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5 Top Tips for Creative and Fixed Acts

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1.रचनात्मक और नित्य कर्मों को करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Creative and Fixed Acts),रचनात्मक और नियत कर्मों को करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Perform Creative and Assigned Deeds):

  • रचनात्मक और नित्य कर्मों को करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Creative and Fixed Acts) के आधार पर हम समय का सदुपयोग कर सकते हैं।जो व्यक्ति तथा छात्र-छात्राएं इस रहस्य को समझ लेते हैं वे महामानवों की पंक्ति में जा खड़े होते हैं परंतु जो इस रहस्य से अनजान होते हैं वे कोई रचनात्मक कार्य नहीं कर पाते हैं।ऐसे लोग अपने नियत कर्त्तव्यों का पालन करना ही अपने जीवन की इतिश्री समझते हैं।
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2.रचनात्मक और दैनिक कर्त्तव्यों का पालन करने वाले दो वर्ग (Two Classes Performing Creative and Daily Duties):

  • हमारा समाज वस्तुतः एक चौराहे पर है।इसके स्थूल रूप से दो वर्ग हैं।एक वर्ग तो वह है जिसने अपनी रचनात्मक प्रतिभा तथा सूझबूझ के द्वारा अधिक सक्षम उपकरणों तथा सूझबूझ के द्वारा अधिक सक्षम उपकरणों एवं साधनों को उपलब्ध कर लिया है और दूसरा वर्ग वह है जो अपने दिन-प्रतिदिन के बंधे-बंधाए कार्यक्रमों को पूरा करके संतोष का अनुभव कर लेता है।कहने की आवश्यकता नहीं है कि प्रथम वर्ग के हाथों में शक्ति और सामर्थ्य है तथा द्वितीय वर्ग प्रायः परमुखापेक्षी बन गया है।यह स्थिति व्यक्ति और समष्टि दोनों ही स्तर पर चरितार्थ है।
  • चतुर कहे जाने वाले व्यक्तियों की दिनचर्या को ध्यानपूर्वक देखने पर हम पाएंगे कि वे लोग नौन-तेल लकड़ी के फेर में ही अपना समस्त समय व्यतीत नहीं कर देते हैं।इसके अलावा भी वे कुछ करते हैं।इस कुछ करने के लिए वे कुछ समय देते हैं।जो लोग सोचने-विचारने के महत्त्व को नहीं समझते हैं,वे अपने मस्तिष्क को गतिहीन अथवा निष्क्रिय बना देते हैं।जब कोई व्यक्ति अपने जीवन के बारे में सोचना बंद कर देता है,अपने आसपास की वस्तुओं,घटनाओं आदि के निरीक्षण-परीक्षण के प्रति उदासीन हो जाता है,उपयोगी एवं शिक्षा देने वाली पुस्तकों को नहीं पढ़ता है,तो उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है,वह एकदम कुंठित हो जाता है तथा वह एक ऐसे बंदरगाह की तरह बन जाता है जिसमें जहाजों का आना-जाना बंद हो गया है।
  • इस वर्ग के व्यक्ति क्या कभी उन थोड़े से व्यक्तियों की पंक्ति में बैठ सकेंगे,जिनके हाथ में समस्त शक्ति,समृद्धि एवं संपत्ति की कुंजी रहती है? प्रगति और विकास करने के लिए हमें प्रगतिशील और विकासशील समाज के साथ मानसिक रूप से चलना ही पड़ेगा।जीवन में होने के लिए हमारा मस्तिष्क कार्यकारी गत्यात्मक मस्तिष्क हो,न की अजायबघरी मस्तिष्क।व्यवसाय और समाज में सर्वत्र व्यक्ति का स्तर मुख्यतः इस बात पर निर्भर करता है कि अपनी रोजी-रोटी की समस्याओं से फुर्सत पाने पर व्यक्ति अपने मस्तिष्क को विकसित करने के प्रति कितना ध्यान देता है।
  • किसी युवक (युवती) के भविष्य के बारे में आसानी से यह देखकर बताया जा सकता है कि वह अपने खाली समय को किस प्रकार व्यतीत करता है।यह बताना कोई कठिन कार्य नहीं है कि वह केवल तमाशबीन बनेगा अथवा कोई रचनात्मक कार्य करने वाला बनेगा।वह या तो जीवन के नाटक में सक्रिय भाग लेता है अथवा केवल दर्शक बना रहता है।यदि वह युवक अपना खाली समय केवल मनोरंजन में,नाच-गाने,खेल-कूद आदि में व्यतीत करता है,तो अधिक संभावना यही है कि वह केवल तमाशा देखने वालों की श्रेणी का व्यक्ति बनकर रह जाएगा और उसकी मृत्यु के बाद उसके स्मरण की आवश्यकता नहीं होगी परंतु यदि वह अपने खाली समय के कम से कम आधे भाग में किसी प्रकार का ज्ञान,कला-कौशल अर्जित करता है,तो निश्चित है कि वह रचनात्मक सर्जक व्यक्तियों की कोटि की ओर अग्रसर है।अधिकांश युवक-युवती मौज मस्ती का अच्छा समय व्यतीत करना चाहते हैं,क्योंकि वे मनोरंजन अथवा स्वास्थ्य का अर्थ ठीक प्रकार से नहीं समझते हैं।

3.रचनात्मक कार्य करें (Do Creative Work):

  • सही बात यह है कि अधिकांश युवक-युवती यही नहीं जानते हैं कि वे अपना खाली समय किस प्रकार व्यतीत करें।समय उन्हें काटता है और वे गप्प लगाकर,सड़कों-बाजार में घूम कर,सिनेमा देखकर,ताश-खेलकर,निद्रा की गोद में जाकर,चौंकानेवाली-झकझोरनेवाली पुस्तकें पढ़कर,पहेलियां हल करके आदि समय नष्ट करने वाले रास्तों को अपनाकर,समय काटने का प्रयत्न करते हैं।जब तक हम अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने अथवा विकसित करने का कार्यक्रम नहीं बनाएंगे तब तक हम अपने मस्तिष्क को विकसित ही कैसे बना सकते हैं?और जब तक मस्तिष्क यानी विचारशक्ति अविकसित है,तब तक आंतरिक शक्तियों की,कार्ययित्री प्रतिभा की उपलब्धि कैसे? निबुर्द्धेस्तु कुतो बलम? हम इधर-उधर के कामों में अपना समस्त जीवन व्यतीत कर देते हैं,जबकि इस तथाकथित खाली समय में अध्ययन,मनन एवं चिंतन के द्वारा हम अपने व्यवसाय,उद्योग धंधे आदि में उन्नति के उपाय निर्धारित कर सकते थे।
  • हम लोगों के दिमाग में यह बात कदाचित आती ही नहीं की बुद्धि का विकास हम स्वयं अपने अतिरिक्त प्रयत्नों द्वारा ही कर सकते हैं।नौकरी-चाकरी में भी तरक्की उनको ही मिलती है जो अपने खाली समय में नित्य कम से कम एक घंटा आत्म-प्रशिक्षण में लगाते हैं,न कि उन्हें जो 8 घंटे तक कसकर मेहनत करने को ही सब कुछ समझ बैठते हैं।दुनिया में होने वाले बड़े आदमियों के जीवन पर दृष्टिपात करने पर हम पाते हैं कि वे अपने काम के साथ ज्ञानार्जन के द्वारा बुद्धि-विकास में लग रहे थे।
  • आजकल लोग जब केवल समय काटने के लिए अथवा समाचार जानने के लिए पढ़ते हैं तो उन्हें समझ लेना चाहिए कि वे पढ़ने का मतलब ही नहीं जानते हैं।सफल पाठक होने के लिए व्यक्ति को प्रतिमास कम से कम एक अच्छी पुस्तक पढ़नी चाहिए।अच्छी पुस्तक पढ़ना ही वास्तविक शिक्षा एवं प्रशिक्षण है।व्यवसाय एवं तकनीक की कुछ पुस्तकें तो वस्तुतः स्वर्ण की खाने ही होती हैं।तीन-चार घंटे में एक पुस्तक को पढ़कर अन्य व्यक्ति के संपूर्ण जीवन के अनुभवों का लाभ सरलता से प्राप्त किया जा सकता है।
  • किसी विषय के संबंध में हमारा ज्ञान कितना भी प्रगाढ़ हो,परंतु जितना भी हम जानते हैं वह उसकी अपेक्षा बहुत कम है,जो हम नहीं जानते हैं।जो लोग यह कहते हैं कि उन्होंने सब कुछ व्यक्तिगत अनुभवों से सीखा है,उनके बारे में आप यह मान लीजिए कि वे शेखीखोर हैं और पुस्तकों के प्रति कृतघ्न हैं।
  • जीवन-निर्माण के लिए मस्तिष्क निर्माण अनिवार्य है और यह तभी संभव है जब ‘खाली समय’ के उपयोग के प्रति हमारा दृष्टिकोण रचनात्मक हो।यह कार्य है कठिन,इसी से बहुत कम लोग इस ओर जाते हैं।यही कारण है कि संसार में योग्य,समर्थ और सफल व्यक्तियों की संख्या कम हैं।आपको थोड़े-बहुत ऐसे व्यक्ति मिल सकते हैं जिनका दिमाग ज्ञान के कारण सूज गया हो,परंतु ऐसे व्यक्ति करोड़ों की संख्या मिल जाएंगे जिनका दिमाग एकदम खाली बना हुआ है।

4.रचनात्मकता के लिए समय का सदुपयोग करें (Make Good Use of Your Time for Creativity):

  • समय प्रबंधन एक ऐसी जरूरत है जिसे हर किसी को सीखाना,समझना व सिखाना चाहिए।इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि हम घड़ी की सुइयों में बंध जाएँ,बल्कि यह तो आजादी का एक दूसरा नाम है,जिस पर चलकर हम अपने स्वप्नों को,इच्छाओं को आसानी से पूरा कर सकते हैं।यह एक ऐसी आदत है,जिसे अपना लेने पर व्यक्ति के अधिक से अधिक कार्य कम व सही समय पर तो पूरे होते ही हैं,साथ ही साथ उसके मन को भी संतुष्टि मिलती है।समय प्रबंधन एक ऐसी कला है जिसके माध्यम से हम अपने कार्य को सही समय पर इतने अच्छे ढंग से कर पाते हैं कि प्रत्येक कार्य में आनंद लेने का हमें उपयुक्त समय मिल जाता है।एक प्रकार से समय प्रबंधन का संबंध जीवन जीने की कला से ही है।
  • संसार में सफल वही हैं,जिन्हें समय प्रबंधन करना आता है,जो समय के पीछे नहीं दौड़ते,बल्कि समय उनके पीछे दौड़ता है और ऐसा तभी संभव हो पाता है,जब हम अपने कार्यों को समय से पहले पूरा कर लेते हैं और उनमें होने वाली कमियों को समय रहते सोचते,विचारते और दूर करते हैं।इस संसार में ज्यादातर लोग समय के पीछे दौड़ते रहते हैं और अपना काम समय पर न कर पाने के कारण दुखी होते हैं।बार-बार प्रयास करते हैं,लेकिन अपनी त्रुटियों को दोहराने के लिए विवश होते हैं।क्या कारण है कि वे समय का सही उपयोग नहीं कर पाते? इसका मुख्य कारण हमारी कार्य करने से संबंधित आदतें हैं,जो हमें समय पर सही ढंग से कार्य पूरा करने नहीं देतीं।जो व्यक्ति जिस ढंग से कार्य करने का आदी हो गया है,वह उसी तरीके से अपने कार्य को करता है और बार-बार असफल होता है।यदि हम कार्य करने की अपनी शैली के बारे में सोचें,उसमें जरूरी परिवर्तन लाएँ तो अधिक कुशलता से अपने कार्यों को समयानुसार कर सकते हैं।दूसरा मुख्य कारण है:हमारे पास उपलब्ध एक निश्चित समय।
  • हम अपने समय को न तो घटा सकते हैं और न ही बढ़ा सकते हैं,लेकिन फिर भी समय को बर्बाद करके हम अपने निश्चित निर्धारित समय को घटा देते हैं और कम समय में अच्छे ढंग से कार्य को पूरा करने की आशा व्यर्थ है; क्योंकि कम समय में दबाव में व्यक्ति कार्य तो पूरी मेहनत से करता है,लेकिन उसमें कुशलता का कहीं ना कहीं अभाव होता है और सही ढंग से कार्य पूरा करने में कहीं ना कहीं कमी रह जाती है।
  • इसे दूर करने का एक उपाय यह है कि अपनी इस कमजोरी व आदत को समझा जाए कि उसका समय कहां-कहां व्यर्थ नष्ट होता है और फिर से समय को व्यर्थ गँवाए बिना अपने कार्यों को सुव्यवस्थित ढंग से करने का प्रयास किया जाए कि उसमें व्यक्ति को कितनी सफलता मिलती है।
  • हमारे कार्य करने के ढंग में सबसे बड़ी कमी होती हैः लक्ष्य पर ध्यान न रखना।जब हमारा ध्यान लक्ष्य पर नहीं होता है तो लक्ष्य से भटककर हम अनावश्यक कार्यों को करने लग जाते हैं और अपना बहुत सारा समय यों ही बर्बाद कर देते हैं या फिर मनोरंजन में गँवा देते हैं।मनोरंजन व्यक्ति के लिए बहुत जरूरी है,इससे उसे कार्य करने के लिए आवश्यक ऊर्जा व प्रेरणा मिलती है,लेकिन यदि मनोरंजन का समय हमारी जरूरी कार्यों के समय को बाधित करने लगे,तो यह हमारे लिए नुकसानदायक होता है।
  • मनोरंजन के रस में पड़कर हम प्रायः अपने जरूरी कार्यों को करना छोड़ देते हैं,अपने लक्ष्य को भूल जाते हैं और फिर जब कार्य पूरा करने का निर्धारित समय पास आने लगता है तब पछताते हैं,लेकिन तब तक हम अपने सबसे बहुमूल्य समय को गँवा चुके होते हैं।फिर भी यदि समय रहते चेत जाएँ तो कम समय में भी अपने कार्यों को बहुत अच्छे ढंग से कर सकते हैं और करते भी हैं।शायद यही कारण है कि कम समय में,दबाव में कार्य करने की आदत के कारण हम अपना बहुत सारा समय व्यर्थ गँवा देते हैं।यदि हम पहले से ही अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर कार्य करें और बाद में बचे हुए समय को मनोरंजन में लगाएं तो शायद हमें पछताना ना पड़े और बहुत कुछ सीखने को भी मिले।
  • समय प्रबंधन जीवन का एक बहुत महत्त्वपूर्ण अंग है,जिसके माध्यम से हम जीवन में समय को बचाना सीखते हैं,उपलब्धियां एवं सफलताएं अर्जित करते हैं और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जीवन में कुछ भी हासिल करने की एकमात्र कुंजी यही है।इसके द्वारा हम जीवन जीना सिखाते हैं,कभी सफल होते हैं तो कभी असफल होते हैं,लेकिन यह प्रबंधन हमें जीवन के सभी प्रबंधनों में दक्ष करता है।हमारी कार्य कुशलता,बौद्धिक क्षमता,भावनात्मक क्षमता आदि की भी जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है और इसके माध्यम से ही हम अपने समय को सही ढंग से व्यवस्थित कर पाते हैं और समझ पाते हैं कि किसमें कितना समय लगाना है।
  • हमारे जीवन के कुछ कार्य ऐसे होते हैं,जिनमें हमें अधिक समय लगाना पड़ता है और कुछ ऐसे होते हैं,जिनमें कम समय लगाने की जरूरत होती है,लेकिन अपनी नासमझी के कारण जहां हमें अधिक समय लगाना चाहिए,वहाँ कम समय लगाते हैं और जहां कम समय लगाना चाहिए वहां अधिक समय लगाते हैं,लेकिन समय में यह खूबसूरती है कि वह हमें इस बात का एहसास जरूर करा देता है कि हमसे भूल कहां हो रही है और इसे कैसे दूर करना है,यह हमारे ऊपर,हमारी समझ के ऊपर है।
    अतः ज़रूरी है कि हम समय प्रबंधन में बाधा पहुंचाने वाली अपनी आदतों,कार्यशैली व क्षमताओं को समझें व इनमें आवश्यक परिवर्तन लाने का यथासंभव प्रयास व अभ्यास करते रहें।समय प्रबंधन में दक्ष लोगों व अपने साथियों के अनुभवों से परिचित होना भी हमें अपनी आदतों को सुधारने में बड़ा सहायक होता है।समय प्रबंधन की जरूरत हमें हमेशा पड़ती रहेगी,इसलिए इसे सीख लेना और सीखते रहना जरूरी है।

5.रचनात्मक और नित्य कर्मों का दृष्टांत (Parable of Creative and Routine Deeds):

  • एक बार एक युवक एक स्टूडियो में धड़धड़ाता हुआ घुस गया।भीतर एक वयोवृद्ध कलाकार कार्य कर रहा था।कलाकार को देखकर युवक बोला तुम व्यायाम के बिना किसी प्रकार स्वस्थ बने हुए हो? मुझे तो स्वस्थ (Fit) रहने के लिए अपना समस्त समय देना पड़ता है।कलाकार ने पूछा “किस काम के लिए स्वस्थ (Fit)” युवक निरूत्तर हो गया।हम लोग भूल जाते हैं कि हमारी शक्ति और हमारे स्वास्थ्य की सार्थकता यही है कि हम समाज के लिए अधिक उपयोगी बनें और उसके ऊपर अपनी छाप छोड़े।समस्त मनोरंजन और स्वास्थ्य लाभ साधन मात्र हैं,साध्य नहीं।साध्य है रचनात्मक के योग्य अपने मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करना।मस्तिष्क को काम में परिवर्तन चाहिए,आराम नहीं।अपेक्षित आराम उसको नींद के द्वारा प्राप्त हो जाता है।मानसिक थकान अथवा ऊब का केवल एक कारण होता है:अधिक समय तक एक ही काम को करते रहना।
  • एक कंपनी के कार्यालय के चपरासी की जीवन-गाथा बहुत ही प्रेरक है।वह 14 वर्ष की अवस्था में चपरासी बना था।वह अन्य चपरासियों से भिन्न था क्योंकि वह कंपनी की प्रत्येक गतिविधि को उसकी,कार्य-पद्धति को,उसके द्वारा बनाए जाने वाले सामान की निर्माण-विधि को जानने के लिए सदैव उत्सुक बना रहता था।एक दिन आज्ञा लेकर वह छुट्टी के समय में कंपनी के कारखाने में गया,यह देखने के लिए कि कंपनी द्वारा बेचे जाने वाला माल वस्तुतः किस प्रकार तैयार किया जाता है।इस प्रकार की जानकारी प्राप्त करने से इस बालक चपरासी को दोहरा लाभ हुआ:वह अपने आपको अधिक उपयोगी बना सका तथा बड़े अफसरों की नजरों में चढ़ गया।फलतः उसकी तरक्की होती गई।तरक्की के साथ वह खाली समय में पुस्तकें और उपयोगी पत्रिकाएं पढ़ने लगा।वह लड़का मस्तिष्क-निर्माता कोटि का व्यक्ति प्रमाणित हुआ।वह अपने खाली समय का आधिकाधिक रचनात्मक उपयोग करता रहा।एक दिन वह उसी कंपनी का प्रबंध निदेशक बन गया और लगभग 3000 कर्मचारी उसके नीचे कार्य करते हैं।उसके पुराने साथी आज भी यही सोचते हैं कि यह सब कैसे हो गया? सब कुछ भाग्य का खेल है।इन लोगों ने जीवन से कुछ सीखा ही नहीं।तमाशा देखते-देखते वे स्वयं तमाशा बन गए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में रचनात्मक और नित्य कर्मों को करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Creative and Fixed Acts),रचनात्मक और नियत कर्मों को करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Perform Creative and Assigned Deeds) के बारे में बताया गया है।

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6.सवाल हल क्यों करते हैं? (हास्य-व्यंग्य) (Why Solve Questions?) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक (छात्र से):बताओ सवालों को हल क्यों करते हैं?
    छात्र:छात्र-छात्राओं को शरारत करने से रोकने के लिए,हो-हल्ला व शोर-शराबा करने से रोकने के लिए।

7.रचनात्मक और नित्य कर्मों को करने की 5 टॉप टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Top Tips for Creative and Fixed Acts),रचनात्मक और नियत कर्मों को करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Perform Creative and Assigned Deeds) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.रचनात्मकता क्या है? (What is Creativity?):

उत्तर:रचनात्मकता कुछ नया करने की प्रक्रिया है।रचनात्मकता हमें सृजन की शक्ति प्रदान करती है।कुछ ऐसा करने की,जो सामान्यतः नहीं होता।सरल भाषा में कहें तो रचनात्मकता किन्हीं दो विचारों या वस्तुओं के मेल से तीसरा विचार/वस्तु बनाना है।दो विचारों को मिलाते हैं तो एक नया विचार सामने आता है।

प्रश्न:2.रचनात्मकता का प्रारंभ कहां से होता है? (Where Does Creativity Begin?):

उत्तर:कल्पना करना रचनात्मकता (सृजन) का आरंभ है।आप उसकी कल्पना करें जो आप चाहते हैं,आप जो कल्पना करें उसी की इच्छा करें और अंत में आप उसी का सृजन करेंगे जिसकी आप इच्छा कर रहे हैं।

प्रश्न:3.रचनात्मकता किस सिद्धांत पर कार्य करती है? (On Which Principle Does Creativity Work?):

उत्तर:रचनात्मकता की भारतीय विचारधारा इस सिद्धांत पर निर्भर करती है कि मनुष्य का मस्तिष्क कितना खुला है और वो बाह्य जगत की वस्तुओं और विचारों को कितना स्वीकार करता है अर्थात् आप अपने अहम (Ego) को कितना कम कर पाते हैं और विवेक (Wisdom) को कितना बढ़ा पाते हैं।इस सिद्धांत के अनुसार जिस व्यक्ति में अहम् जितना कम होगा,विवेक उतना ही अधिक होगा और रचनात्मकता भी उतनी ही अधिक होगी।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा रचनात्मक और नित्य कर्मों को करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Creative and Fixed Acts),रचनात्मक और नियत कर्मों को करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Perform Creative and Assigned Deeds) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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