक्षणों के आधार पर स्पष्ट उल्लेख किया है कि व्यक्तित्व का वांछित विकास संभव है।व्यक्तित्व को शारीरिक विकलांगता तथा अभावों की दीवारें नहीं रोक पाती हैं,निर्धनता एवं अभावों के परिवेश में भी दृढ़,आत्मविश्वासी,परिश्रमी तथा संयमी व्यक्ति का व्यक्तित्व निखरा करता है तथा सफलता के सर्वोत्कर्ष सोपान पर पहुंचता है।प्रभावी व्यक्तित्व किसी परिवार या स्थान विशेष की धरोहर नहीं है।वास्तव में,यह ऐसा सुमन है जो कहीं भी पुष्पित होकर अपनी सुगंध से संपूर्ण पर्यावरण को सुवासित कर सकता है।
  • व्यवस्थित-विकास को निश्चित रूप से बहुत कुछ प्रभावी बनाया जा सकता है।आवश्यकता है:व्यक्तित्व में आत्मविश्वास,निर्णय-शक्ति,नियंत्रण,मनःसंतुलन तथा समायोजन सामर्थ्य की।किसी विद्वान ने कहा है कि संतुलित एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के लिए व्यक्ति में कर्मठता,मन में आशा-विश्वास,लक्ष्य में लगनशीलता तथा संयम ज्ञान-प्रकाश होना चाहिए।
  • संक्षेप में,कहा जा सकता है कि आपका व्यक्तित्व-विकास भाग्य अथवा अन्य बाह्य कारकों पर निर्भर न करके स्वयं आप पर आधारित है।आपके निरंतर प्रयास द्वारा व्यक्तित्व का बहुत-सीमा तक वांछित विकास हो सकता है।
  • प्रभावी व्यक्तित्व-विकास के विवेचन से पूर्व ‘व्यक्तित्व’ के स्वरूप (Nature) का वर्णन प्रासंगिक है,अतः सर्वप्रथम व्यक्तित्व की संकल्पना को प्रस्तुत किया जा रहा है।

4.व्यक्तित्व का शाब्दिक विश्लेषण (Literal Analysis of Personality):

  • ‘व्यक्तित्व’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘पर्सनेलिटी’ (Personality) शब्द का हिंदी रूपांतरण है।पर्सनालिटी की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘परसोना’ (Persona) शब्द से हुई है जिसका तात्पर्य ‘मुखौटा’ (Mask) से है जिसे विशेषतः यूनानी नाटकों में अभिनय करते समय अभिनेता अपने चेहरे पर लगाते थे।प्रसिद्ध विद्वान सिसरो (Cicero) ने मुखोटे शब्द का प्रयोग निम्नलिखित अर्थों में किया हैः
  • (1.)एक व्यक्ति दूसरे के सम्मुख जैसा प्रतीत होता है, वास्तव में वह वैसा नहीं है।
    (2.)किसी व्यक्ति के जीवन का कार्य उसके व्यक्तित्व का परिचायक हो।
    (3.)व्यक्तित्व गुणों का वह समूह जो किसी व्यक्ति तथा उसके कार्य को ध्यानगत करते हुए निर्धारित किया जा सकता है।
    (4.)महत्ता तथा गौरव के रूप में,परसोना अथवा मुखौटा मुख्यतः वास्तविकता को ढकने,बाह्य प्रदर्शन (External Appearance) या मिथ्या-आभास (False Appearance) को इंगित करता है।इस प्रकार प्रारंभ में ‘पर्सनालिटी’ शब्द की उत्पत्ति के आधार पर इसे बाह्य अथवा मिथ्या-आभास समझा गया जो कि अपूर्ण एवं नितांत अनुचित ही कहा जा सकता है।
  • वास्तव में यह अवधारणा अथवा व्याख्या न केवल ‘सतही दृष्टिकोण’ (Surface view) है,बल्कि व्यक्तित्व की वास्तविक संकल्पना के विपरीत भी है,क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण व्यक्तित्व को व्यक्ति का बाह्य प्रदर्शन अथवा छद्म (झूठ) आभास न मानकर ‘यथार्थ प्रतिबिंब’ (Real Reflection) स्वीकार करता है।

5.व्यक्तित्व के अनेक दृष्टिकोण (Multiple Perspectives of Personality):

  • मानव प्रकृति का अध्ययन एवं विवेचन करने वाले शास्त्रों ने व्यक्तित्व की विभिन्न रूपों में व्याख्या की है। आत्म का अध्ययन करने वाले दर्शनशास्त्रियों,सामाजिक चिंतन करने वाले समाजशास्त्रियों तथा मानव के वैयक्तिक व्यवहार का सूक्ष्म अध्ययन करने वाले मनोवैज्ञानिकों की व्यक्तित्व के स्वरूप के संदर्भ में विभिन्न धारणाएं हैं।कुछ महत्वपूर्ण दृष्टिकोणों को प्रसंगतः प्रस्तुत किया जा रहा है:

(1.)दार्शनिक दृष्टिकोण (Philosophical Approach):

  • दार्शनिकों एवं आध्यात्मिक चिंतकों ने ‘आत्म-ज्ञान’ के रूप में व्यक्तित्व की व्याख्या की है।इनके अनुसार व्यक्तित्व उसे कहते हैं जिसमें व्यक्ति आत्म-ज्ञान रखता है।इस प्रकार दार्शनिकों ने व्यक्तित्व को आत्म-ज्ञान अर्थात् आत्म के विषय में अधिकतम एवं गहनतम ज्ञान का समग्र पुंज स्वीकार किया है।संतुलित व्यक्तित्व के विकास हेतु यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपने आत्म-स्वरूप (आध्यात्मिक स्वरूप) को भलीभाँति जानता हो।वास्तव में,जो व्यक्ति अपने आत्मा के यथार्थ स्वरूप को जितना ही अधिक समझ पाता है,उसके व्यक्तित्व एवं आध्यात्मिक पक्ष पर विकास उतना ही अधिक होता है।आत्म-ज्ञान ही जीवन का चरम उद्देश्य है।”वृहदारण्यक” में भी कहा गया है:
  • आत्मा वा अरे दृष्टव्य श्रोतव्यो एवं मन्तव्यो निदिध्यासितव्य:
    आत्मा वा अरे दर्शनेन,श्रवनेन मत्याविज्ञानेन सर्वविज्ञात भवति।
  • अर्थात् आत्मा ही देखने योग्य है,मनन करने,अरे आत्मा के ही दर्शन,श्रवण,मनन तथा ज्ञान से सब कुछ ज्ञात होता है।
    सुप्रसिद्ध भारतीय चिन्तक श्री अरविंद का मंतव्य है कि व्यक्ति को अपनी भौतिक सत्ता से ऊपर उठकर प्राणिक सत्ता तथा प्राणिक सत्ता से उठकर उसे अपनी मानसिक सत्ता का बोध करना पड़ता है तथा आगे अत्यधिक साधना द्वारा उसे अपने हृदय की गहराई में जाकर चैत्य पुरुष को प्राप्त करना होता है जिसके द्वारा वह सभी प्रकार के विकारों या द्वन्द्वों से मुक्त हो जाता है।

(2.)समाजशास्त्रीय संकल्पना (Sociological Approach):

  • समाजशास्त्रियों ने व्यक्तित्व को उन विशेषताओं अथवा शक्तियों का पुंज/समग्र माना है जिसके द्वारा उसे समाज में निश्चित पद एवं भूमिका (Role) प्राप्त होती है तथा वह समाज में प्रभावशाली ढंग से समायोजित होता है।

(3.)मनोवैज्ञानिक मंतव्य (Psychological Considerations):

  • ‘व्यक्तित्त्व’ मनोविज्ञान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय रहा है।मनोविज्ञान ‘व्यवहार’ का अध्ययन करता है तथा व्यवहार को ‘व्यक्तित्व’ एवं ‘पर्यावरण’ का प्रकार्य माना गया है।इस प्रकार ‘व्यक्तित्व’ मानव व्यवहार का मूल है।मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व को विभिन्न रूपों में परिभाषित किया है।कुछ मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणों को निम्नवत प्रस्तुत किया जा सकता है:
(i)तात्विक दृष्टिकोण (Philosophical Approach):
  • व्यक्तित्व आंतरिक गुणों का संगठन है-यह दृष्टिकोण व्यक्ति के आंतरिक गुणों को महत्त्व देता है।वारेन एवं कारमाइकल ने लिखा है कि ‘विकास की किसी भी अवस्था में व्यक्ति का समग्र मानसिक संगठन ही उसका व्यक्तित्व है।इसमें व्यक्ति के चरित्र के सभी आयाम-बुद्धि,स्वभाव,कौशल,नैतिकता,अभिवृत्तियां इत्यादि जो कि विकासात्मक प्रक्रियाओं के कारण प्रदर्शित होती हैं,सम्मिलित हैं।
(ii)समग्र दृष्टिकोण (Holistic Approach):
  • इस दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्तित्व मात्र दैहिक अथवा मात्र मानसिक (बाह्य या आंतरिक) गुणों का संग्रह नहीं है,बल्कि यह बाह्य तथा आंतरिक दोनों गुणों का समग्र है,ना की गणितीय योग।
  • व्यक्तित्व संरचना के विभिन्न तत्व समन्वित (Integrated) होकर व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं।वास्तव में,व्यक्तित्व व्यक्ति की संपूर्ण विशेषताओं की सुसमन्वित व्यवस्था (Well Coordinated System) है,जहां विभिन्न गुणों में पारस्परिक समन्वय होता है।संज्ञानात्मक (cognitive),भावात्मक (Affective) तथा व्यवहारपरक (Behavioral) सभी पक्षों की विशेषताओं का समन्वित स्वरूप संतुलित व्यक्तित्व को सम्वर्द्धित करता है।व्यक्तित्व को आनुवांशिक (Heredity) तथा पर्यावरण (Environment) दोनों कारकों का प्रतिफल माना गया है।दोनों कारकों के मध्य विद्यमान गत्यात्मक अंतर्क्रिया (Dynamics Interaction) व्यक्तित्व के स्वरूप को सुनिश्चित करती है।

6.उत्तेजना एवं अनुक्रिया (व्यवहार) तथा मध्यस्थताकारी चरों (कारणों) के रूप में व्यक्तित्व (Personality as Stimulus and Response and Mediating Variables):

  • कुछ मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व की व्याख्या उद्दीपक के रूप में तथा कुछ ने अनुक्रिया के रूप में की है।इसके अतिरिक्त कुछ मनोवैज्ञानिकों ने मध्यस्थताकारी परिवर्त्य के रूप में व्यक्तित्व को विवेचित किया है।इनका संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण इस प्रकार किया जा सकता हैः

(1.)उद्दीपक (प्रभाव) के रूप में व्यक्तित्व (Personality as a Stimulus):

  • मनोवैज्ञानिकों के एक वर्ग ने व्यक्तित्व के स्वरूप की व्याख्या ‘सामाजिक उद्दीपक मूल्य'(Social Stimulus Value) के रूप में की है।सामाजिक उद्दीपक मूल्य का तात्पर्य है कि व्यक्ति अपने संपर्क में आने वाले लोगों पर कैसा प्रभाव डालता है।इस प्रकार ‘अन्य लोगों पर प्रभाव’ (Impression on others) के रूप में व्यक्तित्व की व्याख्या की गई है।सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों (निरीक्षक या साक्षात्कारकर्ता इत्यादि सहित) को जैसा प्रतीत होता है,वही उसका व्यक्तित्व है।इसका आशय यह है कि प्रस्तुत वर्ग के मनोवैज्ञानिक ‘व्यक्ति की छाप’ के रूप में व्यक्तित्व को विवेचित करते हैं।व्यवहार में इस दृष्टिकोण की पुष्टि होती है।प्रायः किसी व्यक्ति का जो प्रभाव हमारे मानस-पटल पर पड़ता है,उसी को हम उस व्यक्ति का व्यक्तित्व मान लेते हैं।
  • प्रस्तुत दृष्टिकोण की यह मान्यता है कि व्यक्ति की जो भी विशेषताएं हैं,दूसरे लोगों के संपर्क में आने पर व्यक्त होगी,व्यक्ति अपने संपर्क में आने वाले को प्रभावित करके अपने व्यक्तित्व को स्वतः उद्घाटित करेगा,परंतु ‘अन्य लोगों पर प्रभाव’ के रूप में व्यक्तित्व का समुचित विवेचन संभव प्रतीत नहीं होता है,क्योंकि कई बार देखा जाता है कि व्यक्ति विभिन्न गुणों का भंडार होते हुए भी अभिव्यक्ति तथा प्रभाव की कमी के कारण अपने व्यक्तित्व को समुचित रूप में प्रक्षेपित नहीं कर पाता है,अतः उसके व्यक्तित्व का सही आकलन नहीं हो सकता है।
  • संक्षेप में कहा जा सकता है कि केवल प्रभाव के आधार पर व्यक्तित्व को पूर्णरूप से नहीं समझा जा सकता है।प्रायः हम लोग मिलने वाले के ‘प्रभाव’ के आधार पर उसके व्यक्तित्व का आकलन करते हैं,परंतु सम्यक प्रभाव या छाप के अभाव में योग्यता रहते हुए भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का उपयुक्त मूल्यांकन नहीं हो पाता है।व्यक्ति विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के ‘साक्षात्कार’ (Interview) में जाता है,प्रायः उसके व्यक्तित्व का आकलन ‘प्रभाव’ या ‘छाप’ के रूप में होता है।अतः साक्षात्कार देने वाले व्यक्तियों को यह तथ्य ध्यान में रखते हुए ‘प्रभावपूर्ण छाप’ छोड़ने का प्रयास करना चाहिए।उसके पास कौन-कौनसे गुण हैं।मूलभूत रूप में यह तो आवश्यक है ही,साथ ही यह भी अत्यंत आवश्यक है कि व्यक्ति अपने अंतर्निहित गुणों (ज्ञानादि) को किस प्रकार प्रभावी रूप में व्यक्त करता है।
  • ‘प्रभाव’ के रूप में व्यक्तित्व का पूर्ण विवेचन नहीं हो पाता है।अतः मनोवैज्ञानिकों ने अन्य उपागमों का भी उल्लेख किया है।व्यक्तित्व की व्याख्या उसकी अनुक्रियाओं के आधार पर भी की गई है।जिसे निम्नलिखित प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता हैः

(2.)अनुक्रिया अथवा व्यवहार के रूप में व्यक्तित्व (Attitude as a Response or Behaviour):

  • इस दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्ति की अनुक्रियाएं अथवा कार्य (Functions) उसके व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित करते हैं।इस प्रकार व्यक्ति के व्यवहार का प्रकार्य (Function of person’s behavior) या व्यवहारगत क्रियाएं व्यक्तित्त्व को उद्घाटित करती हैं।व्यक्ति वास्तव में जो करता है,वही उसका व्यक्तित्व माना जाता है।इस प्रकार यह दृष्टिकोण व्यक्ति के कार्यों या व्यवहार के आधार पर व्यक्तित्व का आकलन करता है।
  • विभिन्न दशाओं में यह देखा गया है कि व्यक्ति अत्यल्प मुलाकात में अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाता है अथवा अपने को पूर्णतः व्यक्त नहीं कर पाता है,जबकि उसके पास ज्ञान का पर्याप्त भंडार तथा विभिन्न संज्ञानात्मक एवं असंज्ञानात्मक (भावात्मक एवं क्रियात्मक आदि) विशेषताएं भी होती हैं।इस स्थिति में व्यक्ति के व्यवहार अथवा कार्य के आधार पर व्यक्तित्व का आकलन उपादेय होता है।प्रस्तुत अवधारणा के अनुसार व्यक्ति की जो भी विशेषताएं समग्र एवं समन्वित रूप में विद्यमान हैं,उसके व्यवहार (क्रिया-कलाप आदि) में मुखरित होती हैं।व्यक्ति का ज्ञान एवं गुण उसकी अनुक्रियाओं में दृष्टिगत होता है।
  • वास्तव में केवल अनुक्रियाओं (व्यवहार) के आधार पर भी व्यक्तित्व का समग्र स्वरूप स्पष्ट नहीं होता है।विभिन्न विशेषताओं के होते हुए भी कई बार व्यक्ति उन्हें अपने कार्यों या व्यवहार में प्रस्फुटित नहीं कर पाता है जिससे उसके व्यक्तित्व का सम्यक मूल्यांकन नहीं हो पाता है।

(3.)मध्यस्थताकारी परिवर्त्य के रूप में व्यक्तित्व (Personality as an Arbitrator Variable):

  • कतिपय मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व की व्याख्या उत्तेजना एवं अनुक्रिया (व्यवहार) के मध्य विद्यमान चर अथवा कारक के रूप में की है।इस वर्ग के मनोवैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्तित्व की विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक गुणों का संगठन है जो उसके व्यवहार प्रतिरूप (Behaviour Pattern) को प्रभावित करता है।
  • व्यक्तित्व को मध्यस्थताकारी परिवर्त्य के रूप में विवेचित करना कई दृष्टियों से उपयुक्त है।व्यक्ति बहुत कुछ अपने अंतर्निहित गुणों के समन्वय के आधार पर दूसरे व्यक्तियों पर अपना प्रभाव छोड़ता है एवं क्रिया (व्यवहार) करता है।इस प्रकार व्यक्ति की क्रिया अथवा व्यवहार उसके विभिन्न बाह्य एवं आंतरिक गुणों द्वारा निर्धारित होता है।इन गुणों के समुचित समन्वय द्वारा ही व्यक्ति परिवेश के प्रति समायोजन स्थापित करता है।व्यक्ति की कार्यशैली तथा व्यवहार में अपूर्वता (निरालापन) व्यक्तित्त्व-विभेद के कारण परिलक्षित होती है।
  • विख्यात व्यक्तित्व विज्ञानी गार्डन आलपोर्ट (Gardon Aaport,1937) ने व्यक्तित्व की विवेचना मध्यस्थताकारी परिवर्त्य के रूप में उल्लेख करते हुए किया है।”व्यक्तित्व व्यक्ति के अंदर विद्यमान मनोदैहिक गुणों का वह गत्यात्मक संगठन है जो पर्यावरण के प्रति उसके विलक्षण समायोजन को निर्धारित करता है।”
    आलपोर्ट के विचारों का विश्लेषण करने से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं:
(i)मनोदैहिक गुणों का संगठन (Organization of Psychosomatic Properties):
  • व्यक्तित्व व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक गुणों का संगठन (organization) है अर्थात् व्यक्तित्व केवल शारीरिक (बाह्य) या मानसिक (आंतरिक) गुणों का योग न होकर विभिन्न प्रकार के कारकों का समग्र (whole) है।व्यक्ति की शारीरिक संरचना,वेशभूषा,हावभाव,बौद्धिक क्षमता,भावात्मक,सामाजिक एवं संवेगात्मक विशेषता,स्वभाव तथा चारित्रिक विशेषताओं का अद्भुत समग्र व्यक्तित्व को निर्मित एवं विकसित करता है।
(ii)गुणों का गत्यात्मक संगठन (Dynamic Organization of Traits):
  • व्यक्तित्व शीलगुणों का कुल योग न होकर एक गत्यात्मक संगठन है।गत्यात्मक संगठन का आशय है कि व्यक्तित्व के भिन्न-भिन्न गुण परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा इस प्रकार संगठित होते हैं कि उन्हें एक-दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता है।यथा- यदि किसी व्यक्ति में कर्त्तव्यपरायणता,ईमानदारी तथा उत्तरदायित्व तीन शीलगुण है,किंतु इन तीनों को भौतिक वस्तुओं की तरह अलग-अलग करके दिखाना संभव नहीं है।शीलगुणों में परिवर्तन सामान्यतः बहुत कम होता है,परंतु इसका यह तात्पर्य नहीं है कि परिवर्तन बिल्कुल नहीं होता है।परिवर्तनशीलता की विशेषता होने के कारण व्यक्तित्व को गत्यात्मक कहा जाता है।
(iii)अपूर्वता या विलक्षणता (Uniqueness):
  • व्यक्तित्व में विलक्षणता अथवा अनोखापन होता है।प्रत्येक व्यक्ति का पर्यावरण के प्रति समायोजन अपने में अपूर्व (अनोखा) होता है।दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि प्रत्येक व्यक्ति के आचरण अथवा कार्यशैली में ‘निरालापन’ होता है जो उसके व्यवहार से व्यक्त होता है।सरल रूप में कहा जा सकता है कि व्यक्ति का विलक्षण या निराला ढंग,जिसके अनुसार वह विभिन्न व्यवहार करता है,व्यक्तित्व है।उदाहरणार्थ:सड़क पर कोई दुर्घटना होने पर अनेक व्यक्ति एकत्रित हो जाते हैं।कुछ व्यक्ति भीड़ हटाते दिखाई देते हैं,कुछ रोते हुए तो कुछ घायलों की मदद करते हैं तथा कुछ चुपचाप तमाशा देखते हैं।इस प्रकार स्थिति के समान होने पर भी भिन्न-भिन्न व्यक्ति अपूर्व ढंग से समायोजन करते हैं अर्थात् अपने-अपने ढंग से व्यवहार करते हैं।मानसिक एवं शारीरिक गुणों के संगठन या समन्वय में विशिष्टता होने के कारण व्यक्तित्व में विलक्षणता दृष्टिगत होती है।
  • प्रस्तुत दृष्टिकोण आंतरिक पक्ष (Inner Aspect) पर अधिक बल देता है।’पर्यावरण के प्रति अपूर्व समायोजन’ सामाजिक उद्दीपक मूल्य (social stimulus value) के लिए आधार है।

7.व्यक्तित्व के विकास का निष्कर्ष (Conclusion to the Development of Personality):

  • उपयुक्त दृष्टिकोणों पर ध्यान देने से यह स्पष्ट है कि उद्दीपक दृष्टिकोण ‘प्रभाव’ पर अनुक्रिया संबंधी दृष्टिकोण ‘व्यक्ति की क्रियाओं या व्यवहार’ पर तथा मध्यस्थताकारी चर संबंधी दृष्टिकोण ‘उद्दीपक एवं व्यवहार के मध्य विद्यमान व्यक्ति के मनोशारीरिक गुणों के संगठन’ पर बल देता है।इसके साथ ही यह अवधारणा व्यक्ति के अपूर्व समायोजन को भी सम्मिलित करती है।यदि इन दृष्टिकोणों पर गहनता से विचार किया जाए तो प्रतीत होता है कि तीनों में अप्रत्यक्ष संबंध है।एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करना उसके शारीरिक एवं मानसिक गुणों के समन्वय से घनिष्टतः संबंधित है।यदि व्यक्ति के अंदर विशेषताएं हैं,तभी वह प्रभावी रूप में प्रभावित कर सकता है।अनुक्रिया अथवा व्यवहार व्यक्ति के अंतर्भूत शीलगुणों का प्रकार्य है।
  • इस प्रकार स्पष्ट होता है कि ‘प्रभाव’ एवं ‘क्रिया’ दोनों के मूल में व्यक्ति की ‘मनोशारीरिक व्यवस्था का संगठन’ विद्यमान है,जो की आलपोर्ट इत्यादि मनोवैज्ञानिकों के विचारों में समावेशित है।व्यक्ति का समायोजन अपूर्व होता है,यह कहकर व्यक्ति की ‘वैयक्तिकता’ (Individuality) अर्थात् उसकी पृथक-पृथक प्रभावशक्ति (सामाजिक उद्दीपक मूल्य) को ‘व्यक्तित्व’ के अंदर समावेशित करके उसके समग्र चित्र को प्रस्तुत करने का प्रयास है।
  • संक्षेप में कहा जा सकता है कि व्यक्तित्व,व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक गुणों का गतिशील समग्र (whole) तथा समन्वय (integration) है जिसके द्वारा व्यक्ति दूसरों को प्रभावित करता है तथा विभिन्न अनुक्रियाएं (व्यवहार) करता है।प्रत्येक व्यक्ति द्वारा छोड़े गए प्रभाव तथा व्यवहार में कुछ-ना-कुछ निरालापन होता है जो उसे दूसरों से पृथक करता है।यह अनोखापन  या विलक्षणता अथवा वैयक्तिकता (Individuality) ही व्यक्तित्व है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में प्रभावी व्यक्तित्व विकसित करने की 7 युक्तियाँ (7Tips to Develop Effective Personality),प्रभावी व्यक्तित्त्व को विकसित करने की 7 टाॅप रणनीतियाँ (7 Top Strategies to Develop Effective Personality) के बारे में बताया गया है।

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8.दादाजी कोचिंग छोड़ गए (हास्य-व्यंग्य) (Grandpa Left Coaching) (Humour-Satire):

  • नीरज:मेरे दादाजी मरते वक्त 10 कोचिंग संस्थान छोड़ गए।
    मयंक:मेरे दादाजी कई बहुराष्ट्रीय कंपनीयाँ छोड़ गए जिनका पूरे विश्व में कारोबार था।

9.प्रभावी व्यक्तित्व विकसित करने की 7 युक्तियाँ (Frequently Asked Questions Related to 7Tips to Develop Effective Personality),प्रभावी व्यक्तित्त्व को विकसित करने की 7 टाॅप रणनीतियाँ (7 Top Strategies to Develop Effective Personality) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.आत्म और व्यक्तित्व के बारे में टिप्पणी लिखें।(Write Comments About Self and Personality):

उत्तर:(1.) आत्म और व्यक्तित्व का अध्ययन अपने आपको और दूसरों को समझने में हमारी सहायता करता है।एक व्यक्ति का आत्म महत्त्वपूर्ण दूसरों के साथ अंत:क्रिया के द्वारा विकसित होता है।
(2.)आत्म विभिन्न प्रकार के होते हैं,जैसे व्यक्तिगत आत्म,सामाजिक आत्म और संबंधात्मक आत्म।आत्म-सम्मान और आत्म-सक्षमता व्यवहार के दो ऐसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जिनका हमारे जीवन में व्यापक महत्त्व होता है।

प्रश्न:2.व्यक्तित्व किसका प्रतिनिधित्व करता है? (What Does Personality Represent?):

उत्तर:(1.)एक व्यक्ति-विशेष का व्यवहार एक स्थिति से दूसरी स्थिति में सामान्यतया पर्याप्त रूप से स्थिर होता है।व्यक्ति के व्यवहार का यही अपेक्षाकृत स्थिर स्वरूप उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है।
(2.)व्यक्तित्व से तात्पर्य व्यक्ति की मनोदैहिक विशेषताओं से है जो विभिन्न स्थितियों और समयों में सापेक्ष रूप से स्थिर होते हैं और उसे अनन्य बनाते हैं। चूँकि व्यक्तित्व हमारे जीवन में विभिन्न प्रकार की स्थितियों के प्रति अनुकूलन करने में सहायक होता है इसलिए बाह्य और आंतरिक शक्तियों के परिणामस्वरूप इसमें परिवर्तन संभव है।

प्रश्न:3.व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण कारक मॉडल का उल्लेख करें। (Mention the Model as an Important Factor of Personality):

उत्तर:(1.)अनुभवों के लिए खुलापन:जो लोग इस कारक पर उच्च अंक प्राप्त करते हैं वे कल्पनाशील,उत्सुक,नए विचारों के प्रति उदारता एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों में अभिरुचि लेने वाले व्यक्ति होते हैं।इसके विपरीत,कम अंक प्राप्त करने वाले व्यक्तियों में अनम्यता पाई जाती है।
(2.)बहिर्मुखता:यह विशेषता उन लोगों में पाई जाती है जिनमें सामाजिक सक्रियता,आग्रहित बहिर्गमन,बातूनीपन और आमोद प्रमोद के प्रति पसंदगी पाई जाती है।इसके विपरीत ऐसे लोग होते हैं जो शर्मीले और संकोची होते हैं।
(3.)सहमतिशीलता:यह कारक उन लोगों की उन विशेषताओं को बताता है जिनमें सहायता करने,सहयोग करने,मैत्रीपूर्ण व्यवहार करने,देखभाल करने एवं पोषण करने जैसे व्यवहार सम्मिलित होते हैं।इसके विपरीत वे लोग होते हैं जो आक्रामक और आत्म-केंद्रित होते हैं।
(4.)तंत्रिकाताप:इस कारक पर उच्च अंक प्राप्त करने वाले लोग सांवेगिक रूप से अस्थिर,दुश्चिन्तित,परेशान,भयभीत,दुःखी,चिड़चिड़े और तनावग्रस्त होते हैं।इससे विपरीत प्रकार के लोग सुसमायोजित होते हैं।
(5.)अंतर्विवेकशीलता:इस कारक पर उच्च अंक प्राप्त करने वाले लोगों में उपलब्धि-उन्मुखता,निर्भरता, उत्तरदायित्व,दूरदर्शिता,कर्मठता और आत्म-नियंत्रण पाया जाता है।इसके विपरीत कम अंक प्राप्त करने वालों में आवेग पाया जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा प्रभावी व्यक्तित्व विकसित करने की 7 युक्तियाँ (7Tips to Develop Effective Personality),प्रभावी व्यक्तित्त्व को विकसित करने की 7 टाॅप रणनीतियाँ (7 Top Strategies to Develop Effective Personality) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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