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6 Tips to Teach Mathematics

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1.गणित पढ़ाने की 6 टिप्स (6 Tips to Teach Mathematics),प्रभावी गणित शिक्षण की 6 टिप्स (6 Tips for Effective Mathematics Teaching):

  • गणित पढ़ाने की 6 टिप्स (6 Tips to Teach Mathematics) के आधार पर गणित को रोचक तथा प्रभावी बना सकते हैं।अक्सर गणित में मनोरंजक सामग्री कम उपलब्ध होती है इसलिए छात्र-छात्राएं गणित पढ़ने में रुचि नहीं लेते हैं।कई छात्र-छात्राओं को तो गणित फोबिया हो जाता है।वे जैसे-तैसे बोर्ड परीक्षा में गणित में उत्तीर्ण होकर इससे पीछा छुड़ाने का प्रयास करते हैं।परंतु अब धीरे-धीरे गणितज्ञों का ध्यान इस तरफ गया है।अब प्रचुर मात्रा में गणित में मनोरंजक सामग्री उपलब्ध हो जाएगी।अब गणित में पहेलियां,मैजिक स्क्वायर, कूट प्रश्न,हास्य-व्यंग्य,मनोरंजक खेल,मॉडल्स इत्यादि का प्रयोग करके गणित को रोचक,सरस तथा आनंददायक बनाया जा सकता है।
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2.गणित अध्यापकों की वर्तमान स्थिति (Current Status of Mathematics Teacher):

  • वर्तमान समय में शिक्षा का व्यवसायीकरण होने से गणित शिक्षक इसे धन कमाने का जरिया मानते हैं।गणित शिक्षा को व्यवसाय (Profession) मानना बुरा नहीं है यदि छात्र-छात्राओं के हित को ध्यान में रखा जाए।परंतु व्यावसायिकता ने नकारात्मकता का रूप धारण कर लिया है।अब विद्यालयों तथा कॉलेजों में भव्य इमारतें,सुसज्जित कमरे व फर्नीचर तो मिल जाएगा जो छात्र-छात्राओं तथा माता-पिता व अभिभावकों को आकर्षित करने के लिए आवश्यक माना जाता है।परंतु वहां गुणवत्ता का अभाव देखने को मिलता है।निपुण गणित शिक्षकों का अभाव देखने को मिलता है।
  • क्योंकि निपुण गणित शिक्षकों को उच्च वेतनमान चुकाना पड़ता है।गणित शिक्षक का अन्य शिक्षकों से सहयोग और समन्वय का अभाव देखने को मिलता है।गणित शिक्षक अपने आपको अन्य शिक्षकों से श्रेष्ठ समझते हैं।शिक्षकों में गणित में निपुणता,दक्षता और कौशल का अभाव देखने को मिलता है।गणित शिक्षक केवल पाठ्यक्रम पूरा कराने के बारे में सोचते हैं।छात्र-छात्राएं गणित शिक्षा कितनी आत्मसात तथा ग्रहण कर रहे हैं इससे उनको कोई लेना देना नहीं रहता है।विद्यार्थी गणित पढ़ने में रुचि ले रहे हैं या नहीं इस तरफ उनका ध्यान नहीं रहता है।
  • अध्यापक बालकों की कमजोरियों,उनको आनेवाली समस्याओं तथा कठिनाइयों को समझने में दिलचस्पी नहीं लेते हैं तो उन्हें दूर करने के बारे में तो सोचा भी नहीं जा सकता है।विद्यार्थियों को पर्याप्त अभ्यास कार्य नहीं कराया जाता है तथा न ही अपने शिक्षण कार्य की समीक्षा करते हैं।ऐसा गणित शिक्षण केवल औपचारिकता बनकर रह जाता है।
  • शिक्षकों में धैर्य का अभाव,छात्र-छात्राओं पर गुस्सा करना,विद्यार्थियों को पढ़ाने में रुचि न लेना,गणित शिक्षण में कौशल की कमी इत्यादि ढेरों कमियों के कारण गणित विषय को कठिन बना दिया गया है। इसलिए यह विषय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होते हुए भी छात्र-छात्राओं में यह विषय लोकप्रिय नहीं है।

3.प्रभावी शिक्षण का तरीका ( The Way of Effective Teaching):

  • गणित शिक्षक को गणित की विषय-वस्तु में पारंगत (Mastery) होना चाहिए।गणित की विषय-वस्तु में तकनीकी विकास के कारण तेजी से परिवर्तन हो रहा है।इसलिए गणित शिक्षक नवीन ज्ञान ग्रहण करने तथा नए विचारों को स्वीकार करने में तत्पर व उत्साही रहना चाहिए।गणित के ज्ञान में नए-नए परिवर्तन हो रहे हैं उनसे अपटुडेट रहना चाहिए।
  • गणित की विषय-वस्तु में मास्टरी तभी हो सकती है जबकि शिक्षक गणित के ज्ञान ग्रहण करने में अपने आपको विद्यार्थी माने,विद्यार्थी बना रहे अर्थात् स्वयं अध्ययन करने की प्रवृत्ति को न त्यागे।गणित शिक्षण में पारंगत होने के साथ-साथ छात्र-छात्राओं को गणित पढ़ाने की विधा,कौशल में भी उसे महारत हासिल करनी चाहिए।कमजोर विद्यार्थियों, मध्यम विद्यार्थियों तथा निपुण छात्र-छात्राओं को एक ही विधि और कौशल से नहीं पढ़ाया जा सकता है।
  • गणित के पाठ्यक्रमों में बदलाव किए जा रहे हैं और गणित की विषय-वस्तु के स्तर को उन्नत किया जा रहा है जिससे विद्यार्थी आज के तकनीकी युग की आवश्यकताओं को पूरा कर सके।ऐसी बदली हुई परिस्थितियों में गणित अध्यापक विषय के ज्ञान को ग्रहण करने तथा अपने स्तर व योग्यता को ऊंचा उठाते रहना चाहिए।यदि गणित अध्यापक ऐसा नहीं करता है तो छात्र-छात्राओं के साथ न्याय नहीं कर पाएगा।उन्हें ठीक से गणित शिक्षण प्रदान नहीं कर पाएगा।

4.छात्रों को पर्याप्त अभ्यास कार्य कराए (Make the Students do Enough Practice Work):

  • गणित विषय अन्य विषयों से हटकर है।अन्य विषय थ्योरीटिकल है।थ्योरीटिकल विषय को छात्र-छात्राएं स्वयं भी पढ़ लेते हैं और समझ लेते हैं।परंतु गणित विषय प्रैक्टिकल सब्जेक्ट है।इसलिए इसमें अभ्यास कार्य करवाना चाहिए।अभ्यास कार्य देते समय शिक्षक को इसे विश्राम का समय नहीं समझना चाहिए।बल्कि छात्र-छात्राओं की व्यक्तिगत कमजोरियों को दूर करने का प्रयास करें।साथ ही उसे सामूहिक रूप से गणित के अभ्यास में आने वाली कठिनाइयों को सामूहिक रूप से दूर करना चाहिए।
  • छात्र-छात्राएं सामूहिक रूप से त्रुटियां करते हैं उन्हें अपने शिक्षण में शामिल कर उसको दूर करने की युक्ति बतानी चाहिए।
    कक्षा में अभ्यास कार्य कराने के साथ-साथ अभ्यास कार्य गृहकार्य के रूप में देना चाहिए।अभ्यास कार्य की जांच करने हेतु होशियार छात्र-छात्राओं की मदद ली जा सकती है।
  • अक्सर छात्र-छात्राएं सवाल को नोटबुक में उतारते समय गलती कर जाते हैं।गणित के चिन्हों का ध्यान नहीं रखते हैं।अभ्यास कार्य बहुत ही अधिक नहीं देना चाहिए क्योंकि अधिक अभ्यास कार्य से गणित विषय बोझिल और अरुचिकर लगने लगता है। अभ्यास कार्य के साथ-साथ छात्र-छात्राओं को तर्क, चिंतन, मनन करने के लिए भी प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • अभ्यास कार्य देने से पूर्व अध्यापक को संबंधित टाॅपिक की तैयारी कर लेनी चाहिए।कितना अभ्यास कार्य देना है,छात्र-छात्राओं को किस प्रकार की कठिनाईयां आ सकती है तथा उन्हें किस तरह दूर करना है।सफल व प्रभावी शिक्षण के लिए टाॅपिक का नियोजन करना आवश्यक है।

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5.अभ्यास के साथ-साथ बौद्धिक व तर्कशक्ति बढ़ाने के प्रयास (Practice Work as well as Efforts to Increase Intellectual Reasoning Power):

  • अभ्यास कार्य करने मात्र से गणित में दक्षता, निपुणता तथा पारंगत होना संभव नहीं है।अभ्यास कार्य इस प्रकार का भी देना चाहिए जिससे छात्र-छात्राओं को सोचने व चिंतन करने का अवसर मिले।इसके लिए विद्यार्थियों को पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए।छात्र-छात्राओं को इस प्रकार के प्रश्नोत्तर कराना चाहिए जिससे उनके चिंतन और तार्किक क्षमता निखर सके।हर बालक में ये क्षमताएं छुपी हुई होती है।उन्हें तराशना, निखारना तथा उभारना होता है।वस्तुतः यदि आज के गणित शिक्षण कार्य की समीक्षा की जाए तो गणित शिक्षक का कार्य अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है यदि वह अपने पूर्ण उत्तरदायित्व से इसे निभाए।वही अध्यापक छात्र-छात्राओं की चिंतन,तर्क शक्ति तथा मनन करने का विकास कर सकता है जिसे गणित विषय का विशद ज्ञान होने के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान और गणित शिक्षण की विधियों व कौशल का प्रैक्टिकल ज्ञान हो।विद्यार्थियों में छुपी हुई प्रतिभा का पता लगाना और उसे उभारना,तराशना तथा निखारना एक श्रेष्ठ शिक्षक के लिए ही संभव है।

6.अध्यापन में सहायक सामग्री और मनोरंजक सामग्री का प्रयोग करें (Use Helpful Materials and Recreational Materials in Teaching):

  • आज कोई विषय छात्र-छात्राएँ इसलिए पसन्द कर सकते हैं यदि वह विषय रुचिकर और मनोरंजक लगे।छात्र-छात्राओं की खेलों और मनोरंजक वीडियो देखने में और स्वाभाविक रुचि है।गणित विषय में भी पहेलियों,कूट प्रश्नों,मैजिक स्क्वायर, हास्य-व्यंग्य की कुछ विषय-वस्तु को शामिल करके गणित विषय को रोचक और मनोरंजक बनाया जाना चाहिए।हालांकि अध्यापक पर पाठ्यक्रम को पूरा करवाने का दबाव रहता है परंतु फिर भी प्रसंगवश तथा सीमित मात्रा में मनोरंजक सामग्री का समावेश किया जा सकता है।
  • गणित विषय को नीरस, कठिन व अरुचिकर विषय समझा जाता है।उसका कारण यही है की गणित विषय को पढ़ाने में सहायक सामग्री तथा मनोरंजक सामग्री का प्रयोग नहीं किया जाता है।गणित विषय में रुचिकर,मनोरंजक घटनाओं,प्रश्नोत्तर, पहेलियों, सूत्रों, दृष्टांतों, खेलों, उदाहरणों का समावेश करना चाहिए।इससे गणित विषय पर जो यह लेबल लगा हुआ है कि गणित विषय नीरस व कठिन विषय है उसे दूर करने में मदद मिलेगी।यह गणित विषय के इस मिथक (Myth) को दूर करने में एक मजबूत आधार तैयार करेगा।

7.शिक्षण की समीक्षा करें ( Review Teaching):

  • गणित अध्यापक को अपने शिक्षण कार्य की समीक्षा करते रहना चाहिए।उसे यह पता लगाना चाहिए कि कितने विद्यार्थियों को गणित समझ में आ रहा है और कितने विद्यार्थियों को गणित समझ में नहीं आ रहा है।समझ में नहीं आ रहा है तो क्यों समझ में नहीं आ रहा है।अपनी शिक्षण विधि में कौनसे बदलाव करना चाहिए जिससे अधिक से अधिक विद्यार्थियों को गणित रुचिकर तथा मनोरंजक लगे साथ ही समझ में भी आए। समय-समय पर छात्र-छात्राओं का टेस्ट लेकर भी पता लगाया जा सकता है।अपने शिक्षण में प्रश्नोत्तर के द्वारा भी पता लगाया जा सकता है कि विद्यार्थियों के गणित विषय समझ में आ रहा है या नहीं आ रहा है।
  • अपने शिक्षण की समीक्षा वही शिक्षक कर सकता है जिसमें धैर्य, उत्साह,छात्र-छात्राओं के हित के बारे में सोचनेवाला, परिश्रमी, प्रत्युत्पन्नमति, विषय का गहरा ज्ञान, गणित को पढ़ाने का कौशल इत्यादि गुण हो।साथ ही गणित विषय के प्रति गणित अध्यापक का रचनात्मक,सृजनात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए।जो शिक्षक गणित विषय को एक महत्त्वपूर्ण विषय, उपयोगी तथा जीवन के लिए आवश्यक विषय समझता है उसकी कक्षा में विद्यार्थी रुचिपूर्वक भाग लेते हैं।
  • इस प्रकार के शिक्षक ही अपने शिक्षण की सही समीक्षा कर सकते हैं।समीक्षा करके अपनी शिक्षण में आवश्यक बदलाव करते रहना चाहिए जिससे गणित शिक्षण को प्रभावी बनाया जा सके।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित पढ़ाने की 6 टिप्स (6 Tips to Teach Mathematics),प्रभावी गणित शिक्षण की 6 टिप्स (6 Tips for Effective Mathematics Teaching) के बारे में बताया गया है।

8.गणित पढ़ाने का अजीब तरीका (हास्य-व्यंग्य) (A Strange way of Teaching Mathematics) (Humour-Satire):

  • एक पति को पत्नी ने मोबाइल फोन से ईमेल भेजा और कहा कि आप तो यहां से बहुत दूर है इसलिए बच्चे पढ़ने में रुचि नहीं लेते हैं।गणित पढ़ने में तो बिल्कुल भी रुचि नहीं लेते हैं।गणित के मासिक टेस्ट में भी कम अंक आते हैं।
    मैंने उनको बहुत समझाने की चेष्टा की है परन्तु मेरा सारा प्रयत्न बेकार ही रहा है।
  • पति जानता था कि बच्चों के मोबाइल फोन की लत लग गई है।वे मोबाइल फोन से चिपके रहते हैं और कोई ना कोई प्रोग्राम देखते रहते हैं।वे ईमेल भी चेक करते रहते हैं।पति ने ईमेल किया अब तुम्हें ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है क्योंकि मेरे पास जितना भी धन है और जितना भी धन इकट्ठा किया हुआ है उसे मैं उसी पुत्र और पुत्री को दूँगा जो पढ़ने में होशियार होगा।पढ़ने में अव्वल होगा।गणित में अच्छे अंक लाएगा।कक्षा में टाॅप करेगा। पढ़ने-लिखने में मन लगाकर तथा एकाग्रचित होकर ध्यान देगा।
  • यदि कोई भी पुत्र व पुत्री ऐसा करने में नाकाम रहेगा तो मैं अपने सारे धन को दान कर दूंगा परंतु ऐसे निकम्मों को एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा जो पढ़ने लिखने में लापरवाही करते हैं तथा दिलचस्पी नहीं लेते हैं।
    लगभग दो माह बाद पत्नी की एक ओर ईमेल पति को मिली जिसमें लिखा हुआ था कि 2 माह से बच्चों के अध्ययन में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है।सभी बच्चे पढ़ते हैं और पिछले दो टेस्टों में भी गणित और अन्य विषयों में अच्छे अंक आए हैं।

9.गणित पढ़ाने की 6 टिप्स (6 Tips to Teach Mathematics),प्रभावी गणित शिक्षण की 6 टिप्स (6 Tips for Effective Mathematics Teaching) के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.गणित मेंअभ्यास कार्य का क्या महत्त्व है? (What is the Importance of Practice Work in Mathematics?):

उत्तर:यह स्पष्ट है कि गणित के सवालों को अभ्यास कार्य के बिना हल नहीं किया जा सकता है। अभ्यास कार्य करने का यह अर्थ नहीं है कि गणित सूत्रों तथा सवालों के हल को रटा दिया जाए।बल्कि अभ्यास कार्य के द्वारा बालकों में छिपी हुई प्रतिभा, चिन्तन व तर्क शक्ति को विकसित करना है।
गणित में अभ्यास कार्य के द्वारा ही पारंगत हो सकता है शर्त यही है कि गणित के सवालों को यंत्रवत हल न करे।अभ्यास कार्य के अभाव के कारण छात्र-छात्राएं कमजोर पाए जाते हैं।जो विद्यार्थी गणित के अभ्यास कार्य करने में रुचि नहीं लेते हैं उन्हें गणित विषय कठिन तथा अरुचिकर लगता है।
अभ्यास कार्य को ठीक प्रकार से संचालित किया जाए तो छात्र-छात्राओं में धैर्य, कठिन परिश्रम करने की आदत, उत्साह,आत्मविश्वास,एकाग्रता,चिंतन व तर्क करने जैसे गुणों का विकास किया जा सकता है।

प्रश्न:2.गणित में चिंतन व मनन शक्ति का विकास कैसे हो सकता है? (How Can the Power of Thinking and Contemplation Develop in Mathematics?):

उत्तर:अभ्यास कार्य में इस तरह के सवाल व समस्याएं दी जानी चाहिए जिससे छात्र-छात्राएं सोचने, समझने व चिंतन करने को विवश हों। छात्र-छात्राओं को कुछ प्रश्नोत्तर भी करवाने चाहिए जिसे वे सोच-समझ कर जवाब दे सकें।

प्रश्न:3.गणित में दक्ष कैसे हो सकते हैं? (How Can be Proficient in Mathematics?):

उत्तर:गणित में दक्ष होने के लिए निरंतर अभ्यास, अध्यवसाय,अध्ययन,एकाग्रता, लगन,जिज्ञासा, आत्मविश्वास (Continuous Practice, Study, Hard work, Concentration, Passion, Curiosity, Confidence) इत्यादि गुणों की आवश्यकता होती है।ये गुण एकाएक विकसित नहीं होते हैं बल्कि धीरे-धीरे विकसित होते हैं।छात्र-छात्राओं की गणित में नवीन ज्ञान को जानने तथा चिन्तन-मनन करने की आवश्यकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित पढ़ाने की 6 टिप्स (6 Tips to Teach Mathematics),प्रभावी गणित शिक्षण की 6 टिप्स (6 Tips for Effective Mathematics Teaching)के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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गणित पढ़ाने की 6 टिप्स
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गणित पढ़ाने की 6 टिप्स (6 Tips to Teach Mathematics) के आधार पर गणित को रोचक तथा प्रभावी बना सकते हैं।
अक्सर गणित में मनोरंजक सामग्री कम उपलब्ध होती है
इसलिए छात्र-छात्राएं गणित पढ़ने में रुचि नहीं लेते हैं।

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