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6 Tips on How to Develop Personality

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1.व्यक्तित्त्व को विकसित करने की 6 टिप्स (6 Tips on How to Develop Personality),उत्कृष्ट व्यक्तित्त्व के लिए किन गुणों का विकास करें? (What Qualities to Develop for Excellent Personality):

  • व्यक्तित्त्व को विकसित करने की 6 टिप्स (6 Tips on How to Develop Personality) के आधार पर हम हमारी पहचान को विशिष्टता प्रदान कर सकते हैं।व्यक्तित्त्व को विकसित करने के लिए अनेक गुणों को धारण करना होता है और उनको विकसित करना होता है।व्यक्तित्त्व को विकसित करने की प्रक्रिया आजीवन चलने रहने वाली प्रक्रिया है।
  • व्यक्तित्त्व को यदि परिभाषित करना हो तो हमें कई बातों पर ध्यान देना होगा।सर्वप्रथम यह देखना होगा कि हममें समझदारी किस हद तक है।कार्य के प्रति हमारी लगन और निष्ठा कितनी है।भावनाओं और संवेदनाओं का स्तर क्या है एवं मानवीय गुणों और नैतिक मूल्यों में से कितनों को हम किस परिमाण में धारण किए हुए हैं।मौटे तौर पर समग्र व्यक्तित्त्व इसी परिधि में आता है और यह बताता है कि सामने वाला आदमी कैसा और किस चरित्र का है।
  • आधुनिक अध्येताओं और मनीषियों ने व्यक्तित्त्व निर्धारित करने के चार तत्त्व गिनाए हैं:बुद्धि,जुनून (लगन),भावना और आध्यात्मिकता।इनके आधार पर ही कोई व्यक्ति बड़ा-छोटा,भला-बुरा कहलाता और सम्मान-अपमान का भागी बनता है।जिनमें उपर्युक्त चारों जितने अंशों में पाई जाती है,उनकी सफलता उन-उन क्षेत्रों में उसी मात्रा में सुनिश्चित समझी जाती है।यदि उपर्युक्त बातें किसी व्यक्ति में कम मात्रा में है तो ऐसे लोग प्रायः असफल माने जाते हैं और जीवन में कोई उपलब्धि हस्तगत नहीं कर पाते।इसके विपरीत वे लोग हैं,जिनमें उपर्युक्त बातें बढ़ी-चढ़ी हैं।ऐसे लोग औसत से ऊंचे दर्जे के होते हैं और उसी के अनुसार उन्हें अपने कार्यों के परिणाम मिलते हैं।
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2.बुद्धि का योगदान (Contribution of Intelligence):

  • बुद्धि व्यक्ति की क्षमता की मापक है।साधारण तौर पर किसी के बौद्धिक पैनेपन का अंदाज इसी के द्वारा लगाया जाता है।यह पूर्णतः तर्क पर आधारित होती है और यह बताती है कि सामने वाला आदमी कितना बुद्धिमान है,पर कई बार यह निर्धारण गलत सिद्ध होता है।संसार में कई व्यक्ति ऐसे भी पाए गए हैं,जिनमें बुद्धि तो अति उच्च थी और जो गणित के कठिन सवालों को बड़ी आसानी से हल कर देते थे,पर जब साधारण कक्षा के गणित के प्रश्न उनके सामने रखे जाते तो बगलें झांकने लगते।ऐसे में उन्हें सही-सही बुद्धिमान या मूर्ख कहना उचित नहीं।वे एक साथ बुद्धिमान भी थे और मूर्ख भी।मूर्द्धन्यों ने उनकी इस विचित्र स्थिति को ठीक-ठीक अभिव्यक्त करने के लिए नया शब्द गढ़ा और उन्हें ‘ईडियट जीनियस’ का संबोधन दिया।इसके बाद से बुद्धि-मापन के इस तरीके पर अनेक बार सवाल उठाए गए और आपत्ति व्यक्त की गई।
  • सच्चाई तो यह है की औसत आदमी कभी भी सर्वज्ञ होता नहीं।वह किसी एक क्षेत्र में विशेषज्ञ हो सकता है,उसमें उसे विद्वता हासिल हो सकता है,पर दूसरे अन्य क्षेत्रों में उसका ज्ञान साधारण ही होता है और कभी-कभी तो उससे भी कम।ऐसे में बुद्धि का उपयोग कर किसी व्यक्ति को विद्वान और अनपढ़ किसान को मूर्ख सिद्ध कर देना उचित न होगा।कृषक को कृषि की बारीकियों के संबंध में जितनी जानकारी होती है,उतनी एक इंजीनियर को नहीं।वह अपने क्षेत्र का विशेषज्ञ होता है।उसे मूर्ख कैसे कह सकते हैं? बुद्धि उसे मूर्ख बताती है,पर यथार्थ में वह ज्ञानवान होता है।यह अंतर्विरोध ही बुद्धि पर संदेह व्यक्त करने के लिए पर्याप्त है।
  • ऐसे कितने ही उदाहरण दिए जा सकते हैं,जो बुद्धि को शक के दायरे में ला खड़ा करते हैं,लेकिन यहां उद्देश्य उसकी उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह लगाना नहीं है।आपत्ति सिर्फ उसके निर्धारण के तरीके को लेकर है।वह यदि सही हो जाए तो बुद्धि एक उपयोगी तत्त्व साबित होगा और उससे उस मस्तिष्कीय क्षमता का ठीक-ठीक निर्धारण हो सकेगा,जिसे ‘समझदारी’ कहते हैं।जो जितना समझदार होगा,उसमें उतनी अधिक बुद्धि होती है।समझदारी के कारण ही आदमी विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति करता और सम्मान पाता है।सफलता समझदारी की देन है।व्यक्ति में यदि समझदारी का माद्दा कम हो तो हर क्षेत्र में उसको असफलता ही हाथ लगेगी।बुद्धि हममें यह समझ पैदा करती है कि किस कार्य को किस ढंग से,कब करने में वह उपयोगी और लाभप्रद सिद्ध होगा,इसलिए व्यक्तित्त्व को समृद्ध बनाने की दिशा में इसे पहला तत्त्व माना गया है।
  • 20वीं सदी के प्रारंभ में जब यह अवधारणा सामने आई,तो लोगों ने बड़े उत्साह के साथ इसका स्वागत किया,पर इन दिनों वह उत्साह धीरे-धीरे ठंडा पड़ता जा रहा है,क्योंकि अब ज्ञात हुआ है की बुद्धि के साथ यदि जुनून,भावना और आध्यात्मिकता का प्रतिशत ऊंचा न हुआ,तो वह बुद्धि फिर बहुत उपयोगी सिद्ध न हो सकेगी।अतएव बुद्धि के साथ उसके सहयोगी तत्त्वों का होना बहुत जरूरी है।

3.कार्य के प्रति जुनून (Passion for Work):

  • जुनून का भी व्यक्तित्त्व के निर्माण में काफी योगदान है।किसी कार्य के प्रति व्यक्ति में लगन,धुन और निष्ठा कितनी है,यह भी व्यक्तित्त्व को निर्धारित करता है।हम कर्त्तव्यनिष्ठ है या नहीं यदि हैं,तो कार्य के प्रति हममें कितना समर्पण है,यह हमें एक जिम्मेदार व्यक्ति सिद्ध करता और ऐसे लोगों की श्रेणी में ला खड़ा करता है,जिन्हें ‘कर्त्तव्यपरायण’ कहते हैं।कर्त्तव्यपरायणता एक ऐसी विभूति है,जो हमें प्रगति की ओर ले जाती है।अवगति अकर्मण्यता का नाम है।जो कर्मठ नहीं होगा और कार्य करने में पूर्ण मनोयोग नहीं लगाएगा,उसका हर काम अयोग्य व्यक्तियों के समान होगा,उससे कोई बहुत बड़ी उम्मीद नहीं की जा सकती।उसका जीवन विफल लोगों के सदृश्य होता है।इसके विपरीत लगनशील व्यक्तियों की चतुर्दिक प्रशंसा होती है।सब उसका सहयोग करते और साथ निभाते हैं।असहयोग तो वहां मिलता है,जहां कर्त्तव्य के प्रति अपेक्षा बरती जाती है।
  • यदि कोई यह सोचता है कि उक्त कार्य वह कर सकता है,तो उसको क्रियान्वित करने में उसे तुरंत जुट जाना चाहिए।लक्ष्य के प्रति समर्पण इस बात का सूचक है कि हमने कितनी गंभीरतापूर्वक प्रयत्न किए हैं।जहां गंभीर प्रयास होंगे,परिणाम वहाँ उत्साहवर्द्धक हो सकते हैं,किंतु कई बार एकनिष्ठ उद्यम के बावजूद भी सफलता कोसों दूर बनी रहती है।ऐसे व्यक्तियों को असफल नहीं कहा जा सकता,कारण कि उनने प्राणपण से प्रयास किए हैं।उनने किसी प्रकार की कोताही नहीं बरती।
  • उदाहरणस्वरूप भगतसिंह और सुभाषचंद्र बोस दोनों ही क्रांतिकारी थे।दोनों ने ही देश को आजाद कराने का सपना सँजोया था।यद्यपि वे लक्ष्य प्राप्ति में सफल न हो सके,इतने पर भी उनकी गणना सफल व्यक्तियों में होती है।उनका जुनून अति उच्च था।
  • परसेवरेन्स कोशंट अर्थात् बाधाओं के बावजूद सतत प्रयत्नशील रहने का माद्दा।कई व्यक्तियों की आंतरिक संरचना ही ऐसी होती है कि वे निरंतर बाधाओं से टकराते रहते हैं और इस क्रम में टूटते नहीं और न चिंतित और उदास होते हैं।उन्हें ऐसे विघ्नों से बल मिलता है एवं पराक्रम बढ़ता है।वे चाहते हैं कि ऐसे तनाव के क्षण बराबर उनके जीवन में आते रहें और वे अपने पुरुषार्थ से उन्हें परास्त करते रहें।उन्हें इन क्षणों में हताशा नहीं,आनंद का एहसास होता है।जिन्हें तनाव में जीने का मजा आ गया और जो इस कला को जानते हैं,वे बता सकते हैं कि उन्हें ऐसे पलों में कितनी ऊर्जा मिलती है और इन अवसरों पर वे कितने ओजस्वी बन जाते हैं।
  • जो जिम्मेदार हैं,कार्य के प्रति उनकी ही अपूर्व निष्ठा हो सकती है।वे यह नहीं देखते कि उन्हें सौंपा गया कार्य सरल है या कठिनाइयों से भरपूर।हर स्थिति और परिस्थिति में अड़चनों को झेलते हुए उन्हें पूरा करने के लिए वे सदा संलग्न होते हैं।जिम्मेदार व्यक्तियों की यह पहचान है कि वे कार्य को कल के लिए नहीं टालते।न ऐसा करते देखे जाते हैं कि अपना दायित्व दूसरों पर डालकर स्वयं मौज मनाएं।उनकी कर्त्तव्यपरायणता उन्हें कभी सुस्त नहीं होने देती,न प्रमाद बरतने देती है।

4.भावनात्मक परिपक्वता (Emotional Maturity):

  • भावनात्मक परिपक्वता व्यक्तित्त्व का तीसरा महत्वपूर्ण तत्त्व है,जो हमें बतलाता है कि किस परिस्थिति में कैसी प्रतिक्रिया करेगा।यह भली और बुरी दोनों हो सकती हैं,पर उच्च भावनात्मक परिपक्वता वाले लोग हमेशा संतुलित प्रतिक्रिया करते हैं।वे कठिन परिस्थितियों में घबराते नहीं,इसलिए ऐसे समय में उनमें खीझ,निराशा,भय,क्रोध जैसे निषेधात्मक तत्त्व नहीं दिखलाई पड़ते।
    यह भावनात्मक परिपक्वता ही है,जो हमें स्वयं की और दूसरों की भावनाओं के प्रति सचेत करती है।इसके अतिरिक्त सुखद और दुःखद परिस्थितियों में दक्ष प्रतिक्रिया की योग्यता प्रदान करती है।भावनात्मक परिपक्वता एक बुनियादी जरूरत है तभी बुद्धि का सही उपयोग किया जा सकता है।उसके बिना बुद्धि का सीमित उपयोग ही संभव है।देखा गया है कि मस्तिष्क का जो हिस्सा महसूस करता है,उसे यदि क्षतिग्रस्त कर दिया जाए तो दक्षतापूर्वक चिंतन करने की शक्ति कमजोर पड़ जाती है।यह इस बात का प्रमाण है की भावनाएं,बुद्धि को प्रभावित करती है।
  • यह एक आध्यात्मिक उपलब्धि है,जो हर अध्यात्म-पथ के सच्चे पथिकों में पाई जाती है।जिसमें यह जितनी उच्च होगी,उसे उतना ही आध्यात्मिक माना जाएगा।महापुरुषों में भावनात्मक परिपक्वता काफी अधिक होती है।यह हमें अपनी भावनाओं पर काबू पाने की प्रेरणा देती है और बतलाती है कि विपरीत परिस्थितियों में किस प्रकार से संयमित रहा जाए।इसे ‘ईमानदारी’ कहना चाहिए।हमारी ईमानदारी का प्रयास ही हमें ऊंचा उठाता और आगे बढ़ाता है।भावनाओं को परिष्कृत करने के संदर्भ में यह यदि लागू नहीं हुआ तो,अध्यात्म-पथ का अनुसरण करने के बावजूद भी हम उस दिशा में ठीक-ठीक तिल जितना भी आगे नहीं बढ़ सकेंगे।इसलिए ईमानदारी को न सिर्फ अध्यात्म का वरन भौतिक जीवन का भी मूल कहा जाना चाहिए।इसमें यदि किसी प्रकार की कमी हुई तो हमारी प्रगति प्रभावित होगी और बाधित भी।भावनात्मक परिपक्वता हमें उच्च भावसंपन्न बनाकर सच्चे अर्थों में ईमानदार बनने के लिए प्रेरित करती है।

5.व्यक्तित्व का महत्त्वपूर्ण सोपान आध्यात्मिकता (Spirituality an important step of personality):

  • व्यक्तित्त्व का यह महत्त्वपूर्ण और उच्च स्तरीय सोपान आध्यात्मिकता है।यह आदमी को आध्यात्मिक बनने की प्रेरणा देता और बुद्धि को चिंतन का एक नया आयाम प्रदान करता है।उच्च आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न व्यक्ति की सोच सृजनात्मकता से ऐसी ओत-प्रोत होती है कि निषेधात्मक विचारधारा उसका स्पर्श तक नहीं कर पाती।दूसरे शब्दों में,इसी को आध्यात्मिक मनुष्य कहते हैं।
  • अध्यात्म व्यक्ति को खरे सोने की तरह इतना प्रखर और अंतर को ऐसा सुंदर बना देता है,जिसकी उपमा अनुपम से दी जा सके।उसका चिंतन,चरित्र और व्यवहार उत्कृष्ट हो जाता है।अंतस,इतना कोमल हो जाता है कि दूसरों की पीड़ा से द्रवित हो उठता है।
  • अहंकार का उसमें नामोनिशान नहीं होता।स्वार्थपरता से हमेशा दूर रहता है।दूसरों के हित में ही अपना हित समझना और अपना अहित करके भी दूसरों का हितसाधन करता है।वह संपत्ति को कुबेर की तरह जोड़ने में विश्वास नहीं करता,उसे लुटाने में आनंद की अनुभूति करता है।उसका एक ही लक्ष्य होता है:सुख बाँटों,दुःख बँटाओ।इससे उसे अंतराल में शांति और शीतलता का ऐसा अनुभव होता है,मानो साक्षात गंगा का अवतरण हो गया हो।यह सब उच्च आत्मिक उपलब्धि से संपन्न व्यक्ति की विशेषताएं हैं।आत्मिक उपलब्धि अर्थात् आध्यात्मिक विचारधारा को संचालित करने वाला मस्तिष्क में एक केंद्र होता है।इसका नाम ‘गाॅड स्पॉट’ दिया गया,जिसकी खोज प्रख्यात तांत्रिक मनोविज्ञानी माइकल परसिंजर एवं मूर्द्धन्य तंत्रिकाशास्त्री वी. एस. रामचंद्रन ने 90 के दशक में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में की।
  • यह केंद्र मस्तिष्क के टेंपोरल लोब्स वाले हिस्से में होता है।अध्ययन के दौरान जब आध्यात्मिक चर्चाओं में संलग्न व्यक्ति के मस्तिष्क की पॉजीट्राॅन एमिशन टोपोग्राफी द्वारा स्कैनिंग की गई,तो उक्त भाग प्रकाशित पाया गया,जो सिद्ध करता था कि वह हिस्सा उस मध्य सक्रिय था।इस ‘गॉड स्पाॅट’ के द्वारा यह तो सिद्ध नहीं किया जा सका कि भगवान का अस्तित्व है या नहीं,पर वे इस निश्चय पर सुनिश्चित तौर पर पहुंच गए कि मस्तिष्क की प्रोग्रामिंग उस अंतिम प्रश्न को जानने की दृष्टि से की गई है,जिसकी जिज्ञासा हर दार्शनिक को रहती है कि वह कौन है,कहां से आया है और अंततः कहां चला जाएगा।
  • आध्यात्मिकता को इन प्रश्नों के उत्तर पाने की दिशा में प्रारंभिक चरण कहा जा सकता है।जिसमें आध्यात्मिकता ज्यादा होती है,देखा गया है कि उनमें इस प्रकार के गूढ़ प्रश्नों के प्रति उत्कंठा भी अत्यधिक होती है।इन सवालों का वास्तविक हल अध्यात्म ही दे सकता है,इसलिए ऐसे व्यक्ति आध्यात्मिक होते हैं।सच्चे अर्थों में इन्हें ‘बहादुर’ कहेंगे।
    समझदारी,जिम्मेदारी,ईमानदारी और बहादुरी के इन चार उपादानों से समग्र और संतुलित व्यक्तित्त्व बनता है।इन्हें निर्धारित करने वाले चार तत्त्व बुद्धि,जुनून (लगन),भावनात्मक परिपक्वता और आध्यात्मिकता हैं,जिनमें जितने परिणाम में यह पाए जाएंगे,उन्हें उसी स्तर का व्यक्ति समझा जाएगा।

6.बुद्धिमानी का दृष्टांत (The Parable of Wisdom):

  • एक विद्यार्थी परीक्षा में अक्सर कम अंक प्राप्त करता था।कारण यह था कि वह आलसी प्रकृति का,बेपरवाह तथा अध्ययन के प्रति गंभीर नहीं था।उसके माता-पिता छात्र को लेकर शिक्षक के पास गए और उन्होंने उनसे कहा कि बच्चा पढ़ने में बहुत कमजोर है।परीक्षा में बहुत कम अंक प्राप्त होते हैं।यदि यही ढर्रा रहा तो जीवन क्षेत्र में भी इसकी यही कार्य प्रणाली रहेगी और यह जीवन क्षेत्र में असफल ही रहेगा।
  • अध्यापक जी ने छात्र की दिनचर्या पूछी तो उनको यह जानकर हैरत और आश्चर्य हुआ कि यह मुश्किल से आधा घंटा पहले (स्कूल समय से) उठता है।तत्काल जल्दी-जल्दी नहाने-धोने का काम पूरा करके स्कूल चला आता है।अध्यापक जी ने छात्र को समझाया कि सुबह जल्दी उठा करो।जल्दी नित्यकर्मों से निवृत्त होकर ध्यान-योग वगैरह किया करो जिससे दिनभर स्फूर्ति रहेगी।
  • छात्र ने कहा कि सर सुबह कितने बजे उठना है,आप बताएं।अध्यापक जी ने कहा कि चार-पांच बजे उठ जाया करो।छात्र ने अध्यापक जी से हामी भर दी और घर आकर माँ को अकेले में कहा मम्मी प्लीज मेरा एक काम कर देना।माँ ने कहा क्या काम है? छात्र ने कहा कि जब मैं सो कर उठूँ तब अलार्म में 4:00 बजा देना।इस तरह 4:00 बजने के उठने के नियम का पालन हो जाएगा।इस प्रकार अक्सर हम अपनी बुद्धि का उपयोग चालाकी,धूर्तता,नियम का गलत तोड़ निकालने और पाखंड में लगाते हैं,जो खुद हमारे लिए नुकसानदायक है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में व्यक्तित्त्व को विकसित करने की 6 टिप्स (6 Tips on How to Develop Personality),उत्कृष्ट व्यक्तित्त्व के लिए किन गुणों का विकास करें? (What Qualities to Develop for Excellent Personality) के बारे में बताया गया है।

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7.गणित पढ़ाने की सजा (हास्य-व्यंग्य) (Punishment of Teaching Math) (Humour-Satire):

  • पत्नी (पति से):तुम इतने घबराए हुए क्यों हो?
  • पति:मुझे एक छात्र की ओर से धमकी भरा ई-मेल मिला है कि मैंने उसकी गर्लफ्रेंड को गणित पढ़ाना बंद नहीं किया तो वह उसका खून कर देगा।
  • पत्नी:तो फिर आप उसकी गर्लफ्रेंड (छात्रा) को गणित पढ़ना बंद क्यों नहीं कर देते?
  • पति:पर धमकीभरा ई-मेल गुमनाम है।मैं कैसे जान सकता हूं कि उसकी गर्लफ्रेंड कौनसे कोचिंग सेंटर में पढ़ती है? मैं तो कई कोचिंग सेंटर में गणित पढ़ाता हूं।

8.व्यक्तित्त्व को विकसित करने की 6 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 6 Tips on How to Develop Personality),उत्कृष्ट व्यक्तित्त्व के लिए किन गुणों का विकास करें? (What Qualities to Develop for Excellent Personality) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.बुद्धि और सद्बुद्धि में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Intellect and Wisdom?):

उत्तर:आजकल चालाकी का नाम बुद्धि है और समझदारी को सद्बुद्धि कह सकते हैं।अधिक बुद्धिमान होने का अर्थ अधिक चालाक समझा जाता है।होना तो यह चाहिए कि जितने शिक्षित होते उतने विनम्र,सरल और विद्यावान होते,बुद्धिमान होते किंतु अधिकांश शिक्षित और बुद्धिमान व्यक्ति कम पढ़े-लिखे लोगों के मुकाबले ज्यादा चालाक,अहंकारी,पाखंडी और बेईमान हो गए हैं।दूसरों को मूर्ख बनाने और शोषण करने की कला में बहुत कुशल हो गए हैं।बुद्धि यदि सतोगुणी यानी सबद्बुद्धि नहीं है तो जहां वह सांसारिक व्यवहार कुशलता और सफलता देती वहाँ उलझन,दिखावा,तिकड़मवाली,तनाव व छलकपट करने की प्रेरणा देती है जबकि सद्बुद्धि समझदारी,दायित्व बोध,सुकर्म,ईमानदारी,आध्यात्मिक शक्ति,मन की शांति और परमात्मा के प्रति प्रेम करने की प्रेरणा देने वाली होती है।

प्रश्न:2.आध्यात्मिक ज्ञान क्यों आवश्यक है? (Why is Spiritual Knowledge Necessary?):

उत्तर:मानव जीवन में अध्यात्म का क्या महत्त्व और उपयोग है यह समझना बहुत जरूरी है,क्योंकि इसके बिना हमें अपने बारे में कोई जानकारी नहीं होती है।जैसे आत्मा के बिना शरीर नहीं रह सकता वैसे ही अध्यात्म के बिना मानव जीवन रह नहीं सकता,टिक नहीं सकता।

प्रश्न:3.बुद्धि कैसे शुद्ध होती है? (How is the Intellect Purified?):

उत्तर:बुद्धि तामसिक,राजसिक व सात्विक तीन प्रकार की होती है।बुद्धि सत्त्व गुणवाली होती है तो शुद्ध होती है।सत्त्वगुण वाली बुद्धि रहे इसके लिए ज्ञान आवश्यक है।ज्ञान से ही बुद्धि शुद्ध होती है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा व्यक्तित्त्व को विकसित करने की 6 टिप्स (6 Tips on How to Develop Personality),उत्कृष्ट व्यक्तित्त्व के लिए किन गुणों का विकास करें? (What Qualities to Develop for Excellent Personality) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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