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PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS

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1.गणित में पाठ्यपुस्तकों का स्थान (INTRODUCTION OF PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS):

  • गणित में पाठ्यपुस्तकों का स्थान (PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS) बहुत उच्च रहा है।छात्र-छात्राओं के लिए पूर्व में ज्ञान प्राप्ति शिक्षकों के बाद पाठ्य-पुस्तकों से ही उपलब्ध हो सकती थी।परंतु वर्तमान काल में ज्ञान प्राप्ति के अनेक साधन हो गए हैं।अब छात्र-छात्राएं केवल शिक्षकों,पाठ्य-पुस्तकों,शिक्षण संस्थानों पर ही निर्भर नहीं है बल्कि वह विषय सामग्री विशेष (कन्टेन्ट) विभिन्न स्रोतों जैसे इंटरनेट,विभिन्न वेबसाइट्स,सोशल मीडिया,यूट्यूब चैनल इत्यादि से भी प्राप्त करने लगा है।इसके बावजूद पाठ्य-पुस्तकों का महत्त्व कम नहीं हुआ है।परंतु विद्यार्थी परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए गाइड्स तथा सीरीज इत्यादि को पढ़ने की तरफ प्रवृत्त हो रहा है।
  • केवल गाइड्स व सीरिज को पढ़ने से छात्र-छात्राओं का ज्ञान संकुचित रह जाता है।वह जीवन में आगे आने वाली समस्याओं के लिए व्यावहारिक ज्ञान तथा विभिन्न परीक्षाओं को उत्तीर्ण करने में अत्यधिक कठिनाई महसूस करता है।इसलिए छात्र-छात्राओं को विभिन्न स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करने के बावजूद पाठ्य-पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए।गणित जैसे विषय को अन्य स्रोतों से पढ़कर समझना बहुत कठिन है।परंतु शिक्षक व पाठ्य-पुस्तकों की मदद से गणित को समझना सहज व सरल है।
  • पुस्तकों को ऐसा मित्र कहा जाता है जो सदा सही सलाह देती हैं और मुश्किल वक्त में काम आती है। कोई भी व्यक्ति अपना बुरा वक्त पुस्तकों के अध्ययन से सहज में गुजार देता है।संसार में जितने बड़े-बड़े गणितज्ञ, वैज्ञानिक,कवि,लेखक,दार्शनिक ,विद्वान आदि हुए हैं वे सब निरंतर अध्ययन करके मनन और चिंतन किया करते थे।कहा भी गया है कि ‘ग्रंथी भवति पंडित:’ अर्थात् जिसके पास बहुत से ग्रंथ हों,वह पंडित होता है।
  • वास्तविकता यह है कि वर्तमान में पुस्तकों के अध्ययन की प्रवृत्ति कम होती जा रही है।स्कूलों और काॅलेजों के विद्यार्थी अपनी पाठ्य-पुस्तकें ध्यान से नहीं पढ़ते हैं।इसके विपरीत युवाओं में अपराध और सेक्स संबंधी कंटेंट इंटरनेट पर देखते हुए पाया जाता है जिससे मस्तिष्क विकृत होता है।
  • साधारण व्यक्ति धन कमाने में इतना व्यस्त हो गया है कि उसे पढ़ने की फुर्सत ही नहीं मिलती है। धीरे-धीरे किताबों की मांग कम होती जा रही है जिससे प्रकाशक किसी पुस्तक को छापने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है।बौद्धिक स्तर गिरने का यह भी एक कारण है।
  • इसलिए माता-पिता को अपने बच्चों को बचपन से ही पाठ्य-पुस्तकों को पढ़ने की रुचि उत्पन्न करानी चाहिए।साथ ही अपने घर में पुस्तकों का एक छोटा संग्रह करना चाहिए जिससे परिवार के बच्चे तथा बड़े पुस्तकों का अध्ययन कर सकें।महान् विद्वानों के पास निजी पुस्तकालय मिलेंगे जिसमें संसार के बड़े-बड़े विद्वानों के ग्रंथ उपलब्ध होते हैं जिनका वे प्रतिदिन अध्ययन करते हैं।
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(1.)गणित में पाठ्य पुस्तकों का स्थान (PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS):

  • छात्र-छात्राओं को सही व उच्चकोटि का ज्ञान प्राप्त करने के लिए उचित गणित की पाठ्यपुस्तक की आवश्यकता है।पाठ्यपुस्तक में क्रमबद्ध रूप से उचित एवं स्पष्ट सामग्री होती है।पाठ्य-पुस्तक से छात्र-छात्राओं को कोर्स का पूरा ज्ञान तथा उचित सामग्री मिल जाती है जिससे परीक्षाओं में आने वाले प्रश्नों के हल मिल जाते हैं।छात्र छात्राओं को पाठ्य-पुस्तकों से क्रमबद्ध रूप से प्रश्नों को हल करने का तरीका ज्ञात होता है।गणित की पाठ्य-पुस्तकों के अध्ययन से बालकों के मस्तिष्क को सोचने व विचारने की प्रक्रिया का ज्ञान होता है जिससे वे समस्या को समझकर तथा तर्कसंगत ढंग से अपना मत स्थिर कर सकें।इसके आधार से उनका मस्तिष्क इस ढंग से कार्य करने के लिए प्रशिक्षित हो जाएगा तभी उनका गणित की पाठ्य-पुस्तकों का पढ़ना सार्थक होगा।
  • गणित का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए पाठ्य-पुस्तकों को पढ़ना आवश्यक है।गणित की पाठ्य-पुस्तकों से गणित के विषय में नए-नए सूत्रों द्वारा प्रश्नों की समस्याओं के लिए सोचने का ढंग,उनका विश्लेषण करना,प्रश्नों को हल करने के लिए नियमों व सिद्धांतों आदि के ज्ञान प्राप्ति को बल मिलता है।
  • पाठ्य पुस्तकों से छात्र-छात्राओं को यह पता चलता है कि किस अध्याय का अध्ययन करना है और कितना अध्ययन करना है।उस अध्याय का विस्तृत ज्ञान उसको सही ढंग से पढ़ने पर मिल जाता है। पाठ्य-पुस्तक की विषय वस्तु सरल व छात्रों को समझने योग्य होनी चाहिए।कुछ पाठ्य-पुस्तकों में भाषा को इतना जटिल बना देते हैं कि छात्र-छात्राओं के लिए उनको पढ़ना बहुत मुश्किल हो जाता है।शिक्षक भी जब पाठ्य-पुस्तक पढ़ाते हैं तो पुस्तक में दिए हुए प्रश्नों को भी ठीक से नहीं समझाते हैं और समझाते हैं तो आधे-अधूरे प्रश्नों को हल करवाते हैं जिससे छात्रों का ज्ञान सीमित रह जाता है।
  • शिक्षक जब उदाहरण समझाते हैं तो श्यामपट्ट पर उदाहरण को पाठ्य-पुस्तक से ज्यों का त्यों उतार देते हैं।जबकि उनको चाहिए कि उस दिए हुए हल से भिन्न उसको समझाए,हो सकता है पाठ्य-पुस्तक में दिए प्रश्नों की भाषा कुछ जटिल हो अथवा कुछ स्टेप्स नहीं दी हुई हो जो छात्रों की समझ में नहीं आ रही हो।अध्यापक को अपने ज्ञान से प्रश्नों को सरल भाषा में समझाना चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है।इसलिए आजकल का छात्र केवल पाठ्य-पुस्तक में दिए हुए हल को रटने लगता है।इसमें वह पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाता और वह गणित में कमजोर रह जाता है।
    शिक्षक को चाहिए कि पाठ्य-पुस्तक के लेखक के ज्ञान को ही सर्वोपरि न माने बल्कि अपने ज्ञान के साथ मिलाकर छात्रों को उचित ज्ञान दिया जाए तो निश्चित ही छात्र गणित में कमजोर नहीं रहेगा।
  • छात्र-छात्राओं को गणित की उचित व सही पाठ्य-पुस्तकें उपलब्ध कराई जाए जिससे वे उसको ठीक से समझ सके अन्यथा उसका पढ़ना व्यर्थ ही रहेगा।
  • आजकल छात्रों को प्रश्नों को हल करने के लिए सूत्र रटा दिए जाते हैं।वे उन्हें तोते की तरह रट लेते हैं किंतु वास्तविक ज्ञान से बहुत दूर रहते हैं।विद्यार्थियों को जो भी सिखाया जाता है उसे पाठ्यक्रम में रखने का कोई न कोई उद्देश्य होता है।यदि शिक्षक किसी उद्देश्य की प्राप्ति जिन छोटे-छोटे बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाता है तो छात्र  रूचिपूर्वक पढ़ता है।

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(2.)गणित शिक्षण के लिए पाठ्य पुस्तकों की आवश्यकता (IMPORTANCE OF TEXT BOOKS IN TEACHING OF MATHEMATICS):

  • पाठ्य-पुस्तक शिक्षण एवं पाठ्य-सामग्रियों (Teachung and Reading Materials) में सबसे पुराना साधन है।पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता और महत्त्व आज भी कम नहीं हुआ है।प्राचीन काल में ज्ञान का हस्तान्तरण पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से होता रहा।परंतु ज्ञान की पाठ्य सामग्री में अत्यधिक वृद्धि होने के कारण इसके हस्तांतरण के लिए पाठ्य सामग्री को लिखित रूप में प्रस्तुत करने की परंपरा विकसित हुई।
  • गणित विषय के संबंध में ज्ञान प्राप्ति के लिए पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता पड़ती है।पाठ्य-पुस्तकों में पाठ्य-सामग्री एक स्थान पर ही मिल जाती है।इसके आधार पर छात्रों का मूल्यांकन होता है।इनसे ही छात्रों का कक्षा कार्य होता है।
  • पाठ्यक्रम के संबंध में विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं:
  • सैमुअल के अनुसार “पाठ्यक्रम में शिक्षार्थी के वे समस्त अनुभव होते हैं जिनको वह कक्षा में,प्रयोगशाला में,पुस्तकालय में तथा विद्यालयों में होने वाली अन्य पाठ्यान्तर क्रियाओं के द्वारा क्रीडांगण में तथा अपने अध्यापकों एवं साथियों के साथ विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से प्राप्त करता है।”
  • कनिंघम के अनुसार “पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथ में एक साधन है जिसमें वह अपनी सामग्री (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुसार अपनी चित्रशाला (विद्यालय) में ढाल सके।”
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित में पाठ्यपुस्तकों का स्थान (PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS) के बारे में बताया गया है।

2.मुख्य बिन्दु (HIGHLIGHTS):

  • (1.)पाठ्य-पुस्तकों से जब शिक्षक छात्रों को पढ़ाता है तब विशेष पाठ का चयन करने में आसानी रहती है।
  • (2.)पाठ्य-पुस्तक में विभिन्न प्रकार के प्रश्न दिए होते हैं उनको छात्रों को समझाने में आसानी होती है।
  • (3.)गृह कार्य देते समय पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता पड़ती है।यदि पाठ्यपुस्तक नहीं होती तब छात्रों को प्रश्न बोलकर लिखने पड़ते हैं।उस अवस्था में समय बर्बाद होता है तथा छात्र सही प्रश्न नहीं लिख पाते।
  • (3.)अनुभवी लेखक गणित की पाठ्य-पुस्तक में पाठ्यक्रम के अनुसार अपने अनुभव से रुचिपूर्ण एवं सारगर्भित पाठ तैयार करता है जिससे शिक्षकों को पाठ्यक्रम के बारे में इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता है।
  • (4.)पाठ्य-पुस्तक में जो अध्याय दिए जाते हैं वे क्रमबद्ध होते हैं।प्रत्येक अध्याय का संबंध अपने पूर्व अध्याय से होता है।इसलिए अध्यापकों को प्रथम पाठ से शुरू करके अंतिम पाठ तक पढ़ाना चाहिए।
  • (5.)पाठ्य-पुस्तक से गणित सम्बन्धी प्रयोग सामग्री उचित ढंग से मिल जाती है।जिससे छात्रों के प्रयोग के संबंध में ज्ञान पूर्ण रूप से हो जाता है।
  • (6.)शिक्षक अधिक छात्रों की कक्षा में प्रत्येक छात्र पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान नहीं दे पाता है तब पाठ्य-पुस्तक ही इस कार्य को आसान बना देती है।
  • (7.)मंद-बुद्धि,कुशाग्र बुद्धि एवं साधारण बुद्धि के छात्र पाठ्य-पुस्तकों के अध्ययन से पूरे पाठ की जानकारी कर सकते हैं।
  • (8.)यदि गणित की पुस्तकों में स्पष्ट सूत्र एवं सरल भाषा में पुस्तकें हो तो शिक्षार्थी उनको आसानी से समझ लेता है।अधिक क्लिष्ट भाषा एवं इस प्रकार की भाषा जिनको पढ़ने से कई अर्थ निकलते हों उनको समझना कठिन हो जाता है।इसलिए पाठ्य-पुस्तकों में सटीक भाषा का प्रयोग होना चाहिए।

3.गणित में पाठ्य पुस्तकों का स्थान (PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS) के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.गणित की पाठ्यपुस्तक तैयार करते समय क्या बातें ध्यान में रखनी चाहिए? (What should keep things in mind to prepare text book of mathematics?):

उत्तर:गणित की पाठ्यपुस्तक मुख्य-मुख्य तथ्यों (Facts) को ध्यान में रखना चाहिए।ये कक्षा के स्तर को देखते हुए अधिक जटिल नहीं होने चाहिए। पाठ्यपुस्तक में दैनिक जीवन में काम आने वाले पाठ होने चाहिए।

प्रश्न:2.विद्यार्थी के लिए पाठ्यपुस्तक की क्या उपयोगिता है? (What is importance of text book for students?):

उत्तर:(1.)जो पाठ शिक्षक कक्षा में पढ़ा देते हैं उनको दुबारा से अपनी पाठ्य-पुस्तक से पढ़ सकते हैं।इसलिए पाठ्य-पुस्तक अत्यंत आवश्यक है।
(2.)पाठ्य-पुस्तक से छात्रों को यह पता चलता है कि कौन-कौन से पाठ हमें पढ़ने हैं।जब छात्रों को लक्ष्य पता चल जाता है तब पढ़ने में रुचि जागृत हो जाती है।

प्रश्न:3.गणित की पाठ्यपुस्तक छात्रों को छात्रों के लिए किस प्रकार सहायक है? (How to helpful text book of mathematics for students?):

उत्तर:(1.)शिक्षक अधिक छात्रों की कक्षा में प्रत्येक छात्र पर व्यक्तिगत रुप से ध्यान नहीं दे पाता है तब पाठ्य-पुस्तक ही इस कार्य को आसान बना देती है।
(2.)पाठ्य-पुस्तक से गणित संबंधी पाठ्य सामग्री उचित ढंग से मिल जाती है जिससे छात्रों को अन्यत्र भटकना नहीं पड़ता है।
(3.)परीक्षा में पूछे गए अधिकांश सवाल पाठ्य -पुस्तक में से ही आते हैं।
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित में पाठ्यपुस्तकों का स्थान (PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS

गणित में पाठ्यपुस्तकों का स्थान
(PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS)

PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS

गणित में पाठ्यपुस्तकों का स्थान (PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS)
बहुत उच्च रहा है।छात्र-छात्राओं के लिए पूर्व में ज्ञान प्राप्ति शिक्षकों के बाद पाठ्य-पुस्तकों से ही उपलब्ध हो सकती थी।
परंतु वर्तमान काल में ज्ञान प्राप्ति के अनेक साधन हो गए हैं।

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित में पाठ्यपुस्तकों का स्थान (PLACE OF TEXT BOOKS IN MATHEMATICS) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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