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Control Mind for Success in Exam

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1.परीक्षा में सफलता के लिए मन को नियंत्रित करें (Control Mind for Success in Exam),अभ्यर्थी परीक्षा में सफलता के लिए मन को नियन्त्रित करें (Cadidates Should Control Mind for Success in Exam):

  • परीक्षा में सफलता के लिए मन को नियंत्रित करें (Control Mind for Success in Exam)। परीक्षा में ही क्या आप अध्ययन करें,जॉब करें,गणित में तथा विज्ञान में खोज कार्य करें,गणित के गूढ़ सवालों को हल करें,कोई खेल खेलें,भजन सीखे इत्यादि में मन को एकाग्र और नियंत्रित करने पर ही सफलता प्राप्त हो सकती है।मन को एकाग्र और नियंत्रित करने के लिए दृढ़ संकल्पशक्ति,धैर्य,लक्ष्य के प्रति समर्पण,कठिन परिश्रम तथा लगन की आवश्यकता है।
  • जो परीक्षार्थी मन लगाकर अध्ययन नहीं करता है क्या वह स्वयं अपना शत्रु नहीं है? जो अभ्यर्थी मन को नियंत्रित करके अपने काम को नहीं करता है,क्या वह कभी अपने काम के द्वारा सफलता प्राप्त कर सकता है? अधिक संभावना तो यही रहती है कि इस तरह के छात्र-छात्राएं तथा अभ्यर्थी असफल ही रहते हैं।जो विद्यार्थी अध्ययन करने के लिए अनेक बहाने बनाता है वह सच्चे अर्थों में विद्यार्थी है ही नहीं।
  • जब हम परीक्षा की तैयारी आधे मन से और मनोयोगपूर्वक नहीं करते हैं तो इसका अर्थ है कि हम अकर्मण्य हैं।हमारे पुरुषार्थ को लकवा मार जाता है।
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2.सफलता के लिए मन को नियंत्रित करें (Control the Mind for Success):

  • हमारे शरीर में सभी अंगो का महत्त्व है।हाथ-पैर,आंख,नाक,कान,त्वचा इत्यादि सभी उपयोगी है परंतु उनमें मन का महत्त्व सबसे अधिक है।छात्र-छात्राओं को सफलता और असफलता मिलना दोनों का कारण मन ही है।मन को एकाग्र और नियंत्रित करके इससे हर कार्य करवाया जा सकता है।मन कभी थकता नहीं है,कभी रुकता नहीं है,निरंतर कार्य करता रह सकता है।कोई लक्ष्य तय करना और प्राप्त करने की चेष्टा करने में उसे आनंद आता है।मन की क्षमता अपार है,वह सब कुछ कर सकता है।
  • परंतु यदि इस पर विवेकपूर्वक नियन्त्रण में न रखा जाए तो ऐसी बुरी आदतें अपनाने के लिए उकसाता है कि नीचे गहरी खाई में गिरा सकता है।अनियन्त्रित मन झूटे साँड की तरह होता है जो हमें लक्ष्य से भटका देता है।लक्ष्य की ओर ले जाने की अपेक्षा ईर्ष्या,द्वेष,लोभ,मोह,शोक,कलह,कुसंग,कुटिलता इत्यादि में संलग्न करके कीचड़ से भरी हुई खाई में ले जाकर पटक देता है।
  • छात्र-छात्राएं तथा अभ्यर्थी जिस लक्ष्य को तय करता है,उसका स्मरण भी नहीं करने देता उल्टे उसे दुर्व्यसनों में फंसा देता है।
    सफलता का मूल मन है तो असफलता का मूल भी मन है।मन को संयम में रखें तो सफलता मिलती है और असंयमी मन असफलता की ओर धकेल देता है।मन को संयम में रखना केवल साधारण पुरुषार्थ से संभव नहीं है।मन को एकाग्र और नियंत्रित करना पुरुषार्थ और योग से भी बढ़कर है।
  • मन की शक्ति अपार और अद्भुत है।ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ मन न जा सके।ऐसी विलक्षण शक्ति से सम्पन्न मन की चंचलता और भटकाव को नियंत्रित किया जा सके तो इससे बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है।संसार में जो भी कार्य करते हैं उसमें उन्नति और उत्कर्ष का मुख्य कारण स्वस्थ शरीर,परिपक्व ज्ञान और सक्षम ज्ञानेंद्रियां हैं।यदि शरीर काम न करे,पाँवों से चल न सकते हों,आंखों से देख न सकते हों तो कितनी कुशाग्र बुद्धि क्यों न हो तो सफलता प्राप्त नहीं हो सकती है और न धनार्जन किया जा सकता है।स्वस्थ शरीर और सक्षम ज्ञानेंद्रियां और कर्मेन्द्रियाँ ही हमारे विकास के मुख्य साधन है परंतु इनका स्वामी भी हमारा मन है।यदि मन असहयोग करें,कुमार्ग पर चलने की हठधर्मी करे तो एक भी इन्द्रिय काम की नहीं हो सकती।इन्द्रियों को भटका कर शरीर को रोग का घर बना देने वाला मन ही है।
  • मन किसी स्थूल अंग की तरह नहीं है जिसे नियंत्रित किया जा सके।मन अति सूक्ष्म है अतः मन को नियंत्रित करने के लिए ध्यान का अभ्यास करना होता है।अंतःकरण में जितनी भी क्रियाएं होती हैं उसका कारण मन ही है।ये क्रियाएं अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी,उपयोगी हो सकती हैं और अनुपयोगी भी।उपयोगी क्रियाएं पर चलने पर सफलता की ओर अग्रसर होते हैं।
  • जागरूक और दृढ़ रहकर अच्छाई और उपयोगी इच्छाओं को क्रियान्वित किया जाए तो विकास और उत्थान होता है।इन्द्रियों सुखों,तृष्णाओं,लिप्साओं को दबाए रखना ही चतुराई है,मनोनिग्रह है।जो छात्र-छात्राएं इस कला को सीख लेते हैं वे सफल होते हैं।इसलिए मन को सफलता और असफलता का कारण बताया गया है।
  • मन इंद्रियों का शासक है।जब वह लापरवाह और अनियंत्रित हो जाता है तो मन की शक्ति फालतू के कार्यों में खर्च करता है।दुर्बल,असंयमी मन का इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं रहता है और इंद्रियां कुमार्ग की ओर अग्रसर हो जाती है।व्यक्तित्त्व की आधारभूत शक्तियां इंद्रियों के द्वारा व्यर्थ ही खर्च होती रहती है।ऐसा मन एकीकृत नहीं रह पाता है।विचारों,इच्छाओं और क्रियाओं में संतुलन सामंजस्य रहे तो व्यक्तित्त्व एकीकृत और परिष्कृत कहा जाता है।जीवन में तथा परीक्षाओं में सफलता उन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त हुई है जिन्होंने पूर्ण मनोयोग एवं निष्ठा के साथ अपना काम किया है।यदि मन को शुद्ध,पवित्र और संकल्पित किया जा सके तो परीक्षा में सफलता अर्जित करने से कोई नहीं रोक सकता है।

3.मन और शरीर में तालमेल हो (The Harmony of Mind and Body):

  • मन और शरीर से परीक्षा की तैयारी करने,अध्ययन करने पर उसका श्रेष्ठ प्रतिफल सामने आता है।मन शरीर के बिना कार्य को श्रेष्ठ तरीके से नहीं कर सकता है और शरीर मन के बिना किसी कार्य को मशीन की तरह करता है।यदि मन और शरीर में तालमेल हो तो परीक्षा की तैयारी प्रभावी तरीके से संपन्न की जा सकती है।
  • मन में विचार उत्पन्न होते हैं और शरीर से उन्हें कार्यान्वित करते हैं।हमारे मन में उत्पन्न होने वाले विचार शरीर को प्रभावित करते हैं।मन से प्रभावित होकर ही शरीर क्रियाशील होता है।यदि मन कहीं ओर लग रहा होगा तो हम पढ़ तो रहे होंगे परंतु क्या पढ़ा है यह याद नहीं रहेगा।पूर्ण एकाग्रता के बिना पढ़ा हुआ याद नहीं रहता है।यदि मन पूर्ण तन्मयता से अध्ययन में लगा हुआ है और शरीर भी साथ दे रहा है तो हमारे कार्य में एकरूपता आ जाती है।
  • हमारा वर्तमान में जो व्यक्तित्त्व है वह हमारे मन में निहित विचारों और व्यवहार के कारण ही है।जब अध्ययन करते-करते कोई जटिल समस्या हमारे सामने आ जाती है तो उसका समाधान हमारी छिपी हुई मानसिक शक्ति के आधार पर ही करते हैं और सफल होते हैं।विकट परिस्थितियों में ही मन की दिव्य और अद्भुत शक्ति का पता चलता है।मन की इस शक्ति की तुलना राख के ढेर में छुपी हुई अग्नि से कर सकते हैं।राख को हटाकर अग्नि को प्रकट किया जा सकता है।मन की इस प्रचण्ड शक्ति के बल पर हमारे सामने आने वाली बड़ी-बड़ी कठिनाइयों,बाधाओं को पार किया जा सकता है।कभी-कभी तो गणितज्ञों,वैज्ञानिकों और महापुरुषों ने ऐसे-ऐसे कार्य कर दिखाएं हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
  • यदि अध्ययन के प्रति सच्चा समर्पण हो तो हम अध्ययन को बेगार नहीं समझेंगे।आलसी और लापरवाह छात्र-छात्राएं बेकार के कार्यों में ही अपने समय को व्यतीत करने में आनंद का अनुभव करते हैं अथवा फालतू पड़े-पड़े अपना समय व्यतीत करते हैं।जबकि कर्मठ व्यक्ति मन से किसी कार्य को करने में ही आनन्द का अनुभव करते है।कर्मठ छात्र-छात्राओं के सामने अध्ययन करने के दौरान कई प्रकार की समस्याएं सामने आती है परन्तु उनके मन पर बिल्कुल भी असर नहीं होता है।आलस और लापरवाह छात्र-छात्राएं कष्ट और कठिनाइयों के सामने हिम्मत हार बैठते हैं और मैदान छोड़कर भाग खड़े होते हैं।
  • कई छात्र-छात्राएं साधारण अंक प्राप्त करते हैं और उत्तीर्ण होते हैं परन्तु ज्योंही उन्हें अपनी मनःशक्ति का पता चलता है तो कठिन प्रतियोगिता परीक्षाओं को भी हंसते-खेलते उत्तीर्ण कर जाते हैं।मन की अद्भुत शक्ति के कारण ही कठिन समझी जाने वाली परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर दिखाता है।वस्तुतः बहुत से छात्र-छात्राओं के सामने अध्ययन करते समय,परीक्षा की तैयारी करते समय जब तक कठिन समस्याएं उपस्थित नहीं होती हैं तब तक उन्हें अपनी सामर्थ्य और मन को नियन्त्रित करने पर उत्पन्न शक्ति का सही अनुमान नहीं लग पाता।तात्पर्य यह है कि सशक्त मन के द्वारा (मनोयोग) छात्र-छात्राएं हर कठिनाई का सामना कर सकता है।
  • मन से हम किसी परीक्षा को उत्तीर्ण करना असम्भव मान लेते हैं तो शरीर भी निश्चेष्ट हो जाता है।फलस्वरूप हम साधारण सी परीक्षा,प्रतियोगिता परीक्षा या प्रवेश परीक्षा अथवा जॉब करने में असफल हो जाते हैं।किसी भी परीक्षा में प्रश्न-पत्र का सरल लगना और कठिन लगना सशक्त मन और दुर्बल मन पर अधिक निर्भर करता है।मन पर नियंत्रण न हो,मन अस्तव्यस्त हो अर्थात् मन एकाग्र न हो तो सफलता संदिग्ध हो जाती है।
  • मन और शरीर की शक्ति किसी एक ही उद्देश्य में लगती है तो असम्भव लगने वाले कार्य को संभव कर देती है।मन चिंतित और उद्विग्न हो तो उसका असर शरीर पर भी पड़ता है।मन खिन्न है तो उसका भी असर शरीर पर पड़ता है।अतः मन को शुद्ध और संतुलित रखें तभी सचेष्ट रह सकेंगे और मन की एकाग्रता और मन को नियंत्रित करके उसकी शक्ति के सहारे सफल हो सकेंगे।

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4.मन की कार्यप्रणाली (Functioning of the Mind):

  • मनःस्थिति अनुकूल हो तो छात्र-छात्राएं अध्ययन कार्य,परीक्षा की तैयारी करने में किसी प्रकार की कठिनाई महसूस नहीं करेंगे।मनःस्थिति प्रतिकूल हो तो अध्ययन करना,पढ़ना,पढ़ाना,परीक्षा की तैयारी करना,कराना बोझ लगता है और इन कार्यों को करने का छात्र-छात्राओं का मूड नहीं रहता है।
  • मन कुछ कार्य तो स्वयं करता है तथा कुछ कार्य इन्द्रियों की शक्ति से करता है।चिंतन-मनन करना,ध्यान करना,कल्पना,निर्णय करना,निष्कर्ष निकालना,योजना बनाना,लक्ष्य तय करना आदि कार्य मन अपने आप कर लेता है।परंतु चलना-फिरना,खेलना-कूदना,खाना-पीना,देखना-सुनना इत्यादि कार्य मन इन्द्रियों की सहायता से करता है।
  • इन्द्रियों का स्थान भिन्न-भिन्न है तथा वे स्वतंत्र दिखाई देती हैं परंतु वस्तुतः इन्द्रियों का स्वामी मन ही है।चटोरापन,कामुकता,आलस्य,दुर्व्यसन इत्यादि कार्यों के लिए इन्द्रियों को दोष दिया जाता है और इंद्रिय निग्रह करने के लिए किया या कराया जाता है।परंतु मनोनिग्रह के बिना यह प्रयास (इन्द्रियनिग्रह) असफल ही रहता है।इसलिए मन को काबू करना,मन पर नियंत्रण करना चाहिए।इंद्रिय निग्रह की सफलता मनोनिग्रह पर निर्भर है।
  • मन को अशुभ विचारों से बचाना तथा परिस्थिति से तालमेल बिठाना भी एक कला है।छात्र-छात्राएं प्रायः इस तरफ ध्यान नहीं देते हैं अथवा उन्हें यह कला सीखायी नहीं जाती है फलस्वरूप वे मन की शक्ति का सदुपयोग नहीं कर पाते हैं।

5.मन को वश में रखने का दृष्टान्त (A Parable of Controlling the Mind):

  • एक नगर में गणित अध्यापक थे।एक बार वे कक्षा में छात्र-छात्राओं को पढ़ा रहे थे।एक छात्र ने खड़े होकर प्रश्न पूछा कि मन को एकाग्र और वश में कैसे किया जा सकता है? गणित अध्यापक ने छात्र को कहा कि इसका जवाब समय आने पर देंगे।कालांश खत्म होने पर उन्होंने कहा कि कल तुम्हारा गणित का टेस्ट है।सभी ठीक से तैयारी करके आना।
  • दूसरे दिन सभी छात्र-छात्राएं आग गए तब गणित अध्यापक ऐसी उत्तर-पुस्तिकाएँ लेकर आए जिन पर पहले से ही कुछ लिखा हुआ था।सभी छात्र-छात्राएं ठीक से तैयारी करके आए थे और इस प्रतीक्षा में थे कि गणित अध्यापक उन्हें उत्तर-पुस्तिकाएँ दे दें तो वे सवालों को हल करना प्रारंभ कर दें।
  • गणित अध्यापक ने सबसे पहले उस छात्र को ही लिखी हुई उत्तर पुस्तिका दी।इसके बाद प्रश्न-पत्र दिया और कहा कि इन उत्तर-पुस्तिकाओं में सवालों को हल करो।तब तपाक से उस छात्र ने कहा कि ये उत्तर-पुस्तिकाएँ तो खराब है इन पर सवालों को कैसे हल किया जा सकता है? सवालों को हल करने के लिए तो साफ और बिना लिखावट की उत्तर-पुस्तिकाएँ दीजिए।
  • गणित अध्यापक ने कहा कि आपके कल के प्रश्न का उत्तर भी यही है कि मन को खाली किए बिना मन को वश में नहीं किया जा सकता है।मन को निर्मल करो।काम,क्रोध,लोभ इत्यादि का कूड़ा-करकट मन में भरा हुआ है,मन में बुरे संस्कार जमा है उनको साफ करना होगा।मन को पवित्र और शुद्ध करने पर ही मन को एकाग्र और नियंत्रित किया जा सकता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में परीक्षा में सफलता के लिए मन को नियंत्रित करें (Control Mind for Success in Exam),अभ्यर्थी परीक्षा में सफलता के लिए मन को नियन्त्रित करें (Cadidates Should Control Mind for Success in Exam) के बारे में बताया गया है।

6.परीक्षा में सफलता और गुलदस्ता (हास्य-व्यंग्य) (Success in Exam and Bouquet) (Humour-Satire):

  • छात्र (गणित अध्यापक से):सर (sir),यह फूलों का गुलदस्ता किसलिए है?
  • गणित अध्यापक (छात्र से):मैंने कोचिंग सेंटर पहली बार ही खोला है।तुम पहले छात्र हो जिसे मैं पढ़ाऊँगा।यदि तुम उत्तीर्ण हो जाओगे तो मेरे लिए और असफल हो गए तो तुम्हारे लिए।

7.परीक्षा में सफलता के लिए मन को नियंत्रित करें (Frequently Asked Questions Related to Control Mind for Success in Exam),अभ्यर्थी परीक्षा में सफलता के लिए मन को नियन्त्रित करें (Cadidates Should Control Mind for Success in Exam) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.एकाग्रता से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Concentration of Mind?):

उत्तर:अपनी संकल्पशक्ति को किसी एक कार्य पर केन्द्रित कर देने का नाम ही एकाग्रता है।छात्र-छात्राओं के लिए अध्ययन कार्य,परीक्षार्थी के लिए परीक्षा पर अपने मन को केंद्रित करना ही मन की एकाग्रता है।एकाग्रता सधने पर कोई भी काम अधूरा नहीं रह सकता है।

प्रश्न:2.मन एकाग्र होने पर हमारी क्या स्थिति होती है? (What is Our State When the Mind is Concentrated?):

उत्तर:मन एकाग्र होता है और जब हम अध्ययन,जाॅब या अन्य कार्य करते हैं तो हम उस कार्य में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि हमें हमारे आसपास का कोई ज्ञान नहीं रहता है।यहां तक कि अपने खाने-पीने का भी ध्यान नहीं रहता है।एकाग्रता में हमारा संपर्क बाहरी वातावरण से अलग हो जाता है।उस समय हमारे घर-परिवार के सदस्य या मित्र भी आकर खड़ा हो जाए तो हमें उसका भी ध्यान नहीं रहता है।

प्रश्नः3.मन सबसे अधिक एकाग्र कब होता है? (When is the Mind Most Concentrated?):

उत्तर:मन सबसे अधिक एकाग्र सुबह (ब्रह्म मुहूर्त) में होता है क्योंकि उस समय वातावरण शान्त रहता है तथा कोई शोर-शराबा नहीं होता है।सभी गणितज्ञ,वैज्ञानिक तथा महापुरुष अपना श्रेष्ठ कार्य ब्रह्म मुहूर्त में करते हैं।चाहे अध्ययन करना हो अथवा लेखन कार्य करना हो।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा परीक्षा में सफलता के लिए मन को नियंत्रित करें (Control Mind for Success in Exam),अभ्यर्थी परीक्षा में सफलता के लिए मन को नियन्त्रित करें (Cadidates Should Control Mind for Success in Exam) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Control Mind for Success in Exam

परीक्षा में सफलता के लिए मन को नियंत्रित करें
(Control Mind for Success in Exam)

Control Mind for Success in Exam

परीक्षा में सफलता के लिए मन को नियंत्रित करें (Control Mind for Success in Exam)।
परीक्षा में ही क्या आप अध्ययन करें,जॉब करें,गणित में तथा विज्ञान में खोज कार्य करें
,गणित के गूढ़ सवालों को हल करें,कोई खेल खेलें,भजन सीखे
इत्यादि में मन को एकाग्र और नियंत्रित करने पर ही सफलता प्राप्त हो सकती है।

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