Keep Moving Continuous to Achieve Goal
1.लक्ष्य प्राप्ति के लिए लगातार चलते रहो (Keep Moving Continuous to Achieve Goal),लक्ष्य प्राप्त होने तक रुको मत (Do Not Stop Until Goal is Reached):
- लक्ष्य प्राप्ति के लिए लगातार चलते रहो (Keep Moving Continuous to Achieve Goal) क्योंकि यदि आप चलते नहीं रहेंगे,आगे बढ़ते नहीं रहेंगे,रुक जाएंगे तो लक्ष्य कितना ही छोटा हो,कितना ही करीब हो वह दूर हो जाएगा अथवा हो सकता है लक्ष्य छिटक ही जाए।
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2.प्रकृति आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है (Nature inspires us to move forward):
- इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि आगे बढ़ना ही जीवन है और रुकने का नाम ही मृत्यु है।प्रकृति स्वयं हमें उन्नति के मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है।पल-पल में,पग-पग पर प्रकृति अपने कार्यकलापों से हमें आगे बढ़ने का अवसर देती है।
- इसका सीधा-सा उदाहरण हम इस प्रकार समझें कि जब हमारा जन्म होता है,उस समय हम मात्र एक शिशु होते हैं,चलने-फिरने की बात तो छोड़ ही दें,हम उस समय अपनी इच्छा से करवट भी नहीं ले सकते।इसके बाद प्रकृति ही हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ाती है।हम शिशु से बालक और बालक से नवयुवक बन जाते हैं।इस प्रकार धीरे-धीरे प्रकृति जब हमें आगे बढ़ाती है तो एक समय पर जाकर हम इस योग्य हो जाते हैं कि हम अपनी इच्छानुसार आगे बढ़े।प्रकृति या भगवान हमें आगे बढ़ने के बहुत से साधन देते हैं,अब यह हमारी गलती है कि हम आगे न बढ़ें।इसमें तुम्हारा दोष है।
- जो व्यक्ति एक सीमित दायरे पर संतोष कर लेते हैं,कुएं के मेंढक की तरह अपने ही दायरे को सारी दुनिया मानकर उसमें पड़े रहते हैं,उनका जीवन और पशुओं का जीवन एक समान है।ऐसे लोग अपने आपको मनुष्य जरूर मानते हैं,पर मनुष्य की परिभाषा में खरे नहीं उतरते।प्रकृति ने मनुष्य का निर्माण केवल आगे बढ़ने के लिए किया है,उसको सदा आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है।
- इसी कारण आदिम युग की गुफाओं में जन्म लेने के बाद इंसान आज आकाश के तारे तोड़ने की क्षमता प्राप्त करने जा रहा है।वह चांद पर पहुंच चुका है।ऐसे-ऐसे कार्य कर चुका है कि लगता है कि वह भगवान को ही चेलेंज देने के मूड में है।अगर अपने सीमित दायरे में मनुष्य ने संतोष करना ही अपना धर्म माना होता,तो आज भी वह आदिम गुफाओं का वासी होता।पर कुछ लोगों ने ‘मनुष्यत्व’ की परिभाषा को परखा और अपने पर लागू कर उसे सार्थक किया।उनके आगे बढ़ने की प्रवृत्ति ने ही मनुष्य का नवीनीकरण कर दिया है।
- आप स्वयं सोचिए कि आप क्या हैं? क्या आप अपनी वर्तमान दशा से संतुष्ट हैं? आपकी आकांक्षाएँ-तमन्नाएं क्या हैं?
जब आप इन प्रश्नों का उत्तर खोजने लगेंगे तो आप स्वयं महसूस करेंगे कि अभी आपको बहुत कुछ करना है।जब तक आप आगे नहीं बढ़ेंगे,तब तक कुछ नहीं कर सकेंगे।आपके सामने बहुत सी समस्याएं होंगी।ढेर सारी जिम्मेदारियां आपके सिर पर होंगी।बिना कुछ किए वे परेशानियां हल होने वाली नहीं हैं।प्रत्येक व्यक्ति के साथ यही स्थिति है। - संसार के प्रत्येक व्यक्ति पर दायित्व है।वह इसको पूरा न करें,यह उसकी इच्छा की बात है।पर दुनिया में कुछ किए बिना कुछ नहीं मिलता।आपको अपना काम खुद आगे बढ़कर करना होगा।कोई दूसरा या बाहर का व्यक्ति आपका काम करने नहीं आएगा।सारा उत्तरदायित्व आप पर है।जब भी आप आगे बढ़ने की,जीवन के किसी भी क्षेत्र की बात सोचते हैं,तो आपको अपना मन वैसा ही बनाना चाहिए।जब तक आपका मन सक्रिय ना होगा तब तक आप कुछ भी नहीं कर सकेंगे।मन में जब आगे बढ़ने की भावना जम जाएगी,तो फिर कोई भी आपको रोक नहीं सकेगा।सबसे पहले आपको अपना मन उसके अनुकूल बनाना पड़ेगा,एक दृढ़ता अपने मन में पैदा करनी होगी,तन और मन से अपने आपको उसके अनुरूप बनाना होगा।
3.हमारे अंदर अद्भुत शक्ति का जखीरा (We have a reservoir of amazing power within us):
- एक छात्र गणित में बहुत कमजोर था।गणित शिक्षक उसकी कमजोरी दूर करने का भरसक प्रयास करते परंतु वह मुश्किल से ही सवाल हल कर पाता था।वह कक्षा में फिसड्डी छात्र-छात्राओं की गिनती में आता था।एक बार गणित के शिक्षक ने उसमें आत्मविश्वास पैदा करने की एक युक्ति निकाली।एक सवाल बोर्ड पर लिख दिया और छात्र को खड़े होकर सवाल को हल करने के लिए कहा।उसके दिमाग पर तेज झटका लगा,क्योंकि सवाल हल न करने पर अन्य छात्र-छात्राएं उसकी हंसी उड़ाते,ऐसा उसके मन में भय था।उसके अंदर अचानक एक अद्भुत शक्ति ने प्रेरित किया,उसकी मानसिक शक्ति जागृत हो गई और पूरी एकाग्रता के साथ उस सवाल को हल किया।उसने उस सवाल को बोर्ड पर हल कर दिया और सवाल का हल सही था।उसे खुद नहीं मालूम कि ऐसा कैसे हो गया।वास्तव में बोर्ड के पास जाते ही वह यह भूल गया कि वह छात्र है।बल्कि उसने अपने आपको यह अनुभव किया कि वह शिक्षक है और उस समय उसका समस्त भय गायब हो गया।
- इसी प्रकार के प्रेरणादायक प्रसंग गणितज्ञों,वैज्ञानिकों,महापुरुषों के जीवन में प्रायः आते रहते हैं।जब भी इस प्रकार के लोगों को अपनी कर्त्तव्यपरायणता की परीक्षा देनी पड़ती है,तो उनके मन की शक्ति का स्रोत फूट निकलता है।मन की इस शक्ति के कारण वे अपने शरीर की सारी दुर्बलताओं पर काबू पा लेते हैं या उनको भूल जाते हैं।उनके अंतर्मन का उत्साह इतना तीव्र और वेगवान हो जाता है कि उनकी देह लोहे की बन जाती है।फलस्वरूप मन चेतना से शक्ति ग्रहण कर शक्तिशाली बन जाता है।वह पूरे उत्साह के साथ अपने कर्त्तव्य-पालन में लग जाते हैं।
- जब मनुष्य का मन उन्नति की ओर लग जाता है,तो फिर वह अपना सारा व्यक्तित्व तथा इस संसार को भूल जाया करता है।उसके मन,प्राणों में केवल उन्नति की लालसा रहती है।उसमें केवल आगे बढ़ने की भावना रहती है।इसी भावना के फलस्वरूप वह अपना सब कुछ भूल जाया करता है।उन्नति के रास्ते हमेशा सामने खुले रहते हैं।उनको हम बार-बार देखते भी रहते हैं।इसके बावजूद हम स्वयं को तरक्की के रास्ते पर न ले जाएं तो यह हमारा दुर्भाग्य ही है।बात दरअसल यह है कि हम अपनी क्षमताओं के प्रति सजग नहीं रह पाते।हम इस बात को नहीं जानते कि हमारे व्यक्तित्व में शक्ति और प्रेरणा का कितना अथाह सागर है।मौका आने पर यह सागर खौलने लगता है।तब शक्ति की लहरें हिलोरे लेने लगती हैं।उस समय शरीर में अदम्य साहस का अनुभव होता है।तब स्वयं पर इस बात का आश्चर्य होता है कि यह शक्ति अब तक कहां थी।
- आदमी जब आगे बढ़ने का संकल्प करता है और दृढ़ता के साथ वह उन्नति की ओर बढ़ना चाहता है,तो चेतना अंधकार की गुफाओं से निकलकर जगमगाने लगती है।व्यक्ति अपने प्रकाश से अपने आसपास के संसार को आलोकित कर डालता है।चुनौतियां मनुष्य को अपनी अज्ञात व अपरिमित शक्तियों के प्रति जागरूक बनाती है।
- प्रायः देखा गया है कि डरपोक व कमजोर लड़के-लड़कियां भी मौका पड़ने पर अद्भुत साहस का परिचय देते हैं।वही लोग जो आमतौर पर अंधेरे कमरे में जाते समय थर-थर कांपने लगते हैं,मौका आने पर इस तरह की शूरवीरता का परिचय देते हैं कि लोग दांतों तले उंगली दबा लिया करते हैं।जब कभी किसी सवाल या प्रश्न को हल करने का मौका आता है और उनके सामने चुनौती आती है,वे उस चुनौती से जूझते हैं और अपनी पूरी शक्ति से हल करते हैं।अथवा जब कभी कोई आकस्मिक दुर्घटना हो जाती है अथवा आग लग जाती है,तो कई ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं कि जब कायर भी जान हथेली पर रखकर आग की लपटों में कूद जाते हैं।किसी डूबते हुए को बचाने में अपने साहस का परिचय देते हैं।बेधड़क पानी में छलांग लगा देते हैं।वे उस समय अपनी मौत की चिंता नहीं करते,उस समय बड़ा से बड़ा जोखिम उठा लेते हैं।
- आखिर ऐसा क्यों होता है? इसका मूल कारण हमारे मन में बैठी वह शक्ति है,जो अचानक झटका लगते ही अपने विकट और एकीकृत रूप को धारण करके जागृत हो उठती है।उस समय अत्यंत साधारण मनुष्य में भी अपूर्व शक्ति आ जाती है।
4.सफलता में भी सजग रहें (Be cautious about success too):
- स्पष्ट है कि हमारे मन में अद्भुत शक्ति विद्यमान है।हम उसे जगायें तो क्या नहीं कर सकते।कठिनाई यह है कि हम उसे जगाते नहीं।इस शक्ति के जागृत होते ही उन्नति की ओर बढ़ना शुरू कर देते हैं।
- प्रत्येक मनुष्य में शक्ति का,साहस का,एक अजस्र पुंज है।यह पुंज जब तक सुप्त रहेगा,तब तक मनुष्य कुछ नहीं कर सकेगा।वह साधारण जीवन ही व्यतीत करता रहेगा।महापुरुषों की बात छोड़ दीजिए,साधारण व्यक्ति का जीवन भी कठिनाइयों से भरा होता है।उसे जीवन में पग-पग पर बाधाओं का सामना करना पड़ता है।कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी यदि व्यक्ति का यह विश्वास कायम रहे की स्थिति बदलेगी,संकट के दिन दूर होंगे,तो वह परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर आगे बढ़ेगा।एक-न-एक दिन उसके दुःख के बादल छंट जाएंगे।विश्वास मन में उत्पन्न होता है।मन में वास करने वाली आस्था मनुष्य को धीरज बंधाती है।इसी धैर्य के बल पर परिस्थितियों का सामना करता है।
- समय एक समान कभी नहीं रहता,वह बदलता रहता है।आज हम पढ़ने में होशियार है,तो हम हमेशा होशियार,प्रखर नहीं बने रहेंगे।ज्योंही सजग रहना छोड़ दिया है,पढ़ने की तरफ ध्यान देना छोड़ दिया तो हमारा पतन होना चालू हो जाएगा।सफलता-असफलता हमारे कार्यों के परिणाम हैं।असफलता का ईमानदारी से विश्लेषण करें तो आप पाएंगे कि वह आपकी किसी उदासीनता,अकर्मण्यता या किसी कुकृत्य के कारण ही आया है।
- छात्र-छात्राओं के चरित्र में एक और दोष है,जो अधिकांश छात्र-छात्राओं में होता है।यह दोष उनको विभिन्न प्रकार के कष्टों में घेर देता है।
- सफलता मिलने के बाद निरंतर प्रयत्न करना जारी नहीं रखते जबकि असफलता में या कमजोर होने पर उसे दूर करने का प्रयास करते हैं।इस प्रकार सफलता में हम अपने बुरे दिनों,असफलता के स्वाद,कमजोर होने पर होने वाले कष्टों को भूल जाते हैं और सफलता दर सफलता मिलती रहे इसके लिए आगे प्रयास जारी नहीं रखते हैं।आने वाले समय के लिए ऐसा कोई उपाय,प्रयत्न (अध्ययन जारी रखना) नहीं करते कि कहीं हम फिर से किसी पहले वाली विपत्ति में ना फंस जाएं।कहीं हमें फिर से उन्हीं दुर्दिनों का सामना नहीं करना पड़े।अतः जब असफलता मिल जाती है,तो उस समय हमारे पास बचाव का कोई साधन नहीं रहता।तब हम बेहद घबरा जाते हैं।अतएव समझदार छात्र-छात्रा या लोग सफलता के दिनों में आने वाले अगले दिनों में असफलता न मिले या असफलता मिल जाए तो उसके बचाव का साधन बनाकर अवश्य रखते हैं।आप यदि उन्नति की ओर अग्रसर होना चाहते हैं,तो आपको इस प्रकार का प्रबंध करना ही होगा।
5.मानसिक और शारीरिक शक्ति दोनों आवश्यक (Both mental and physical strength required):
- मनुष्य के जीवन में मानसिक शक्ति का बड़ा महत्त्व है। केवल शारीरिक शक्ति के बल पर ही मनुष्य कुछ नहीं कर सकता।उसमें मानसिक शक्ति का होना आवश्यक है।प्रत्येक मनुष्य में अपार और असीमित मानसिक शक्ति भरी रहती है।दुर्भाग्य यह है कि वह उस शक्ति को पहचान नहीं पाता।इसी कारण असफलता,दुःख,कष्ट और अभावों में उसको जीना पड़ता है।मानसिक शक्ति का तेजस्वी सूर्य प्रत्येक मनुष्य के हृदय में रहता है।मगर बादलों से ढका रहने के कारण उसे उसकी शक्ति का पता नहीं लग पाता।ऐसे अनेक उदाहरण देखने में आते हैं जब मनुष्य स्वयं ऐसे चमत्कारिक कार्य कर जाता है जिसकी उसे सपने में भी उम्मीद नहीं की जा सकती।
- एक छात्र पढ़ने में बहुत फिसड्डी था।सदा कक्षा में पिछली पंक्ति में बैठा रहता था।दूसरे बच्चों को देखकर उसमें उत्साह तो उत्पन्न होता था,मगर वह कभी हिम्मत नहीं कर पाता था कि स्वयं अपनी बुद्धि के बल पर सवालों को हल करे,प्रश्नों को हल करे।एक दिन ऐसा आया कि उसके जीवन की धारा ही बदल गई।हुआ यह कि उसकी छोटी बहन आकर उसके पास रोने लगी कि वह गणित में बहुत कमजोर है और इस बार असफल हो जाएगी।परीक्षा बिल्कुल निकट थी।उससे उसका रोना और बिलखना देखा नहीं गया।क्योंकि उस थोड़े से समय में ट्यूशन या कोचिंग से भी कुछ फायदा नहीं हो सकता था।अतः उस छात्र ने स्वयं उसको पढ़ाने का निर्णय किया।
- उसने रात-दिन मेहनत की और गणित का अभ्यास करने लगा।उसने सोचा कि वह ऐसा नहीं करेगा तो बहन की जिंदगी खराब हो जाएगी।बहन को रात-दिन एक करके पढ़ाया।पहले स्वयं पढ़ता और फिर उसे पढ़ाता।उसकी मेहनत रंग लाई और बहन की कमजोरी के साथ-साथ उसकी गणित में कमजोरी दूर होती गई।
- उसने न केवल बहन को अनुत्तीर्ण होने से बचा लिया बल्कि स्वयं भी गणित में सफल हो गया।उसे एहसास हो गया कि खुद के बलबूते पर अध्ययन करने पर ही आगे बढ़ा जा सकता है।दूसरों की सहायता-सहयोग तभी लेनी चाहिए जब स्वयं के द्वारा पूरा प्रयत्न करने,कठिन परिश्रम करने पर भी समस्या हल नहीं हो रही है।ज्यादा से ज्यादा समस्याओं को खुद हल करने का भरसक प्रयास करना चाहिए।गणित में अभ्यास व कठिन परिश्रम का गुर उसको पता चल गया।फलतः उसकी गणित में कमजोरी सदा-सर्वदा के लिए दूर हो गई।
- उपर्युक्त आर्टिकल में लक्ष्य प्राप्ति के लिए लगातार चलते रहो (Keep Moving Continuous to Achieve Goal),लक्ष्य प्राप्त होने तक रुको मत (Do Not Stop Until Goal is Reached) के बारे में बताया गया है।
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6.छात्र और उल्लू (हास्य-व्यंग्य) (Student and Owl) (Humour-Satire):
- श्रद्धा:बताओ छात्र तथा जानवर में क्या फर्क है?
- विनीता:जानवर हमेशा जानवर ही रहता है वह कम जानवर या अधिक जानवर नहीं होता।जैसे उल्लू कभी कम उल्लू या अधिक उल्लू नहीं हो सकता है।
- श्रद्धा:पर छात्र।
- विनीता:परंतु छात्र गधा भी बन सकता है,गधे का बच्चा भी बन सकता है,उल्लू भी बन सकता है,उल्लू का पट्ठा भी बन सकता है यहां तक की मुर्गा भी।
7.लक्ष्य प्राप्ति के लिए लगातार चलते रहो (Frequently Asked Questions Related to Keep Moving Continuous to Achieve Goal),लक्ष्य प्राप्त होने तक रुको मत (Do Not Stop Until Goal is Reached) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.छात्र में उन्नति की ललक क्यों आवश्यक है? (Why is the urge for advancement necessary in the student?):
उत्तर:जब छात्र-छात्रा के उन्नति की ललक लग जाती है तो वह अपना सारा व्यक्तित्व यहां तक की सारी दुनिया को भी भूल जाया करता है।उसके मन-प्राणों में केवल उन्नति की लालसा रहती है।उसमें केवल आगे बढ़ने की भावना रहती है।इसी भावना के फलस्वरूप वह अपना सब कुछ भूल जाता है।
प्रश्न:2.क्या छात्र की उन्नति के रास्ते खुले रहते हैं? (Do the avenues for student advancement remain open?):
उत्तर:हां,छात्र-छात्रा के लिए सदैव उन्नति के रास्ते सामने खुले रहते हैं।इसके बावजूद वह स्वयं को तरक्की के मार्ग पर न ले जाए तो यह उसका दुर्भाग्य ही है।ऐसा नहीं होता है कि मेधावी छात्र ही उन्नति कर सकते हैं।फिसड्डी छात्र-छात्राएं भी उन्नति करके शिखर पर पहुंच सकते हैं।अल्बर्ट आइंस्टीन गणित में फिसड्डी थे,वैज्ञानिक जेम्स वाट पढ़ने में फिसड्डी थे लेकिन आगे चलकर महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक सिद्ध हुए।
प्रश्न:3.सफलता व असफलता का कोई दोहा लिखिए। (Write a couplet of success and failure):
उत्तर:”फेल होने पर कोशिश सब करे,पास होने पर कोशिश करे ना कोय।
जो पास होने पर कोशिश करे,तो फेल काहे को होय।।”
अर्थात सफलता मिलने पर गफलत तथा आलस्य न करके,सजग रहकर कोशिश करता रहे तो उसे असफलता का स्वाद चखना ही ना पड़े।असफलता हमें तभी मिलती है जब सफल होने पर भी हम आलस्य,लापरवाही करते हैं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा लक्ष्य प्राप्ति के लिए लगातार चलते रहो (Keep Moving Continuous to Achieve Goal),लक्ष्य प्राप्त होने तक रुको मत (Do Not Stop Until Goal is Reached) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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