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How to self control our mind in hindi

1.अपने मन को कैसे नियंत्रित करें? का परिचय (Introduction to How to self control our mind in hindi):

  • अपने मन को कैसे नियंत्रित करें? (How to self control our mind in hindi):मन के कारण मनुष्य अपना सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा मित्र स्वयं ही है।यदि हम मन को वश में कर लेते हैं तो हम अपने आपके सबसे बड़ा मित्र है तथा यदि मन को वश में नहीं करते हैं हम अपने आपके सबसे बड़े शत्रु हैं।
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via https://youtu.be/niDUgdwjFAM

2.अपने मन को कैसे नियंत्रित करें? (How to self control our mind in hindi):

  • किसी भी विषय के बारे में ज्ञान का आदान-प्रदान करनेवाला,सभी इन्द्रियों से कार्य लेने वाला तथा इंद्रियों का मालिक मन है।इंद्रियां मन के बिना न तो कोई ज्ञान प्राप्त कर सकती हैं और न सक्रिय हो सकती हैं। मन सदा गतिशील,चंचल और अत्यंत तीव्र गति वाला है।इसकी सहायता के बिना बुद्धि किसी विषय का चिंतन नहीं कर सकती है।मन के कार्यों के उचित या अनुचित होने के विषय में निर्णय करने का कार्य बुद्धि का है।
  • अंतकरण चतुष्टय में मन,बुद्धि,अहंकार और चित्त शामिल है।आत्मा जिन साधनों से काम लेता है वह अन्तःकरण कहलाता है।हमारी स्मृतियों तथा संस्कारों का आधार चित्त ही है।हमारी आदतों को प्रेरणा देना व सक्रिय करना चित्त का काम है।इस चित्त के बर्ताव को नियंत्रित रखने से ही मन एकाग्र और संयमित रहता है।चित्तवृत्ति को रोकना और अ-मन की अवस्था को उपलब्ध होना ही योग है।ध्यान में भी अमनी अवस्था उपलब्ध होती है।जब चित्तवृत्ति का निरोध हो जाता है तभी हम आत्मा की तरफ यानी अपने आप की तरफ मुड़ते हैं।मैं हूं,यह मेरा है इस प्रकार की भावना रखना अहंकार है।
  • हम हमारी स्वाभाविक स्थिति में नहीं रह पाते हैं क्योंकि मन,इंद्रियों को अपनी मर्जी के मुताबिक चलाता रहता है।हमारी बुद्धि मन का साथ दे रही है,हमारा अहंकार मन का साथ दे रहा है और चित्त भी मन के रंग में रंगा हुआ है।
  • मन चंचल और गतिशील होता है तभी तो इसके होने का पता चलता है।जैसे वायु गतिशील नहीं होती तो उसके होने का पता नहीं चलता।इसी प्रकार मन के चंचल होने पर हमें इसका पता चलता है,एहसास होता है।जिससे मनन किया जाता है वह मन है।मन अंतकरण चतुष्टय में शामिल होने पर भी एक इन्द्रिय भी है क्योंकि सुख-दुख का अनुभव हमें मन के द्वारा ही होता है।
  • मन ज्ञानेंद्रियों तथा कर्मेन्द्रियों को सहयोग करते समय उनके रूप का हो जाता है।मन की गति अत्यन्त तीव्र है जिससे यह एक साथ एक ही समय में विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों के साथ संयोग कर सकता है। मन के योग के बिना ज्ञानेन्द्रियाँ अपना काम नहीं कर सकती इसलिए इसे ज्ञानेन्द्रियों का स्वामी कहा जाता है।
  • मन का धर्म है मनन करना,संकल्प-विकल्प करना। मन तथा इन्द्रियाँ विषयों में फंस जाती है तो मनुष्य के बंधन का कारण होती है।यदि इंद्रियों को मन के द्वारा नियंत्रण में रखा जाए तथा मन पर विवेक का नियंत्रण हो तो यह विषय वासनाओं से मुक्त हो सकता है जिससे मनुष्य मोक्ष (मुक्ति) को प्राप्त हो सकता है।इस प्रकार मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है।मन को विवेकपूर्वक वश में करना चाहिए।मन को श्रेष्ठ पुस्तकें पढ़ने,स्वाध्याय,सत्संग में लगाना चाहिए।गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि मन को अभ्यास और वैराग्य से वश में करना चाहिए।
  • वस्तुतः मन की गति नीचे की ओर अग्रसर होती है जिससे मनुष्य पतन के मार्ग की ओर अग्रसर हो जाता है।मन को साधना बहुत कठिन है।सबसे कठिन कार्य मन को जीतना,मन को वश में करना ही है।स्वाध्याय,सत्संग इत्यादि से मन को वश में करना चाहिए।
  • विवेक से काम लेकर मन को सदा अच्छे,शुभ और कल्याणकारी कार्यों में लगाना चाहिए।हमेशा अच्छी कम्पनी (company) में रहना चाहिए।बुरे विचारों का साथ नहीं देना चाहिए।एकाग्रता,ध्यान के अभ्यास से भी मन को वश में किया जा सकता है। एक ही विचार पर मन को केन्द्रित रखना एकाग्रता का अभ्यास करना होता है।इस प्रकार मन को वश में करके,अच्छे विचारों को धारण करने तथा बुरे विचारों को दूर रखने का अभ्यास करना चाहिए। इतने उपाय करने से मन वश में हो जाता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अपने मन को कैसे नियंत्रित करें? (How to self control our mind in hindi) के बारे में बताया गया है।
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