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How to Study Mathematics as Game?

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1.गणित का अध्ययन खेल समझकर कैसे करें? (How to Study Mathematics as Game?),अध्ययन को खेल समझकर कैसे करें? (How to Make Study as Game?):

  • गणित का अध्ययन खेल समझकर कैसे करें? (How to Study Mathematics as Game?) क्योंकि अक्सर छात्र-छात्राएं गणित के सवालों,समस्याओं और कठिनाइयों से घबराकर हताश व निराश हो जाते हैं।परंतु गणित के सवालों,समस्याओं को कर्त्तव्य समझकर,अनासक्तिपूर्वक हल करते हैं तो न केवल समस्याएं हल हो जाती हैं बल्कि गणित का अध्ययन अथवा अन्य विषय का अध्ययन करने में आनंद का अनुभव करते हैं।
  • प्रश्न है कि बिना इच्छा के गणित का अध्ययन कैसे कर सकते हैं? और इच्छा होगी तो अध्ययन के परिणाम से सुखी-दुःखी भी होंगे।वस्तुतः कई कार्य हम बिना इच्छा के किसी की आज्ञापालन,मजबूरी में (बिना इच्छा के),दाब-दबाव,कर्त्तव्य पालन अथवा इच्छापूर्वक करते हैं।उदाहरणार्थ माता-पिता की सेवा कर्त्तव्य समझकर ही करते हैं।
  • इसी प्रकार गणित का अध्ययन अथवा अन्य विषय का अध्ययन कर्त्तव्य समझकर करने से उसकी कठिनाइयां या सवालों के हल न होने पर अप्रभावित रहते हैं।छोटे बच्चे कोई खेल खेलते हैं तो उसमें आसक्ति नहीं होती है बल्कि अनसक्तिपूर्वक,अपनी मौज व मस्ती के लिए खेल खेलते हैं।
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2.अध्ययन खेल समझकर करें (Study as a Game):

  • ऐसा कार्य जो आनंद,मौज और मस्ती से किया जाए वह खेल है।जिस कार्य को खुश होकर,पूरी मस्ती के साथ किया जाए वह कार्य हमारे लिए खेल (क्रीड़ा) हो जाता है।जब गणित अथवा अन्य विषय का अध्ययन करते समय कोई चिंता,कोई फिक्र,कोई तनाव,कोई झंझट अथवा कोई जल्दबाजी नहीं करते हैं सिर्फ मौज-मस्ती के साथ करते हैं बल्कि कोई साथी भी आ जाए तो उसे भी अध्ययन के लिए प्रेरित करते हैं तो यह कार्य खेल हो जाता है।
  • अध्ययन को खेल समझकर करने पर घंटों सवाल हल करने या थ्योरी पढ़ने पर भी हमें कोई उकताहट या बोरियत महसूस नहीं होती है।लेकिन यदि गणित या अन्य विषय का अध्ययन झंझट,आफत या मजबूरी से करते हैं तो यह काम या कार्य हो जाता है।
    दरअसल सब कुछ हमारी मानसिकता,हमारे मनोबल,हमारी इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है चाहे तो काम को क्रीड़ा (खेल) बना लें या क्रीड़ा (खेल) को काम बना लें।जो बुद्धिमान होते हैं वे अपने कार्य को क्रीड़ा (खेल) बना लेते हैं और खेल की तरह अध्ययन करते हुए प्रसन्न होते हैं और मस्ती का अनुभव करते हैं।
  • जब आप स्कूल जाते हैं तो जरा जल्दी में होते हैं,स्कूल में पहुंचने की फिक्र होती है और रास्ते में कोई मित्र या परिचित मिल जाए और बात करने के लिए रोके तो आप नहीं रुकेंगे और कहेंगे जरा जल्दी में हूं,इस समय स्कूल में पहुंचना है तब वही अध्ययन खेल की जगह कार्य बन जाता है।
  • घर पर अध्ययन करते हैं तो कोई जल्दबाजी नहीं होती है परंतु स्कूल में अध्ययन में जल्दबाजी करते हैं।दोनों जगह पर मन:स्थिति अलग-अलग रहती है।घर पर भी अध्ययन करते हैं और स्कूल में भी अध्ययन करते हैं पर घर पर अध्ययन करने जैसी प्रसन्नता और मस्ती स्कूल में अध्ययन के लिए जाने या स्कूल में अध्ययन करने पर प्रसन्नता या मस्ती नहीं रहती है।

3.अध्ययन को खेल समझने में बाधक निराशा (Obstruction Frustration in Considering Study as a Game):

  • अध्ययन करते समय विद्यार्थी के जीवन में आशा,निराशा के क्षण आते रहते हैं।आशा जहां अध्ययन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है,वहाँ निराशा विद्यार्थी को अध्ययन से दूर ले जाती है क्योंकि निराश छात्र-छात्रा अध्ययन से उदासीन और विरक्त होने लगता है।वह अध्ययन के लिए पुस्तक उठाता है और उसे देखते ही चक्कर आने लगते हैं,आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है।एक दिन निराश विद्यार्थी अध्ययन से पीछा छुड़ाने के लिए मजबूर हो जाता है जबकि अध्ययन में आने वाली अड़चनों,मुसीबत में भी आशावादी विद्यार्थी कोई न कोई रास्ता निकाल लेता है।अतः विद्यार्थी को निराशा से बचना चाहिए अन्यथा वह मनोरोगी बना देती है।
  • कभी-कभी अध्ययन के बाद उचित विश्राम न करने,स्वास्थ्य ठीक न होने,अध्ययन में अत्यधिक कठिन परिश्रम करने,दौड़-धूप का जीवन आदि के कारण निराशा,उदासीनता पैदा हो जाती है।लेकिन इन सब बातों का समाधान सरलता से किया जा सकता है।स्वास्थ्य का सुधार,उचित विश्राम,मानसिक संतुलन,व्यायाम करने,ध्यान व योग का अभ्यास आदि से निराशा के इन कारणों को सरलतापूर्वक दूर किया जा सकता है।स्वस्थ होने तथा मानसिक संतुलन बनाए रखने से नकारात्मक विचार मन में नहीं आते हैं।
  • कई बार पाठ्यक्रम पूरा न होने,अध्ययन पर पकड़ मजबूत न होने पर मन में असंतोष व अशांति के कारण भी निराशा आ जाती है।
  • किंतु कुछ बातों का ध्यान रखकर,संयमित तथा संतुलित जीवन पद्धति से न केवल निराशा से बचा जा सकता है बल्कि उसे सर्वथा दूर भी किया जा सकता है।
  • कई बार छात्र-छात्राएं वास्तविक रूप में अध्ययन न करके अध्ययन करने की कल्पना मन में संजोएँ रहते हैं तब भी निराश हो जाते हैं।अपनी भावनाओं और कल्पनाओं के अनुरूप अध्ययन करने पर ही निराशा से मुक्त हुआ जा सकता है,केवल अध्ययन करने के कल्पनालोक में विचरण करने से नहीं।
  • अध्ययन करने की यथार्थ स्थितियों को स्वीकार करना और उनका सामना करते हुए आगे बढ़ते जाना सही तरीका है।ऐसा नहीं हो सकता है कि अध्ययन करने के मार्ग में कोई विपरीत स्थितियां न आएँ।यदि आप अध्ययन में आने वाली अड़चनों,परेशानियों से हार बैठे हैं,अपनी भावनाओं व कल्पनाओं के प्रतिकूल घटनाओं से ठोकर खा चुके हैं और जीवन की उज्जवल संभावनाओं से निराश हो बैठे हैं तो उन्नति का मार्ग है:उठिए और अध्ययन में आने वाली अड़चनों,परेशानियों,विपरीताओं,प्रतिकूलताओं को स्वीकार करके आगे बढ़िए।तभी आप अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।अध्ययन करना है तो यथार्थ को अपनाना ही पड़ेगा ओर कोई दूसरा रास्ता नहीं है,जो बिना इसके लक्ष्य तक पहुंचा दे।कई बार अध्ययन में आने वाली प्रतिकूलताओं को हम हल नहीं कर पाते हैं।
  • बहुत से विद्यार्थी पिछली कक्षाओं में की गई गलतियों,अपमान,असफलता,कठिनाइयों का चिंतन करके निराश हो जाते हैं और कई भविष्य में जॉब मिलने के खतरों,परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने में होने वाली रूकावटों की कल्पना करके अवसादग्रस्त हो जाते हैं।लेकिन यह दोनों ही स्थितियां मानसिक संतुलन के चिन्ह हैं।
  • जो बातें हो चुकी है,जो घटनाएं बीत चुकी है,उन पर विचार करना,उन्हें स्मरण करना,उतनी ही बड़ी भूल है,जितनी गड़े मुर्दे उखाड़ना,जो बातें बीत चुकी है,उन्हें भुला देने के सिवा ओर कोई रास्ता नहीं है।इसी तरह भविष्य की भयानक तस्वीर बना लेना भी भूल है।कई बार अध्ययन में आने वाली रुकावटें आती नहीं,जिनकी हम पहले से कल्पना करके परेशान होते रहते हैं।आगे क्या होगा,यह तो भविष्य बताएगा।किंतु निराशा से दूर रहने और अध्ययन को सरस आशावादी बनाए रखने का मार्ग यही है कि भविष्य के प्रति उज्जवल संभावनाओं का विचार किया जाए।प्रसन्नता और सुख के जो क्षण आएँ,उनका पूरा-पूरा उपयोग किया जाए।सुखद भविष्य की कल्पनाएं मन में संजोई जाए।

4.अध्ययन को अनासक्त होकर करें (Study Unattached):

  • अध्ययन कार्य को आसक्ति रखकर नहीं करते हैं तब अध्ययन कार्य खेल होता है,लीला होता है।लीला यानी खेल एक अभिनय जिसे संसार के रंगमंच पर खेलना होता है।इस तरह अध्ययन ही नहीं कोई भी काम अनासक्त भाव से किया जाता है तब कर्म करने वाला कर्त्ता नहीं होता है,सिर्फ अभिनेता होता है और अभिनय कर रहा होता है फिर वह अभिनय अभ्यर्थी (जॉब करने वाला) का हो या विद्यार्थी का हो,उत्तीर्ण होने का हो या अनुत्तीर्ण होने का हो,अभिनेता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसे कर्म के फल में आसक्ति नहीं होती।वह अभिनय समझ कर सब कुछ करता जाता है।ऐसी भावना से जो विद्यार्थी अध्ययन करता है और फल (परिणाम) के प्रति आसक्ति नहीं रखता,वह दुःखी होने से बच जाता है।
  • दरअसल अनासक्त कर्म ही लीला होता है।लीला खेल से भी ऊपर की बात है।खेल को काम बनाया जा सकता है और काम को खेल बनाया जा सकता है परंतु लीला को न तो खेल बनाया जा सकता है न काम बनाया जा सकता है।लीला तो अनासक्त भाव की अभिव्यक्ति होती है।
  • लीला तो परमात्मा (भगवान) का खेल है।लीला का मतलब ही आनंद की अभिव्यक्ति है और जो सच्चिदानंद परमात्मा (भगवान) करता है याकि कर सकता है।
  • जिस दिन विद्यार्थी अध्ययन को लीला बना लेंगे उस दिन सफलता या असफलता,सुख या दुःख से अप्रभावित हो जाएंगे।दुखों मुक्त हो जाएंगे।
  • साधारणतः विद्यार्थी आसक्ति (इच्छा पूर्ति) के कारण ही अध्ययन या अन्य कार्य करते हैं।आसक्ति कर्म के लिए प्रेरणा प्रदान करती है।विद्यार्थी उत्तीर्ण होने तथा अनुत्तीर्ण होने से बचने के लिए ही अध्ययन करते हैं।अतः विद्यार्थी द्वारा अध्ययन के कर्म करने में आसक्ति ही मूल कारण समझा जा सकता है।
  • परंतु अध्ययन करने वाले विद्यार्थी को इस आसक्ति पर विजय पानी है और अनासक्त होकर अध्ययन कार्य करना चाहिए।विद्यार्थी को सफलता-असफलता,सुख-दुःख,हानि-लाभ,हार-जीत रूप द्वन्द्व से ऊपर उठकर अध्ययन करना चाहिए।साधारण छात्र-छात्रा के लिए यह कर्म करना (अनासक्त) कठिन अवश्य हो सकता है।साधारण छात्र-छात्रा सर्वदा लाभ के लिए ही अध्ययन या अन्य कार्य करता है।
  • परन्तु अनासक्त कर्म करने वाला विद्यार्थी लाभ-हानि,सफलता-असफलता की भावना से प्रेरित नहीं होता है।विद्यार्थी अभ्यास (अच्छे कर्म,अध्ययन करने आदि),वैराग्य (बुरे कर्म न करना,राग-द्वेष से रहित),ध्यान व योग आदि के द्वारा अध्ययन को अनासक्त कर्म समझ कर सकता है।
  • विद्यार्थी काल विद्यार्जन का समय होता है और इस समय में केवल कोर्स की पुस्तकें पढ़ने से ही जीवन सुखद नहीं हो सकता है।उसे व्यावहारिक,अध्यात्म संबंधी बातों का भी थोड़ा-बहुत ज्ञान प्राप्त करना चाहिए अन्यथा जीवन में सुख-दुःख का ताँता लगा रहेगा और हम समझ ही नहीं पाएंगे कि ऐसा क्यों हो रहा है?
  • बाद में अर्थात् विद्यार्थी काल के बाद,युवावस्था के बाद आदतें परिपक्व हो जाती हैं अतः इन सब बातों को सीखना,चरित्र का निर्माण करना,अच्छे गुणों को धारण करना बहुत मुश्किल होता है।

5.अध्ययन खेल समझाकर करने का दृष्टांत (The Example of Studying as a Game):

  • एक नगर में गणित शिक्षक थे।वे विद्यार्थियों को तन-मन से पढ़ाते थे।श्रेष्ठ तरीके से गणित पढ़ाने के बावजूद गणित विद्यार्थी असफल हो जाते थे तथा विद्यार्थी भी पूरी तल्लीनता के साथ नहीं पढ़ते थे।एक दिन गणित शिक्षक अपने कुछ गणित के छात्रों को साथ लेकर घूमने के लिए निकले।घूमते-घूमते अचानक वे एक गुरुकुल के पास से गुजरे।
  • उत्सुकतावश गणित शिक्षक विद्यार्थियों को लेकर गुरुकुल के अंदर चले गए।वहां उस समय गणित के आचार्य अपने शिष्यों को गणित पढ़ा रहे थे।गणित शिक्षक और छात्र-छात्राएं खिड़की के पास खड़े होकर उनके पढ़ने की कला और शिष्यों द्वारा पूर्ण एकाग्रतापूर्वक अध्ययन करते हुए देखकर विस्मित हुए।
  • गणित के आचार्य सवालों,समस्याओं को विभिन्न दृष्टिकोण से पढ़ाकर दृष्टांत देते और शिष्य भी पूर्ण तत्परता से पूछे गए सवालों को हल कर रहे थे। गणित के आचार्य की पढ़ाने की कला और शिष्यों को पढ़ते हुए देखकर काफी समय व्यतीत हो गया।उन्हें समय का भान ही नहीं रहा।
  • गणित शिक्षक व उनके छात्र-छात्राओं का ध्यान तब भंग हुआ जब गणित के आचार्य का कालांश समाप्त हुआ और घंटी बजी।गणित शिक्षक अपने छात्र-छात्राओं को गुरुकुल से लेकर बाहर आ गए।छात्र-छात्राओं ने पूछा कि गुरुजी आप पढ़ाते हो तो गुरुकुल के छात्र-छात्राओं की तरह प्रसन्नता,मौज व मस्ती का अनुभव नहीं करते हैं।आज तक हमने किसी विद्यालय में गणित का ऐसा शिक्षण नहीं देखा।
  • गणित शिक्षक बोले मैं वेतन के लिए तुम्हें पढ़ता हूं और तुम कक्षा में उत्तीर्ण होने,जाॅब प्राप्त करने के लिए तथा अध्ययन को आसक्तिपूर्वक सफलता-सफलता के लिए पढ़ते हो।जबकि गुरुकुल के शिष्य मौज-मस्ती,आनंद के साथ अध्ययन करते हैं।उन्हें सफलता-असफलता में आसक्ति नहीं है।वे अनासक्त अध्ययन कर्म करते हैं।
  • गुरुकुल में गणित के आचार्य भी बिना लोभ-लालच के अनासक्तिपूर्वक,आनंद एवं मौज-मस्ती के साथ शिष्यों को पढ़ाते हैं,उनका समर्पण सच्चा है।मेरा और तुम्हारा समर्पण सांसारिक माया-मोह के लिए है।यही मूलभूत अंतर है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित का अध्ययन खेल समझकर कैसे करें? (How to Study Mathematics as Game?),अध्ययन को खेल समझकर कैसे करें? (How to Make Study as Game?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित पढ़ाने की फीस दुगनी (हास्य-व्यंग्य) (Math Tution Fees Doubled) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (सुमित से):जल्दी-जल्दी गणित के सवाल हल करो।अगर समय ज्यादा हो गया तो गणित पढ़ने की फीस दुगुनी हो जाएगी।
  • सुमित (आश्चर्य से):वह क्यों?
  • गणित शिक्षक:तुमने सूचना पट्ट पर पढ़ा नहीं।उस पर लिखा था कि गणित के सवालों को हल करने में ज्यादा समय लगने पर छात्र-छात्राओं से दुगुनी फीस ली जाएगी।

7.गणित का अध्ययन खेल समझकर कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Study Mathematics as Game?),अध्ययन को खेल समझकर कैसे करें? (How to Make Study as Game?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.अध्ययन करने में किन-किन पक्षों का सामना करना पड़ता है? (What are the Aspects Faced in Conducting the Study?):

उत्तर:अध्ययन करने में सफलता और असफलता का सामना करना पड़ता है।यह नहीं हो सकता है कि हमें लगातार सफलता ही मिलती रहे।अध्ययन में कोई परेशानी न हो,असफलता नहीं मिले ऐसा नहीं हो सकता।हमें सफलता रूपी उज्जवल पक्ष को देखना चाहिए तथा असफलता से सीख लेनी चाहिए और अपनी कमियों व त्रुटियों को दूर करना चाहिए।यदि इस प्रकार अध्ययन करें तो निराशा पास नहीं फटक सकती है।परंतु अक्सर विद्यार्थी असफलता रूपी अँधेरे पहलू को ही सामने रखकर विचार करते हैं और फलस्वरूप निराशा ही हाथ लगती है।

प्रश्न:2.निराशा को दूर करने का ओर कौनसा उपाय है? (What is the Other Way to Overcome Disappointment?):

उत्तर:निराशा का छात्र-छात्रा के दृष्टिकोण से अधिक संबंध होता है।जैसी उसकी भावनाएँ होती हैं,वैसी ही उसको प्रेरणा भी मिलती है।जो छात्र-छात्राएं आपस में मिल-जुलकर एक-दूसरे का सहयोग करते हैं,मिल-जुलकर आपस की समस्याओं का समाधान करते हैं उनमें आशा,उत्साह,प्रसन्नता की धारा बहती है।मिल-जुलकर एक-दूसरे का सहयोग करने से निराशा से पीछा छुड़ा सकते हैं।परंतु जो विद्यार्थी केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे रहते हैं,जो अपने लाभ की तरफ ही ध्यान रखते हैं उन्हें निराशा,असंतोष,अवसाद ही परिणाम में मिलता है,यह एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक सत्य है।अपना लाभ देखने और सिद्ध करने वाले विद्यार्थी को जीवन में एक अभाव तथा रिक्तता महसूस होती है और उससे प्रेरित निराशा,अवसाद उसे ग्रस्त कर लेते हैं।

प्रश्न:3.बोरियत को कैसे दूर करें? (How to Overcome Boredom?):

उत्तर:किसी एक ही ढर्रे से पढ़ते रहने,एक ही पुस्तक का अध्ययन करते रहने,एक ही विषय सामग्री का अध्ययन करते रहने से बोरियत महसूस होती है।जिस विषय को एक बार पढ़ लेते हैं उसके प्रति रुचि और संवेदनशीलता खत्म हो जाती है।इसलिए अध्ययन करने के ढंग अध्ययन करने की विषय सामग्री में बदलाव करते रहना चाहिए।जैसे आपने गणित की पाठ्यपुस्तक को पढ़ लिया और उसके सवाल हल कर लिए तो उसके बाद मॉडल पेपर हल करना चाहिए,इसके बाद खुद के बनाए हुए नोट्स का अध्ययन करना चाहिए।इसी प्रकार एक विषय को पढ़ते-पढ़ते काफी समय हो गया हो तो दूसरा विषय पढ़ना चाहिए।इस प्रकार बदलाव करते रहने से बोरियत को दूर किया जा सकता है।गणित की पुस्तक,मॉडल पेपर,नोट्स में एक ही पाठ्यक्रम की विषय सामग्री होते हुए भी बदलाव के साथ लिखी होने के कारण बोरियत नहीं होगी।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित का अध्ययन खेल समझकर कैसे करें? (How to Study Mathematics as Game?),अध्ययन को खेल समझकर कैसे करें? (How to Make Study as Game?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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