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4 Tips for Students to Achieve Success

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1.छात्र-छात्राओं द्वारा सफलता हासिल करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Achieve Success),गणित के छात्र-छात्राएं सफलता कैसे हासिल करें? (How Do Mathematics Students Achieve Success?):

  • छात्र-छात्राओं द्वारा सफलता हासिल करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Achieve Success) से तात्पर्य है सार्थक सफलता हासिल करने से है।क्योंकि सफलता तो परीक्षा में नकल करके,अनुचित साधनों का प्रयोग करके अथवा अनेक घटिया तरीके से प्राप्त कर सकते हैं।इसी प्रकार व्यक्ति जाॅब प्राप्त करने के लिए सिफारिश तथा अपने प्रभाव का प्रयोग करके या घूस देकर भी सफलता अर्जित कर सकते हैं।परंतु इसे वास्तविक सफलता नहीं कहा जा सकता है।सार्थक सफलता से तात्पर्य है कि उचित तरीके से,कठिन परिश्रम के बल पर,अपने पुरुषार्थ और अध्यवसाय के बल पर अपनी मौलिक सोच और अभिव्यक्ति के द्वारा प्राप्त सफलता से है।
  • सफलता प्राप्त करने के लिए आत्म-विश्वास,दृढ़ इच्छाशक्ति,संकल्पशक्ति,लक्ष्य का निर्धारण करना,उत्साह व जिज्ञासा का होना,मन की एकाग्रता,सद्बुद्धि धारण करना इत्यादि को अपने जीवन का अंग बनाना होता है।परंतु इन बिंदुओं पर आर्टिकल (लेख) लिखकर पोस्ट किए जा चुके हैं।अतः इन बिन्दुओं के बारे में अध्ययन करना चाहते हैं तो वे लेख पढ़ सकते हैं।हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं इन गुणों को जीवन में धारण करना तो आवश्यक है ही क्योंकि सफलता के लिए ये आधारभूत गुण है तथा इनके बिना सफलता अर्जित नहीं की जा सकती है।
  • सफलता प्राप्त करने के अलग-अलग मापदंड होते हैं।कोई व्यक्ति परीक्षा में सफलता अर्जित करने को सफलता मानता है।कोई व्यक्ति धन-संपत्ति अर्जित करने को सफलता मानता है।अन्य व्यक्ति जाॅब प्राप्त करने को सफलता मानता है।उपर्युक्त तथा अन्य जैसे मान,प्रतिष्ठा,पुरस्कार प्राप्त करना इत्यादि को उचित तरीके से प्राप्त करता है तो भी इसे सार्थक सफलता नहीं कहा जा सकता है।क्योंकि बहुत से लोग धन-संपत्ति अपने पुरुषार्थ तथा कठिन परिश्रम करके प्राप्त करते हैं फिर भी वे असंतुष्ट रहते हैं अतः इसे वास्तविक सफलता नहीं कहा जा सकता है।यह अस्थायी या काम चलाऊ सफलता ही कही जा सकती है क्योंकि इस प्रकार की सफलता नैतिक व उचित तरीके से प्राप्त की गई सफलता है।परंतु जब तक आत्म-संतुष्टि नहीं प्राप्त होती है तब तक उसे सार्थक सफलता नहीं कहा जा सकता है।ये सफलताएं बाहरी सफलताएँ हैं इसलिए आत्मिक संतुष्टि प्राप्त नहीं होती है।आत्मिक संतुष्टि तभी प्राप्त होती है जब हम मानवता के गुणों को भी धारण करते हैं।
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2.छात्र-छात्राएं अपने दोषों का शोधन करें (Students Should Correct Their Faults):

  • एक जैसी क्षमताएं प्राप्त करने पर भी कुछ छात्र-छात्राएं जिस क्षेत्र में भी उतरते हैं उसमें सफलता अर्जित करते जाते हैं जबकि अन्य छात्र-छात्राएं जिस क्षेत्र में भी उतरते हैं उसी में असफलता का स्वाद चखते हैं।जिन्हें असफलताएं मिलती है वे जीवन भर गई-गुजरी परिस्थिति में ही पड़े रहते हैं।ऐसे छात्र-छात्राएं पराश्रित रहकर अपना जीवनयापन करते रहते हैं।एक को सफलता तथा दूसरे को असफल देखकर मन में यह प्रश्न उठता है कि सफल और असफल होने के कौन-कौनसे मौलिक कारण है? कुछ सूत्रों का वर्णन किया जा चुका है और उनके बारे में लेख भी लिखे जा चुके हैं।उनके अतिरिक्त ओर कारणों पर विचार करते हैं।
  • छात्र-छात्राएं जिन परिस्थितियों में जन्म लेते हैं उनमें पूर्ण रूप से गुणयुक्त बने रहना प्रायः असम्भव सा है।हम आपस में व्यवहार तथा सम्बन्धों का निर्वाह करते हैं उसमें गलतियां,भूलें,त्रुटियाँ और अपराध होना भी संभव है।हर छात्र-छात्रा का विवेक जाग्रत नहीं रहता है इसलिए सही-गलत,अच्छे-बुरे का चुनाव करने में भूलें तथा त्रुटियाँ कर बैठते हैं।पूर्ण रूप से सद्गुणी और सदाचारी छात्र-छात्राएं उंगलियों पर गिने जा सकते हैं।अधिकांश व्यक्तियों तथा छात्र-छात्राओं में बुराइयां अवश्य होती हैं।
  • इस संसार में गुण-दोष युक्त व्यक्ति और छात्र-छात्राएं मिलेंगे।यह हो सकता है कि किसी छात्र-छात्रा में गुण अधिक और दोष कम हों अथवा दोष अधिक हों और गुण कम हों।दोष-दुर्गुण और कमियाँ लगभग हर छात्र-छात्रा में होते हैं किन्तु वे अपने आपको दोषी नहीं ठहराते हैं चाहे कितनी ही बड़ी भूल कर दी हो।छात्र-छात्राएं अथवा कोई भी व्यक्ति हो अपना दोष,गलती,त्रुटि के लिए दूसरों को या परिस्थितियों अथवा भाग्य को जिम्मेदार मानते हैं।दोषों को स्वीकार करने तथा उन्हें दूर करने पर मन निर्मल होता है।लेकिन दोष वे छात्र-छात्राएं ही स्वीकार कर सकते हैं जो जागरुक,सचेत और सावधान हों।
  • भूलों,त्रुटियों तथा दोषों को छिपाने पर हमारी प्रगति अवरुद्ध हो जाती है और अवनति की ओर अग्रसर होते जाते हैं।किसी भी छात्र-छात्रा में कितने ही दोष,दुर्गुण तथा कमियाँ हों पर वे उसे दिखाई नहीं देती है क्योंकि उनको देखने के लिए निर्विकार मन और पैनी नजर होनी चाहिए।गलतियां,त्रुटियाँ होने के बावजूद छात्र-छात्राएं उन्हें स्वयं तो नजरअंदाज करता ही है और अन्य छात्र-छात्राओं तथा लोगों से भी यह अपेक्षा करता है कि वे भी उनको नजरअंदाज कर दें।फलस्वरूप कोई दूसरा छात्र-छात्रा हमें हमारी गलतियां व त्रुटियों की ओर संकेत करता है तो वह इसे सहन नहीं करता है बल्कि यह समझता है कि यह मेरे से ईर्ष्या करता है।
  • अपनी त्रुटियां,गलतियां या दोषों को बताने पर दुःखी,असहिष्णु,अनुदार या प्रतिकार करने अथवा प्रतिरोध करने के बजाय रचनात्मक उपयोग की बात सोचनी चाहिए।रचनात्मक उपयोग करने से छात्र-छात्राएं अपने दोषों,दुर्गुणों,त्रुटियों तथा गलतियों को दूर करने का प्रयास करता है और वे उत्कर्ष,प्रगति,उन्नति तथा विकास की ओर अग्रसर होते हैं।

3.छात्र-छात्राएं व्यावहारिक बनें (Students Should be Practical):

  • छात्र-छात्राओं को सफलता पाने के लिए व्यावहारिक होना आवश्यक है।व्यावहारिक होने का तात्पर्य है कि छात्र-छात्राओं को अपनी वास्तविकता को जानना,उसे स्वीकार करना एवं उसी के अनुसार कार्य करना।व्यावहारिक वे छात्र-छात्राएं हो सकते हैं जिन्हें अपनी योग्यता,क्षमताओं और कुशलता का सही ज्ञान हो।ऐसे छात्र-छात्राएं कल्पना लोक और भ्रमों में नहीं जीते हैं।जैसे किसी गणित के छात्र-छात्रा के 12वीं कक्षा में 45% अंक है और वह जेईई-मेन परीक्षा उत्तीर्ण करना चाहता है तो यह व्यावहारिक सोच नहीं है।ऐसी बात नहीं है कि 45% से उत्तीर्ण होने वाला जेईई-मेन में उत्तीर्ण नहीं हो सकता है परंतु ऐसा अपवादस्वरूप ही होता है। पृष्ठभूमि कमजोर होने पर भी अपनी वास्तविकता को न पहचानना और न उसको स्वीकार करना भ्रम में जीना है।ऐसे छात्र-छात्राएं ऐसे कार्य,जॉब,अध्ययन तथा ऐसी प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी शुरू करना चाहते हैं जिसके लिए वे अभी तैयार नहीं है और इस भ्रम में रहते हैं कि वे चाहे तो कुछ भी कर सकते हैं।यह बात कुछ हद तक ठीक है कि हम चाहे जो कर सकते हैं परंतु इसके लिए पर्याप्त समय और श्रम चाहिए ,इन्हें आज और अभी नहीं किया जा सकता है।इस कारण बहुत कुछ करने की काल्पनिक सोच और वास्तव में कुछ न कर पाना ही उनकी असफलता का एक कारण होता है।

4.अपनी सामर्थ्य के अनुसार जाॅब की शुरुआत करें (Start the Job According to Your Ability):

  • सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि हमारी सोच गहरी,दूरगामी व बड़ी हो परंतु चाहे ऐच्छिक विषय लेना हो,प्रतियोगिता परीक्षा देनी हो,जाॅब प्राप्त करना हो,प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी हो अथवा अन्य कोई कार्य करना हो तो उसका चयन अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही करना चाहिए जिसकी शुरुआत आप आसानी से कर सकते हैं।धीरे-धीरे अपनी सामर्थ्य और क्षमता को बढ़ाते हुए उसमें विस्तार करते रहें।जैसे-जैसे हमारा अनुभव बढ़ेगा वैसे-वैसे हमारे आत्मविश्वास में वृद्धि होगी और हमारा कार्य भी बढ़ेगा।
  • जितने भी महान गणितज्ञ,वैज्ञानिक और महापुरुष हुए हैं उन्होंने शुरुआत बहुत छोटे स्तर से की थी किंतु उनकी सोच बहुत बड़ी थी।इसलिए यह कहावत प्रसिद्ध है कि किसी भी कार्य को छोटा नहीं समझना चाहिए।वस्तुतः कोई भी कार्य छोटा होता ही नहीं है बल्कि महत्त्वपूर्ण होता है कार्य।छात्र-छात्राओं के लिए यह कार्य है अध्ययन करना।परंतु जो छात्र-छात्राएं अपनी क्षमता का आकलन किए बिना ही बड़े और महत्त्वपूर्ण कार्य की तलाश में रहते हैं,वे झूठे अहंकार में जीते हैं।भले ही वे बड़े और महत्त्वपूर्ण कार्य को साकार न कर सकते हों।वे इसी भ्रम में रहते हैं कि यदि वे करेंगे तो बड़ा और महत्त्वपूर्ण कार्य ही करेंगे।
    इस प्रकार के छात्र-छात्राएं एक साथ बड़ी सफलता प्राप्त करना चाहते हैं।ऐसा कुछ करना चाहते हैं जिसे अभी तक किसी ने नहीं किया हो और इसी भ्रम में अपना बहुमूल्य समय नष्ट करते रहते हैं।यह उनकी असफलता का एक ओर कारण है।

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5.सफलता का दृष्टांत (Parable of Success):

  • सफलता प्राप्त करने के लिए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए।एक निडर व शक्तिशाली छात्र-छात्रा सकारात्मक सोच सकता है लेकिन कायर,आलसी,लापरवाह व निकम्मा सकारात्मक नहीं सोच सकता है।किसी भी परिस्थिति में संघर्ष न करना तथा जैसी भी परिस्थिति है उसको चुपचाप स्वीकार कर लेना कि जो कुछ हो रहा है वह अच्छा ही हो रहा है,इस प्रकार की सोच सकारात्मक सोच नहीं है।यह तो कायरता,आलस्य व पलायनता है।सकारात्मक सोच का अर्थ है कि हर परिस्थिति में अपने आप पर विश्वास बनाए रखना और अपनी प्रगति,उन्नति के लिए निरंतर संघर्ष करना।
  • नकारात्मक सोच उस दीमक के समान है जो हमें धीरे-धीरे अंदर से खोखला कर देती है और हमारे आत्म-विश्वास को नष्ट कर देती है तथा हमें इतना निर्बल बना देती है कि हमारे लिए साधारण से साधारण कार्य भी असंभव प्रतीत होता है।अपनी सोच को सकारात्मक बनाने का श्रेष्ठ उपाय है सत्संग,स्वाध्याय,अध्ययन,मनन-चिंतन करना।ये उपाय ऐसे हैं जिससे सकारात्मक सोच में अप्रत्याशित वृद्धि होती है।
  • सफलता प्राप्त करने की दिशा में सकारात्मक सोच छात्र-छात्राओं को सुदृढ़ आधार देता है जो हमें विषम व चुनौतियों से भरपूर परिस्थितियों में भी डिगने नहीं देता और संभालते हुए तेजी से अपने लक्ष्य की ओर ले जाता है।इसके साथ-साथ लक्ष्य के प्रति एकाग्रता,व्यावहारिकता,आत्म-विश्वास,सही दिशा में कार्य करना ही हमें सच्चे अर्थों में सफल बनाती है।सफलता के लिए कड़ी मेहनत के साथ कुशलता पूर्वक कार्य करना चाहिए क्योंकि कुशलतापूर्वक किया गया कार्य (स्मार्ट वर्क) कड़ी से कड़ी मेहनत से भी अधिक अच्छे परिणाम देता है।
  • गणित का एक विद्यार्थी था।उसमें गजब की प्रतिभा थी।हमेशा अच्छे अंको से उत्तीर्ण होता था।प्रतिभा के बल पर वह एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर बन गया।एक दिन गणित के अध्यापक रोजगार मेले में गए हुए थे।उन्हें वह इंजीनियर भी मिला जो गणित के अध्यापक से पढ़ा हुआ था।गणित अध्यापक उससे मिलकर और यह सुनकर बहुत खुश हुए कि उनके विद्यार्थी ने कैरियर का एक अच्छा मार्ग चुना है।परंतु वह इंजीनियर बहुत उदास लग रहा था।गणित अध्यापक ने पूछा कि अब तो तुम खुश हो न।उस इंजीनियर ने उत्तर दिया कि बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हूँ।अभी मुझे अस्थायी तौर पर नियुक्त किया है।
  • करीब एक वर्ष बाद गणित अध्यापक को मालूम हुआ कि उसके विद्यार्थी को इंजीनियर के पद पर स्थायी कर दिया गया है।गणित अध्यापक ने अपने उस इंजीनियर विद्यार्थी को प्राचार्य से निवेदन करके आमंत्रित किया,गणित के विद्यार्थियों को व्याख्यान देने के लिए।इस अवसर पर इंजीनियर को सम्मानित भी किया गया।गणित अध्यापक ने पूछा कि अब तो तुम स्थायी हो गए हो इसलिए अब तो खुश हो।इंजीनियर ने वही उत्तर दिया कि अभी कहाँ सर (sir)? अभी तो मुझे बहुत कम वेतन मिलता है,ऐसे में मैं कैसे खुश हो सकता हूं।करीब 2 वर्ष बाद गणित अध्यापक उस बहुराष्ट्रीय कंपनी के पास से गुजर रहे थे कि संयोगवश वह इंजीनियर ऑफिस में आया ही था।बाहर ही मुलाकात होने पर गणित अध्यापक ने पूछा कि उसके वेतन में बढ़ोतरी हुई या नहीं।इंजीनियर ने कहा कि कम्पनी ने वेतन तो बढ़ा दिया।तब गणित अध्यापक ने कहा कि अब तो पूछने की जरूरत नहीं है कि तुम खुश हो।इंजीनियर ने उसी मरी हुई आवाज में कहा कि अभी कहां सर? अभी तो मेरी पदोन्नति नहीं हुई है।
  • गणित अध्यापक को उसका नकारात्मक उत्तर सुनकर इंजीनियर पर गुस्सा आया।उन्होंने कहा कि यदि तुम्हारी यही सोच रहेगी तो जिंदगी में कभी खुश नहीं हो सकते हो।प्रसन्नता,बाहरी भौतिक सुख-सुविधाओं,पद,प्रतिष्ठा,यश,सम्मान मिलने से नहीं प्राप्त होती है।प्रसन्नता तो आन्तरिक आभूषण है।जिस दिन तुम अपना दृष्टिकोण बदलोगे तभी प्रसन्न रह सकते हो।यदि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है तब भी खुश रह सकते हो।इसलिए अपना दृष्टिकोण बदलो और सकारात्मक सोच रखो तभी अपने आपको खुश रख सकते हो।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं द्वारा सफलता हासिल करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Achieve Success),गणित के छात्र-छात्राएं सफलता कैसे हासिल करें? (How Do Mathematics Students Achieve Success?) के बारे में बताया गया है।

6.गणित के सम्मेलन में न जाने का कारण (हास्य-व्यंग्य) (The Reason for Not Going to Mathematics Conference) (Humour-Satire)

  • एक गणित अध्यापक (दूसरे अध्यापक से):तुम गणितज्ञों के सम्मेलन में गणित में हो रही खोज पर हो रही विचार-विमर्श करने के लिए क्यों नहीं जाते हो?
  • दूसरा गणित अध्यापकःमैं नहीं चाहता कि गणित में जो अंट-शंट खोज हो रही है,जो मानवता के कल्याण से जुड़ी हुई नहीं है बल्कि मानवता का विनाश करने के लिए खोजे की जा रही है उनके लिए कोई मुझे जिम्मेदार ठहराए।

7.छात्र-छात्राओं द्वारा सफलता हासिल करने की 4 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 4 Tips for Students to Achieve Success),गणित के छात्र-छात्राएं सफलता कैसे हासिल करें? (How Do Mathematics Students Achieve Success?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सफलता में यथार्थ सोच का क्या योगदान है? (What is the Contribution of Realistic Thinking to Success?):

उत्तर:सफल व्यक्ति वही होते हैं जो यथार्थ में जीते हैं।छात्र-छात्राएं असफल इसलिए हो जाते हैं क्योंकि उनकी सोच यथार्थ से परे होती है।वे अधिकतर समय कोरी कल्पनाओं में जीते हैं,जिनका कोई आधार नहीं होता है।इनकी सबसे बड़ी भूल अपनी वास्तविकता को समझने में होती है।ऐसे विद्यार्थी कई बार अपनी वास्तविकता को स्वीकार करना नहीं चाहते और उसकी जान-बूझकर उपेक्षा कर देते हैं।वे अपने आप से बड़ी-बड़ी अपेक्षा रखते हैं जिसको पूरा कर पाना उनके लिए प्रायः संभव नहीं होता है।वे भ्रम में जीते हैं और वे यह स्वीकार ही नहीं करना चाहते कि कोई ऐसा भी कार्य है जिसे वे नहीं कर सकते हैं।ऐसे लोग अपने अनुभवों व अपनी असफलताओं से भी नहीं सीखते।यही कारण है कि ऐसे व्यक्ति अपना छोटे से छोटा कार्य भी नहीं कर पाते और निराशा में जीते हैं।

प्रश्न:2.लक्ष्य का निर्धारण कैसे करें? (How to Set the Target?):

उत्तर:लक्ष्य का चयन एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है।कुछ भी हमारा लक्ष्य नहीं हो सकता।दूसरों की देखा-देखी कर किसी भी लक्ष्य का निर्धारण कर लेते हैं वे असफल हो सकते हैं।अधिकतर इनमें से वे लोग होते हैं जो दूसरों की सुख-सुविधाओं से प्रभावित होकर उसे ही अपना लक्ष्य मान लेते हैं किंतु जैसे ही उस कार्य में उनके सामने कोई कठिनाई आती है तो वे भाग खड़े होते हैं और कुछ समय बाद कुछ ओर करने लग जाते हैं।इनके लक्ष्य बच्चों की तरह बदलते रहते हैं।दूसरों को देखकर वैसा ही बनने की इच्छा करना गलत नहीं है किंतु महत्वपूर्ण यह जानना है कि क्या सच में वे वैसा करना चाहते हैं? या क्या वह हमारी अपनी चाहत है? क्या हम इसके लिए कुछ कर सकते हैं? भावुकता में आकर या प्रलोभन में पड़कर लक्ष्य का निर्धारण नहीं करना चाहिए क्योंकि उधार का लक्ष्य कभी हमारा नहीं हो सकता।लक्ष्य तो वह होता है जो हमें बेचैन कर दे।जिसे पाए बिना हम रह न सके,वही हमारा सच्चा लक्ष्य हो सकता है।इसके लिए हमें अपने आपको समझना बहुत आवश्यक है।
अपने लक्ष्य का चयन करते समय हमें अपनी वास्तविकता से परिचित होना आवश्यक है।हमें अपनी क्षमता,रुचियों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लक्ष्य का चयन करना चाहिए।यह तीनों पक्ष बहुत महत्त्वपूर्ण है,हम इनमें से किसी की भी उपेक्षा नहीं कर सकते हैं।अधिकतर असफल व्यक्ति वही होते हैं जिन्हें अपनी क्षमता का वास्तविक ज्ञान नहीं होता या उनका लक्ष्य रुचि या परिस्थिति के अनुकूल नहीं होता।लक्ष्य का चयन करने में हम दूसरों से सलाह ले सकते हैं परंतु अंतिम निर्णय हमारा अपना ही होना चाहिए।

प्रश्न:3.सफलता में आत्मविश्वास का क्या योगदान है? (What is the Contribution of Self-confidence to Success?):

उत्तर:किसी भी कार्य को करने के लिए अपने आप पर विश्वास का होना अति आवश्यक है क्योंकि हमारे आत्मविश्वास के अनुरूप ही हमें सफलता मिलती है।आत्मविश्वास के बल पर व्यक्ति असंभव कार्य को भी संभव करके दिखला सकता है जबकि इसके अभाव में साधारण से साधारण कार्य भी हमें असंभव प्रतीत होते हैं।
हमारे अनुभव ही हमारे आत्मविश्वास का आधार होते हैं।वास्तव में हमारे जीवन की छोटी-छोटी सफलताएं भी हमारे आत्मविश्वास का आधार बनती है और इसी के आधार पर हम बड़े से बड़ा कार्य भी आसानी से कर सकते हैं।हर छोटे से छोटा कार्य हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाने का माध्यम होता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं द्वारा सफलता हासिल करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Achieve Success),गणित के छात्र-छात्राएं सफलता कैसे हासिल करें? (How Do Mathematics Students Achieve Success?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

4 Tips for Students to Achieve Success

छात्र-छात्राओं द्वारा सफलता हासिल करने की 4 टिप्स
(4 Tips for Students to Achieve Success)

4 Tips for Students to Achieve Success

छात्र-छात्राओं द्वारा सफलता हासिल करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Achieve Success)
से तात्पर्य है सार्थक सफलता हासिल करने से है।क्योंकि सफलता तो
परीक्षा में नकल करके,अनुचित साधनों का प्रयोग करके अथवा अनेक घटिया तरीके से प्राप्त कर सकते हैं।

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