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Role of Decision in Achieving Success

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1.सफलता प्राप्ति में निर्णय की भूमिका (Role of Decision in Achieving Success),सफलता प्राप्ति हेतु निर्णय की महत्त्वपूर्ण भूमिका (Important Role of Decision for Achieving Success):

  • सफलता प्राप्ति में निर्णय की भूमिका (Role of Decision in Achieving Success) बहुत महत्त्वपूर्ण है।अक्सर छात्र-छात्राएं कोई भी विषय पढ़ते समय,परीक्षा हेतु या जॉब के चयन के संबंध में परिस्थितिवश,आलस्यवश या अन्य किसी कारण से निर्णय लेने पर देर कर देते हैं और उसके वांछित परिणाम से वंचित रह जाते हैं।
  • निर्णय सही समय पर लेना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि सटीक निर्णय लेना भी जरूरी है।सही समय पर निर्णय लेने में आलस्य,परिस्थिति तो बाधक है ही परंतु संशयग्रस्त मनःस्थिति,दुविधाग्रस्त स्थिति भी कारण है।कारण जो भी हो उसे दूर करके सही समय पर सटीक निर्णय लेने पर सफलता असंदिग्ध हो जाती है।
  • सफलता प्राप्ति में अन्य कारक सहायक हैं उनमें सही निर्णय लेना भी सम्मिलित है।छात्र-छात्राएं ऐच्छिक विषय में जैसे गणित विषय या जीव विज्ञान अथवा आर्ट्स में से कौनसा विषय लेना है,मुझे सुबह जल्दी उठकर पढ़ना चाहिए या देर रात तक,मुझे बीएससी,एमएससी करके नेट,स्लेट की परीक्षा देनी चाहिए और लेक्चररोशिप करनी चाहिए अथवा जेईई-मेन परीक्षा उत्तीर्ण करके इंजीनियरिंग करना चाहिए आदि में निर्णय नहीं कर पाते हैं तथा वे सफलता से दूर रह जाते हैं।
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2.निर्णय लेने में बाधक दुविधा (Decision-making Dilemma):

  • सफलता की चाह सभी रखते हैं और इसके लिए श्रम व पुरुषार्थ भी करते हैं,लेकिन सफलता सभी को नहीं मिल पाती; क्योंकि सफलता की राह में मुख्य बाधा है-दुविधा, जो हमारी सफलता प्राप्ति की आशा को निराशा में बदल देती है।दुविधा हमारी आकांक्षाओं को समाप्त कर देती है।
  • यह सफलता की राह में एक ऐसा रोड़ा है,जिसके कारण हम एक कदम भी आगे बढ़ नहीं पाते।इसके कारण व्यक्ति चयनित मार्ग के नकारात्मक पक्षों को देखने लगता है और कभी आशाजनित सफलता को प्राप्त नहीं कर पाता।
  • दुविधा एक तरह की द्वन्द्व की स्थिति है,जिसमें व्यक्ति निर्णय नहीं ले पाता और न ही स्वतंत्र ढंग से सोच पाता है।सफल लोगों का मूल मंत्र होता है-सही समय पर सही फैसला करना और उस पर अमल करना।विशेषज्ञों के अनुसार-यदि निर्णय लेते समय विकल्प है,तो हम दुविधा में फँसते हैं।जितने अधिक विकल्प होते हैं,उतनी ही अधिक दुविधा होती है कि किस विकल्प का चयन करें?
  • दुविधा की स्थिति में मन इस उलझन में होता है कि किस विकल्प के चुनने से हम सफलता पाएंगे और किस विकल्प के चुनने से हम असफल हो जाएंगे। जाहिर है हम ऐसे विकल्प की तलाश में रहते हैं,जिसको चुनने से हम सफल बनें।कभी-कभी सही विकल्प की तलाश करने के लिए हम दूसरों पर अपने निर्णय छोड़ देते हैं और कभी-कभी यह भी होता है कि सही निर्णय लेने में हम बहुत सारा समय गंवा देते हैं,जो हमें वापस नहीं मिल सकता।
  • दुविधा से घिरा व्यक्ति हमेशा कार्य पूरा करने में निर्धारित समय सीमा से अधिक समय लेता है।कार्य को देर से पूरा करता है या अधूरा ही छोड़ देता है।कई बार उसे काम समझ में नहीं आता,जिससे उसके पिछड़ जाने का खतरा ओर भी बढ़ जाता है।ऐसे लोग निर्णय नहीं ले पाते।अगर लेते भी है,तो सही निर्णय लेने का फायदा उन्हें नहीं मिल पाता; क्योंकि तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार-दुविधा में रहने वाले व्यक्ति धीरे-धीरे बीमार रहने लगते हैं।उनके निर्णय लेने की दुविधा धीरे-धीरे मानसिक तनाव में परिवर्तित हो जाती है।यदि एक बुद्धिमान व्यक्ति भी लंबे समय तक दुविधाग्रस्त रहता है,तो उसका बुरी तरह से मानसिक क्षरण हो जाता है।इस तरह दुविधा,सफलता की राह में सबसे बड़ी बाधा है।इसलिए विशेषज्ञों का यह मानना है कि दुविधाग्रस्त स्वभाव उन्नति की राह में सबसे बड़ी बाधा है।

3.दुविधा से बाहर निकलने के तरीके (Ways to Get Out of the Dilemma):

  • ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि सफल लोगों को दुविधा का सामना नहीं करना पड़ता।वे इस दुविधा का अक्सर सामना करते हैं,लेकिन अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार होते हैं।उन्हें पता होता है कि उन्हें करना क्या है।इसलिए भटकने से पहले वे अपनी योजना बना लेते हैं और उसी के अनुसार आगे बढ़ते हैं।
  • सामान्यतया व्यक्ति यह समझ नहीं पाता कि दुविधापूर्ण मनः स्थिति उसे एक ऐसे जाल में फंसा देती है,जिससे बाहर निकलना आसान नहीं होता।फलस्वरूप व्यक्ति ठहर जाता है और मिलने वाली सफलता के पीछे हटता चला जाता है।ऐसी स्थिति में यह जरूरी है कि जब कभी जीवन में दुविधा की स्थिति आए तो अपने जीवन को सहज रखा जाए,ताकि सही और गलत के बीच अंतर किया जा सके।
  • सफलता उन्हें ही मिलती है और उनके कदम चूमती है,जो अपने लक्ष्य के प्रति,अपनी मंजिल के प्रति कभी दुविधाग्रस्त नहीं रहते।
  • दुविधा में रहने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि वह निर्णय लेने से घबराता है।उसका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है और फिर वह कभी निर्णय लेने के लिए आगे नहीं बढ़ता।ऐसा व्यक्ति केवल परिस्थितियों का दास बनकर रह जाता है।वास्तव में यह भी एक तरह की हार है,असफलता है।
  • हमें चाहिए कि हम अपनी परिस्थितियों को इस तरह ढालें की अपनी योजनाएं हम खुद निर्धारित कर सकें और फिर परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेते हुए कार्य कर सकें।यही इस दुविधा से बाहर निकलने का मार्ग है,क्योंकि दुविधाग्रस्त इंसान कभी भी अपने कार्य में सफल नहीं हो सकता,वह हमेशा समय से पीछे चलता है और जो व्यक्ति समय पर अपना कार्य नहीं कर सकता,वह सफल नहीं है।
  • सफलता के लिए जरूरी यह है कि सबसे पहले व्यक्ति निर्णय लेने की भूमिका में आगे बढ़े; क्योंकि जीवन में एक कदम भी आगे बढ़ने के लिए हमें निर्णय लेना पड़ता है।
  • यदि हम अपने निर्णय के लिए दूसरों पर निर्भर हैं या निर्णय नहीं ले सकते हैं तो फिर हम आगे भी नहीं बढ़ सकते हैं।केवल दूरदर्शिता व अनुभव के आधार पर निर्णय लेना सहज हो जाता है और सही-गलत निर्णय लेते-लेते खुद ही एहसास होने लगता है कि हम कैसे निर्णय लें।जिन्दगी हमें धीरे-धीरे खुद ही निर्णय लेना सिखा देती है लेकिन इसके लिए पहला कदम हमें स्वयं उठाना पड़ता है।
  • निर्णय लेने में दुविधामुक्त वही रह सकते हैं,जो आत्मविश्वास से भरपूर हों तथा विवेक एवं दूरदर्शिता के साथ परिस्थितियों का आकलन करने में सक्षम हों।ऐसे व्यक्ति कितनी भी विषम परिस्थितियों में दुविधापूर्ण मनःस्थिति के शिकार नहीं होते और सदा संतुलित एवं सहज बने रहते हैं।
  • मनुष्य में आत्मविश्वास अनुभव बढ़ने के साथ-साथ आता है और यदि मनुष्य दुविधा में पड़कर कभी कोई निर्णय ही न ले तो जीवन में अनुभव की वृद्धि कैसे हो सकेगी।अतः यह आवश्यक है कि मनुष्य बिना विचलित हुए,बिना उद्विग्नता का शिकार हुए धीर भाव से परिस्थितियाँ समझे और फिर वह निर्णय ले,जो दुरगामी परिणामों को लाने वाला हो।
  • यदि मन में भागवद् विश्वास है,तो यह प्रक्रिया व्यक्ति के व्यक्तित्व में सहज ही सम्मिलित हो जाती है और दुविधा ऐसे व्यक्तियों से सदा दूर रहती है।उपयुक्त बातों पर अमल करने पर छात्र-छात्राएं तथा व्यक्ति दुविधाग्रस्त मनः स्थिति से बाहर निकल सकते हैं।

4.आत्मविश्वास सफलता की कुंजी (Confidence is the Key to Success):

  • उस छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति से दुविधा दूर रहती है जो आत्मविश्वासी है।आत्मविश्वासी ही भागवद् विश्वासी होता है।जिसको अपने आप पर विश्वास होता है वह निर्णय लेने में सक्षम होता है।
  • अधिकांश महान् पुरुषों के जीवन-चरित पढ़ने पर आपको पता चलेगा कि संसार में सभ्यता को ऊंचा उठाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले इन महानुभावों ने जब कार्य आरंभ किया,तब वे अत्यंत निर्धन थे।इसके साथ ही आपको यह भी ज्ञात होगा कि इन लोगों ने ऐसे कठिन मार्ग तय किए कि जहां दूर-दूर तक केवल असफलता ही दिखाई पड़ती थी।वहाँ भी उन्होंने विश्वास नहीं छोड़ा और इस भरोसे पर श्रम करते रहे कि कभी ना कभी तो सफलता प्राप्त होगी ही और अंततः उन्हें सफलता मिली।वर्षों की उनकी तपस्या का फल प्राप्त हुआ।
  • आज विभिन्न प्रकार के आविष्कार,जिसका हम लाभ उठा रहे हैं,उन्हीं के परिश्रम की देन है।यह उन्हीं लोगों के पुण्य के प्रताप का फल है,जिससे हमें अनेक प्रकार के सुख प्राप्त हो रहे हैं,हम दिनों का काम घंटों में और घंटों का काम मिनटों में पूरा कर लेते हैं।जिन लोगों ने ये कार्य किए,वे विपत्ति के बादल घिरे होने पर भी निररुत्साहित नहीं हुए।अपने रास्ते पर बढ़ते ही चले गए और अंत में इस संसार ने उनका लोहा माना।
  • इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि प्रत्येक कार्य को भली प्रकार पूरा करने के लिए आत्मविश्वास नितांत आवश्यक है।आत्मविश्वास के द्वारा ही आप अपनी निश्चित मंजिल पर पहुंच सकते हैं,क्योंकि उसके कारण ही कार्य सिद्ध करने वाली शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।यह दुःख की बात है कि लोग अभी तक आत्मविश्वास के महत्त्व को नहीं समझ पाए।
  • वे नहीं समझते कि किस वस्तु के कारण कार्य के प्रति उनमें दृढ़-धारणा होती है? क्या वे यह नहीं जानते कि किस कारण उन्हें निराशा में भी आशा की झलक दिखाई देती है? वह कौन-सी चीज है जिसके कारण आप घोर विपत्ति का सामना करते हैं और जिसके कारण आपको दुःख में भी सुख का आभास होता रहता है? आपको आश्वासन देने वाली वह कौन-सी शक्ति है कि जब आपके इष्ट-मित्र आपका साथ छोड़ देते हैं और आप पैसे-पैसे के लिए मोहताज हो जाते हैं तब भी आपके हृदय में आशा का दीप जलाए रखती है? इन सब बातों का एक ही उत्तर है और वह है-आत्मविश्वास।
  • आत्मविश्वास ही वह अनुपम शक्ति है,जिसके सहारे आप अपने ध्येय की ओर निरंतर बढ़ते रहते हैं।आपकी आत्मा का गूढ़ रहस्य और आपका पथ-प्रदर्शक वही है।उसी के सहारे आप अनेक कठिन कार्यों पर विजय प्राप्त कर पाते हैं।इस संसार में जितने भी महान कार्य हुए हैं,हो रहे हैं अथवा होंगे,उन सबका मूल कारण आत्मविश्वास ही है।
  • संसार उन्हीं का आदर करता है जो अपना सब कुछ गँवा देने पर भी आत्मविश्वास को नहीं गंवाते और इस निश्चय पर दृढ़ रहते हैं कि जो कार्य हमने आरंभ किया है,हम उसे अवश्य पूर्ण कर सकेंगे।उस व्यक्ति का भविष्य सर्वथा चिंतारहित होता है,जिसमें आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा हो।
  • आत्मविश्वास वह अद्भुत शक्ति है कि एक अकेला मनुष्य हजारों विपत्तियों एवं शत्रुओं का सामना कर लेता है।निर्धन व्यक्तियों की सबसे बड़ी पूंजी और सबसे बड़ा मित्र आत्मविश्वास ही है।इतिहास में आपको ऐसे अनेक उदाहरण मिलेंगे जब निर्धन व्यक्तियों ने ऐसे-ऐसे कार्य किए जिन्हें धनवान व्यक्ति भी न कर सके।कई बार हम देखते और सुनते हैं कि कुछ ही लोगों ने ऐसे आश्चर्यजनक करतब कर दिखाए,जिसे सुनकर हम ही नहीं,पूरा विश्व ही हैरत में रह गया।

5.आत्मविश्वास का दृष्टांत (Illustration of Confidence):

  • एक गणित की छात्रा थी।उसमें गजब की स्मरणशक्ति और आत्मविश्वास था।उसकी गणित पर जितनी पकड़ थी उतनी ही अध्यात्म में भी रुचि थी।उसे गीता के पूरे 18 अध्याय कंठस्थ थे।एक बार वह एक आध्यात्मिक प्रवचन सुनने अपने माता-पिता के साथ गई हुई थी।
  • उसने मंच पर खड़े होकर सभी श्रोताओं को गीता के कुछ अध्याय सुनाएं तो न केवल आम व्यक्ति ही बल्कि बड़े-बड़े संत,साधु,सदाचारी और गुरुजन भी हतप्रभ रह गए।
  • ऐसी सैकड़ो घटनाएं अपने इर्द-गिर्द घटती,देखने-सुनने को मिल जाएगी।इस प्रकार यदि आपको विश्वास है तो आप भी महान् कार्य करने में समर्थ हो सकते हैं।आप उस परमपिता के पुत्र हैं।राजाओं के भी उस राजा का वरदहस्त सदैव ही आपके सिर पर है।उसकी देवी-शक्ति का प्रभाव क्या आपको अनुभव नहीं होता? तब ऐसा क्या कारण है कि आपको अपनी सफलता में दृढ़तापूर्वक विश्वास ना हो?
  • वास्तविक तथ्य यह है कि जब तक आपको अपने गुणों में विश्वास ना हो,तब तक आप उन्हें पूरी तरह विकसित नहीं कर सकते।भारत में ऐसी अनेक जातियाँ हैं,जो शताब्दियों तक दबी-पिसी रहीं।इसका परिणाम यह हुआ कि वह भूल ही गए कि वे भी मनुष्य हैं और उनके अपने कुछ अधिकार भी हैं।उनमें भी वही गुण हैं,वही शक्तियां हैं,जो अन्य व्यक्तियों में हैं अथवा वे भी आत्म-सम्मान के उतने ही अधिकारी हैं,जितने अन्य दूसरे व्यक्ति।वस्तुतः वे यह मान बैठे हैं कि भगवान ने उन्हें जन्म से ही ऐसा बनाया,परंतु दुःख इस बात का है कि वे इस साधारण बात का भी ज्ञान नहीं कर पाए कि परमात्मा सब व्यक्तियों को एक ही दृष्टि से देखता है।उन्हें यह भी ज्ञात नहीं कि जो मनुष्य जैसा कर्म करता है,वैसा ही बन जाता है।
  • हर व्यक्ति को अच्छे काम करके ऊंचा उठने का अधिकार है।उन जातियों पर सदियों से अत्याचार होते रहे हैं और वे अपनी अज्ञानता से उन्हें सदियों से सह रहे हैं।उनमें उन अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाने या उस अन्याय से लड़ने की न तो शक्ति है और न ही साहस।अत्याचारों को सहते-सहते वे मानवीय अधिकारों को भी भुला बैठे हैं।वे केवल भगवान को दोष देने के अतिरिक्त ऊंचा उठने का कभी कोई प्रयत्न नहीं करते।परिणाम यह होता है कि वह इसी दीन-हीन अवस्था में रहते आ रहे हैं।तात्पर्य यह है कि अपने खोए और सोए हुए आत्मविश्वास को जगाने की आवश्यकता होती है।आत्मविश्वास खो जाने पर आपके लिए कोई भी काम करना संभव नहीं होगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में सफलता प्राप्ति में निर्णय की भूमिका (Role of Decision in Achieving Success),सफलता प्राप्ति हेतु निर्णय की महत्त्वपूर्ण भूमिका (Important Role of Decision for Achieving Success) के बारे में बताया गया है।

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6.छात्र पूरे साल धक्के खाता रहा (हास्य-व्यंग्य) (The Student Stumbled Throughout Year) (Humour-Satire):

  • कक्षा में अधिक छात्र-छात्राओं के कारण एक छात्र पूरे साल दूसरे छात्र-छात्राओं से सवाल पूछता रहा था।वे छात्र-छात्राएं उसके धक्का देकर अगले छात्र या छात्रा के पास भेज देते थे।वह कभी आगे जाता कभी पीछे।जब साल खत्म होने को आया तो गणित
  • शिक्षक बोला:फीस तो जमा करा दो।
  • छात्र बोला:फीस किस खुशी में।मैं तो पूरे साल सवाल पूछने के लिए इधर-उधर धक्के खाते रहा हूं।

7.सफलता प्राप्ति में निर्णय की भूमिका (Frequently Asked Questions Related to Role of Decision in Achieving Success),सफलता प्राप्ति हेतु निर्णय की महत्त्वपूर्ण भूमिका (Important Role of Decision for Achieving Success) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.दुविधा का क्या अर्थ है? (What Does Dilemma Mean?):

उत्तर:चित्त की किसी एक बात पर न जमने की क्रिया या भाव,निश्चय का अभाव,संशय,संदेह,अंदेशा,संकल्प-विकल्प,असमंजस,धर्मसंकट आदि के अर्थ में दुविधा का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न:2.क्या निर्णय लेने से सफलता मिल सकती है? (Can Decision Making Lead to Success?):

उत्तर:नहीं,निर्णय करने के बाद उस पर अमल करना भी जरूरी होता है।अमल करने के साथ सफलता में कई अन्य गुणों जैसे विवेक,धैर्य,साहस,आत्मविश्वास,जुनून,दृढ़ इच्छाशक्ति,कठिन परिश्रम,लक्ष्य पर नजर,एकाग्रता आदि अनेक गुणों की आवश्यकता होती है।सफलता इन सभी गुणों का जोड़ होती है।

प्रश्न:3.आत्मविश्वास का अन्य गुणों पर क्या प्रभाव पड़ता है? (What Effect Does Self-confidence Have on Other Qualities?):

उत्तर:मानसिक शक्तियों पर आत्मविश्वास का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।संसार में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जो मनुष्य को ऊंचा उठा सके।केवल आत्मविश्वास ही उसमें समर्थ हो सकता है।यदि आप अपने मन में शंका और संदेहों को स्थान दिए रहेंगे तो कार्य करने की आपकी क्षमता क्षीण हो जाएगी।यदि आप किसी भी कार्य को प्रारंभ करते हैं तो उसकी सफलता में आपको पूर्णविश्वास होना चाहिए।यदि उसके संबंध में आपके मन में तनिक भी संदेह है तो सफलता प्राप्त करना कठिन है।
वही व्यक्ति अपने कार्य को पूरा करके दिखा सकता है जिसके हृदय में आत्मविश्वास कूट-कूटकर भरा हो।कार्य-समाप्ति के उसके मार्ग में जो भी कठिनाइयां आएंगी,वह उन्हें पार करता चला जाएगा और सफलता प्राप्त करने पर ही चैन की सांस लेगा।संसार में सफलता प्राप्त करने वाले व्यक्ति इस बात पर डटे रहते हैं कि उन्हें तो अपने लक्ष्य पर पहुंचना ही है,भले ही मार्ग में कितनी कठिनाईयां क्यों ना आएं।इसी विश्वास के बल पर व्यक्ति कठिनाइयों को जीतता हुआ अपने लक्ष्य पर पहुंच जाता है।इस प्रकार के आशापूर्ण विचारों से कार्य की सफलता के तत्व आपकी ओर खिंचे चले आते हैं।एक बार आत्मविश्वास के जागृत हो जाने पर आपकी सभी शक्तियां आपकी इच्छानुसार कार्य में लग जाती हैं।आप उनसे किसी भी कार्य की आशा रखें,आपको सदैव सहायता मिलती रहेगी,परंतु आपको यह याद रखना है कि आपकी इन शक्तियों का आधार केवल आपका आत्मविश्वास ही है।यदि आपकी इच्छाशक्ति निर्बल और संदेहग्रस्त है तो आपकी मानसिक शक्तियों द्वारा कार्य-संपादन करने की शक्ति में कमी आ जाती है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा सफलता प्राप्ति में निर्णय की भूमिका (Role of Decision in Achieving Success),सफलता प्राप्ति हेतु निर्णय की महत्त्वपूर्ण भूमिका (Important Role of Decision for Achieving Success) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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