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Mathematician Makes Student Struggling

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1.गणितज्ञ ने छात्र को संघर्षशील बनाया (Mathematician Makes Student Struggling),गणितज्ञ और संघर्षशील छात्र (Mathematician and Struggling Student):

  • गणितज्ञ ने छात्र को संघर्षशील बनाया (Mathematician Makes Student Struggling) यही कारण था कि उसने अपने परिवार को संभाल रखा था।पारिवारिक दुःखों को उसने अपने शांत,सहनशीलता एवं हंसमुख स्वभाव से किसी को महसूस ही नहीं होने दिया।किसी को भी पता नहीं था कि उसके इस जिंदादिल व्यक्तित्व के पीछे कितना दर्द व तकलीफों का पहाड़ छिपा हुआ है।
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2.गणितज्ञ के ऑफिस में छात्र (Student in the mathematician’s office):

  • छात्र सुधांशु के सामने ऐसी विकट स्थिति पैदा हो गई थी कि एमएससी करने के तत्काल बाद उसे जाॅब की जरूरत थी।संयोग से गणितज्ञ परमानंद जी ने उसे सहारा दिया और अपने ऑफिस में जॉब पर रख लिया।
  • सुधांशु अपने ऑफिस में बैठा हुआ चिंतन-मनन कर रहा था।उसके दिमाग में अनेक विचार आ-जा रहे थे।उसकी टेबल पर फाइलें पड़ी हुई थी।सुधांशु को जो जाॅब दिया गया था उसकी प्रकृति उसके विचारों से तालमेल नहीं खा रही थी।उसका मन बड़ा उदास था,जिसका प्रभाव उसके जॉब में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था।तमाम प्रयासों के बावजूद वह अपने आप को जॉब पर केंद्रित नहीं कर पा रहा था;जबकि आज ऑफिस बन्द होने से पहले उसे एक महत्त्वपूर्ण कार्य पूरा करना था।सुधांशु अपने ऑफिस में सबसे कर्मठ,ईमानदार एवं आदर्शवादी तथा अनुशासनप्रिय था।वह भावुक एवं संवेदनशील भी था।वह अपने काम के साथ-साथ अपने सहकर्मियों के काम में सहयोग कर देता था।सहयोग-सहायता के मामले में तो सबसे अग्रणी रहता था।इसलिए वह सबका प्रिय था,सभी उसे चाहते थे,पसंद करते थे।
  • उसका शांत,मिलनसार एवं हंसमुख स्वभाव बड़ा ही आकर्षक था।वह गुणों की खान था,इन्हीं गुणों का जादुई आकर्षण था कि उसके विरोधी,ईर्ष्या करने वाले भी उसकी प्रशंसा करने से स्वयं को रोक नहीं पाते थे।उसके व्यवहार से कोई यह पता नहीं लगा पाता था कि जब वह दूसरों को हंसता,हंसाता रहता है तो उसके अंदर भी यही बात रहती है या और कोई बात? यों तो वहां काम करने वाले सभी उसके मित्र थे,परंतु गणितज्ञ परमानंद जी से संबंध बड़ा गहरा था।परमानंद जी सुधांशु के व्यक्तित्व के अनछुए एवं अनजाने पहलुओं को भी जानते थे।परमानंद जी निस्स्वार्थ भाव से निश्चल हृदय से सुधांशु को चाहते थे।परमानन्द जी सुधांशु के व्यक्तित्व की तमाम चीजों से बहुत प्रभावित रहते थे।
  • एक दिन सुधांशु ऑफिस नहीं आया था,वह अवकाश में था।सुधांशु की पत्नी जिसका नाम शुभांगी था,वह शुभांगी को अस्पताल चेकअप के लिए ले गया था।संयोग से उस दिन ऑफिस में ज्यादा कोई काम नहीं था।ऑफिस में सभी अधिकारी और एम्प्लॉइज एकत्र होकर घर से लाया हुआ अपना-अपना लंच टिफिन ग्रहण करते थे,उस दिन भी आपस में बाँटकर ग्रहण कर रहे थे।परमानंद जी ने अपने इर्द-गिर्द बैठे एम्प्लॉइज व ऑफिसर्स से कहा-“जानते हो आप लोग! सुधांशु की मुस्कराहट के पीछे कितना दर्द,कितनी पीड़ा,कितना तूफान उमड़ता-घुमड़ता रहता है।वह स्वयं बड़े कष्टों-कठिनाइयों के भीषण दौर से गुजरने के बावजूद कभी भी यह अहसास तक नहीं होने देता है।उसके निश्चल,निर्मल व्यवहार से यह आकलन एवं अंदेशा लगा पाना कठिन है कि क्या सचमुच में औरों को हंसाना-मुस्कराना एवं विपरीत परिस्थितियों में भी हौसला बढ़ाने एवं ढाढ़स देने वाले सुधांशु का जीवन इतनी विषमताओं एवं संक्रमण से आच्छादित हो सकता है।”

3.सुधांशु के जीवन पर गणितज्ञ की छाप (Mathematician’s imprint on Sudhanshu’s life):

  • परमानंद जी सुधांशु के बारे में सभी को बता रहे थे।सुधांशु एक बार बहुत दुखी था और मेरे पास आया,मैंने उसे ढाढ़स बँधाया और कहा।भारत के कई लोग भूख,प्यास,पैरों में चप्पल नहीं,थके हारे,मृत्यु के सामने खड़े रहे,कितनी ही बार,कई-कई दिनों मुट्ठी भर अन्न न पाकर,राह चलना तक उनके लिए असंभव हो गया,किसी पेड़ की छांव तले ही आश्रय लेते,सो जाते, तब ऐसा लगता जैसे उनकी मृत्यु निकट ही है।बोलने की ताकत नहीं होती थी।उस स्थिति में उनके लिए सोचना तक असम्भव हो जाता लेकिन उन्होंने इतनी विकट परिस्थितियों के सामने हार नहीं मानी।संघर्ष किया और जीते और लोगों के सामने आदर्श प्रस्तुत किया।
  • निषध देश का राजा नल और रानी (पत्नी) दमयंती को अपार कष्टों को सहन करना पड़ा।एक समय ऐसा आया कि उसका राजपाट छिन गया।यहां तक कि उनको पहनने के लिए कपड़े भी नहीं थे।परंतु उन्होंने नीति,धर्म और सत्य का साथ नहीं छोड़ा अतः उन्हें खोया हुआ राज और सब कुछ मिल गया।भगवान राम को राज्य त्याग कर 14 वर्ष तक जंगलों की खाक छाननी पड़ी।रावण उनकी पत्नी सीता को चुरा ले गया।रावण से संघर्ष करके सीता को छुड़ाया और फिर अयोध्या लौटे। पांचो पांडवों को मृगछाला ओढ़ाकर वन में भेज दिया।उन्हें भी बहुत से कष्टों का सामना करना पड़ा और अंत में दुर्योधन का अंत करके राज्य प्राप्त किया।राजा हरिश्चंद्र के जीवन में अनेक कष्ट आए।परन्तु इन सभी ने नीति,धर्म,मर्यादा,सत्य का साथ नहीं छोड़ा और अपना पुराना वैभव प्राप्त किया।इतने बड़े राजा-महाराजाओं को भी दुर्दिन देखने पड़े और अपार कष्टों को भुगतना पड़ा तो तुम्हीं ऐसे कौनसे व्यक्ति हो जिससे कष्टों,दुखों और तकलीफों का सामना न करना पड़े।इसके बाद सुधांशु की हिम्मत बंधी और जीवन में कष्टों और तकलीफों का सामना किया।
  • परमानंद जी कह रहे थे।उनकी आंखों शून्य में कहीं ठहर गई थीं और वह अपने प्रिय छात्र और एम्प्लाॅई सुधांशु के बारे में बताते जा रहे थे।वे कह रहे थे और सभी उसे शांत-मौन होकर सुन रहे थे।सुन ऐसे रहे थे,जैसे उनके सामने सुधांशु का दर्द भरा जीवन जीवन्त होकर चलचित्र की भाँति चल रहा हो।वहां ऐसा कोई नहीं था,जिसके लिए सुधांशु ने कुछ न किया हो।परमानंद जी कह रहे थे-“एक रात मेरी पुत्री को तेज चक्कर आया और वह बेहोश हो गई।हमें कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करें।यह घटना इसलिए भी संगीन हो गई थी,क्योंकि चन्द दिनों बाद उसका विवाह होने वाला था।मैंने सुधांशु को फोन किया वह उसी वक्त आ गया।पुत्री को अस्पताल में भर्ती कराया गया।बीमारी ठीक होने में समय के साथ पैसे भी बहुत खर्च हो गए।विवाह के लिए जोड़ा गया पैसा बीमारी में खर्च होने लगा।विवाह के लिए धनाभाव की पूर्ति सुधांशु ने अपनी पत्नी शुभांगी व मां के सोने के कंगन बेचकर की।इसका पता तो कभी चलता ही नहीं।यदि मैं उसकी फाइल में इसकी रसीद को ना देखता,मैं हतप्रभ था।जब मैंने उससे कुछ कहना चाहा तो उसने कहा गुरुदेव मेरा भी कुछ कर्त्तव्य बनता है,मुझे भी आपने बहुत सहारा दिया,आपका ऋण तो मैं चुका ही नहीं सकता।अतः इस विषय में कभी भी किसी से भी यहां तक की मेरे (सुधांशु) से भी चर्चा न करने के लिए कहा और मैं बिल्कुल चुप हो गया,मैं निरुत्तर हो गया क्योंकि उसकी बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था।

4.सुधांशु का अतीत का जीवन (Sudhanshu’s Past Life):

  • परमानन्द जी की बगल में बैठे एम्प्लाॅई अखिलेश ने कहा-“सर! सुधांशु का परिवार तो सकुशल है न,क्योंकि एक दिन मैंने शुभांगी भाभी के साथ हँसते-मुस्कराते जाते देखा था,दोनों अति प्रसन्न थे।मैंने उन्हें देखकर भगवान से प्रार्थना की थी कि उनका जीवन सुखी और प्रसन्नता से भरा रहे।” देवांशी ने भी कहा-“सर एक दिन मैं भी शुभांगी भाभी से मिली थीं।वह तो बहुत मिलनसार एवं खुले विचारों वाली लगी।”परमानन्द जी ने कहा-” काश! ऐसा होता।सुधांशु का जीवन मेघाच्छादित प्रलयंकारी प्रलय से भी भारी विकराल एवं भीषण है।”सभी एक साथ चौंक पड़े,गणितज्ञ परमानंद जी की बातों से सबके अंतर्मन में बिजली सी कौंध उठी। इतने प्रसन्न,सुशील दीखने वाले व्यक्ति के जीवन में भयानक परिदृश्य! विश्वास ही नहीं होता।सभी ने इसे स्पष्ट करने को कहा।
  • परमानंद जी ने कहा-” प्रिय एम्प्लाॅइज! सुधांशु के जीवन की इस भयानक एवं नितांत सच्चाई को झुठलाया भी तो नहीं जा सकता और इसे विश्वास न करने के पीछे कोई वजह भी तो नहीं है।” देवांशी की आंखों से उष्ण अश्रु की धारा बहने लगी।वह सुबकते हुए कहने लगी-“पहेली न बुझाओ,सर (गणितज्ञ)! स्पष्ट करो क्या बात है?” परमानंद जी ने देवांशी की ओर देखा और वह बोझिल शब्दों के साथ कहने लगे-“पहले मैं बच्चों को ट्यूशन कराया करता था और वह मेरे पास गणित की ट्यूशन करने आता था,इसलिए उसे मैं बचपन से ही जानता हूं।मेरे जीवन की बेशकीमती कई यादें उसके साथ जुड़ी हुई हैं।उसका बचपन बेहद ऐश्वर्यशाली एवं सभी सुख-सुविधाओं से सरोबार था।वह समृद्ध एवं साधन संपन्न परिवार से संबंधित था।सब कुछ ठीक-ठाक था कि अचानक उसके पिता की मृत्यु हार्टअटैक के कारण हो गई।पिता के बिछोह एवं वियोग का दर्द उसकी मां झेल नहीं सकी और विक्षिप्त हो गई। ऐसी दशा में लंबे समय तक बने रहने के कारण उनमें मानसिक विकृति आ गई।सुधांशु के ऊपर उनकी सारी जिम्मेदारी आ गई।अब सुधांशु ही उनकी (मां) देखभाल करता है।पिता की मृत्यु का दर्द उसके अंदर ऐसा जम गया कि वह पिगल ही नहीं सका और इसी वजह से तब से लेकर अब तक वह कुछ बोलती नहीं।कोई भी उपचार एवं दवा कारगर नहीं हो पाई और ना हो पा रही है।” परमानंद जी की आंखों में आंसू छलछला उठे।उन्हें पोंछने के बाद उन्होंने कहा-” पिता की मृत्यु से पूर्व ही सुधांशु का विवाह शुभांगी से हो गया था।शुभांगी भी समृद्ध एवं सम्पन्न परिवार से आई थी।वह भी सुधांशु के समान दूसरों की सेवा करने में अति आनंदित होती एवं स्वयं गौरवान्वित महसूस करती थी।विवाह के बाद एक या दो वर्ष बेहतर ढंग से गुजरा।एक दिन कार दुर्घटना में शुभांगी का सर एवं कमर बुरी तरह क्षत-विक्षत हो गए और इसका परिणाम बड़ा भयानक निकला।परिणाम था कि शुभांगी मातृत्व सुख से सदा के लिए वंचित हो गई और उसकी याददाश्त खो गई।सुंदर एवं भव्य व्यक्तित्व वाली शुभांगी का जीवन अभिशप्त सा हो गया।इस घटना ने सुधांशु से भी अधिक उसके पिता को झकझोर दिया।संभवतः इस दुर्घटना के कारण उसके पिता अधिक दिन तक स्वयं को रोक नहीं पाए।”
  • अखिलेश ने कहा-“सुधांशु तो इस घटना से बुरी तरह से टूट गया होगा।” सभी के सामने सुधांशु का दर्द असहनीय हो उठा।परमानन्द जी ने कहा-” नहीं अखिलेश! सुधांशु इस झंझावात को चुपचाप सहता गया।इकलौती संतान सुधांशु को पिता की संपत्ति का कोई ज्ञान नहीं था; क्योंकि वह एमएससी करते हुए विवाह कर चुका था।पिता की मृत्यु के बाद तो उसने एमएससी उत्तीर्ण किया था।धन लोलुप रिश्तेदारों ने सुधांशु की पैतृक संपत्ति को छीन लिया।मां एवं शुभांगी की बीमारी ने उसे संभलने का मौका ही नहीं दिया।उसे अपनी सारी अचल संपत्ति बेचने को विवश होना पड़ा और उसे किराए के एक छोटे से मकान में पनाह लेनी पड़ी।किसी तरह इस ऑफिस से सामान्य वेतनमान के साथ एक नौकरी मिल गई।जो कितनों को ऐसी आजीविका दे सकता था,आज वह उसके लिए स्वयं विवश है।”

5.गणितज्ञ द्वारा प्रोत्साहन (Encouragement by the mathematician):

  • परमानंद जी की आवाज बोझिल थी,वे उसी भाव से कहते जा रहे थे-” प्रिय एंप्लॉइज! सुधांशु जब घर जाता है तो वहां खाना बनाकर मां एवं पत्नी को खिलाता है,उनकी सेवा करता है तथा देर रात सभी कार्यों से निवृत होकर और मुझे सत्संग के लिए बुला लेता है।उसका रात्रि में सोने का समय निश्चित नहीं है,परंतु उठने का समय 4 से 5 बजे निर्धारित है।वह उठकर फिर से उन दोनों की सेवा करता है,स्वल्पाहार एवं भोजन आदि की व्यवस्था करके फिर से ऑफिस के लिए रवाना होता है।शुभांगी की याददाश्त ही खो गई है,इसलिए वह कब कहां,कौनसा सामान छोड़ देती है,उसको ढूंढना एक दुष्कर कार्य रहता है।दूसरी ओर मां की पथरायी आंखों में अजीब-सा सूनापन सुधांशु को तोड़ने के लिए पर्याप्त है,परंतु सुधांशु इन संघर्षों के बीच टूटा,हारा,थका नहीं,वह तो और भी सहनशील,धैर्यवान एवं अपार साहसी हो चुका है।वह अपने जीवन की परवाह किए बगैर औरों के लिए अपना सर्वस्व लुटाने के लिए सदा तत्पर रहता है।”
  • उसे उत्साहित करते हुए मैं हमेशा यही कहता रहता हूं कि अपने जॉब को डूबकर करो,अपने साथियों,सहकर्मियों की बिना अपेक्षा के सहयोग सहायता करते रहो।निराशाजनक चिंतन को हतोत्साहित करते रहो।महान गणितज्ञों,वैज्ञानिकों और महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा प्राप्त करते रहो।दूसरों के हित के लिए सोचते रहने वाले को भगवान अदम्य शक्ति से संपन्न कर देते हैं।अपनी सोई हुई शक्तियों को जगाओ,अपने आप को तपाओ इससे उसे बहुत संभल और प्रोत्साहन मिलता है।हमेशा कुछ न कुछ समय मेरे साथ सत्संग में अवश्य व्यतीत करता है और उसमें प्रेरणा का संचार होता है।हमें हार नहीं मानना चाहिए,किसी भी परिस्थिति,कितनी भी विकट परिस्थिति के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए,सतत संघर्ष करते रहना चाहिए।
  • कभी-कभी वह कहता भी है कि आपके साथ सत्संग करने से मुझे ऊर्जा मिलती है,जीवन की दिशा मिलती है,नई प्रेरणा मिलती है और मैं इन झंझावातों से संघर्ष करने में समर्थ हो पाता हूं।उसे अपना ख्याल रखने के लिए कहता हूं तो कहता है कि आप मेरा इतना ख्याल रखते हैं,मेरे अज्ञान को दूर करते हैं,दुख और विपत्तियों में मुझे टूटने नहीं दिया,प्रेरित और प्रोत्साहित करते रहते हैं तो मुझे संजीवनी मिल जाती है और नए जोश व होश के साथ अपने कर्त्तव्यों को पूरा करने में लग जाता हूं।जो भगवान को याद रखता है,उसे भगवान किसी न किसी माध्यम से अवश्य सहारा देते हैं और उसकी जीवन नैया को पार लगा देते हैं।ऑफिस में मुझे आप जैसे संवेदनशील अधिकारी (गणितज्ञ) मिले जो मुझे बचपन से जानते हैं,इससे बड़ी भगवत् कृपा क्या हो सकती है।
  • एक दिन परमानंद जी ने सुधांशु के पास आकर पूछा-” आज यह उदासी क्यों है?” सुधांशु ने कहा-“माँ की याद हो आई थी।बचपन की कुछ यादे घूमने लगी थीं और इसी वजह से काम में मन नहीं लग रहा था।अब सब ठीक है।” यह कहते हुए उसने फिर से सबको कुछ नई बातें बताई एवं अच्छा करने के लिए नई योजना गढ़ने लगा।अपने जॉब को करने में तल्लीन और दत्तचित्त हो गया।अब वह कड़वी बातों,दुःख,विपत्तियों से संघर्ष करते-करते सहने का अभ्यस्त हो गया था।उसकी पूरी कहानी सुनने के बाद ऑफिस के सभी एंप्लाॅइज की आंखें नम हो गई थी।ऑफिस में उसका मुस्कराते चेहरे,सभी सहकर्मियों के साथ आत्मीयता का रहस्य पता चल गया था और उसके पीछे छिपे उसके दर्द को भी उन्होंने जाना,समझा और उसे साधुवाद देने लगे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणितज्ञ ने छात्र को संघर्षशील बनाया (Mathematician Makes Student Struggling),गणितज्ञ और संघर्षशील छात्र (Mathematician and Struggling Student) के बारे में बताया गया है।

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6.एम्पलाॅई टकराया (हास्य-व्यंग्य) (Employee Bumped) (Humour-Satire):

  • एम्प्लाॅई (दूसरे एम्प्लाॅई से):अरे यार मैं कल बहुत तेजी से ऑफिस आ रहा था,लेट जो गया था तो बाॅस से टकरा गया।
  • दूसरा एम्प्लाॅई:फिर क्या हुआ?
  • पहला एम्प्लाॅई:फिर मुझे लताड़ लगाई,हड़काया और होश में होकर चलने के लिए कहा।
  • दूसरा एम्प्लाॅई:ऐसा क्यों कहा,आप जानबूझकर तो नहीं टकराए थे।
  • पहला एम्प्लाॅई:वह कौनसे होश में थे,बाॅस होने का नशा चढ़ा हुआ था।

7.गणितज्ञ ने छात्र को संघर्षशील बनाया (Frequently Asked Questions Related to Mathematician Makes Student Struggling),गणितज्ञ और संघर्षशील छात्र (Mathematician and Struggling Student) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.आजकल के एम्प्लाॅइज आपस में कैसा व्यवहार करते हैं? (How do today’s employees behave with each other?):

उत्तर:आधुनिक युग में ऑफिस में आपस का व्यवहार बिल्कुल औपचारिकता का निर्वाह करना मात्र रह गया है।किसी को किसी के दुःख-दर्द से कोई लेना देना नहीं है।संवेदना का बिल्कुल अभाव है,टोटा है।

प्रश्न:2.उपर्युक्त कहानी का संदेश क्या है? (What is the message of the above story?):

उत्तर:उपर्युक्त कहानी का लिखने का मकसद यह है कि ऑफिस में एंप्लॉईज एक-दूसरे से केवल औपचारिक संबंध ही ना रखें बल्कि अनौपचारिक संबंध भी रखें।एक-दूसरे के दुःख-दर्द को समझे,बाँटें और यथासंभव दूर करने का प्रयास करें।आपस में सहायता-सहयोग करें,वर्कलोड किसी के पास ज्यादा है तो उसका सहयोग करें।

प्रश्न:3.संघर्ष क्यों आवश्यक है? (Why is conflict necessary?):

उत्तर:जो कठिन संघर्ष में परम शांति का अनुभव करते हैं,उन्हीं ने जीने का सही ढंग सीखा है।जोखिम,खतरा या संघर्ष कुछ भी नाम दें,इसे जीने का एकमात्र ढंग यही है।जिन्होंने संघर्ष किए हैं,भयावह खतरों के बीच जिए हैं,उन्हीं का जीवन विकसित हो सका है।जिन्दगी में अगर खतरे हैं,तो समझो सबकुछ ठीक है।यदि ऐसा नहीं है,तो समझना,जरूर कहीं कुछ गलत हो रहा है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितज्ञ ने छात्र को संघर्षशील बनाया (Mathematician Makes Student Struggling),गणितज्ञ और संघर्षशील छात्र (Mathematician and Struggling Student) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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