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Role of Action in Achieving Success

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1.सफलता प्राप्ति में कर्म की भूमिका (Role of Action in Achieving Success),सफलता कर्म से मिलती है (Success Comes by Doing Deeds):

  • सफलता प्राप्ति में कर्म की भूमिका (Role of Action in Achieving Success) सर्वविदित है।कर्म ही जीवन है,कर्म ही पूजा है,कर्मयोगी को सफलता प्राप्त होती है।कर्म को चाहे जिस नाम से पुकारे चाहे काम कह लें,पुरुषार्थ कह लें,कठिन परिश्रम या अध्यवसाय परंतु कर्म तो करना ही होगा।
  • छात्र-छात्राएं अध्ययन करते हैं तो यह भी कर्म ही है।अध्ययन जितनी लगन,निष्ठा व उत्साह के साथ करेंगे उसका परिणाम उतना ही बेहतरीन मिलेगा।अध्ययन कार्य व अध्ययन के परिणाम में आसक्ति न रखकर कर्त्तव्य समझकर अनासक्तिपूर्वक करें तो अध्ययन के अच्छे-बुरे परिणाम से सुखी व दुःखी नहीं होंगे।
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2.कर्म से शिकायत नहीं करें (Don’t Complain About Deed):

  • प्रत्येक कार्य जीवन में महान संभावनाएँ लेकर आता है।छोटे-से-छोटा काम भी जीवन-विकास के लिए उसी तरह महत्त्वपूर्ण है जिस तरह एक छोटा बीज,जो कालांतर में विशाल वृक्ष बन जाता है।किसी मनुष्य का मापदंड उसकी आयु नहीं वरन उसके काम की है,जो उसने जीवन में किए हैं।इसलिए कर्मवीरों ने काम को ही जीवन का आधार बनाया।एक मनीषी ने तो यहां तक कह दिया “हे कार्य? तुम्हीं मेरी कामना हो,तुम्हीं मेरी प्रसन्नता हो,तुम्हीं मेरा आनंद हो।” इसमें कोई संदेह नहीं कि तुच्छ से महान,असहाय से समर्थ,शक्तिशाली,रंक से राजा,मूर्ख से विद्वान,सामान्य से असामान्य बनाने वाले,वे छोटे से लेकर बड़े सभी कार्य हैं जो समय-समय पर हमारे सामने आकर उपस्थित होते हैं।किंतु एक हम हैं जो अनेक शिकायतें करके अपने कर्मदेव का अपमान करते हैं और वह लौट जाता है हमारे द्वार से।तब पश्चाताप करने और हाथ मलने के लिए ही विवश होना पड़ता है हमको।
  • कभी-कभी हम शिकायत करते हैं, “यह काम तो बहुत छोटा है,यह मेरे व्यक्तित्त्व के अनुकूल नहीं है,मैं इन तुच्छ कामों के लिए नहीं हूं।” आदि आदि।लेकिन हमने कभी यह भी सोचा है कि उद्गम से आरंभ होने वाली नदी प्रारंभ में इतनी छोटी होती है कि उसे एक बालक भी पार कर सकता है।एक विशाल वृक्ष जो बहुतों को छाया दे सकता है,मीठे फलों से तृप्त कर सकता है,अनेक पक्षियों का बसेरा होता है,आरंभ में एक छोटा सा बीज ही था,जो तनिक सी हवा के झोंके से उड़ सकता था,एक छोटी सी चिड़िया भी उसे निगल सकती थी,एक चींटी उसे उठाकर ले जा सकती थी।बहुमूल्य मोती प्रारंभ में एक साधारण सा बालू का कण ही होता है।
  • यही स्थिति हमारे सामने आने वाले कार्यों की भी है।प्रत्येक महान् और असाधारण बनाने वाला काम भी प्रारंभ में छोटा,सामान्य लगता है।किंतु कर्मवीर जब उसमें एकाग्र होकर लगते हैं वे ही महान असाधारण महत्त्व के कार्य बन जाते हैं।
  • क्या आपको याद है उस वैज्ञानिक बनने की आकांक्षा रखने वाले बालक ऐडीसन को उसके शिक्षक ने पहले घर में झाड़ू लगाने का काम सौंपा था और जब शिक्षक ने देखा कि इस कार्य में भी बालक की वैज्ञानिक प्रतिभा और गहरी दिलचस्पी काम कर रही है तो उसे विज्ञान की शिक्षा देनी प्रारंभ की और वह अपने इस सद्गुण को विकसित करता हुआ महान वैज्ञानिक बना।
  • प्रत्येक महान बनने वाले व्यक्ति के जीवन का प्रारंभ उन छोटे-छोटे कार्यक्रमों से ही होता है जिन्हें हम छोटे,तुच्छ समझकर मुंह फेर लेते हैं।उन छोटे-छोटे कार्यों का जिन्हें हम छोटे,महत्त्वहीन,सामान्य कहकर टाल देते हैं हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है।उन पर ही हमारे जीवन की महानताओं का भवन खड़ा होता है।एक-एक मिलकर ही वस्तु का आकार-प्रकार बनाते हैं।विशालकाय इंजन में एक कील का भी अपना महत्त्व होता है।उसे निकाल दीजिए सारा इंजन बेकार हो जाएगा।बड़े भवन में एक छोटे से पत्थर को भी अस्थिर और ढीला-ढाला छोड़ दिया जाए तो उसके गिर जाने का खतरा रहेगा।हमारे जीवन में आने वाले छोटे-छोटे कार्य मिलकर ही महान जीवन का सूत्रपात करते हैं लेकिन जब हम अपने कामों को छोटे और महत्त्वहीन समझकर उन्हें भली प्रकार नहीं करते तो वे हमें बहुत बड़ा श्राप देते हैं,जिससे हमारे जीवन की सफलता अधूरी और अपंग रह जाती है।

3.काम में रुचि-अरुचि का प्रश्न खड़ा न करें (Do Not Raise the Question of Interest or Disinterest in Work):

  • काम जो भी सामने खड़ा है उसमें रुचि-अरुचि का प्रश्न उठाना उसी तरह अयुक्त है जिस तरह गर्मी के दिनों में सर्दी की कामना करना।गर्मी है तो इसी में रहने का अभ्यास डालना पड़ेगा जो काम हमारे सामने है उसे पूरा करने में जुट जाना ही हमारा वर्तमान धर्म है।महत्त्वाकांक्षा या रुचि के अनुसार सब कुछ तुरत-फुरत नहीं हो जाता।धीरे-धीरे ऐसी भी परिस्थितियों पैदा हो जाती है जब मनुष्य को अपनी रुचि के अनुसार काम करने को मिले किंतु यह तभी संभव है जब हम वर्तमान में जो काम सामने है,उसे पूरा करने में लग रहें।रुचि के अनुकूल काम कब मिलेगा,यह भविष्य पर निर्भर है किंतु जो आवश्यक और अनिवार्य है,वह है अपने प्रत्येक काम से प्यार करना,उसमें रस लेना और बड़ी तन्मयता,लगन के साथ उसे पूर्ण करना।इसी से हमारा उद्धार हो सकेगा।
  • इच्छानुसार काम की प्रतीक्षा में मनुष्य को संपूर्ण जीवन ही बिता देना पड़े तो कोई संदेह नहीं कि ऐसे व्यक्ति के लिए जीवन में कभी भी ऐसा काम नहीं आएगा।बिना रुचि के किए गए काम न पूर्ण होते हैं ना उनका कोई ठोस परिणाम ही मिलता है।
  • अपने काम में रुचि-अरुचि का प्रश्न उठाना अनुपयुक्त है।यह एक तरह से अपनी अकर्मण्यता और आलस्य को प्रोत्साहन देना है।मानव मन की यह विशेषता है कि वह जिस प्रकार के भावों से प्रभावित होता है वैसा ही बनता जाता है।काम में रुचि-अरुचि का अभ्यस्त मन आगे चलकर ऐसा बन जाता है कि उसे किसी भी काम में रुचि नहीं रहती और वे उसे अधूरा छोड़ देते हैं।ऐसे व्यक्ति एक काम को हाथ में लेते हैं,नए-नए काम आरंभ करते रहते हैं और थोड़े समय के बाद उससे भी अरुचि हो जाती है तो दूसरे में लगते हैं।
  • तात्पर्य यह है कि वे किसी भी काम में दृढ़ स्थिर नहीं रह पाते।दूसरी ओर जब उपस्थित काम में हम प्रयत्नपूर्वक लग जाते हैं तो थोड़े समय में ही रुचि भी वैसी ही बन जाती है।इसलिए रुचि-अरुचि का प्रश्न उठाना असंतुलित मनोभूमि का कारण है।आलस्य-प्रमाद की प्रेरणा से ही मनुष्य इस तरह की मीन-मेख निकलता रहता है।

4.सफलता के लिए कर्म करना आवश्यक (Action is Necessary for Success):

  • कई बार अपने काम में धैर्य और निष्ठा का अभाव हमें सफलता के द्वार से वापस लौटा देता है।तब हमारी शिकायत होती है “कब तक करते रहेंगे।” मनुष्य की यह एक स्वाभाविक कमजोरी होती है कि वह तुरत-फुरत अपने काम का परिणाम देख लेना चाहता है।जिस तरह खेल-खेलने में आम की गुठली मिट्टी में गाड़ते हैं और जल्दी-जल्दी बार-बार उखाड़कर देखते हैं कहीं आम का पेड़ उग तो नहीं आया? वे भोले बालक यह नहीं जानते कि कहीं कुछ मिनट में ही आम का पौधा कभी उगता है? अपने काम के परिणाम के बारे में जल्दी-जल्दी सोचना इसी तरह की बचकाना प्रवृत्ति है।
  • यह निश्चित है कि अच्छे उद्देश्य से भली प्रकार किया गया काम समय पर अपने परिणाम अवश्य प्रदान करता है।लेकिन किसी काम का फल कब मिलेगा इसका ठीक-ठीक समाधान सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता।इसलिए अपने काम के परिणाम के बारे में अधिक सोच-विचार न करके कर्मवीर के सामने एक ही मार्ग है कि वह जब तक सफलता न मिले अपने काम में डूबा रहे।हम तन्मय होकर काम में लग रहे।उसमें हमको गहरी निष्ठा हो अपने काम के सिवा दूसरी बात हम न सोचें तो कोई संदेह नहीं कि एक दिन सफलता स्वयं हमारा दरवाजा खटखटाएगी।
  • वस्तुतः काम को व्यापार न माना जाए,काम तो काम है।जिस तरह कलाकार अपनी कला से प्यार करता है उसमें तन्मय होकर निष्ठा के साथ साधना करता है उसी तरह काम भी कला समझकर किया जाए।हम अनुभव करेंगे कि जिस तरह कलाकार को अपनी कला-साधना से मिलने वाला आनंद,स्फूर्ति प्रसन्नता,कृति के भौतिक मूल्य से मूल्यवान होती है उसी तरह कर्म-साधना हमें वह आनंद,प्रसन्नता,चेतना प्रदान करेगी जो उसके भौतिक परिणाम से कहीं अधिक कीमती होगी।
  • आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने काम से प्यार करें,उसकी इज्जत करें।कर्म साधना में पूर्ण तन्मय हो जाएँ।काम के प्रति छोटे-बड़े,रुचि-अरुचि,”कब तक करेंगे” आदि शिकायतें न करें।तभी हम देखेंगे कि हमारा काम ही हमें जीवन के महान वरदानों से परिपूर्ण कर देगा।वस्तुतः काम करना हमारे स्वभाव का आवश्यक अंग होना चाहिए।जो काम हमारे सामने है यदि हम भली प्रकार उसे करने को तत्पर हो जाते हैं तो कोई संदेह नहीं कि एक दिन वह भी आएगा,जब हमें अपनी रुचि के अनुसार बड़े-बड़े काम मिलेंगे और उनसे हमारी महानता का पथ प्रशस्त हो सकेगा।

5.पुरुषार्थ के दृष्टांत (Parables of Purusharth):

  • ईसा मसीह जिसके अनुयायी आज दुनिया में एक तिहाई से अधिक हैं,एक बढ़ई के पुत्र थे और कुछ लोगों की यह भी मान्यता है कि वे कुँवारी मां के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।विश्व विजय का स्वप्न देखने वाला सिकंदर यद्यपि एक राजपुत्र था,पर आरम्भ से उसे दुर्दिनों का सामना करना पड़ा था।अपने प्रेमी के प्रणय जाल में अँधी होकर सिकंदर की मां ने अपने ही पति राजा फिलिप की हत्या करवा दी थी और सिकंदर का तिरस्कार भी कर दिया।परंतु परिस्थितियों पर हावी होने का संकल्प इतना मजबूत था कि सिकंदर ने अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिणत कर दिखाया।
  • कार्लमार्क्स यद्यपि गरीब परिवार का था और गरीबी में ही मरा।मरते दम तक उसे कई स्थानों पर भटकना पड़ा,लेकिन अपनी संकल्पशक्ति व दृढ़ विचारों द्वारा दुनिया के करोड़ों लोगों को अपना भाग्य-विधाता आप बना गया।सत्रह बार की उसकी लिखी ‘दास कैपिटल’ अठारहवीं बार सही रूप में सामने आई तथा साम्यवाद की आधारशिला बन गई।
  • एक अध्यापक के पुत्र,जो अध्यापक द्वारा ही अपना जीवन निर्वाह चलाना चाहते थे,बाल गंगाधर तिलक ने देश काल की परिस्थितियों के अनुसार अपना जीवन लक्ष्य निर्धारित किया और स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है,के मंत्र दृष्टा बन गए।उनके पिता की मृत्यु तभी हो गई थी,जबकि वे 16 वर्ष के थे और इसी अवस्था में उन पर परिवार का दायित्व आ गया,जिसे पूरा करते हुए वे राष्ट्र सेवा क्षेत्र में उतरे।मरने के बाद ही सही वे अपने देशवासियों को जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त कराने में सफल हुए?
  • झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपंत चिपणाजी अप्या के दरबार में कुल ₹50 मासिक वेतन मिलता था।लक्ष्मीबाई की माता का देहांत बचपन में ही हो गया था,फिर भी उनके व्यक्तित्त्व का विकास स्वाभाविक रूप से हुआ और शौर्य,पराक्रम तथा साहस के बल पर वे राजरानी के पद पर आसीन हुई।
  • विख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन,जिसने परमाणु शक्ति का उपयोग मानव कल्याण में करने की विद्या खोजी,बचपन में मूर्ख और सुस्त थे।उनके माता-पिता को चिंता होने लगी थी कि यह लड़का अपनी जिंदगी कैसे गुजरेगा?लेकिन जब उन्होंने प्रगति के पथ पर बढ़ना आरंभ किया तो सारा संसार चमत्कृत होकर देखता रह गया।
  • सफलता के लिए अनुकूल परिस्थितियों की बाट नहीं जोही जाती,संकल्पशक्ति को जगाया,उभारा व विकसित किया जाता है,आशातीत सफलता जीवन के हर क्षेत्र में प्राप्त करने का एक ही राजमार्ग है,प्रतिकूलताओं से टकराना,अंदर छिपी सामर्थ्य को उभारना।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में सफलता प्राप्ति में कर्म की भूमिका (Role of Action in Achieving Success),सफलता कर्म से मिलती है (Success Comes by Doing Deeds) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित का तीखापन (हास्य-व्यंग्य) (The Sharpness of Mathematics) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (छात्र से):गणित का तीखापन कैसे मालूम पड़ सकता है?
  • छात्र:गणित के कठिन सवाल जब छात्र की हालत पतली कर देता है तो गणित का तीखापन मालूम पड़ जाता है।

7.सफलता प्राप्ति में कर्म की भूमिका (Frequently Asked Questions Related to Role of Action in Achieving Success),सफलता कर्म से मिलती है (Success Comes by Doing Deeds) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मेहनत करने पर भी आशातीत सफलता नहीं मिलती? (Do You Not Get the Expected Success Even After Working Hard?):

उत्तर:सफलता के लिए जो प्रयास किया गया था उसमें यदि कोई जानकार व्यक्ति बड़ी सूक्ष्मता से देखे तो वह पता लगा सकता है कि आखिर वह कौन बिंदु था,जो अनछुआ एवं अछूता रह गया और जिसके कारण वांछित सफलता नहीं मिल पाई।इस संदर्भ में तुम्हारी दृष्टि से कहीं अधिक एक विशेषज्ञ की सूक्ष्मदृष्टि की आवश्यकता है,जो तुम्हें अपनी कमियों एवं खामियों को सही ढंग से बता सके।यदि उसे पूरा कर लिया जाए तो सफलता सुनिश्चित है।

प्रश्न:2.सफलता प्राप्ति के मुख्य बिंदु क्या है? (What are the Main Points of Success?):

उत्तर:उसमें पहली चीज है:क्या पाना है,इसका स्पष्ट निर्धारण (लक्ष्य का निर्धारण)।साथ ही इसकी तीव्रतम इच्छा।अपने मन में यही कल्पना करना चाहिए,जिसे पाना है।दूसरा बिंदु है:प्रबल विश्वास।यह विश्वास हमें अपनी इच्छा पर भी हो और उस पर भी,जिसकी हम उपासना करते हैं।तीसरा बिंदु:निरंतर,परंतु संतुलित प्रयास।अपने प्रयास में आने वाले विघ्नों के बावजूद बिना घबराए जुटे रहो।मन से कभी हार न मानो,निरंतर लगे रहो।हां,इसमें संतुलन भी बनाए रखो,ताकि कोई तनाव तुम्हारी क्षमता को कम नहीं कर पाए।चौथा तत्व है:परिस्थितियों के प्रति स्वीकार्यता।इसकी समझ एवं स्वीकार्यता से अवसरों को अपनाने में सुविधा मिलती है। पांचवा बिंदु है:निरंतर आगे की ओर बढ़ना।इसका तात्पर्य है जीवन में जो भी परिस्थितियाँ आएँ,उन्हीं में उपयुक्त राह खोज लेना।

प्रश्न:3.सफलता से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Success?):

उत्तर:सफलता का तात्पर्य है:अपनी पूरी मेहनत,लगन, समझदारी एवं समय के साथ किया गया वह कार्य जो हमें सुकून एवं संतोष प्रदान करता है।जिस कार्य में हमारी ऊर्जा लगी हो,समय खपा हो एवं बुद्धि का प्रयोग किया गया हो,उस कार्य को ही तो सत्कर्म कहते हैं और इसका परिणाम अत्यंत सुखद एवं संतोषजनक होता है। यही परिणाम ही तो सफलता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा सफलता प्राप्ति में कर्म की भूमिका (Role of Action in Achieving Success),सफलता कर्म से मिलती है (Success Comes by Doing Deeds) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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