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Why Do Students Fail in Mathematics?

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1.छात्र-छात्राएं गणित में असफल क्यों होते हैं? (Why Do Students Fail in Mathematics?),छात्र-छात्राओं के गणित में असफलता के मुख्य कारण क्या हैं? (What Are Main Reasons for Failure in Mathematics?):

  • छात्र-छात्राएं गणित में असफल क्यों होते हैं? (Why Do Students Fail in Mathematics?) इसके कई कारण होते हैं।कई छात्र-छात्राएं बहुत प्रयत्न करने पर भी गणित में तथा परीक्षा में असफल हो जाते हैं।वे असफलता के लिए अपना निरीक्षण न करके उसका कारण बाहर की ओर तलाशते हैं।
  • असफलता के लिए परीक्षा प्रणाली,पाठ्यक्रम कठिन होना,प्रश्न-पत्र कठिन होना,अध्यापक का ठीक से न पढ़ाना,साधन-सुविधाएं न होने को जिम्मेदार मानते हैं।असफलता का सही कारण ढूंढ न पाने के कारण उसमें सुधार कर सकना संभव नहीं है।विद्यार्थियों को असफलता कई कारणों से मिलती है उन्हें ठीक से जान-समझकर तथा उनको दूर करने पर बचा जा सकता है।असफलता के निम्न कारण हो सकते हैंः
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2.मन विकारग्रस्त होना (Being Mind Disordered):

  • छात्र-छात्राओं का मन यथा काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार इत्यादि से ग्रस्त होगा तो वे असफल हो जाते हैं।अहंकार के कारण छात्र-छात्राएं गणित के सवाल तथा समस्याओं को न तो दूसरों से पूछते हैं और न दूसरों की सहायता-सहयोग करते हैं।जब गणित के क्षेत्र में वे अपने आपको श्रेष्ठ समझने लगते हैं तथा अपने द्वारा हल किए गए तरीके को ही सही समझते हैं तो उनका पतन प्रारंभ हो जाता है।किसी भी विद्या की प्राप्ति में अहंकार बाधक है।विद्या विनम्रता से ही प्राप्त होती है।
  • इसी प्रकार लोभ के कारण कई बार बच्चे अच्छे अवसर को गंवा देते हैं।वे सोचते हैं कि यह जाॅब प्राप्त हो रहा है तो इससे बढ़िया दूसरा जाॅब है।पहले अवसर पर प्राप्त जाॅब को अधिक अच्छे जॉब की आशा में छोड़ देता है।अच्छे जाॅब की आकांक्षा विद्यार्थी को अपने लक्ष्य से भटका देती है।और अन्ततः उन्हें कोई भी जाॅब नहीं मिलता है फलतः असफलता ही हाथ लगती है।
  • सफल होने के लिए मन को विकाररहित करना आवश्यक है।मन में अहंकार,लोभ,लालच इत्यादि को बिल्कुल भी न फटकने दें तथा अपने लक्ष्य पर नजर गड़ाकर रखें।

3.गलत लक्ष्य का चुनाव करना (Choosing the Wrong Goal):

  • कई छात्र-छात्राएँ अपने मित्रों की देखा-देखी गणित विषय का चुनाव कर लेते हैं जबकि उनमें गणितीय प्रतिभा नहीं होती है।जाॅब मार्केट में गणित की मांग होने के कारण भी कई विद्यार्थी गणित विषय का चुनाव कर लेते हैं।छात्र-छात्राएं अपनी मौलिक क्षमता,सामर्थ्य तथा प्रतिभा को बिना पहचाने गणित विषय का चुनाव कर लेते हैं।गणित विषय को लेने के बाद उनके सामने समस्याएं आती हैं तो उन्हें हल नहीं कर पाते हैं।मौलिक क्षमता व प्रतिभा को पहचानकर विषय तथा जॉब का चयन करते हैं तो अल्प साधन-सुविधाओं के आधार पर भी सफल हो सकते हैं।
  • गलत लक्ष्य का चुनाव करने के कारण छात्र-छात्राओं की जिस क्षेत्र में मौलिक प्रतिभा है वह सुप्त ही रह जाती है।उसकी मौलिक प्रतिभा नहीं निखर पाती है फलस्वरूप वह अपनी मौलिकता से भटककर ऐसे क्षेत्र में प्रवेश कर लेता है जहां असफलता के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगती है।उदाहरणार्थ यदि किसी विद्यार्थी की खिलाड़ी बनने की क्षमता व सामर्थ्य है और इंजीनियरिंग का क्षेत्र चुन लेता है तो न केवल वह इंजीनियरिंग में असफल होगा बल्कि खिलाड़ी बनने से भी वंचित हो जाएगा।

4.नकारात्मक चिंतन शैली (Negative Thinking Style):

  • कई छात्र-छात्राओं की चिन्तन शैली नकारात्मक होती है।प्रायः ऐसे छात्र छात्राएं यह सोचते हैं कि वे बहुत योग्य हैं परन्तु योग्यता के बावजूद उनके साथ हमेशा बुरा ही होता है।नकारात्मकता के कारण उनकी ऊर्जा कई दिशाओं में बँट जाती है जिससे वे गणित को पूर्ण ऊर्जा तथा बोध के साथ हल नहीं करते हैं।उनकी ऊर्जा खण्ड-खण्ड होती रहती है।समेकित ऊर्जा तथा सकारात्मक सोच से ही गणित की जटिल समस्याओं को हल किया जा सकता है।
  • नकारात्मक सोच के कारण जितनी छात्र-छात्राओं में योग्यता है उससे कम आंकने लगते हैं तथा अपने आपको किसी परीक्षा में सफल होने योग्य अथवा जॉब प्राप्त करने योग्य नहीं समझते हैं।फलतः उन्हें असफलता ही मिलती है।
  • परीक्षा के प्रश्न-पत्र के बारे में भी नकारात्मक सोचते रहते हैं जैसे गणित विषय का प्रश्न-पत्र तो कठिन आएगा,प्रश्नपत्र में सवाल पाठ्यपुस्तक के बाहर से आएंगे जिनको मैं हल नहीं कर पाऊंगा,प्रश्न-पत्र को हल करने में समय कम रहेगा,प्रश्न-पत्र खराब हो जाएगा इत्यादि।इस प्रकार की चिंताएं विद्यार्थी को असफलता की ओर ले जाती हैं।
  • नकारात्मक चिंतन के कारण छात्र छात्राओं को जो सवाल और प्रश्नों के उत्तर जानते हैं उन्हें भी भूल जाते हैं जबकि सकारात्मक चिंतन से यदि किसी सवाल या प्रश्न का उत्तर आधा-अधूरा भी याद होता है तो उसको भी प्रभावी ढंग से लिख सकते हैं।

5.परिणाम में आसक्ति (Attachment to the Result):

  • कई छात्र-छात्राएं अध्ययन करते हुए परीक्षा परिणाम का चिंतन अधिक करते रहते हैं।मुझे 80-90% अंक प्राप्त होंगे या नहीं।परीक्षा प्रश्न-पत्र बढ़िया होगा या नहीं।मैंने गणित विषय ले तो लिया परंतु मुझे अच्छा जॉब मिलेगा या नहीं।मेरा चयन इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में होगा या नहीं।इस प्रकार वे अध्ययन पर ध्यान केंद्रित न करके उसके परिणाम के बारे में सोच-विचार अधिक करते हैं।
  • वस्तुतः परीक्षा परिणाम अथवा किसी भी कर्म का परिणाम छात्र-छात्राओं के हाथ में होता ही नहीं है फिर उसका चिंतन करने का क्या फायदा? परिणाम उत्तर-पुस्तिका जाँच करने वाले परीक्षक के हाथ में है।
  • छात्र-छात्राओं के हाथ में कर्म करना अर्थात् अध्ययन कार्य करना ही है।परिणाम के बारे में अधिक सोच-विचार करने से अध्ययन को एकाग्रतापूर्वक नहीं कर सकते हैं और समय भी बर्बाद होता है।श्रीमद्भगवतगीता में भगवान कृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि कर्मफल में आसक्ति मत रखो।कोई भी कर्म निष्काम भाव से अर्थात् अनासक्त कर्म करो।कर्मफल में आसक्ति रखने से छात्र-छात्राओं की कार्य क्षमता का ह्रास होता है।
  • अहंकाररहित होकर तथा अनासक्तिपूर्वक कर्म (अध्ययन) करना है तो कठिन परंतु असंभव नहीं है।निष्काम कर्म (अध्ययन) के दो अंग कर्त्तापन का अभाव और आसक्ति अर्थात् (तृष्णा का त्याग) करने पर छात्र-छात्राओं को असफलता नहीं मिलती है यदि किसी कारणवश असफलता मिल भी जाती है तो भी वह दुखी नहीं होता है।

6.छात्र-छात्राओं द्वारा संघर्ष न करना (Students don’t Struggle):

  • असफलता मिलने में छात्र-छात्राओं द्वारा संघर्ष न कर पाना भी है।अध्ययन में सफलता प्राप्ति के लिए छात्र-छात्राएं डटकर संघर्ष करते हैं तथा गणित व अन्य विषयों में आने वाली कठिनाइयों को हल करने हेतु जूझता है तो सफलता देर-सवेर मिल जाती है।परंतु छात्र-छात्राएं अध्ययन के दौरान आने वाली कठिनाइयों से घबरा जाता है और अपना होसला खो देता है।फलस्वरूप अध्ययन के दौरान समस्याएं छोटी भी है तो वे विकराल रूप लगने लगती है।
  • छात्र-छात्राएं बिना संघर्ष किए,बिना कठिनाइयों और चुनौतियों के सफल होना चाहता है,लक्ष्य प्राप्त करना चाहता है।संघर्ष से मन के विकार दूर होते हैं।जो छात्र-छात्राएं बिना संघर्ष के लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं उसका परिणाम नमक रहित रोटी के समान होता है।जैसे बिना नमक के रोटी का कोई स्वाद नहीं होता है वैसे ही संघर्षरहित सफलता आनन्ददायक नहीं होती है।
  • संघर्ष की भट्टी से तपकर छात्र-छात्राओं का व्यक्तित्त्व निखरता है।संघर्ष से अहंकार नष्ट होता है अर्थात् अपने आपको मिटाना होता है।चित्त में जमे हुए कुसंस्कारों और बुरी आदतों का परिमार्जन संघर्ष द्वारा ही होता है।बुरी आदतें और कुसंस्कार सफलता के मार्ग में बाधा बनकर खड़ी हो जाती हैं।बुरी आदतों के कारण छात्र-छात्राओं की दिनचर्या अस्त-व्यस्त रहती है।देर से सोना तथा देर से उठना,कभी पढ़ लिया तथा कभी नहीं पढ़ा,सवाल तथा प्रश्न आसानी से हल हो रहा है तो हल कर लिया तथा जो सवाल हल नहीं हो रहे हैं उनको हल करने का प्रयत्न न करना इत्यादि अनियमित दिनचर्या के लक्षण हैं।

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7.असफलता से सीख का दृष्टांत (A Parable of Learning From Failure):

  • एक विद्यार्थी ने गणित विषय ले लिया।गणित विषय लेने के बाद उसे मालूम हुआ कि बिना कठोर परिश्रम तथा संघर्ष के उत्तीर्ण होना मुश्किल है।परंतु संघर्ष और कठिन परिश्रम तो उसकी आदत में था ही नहीं।
  • विद्यालय में संगी-साथी उसे चिढ़ाते थे।वार्षिक परीक्षा का परिणाम बिल्कुल निराशाजनक था।वह असफल हो गया।फलतः उसने विद्यालय में पढ़ना छोड़ दिया।एक दिन वह मार्ग में निरर्थक ही भ्रमण कर रहा था।घूमते-घूमते वह थक गया।निराश होकर वह एक पेड़ की छाया में बैठ गया।
  • तभी उस रास्ते से एक संत गुजर रहे थे।संत ने जब उस विद्यार्थी को उदास और उखड़ा-उखड़ा देखा तो वे उसके पास गए।
    संत ने विद्यार्थी से पूछा कि वह उदास व बेचैन क्यों है? उस विद्यार्थी ने संत से कहा कि वह सफलता का राज जानना चाहता है।मैंने गणित विषय इसलिए लिया था ताकि गणित में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होकर अच्छा जॉब प्राप्त कर सकूँ।
  • संत ने कहा कि यदि तुम्हें 50% अंक प्राप्त करना है तो 60% से 70% का लक्ष्य तय करना होगा।लक्ष्य तय करना ही पर्याप्त नहीं है परन्तु उसके लिए जी-जान से प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना होगा।यदि पिछली कक्षाओं में तुमने 55% अंक प्राप्त किए हैं तो एकदम से 90-95% का लक्ष्य तय करना व्यावहारिक नहीं है और उसे प्राप्त करना भी मुश्किल है।
  • अपनी क्षमता,सामर्थ्य तथा प्रतिभा के अनुसार लक्ष्य तय करें और धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाएं।यदि तुमने केवल उत्तीर्ण होने अर्थात् 33% का लक्ष्य रखा है तो निश्चित है कि तुम अनुत्तीर्ण हो जाओगे क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की खासियत होती है कि वह अपने टारगेट से कम ही प्रयत्न करता है और उससे कम ही अंक प्राप्त करता है।इसलिए जितने प्रतिशत अंक प्राप्त करना है उससे थोड़ा ज्यादा अंक प्राप्त करने (अपनी सामर्थ्य व क्षमता का ध्यान रखते हुए) का लक्ष्य रखना चाहिए।
  • विद्यार्थी ने संत की सीख की गांठ बांध ली।उसने धैर्य,कठिन परिश्रम,संघर्ष और लगन से अध्ययन किया और एक दिन वही विद्यार्थी गणित का महान् विद्वान के रूप में विख्यात हुआ।

8.गणित में असफलता का निष्कर्ष (The Conclusion of Failure in Mathematics):

  • छात्र-छात्राओं को अपनी क्षमता,सामर्थ्य और मौलिक प्रतिभा को पहचान कर गणित विषय को ऐच्छिक विषय के रूप में अपनाना चाहिए।नकारात्मक चिंतन को दिमाग से निकाल देना चाहिए क्योंकि कितनी ही प्रतिकूल परिस्थितियां हों तो भी उसमें कुछ न कुछ अनुकूलता होती है।कभी भी मन में इस प्रकार की सोच नहीं रखना चाहिए कि मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूं।प्रतिकूलताएँ और अनुकूलताएँ जीवन के अंग हैं।
  • विद्यार्थी को स्वयं पर विश्वास रखना चाहिए।मुझमें भी वे सभी गुण विद्यमान है जो एक मेधावी छात्र-छात्रा में विद्यमान हैं।मैं अपनी क्षमता तथा सामर्थ्य से गणित के अध्ययन अथवा अन्य किसी भी विषय के अध्ययन में आने वाली रुकावटों व बाधाओं को पराजित कर सकता हूं।
  • वस्तुतः जो छात्र-छात्रा जितना अधिक संघर्ष करता है तथा सकारात्मक सोच रखता है वह उतना ही अधिक तपकर निखरता है।कठिनाइयों की भट्टी में तपकर छात्र-छात्राएं अधिक मजबूत बनते हैं।सफलता के मार्ग में आने वाली समस्त बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।कुछ आकस्मिक और अप्रत्याशित मुसीबतें सामने आ जाती हैं तो धैर्य और साहस से उनका डटकर मुकाबला करना चाहिए।हार नहीं मानना चाहिए और न पलायन करना चाहिए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं गणित में असफल क्यों होते हैं? (Why Do Students Fail in Mathematics?),छात्र-छात्राओं के गणित में असफलता के मुख्य कारण क्या हैं? (What Are Main Reasons for Failure in Mathematics?) के बारे में बताया गया है।

9.गणित के छात्र का तर्क (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics Student’s Reasoning) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक (छात्र से):सौ विद्यार्थियों को गणित पढ़ाने के लिए एक गणित अध्यापक पर्याप्त है तो पाँच सौ विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए कितने गणित अध्यापक चाहिए।
  • छात्र:एक गणित के अध्यापक से ही काम चल जाएगा बस अपनी आवाज का वॉल्यूम बढ़ाना पड़ेगा।

10.छात्र-छात्राएं गणित में असफल क्यों होते हैं? (Frequently Asked Questions Related to Why Do Students Fail in Mathematics?),छात्र-छात्राओं के गणित में असफलता के मुख्य कारण क्या हैं? (What Are Main Reasons for Failure in Mathematics?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.परीक्षा में छात्र-छात्राओं को असफलता का डर क्यों रहता है? (Why do Students Fear Failure in Exams?):

उत्तर:वार्षिक परीक्षाएं वर्ष भर की मेहनत का फल होती हैं।इसलिए परीक्षा परिणाम प्रतिकूल होने के डर से छात्र-छात्राएं घबरा जाते हैं।माता-पिता भी छात्र-छात्राओं को केवल पढ़ाई करने का दाब-दबाव बनाते हैं और उन्हें डांटते-डपटते हैं।छात्र-छात्राओं को परीक्षा से न घबराकर धैर्यपूर्वक परीक्षा देनी चाहिए।वे छात्र-छात्राएं ही घबराते हैं जो सत्रारम्भ से परीक्षा की तैयारी नहीं करते हैं।माता-पिता को डांट-डपट से काम न लेकर प्रेम से समझाना चाहिए।

प्रश्न:2.परीक्षा के समय छात्र-छात्राओं को क्या ध्यान रखना चाहिए? (What Should Students Keep in Mind During the Exam?):

उत्तर:बच्चों का लक्ष्य परीक्षा में अच्छे अंक लाना होता है परंतु परीक्षा के समय अच्छे अंक लाने की वजह से मनोरंजन,खेलना-कूदना नहीं छोड़ना चाहिए।मनोरंजन व खेलकूद से मानसिक तनाव नहीं होता है।खेलकूद न करने पर स्वास्थ्य खराब हो सकता है ऐसी स्थिति में अच्छे अंक लाना तो दूर रहा बल्कि परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो सकते हैं।

प्रश्न:3.माता-पिता परीक्षा की तैयारी सही तरीके से कैसे करवा सकते हैं? (How Can Parents Prepare for the Exam Properly?):

उत्तर:जब माता-पिता को परीक्षा का ज्ञान,उसमें आए बच्चों के अंक,बच्चे अथवा शिक्षक-शिक्षिकाएं क्या बता रहे हैं,ये सब बातें बच्चों के बारे में जरूर जाना चाहिए।तभी वह बच्चों की वार्षिक परीक्षा की तैयारी सही ढंग से करवा सकते हैं।अगर बच्चे पर सही ढंग से ध्यान नहीं दिया गया तो बच्चा परीक्षा में असफल हो सकता है और उसका साल बर्बाद हो सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं गणित में असफल क्यों होते हैं? (Why Do Students Fail in Mathematics?),छात्र-छात्राओं के गणित में असफलता के मुख्य कारण क्या हैं? (What Are Main Reasons for Failure in Mathematics?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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छात्र-छात्राएं गणित में असफल क्यों होते हैं? (Why Do Students Fail in Mathematics?)
इसके कई कारण होते हैं।कई छात्र-छात्राएं बहुत प्रयत्न करने पर भी
गणित में तथा परीक्षा में असफल हो जाते हैं।वे असफलता के लिए
अपना निरीक्षण न करके उसका कारण बाहर की ओर तलाशते हैं।

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