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4 Tips for Students to Perform Duties

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1.विद्यार्थी द्वारा अपने कर्त्तव्यों को पालन करने की टिप्स (4 Tips for Students to Perform Duties),विद्यार्थियों द्वारा अपने धर्म का पालन करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Follow Their Character):

  • विद्यार्थी द्वारा अपने कर्त्तव्यों को पालन करने की टिप्स (4 Tips for Students to Perform Duties) के आधार पर आदर्श आचरण का उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं।धर्म का,कर्त्तव्यों का विद्यार्थियों के लिए न केवल आध्यात्मिक महत्त्व है बल्कि भौतिक महत्त्व भी है।वैदिक आर्यों ने भी धर्म को सबसे प्रमुख पुरुषार्थ माना है और उनके अनुसार व्यवहार किया है।
  • चार पुरुषार्थ हैं:धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष अर्थात् मनुष्य को सबसे पहले धर्म का पालन करके उसके अनुसार आचरण करना चाहिए।यदि विद्यार्थी चारों पुरुषार्थों का पालन भी न भी करें तो धर्म का पालन अवश्य करना चाहिए।एक पुरुषार्थ का पालन ठीक से करने पर अन्य पुरुषार्थों का पालन करना भी सरल हो जाता है।
  • धरतीति सः धर्मः अर्थात् जो धारण किया जाए वह धर्म है।अपने कर्त्तव्यों का पालन करना ही धारण करना होता है।मनु स्मृति में लिखा है:
    “धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
    तस्माद्धर्मों न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोवधीत्।।
  • अर्थात् मारा हुआ धर्म ही हमको मारता है और हमसे रक्षा किया हुआ धर्म ही हमारी रक्षा करता है इसलिए धर्म का हनन नहीं करना चाहिए जिससे तिरस्कृत धर्म हमारा विनाश न करें।
  • विद्यार्थी धर्म का पालन न करे तो उसको धर्म कैसे मारता है? इसको ठीक से समझने की आवश्यकता है।विद्यार्थी का कर्त्तव्य है विद्याध्ययन करना,विद्या का अभ्यास करना,गणित के सवालों को हल करना,गणित के सिद्धांतों,समस्याओं को मनोयोगपूर्वक हल करना।इन कर्त्तव्यों का विद्यार्थी पालन नहीं करता है तो ये बातें विद्यार्थी को मार डालती है अर्थात् नष्ट कर देती है।जो इन बातों अर्थात् अपने कर्त्तव्यों की रक्षा करता है यानी भली प्रकार विद्या को आत्मसात करता है,अभ्यास करता है,विद्या को आचरण में उतारता है तो उसका परिणाम अच्छा ही होगा अर्थात् परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होगा।यदि विद्या का अभ्यास नहीं करेगा,नकल करके परीक्षा में उत्तीर्ण होने का काम करेगा,अनैतिक व अनुचित तरीके अपनाकर परीक्षा में उत्तीर्ण होगा तो उसका परिणाम खराब होगा। जीवन में आने वाली समस्याओं को कुशलतापूर्वक हल नहीं कर पाएगा।ज्ञान के अभाव में किसी कार्य को ठीक से संपन्न नहीं कर पाएगा।इस प्रकार अच्छी तरह,उचित तरीके से,उचित दिशा में,उचित उद्देश्य से विद्या का अध्ययन करना धर्म की रक्षा करना है।और गलत तरीके अपनाकर परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर उसका परिणाम भी खराब होता है। जैसे नकल करते हुए पकड़े जाने पर आगे परीक्षा से बहिष्कृत किया जा सकता है,सजा भी हो सकती है,परीक्षा में अनुत्तीर्ण किया जा सकता है इस प्रकार धर्म का पालन न करने से मारना हुआ।
  • जो विद्यार्थी अध्ययन करने में अनैतिक,अशुभ आचरण को अपनाता है उसको देर-सबेर उसके दुःखद परिणाम भोगने पड़ते हैं।विद्यार्थी द्वारा किए गए अनैतिक कर्म,दुराचरण करके उत्तीर्ण हो भी जाता है तो उसके पापकर्मों सहित अन्त में समूल नष्ट हो जाता है।अन्त में उसके परिणाम भोगने ही पड़ते हैं।विद्यार्थी द्वारा किए गए पाप कर्मों का फल कोई दूसरा भोग नहीं सकता है।
  • भारतीय धर्म एवं संस्कृति के अनुसार मनुष्य अजर-अमर है।उसकी देह ही नष्ट होती है।आत्मा अमर है।विद्यार्थी द्वारा किए गए कर्म सदा उसके साथ जाते हैं,साथ निभाते हैं।व्यक्ति मर जाता है तो अपने किए गए कर्मों से याद रहता है और वही उसके साथ जाते हैं।उसके द्वारा किए गए कर्मों का फल भोग न लिया जाए तब तक कर्मों से छुटकारा पाना असंभव है।यदि विद्यार्थी ने विद्याध्ययन में अनैतिक,अशुभ तरीके अपनाए हैं और उसका दंड नहीं भी मिला है तो कभी न कभी उसका फल भोगना पड़ेगा।अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं अर्थात् किए गए शुभ या अशुभ कर्मों का फल हमें भोगना ही पड़ता है।
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2.धैर्य धारण करें (Be Patient):

  • विद्याध्ययन करने के लिए धैर्य धारण करें।धैर्य धारण न करने से अर्थात् गणित के सवालों को हल करने में जल्दबाजी करेंगे,शीघ्रता करेंगे।जल्दबाजी और शीघ्रता में सवाल गलत हो जाता है।जल्दबाजी,उतावलेपन,शीघ्रता में हमारा ध्यान एक जगह केंद्रित नहीं हो पाएगा।जब ध्यान एक जगह केन्द्रित नहीं होगा तो एकाग्रता कायम नहीं रख सकेंगे।धैर्य के बिना अध्ययन तो क्या जीवन में कोई भी कार्य सफलतापूर्वक नहीं कर सकते हैं।धैर्य न होने से सवालों को आधे-अधूरे करेंगे या गलत करेंगे।फिर विद्यार्थी शिकवा-शिकायत करते रहते हैं कि बहुत प्रयास करने पर भी सवाल हल नहीं हुआ या किसी का कोई चैप्टर (पाठ) समझ में नहीं आया।कई विद्यार्थी कहते हैं कि हमें भौतिक विज्ञान समझ में नहीं आता है या अन्य विषय समझ में नहीं आता हैं।इसका मूल कारण धैर्य और एकाग्रता का अभाव ही होता है।धीरे-धीरे समय निकलता जाता है और विद्यार्थियों के विषय का कोर्स छूटता जाता है।विषयों का कोर्स का भार दिनोंदिन बढ़ता जाता है।
  • परीक्षा नजदीक आती है तब इतना कोर्स का भार होने से विद्यार्थी तनावग्रस्त हो जाते हैं।वे सोचते हैं कि इस विषय का कोर्स भी छूट गया,उस विषय का कोर्स भी छूट गया।जिसके दबाव से विद्यार्थियों में कई मानसिक विकृतियां पैदा हो जाती है जैसेः अनिद्रा,सिरदर्द,मन का उच्चाटन,निराशा,हीन भावना,चिंता इत्यादि।
  • धैर्य धारण करने का अर्थ निष्क्रिय होना या आलसी होना नहीं होता है बल्कि अध्ययन करने,गणित के सवालों को हल करने में उसका दृष्टिकोण सकारात्मक है,अभ्यास करने में तत्पर है वही धैर्यवान होता है।अध्ययन को निरंतर व नियमित रूप से करते रहना जब तक कि अध्ययन कार्य पूरा नहीं हो जाए तो उसे धैर्य धारण करना कहते हैं।जब तक अध्ययन करने,गणित के सवालों को हल करने में दक्षता प्राप्त नहीं हो जाती है तब तक धैर्य बनाए रखना जरूरी है।

3.एकाग्रता का अभ्यास करें (Practice Concentration):

  • धैर्य के साथ एकाग्रता का अभ्यास करना भी जरूरी है।एकाग्रता का अर्थ है जो मन विभिन्न दिशाओं में चलायमान है उसको अध्ययन पर,किसी एक विचार पर केंद्रित करना।अध्ययन में सफलता अर्जित करने के लिए,गणित के कठिन व गूढ़ सवालों को हल करने के लिए धैर्य के साथ मन का एकाग्र होना भी आवश्यक है।यदि मन की ऊर्जा (मानसिक ऊर्जा) कई दिशाओं में बँटी हुई होगी तो भी अध्ययन कार्य,गणित को हल करने का अभ्यास नहीं कर सकते हैं।धैर्य और मन की एकाग्रता यह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।धैर्य के बिना ध्यान अर्थात् एकाग्रता नहीं सधती है तथा ध्यान के बिना धैर्य नहीं टिका रह सकता है।जैसे किसी पौधे को लगाते ही उखाड़ कर देखें कि उसकी जड़े जमीन में गई है या नहीं तो इसका मतलब है विद्यार्थी में धैर्य नहीं है।
  • अध्ययन कार्य तथा गणित के सवालों को हल करने का कार्य सफलतापूर्वक कर सकें इसके लिए धैर्य और मन का एकाग्र होना जरूरी है।मन की चंचलता से ध्यान भंग होता है,मन इधर-उधर भटकता रहता है।मन की ऊर्जा का सदुपयोग नहीं हो सकता है।मन एकाग्र होने पर ही मनोबल का सही उपयोग किया जा सकता है।
  • अध्ययन कार्य को भलीभाँति करने के लिए धैर्य और मन को एकाग्र करने का कार्य एक साथ करना होगा।जैसे सिक्के के दो पहलू चित्त और पट को अलग-अलग नहीं किया जा सकता है वैसे ही धैर्य और मन की एकाग्रता को अलग-अलग नहीं किया जा सकता है।यानि ऐसा नहीं हो सकता है कि पहले धैर्य धारण कर लें और फिर मन को एकाग्र करने का अभ्यास कर लेंगे।दोनों का अभ्यास करना एक साथ शुरू करना होगा।
  • मन को एकाग्र करने के कई उपाय हैं।पहला उपाय तो यह है कि गणित के सवालों को हल करने में अपने आपको तल्लीन करने की कोशिश करें।यदि मन इधर-उधर भटकता है या मन में अन्य कोई विचार आता है तो उसको कम्पनी न दें।धीरे-धीरे ज्यों-ज्यों सवाल हल होते जाते हैं तथा गणित के सवालों को हल करने में सफलता मिलती जाती है तो एकाग्रता सधने लगती है।
  • दूसरा तरीका है कि सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर ध्यान किया करें।ध्यान करने के लिए आज्ञाचक्र (भ्रूमध्य) में अपने इष्टदेव या प्रकाशस्वरूप ज्योति का ध्यान कर सकते हैं।शुरू-शुरू में मन इधर-उधर भटकता है परंतु बार-बार अभ्यास करने से एकाग्रता सधने लगती है।
  • तीसरा तरीका है कि किसी भी विषय का अध्ययन डूबकर करें।हो सकता है किसी विषय को पढ़ने,गणित के सवालों को हल करने में कोई शब्दार्थ समझ में नहीं आए तो उनको नोटबुक पर लिख ले।कोई सवाल नहीं आया हो तो उसको चिन्हित कर ले।फिर उन शब्दार्थों अथवा सवालों को मित्रों से अथवा शिक्षक से समझने की कोशिश करें।इसके अलावा इंटरनेट या यूट्यूब वीडियो पर भी उनको समझा जा सकता है।तात्पर्य यह है कि जब तक कोई टॉपिक समझ में न आए तो उसके पीछे लगनपूर्वक,रुचिपूर्वक लगे रहे तो अन्ततः वह समझ में भी आएगा और आपकी एकाग्रता भी सधने लगेगी।

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4.सद्बुद्धि का प्रयोग करें (Use Good Sense):

  • भगवान ने जितने प्राणी संसार में पैदा किए हैं उनमें मनुष्य श्रेष्ठ है।क्यों श्रेष्ठ है क्योंकि आहार,निद्रा,भय,मैथुन,बच्चों का पालन पोषण करना इत्यादि कार्य तो पशु-पक्षी भी करते हैं परंतु पशु-पक्षियों में विवेक,सद्बुद्धि नहीं होती है।
  • विद्यार्थी जब तक अध्ययन कार्य को सद्बुद्धिपूर्वक नहीं करेगा तब तक उसे सही रूप में सफलता अर्जित नहीं हो सकती है।नकल करने वाले,अध्यापक को डरा-धमकाकर परीक्षा में सवाल पूछने वाले,गलत कार्यों से उत्तीर्ण करने वाले छात्र-छात्राओं में भी बुद्धि तो होती है परंतु उनमें सद्बुद्धि नहीं होती है।यदि सद्बुद्धि होती तो वे अध्ययन कार्य तथा गणित के सवालों को कठिन परिश्रम करके,सद्बुद्धि का उपयोग करके हल करके अथवा अध्ययन करते।
  • क्या अध्ययन करने से हित होगा,क्या अध्ययन करने से अहित होगा,अध्ययन किस प्रकार करना चाहिए,अध्ययन किस प्रकार नहीं करना चाहिए इत्यादि कार्यों को जिससे जाना जाता है वह सद्बुद्धि है।अध्ययन कार्य में क्या-क्या करना होता है,अध्ययन का अर्थ क्या है?अध्ययन कार्य किस प्रकार से सिद्ध किया जाए,अध्ययन करने के साधन क्या-क्या हैं,ऐसी कौन-कौनसी बाधाएं,समस्याएं व कठिनाइयां हैं जो अध्ययन करने में आ सकती हैं। इन बातों को जो भलीभांति विचार और मनन करता है वही बुद्धिमान है।बुद्धिमान विद्यार्थी अध्ययन करते समय अपनी उन्नति करता है तो दूसरे की अवनति नहीं करता है।जिस अध्ययन कार्य से दूसरे की हानि हो वास्तव में वह अध्ययन नहीं है।
  • जो बात विद्यार्थी को समझ में नहीं आती है उसे वह पुस्तकों की सहायता से हल करता है अथवा मित्रों से, बड़ों से या शिक्षकों से पूछता है।अध्ययन कार्य में आने वाली रुकावटों को पहले ही भाँपकर उसका समाधान ढूंढ लेता है।उसको रोकने का प्रयास करता है।भविष्य पर या होनी पर भरोसा करके बैठा नहीं रहता है।

5.सद्विद्या धारण करें (Imbibe Goodwill):

  • सद्विद्या का अर्थ है जानने की अच्छी बातें।संसार में जितनी भी चीजें हमको दिखाई देती हैं और जो दिखाई नहीं देती है,सबमें जानने की अच्छी-अच्छी बातें हैं।सबका ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है। परंतु जो आपका लक्ष्य है उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी व ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।इसके अलावा जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए व्यावहारिक बातों को भी जानना चाहिए।व्यावहारिक बातों की सामान्य जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।नीति में कहा है कि शास्त्र अनन्त हैं।विद्या बहुत है।समय बहुत थोड़ा है।विध्न बहुत हैं। इसलिए जो सारभूत है,आपके उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक है उसी का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।जैसे हंस पानी में से दूध ले लेता है।
  • विद्यार्थी को विद्या की बहुत आवश्यकता है।इसलिए नहीं कि केवल आजीविका चला कर अपना पेट भर ले बल्कि इस जीवन और आगामी जीवन में सुख मिले ऐसे कर्त्तव्यों को करते हुए समाज व देश के लिए भी कुछ योगदान दें।
  • वस्तुतः आजकल केवल भौतिक विद्या का ज्ञान कराया जाता है अतः छात्र-छात्राओं को थोड़ा सा ज्ञान आध्यात्मिक विद्या का भी प्राप्त करना चाहिए। भौतिक विद्या से एक पक्ष का विकास ही होता है परन्तु दूसरा पक्ष उसका अविकसित रह जाता है।
  • भौतिक विद्या से केवल आप अपनी आजीविका चलाने का कार्य कर सकते हैं।परंतु जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान आध्यात्मिक शिक्षा व विद्या से ही किया जा सकता है।आत्म-संतुष्टि तथा जीवन सुख शांतिपूर्वक गुजरे इसके लिए आध्यात्मिक विद्या की आवश्यकता है।छात्र-छात्राओं को आजीवन जिज्ञासु और विद्यार्थी बने रहना चाहिए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विद्यार्थी द्वारा अपने कर्त्तव्यों को पालन करने की टिप्स (4 Tips for Students to Perform Duties),विद्यार्थियों द्वारा अपने धर्म का पालन करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Follow Their Character) के बारे में बताया गया है।

6.बोर्ड निरीक्षण टीम का औचक निरीक्षण (हास्य-व्यंग्य) (Surprise Inspection of Board Inspection Team):

  • जय:अगर परीक्षा केंद्र पर अचानक बोर्ड परीक्षा निरीक्षण टीम का औचक निरीक्षण करने आ जाए तो तुम क्या करोगे?
  • वीरू:तो मेरे पास से बोर्ड निरीक्षण टीम को नकल करने के कागज व तकनीकी का कुछ पता नहीं चलेगा।क्योंकि मैं कहाँ छुपाकर लाता हूँ,कैसे नकल करता हूं तथा कौनसी तकनीकी अपनाता हूँ यह आज तक परीक्षक को ही पता नहीं चला।

7.विद्यार्थी द्वारा अपने कर्त्तव्यों को पालन करने की टिप्स (4 Tips for Students to Perform Duties),विद्यार्थियों द्वारा अपने धर्म का पालन करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Follow Their Character) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.धर्म के लक्षण सत्य से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by the Characteristics Truth of Character?):

उत्तर:जो बात जैसी देखी,सुनी अथवा की हो अथवा जैसी वह मन में हो उसको वाणी द्वारा प्रकट करना सत्य बोलना है।शास्त्रों में अर्थात् पुस्तकों में जो लिखा हुआ है उसका उल्टा,विपरीत अर्थ करना सत्य नहीं है।जिस उद्देश्य से पुस्तक लिखी गई है उसी उद्देश्य से उसे पढ़ना,परीक्षा में लिखना तथा शिक्षक के पूछने पर बताना सत्य का पालन करना है।जो छात्र-छात्राएं सत्य को धारण करता है वह क्रियासिद्ध और वाक्सिद्ध हो जाता है।अर्थात् वह जो कार्य करता है उसमें असफलता नहीं मिलती है बल्कि वह उसे पूरी करता है।

प्रश्न:2.धर्म से के लक्षण अक्रोध से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by Acrosis the Symptoms of Character?):

उत्तर:ऐसा क्रोध धारण नहीं करना चाहिए जिससे स्वयं अथवा दूसरे की हानि हो।हाँ, विवेक के साथ क्रोध करने से हानि नहीं होती।क्रोध के साथ यदि विवेक शामिल होता है तो वह तेज के रूप में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न:3.विद्यार्थी के कर्त्तव्य पालन में बाधक तत्त्व कौन कौनसे हैं? (What are the Elements Hindering the Duty of the Student?):

उत्तर:विद्यार्थी के कर्त्तव्य पालन में बाधक हैं:काम,क्रोध,लोभ,स्वाद,श्रृंगार,खेल-तमाशे,अत्यधिक सोना,अत्यधिक परोपकार,घमंड,आलस्य,बीमारी और लापरवाही।अतः विद्यार्थी को इनसे बचकर रहना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विद्यार्थी द्वारा अपने कर्त्तव्यों को पालन करने की टिप्स (4 Tips for Students to Perform Duties),विद्यार्थियों द्वारा अपने धर्म का पालन करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Follow Their Character) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

4 Tips for Students to Perform Duties

विद्यार्थी द्वारा अपने कर्त्तव्यों को पालन करने की टिप्स
(4 Tips for Students to Perform Duties)

4 Tips for Students to Perform Duties

विद्यार्थी द्वारा अपने कर्त्तव्यों को पालन करने की टिप्स (4 Tips for Students to Perform Duties)
के आधार पर आदर्श आचरण का उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं।धर्म का,कर्त्तव्यों का
विद्यार्थियों के लिए न केवल आध्यात्मिक महत्त्व है बल्कि भौतिक महत्त्व भी है।

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