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4 Tips for Students to Read Scriptures

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1.छात्र छात्राओं के लिए शास्त्रों को पढ़ने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Read Scriptures),छात्र-छात्राओं के लिए सद्ग्रन्थ पढ़ने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Read Good Literatures):

  • छात्र छात्राओं के लिए शास्त्रों को पढ़ने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Read Scriptures) के आधार पर वे अपने चरित्र का निर्माण कर सकते हैं,जीवन जीने की कला सीख सकते हैं और व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि आधुनिक युग में ज्ञान प्राप्ति के अनेक साधन है यथा सोशल मीडिया,विभिन्न वेबसाइट्स,यूट्यूब चैनल,इंटरनेट,टीवी,समाचार पत्र इत्यादि।परंतु इन सबके बावजूद पुस्तकों,सद्ग्रंथों,सत्साहित्य की महत्ता कम नहीं हुई है।पुस्तकों से भारतीय संस्कृति,पाश्चात्य संस्कृति,विभिन्न धर्म,दर्शन,शिक्षा,सभ्यता,संस्कार,सदाचरण,नैतिकता व आध्यात्मिकता जैसे अनेक गूढ़ विषयों से संबंधित ज्ञान व विषय सामग्री सहज ही उपलब्ध हो जाती है।
  • प्राचीन काल में ज्ञान गुरु-शिष्य के प्रत्यक्ष संपर्क से आदान-प्रदान होता था।परंतु जब से पुस्तकों का आविष्कार हुआ है तब से स्थिति बहुत बदल गई है।आज कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय पर अपने ज्ञान व अनुभव से पुस्तकें लिख सकता है।आज बाजार में दुकानें पुस्तकों से भरी हुई उपलब्ध हैं।हालांकि इनमें काम का साहित्य बहुत कम है क्योंकि लोग मनोरंजन,अश्लील,गंदे,फूहड़,अपराधों के किस्से-कहानियां,रोमांटिक,जासूसी,फिल्मी किस्से,रोमांचकारी,हंसी-मजाक चुटकुलों इत्यादि को पढ़ना पसंद करते हैं।
  • बहुत कम पाठक होते हैं जो सत्साहित्य,सद्ग्रन्थों व शास्त्रों का अध्ययन,मनन व चिन्तन करते हैं।वस्तुतः अच्छी पुस्तकें हमारी मित्र हैं।इनमें ज्ञान का अतुल भण्डार भरा पड़ा है।पुस्तकों से हम जीवन जीने की कला सीख सकते हैं।संसार में नए-नए आविष्कारों,खोजों,अनुसंधानों तथा चीजों से परिचित कराती हैं।यदि पुस्तकों का अध्ययन करने के साथ-साथ उनका चिंतन-मनन भी किया जाए और अच्छी बातों को आचरण में उतारा जाए तो ये हमारे व्यक्तित्त्व को निखारती है।जिस प्रकार शरीर को भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार आत्मा का भोजन ज्ञान है अतः हमें प्रतिदिन अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकालकर अच्छी पुस्तकें अवश्य पढ़ना चाहिए।
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2.ज्ञान प्राप्ति के लिए शास्त्रों का अध्ययन करें (Study the Scriptures to Gain Knowledge):

  • यदि विद्यार्थी विद्यालय के पाठ्यक्रम अर्थात् कोर्स की पुस्तकें ही पढ़ेंगे तो जीवन जीने के लिए आवश्यक व्यावहारिक ज्ञान से वंचित रह जाएंगे भले ही आपने ग्रेजुएट,पोस्टग्रेजुएट अथवा पीएचडी कर ली हो।ऐसी स्थिति में आप डिग्रीधारी तो हो जाएंगे परंतु शिक्षित नहीं हो सकेंगे।
  • परंतु सद्ग्रन्थों,शास्त्रों का अध्ययन करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उसे आचरण में उतारना,व्यवहार में उपयोग में लाना भी आवश्यक है।स्कूल के पाठ्यक्रम की पुस्तकें पढ़ने से जाॅब से संबंधित,व्यवसाय से सम्बन्धित जानकारी ही प्राप्त होती है।सच्चे संतों व महापुरुषों का प्रत्यक्ष सत्संग करना आधुनिक युग में तो बहुत कठिन है।परंतु सद्ग्रंथों में संग्रहीत उनके विचारों का लाभ चाहे जब उठाया जा सकता है।
  • सत्साहित्य का आविष्कार मनुष्य की सर्वोत्तम उपलब्धि है परंतु सत्साहित्य का उपलब्ध होना और उसका अध्ययन करना उससे भी बड़ी उपलब्धि और सौभाग्य की बात है।
  • बड़े-बड़े भवन धराशायी हो जाते हैं,राष्ट्र नष्ट हो जाते हैं किंतु सद्ग्रंथों का प्रवाह चलता रहता है।वे बार-बार प्रकाशित होते रहते हैं,वैसे ही नवीन बने रहते हैं।
  • ज्ञानवृद्धि तथा विचार साधना के लिए पुस्तकों का अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण आधार है।महान् गणितज्ञों,वैज्ञानिकों,महापुरुषों,चिंतकों,दार्शनिकों इत्यादि द्वारा दिया गया ज्ञान पुस्तकों में संग्रहीत है,उसका लाभ सुविधानुसार कभी भी प्राप्त किया जा सकता है।यदि आप आर्कमिडीज,महान गणितज्ञा हाइपेटिया,महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन एवं न्यूटन से मिलना चाहे तभी अलमारी खोलकर पुस्तक निकाल लें और पढ़ ले।भगवान कृष्ण का दर्शन करना चाहे,उनकी दिव्य वाणी का आनंद लेना चाहे तो गीता उठा लीजिए,आपको साक्षात भगवान कृष्ण उपदेश देते जान पड़ेंगे।महात्मा ईसा,गौतम बुद्ध,महावीर स्वामी,कन्फ्यूशियस,सुकरात,स्वेट मार्डेन आदि किसी भी संत,महात्मा,विचारक अथवा लेखक से आप कभी भी मिल सकते हैं।संसार-सागर की भीषण कठिनाइयों,समस्याओं,जटिलताओं तथा उतार-चढ़ावों में पुस्तकें ही प्रकाश स्तंभ की तरह सहायक हैं।प्रगतिशील जीवन का मार्गदर्शक और प्रेरणा-स्रोत सत्साहित्य ही है।इस प्रकार आत्मिक उत्थान का एक माध्यम सत्साहित्य का अध्ययन भी है।

3.अश्लील एवं गन्दे साहित्य के अध्ययन से बचें (Avoid Studying Pornographic and Dirty Literature):

  • अध्ययन करना यद्यपि अच्छा गुण माना जाता है परन्तु निरुद्देश्य पढ़ना,अश्लील,गन्दे,कामुक,रोमांटिक व घटिया चीजें पढ़ना बेकार ही नहीं हानिकारक भी है।इस प्रकार का साहित्य पढ़ने से चारित्रिक पतन तो होता ही है,चिन्तन शैली व आदतें खराब हो जाती हैं।विद्यार्थी तथा लोग ऐसे साहित्य पढ़ने पर,ऐसी ही गन्दी व अश्लील बातों के बारे में चिंतन-मनन करते रहते हैं।
  • पुस्तक विक्रेताओं की दुकानों पर ऐसी ही पुस्तकों की भरमार रहती है;जैसे लोग मांगते हैं,वैसी ही वे रखते हैं।प्रकाशक भी वैसी ही पुस्तकें छापते हैं जिस तरह के साहित्य की मांग रहती है तथा लेखक भी उन्हीं पुस्तकों को लिखते हैं जिनमें आमदनी या रायल्टी अधिक मिलती है।
  • उत्तेजक,अश्लील साहित्य की बिक्री बढ़ने से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय छात्र-छात्राओं और लोगों की प्रवृत्ति किस ओर बढ़ती जा रही है।भारतीय संस्कृति में काम को पुरुषार्थ में जगह दी है।परंतु आधुनिक जीवनशैली,पाश्चात्य संस्कृति के दुष्प्रभाव तथा अश्लील व गन्दे साहित्य को पढ़ने के कारण हम लोग मस्तिष्क में ऐसा कूड़े-करकट ठूँसते रहते हैं जो हमारा चारित्रिक व नैतिक पतन का कारण बन जाता है।
  • हालत यह है कि ऐसी पुस्तकें न केवल गुप्त रूप से पढ़ी जाती हैं बल्कि सार्वजनिक तौर पर रेल,बस में यात्रा के समय भी खुलेआम पढ़ी जाती है जो हमारी घटिया मानसिकता की परिचायक है।कहने को इसे मनोरंजन का नाम दिया जाता है परंतु वास्तव में यह एक प्रकार का दुर्व्यसन ही है जो ऐसे मनोरंजन की आदत पड़ जाती है।
  • इससे न केवल धन बर्बाद होता है बल्कि मानसिकता और स्वास्थ्य भी खराब होता है।ऊपर से देखने पर ऐसे विद्या व्यसनी,पुस्तक प्रेमी,स्वाध्यायी नजर आते हैं परंतु असलियत में ऐसे विद्यार्थी एवं लोग पाखंडी होते हैं।
  • किसी मुसीबत में फँसकर कोई व्यक्ति कुकर्म कर बैठे तो बात समझ में आती है,पर पैसा खर्च करके मनोरंजन के नाम पर गंदा व अश्लील साहित्य खरीद कर पढ़ा जाए तो अपने पैरों पर आप कुल्हाड़ी मारी जाए तो यह सचमुच ही दुर्भाग्य की बात है।कुसंग में बैठना और चरित्र पर प्रभाव डालने वाला गन्दा साहित्य पढ़ना एक ही बात है।
  • पुस्तक पढ़ना यानी ज्ञानार्जन।आमतौर से ज्ञानवर्द्धन उपयोगी होता है,परंतु इसमें एक वर्ग ऐसा है जो हानिकारक होता है।दुष्प्रवृत्तियों,कामुकता,अश्लीलता को भड़काने वाला,कुमार्ग पर धकेलने वाला बुरी शिक्षाएं देने वाला,घटिया साहित्य ऐसी ही श्रेणी में गिना जाता है,जो मोटेतौर पर ज्ञान की उपासना जैसा दीखते हुए भी ऐसा होता है जिसे हेय ही कहा जा सकता है।ऐसे मनोरंजन में समय काटने की अपेक्षा गुमसुम बैठे रहना अच्छा है,पर ऐसी विवशता नहीं की घटिया साहित्य अनिवार्यतः पढ़ना ही पड़ेगा,इसके अतिरिक्त ओर कोई विकल्प नहीं।अच्छे साहित्य का सर्वथा अभाव नहीं है।
  • यदि अध्ययन को मनोरंजन विषय बनाना है तो अपनी रुचि को परिष्कृत करना पड़ेगा।इतना कर लेने पर यह शिकायत न करनी पड़ेगी की पुस्तक विक्रेताओं के यहां घटिया साहित्य मिलता है।वस्तुतः हमारी कुरुचि ही घटियापन तलाश करती है और अपना सर्वनाश ही अपने हाथों करती है।

4.सत्साहित्य पढ़ने की टिप्स (Tips for Reading Literature):

  • आज की परिस्थितियों में हमें ऐसा साहित्य तलाश करना चाहिए जो प्रकाश और प्रेरणा प्रदान करने की क्षमता से संपन्न हो।उसे पढ़ने के लिए कम से कम एक घंटा निश्चित रूप से नियत करना चाहिए।धीरे-धीरे समय निकालकर विचारपूर्वक उसे पढ़ना चाहिए।पढ़ने के बाद उन विचारों पर बराबर मनन करना चाहिए।
  • जब भी मस्तिष्क खाली रहे,यह सोचना चाहिए कि आज के स्वाध्याय में जो पढ़ा गया था,उस आदर्श तक पहुंचने के लिए हम प्रयत्न करें,जो कुछ सुधार संभव है,उसे किसी न किसी रूप में आरम्भ करें।
  • श्रेष्ठ लोगों के चरित्रों को पढ़ना और वैसा ही गौरव स्वयं भी प्राप्त करने की सोचते रहना मनन और चिंतन की दृष्टि से आवश्यक है।
  • उत्तम पुस्तकें,आदर्श ग्रन्थ वस्तुतः जीवन की बहुत बड़ी संपत्ति है।अपनी संतति के लिए उत्तराधिकार में छोड़ने के लिए पुस्तकें सर्वोपरि मूल्यवान वस्तु है,संसार में।क्योंकि उत्तम ग्रंथों का अध्ययन करके मनुष्य ऋषि,देवता,महात्मा,महापुरुष बन सकता है।
    जिन परिवारों में ज्ञानार्जन का क्रम पीढ़ियों से चलता रहता है,उनमें से पंडित,ज्ञानी,विद्वान अवश्य निकलकर आते हैं।जहाँ पुस्तकें होती हैं,वहाँ मानो देवता निवास करते हैं।वह स्थान मंदिर है जहां पुस्तकों के रूप में मूक किंतु ज्ञान के चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं।
  • वे माता-पिता धन्य हैं जो अपनी संतान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं क्योंकि धन,सम्पत्ति,साधन सामग्री तो एक दिन नष्ट होकर मनुष्य को अपने भार से डुबो भी सकती है किंतु उत्तम पुस्तकों के सहारे मनुष्य भवसागर की भयंकर लहरों में भी सरलता से तैरकर उसे पार कर सकता है।
  • जीवन में अन्य सामग्री की तरह उत्तम पुस्तकों का संग्रह करना चाहिए।जीवन के विभिन्न अंगों पर प्रकाश डालने वाले विविध विषयों के उत्तम ग्रन्थ खरीदने के लिए खर्च के बजट में सुविधानुसार आवश्यक राशि रखनी चाहिए।
  • ज्ञानवृद्धि के ओर भी उपाय हैं परंतु सत्साहित्य का अध्ययन उन सभी उपायों में सर्वाधिक सुलभ उपाय है।जो भी पुस्तकें ज्ञानवर्द्धन में उपयोगी हो सकती है,उन सभी को खरीद लेना हर किसी के लिए संभव नहीं है फिर भी अपने बजट में ऐसी व्यवस्था रखनी चाहिए,जिससे कि घर में एक छोटा सा घरेलू पुस्तकालय बनता चले।लोग पुस्तकों पर खर्च फिजूलखर्ची समझते हैं।यह पुस्तकों का महत्त्व न समझ पाने के कारण ही है।
  • अतएव विद्यार्थियों एवं विचारशील व्यक्तियों को चाहिए कि वे श्रेष्ठ साहित्य का महत्त्व दूसरों को समझाएं और पठनरुचि के विकास में सहयोग दें।समझदार व्यक्तियों के लिए भी यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वे ज्ञानवर्द्धन के लिए अध्ययन की रीति-नीति अपनाएं,अपनी पुस्तकें खोज-खोजकर स्वयं पढ़ें और दूसरों को भी बताएँ।

5.पुस्तको के अध्ययन का दृष्टान्त (An Illustration of the Study of Books):

  • महापुरुषों की यही विशेषता रही है कि उन्होंने पुस्तकों का अध्ययन ही नहीं किया है बल्कि स्वाध्याय भी किया है।ज्ञानवृद्धि के लिए पुस्तकें एक प्रमुख आधार है यदि पढ़े हुए का मर्म भी समझा जाए।
  • एक विद्यार्थी गुरुकुल में विभिन्न ग्रंथों व शास्त्रों का अध्ययन करके आया।घर आकर उसने पिता से कहा कि मैं आपको गीता का पाठ सुनाना चाहता हूं।पिता ने नम्रतापूर्वक कहा कि गीता का एक बार फिर से गंभीर अध्ययन करो।वह विद्यार्थी पहले तो क्रुद्ध हुआ।मां को अपनी व्यथा कही,तो मां ने कहा कि पिताजी ने कहा है कि एक बार गीता का ओर अध्ययन कर लो तो इसमें हर्ज क्या है? अतः वह विद्यार्थी गीता को पुनः पढ़ने लगा।पढ़कर पुनः अपने पिता से अनुरोध किया।पिता ने फिर लौटा दिया और कहा कि एक बार फिर से गीता का अध्ययन करो।विद्यार्थी माँ के पास गया तो माँ ने समझाया कि तुम्हारे पिताजी भी पढ़े-लिखे हैं,विद्वान हैं,उनके कथन में कोई गूढ़ रहस्य है।
  • वह विद्यार्थी पुनः गीता का एकांत में गम्भीर अभ्यास,मनन-चिंतन करने लगा।दूसरी बार गीता का अध्ययन करने पर उसका ध्यान गीता के तत्त्वज्ञान की ओर गया।उसके बोध से गीता के अध्ययन में उसे आनन्द आने लगा।पश्चाताप भी हुआ गीता कोई व्याख्या की वस्तु नहीं है,यह तो जीवन जीने की कला सिखाती है,समझने और अनुभूति करने की विषयवस्तु है।
  • भला इस महानग्रन्थ का भी इस प्रकार प्रदर्शन करना चाहिए क्या? इस बात को महीनों बीत गए परंतु उस विद्यार्थी ने अपने पिता से गीता का पाठ सुनने के लिए नहीं कहा।तब स्वयं पिताजी ने पुत्र से कहा कि अब तुमने गीता का मर्म समझ लिया है।अब मुझे गीता का पाठ सुनाओ क्योंकि अब तुम्हारे मुख से गीता का सही तत्त्वज्ञान निकलेगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र छात्राओं के लिए शास्त्रों को पढ़ने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Read Scriptures),छात्र-छात्राओं के लिए सद्ग्रन्थ पढ़ने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Read Good Literatures) के बारे में बताया गया है।

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6.छात्र अगल-बगल में क्यों देखता है? (हास्य-व्यंग्य) (Why Does Student Look Side by Side?) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक (छात्रों से):गणित के सवाल पूछने पर छात्र-छात्राएं अगल बगल में क्यों देखता है?
    छात्र:यह देखने के लिए कि कोई मेरी नकल तो नहीं कर रहा है?

7.छात्र छात्राओं के लिए शास्त्रों को पढ़ने की 4 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 4 Tips for Students to Read Scriptures),छात्र-छात्राओं के लिए सद्ग्रन्थ पढ़ने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Read Good Literatures) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.लोगों में पठन रुचि का अभाव क्यों है? (Why Do People Lack Reading Interest?):

उत्तर:पुस्तकें पढ़ते समय अधिकांश पाठकों की दृष्टि इस तरह की नहीं होती है कि उससे ज्ञान साधना का उद्देश्य पूरा होता चले।प्रथम तो लोगों में अध्ययन के प्रति रुचि का ही अभाव होता है।अशिक्षित या अल्पशिक्षित व्यक्तियों की पढ़ने में रुचि नहीं है वह क्षम्य है क्योंकि उन्हें पढ़ना लिखना ही नहीं आता किंतु पढ़े-लिखे व्यक्तियों द्वारा भी जब अध्ययन के प्रति उपेक्षा भाव बरता जाता है तो विचारशील वर्ग के लिए शोचनीय हो जाती है।पढ़े-लिखे व्यक्ति जब तक स्कूल-कॉलेज में रहते हैं,तभी तक पुस्तकों से संबंध रखते हैं।स्कूल-कॉलेज से निकलने ही जाॅब या व्यवसाय के क्षेत्र में प्रवेश करते ही पुस्तकों से संबंध तोड़ लेते हैं।यद्यपि विद्यार्थी जीवन में भी उनका ज्ञान-साधना की ओर कम,डिग्री प्राप्त करने की ओर ही अधिक रहता है।फिर भी उन दिनों पुस्तकों से संबंध रहने का संतोष तो किया ही जा सकता है किंतु बाद में तो वह स्थिति भी नहीं रहती।पढ़ने-लिखने के बाद लोग नौकरी-पेशे में या रोजगार-धंधे में इस तरह व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें पुस्तकों का सानिध्य करने के लिए समय ही नहीं मिलता।समय न मिलने की बात कही जाती है परंतु पढ़ने में रुचि का अभाव ही पुस्तकों में कोई संबंध न रखने का मुख्य कारण है।

प्रश्न:2.पढ़ने की प्रक्रिया किस प्रकार की रहनी चाहिए? (What Should Be the Reading Process?):

उत्तर:पढ़ते समय एकाग्रता और स्थिर-चित्त होना चाहिए।सरसरी तौर पर पढ़ने से ज्ञानवृद्धि का प्रयोजन अधूरा ही रह जाता है।उथले चित्त से पढ़ने पर जो पढ़ा जाता है,वह भी दिमाग से उतर जाता है।इसलिए किताब के पन्ने पलटने भर न रहा जाए बल्कि जो कुछ पढ़ा जाए उसे स्मृति में रखने; उस पर विचार करने और विवेक जगाने का प्रयत्न किया जाए।प्रेरणास्पद साहित्य के अध्ययन का एक महत्त्वपूर्ण लाभ अपने विवेक को जागृत होने,विचारशीलता का विकास होने के रूप में देखा जा सकता है।जिससे भले-बुरे का ज्ञान,उचित-अनुचित का भेद और नीर-क्षीर का विवेक की विश्लेषण बुद्धि निखरती है।
ज्ञानवृद्धि के लिए पढ़ते समय नोट्स बना लेने और पढ़े गए का सार लिखने की आदत डाल ली जाए तो उससे न केवल पढ़ी गई बात स्मृति में जम जाएगी वरन अपने पास जानकारियों का एक कोष संचित हो जाएगा।

प्रश्न:3.छात्र-छात्राएं सत्साहित्य क्यों नहीं पढ़ते हैं? (Why Don’t Students Read Literature?):

उत्तर:उन्हें शिकायत रहती है कि सत्साहित्य में मनोरंजन नहीं है।ज्ञानवर्द्धन को यदि उपयोगी विषय मान लिया जाए तो उसमें छात्र-छात्राओं की रुचि बढ़ाई जा सकती है।परंतु सत्साहित्य को उपयोगी और महत्त्वपूर्ण मान लिया जाए तो वही मनोरंजक भी प्रतीत होने लगेगा।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र छात्राओं के लिए शास्त्रों को पढ़ने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Read Scriptures),छात्र-छात्राओं के लिए सद्ग्रन्थ पढ़ने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Read Good Literatures) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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