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How to Develop Art of Conversation?

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1.वार्तालाप की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Conversation?),उत्तम वार्तालाप की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Perfect Conversation?):

  • वार्तालाप की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Conversation?) क्योंकि वार्तालाप किसी भी छात्र-छात्रा और व्यक्ति के व्यक्तित्त्व का दर्पण होता है।छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति की बातचीत सुनकर उसके विचारों तथा भावनाओं का ही नहीं,मानसिक व नैतिक अवस्था का भी अनुमान लगा सकते हैं।वार्तालाप करना केवल पढ़ने-लिखने तथा परीक्षा में अच्छे अंक अर्जित करने से ही नहीं आती है बल्कि इसे स्वयं प्रयास करके विकसित करना होता है।
  • ज्ञान और अनुभव के साथ-साथ आप बातचीत करने,वार्ता करने का अभ्यास करते हैं तो वार्तालाप की कला विकसित होती जाती है।कई विद्यार्थी इस तरफ ध्यान नहीं देते हैं अतः बहुत कुछ जानते हुए भी वे असभ्य,उज्जड़,कटु शब्दों और कठोर शब्दों का प्रयोग करके वार्ता की कला विकसित नहीं कर पाते हैं।
  • यदि आप अध्यनरत हैं,किसी जॉब की तलाश में हैं अथवा जॉब कर रहे हैं या व्यवसाय कर रहे हैं तो वार्तालाप में प्रवीण होने पर ही सफल हो सकते हैं। एक अच्छा विद्यार्थी,कर्मचारी,अधिकारी,व्यवसायी,अध्यापक,गणितज्ञ,वैज्ञानिक,मित्र वही है जो उत्तम ढंग से वार्तालाप कर सकता है।
  • आजकल गुरु-शिष्य,अध्यापक-छात्र,कर्मचारी-अधिकारी इत्यादि में आपस में परस्पर वैमनस्य,खींचतान,द्वेष और परस्पर घृणाभाव का मुख्य कारण यही है कि वे वार्तालाप करने की विधि नहीं जानते हैं।हमारा चारित्रिक,मानसिक,नैतिक पतन इतना हो चुका है कि हर कहीं स्वार्थ,निर्दयता और ओछेपन का प्रदर्शन देखने को मिलता है।
  • हमारे नेताओं,पथ प्रदर्शकों,समाज सुधारकों की भाषा में माधुर्य,सौंदर्य तथा सहृदयता की मिठास नहीं आएगी तब तक सामाजिक समरसता तथा राष्ट्रीय एकीकरण संदिग्ध ही रहेगा।बहुत से लोग साधु,फकीरों,तांत्रिकों,ज्योतिषियों इत्यादि के चक्कर में दूसरों को काबू करने,वश में करने,चमत्कार दिखाने के फेर में पड़े रहते हैं और उनसे परामर्श लेते हैं परंतु सभी शक्तियों में श्रेष्ठ है बातचीत करने की शक्ति।जिसे बातचीत करने का ढंग पता है वह हर किसी को वश में कर सकता है।
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2.उत्तम वार्तालाप कैसे करें? (How to Have a Good Conversation?):

  • निस्संदेह संसार में बुद्धिमता,विवेक,धैर्य,साहस आदि का भी आदर होता है।सौंदर्य के उपासक भी मिल जाएंगे।धन की शक्ति से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।परंतु जिस छात्र-छात्रा अथवा व्यक्ति को बातचीत करने का ढंग नहीं आता-जिसके पास कोमल,मधुर एवं सुसंस्कृत शब्दों का भंडार नहीं,वह अन्य गुणों का स्वामी होते हुए भी दूसरों के दिलों में जगह नहीं बना पाता है।
  • दूसरों के दिलों पर वही राज कर सकता है जो मधुर बोलता हो,जिसकी जिव्हा समय और स्थिति की पहचान कर सके और जिसकी बातचीत में आदर,प्रशंसा,नम्रता और प्रोत्साहन भी हो।यदि छात्र-छात्रा हैं तो उसके मित्र,माता-पिता,अभिभावक,शिक्षक उससे मिलने के लिए उत्सुक रहते हैं।ऐसे छात्र-छात्रा के साथ समय व्यतीत करके सभी आनंद और खुशी का अनुभव करते हैं।यदि अधिकारी में ऐसे गुण है तो कर्मचारी तन-मन लगाकर जॉब करते हैं और व्यवसाय को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की भरसक कोशिश करते हैं।
  • उत्तम वार्तालाप करने वाले की अनेक कठिनाइयां उसके शब्दों से ही दूर हो जाती है।अनेक बाधाएं स्वयं ही मार्ग छोड़ देती हैं।बहुत सी आकांक्षाएं स्वयमेव ही पूर्ण हो जाती है।
  • वार्तालाप जितना लंबा होगा उसका प्रभाव उतना ही कम होगा।कहा भी गया है की संक्षिप्तता बुद्धिमानी की निशानी है।
    अच्छे बोलने वालों की भाँति ही हमारे समाज में अच्छे सुनने वाले भी बहुत कम पाए जाते हैं।सुनने वाले के लिए आवश्यक है कि वे शांति और धैर्य के साथ अपने साथियों की बात सुन सकें और खामोश रहकर उनकी ओर ध्यान भी दे सकें।यदि व्यवहार से बोलने वालों को यह अनुभव करा सके कि वह पूरी दिलचस्पी के साथ उसकी बात सुन रहें हैं।यदि कोई व्यक्ति बोल रहा हो तो उस समय तक कोई प्रश्न नहीं करना चाहिए,जब तक वह अपनी बात समाप्त न कर लें।
  • अच्छा वार्तालाप उतना ही रोचक हो सकता है जितना कोई स्वादिष्ट व्यंजन और यह गुण बिना ज्ञान,अनुभव और अभ्यास के प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
  • अच्छी-अच्छी पुस्तकों व पत्र-पत्रिकाओं,अच्छे लोगों के सत्संग से हम अपने ज्ञान,विचार और शब्द भंडार में बहुत वृद्धि कर सकते हैं।जो व्यक्ति अध्ययन करता है उसे एक नोटबुक भी रखनी चाहिए।अध्ययन करते समय यदि कोई अच्छा वाक्य,कोई उपयोगी बात,कोई दृष्टांत,कोई काव्य-पद,कोई प्रेरक विचार अथवा कोई सुंदर उक्ति दिखाई दे तो तुरंत नोट कर लें।इससे आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और आप वार्तालाप को प्रभावी ढंग से रोचक बना सकते हैं।वार्तालाप करते समय अनावश्यक,फालतू बातों को सर्वथा त्याग देना चाहिए।उतनी ही बात की जाए,जितनी आपके उद्देश्य-पूर्ति के लिए पर्याप्त हो।

3.वार्तालाप में न करने योग्य बातें (Things Not to Do in Conversation):

  • कुछ छात्र-छात्राएं अध्ययन की बात करते-करते घर की बात करने लग जाते हैं।घर की बातों में किसी यात्रा का जिक्र छेड़ देते हैं।एक व्यक्ति की बात करते-करते चार अन्य व्यक्तियों की कहानीयाँ ले बैठेंगे।स्कूल की बातें करते-करते फिल्मों की बातें करने लगेंगे।
  • इस प्रकार के व्यर्थ वार्तालाप का स्वभाव अधिक बातें करने से बनता है।
  • आवश्यकता से अधिक बातें करने वालों को यह घमण्ड होने लगता है कि लोग उनकी बातों में दिलचस्पी ले रहे हैं।वास्तव में यह दिलचस्पी नहीं होती,दिखावा ही होता है।कोई उन्हें टोकना उचित नहीं समझता,अन्यथा मन ही मन न जाने लोग उन्हें कैसा मूर्ख समझते हों और घृणा करते हों।
  • कई बार छात्र-छात्रा दूसरे से कोई प्रश्न करते हैं और वह उसका उत्तर दे ही रहा होता है कि दूसरा प्रश्न दे मारते हैं या बीच में ही बात काटकर रामकहानी शुरू कर देते हैं।यह अनुचित है इससे बात करने वाला यह समझता है कि उसकी बात को महत्त्व न देकर उसका अपमान किया जा रहा है।किसी भी सुसंस्कृत समाज में अनावश्यक एवं अवांछित प्रश्न करने वाले को आदर की दृष्टि से नहीं देखा जाता है।
  • कई बार छात्र-छात्राएं परीक्षा देने,साक्षात्कार हेतु जाते हैं तो मार्ग में मिलने वाले अंजान छात्र-छात्राओं से व्यर्थ की एवं व्यक्तिगत बातों को पूछने लग जाते हैं।वे प्रायः परिवार,निवास-स्थान तथा अन्य अनेक घरेलू प्रश्नों की बौछार कर देते हैं।वे इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ बातें ऐसी होती हैं,जो वे सर्वसाधारण के सामने बताना पसंद नहीं करते।फलस्वरूप ऐसे छात्र-छात्राएं एवं लोग जहां भी जाते हैं,मार्ग में मिलने वाले अनजान लोगों पर अच्छा प्रभाव नहीं छोड़ पाते हैं।
  • जिस प्रकार अनजान लोगों की निजी बातों की खोज करते हैं,ऐसे ही कुछ छात्र-छात्राओं व लोगों का स्वभाव होता है कि जो भी बात करेंगे उसमें अवश्य ही अपने निजी मामलों को घुसेडेंगे।भाई-बहन की बात हो रही है तो माता-पिता की बात ले बैठेंगे।मोहल्ले की बात चल रही हो तो बिगड़ैल बच्चों अथवा लड़कियों की बात करना प्रारंभ कर देंगे।किसी के रोग के विषय में बात चल रही हो तो वे अपने घर के किसी व्यक्ति के रोग को बीच में ले आएंगे।
  • यदि किसी उत्सव में सम्मिलित हुए हों और वहां किसी सरपंच,एमएलए या मंत्री ने हाथ मिलाया हो तो उसका जिक्र अवश्य करेंगे।ये बातें कहने वाला झूठ न भी बोलता हो और सब कुछ सत्य ही कह रहा हो तो भी सुननेवालों पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता।बुद्धिमान लोगों ने इसे छिछोरापन कहा है।यदि आप अपने मित्रों के मन में आदर का स्थान पाना चाहते हैं तो आत्मप्रशंसा तथा आत्मप्रदर्शन से बचें।
  • उत्तम वार्तालाप करने वाला व्यक्ति अपनी किसी बात को धार्मिक विश्वास नहीं समझता कि उसमें किसी परिवर्तन या संशोधन की गुंजाइश ही न हो या उसके विरुद्ध कोई मत या दलील ही न दी जा सके।जो लोग अपनी बातों को इस प्रकार अटल सत्य का दर्जा देने वाले होते हैं,वे अपने आसपास के वातावरण को मधुर और सरस नहीं बना सकते।ओर बातों को छोड़िए,यदि किसी धार्मिक विश्वास को भी व्यक्त कर रहें हो तो भी दूसरों को अपने दृष्टिकोण के पक्ष में दलीलें पेश करने का अधिकार है तथा अपने विचारों को व्यक्त करने का वैसे ही अधिकार है।यदि आप अपनी बातों पर आलोचना अथवा आक्षेप सहन नहीं कर सकते तो मित्र व समाज के लोग आपके ऊपर संकीर्णता का दोष लगाने के लिए विवश हैं।
  • दूसरों की उचित और स्पष्ट दलीलों के बावजूद अपनी बात पर अडे रहने से वार्तालाप का रस ही नष्ट नहीं होता,मानव-व्यक्तित्त्व को भी भारी हानि होती है।हठधर्मी उन्हीं लोगों का स्वभाव होता है,जिनको हीन-भावना का रोग लगा हुआ हो।
  • वार्तालाप का सबसे अनुचित पहलू यह है कि एक ही व्यक्ति बोलता चला जाए और किसी दूसरे को बोलने का अवसर ही न दें।उसकी बातें सुनने वाले स्वभावतः ही बहुत शीघ्र ऊब जाते हैं।प्रतिक्रिया स्वरूप सुनने वालों के मन में ऐसा हठ पैदा हो जाता है कि उसकी उचित और ठीक बात को भी झूठ और व्यर्थ ही समझते हैं।इस प्रकार स्वयं ही बोलते रहने वाला व्यक्ति दूसरों को कोई लाभ नहीं पहुंचा सकता और किसी की बात वह सुनता नहीं,इसलिए उसके ज्ञान में भी वृद्धि नहीं होती।
  • वार्तालाप करते समय किसी वाक्य या शब्द को बार-बार दोहराने का स्वभाव भी ठीक नहीं।कुछ लोग ‘क्या नाम’,’मानो’, ‘मेरा मतलब है’,’भैंस की टांग’ आदि कहने के आदि होते हैं।5 मिनट की बातचीत में 10 बार शपथ या कसम उठाते हैं या बार-बार कोई असभ्य शब्द दोहराएंगे।वार्तालाप कला की दृष्टि से इन सभी बातों से बचना चाहिए।यह स्वभाव इस बात का लक्षण है कि बोलने वाले के मस्तिष्क में कोई न्यूनता है,जिसकी पूर्ति के लिए वह बार-बार व्यर्थ के शब्दों का सहारा लेने के लिए विवश हो जाता है।एक ही शब्द को बार-बार दोहराने का बुरा प्रभाव पड़ता है।

4.वार्तालाप को रोचक कैसे बनाएं? (How to Make a Conversation Interesting):

  • वार्तालाप को रोचक बनाने का तरीका है कि जिस व्यक्ति का मानसिक झुकाव शिक्षा और स्वभाव जिस ओर हो उसके अनुसार ही वार्तालाप करें।जैसे किसी छात्र-छात्रा की गणित में रुचि है और वह उसे बेहद चाहता है तो उसके साथ गणित संबंधी बातों का जिक्र करें।ऐसा न करें की गणित के प्रेमी व्यक्ति के साथ दर्शन और अध्यात्म की बातें करने लग जाएं।यदि कोई छात्र या व्यक्ति अतिथि के रूप में आने वाला हो तो उसकी रुचि,स्वभाव और आदत को जान लें और उसी विषय में चर्चा करें।
  • यदि आपका साथी आपकी बातचीत में दिलचस्पी प्रकट नहीं करता,उसमें उत्सुकता के चिन्ह दिखाई नहीं देते और बेमन से हूं-हां किए जा रहा है तो आपको समझना चाहिए कि आप उसके मन की रुचि से अपरिचित हैं।वार्तालाप कला में प्रवीण व्यक्ति बातचीत के दौरान सदा अन्य व्यक्ति की भावनाओं और उसके संस्कारों का ध्यान रखता है।जैसे ही उसको महसूस होता है कि उसकी कोई बात उसके साथी को अरुचिकर लग रही है तो वह उसी समय बातचीत का विषय बदल देता है।
  • जब कोई छात्र-छात्रा अथवा व्यक्ति अपनी बात पूरी कर चुके तब भी टोकना उचित नहीं।मान लीजिए आपका साथी आपको विज्ञान के किसी टॉपिक के बारे में बता रहा हो या उसकी बात अतिश्योक्ति ही क्यों न हो,यह उचित नहीं कि आप उसको झुठलाना शुरू कर दें।स्वभावतः ही उसकी यह इच्छा होगी कि वह अपने आपको सत्य प्रमाणित करे।वह अपनी बात पर अड़ जाएगा।इससे संभव हो सकता है कि आप दोनों में झगड़ा शुरू हो जाए।
  • यदि किसी मजिस्ट्रेट के सामने कोई व्यक्ति घटना को गलत रूप से प्रस्तुत कर रहा हो और आपकी गवाही हो तो आपको पूरा अधिकार है कि उसकी बात काटें परंतु साधारण वार्तालाप में आपका चुप रहना ही उचित है।क्या यह जरूरी है कि आप अनावश्यक तौर पर झगड़े पैदा करके अपने विरोधियों की संख्या बढ़ाए? हां यदि आप साथ-साथ अध्ययन कर रहें हो तो एक दूसरे को सही बात बताना चाहिए किसी बात का इश्यू नहीं बनाना चाहिए।

5.वार्तालाप का दृष्टांत (An Example of Conversation):

  • एक विद्यार्थी आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर उसके साथियों ने उसके सम्मान में एक भोज दिया गया।एक छात्रा ने बातचीत करते हुए एक कथन उद्धृत किया और कहा कि यह कथन महान गणितज्ञ आर्किमिडीज का है।दूसरा छात्र जानता था कि वह कथन आर्किमिडीज का नहीं बल्कि गणितज्ञ यूक्लिड का है।दूसरे छात्र ने उसका विरोध किया तो पहला छात्र अपनी बात पर अड़ गया।
  • दूसरे छात्र का मित्र जो बहुत मेधावी था,जिसने यूक्लिड की जीवनी विस्तृत रूप से पढ़ी थी,वहीं बैठा था।उसने मेज के नीचे से दूसरे छात्र की टांग को हिलाया और कहा कि तुम्हारा विचार गलत है।यह कथन आर्किमिडीज का ही है।
  • भोज से लौटते समय दूसरे छात्र ने अपने मित्र से कहा कि आप तो भलीभांति जानते थे कि यह कथन आर्किमिडीज का नहीं,यूक्लिड का है।मित्र ने उत्तर दिया-निस्संदेह यह कथन यूक्लिड का ही है;परंतु हम लोग खुशी के अवसर पर इकट्ठे हुए थे,वाद विवाद के लिए नहीं।
  • उस छात्रा ने हमसे राय नहीं पूछी और न ही वह हमसे परामर्श लेना चाहता था,फिर उससे अकारण ही बहस क्यों की जाती? झगड़ा बढ़ाने से सदा बचना चाहिए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में वार्तालाप की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Conversation?),उत्तम वार्तालाप की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Perfect Conversation?) के बारे में बताया गया है।

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6.परीक्षा का रिपोर्ट कार्ड (हास्य-व्यंग्य) (Exam Report Card) (Humour-Satire):

  • ज्योति (पिता से):गणित शिक्षक ने कहा है कि कभी गुस्सा नहीं करना चाहिए।क्या उन्होंने ठीक कहा है।
  • पिता:हाँ,बेटी उन्होंने ठीक कहा है।गुस्सा करना बुरी बात है।अच्छे लोग गुस्सा नहीं करते।
  • ज्योति:तो फिर देखिए मेरे गणित का रिपोर्ट कार्ड,मुझे जीरो नंबर मिले हैं और मैं फेल हो गई हूं।

7.वार्तालाप की कला कैसे विकसित करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Develop Art of Conversation?),उत्तम वार्तालाप की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Perfect Conversation?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या वार्तालाप में व्यर्थ की आलोचना से बचना चाहिए? (Should Pointless Criticism Be Avoided in Conversation?):

उत्तर:यदि किसी छात्र-छात्रा अथवा व्यक्ति को जीवन में सुख-शांति से रहना है तो उसे झूठ बोलने से बचना चाहिए और कोई बात बढ़ा-चढ़ाकर न करें।चुगली,निन्दा,दोष निकालने और आलोचना करने की आदत से जहां मित्रता,संबंध,रिश्ते टूट जाते हैं,वहां यह आदत सर्वप्रियता,उन्नति और सफलता की राह में रोड़ा अटकाती है।किसी भी छात्र-छात्रा या व्यक्ति को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि वह अपने साथियों की चुगली करने,कर्मचारियों द्वारा अधिकारियों के दोष निकालने और अधिकारी द्वारा अपने कर्मचारियों की आलोचना करने के बावजूद एक अच्छा मित्र,अच्छा कर्मचारी या एक अच्छा अधिकारी बन सकता है।अनेक बार एक मौन दृष्टिपात,सहानुभूति पूर्ण व्यवहार,किसी के साधारण दोष को छुपाने या एकाध प्रशंसात्मक वाक्य से ऐसे काम निकल सकते हैं,जो हजार आलोचनाओं और नसीहतों के बावजूद नहीं निकाल सकते।

प्रश्न:2.व्यर्थ बहस क्यों नहीं करना चाहिए? (Why Not Have a Futile Debate?):

उत्तर:बहस और विवाद का स्वभाव वैसे तो सभी के लिए बुरा है,परंतु कंपनी,व्यवसाय या कारोबार के लोगों के लिए यह विशेष तौर पर हानिकारक है।विदेशी कंपनियां अपने एजेंटों,कार्यकर्ताओं और कर्मचारियों को विशेष तौर से इस बात की शिक्षा देती हैं कि वे ग्राहकों से कभी बहस न करें।भारत में भी बहुत सी कंपनियां इस बात का पालन करती हैं परंतु कुछ कंपनियों व व्यवसायी जो साधारण से मतभेद पर भी ग्राहक से वाद-विवाद करने के लिए तैयार हो जाते हैं।वे समझते हैं कि ग्राहकों को बहस में उलझाकर उन्हें अपने माल के गुण समझाए जा सकते हैं।यह बहुत बड़ा भ्रम है।वाद-विवाद द्वारा ग्राहकों का मन परिवर्तन करना लगभग असंभव है।किसी भी व्यक्ति को बहस से जीतकर अपने से बात करने वाले की सहानुभूति और प्रेम जीतने की आशा नहीं करनी चाहिए।बहस जितनी लंबी होगी,हठ भी उतना ही बढ़ेगा।

प्रश्न:3.वार्तालाप में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? (What Should Be Kept in Mind in the Conversation?):

उत्तर:(1.)बातचीत करते समय स्वर ऊँचा न हो।इससे व्यक्ति की जीवन-शक्ति नष्ट होती है।स्वर इतना धीमा भी न हो कि सुनने वाले को कठिनाई हो।
(2.)किसी बात पर प्रसन्न होकर अपने साथी के हाथ-पर-हाथ या थप्पी मारने की आदत को रोकें।
(3.)किसी चौराहे,किसी के घर के सामने या गली के कोने पर खड़े होकर अधिक देर तक बातचीत न करें।
(4.)किसी राह चलते लड़की,लड़के या व्यक्ति की ओर संकेत न करें।
(5.)बोलते समय दोनों मित्रों,साथियों या व्यक्तियों में पर्याप्त फासला होना चाहिए।
(6.)वार्तालाप के दौरान घूरना,अंगड़ाई लेना या नाक साफ करना असभ्यता की निशानी है।
(7.)बातचीत करते हुए जब साथी बोल रहा हो तो उसकी ओर टकटकी लगाकर न देखें।इससे वह अपनी बात खुलकर बताने में हिचकिचाएगा।
(8.)बातचीत करके समय माथे पर बल न पड़ने दे।
(9.)बातचीत करते समय सोच-समझ कर बोलें सोचे,समझे और फिर बोलें।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा वार्तालाप की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Conversation?),उत्तम वार्तालाप की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Perfect Conversation?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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