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5 Spell to Make Integrated Personality

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1.समुन्नत व्यक्तित्व बनाने के 5 मंत्र (5 Spell to Make Integrated Personality),एकीकृत व्यक्तित्व बनाने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies for Creating Unified Personality):

  • समुन्नत व्यक्तित्व बनाने के 5 मंत्र (5 Spell to Make Integrated Personality) के आधार पर आप जान सकेंगे कि समुन्नत या एकीकृत व्यक्तित्व से क्या आशय है? व्यक्तित्व को समुन्नत या एकीकृत कैसे किया जा सकता है? विखंडित व्यक्तित्व क्या है और उससे कैसे बचा जा सकता है?
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2.सम्मुन्नत व्यक्तित्व से क्या आशय है? (What do you mean by advanced personality?):

  • स्थूल शरीर,प्राण शरीर तथा आत्मिक शरीर,ये तीन शरीर मिलकर व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।इस प्रकार व्यक्तित्व (personality) तीन स्तरों पर कार्य करता है।इन्द्रियों का संसार,जीवनी शक्ति तथा आत्म चेतना।व्यक्ति अपनी कायिक चेष्टाओं,चिंतन पद्धतियों तथा जीवन मूल्यों अथवा आदर्शों के निर्वाह द्वारा अपने व्यक्तित्व का विकास करता है।
  • आत्म-चेतना के अनुरूप जीवन की गतिविधियां-कार्यकलाप निर्धारित होते हैं।उन्हीं के अनुसार व्यक्ति की चिंतन पद्धतियों का निर्माण होता है और चिंतन पद्धतियां चेतना के स्वरूप को विकसित करती हैं।स्पष्ट है कि व्यक्तित्व का सम्यक विकास तभी संभव होता है,जब उक्त तीनों स्तरों पर होने वाले कार्य परस्पर संबद्ध तथा अन्योन्याश्रित होते हैं।इस अवस्था को कर्म,वचन और मन की एकता कहते हैं।इस एकत्व अवस्था को व्यक्तित्व का संपूर्ण संश्लेषण अथवा समुन्नत व्यक्तित्व (Integrated personality) कहते हैं।ऐसा न होने पर व्यक्तित्व एक पक्षीय,एकाकी अथवा विकलांग बना रहता है।मनु उक्त एकीकृत व्यक्तित्व के अभाव में देवों के कोपभाजन बनते हैं,क्योंकि वे बौद्धिक तत्व इड़ा के साथ एक पक्षीय जीवन व्यतीत करते हैं।
  • समय आने पर वह (मनु) हृदय पक्ष,आत्म चेतना,श्रद्धा को अपनाते हैं।फल होता है सर्वतोभावेन सुख अथवा आनंद की प्राप्ति।
    आज हम लोगों की स्थिति बहुत कुछ मनु की तरह हो गई है।हमारे बौद्धिकता तत्व का चरम विकास हो गया है,हम चंद्रलोक तक की जानकारी रखने लगे हैं,परंतु हम यह जानने का प्रयत्न नहीं करते हैं कि हमारे हृदयस्थ हमारा आत्म तत्व सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।हम जीव-जगत,वनस्पति-जगत,जड़-जगत आदि के विषय में सूक्ष्माति-सूक्ष्म जानकारी रखते हैं,परंतु यह नहीं जान पाए हैं कि इनके साथ हमारा क्या संबंध है।जीवन की विडंबना है कि हम वस्तु एवं व्यक्ति को जानते हैं,परंतु उसके प्रति संबंध भावना का निर्वाह एवं निर्माण करने में अपनी असमर्थता प्रकट कर देते हैं।
  • हम स्वयं देख सकते हैं कि हम बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं,बड़े-बड़े आदर्शों का गुणगान करते हुए थकते नहीं है तथा विश्वबंधुत्व एवं ब्रह्मांडीय संबंधों की परिकल्पना करते हुए अघाते नहीं,परंतु व्यवहार में अपने सगे भाई,अपने निकटतम पड़ोसी के प्रति भी वास्तविक बंधुत्व का निर्वाह नहीं करते हैं।
  • मानव के इस प्रकार के व्यवहार को ही लक्ष्य करके इंजील ने कहा है कि “If you can not love your neighbour whom you daily see,how can you love God whom you have never seen.”अर्थात यदि तुम अपने पड़ोसी से प्रेम नहीं कर सकते हो,जिसको तुम नित्य देखते हो,तो उस परमपिता से क्योंकर प्रेम कर सकोगे,जिसको तुमने कभी नहीं देखा है?

3.कथनी और करनी में अंतर से एकीकृत व्यक्तित्व नहीं बनता (Words and deeds do not lead to an elevated personality):

  • कथनी और करनी का अंतर हमारे जीवन की बड़ी विडंबना बन गया है।हमारी बातें सुनकर यह अनुमान करना सहज प्रक्रिया होगी कि हम विश्व-मानव का निर्माण के इच्छुक हैं,हम समस्त विश्व को एक संबंध सूत्र में बांधने के लिए प्रयत्नशील हैं,परंतु व्यवहार जगत में झांकने पर पता लगता है कि हमारा स्वयं का ही व्यक्तित्व विश्रृंखल बना हुआ है।हम देश की भावात्मक एकता के पुरोधा बनने का दावा करते हैं,सेकुलर होने का दावा करते हैं,परंतु दलगत द्वेष एवं जातिवाद में लिप्त होने के कारण उक्त उल्लिखित उच्च आदर्शो को कलंकित एवं लांछित करते हुए देखे जाते हैं।
  • जब व्यक्ति समुन्नत (एकीकृत) नहीं है,तब वे एकीकृत समाज अथवा समुन्नत राष्ट्र का निर्माण किस प्रकार कर सकते हैं? भारत में भावनात्मक एकता की स्थापना के सुख स्वप्न को किस प्रकार सार्थक कर सकते हैं? जब साधन ही दोषपूर्ण है,तब दोषरहित साध्य का निर्माण क्यों कर संभव है,जब कारीगर ही अनाड़ी है,तब श्रेष्ठ भवन के निर्माण की आवश्यकता की आशा क्योंकर की जा सकती है।
  • शिक्षा शास्त्री एक स्वर से यह बात करते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य बालक की बाह्य एवं अंतर्निहित शक्तियों का विकास करके उसको एक समुन्नत अथवा पूर्ण मानव बनाना होता है।शिक्षा का उद्देश्य ऐसी मानसिकता का निर्माण होना चाहिए जो वैज्ञानिक होने के साथ धार्मिक हो।धार्मिक का अर्थ होता है कण-कण के प्रति अपनी संबंध भावना एवं अपने कर्त्तव्य-बोध के प्रति जागरूक।शिक्षा का प्रथम उद्देश्य जीवन-निर्वाह की कला का ज्ञान होना चाहिए।जीवन की कला का तात्पर्य व्यक्तिगत चेतना को समष्टिगत चेतना बनाना है।इसी प्रकार की शिक्षा पद्धति में पल्लवित व्यक्ति परिवार,समाज और राष्ट्र का निर्माण करने में समर्थ हो सकते हैं।
  • गुण मानव के विभिन्न पक्षीय विकास में सहायक बनते हैं।मानवोचित गुण कायिक,मानसिक एवं आत्मिक विकास में सहायक होकर उसको एक संपूर्ण मानव बना देते हैं।हमारे देश को इसी कोटि के नवयुग मानवों की आवश्यकता है।वे अखंड भारत के योग-क्षेम को वहन कर सकते हैं।
  • राष्ट्र तो मानव व प्राणी जगत के बिना एक मिट्टी का भूखंड मात्र है।प्राणी जगत,मनुष्य और हम सभी मिलकर राष्ट्र को जीवन्त बनाते हैं,राष्ट्र को हमसे ही शक्ति मिलती है।यदि हम बँटे हुए रहेंगे,हमारा व्यक्तित्व खंड-खंड,बिखरा हुआ रहेगा तो न तो हम उन्नत हो सकते हैं और राष्ट्र को एकजुट रखने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है।एक-एक व्यक्ति से मिलकर ही राष्ट्र बनता है।हमारे बीच वैमनस्य,दुर्भाव,कटुता,जलन आदि अवगुण होंगे तो राष्ट्र भी रुग्ण,विखंडित,पतित के रूप में बनेगा।
  • हमारा व्यक्तित्व,हमारी छवि,हमारा चरित्र,हमारे नवयुवक,हमारे छात्र-छात्राएं और हम सबका जिस तरह का चाल-चरित्र होगा हमारे राष्ट्र की छवि वैसी ही बनेगी।हमारा सही ढंग से निर्माण होगा,हम हमारा निर्माण उचित रीति से करेंगे तो मानना चाहिए हम खुद के साथ-साथ राष्ट्र का भी,समाज का भी,परिवार का भी निर्माण कर रहे हैं,इनके निर्माण की भी सुदृढ़ नींव रख रहे हैं।
  • राष्ट्र बँट रहा है,राष्ट्र टुकड़े-टुकड़े हो रहा है,राष्ट्र में कहीं भी अशांति है,उपद्रव है,विध्वंसकारी शक्तियां सक्रिय है,अलगाववादी शक्तियां सक्रिय है,आतंकवादी अपने मंसूबों में कामयाब हो रहे हैं तो कहीं ना कहीं,कुछ ना कुछ,किसी न किसी हद तक,थोड़े-बहुत हम भी जिम्मेदार हैं।इसके लिए केवल उपर्युक्त उपद्रव फैलाने वालों को जिम्मेदार ठहराकर,हम पल्ला झाड़ लेते हैं।परंतु व्यापक दृष्टिकोण से जब हम इस पर विचार करेंगे तो अपने आप को जिम्मेदार महसूस करेंगे।

4.समुन्नत व्यक्तित्व का परिणाम (Result of an Elevated Personality):

  • यदि हमारा व्यक्तित्व समुन्नत (integrated) है,हम एकीकृत हैं तो हम हमारे दोषों का भी सही उपयोग कर सकते हैं।यदि हमारा व्यक्तित्व विखंडित है तो हमारे  गुण भी अवगुण बन जाते हैं।आज कितने ही हमें उपदेश दिए जाते हैं कि हमें काम,क्रोध,राग-द्वेष,लोभ-मोह,मत्सर आदि से मुक्त होना चाहिए।हमें अच्छी आदतें अपनानी चाहिए और बुरी आदतों का त्याग कर देना चाहिए।ऐसा हम कहते रहते हैं कि यह खराब है,वह खराब है परंतु इतिहास में झांककर देखेंगे तो इनका समग्र व्यक्तित्व वाले मानवों ने बहुत सुंदर उपयोग किया है।और ऐसे भी उदाहरण मिल जाएंगे जिनमें गुणों का दुरूपयोग हुआ है।
  • छल-कपट को पाप और दुर्गुण माना गया है।परंतु पुरुषोत्तम श्री कृष्ण ने द्रोणाचार्य का वध कराने के लिए छल का प्रयोग किया और युधिष्ठिर से झूठ बुलवाया कि अश्वत्थामा (हाथी) को मार कर द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा मारा गया है।कितना सुंदर छल का प्रयोग किया गया है।इसी प्रकार क्रोध को बहुत बुरा माना गया है,क्रोध को अग्नि के समान माना गया है जो सामने वाले की बजाय स्वयं को ही जलाकर राख कर देता है।क्रोध से विवेक नष्ट होता है आदि बातें हमने सुनी है या पढ़ी हैं।परंतु सहस्रार्जुन जैसे आततायी और अहंकारी राजा का वध करने और उसके समान ही अहंकारी व उद्दण्डी राजाओं को दंड परशुराम ने ही क्रोध के बल पर दिया है।
  • इसी प्रकार अच्छी चीजों व गुणों को देख लीजिए।पितामह भीष्म ने सहनशीलता दिखाई।पांडवों के साथ अत्याचार होता रहा,द्रौपदी का चीर हरण उनके समक्ष ही हुआ।इतने अत्याचार होते हुए भी वे मौन ही रहे,सहन करते रहे।समय पर विरोध नहीं किया।पांडवों के प्रति होते हुए अत्याचार को होने दिया।उल्टा धृतराष्ट्र व दुर्योधन का अप्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा कवच बने रहे (मौन रहकर)।सहनशीलता को अच्छा गुण माना जाता है परंतु यहां पर यह अच्छा गुण उनके लिए दुर्गुण हो गया।
  • भारत देश हजारों वर्ष तक गुलाम रहा उसमें बौद्ध धर्म की अहिंसा वाली नीति अशोक द्वारा अपनाया जाना भी एक कारण था।क्या भारत को महात्मा गांधी की अहिंसा की नीति से आजादी मिली है? नहीं,इसमें भगत सिंह आजाद,सुभाष चंद्र बोस,चंद्रशेखर आजाद,राम प्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों की भी भूमिका थी।पाकिस्तान जैसे लंपट,मक्कार और चीन जैसी विस्तारवादी राष्ट्र को अहिंसा और प्रेम की भाषा समझ में आ सकती है,नहीं।नेहरू पंचशील के सिद्धान्तों की माला जपते रहे और चीन ने आक्रमण करके भारत का काफी भूभाग हड़प लिया तथा हजारों भारत के सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए।
  • तात्पर्य यह है कि अच्छी चीज का भी दुरुपयोग हो जाता है और बुरी चीज का बहुत सुंदर और अच्छा उपयोग हो सकता है।अतः हमें यह देखना तथा इस्तेमाल करना आना चाहिए कि कौनसी चीज को कहां सजाना और व्यवस्थित करना है? जिसके अहिंसा की भाषा समझ में नहीं आती उसके सामने अहिंसा की माला जपना बेकार है।जिसे प्रेम और अहिंसा की भाषा समझ में आ सकती है या आती है उसके साथ हिंसा का व्यवहार करना गलत है।अतः जीवन में काम,क्रोध,राग,द्वेष,आवेग,प्रेम,वासना एवं विकार आदि को सुयोग्य और सुंदर ढंग से सजाना,व्यवस्थित करना आना चाहिए।जो व्यक्ति जीवन में इन विकारों को सुयोग्य रीति से कर सकता है,वही समुन्नत व्यक्तित्व (integrated personality) कहलाता है।

5.छात्र-छात्राएं समुन्नत व्यक्तित्व कैसे बनाएं? (How do students develop advanced personality?):

  • उपर्युक्त विवरण यह तो समझ में आ ही गया होगा कि हमारे दुर्गुण भी सही उपयोग करने से सद्गुण की तरह शोभा बढ़ा देते हैं और सद्गुण भी उचित समय पर सही उपयोग न कर पाने पर दुर्गुण हो जाते हैं।
  • छात्र-छात्राओं का व्यक्तित्व ओजस्वी,तेजस्वी,प्रखर,दिव्य हो और यही प्रयास करना भी चाहिए।परंतु यदि उनके अंदर कोई दुर्गुण भी है तो अपने अंदर हीन भावना नहीं रखनी चाहिए न ही बुरी आदतों यहां तक की अच्छी आदतों का गुलाम होना चाहिए।अच्छी और बुरी आदतों की मालकियत होनी चाहिए।यानी आदतों के आप मलिक हों,आप आदतों के गुलाम न बन जाएं।यदि आदतों के गुलाम बन जाएंगे,तो वे जैसा नाच-नचाएगी वैसा ही हमें नाचना पड़ेगा।
  • कोई भी आदत हो वे आपके जीवन को,आपको ऊपर उठाए-उन्नत करे तो ठीक है अन्यथा पतन के मार्ग पर ले जाए तो आपका दीवाला निकल जाएगा,आपका व्यक्तित्व विखंडित हो जाएगा,आपका व्यक्तित्व बिखर जाएगा,तार-तार हो जाएगा।
    समुन्नत व्यक्तित्व से केवल आप साक्षात्कार तथा अन्य परीक्षाएं ही उत्तीर्ण नहीं कर सकते बल्कि जीवन की नैया भी पार कर सकते हैं।इसलिए छात्र जीवन से अपने व्यक्तित्व को सही मायने में सम्मुन्नत,प्रगतिशील बनाने का प्रयास करना चाहिए।इसके लिए आपको खुद को प्रयास करना होगा,अपने आपको हमेशा सजग व सचेत रखना होगा।
  • यदि शिक्षक भी शिक्षार्थी में ऐसी वृत्ति उत्पन्न नहीं कर रहे हैं जिससे उनका जीवन,व्यक्तित्व निखर उठे,जीवन्त हो उठे।वे विद्यार्थी में ऐसी शक्ति,वृत्ति और प्रेरणा का संचार नहीं कर रहे हैं जिससे उनकी स्वतंत्र प्रज्ञा खिले,वह स्वयं ही प्रयोग और संशोधन कर सके समझना चाहिए कि शिक्षक अपने कर्त्तव्य का ठीक से पालन नहीं कर रहे हैं।जैसे पारस के संसर्ग से लोहा सोना बन जाता है।वैसे ही शिक्षक के संपर्क से शिक्षार्थी का जीवन ऊपर उठाना चाहिए।परंतु होता यह है कि परीक्षा किस प्रकार से उत्तीर्ण की जाय,मात्र यही बात शिक्षक और शिक्षार्थी के समक्ष रहती है।शिक्षण क्षेत्र में रहने वाला एक विशिष्ट दृष्टि (एकीकृत व्यक्तित्व) का शिक्षक व शिक्षार्थी होना चाहिए।वाकई में ऐसा शिक्षक व शिक्षार्थी बनना सरल कार्य नहीं है।
  • शिक्षार्थियों को देखकर शिक्षक को खिलना चाहिए तथा शिक्षक के मुख को देखकर शिक्षार्थियों के हृदय-सागर में तरंगे उठनी चाहिए।इस प्रकार का शिक्षण ही परिवार,समाज व देश को उन्नत कर सकता है,ऊंचा उठा सकता है और विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।यदि अपनी आदतों,अपने व्यक्तित्व का बुद्धिमत्तापूर्वक उपयोग किया जाए,अपने क्षेत्र,मर्यादा और कर्त्तव्यों को समझें तो उनका व्यक्तित्व खिल उठेगा,उनका व्यक्तित्व एकीकृत,समुन्नत हो सकेगा।केवल
  • भाषण,व्याख्यान,आख्यान,प्रवचन,उपदेशों से व्यक्तित्व इंटीग्रेटेड नहीं हो पाएगा,हो सकेगा।ऐसे तो ढेरों वीडियो देखते हैं,उपदेश सुनते हैं,लेख देखते और पढ़ते हैं।व्यक्तित्व तो तभी निखरेगा जब आप स्वयं उठने का प्रयास करेंगे,आप अपने आप को जागरूक और होश में लाने का काम करेंगे।अपने जीवन को जीवंत और दिव्य बनाने का काम करेंगे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में समुन्नत व्यक्तित्व बनाने के 5 मंत्र (5 Spell to Make Integrated Personality),एकीकृत व्यक्तित्व बनाने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies for Creating Unified Personality) के बारे में बताया गया है।

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6.छात्र का खून पीना (हास्य-व्यंग्य) (Drinking Blood of Student) (Humour-Satire):

  • एक छात्र सुनसान जगह से गुजर रहा था कि अचानक एक गुंडे ने पकड़ लिया और बोला जो कुछ है वह निकाल मुझे दे दो अन्यथा मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगा।
  • छात्र गिड़गिड़ाकर बोला:मेरा ठंडा खून पीकर क्या करोगे,किसी हट्टे-कट्टे आदमी को पकड़ो और उसका गरम-गरम खून पिओ।
  • गुंडा बोला:नहीं,आज मेरा ठंडा-ठंडा खून पीने का मन कर रहा है।

7.समुन्नत व्यक्तित्व बनाने के 5 मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 5 Spell to Make Integrated Personality),एकीकृत व्यक्तित्व बनाने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies for Creating Unified Personality) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.समुन्नत व्यक्तित्व का क्या प्रभाव पड़ता है? (What is the effect of an advanced personality?):

उत्तर:कुछ ऐसे व्यक्तित्व होते हैं जो दूसरों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं जो दूसरे व्यक्तित्व को आकर्षित करके उससे अपनी बात मनवा लेते हैं,अपना लोहा मनवा लेते हैं और उसको अपना अनुकरण करने के लिए विवश कर देते हैं,ऐसे व्यक्तित्व समुन्नत व्यक्तित्व से संपन्न होते हैं।

प्रश्न:2.सही व्यक्तित्व संपन्न व्यक्ति की क्या विशेषता होती है? (What are the characteristics of a perfect personality?):

उत्तर:सही व्यक्तित्व संपन्न साधारण मनुष्यों पर बलात शासन नहीं करता है बल्कि अच्छे गुणों से उनको आकर्षित कर लेते हैं जैसे पुष्प की सुगंध आकर्षित कर लेती है परंतु आततायी से वह शक्ति से निपटता है,साम,दाम,दंड एवं भेद का प्रयोग करके उसको वश में करता है।

प्रश्न:3.व्यक्तित्व की रक्षा क्यों करनी चाहिए? (Why should individuality be protected?):

उत्तर:व्यक्तित्व की सभी जगह रक्षा और सम्मान करना चाहिए क्योंकि यह सभी अच्छाइयों का आधार है,यह हमारी शोभा बढ़ाता है,हमारे गुणों को चमकाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा समुन्नत व्यक्तित्व बनाने के 5 मंत्र (5 Spell to Make Integrated Personality),एकीकृत व्यक्तित्व बनाने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies for Creating Unified Personality) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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